Book Title: Story Story
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STORY Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ islo is a light O is a music R is a pleasure D OF CH de cég 6 20 Com orget Gen 065 http Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STORY Blessings Acharya Hemchandra Suriji Editor Acharya Kalyanbodhi Suriji Publisher K. P. Sanghvi Group Fon Private & Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्तिस्थान के. पी. संघवी एन्ड सन्स 1301, प्रसाद चेम्बर्स, ऑपेरा हाउस, मुंबई-400 004. फोन : 022-23630315 श्री चंद्रकुमारभाई जरीवाला दु.नं.6, बद्रिकेश्वर सोसायटी, नेताजी सुभाष मार्ग, मरीन ड्राईव इ रोड, मुंबई-400 002. फोन : 022-22818390/22624477 श्री अक्षयभाई शाह 506, पद्म एपार्ट., जैन मंदिर के सामने, सर्वोदयनगर, मुलुंड (प.), मुंबई-400 080. फोन : 25674780 श्री चंद्रकांतभाई संघवी 6/बी, अशोका कोम्प्लेक्स, जनता अस्पताल के पास, पाटण-384265 (उ.गु.). मो. : 9909468572 श्री बाबुभाई बेडावाला सिद्धाचल बंग्लोज, सेन्ट एन. हाईस्कूल के पास, हीरा जैन सोसायटी, साबरमती, अहमदाबाद-5. मो. : 9426585904 मल्टीग्राफीक्स 18, खोताची वाडी, वर्धमान बिल्डींग, 3रा माला, प्रार्थना समाज, वी. पी. रोड, मुंबई-400 004. फोन : 23873222/23884222 E-mail : support@multygraphics.com | www.multygraphics.com सेवंतीलाल वी. जैन (अजयभाई) 52/डी, सर्वोदय नगर, 1ली पांजरापोल गली नाका, मुंबई. फोन : 22404717/22412445 महावीर उपकरण भंडार सुभाष चौक, गोपीपुरा, सुरत. फोन : (0261) 2590265 महावीर उपकरण भंडार शंखेश्वर. फोन : 273306. मो. : 9427039631 सृजन 155/वकील कॉलनी, भीलवाडा (राज.). मो. : 09829047251 प्रथम आवृत्ति : 2011 • मूल्य : 250/ Nt Jain Education Intemational Foate oral Use Blurarorg AN Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IT'S STORY TIME एक अच्छी स्टोरी न केवल ज्ञान देती है, न केवल आनंद देती है, किन्तु, जीवन को एक नयी दिशा देती है। आत्मा के भीतर सुषुप्त Positive Energy को जागृत करती है और तन-मन में स्वस्थता और प्रसन्नता भर देती है। SO READ IT ENJOY IT For Private &Personal Use Only jainelibrary.org Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUN परी तीर्थ-जीवमैत्री धाम मनुष्यलोक में स्वर्गलोक जैसे पावापुरी तीर्थधाम का सर्जन करनेवाले के. पी. संघवी परिवार को लाख-लाख अभिनंदन Education International s For Private & Personal use only. www.jainelibrary: Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क चतुर्मुख श्रीमा उख श्री महावीरस्वामी पामी भगवान जल मन्दिर का विहंगम दृश्य ECCARE ये है पावापुरी धाम... diucation International For Private & Personal use. Only www.lainelibraryore Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माँ सरस्वती जीवमैत्री मन्दिर kein tionchetetiones Je For Drivate & Personal-Gce only Pubaipeigns Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन मन्दिर-जल मन्दिर-जीव मन्दिर का पुण्य प्रयाग अर्थात् पावापुरी तीर्थ-जीवमैत्रीधाम K. P. SANGHVI GROUP K. P. Sanghvi & Sons Sumatinath Enterprises K. P. Sanghvi International Limited KP Jewels Private Limited Seratreak Investment Private Limited K. P. Sanghvi Capital Services Private Limited K. P. Sanghvi Infrastructure Private Limited KP Fabrics Fine Fabrics King Empex melibrary to Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन की राह में केवल चलते ही जाओगी,, तो भटक जाओंगे। TAKE RES जरा रुको... कुछ अल्छा साहित्य पढो... TAKE EAT उसमें है हर समस्या का समाधान... हर मोड का मार्गदर्शन। यह है हर कदम पर हमराही। REMEMBER IT'S YOUR BEST FRIEND lain Education International VF Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intemational प्यास से व्याकुल एक कौआ इधर-उधर भटक रहा था। सहसा एक झोंपड़ी के निकट उसने पानी से आधा भरा मटका देखा । चोंच इतनी गहराई तक पहुँच नहीं सकती थी और मटका तोड़ने से जो थोड़ा सा पानी था, वह भी बह जाने की आशंका थी। अंत में उसे एक उपाय सूझा। उसने थोड़े से कंकर इकट्ठे किए। फिर एक के बाद एक मटके के भीतर डालने लगा। थोड़ी ही देर में पानी ऊपर आ गया। चोंच बढ़ाकर कौए ने अपनी प्यास बुझाई। शांति से सोचे तो हर समस्या का समाधान हमारे पास ही है। अक्लमंद कौआ Harjaimelibrary.org Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || छिपा छिपे नही पाप ।। गुप्त सन्देश वामदेव और रूपसेन दोनों में मित्रता थी। रूपसेन धूर्त था और वामदेव सरल। एक बार दोनों धन कमाने के लिए परदेश गये। उन्होंने वहाँ व्यापार करके खूब धन कमाया और फिर घर के लिए रवाना हुए। दोनों के पास पाँचपाँच सौ स्वर्ण मुद्राएँ थीं। जब वे दोनों बीच जंगल में पहुँचे, तब रूपसेन के मन में पाप आया। उसने वामदेव को मार कर उसका धन छीन लेने का विचार किया। जब वह वामदेव को मारने लगा, तब वामदेव ने कहा-तुम मेरा धन भले ही ले लो, पर मेरा एक काम कर दो, तो मैं सुख से मर सकूँगा। मेरी पत्नी वर्षों से मेरा इन्तजार कर रही है। उसे मेरा एक छोटा-सा सन्देश सुना देना। वह सन्देश है-वारूलीआ। रूपसेन ने वामदेव को वचन दिया और उसे मार डाला। उसका धन छीनकर वह ता आगे बढ़ा। जब वह अपने गाँव पहुँचा तो वामदेव की पत्नी ने उससे अपने पति के समाचार पूछे। तब रूपसेन ने वामदेव की मृत्यु का समाचार और उसका सन्देश वारूलीआ उसे सुना दिया। वामदेव की पत्नी को रूपसेन पर शक हो गया। वह न्यायाधीश के पास गई और उन्हें सारी बात बता दी। न्यायाधीश बड़े बुद्धिमान थे। वारूलीआ शब्द का अर्थ उनकी समझ में आ गया। वह अर्थ इस प्रकार था - वामदेव को मार कर, रूपसेन अति नीच || लीधी मुहरें पाँच सौ, आवत वन के बीच ।। रूपसेन को अपना अपराध कबूल करना पड़ा। न्यायाधीश ने वामदेव की पत्नी को पाँच सौ मुहरें दिलवाईं और रूपसेन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। wwww jainelibrary.org Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गरीबी अपने को गरीब मानने में है। एक सैनिक लकड़ी की टाँग लगाए एक कस्बे में पहुँचा । अचानक उसे बुखार ने दबोच लिया। निरुपाय उसे अपनी यात्रा स्थगित कर उसी कस्बे में शरण लेनी पड़ी। टोकरी बनाने वाले एक गरीब की बेटी एजी का ध्यान सहसा बीमार सैनिक की ओर गया। दयालु एजी रात-दिन उसकी सेवा में लग गई। कुछ ठीक होने पर वह रोज उस सैनिक को देखने जाती और कुछ-न-कुछ पैसे देकर लौट आती। सैनिक बड़ा ईमानदार था। एक दिन उसने एजी से पूछा, "मेरी प्यारी बिटिया, मुझे पता चला है कि तुम्हारे माता-पिता बहत गरीब हैं, फिर तुम ये पैसे मुझे कहाँ से लाकर देती हो? मैं भूखा रहना पसंद करूँगा, पर गलत ढंग से लाकर दिए गए पैसे स्वीकार नहीं करूँगा।" सैनिक की बात सुन एजी मुस्कुराई और बोली, "आप बिल्कुल निश्चिंत रहिए। ये पैसे जो मैं आपको देती हूँ, मेरी खरी कमाई के पैसे हैं। रोज सुबह जब मैं स्कूल जाती है, रास्ते में पड़ने वाले जंगल से टोकरी भरकर फूल तोड़ती हूँ। फिर उसे गाँव में बेच देती हूँ। मेरे माता-पिता यह बात जानते हैं और मेरी इस बात से वे बड़े प्रसन्न हैं। वे कहते हैं कि बहुत से लोग हमसे भी खराब स्थिति में हैं। हम उनकी जितनी भी सहायता कर सकते हैं, हमें अवश्य करनी चाहिए।" एजी की बात सुनकर सैनिक की आँखें भर आईं। .20 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसंगत का असर 20. De JL किसी नगर में एक तोता बेचने वाला आया। उसके पास दो पिंजरे थे। दोनों में एक-एक तोता था। तोते वाले ने एक तोते का मूल्य रखा था पचास रुपया तथा दूसरे का पाँच रुपया। संयोग की बात कि उस नगर के राजा की सवारी उधर =m-ad से निकली। राजा ने तोते देखे तो दोनों तोते खरीद लिये। रात को जब राजा सोने लगा तो उसने अपने नौकर को आदेश दिया कि पचास रुपए वाले तोते का पिंजरा उसके पलंग के पास टाँग दिया जाए। फौरन आदेश का पालन हुआ । राजा सो गया। जैसे ही भोर हुई, तोते ने भजन गाना शुरू किया। फिर सुंदर-सुंदर श्लोक पढ़े। राजा बहुत प्रसन्न हुआ। अगले दिन राजा ने दूसरे पिंजरे को पास रखवाया। जैसे ही सवेरा हुआ, उस तोते ने गंदी-गंदी गालियाँ बकना शुरू कर दीं। राजा की त्योरियाँ चढ़ गईं। उसने नौकर को आदेश दिया कि इस दुष्ट को तुरंत मार डालो। पहले तोते का पिंजरा भी पास ही रखा था। उसने राजा से प्रार्थना की, "इसे मारिए मत। यह मेरा सगा भाई है। हम दोनों एक ही साथ जाल में फँसे थे। मुझे एक संत ने खरीद लिया। उनके यहाँ मैंने भजन सीखे। इसे एक चांडाल ने खरीदा, जहाँ इसने गालियाँ सीख लीं। इसका कोई दोष नहीं। यह तो संगत का असर है।" -100-00 संसार में ऐसे अपराध नही हैं, जिन्हें हम चाहें और क्षमा न कर सकें । संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति संसर्ग से ही दोष गुण उत्पन्न है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ मटके की आपबीती ॥ देहदुक्खं महाफलम् ॥ किसी सुन्दरी के काले-काले कोमल मखमली केशों पर जल से भरा मटका सवार था। किसी युवक की नजर उस पर पड़ी। उसने उत्सुकता पूर्वक मटके से पूछा- आपको यह सुख कैसे मिला है ? जरा मुझे भी बताइये; जिससे मैं भी अपने जीवन में सुखी हो सकूँ । इस पर मटका बोला - भाई सुख पाने के लिए तो कठोर तपस्या करनी पड़ती है और अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं, तब कहीं जा कर सुख मिलता है। फिरमटका अपने जीवन का इतिहास बताते हुए बोला पहले तो हम कुल' तज्यो, रासभ हुए सवार । कूट पीट सीधो कियो, दियो चाक पर डार || शीष काट भू पे धर्यो, सही शीत अरु धूप । तोक अवाडे थिर कियो, निकल्यो रूप अनूप ॥ मालिक से ग्राहक मिल्यो, लीन्हो ठोक बजाय । इतना संकट मैं सह्या, चढ़ा शीष पै आय ।। मटके की बात बिल्कुल सत्य है । दुःख की खाई पार किये बिना सुख की हरियाली नजर नहीं आती । 10 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीति-शतक, श्रृंगार-शतक और वैराग्य-शतक जैसे अमर ग्रंथों के प्रणेता महाराज भर्तृहरि रानी पिंगला के चरित्र की पोल खुल जाने से विरक्त हो कर संन्यासी बन गये और जंगल में जा कर तपस्या करने लगे। ___एक दिन की बात है। वे शरद ऋतु की पूनम की रात को इधर-उधर टहल रहे थे। अचानक मार्ग में चाँदनी से चमचमाते लाल माणिक्य रत्न को देखकर वे उसकी ओर आकृष्ट हए। उसे उठाने के लिए धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए वे उसके निकट पहँचे। उन्होंने सोचा कि यह कितना सुन्दर रत्न है, पर कोई इसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा हैं। जब तक गुणों की कदर करने वाला कोई न हो, गुणवानों को सम्मान नहीं मिलता। भर्तृहरि धीरे से नीचे झुके। उस रत्न को उठाने के लिए हाथ से छुआ, तो हाथ गीला हो गया। वह रत्न नहीं था। वह तो पान की पीक थी। तब भर्तृहरी बोले - कनक तजा कान्ता तजी, तजा सचिव का साथ। धिक मन धोखे लाल को, रखा पीक पर हाथ || धन, पत्नी, मंत्री, राज्य आदि सबका त्याग करने पर भी मन में तृष्णा मौजूद है, यह जानकर वे बहुत लज्जित हुए। भर्तृहरी की फटकार ।। भवतण्हा लया वुत्ता भीमा भीमफलोदया ।। E ve Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवाद का मूल अपना दोष देखना अच्छा है और दूसरों के गुण देखना अच्छा है; किन्तु लोग इससे उल्टी बात करते हैं। वे अपने तो गुण ही गुण देखते हैं और दूसरों के दोष देखते हैं। इस प्रकार अपने गुणों पर नजर रखकर वे अभिमानी बन जाते हैं और दूसरों के दोषों पर नजर रखकर वे उनसे घृणा करने लगते हैं। - अफीम की मनभावन क्यारी के बीच खड़े धतूरे से अफीम के फूलों ने कहा - अबे अड़ा सो तो अड़ा, पर बीच में आ के क्यों खड़ा ? धतूरा उत्तर में बोला खड़ा तो मेरी इच्छा से खड़ा, पर तेरी तरह किसी के गले तो नहीं पड़ा ? अफीम के फूलों ने जवाब देते हुए कहा गले भी पड़ा तो अमीरों के पड़ा, तेरी तरह फकीरों के तो नहीं पड़ा ।। ऐसी बातचीत का क्या कभी अन्त हो सकता है ? नहीं, अन्त तो तभी सम्भव है, जब दोनों के दृष्टिकोण बदल जायें और दोनों एक दूसरे के गुण देखने लगें और उन गुणों की प्रशंसा करने लगें । दूसरों के गुणों की खोज करने वाली दृष्टि ही निर्मल होती है। वह गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है। इससे विपरीत दृष्टि दोषदर्शन के द्वारा दोषदर्शक को भी धीरे-धीरे दुष्ट बनाने में सफल हो जाती है, इसलिए उससे दूर रहना ही श्रेयस्कर है। 7 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बार कबीर साहब बस्ती में घूम रहे थे, तब उनके कानों में चलती चक्की की ध्वनि सुनाई दी। वे वहीं खड़े रह गये और इस चक्की की क्रिया को देखने लगे। अनाज के दाने ऊपर से डाले जा रहे थे और चक्की के दोनों पाटों के बीच पिसे जा रहे थे। यह देखकर कबीर साहब से न रहा गया। उन्होंने उसी समय एक दोहा बनाया - चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय। दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।। यह दोहा दो अर्थों वाला है। यह अर्थ तो स्पष्ट ही है कि चलती चक्की के दोनों पाटों के बीच आया हुआ अनाज का दाना सुरक्षित नहीं रहता। दूसरा अर्थ इस प्रकार है - पृथ्वी और आकाश इन दोनों पाटों के बीच में पैदा होने वाले सभी प्राणी मरते हैं। दुःख में पिस जाते हैं। यह सुनकर चक्की पीसने वाली बुढ़िया ने उत्तर दिया - चक्की चले तो चलने दे, पिस पिस मैदा होय। कीले से लागा रहे, बाल न बाँका होय॥ चलती चक्की में भी अनाज का जो कण कीले के पास लगा रहता है, उसका कुछ नहीं बिगड़ता; उसी प्रकार इस संसार में जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है, वह दुःख से बच जाता है। कोले से लागा रहे... जमीन और आसमान के बीच नाना प्रकार का दुःख भोगने वाले प्राणी यदि धर्म का आश्रय लें, तो वे दुःख और मृत्यु से बच जाते हैं। इसलिए सदा धर्म का आश्रय लेना चाहिये | || धर्म एवामृतं परम् ।। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बार बादशाह अकबर नदी तट पर नमाज पढ़ रहे थे अचानक एक औरत वहाँ से भागती हुई निकली और आसन पर पैर रखकर आगे बढ़ गई। बादशाह को इस पर बड़ा गुस्सा आया, पर वे नमाज पढ़ रहे थे; इसलिए उस समय तो कुछ नहीं बोले; पर जब वह वापस लौटी, तब बादशाह ने उसे रोक लिया। बादशाह ने उसे डाँट कर गुस्से में कहा - अरी अंधी ! क्या दिखाई नहीं दिया, जो तू मेरे नमाज के आसन पर पैर रखकर चली गई ? मैं उस वक्त नमाज पढ़ रहा था, सो क्या तुझे दिखाई नहीं दिया ? तब वह औरत बोली - जहाँपनाह ! मुझे माफ करें। मैं उस वक्त मेरे पति से मिलने जा रही थी। मिलने का समय हो चुका था और मेरा पति उस वक्त बड़ी बैचेनी से मेरा इन्तजार कर रहा होगा, यह सोचकर मैं भागी जा रही थी। हुजूर! उस समय मेरा सारा ध्यान मेरे पति में लगा था, इसलिए मैं अन्धी हो गई थी, पर मेरा आपसे नम्रतापूर्वक एक सवाल है। आप भी तो नमाज में खुदा से मिलने जा रहे थे न? फिर मैं आपको कैसे सूझ पड़ी ? नर राची सूझी नहीं, तुम कस लखी सुजान ? पढ़ कुरान बौरे भये, नहीं राचे रहमान ।। बादशाह को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने मार्गदर्शन के लिए उस औरत को धन्यवाद दिया और वे अपने महल की ओर लौट पड़े। नहीं राचे रहमान तल्लेसे ।। ॥ तच्चिते. तम्मो 9 Sucation For Private & Personal se only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक गाँव में एक आदमी रहता था। उसे लोग डिट्टा कहकर बुलाते थे। वह कुछ भी पढ़ा लिखा नहीं था, इसलिए बेकार था । एक बार वह किसी दूसरे गाँव गया। गाँव के बाहर उसने एक गधा देखा, जो दूब चर रहा था। जब वह गाँव में पहुँचा तो उसे एक कुम्हार दिखाई दिया, जो अपना गधा खो जाने के कारण परेशान था । कुम्हार के पूछने पर डिट्टा ने बताया कि तुम्हारा गधा गाँव के बाहर है। कुम्हार वहाँ गया तो उसे गधा मिल गया। प्रसन्न होकर कुम्हार डिट्टा को अपने घर ले गया। जिस कमरे में डिट्टा बैठा था, उसके पास के कमरे में कुम्हारिन रोटी बना रही थी। रोटी सिकने पर राख झाड़ने के लिए वह उस पर ठपका लगाती । डिट्टा ने ठपके गिन लिए। जब वह भोजन करने बैठा, तो उसने कुम्हार से कहा कि आज इस चूल्हे पर पन्द्रह रोटियाँ बनी हैं। रोटियाँ गिनने पर संख्या सही निकली। डिड्डा का भाग्य ठाकुर अब डिट्टा अपनी भविष्यवाणी के लिए सारे गाँव में प्रसिद्ध हो गया। गाँव के ने उससे अपनी ठकुराइन के हार के बारे में पूछा । डिट्टा ने कहा इसका पता कल लगेगा। फिर वह ठाकुर की हवेली में ही सो गया। रात को लेटे-लेटे उसने नींद को बुलाया - आ निद्रा आ । निद्रा नामक दासी ने हार चुराया था। अपना नाम सुनकर वह डर गई। उसने तुरन्त वह हार डिट्टा को दे दिया। हार पाने के बाद ठाकुर ने अपनी मुट्ठी में मरा हुआ डिट्टा बन्द कर पूछा- बताओ ! इस मुट्ठी में क्या है ? घबरा कर डिट्टा बोला दूब चरन्ता गदहा देखा, ठपके रोटी पाई । हार मिला निद्रा से अब तो डिट्टा मौत आई ।। बात ठीक निकल जाने के कारण ठाकुर ने डिट्टा को बहुत बड़ा इनाम दिया। इसे कहते हैं भाग्य । 10 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चहक एक चिड़िया की.... एक पेड़ पर चिड़िया अपनी मस्ती में चहक रही थी । उस पेड़ के नीचे एक भक्त विश्राम कर रहा था। चिड़िया की चहक सुनकर भक्त बोला, "अहा ! चिड़िया भी भगवान को याद कर रही है।" एक बनिये ने भक्त की यह बात सुनकर पूछा, "सो कैसे ?" राम भक्त बोला, "चिड़िया बोल रही है सीता, दशरथ । राम-सीता, दशरथ ।" तब बनिया बोला, "नहीं, यह तो कह रही है - धनिया, मिर्च, अदरक । धनिया, मिर्च, अदरक ।" इतने में एक पहलवान वहाँ आ गया। उसने कहा, "यह चिड़िया तो व्यायाम का महत्त्व बता रही है। यह कह रही है • दण्ड, कुश्ती, कसरत । दण्ड, कुश्ती, कसरत ।” वहीं एक बुढिया एक ओर बैठी चरखा कात रही थी। उसने कहा, "अजी ! यह चिड़िया तो कह रही है - चरखा, पूनी, चमरख । चरखा, पूनी, चमरख ।" उन सबकी इस प्रकार बातें चल रही थीं कि एक मौलवी साहब वहाँ आ गये। उन्होंने कहा, Your Mind "अरे यह चिड़िया तो अपने बनाने वाले खुदा को याद कर रही है। यह कह रही है अल्लाह तेरी कुदरत । अल्लाह तेरी कुदरत ।" इस प्रकार भिन्न-भिन्न लोगों ने अपनीअपनी समझ के अनुसार भिन्न-भिन्न कल्पनाएँ कीं; पर चिड़िया तो केवल चहक रही थी। उसे इनमें से कोई भी अर्थ मालूम नहीं था। सच ही है - जाकी रही भावना जैसी । प्रभु मूरत देखी तिन जैसी ॥ 11 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बार एक जंगल में आग लगी। धू-धू करके पेड़ जलने लगे। एक पेड़ की शाखा पर कुछ पक्षी बैठे हुए थे। पेड़ जल रहा था, धुआँ निकल रहा था। पंख न होने से पेड़ का उड़ना सम्भव नहीं था, पर पक्षी तो उड़ सकते थे और आग की लपटों से अपने को बचा सकते थे; पर वे उड़ नहीं रहे थे। पेड़ ने उन पक्षियों से कहा - दव लागी निकसत धुआँ, सुण पंछीगण बात। हम तो जलते पाँख बिनु, तुम क्यों ना उड़ि जात ? पक्षियों ने जब यह सुना, तो उन्होंने आँखों में आँसू ला कर पेड़ से कहा – पान बिगाड़े फल भखे, उड़ि उड़ि बैठे डाल । तुम जलते हम उड़ि चलें, जीना कितने काल ? 1 और वे पक्षी पेड़ पर ही बैठे रहे। अपने उपकारों को पक्षी भी नहीं भूलते; फिर मनुष्य कैसे भूल सकता है ? जो किसी मित्र के उपकारों को भूल जाये, उसमें मनुष्यता ही नहीं होती, फिर मित्रता भला क्या होगी ? ॥ कयण्गुणा होयव्वं ।। तुम जलतेहम उडि चलें सच्चा मित्र वही है, जो सुख में ही नहीं दुःख में भी साथ रहे। दुःख मिटा सकता हो तो मिटाये; अन्यथा मित्र के साथ स्वयं भी हँसते हुए दुःख भोगे। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T आनद की साधना एक व्यक्ति ने एक अबोध शिशु को घास पर खेलते देखा। वह बहुत आनंदित था। उसके पास पेड़ से पत्ता गिरता, वह खुश हो जाता। चहकती चिड़िया उसके पास से गुजरती, वह प्रसन्न हो कर किलकारी भरने लगता। यहाँ तक कि बहती नदी में बहते किसी पशु को देखकर वह हर्षविभोर होकर तालियाँ बजाने लगता। आखिरकार इस बच्चे के निरन्तर आनंद का क्या कारण है? उस व्यक्ति ने सोचा और अपना सवाल लेकर गौतम बुद्ध के पास गया, समाधान के लिए। भगवान बुद्ध ने कहा, ''हर स्थिति में शिशु के हर्षित होने का सबसे बड़ा कारण है, उसका निर्मल पवित्र मन। इसलिए सभी वस्तुओं में समान रप से सौंदर्य का अनुभव कर वह अत्यधिक आनंदित होता है। अगर हम बड़े भी इस बात को समझ लें तो हम भी निर्मल पवित्र मन से आनंद साधना की पराकाष्ठा को प्राप्त हो सकते है।" ।। आज्ञा तु निर्मलं चित्तं कर्तव्यं स्फटिकोपमम् ।। 13 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिक्षा का प्रारम्भ एक दिन एक महिला एक वरिष्ठ ज्ञानी । व्यक्ति के पास गई और पूछा, ''बाबा, कृपा करके मुझे यह बताइए कि मुझे अपने नन्हें-मुन्ने बेटे की शिक्षा कब प्रारम्भ करनी चाहिए?" ज्ञानी ने कहा, "तुम्हारा बेटा कितना बड़ा हैं?'' महिला ने बड़े गर्व से जताया - "तीन वर्ष का।'' *४* "ओह ! तीन साल का ! तुमने बड़ी देर कर दी है उसकी शिक्षा प्रारम्भ करने में। उसके जीवन के तीन वर्ष व्यर्थ चले गए। हमारे यहाँ शास्त्रों में लिखा है - बच्चे की शिक्षा मां के पेट में आने पर ही शुरु हो जाती है। अर्जुन – पुत्र अभिमन्यु इसका एक सशक्त उदाहरण है।'' भावी माताओं को चाहिए इससे शिक्षा लें... और गर्भकाल के दौरान अपनी संतान की शिक्षा का यथोचित ध्यान रखें, अच्छी बातें सुने, अच्छे काम करें, अच्छा साहित्य पढे, खान-पान का समुचित ध्यान रखें एवं दिन-रात धर्ममयी रहे, ताकि आने वाली संतति संस्कारी हो। । एवं खु तप्पालगे वि धम्मो ।। 140 HERE Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढ़ने की लगन एक छोटा सा बच्चा था। निर्धन परिवार का था। बच्चे को पढ़ने की अचूक लगन थी। स्कूल गाँव के दूसरे किनारे पर था। बीच में नदी पड़ती थी। नाविक को देने के लिए पैसे नहीं थे। पर उस बच्चे ने हार नहीं मानी। रोज तैरकर स्कूल जाने लगा। उसकी मेहनत रंग लाई। और एक दिन वह भारत का प्रधानमंत्री बना । जानते हो, उनका नाम क्या था ? वह थे हमारे देश के द्वितीय प्रधानमंत्री - "श्री लालबहादुर शास्त्री।" || श्रमेण साध्यमाप्नुयात् ।। 16 YON Education International Private ? Pe Use Only iainelibrary.org Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 पांडवों की माता कुन्ती ने एक दिन श्री कृष्ण से प्रार्थना की। विपदः सन्तु नः शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो ! भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भव-दर्शनम् ।। हे जगद्गुरु ! सारे संसार का ज्ञान देने वाले शिक्षक प्रवर ! स्थान-स्थान पर हमें निरन्तर विपत्तियाँ प्राप्त हों, जिससे अपुनर्भव का दर्शन कराने वाला आपका दर्शन होता रहे। अपुनर्भव याने जहाँ जाने के बाद वापस संसार में लौटना नहीं होता, ऐसा परमधाम । विपत्तियों की माँग का श्लोक में जो कारण बताया है, उसके अतिरिक्त और भी कुछ कारण विपत्तियों की माँग के पीछे, हैं जैसे सुख में दूसरों के दुःख का अनुभव नहीं हो पाता । दुःखी व्यक्ति ही दूसरों के दुःख को गहराई से समझ कर उसे दूर करने का उपाय कर सकता है। दूसरी बात यह है कि जिस प्रकार हरड़े खाने के बाद साधारण जल भी मधुर लगता है, उसी प्रकार दुःखी व्यक्ति को साधारण-सा सुख भी अधिक मधुर लगता है। तीसरी बात यह है कि दुःख में ही प्रभु का स्मरण बना रहता है। दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय || ion international दुःख की याचना For Private & Personal senorm Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विप्र वेश में कोई यक्ष एक राजसभा में जा पहुँचा वहाँ उसने सबके सामने एक पहेली रखी - पाँच मी पाँच सी, पाँच मी न सी फिर वह बोला कि मैं परसों फिर यहाँ आऊँगा । यदि तब तक किसी ने इस पहेली का उत्तर नहीं दिया तो समझ लिया जायेगा कि इस राज्य में कोई पण्डित है ही नहीं । राजा ने राजपण्डित से कहा कि यदि आप कल शाम तक इस पहेली का उत्तर नहीं खोज पाये, तो परसों प्रातःकाल ही आपका वध कर दिया जायेगा। यह पूरे राज्य की प्रतिष्ठा का सवाल है। बेचारा राजपण्डित निराश होकर किसी जंगल में जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और विचार करने लगा। उसी पेड़ पर वही यक्ष अपनी प्रेयसी के साथ बैठा बातें कर रहा था। प्रिये ! परसों तुम्हें अवश्य ही राजपण्डित का कलेजा खाने को मिल जायेगा। मैंने पहेली ही ऐसी पूछी है कि उसका उत्तर उसे सूझेगा ही नहीं और फिर परसों उसका निश्चित ही वध कर दिया जायेगा। आपकी पहेली का अर्थ क्या है ? प्रेयसी ने पूछा। पहेली पन्द्रह तिथियों पर आधारित है। पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी ये पाँच मी वाली तिथियाँ हैं। एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णमासी ये पाँच सी वाली तिथियाँ हैं और एकम, दूज, तीज, चौथ और छठ इन पाँचों में नमी है और न ही सी। राजपण्डित ने यह सब सुन लिया। फिर वह घर चला गया। दूसरे दिन राजसभा में अर्थ बताकर उसने अपने प्राणों की रक्षा की। पहेली in Education International For Private & Personal use write 17 www.lainelibrary.org Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भले की हो भावना || शिवमस्तु सर्वजगतः || बहुत से याचक भीख माँगते वक्त बोलते हैं - दे उसका भी भला और न दे उसका भी भला ! इसका मतलब यह है कि कोई मुझे कुछ दे या न दे, मैं तो सबका भला चाहता हूँ। लोक कल्याण की यह भावना साधुजनों में कूट-कूट कर भरी रहती है। अपनी दुकान खोलने से पहले एक मंगलाएक दुकानदार चरण बोला करता था. गजानन आनन्द करो, कर सम्पत में सीर । दुश्मन का टुकड़ा करो, ताक लगाओ तीर ।। को सम एक साधु ने जब यह सुना तो उसने झाया कि मंगलाचरण में मंगल भावना ही प्रकट होनी चाहिये । तीर से दुश्मन के टुकड़े कर देने की भावना मंगल नहीं है।. दुकानदार I तब दुकानदार बोला-महाराज ! आप तो ज्ञानी हैं और हम तो कुछ नहीं जानते। आप ही यदि हमें कुछ सिखा देंगे तो आगे से हम वैसा ही बोलेंगे । तब साधु महाराज ने उसे निम्नलिखित पद सिखाया गजानन आनन्द करो, कर सम्पत में सीर । दुर्जन को सज्जन करो, नौत जिमावे खीर ॥ यह छन्द सुनकर दुकानदार को बड़ी खुशी हुई। उस दिन से वह इसी छन्द का उच्चारण करने लगा। सब के भले की भावना में ही हमारा कल्याण है। 18 happy Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ऋणेन न व्यवहर्त्तव्यम् || यूँ है भोलो-बावलो एक आदमी को उधार लेने की आदत थी। वह पिछली उधारी चुकाकर नई उधारी कर लेता था। इस प्रकार वह हमेशा उधारी के चक्कर में फँसा रहता था। कभी-कभी वह परिचितों से भी उधार सामान खरीद लाता। उन्हें वह कुछ नकद देता, शेष कभी नहीं चुकाता था। परिचित व्यक्ति उससे संकोचवश कभी माँगते नहीं थे। वे सोचते थे कि माँगने पर उसे बुरा लगेगा। इससे पैसा तो वसूल होगा नहीं, उलटे दुश्मन बन जावेगा। इस प्रकार धन और मित्रता दोनों खोने की भूल क्यों की जाये ? एक दिन की बात है। एक परिचित सेठ की दुकान से वह पहले ही सामान ले चुका था और उधारी चुका नहीं पाया था इसलिए उससे और उधारी लेने की हिम्मत नहीं हो रही थी, पर घर पर सामान की बहुत जरूरत थी। आखिर उसने ऐसा अवसर देखा, जब सेठ दुकान पर नहीं था, पर उसका पुत्र दुकान पर था। वह दुकान पर गया और सेठ के पुत्र से एक रुपये का सामान खरीदा। फिर उसने एक चवन्नी देते हुए कहा कि बाकी के पैसे बाद में दे दूँगा। इतना कहकर वह चला गया। जब सेठ को यह बात मालूम हुई, तब उसने पुत्र से कहा कि तूने यह जो उधारी की है। वह नहीं पटेगी। मैं उस आदमी का स्वभाव जानता हूँ। वह शेष रकम कभी नहीं चुकायेगा । अणी कमायो पूण, पण थे केवल पावलो । लेसी देसी कूण ? यूँ है भोलो-बावलो ।। इसलिए व्यापार हमेशा चतुराई से करना चाहिये यूँ व्यापार में भोलापन काम नहीं आता । 1 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरुषार्थ ही सफलता की कुंजी। सत्वं विना हि सिद्धिर्न ।। पुरुषार्थ ही सफलता की शर्त है। अमेरिका के एक जंगल में एक नवयुवक दिन में लकड़ियां काटता था। वह पढ़ना चाहता था, लेकिन गरीब था और नजदीक कोई विद्यालय भी नही था। अतः उसने स्वयं ही घर में पढ़ने का निश्चय किया। पुस्तकालय घर से दस मील दूर था। वह अपने कार्य से अवकाश पाकर दस मील दूर पैदल जाकर किताबें लाता, लकड़ी जलाकर पढ़ता और समय से पूर्व किताबें लौटा देता। पढ़-लिखकर वह वकील बना और उसने स्थानीय अदालत में वकालत शुरु की, लेकिन इस पेश में स्वयं को सही स्वरुप में नही रख पाता क्योंकि पैसे के अभाव में कपड़ो को कैसे दुरस्त रखे ? उसके एक मित्र ने व्यंग किया, "तू वकील तो लगता ही नही एक उजाड़ देहाती जरूर लगता है, ऐसे में वकालत कैसे चलेगी ?'' उसने कहा, ''चले या न चले मैं केवल पोशाक में विश्वास नही करता। मेरा तो विश्वास एक बात में हैं कि मैं झूठा मुकदमा नही लडूंगा।'' इसलिए वह अपने मुवक्किल से पहले पूछता, "तुमने गलती की है या तुम्हें फंसाया गया है ?'' जब मुवक्किल कहता, फंसाया गया है, तब वह मुकदमा लड़ता। जानते हो वह नवयुवक कौन था ? वह युवक था अब्राहम लिंकन, जो तीस साल की अवधि में कई बार हारने के बावजूद निराश नहीं हुआ और अपने पुरुषार्थ के बल पर ५२ वर्ष की आयु में अमेरिका का राष्ट्रपति चुना गया। जवाहर लाल नेहरू ने कहा है, सफलता उसके पास आती है जो साहस करते हैं और बोध से कार्य करते है। यह उन कायरों के पास बहुत कम आती है जो परिणामों पर विचार करके ही भयभीत बने रहते हैं। 120 Gain Education international Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारह में से ।। जीवन-धर्म = 0 || एक बार सम्राट अकबर ने अपने दरबारियों से पूछा, ''बारह में से चार गए बचे कितने?'' सभी दरबारियों ने जवाब दिया, 'आठ'' बीरबल चुप । अकबर ने बीरबल से जवाब माँगा बीरबल ने कहा, "शून्य।" ''कैसे ?'' अकबर ने स्पष्टीकरण की माँग की। बीरबल ने समझाते हुए कहा, ''अगर साल के बारह महीनों में से बारिश के चार महिने यूं ही चले गए तो शून्य ही बचेगा। न फसल होगी, न जीवनयापन ही ठीक ढंग से हो पायेगा ?" “अब इसे आध्यात्मिक दृष्टि से देखें। चातुर्मास में साधु-संत एक जगह रहकर धर्म की देशना देते हैं। मनुष्य को धर्म का उचित मार्ग समझाते हैं। इन्हीं चार महिनों में तीज त्यौहार आते हैं, जैनों का महापर्व पर्युषण भी इन्हीं दिनों में मनाते हैं। अगर ये चार महीने न हों तो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से मनुष्य के लिए क्या बचेगा ? सोचकर देखिए-शून्य और सिर्फ शून्य !" For private & Personal use on s Education Interna CON Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभ का ध्यान || अरिहंतना ध्याने अरिहंत बनी जशो ।। एक ऋषि दत्तात्रेय, जो अभित्रषि के पुत्र थे और विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक माने जाते हैं, भिक्षा मांगने एक गाँव में गए। वहाँ उन्होंने एक लड़की को देखा। वह लड़की चावल कूट रही थी। वह एक हाथ से पकड़े मूसल से चावल कूटती थी और दूसरे हाथ से ओखली में पड़े चावल को चलाती जा रही थी। थोडी देर में उसका छोटा भाई रोता हुआ उसके पास आया। लड़की ने चावल कूटना बंद नहीं किया और मीठी-मीठी बातों से उस बच्चे को चुप करा दिया। वाह, वह एक हाथ से मूसल चलाती और दूसरे हाथ से चावल चलाती और बातों से बच्चे को बहलाती। गजब का ध्यान था उसका! मूसल से हाथ में चोट नहीं लगी और बच्चा भी बाहर गया। दत्तात्रेय ऋषि ने कहा, "धन्य है यह बालिका। एक शिक्षा मिली कि - कुछ भी काम करते हुए परमात्मा पर ध्यान लगाया जा सकता है। an international Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भयंकर तूफान से गैलीलो झील का पानी बांसो उचलने लगा। जो नावें चल रही थी, वे बुरी तरह थरथराने लगी। लहरों का पानी भीतर पहुंचने लगा तो यात्रियों के भय का पारावार न रहा। एक नाव में एक कोने में कोई निर्द्वन्द्व व्यक्ति सोया पड़ा था। साथियों ने उसे जगाया। जगकर उसने तूफान को ध्यानपूर्वक देखा और फिर साथियों से पूछा, "आखिर इसमें डरने की क्या बात है ? तूफान भी आते हैं, नावें भी डूबती हैं और मनुष्य भी मरते ही हैं। इसमें क्या ऐसी अनहोनी बात हो गई, जो आप लोग इतनी बुरी तरह से डर रहे हो ?" सभी यात्री उसकी बात सुनकर अवाक रह गये। उस निर्द्वन्द्व व्यक्ति ने कहा, "विश्वास की शक्ति तूफान से भी बड़ी है। तुम विश्वास क्यों नहीं करते कि यह तूफान क्षण भर बाद बंद हो जायेगा।" भयभीत यात्रियों के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना उस अलमस्त ने आँखे बंद की और अपने अंतर की झील में उतरकर पूरी शक्ति के साथ कहा, "शांत हो जा मूर्ख', और तूफान शांत हो गया। सहमे हए नटखट बच्चे की तरह नाव का हिलना भी बंद हो गया और यात्रियों ने चैन की सांस ली। अब उस अलमस्त यात्री यानी ईसा मसीह ने यात्रियों से पूछा, ''दोस्तों जब विश्वास बड़ा है तो तुमने तूफान को उससे भी बड़ा क्यो मान लिया था ?'' फिर बोले - ।। निद्वन्द्वस्स्यात् सदा सुखी ।। विश्वास की शक्ति दिल से डर निकालकर हिम्मत को स्थान देना चाहिए तभी हर कार्य में सफलता प्राप्त हो सकती है | Jain Education For Private Eersons Use cu Wajainelibrary.org Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अखरोट का पौधा फारस में एक बादशाह बड़ा ही न्याय प्रिय था। वह अपनी प्रजा के दुख-दर्द में बराबर काम आता था। प्रजा भी उसका बहुत आदर करती थी। एक दिन बादशाह जंगल में शिकार खेलने जा रहा था, रास्ते में देखता है कि एक वृद्ध एक छोटा सा पौधा रोप रहा है। बादशाह कौतूहलवश उसके पास गया और बोला, "यह आप किस चीज का पौधा लगा रहे हैं ?" वृद्ध ने धीमें स्वर " में कहा, "अखरोट का।' बादशाह ने हिसाब लगाया कि उसके बड़े होने और उस पर फल // परोपकारः पुण्याय // आने में कितना समय लगेगा। हिसाब लगाकर उसने ____ अचरज से वृद्ध की ओर देखा, फिर बोला, ''सुनो भाई, इस पौधै के बड़े होने और उस पर फल आने मे कई साल लग जाएंगे, तब तक तुम कहाँ जीवित रहोगे ?' वृद्ध ने बादशाह की ओर देखा । बादशाह की आँखों में मायूसी थी। उसे लग रहा था कि वह वृद्ध ऐसा काम कर रहा है, जिसका फल उसे नहीं मिलेगा। यह देखकर वृद्ध ने कहा, 'आप सोच रहे होंगे कि मैं पागलपन का काम कर रहा हूँ। जिस चीज से आदमी को फायदा नहीं पहँचता, उस पर मेहनत करना बेकार है, लेकिन यह भी सोचिए कि इस बूढ़े ने दूसरों की मेहनत का कितना फायदा उठाया है ? दूसरों के लगाए 9. पेड़ों के कितने फल अपनी जिंदगी में खाए हैं ? क्या उस कर्ज को उतारने के लिए मुझे कुछ नहीं करना चाहिए? क्या मुझे इस भावना से पेड़ नहीं लगाने चाहिए कि उनके फल दूसरे लोग खा सकें? जो अपने लाभ के लिए काम करता है, वह स्वार्थी होता है।'' बूढ़े की यह दलील सुनकर बादशाह चुप रह गया। Jain Educativ a tional For Private CODES Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुकरातका विषप प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक सुकरात अफलातून अर्थात् प्लेटो के गुरु थे। वे बहुत बडे विद्वान और सत्यवादी थे। उन्हें विष पिलाकर मारा गया। उन्होंने हंसते-हंसते जहर का प्याला पी लिया और इस क्रूर नासमझ दुनिया से चल बसे। जब उन्हें जहर पिलाया जा रहा था तब लोग सोच रहे थे कि सुकरात बहुत दुःखी होंगे, पर नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सत्य निष्ठ सुकरात को जहर देकर उन्हें मार डालने से पहले वस्तुतः उनके सामने दो शर्त रखी गई थी। सत्ताधारियों की पहली शर्त थी, "यूनान छोडकर भाग जाओ। अगर जान प्यारी है तो फिर कभी न लौटना।" सुकरात ने इस शर्त को नामंजूर करते हुए कहा, "ऐसा कभी नहीं हो सकता कि मैं यूनान छोडकर कहीं और चला जाऊँ। यह मेरी मातृभूमि है, यहीं मैं जन्मा, यहीं पला-पोसा, यहीं बडा हुआ, यहीं मैंने हजारों व्यक्तियों को सत्य की रोशनी दी, उनकी मन की आँखें खोलीं। मैंने कोई अपराध नहीं किया। फिर मातृभूमि को छोडकर क्यों चला जाऊँ? आनेवाली पीढ़ी क्या कहेगी - यही न कि सुकरात मौत से डर गया।" ___ जब सुकरात ने पहली शर्त नहीं मानी तब दूसरी शर्त रखी गई- "यूनान में तुम्हें रहने दिया जाएगा जब तुम सत्य का, अपने सिद्धान्तों का परित्याग कर दोगे।'' सुकरात ने इस दूसरी शर्त को भी ठुकरा दिया। उन्होंने कहा, "जीवन और मृत्यु के बारे में तो केवल भगवान ही जानता है। वही सबका मालिक है।'' बस, सुकरात को जहर पिला दिया गया और उनका शरीर यूनान की 'मिट्टी में मिल गया, पर...... IT JI Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत् प्राप्य चाप्रियम् ।। प्रशंसा हो या निंदा, सत्कर्म करते रहो... एक दिन एक संत अपने शिष्य को लेकर कहीं जा रहे थे। वह रास्ता बाजार से होकर निकलता था। दोनों ओर तरह-तरह की दुकानें लगी थी। संत को देखकर लोग आपस में बातें करने लगे। कुछ उनके सम्मान में उठ खड़े हुए, कुछ बैठे ही रह गए। एक व्यक्ति ने कहा, '' यह महान संत है। इनकी वाणी में अमृत है, जादू है।" उसके साथी ने कहा, ''हाँ इनका प्रवचन सुनने लायक होता है।" अपने शिष्य के साथ संत आगे और आगे बढ़ते रहे। कुछ लोगों ने उन्हें देखकर नाक-भौंह सिकोड़ ली और वे कहने लगे, "यह संत नहीं ढोंगी है, महापाखंडी और धूर्त है।' इन दोनों प्रकार की बातों का प्रभाव संत पर बिल्कुल नहीं पड़ा। जब वे बाज़ार से बाहर निकल आए तो उनके शिष्य ने पूछा, "गुरुदेव, रास्ते में कुछ लोगों ने आपकी प्रशंसा की तो कुछ अन्य लोगों ने निंदा की परन्तु आप पर उनकी बातों का प्रभाव नहीं पड़ा। आपने कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं की। ऐसा क्यों ?" संत ने शिष्य को समझाया, "बेटे, यह दुनिया हैं। यह बाज़ार है। बाज़ार में तरह-तरह की वस्तुएँ बिकती है। यदि इन्हें कोई न खरीदे तो क्या होगा ?" शिष्य ने कहा, "वे वस्तुएँ अन्ततः सड़ जाएगी, नष्ट हो जाएगी।" संत ने स्पष्टीकरण पूरा करते हुए कहा, "हाँ, वे नष्ट हो जाएगी। वे लोग अपना-अपना सामान बेच रहे थे। मैंने नहीं खरीदा, प्रशंसा - निंदा पर ध्यान नहीं दिया। वह सब उन्हीं के पास धरा रह गया। मेरा क्या बिगड़ा ? हम अपना सत्कर्म करते रहें, वे अपना।" शिष्य की शंका का समाधान हो गया था। वह बहुत खुश हुआ। Salih Education International Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। उववूह थिरीकरण... || प्रोत्साहन से मिलता है साहस महाभारत के युद्ध के समय की एक घटना है। पांडवों के मामा, माद्री के भाई शल्य राजा, कर्ण के सारथी थे। श्री कृष्ण ने उनसे कहा, "तुम हमारे विरुद्ध जरुर लड़ना पर मेरी एक बात मानना। जब भी कर्ण प्रहार करे तब उससे कहना 'भला, ऐसा भी कोई प्रहार होता है। तुम प्रहार करना जानते ही नहीं।'' इन बातों को तुम दोहराते रहना। शल्य ने श्रीकृष्ण की बात मान ली। जब युद्ध प्रारम्भ हुआ तब कर्ण के प्रत्येक प्रहार पर शल्य ने कहा, "तुम प्रहार करना जानते ही नहीं। भला ऐसा भी कोई प्रहार होता है ?" उधर अर्जुन के प्रत्येक प्रहार पर श्री कृष्ण कहते, "वाह, क्या प्रहार है! क्या निशाना साधा है !" इस तरह अर्जुन प्रोत्साहित होने लगे और कर्ण हतोत्साहित । कर्ण के हतोत्साह से दुर्योधन का बल क्षीण हो गया, उसकी शक्ति टूट गई। दूसरी तरफ श्रीकृष्ण के प्रोत्साहन से पांडवों की शक्ति बढ़ती गई। माता - पिता को चाहिए कि, वे अपने बच्चों में हीन भावना न भरें, यथोचित प्रशंसा करें, उन्हें धर्म में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे अभी उद्देश्य की सिद्धि होगी। For private P Use On Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छोटा और अब्राहम लिंकन जब अमेरिका की धारा सभा के सदस्य चुने बड़ा काम | गए तो उनका अभिनंदन करने के लिए अपार मानव समूह उमड़ पड़ा। उसमें अनेक जाने-माने और धनी लोग भी थे। जब ये सारे लोग लिंकन के घर पहुँचे तो वे अपनी गाय दुह रहे थे। कुछ समय तक विस्मय का वातावरण बना रहा। आखिर जब एक सज्जन से न रहा गया तो उसने पूछ डाला, "अरे, आप देश के अग्रणी नेता होकर अपने हाथ से गाय दुह रहे हैं !'' लिंकन ने मुस्कुराकर उत्तर दिया, ''भाइयों, काम कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। हम लोग श्रम से डरते हैं और अपना काम औरों पर छोड़ देते हैं। यह हमारे भीतर की एक बड़ी कमी है।" वही सफल होता है जिसक कर्तव्य उसे निरंतर आनंद देता है। 28 Education International orate&Personal use Only wwi library.org Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चमत्कारी भोजन एक दिन एक राजा आँधी और तूफान में फँस गया। उसने एक झोंपड़े में शरण ली। उसने देखा, बच्चे जमीन पर बैठे हुए खाना खा रहे हैं। खाने में सिर्फ पतली खिचड़ी ही थी, पर बच्चे काफी स्वस्थ दिख रहे थे। उनके गालों पर हलकी ललाई थी। राजा ने बच्चों की माँ से इसका राज जानना चाहा। उनकी माँ ने कहा, "यह सब उन तीन बातों की वजह से है जो बतौर घुट्टी मैं इन्हें खाने के साथ देती हूँ। पहली चीज, बच्चे अपने खाने भर का पैदा करने के लिए स्वयं मेहनत करें। दूसरी, मैं कोई चीज उन्हें बाहर की नहीं देती। तीसरी, मैंने उन्हें अंधाधुंध खाने से दूर रखा है। जितनी भूख हो उतना ही खाना।" नियम और सादगी स्वास्थ्य की निशानी है। || आरोग्यरहस्यम् ।। - 20 29 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोझ का सम्मान प्रसिद्ध उद्योगपति जमशेदजी अपने सेवकों के साथ सड़क पर जा रहे थे कि उनकी बगल से भारी बोरा उठाए एक मजदूर गुजरा । बोरे का धक्का लगने से जमशेदजी गिर पड़े और उनकी पगड़ी उछलकर नाले में जा पड़ी। एक सेवक ने फुरती से उन्हें उठाया। वह मजदूर सहम गया और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा। सेवकों ने सोचा, अब तो इस मजदूर की खैर नहीं। पर वे चकित रह गए, जब जमशेदजी ने उसे बिना डाँटे-डपटे क्षमा कर दिया और बोले, "इस बेचारे का इसमें क्या कसूर ! यह तो बोझ से दबा हुआ था। यह भला कैसे देख सकता था ! कसूर तो मेरा है, मुझे देखकर चलना चाहिए था।" यह कहकर उन्होंने पाँच का नोट उस मजदूर को दिया और अपने सेवक से बोझ उठवा देने के लिए कहा। बुद्धिमान पुरुष अपने किए का दोष दूसरों के सिर नहीं मढ़ते। al Education International FOLPeeDSTI w jainelibrary ore Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। अतृणे पतितो वहि: स्वयमेवोपशाम्यति ।। संत की महानता दक्षिण भारत में तुकाराम नाम के एकत्र संत हैं। वे अत्यंत निर्धन थे। उनके पास एक छोटा खेत था। एक बार उन्होंने उस खेत में गन्ने बोए। जब गन्ने तैयार हो गए तो एक दिन उन्होंने गन्नों को काटा और गठरी बाँधकर अपने घर की ओर रवाना हुए। रास्ते में कई बच्चे उनके पीछे पड़ गए। और गन्ना माँगने लगे। उन्होंने सभी बच्चों को गन्ना बाँट दिया। उनके पास सिर्फ एक गन्ना बचा, जिसे लेकर वे घर लौटे। उनकी पत्नी का नाम रखुमाई था । वह बड़ी गुस्सैल और चिड़चिड़े स्वभाव की थीं। __ जब रखुमाई ने देखा कि तुकाराम खेत से केवल एक गन्ना लेकर लौटे हैं, तो वे सारी बातें समझ गई। उन्होंने आव देखा न ताव, तुकाराम से गन्ना छीनकर उन्हीं की पीठ पर जोर से दे मारा । पीठ पर पड़ते ही गन्ने के दो टुकड़े हो गए। संत तुकाराम तो पूरे संत ही थे, क्रोधित होने के बदले वे हँसते हुए बोले, 'कितनी अच्छी हो तुम ! हम दोनों के लिए गन्ने के दो टुकड़े मुझे करने पड़ते, पर यह काम तुमने मेरे बिना कहे ही कर दिया।" ईंट का जवाब पत्थर से देने पर झगड़े की आग और भड़कती है। Education International 31 www.jainelihrant Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन एक लड़का खेलता-कूदता गाँव से दूर निकल गया । तभी एक भेड़िए की दृष्टि उस 32 पर पड़ी। भेड़िए ने उसे घेर लिया। लड़के ने जब देखा कि अब बचने का कोई उपाय नहीं है तो मात और शह उसने भेड़िए से एक प्रार्थना की, "सुनो भैया ! मौत से मैं डरता नहीं, पर इतना जरूर चाहूँगा कि मेरी मौत सुख से हो। अगर तुम मुझे बाँसुरी बजाने दोगे तो मैं उसकी धुन पर नाचूँगा, गाऊँगा । फिर भले ही तुम मुझे खा लेना । मुझे कोई दुःख नहीं होगा।'' भेड़िए ने कहा, ''ठीक है।'' लड़का बाँसुरी बजाने लगा। उस बाँसुरी की आवाज सुनकर लड़के का कुत्ता कहीं से दौड़ा आया और भेड़िए को देखकर उस पर लपका। भेड़िया फौरन नौ दो ग्यारह हो गया। || सुस्थता च पराऽऽनन्दः ।।। प्राणान्त आपत्ति में भी स्वस्थता से उपाय की शोध करनी चाहिये Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SGunjitSojanmepirnoon EmmadamiaminoapkmNDIC0 pandarporaparipas Airdrrporapanna Socipaniyaracanage जार के मुख्यमंत्री काउंट विट्टी ने एक दिन अपने मंत्री से कहा, "ऐसे सारे लेखकों की सूची बनाओ, जिन्होंने अखबार में मेरे विरुद्ध लिखा है।" जब सूची तैयार हो गई तब विट्टी ने कहा, "अब उन लेखकों के नाम चुनो, जिन्होंने मेरी सबसे कठोर आलोचना की है।" यह नई सूची भी जब बन गई तब Digninniw-biswAydbomgangA grAbaflorest Co noci ERATOLOncour20RR Tock.nebondhali MacBoossip Finotelusland सच्चा हितैषी वही होता है जो सही आलोचना करता है। दुश्मन-दोस्त ।। न तेसु कुज्झे ।। 2tisthehatelaalele IMALT उनके मंत्री ने पूछा, "इन्हें क्या सजा दी जाएगी?" सजा? कैसी सजा? अब मैं इनमें से अपने सबसे कठोर आलोचक को अपने समाचार-पत्र का संपादक बनाऊँगा। मेरा अनुभव है कि सबसे कठोर आलोचक ही सबसे सच्चा हितैषी होता है। काउंट विट्टी ने जवाब दिया। Shora Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन् १८५७ के विद्रोह के अग्रणियों में बिहार के महाराजा कुँवर सिंह का नाम सदा बड़े सम्मान के साथ लिया जाएगा। वे जब तक जीवित रहे, अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का झंडा ऊँचा किए रहे। एक दिन शाहाबाद जाने के लिए कुँवर साहब नाव द्वारा गंगा पार कर रहे थे कि अंग्रेज सेना को इसका पता चल गया। सेनापति लुंगर्ड ने किनारे गोली चलाई। गोली कुँवर सिंह के दाहिने हाथ की कलाई में लगी। उन्होंने चट दाहिने हाथ को तलवार से काटकर गंगा 'माता को समर्पित करते हुए कहा, "जो हाथ फिरंगी की गोली से अपवित्र हो गया हो वह अब किस काम का ! अतः मैं यह तुम्हें भेंट करता हूँ।" गौरव और गरिमा से जीना ही जीवन है। 34 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनता की उत्तर प्रदेश के गवर्नर सर मातकम हेली ने जब उपन्यास सम्राट् मुंशी प्रेमचंद को संदेश भिजवाया कि वे उन्हें 'राय साहब' का खिताब देना चाहते । का हैं तो प्रेमचंद्र चिंतित हो उठे। "सिर्फ खिताब ही देंगे कि और कुछ भी?" पत्नी ने पूछा। "इशारा कुछ और के लिए भी है। तो फिर इसमें चिंता की क्या बात है? ले लीजिए ! इतना सोच-विचार क्यों कर रहे हैं?" "इसलिए कि अभी तक मैंने जनता के लिए लिखा है। 'राय साहब' बनने के बाद मुझे सरकार के लिए लिखना पड़ेगा।" "ओह, ऐसा ! तब गवर्नर को क्या जवाब दीजिएगा?" पत्नी ने फिर पूछा। प्रेमचंद बोले, "लिख दूँगा, जनता की राय साहबी ले सकता हूँ, सरकार की नहीं।" झूठे आदर-सम्मान का कोई अर्थ नहीं होता। in Education International www.jainelibran Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलकत्ता की एक सड़क पर घोड़ागाड़ी दौड़ी जा रही थी। इस घोड़ागाड़ी में एक स्त्री अपने बच्चे के पास बैठी हुई थी। अचानक घोड़ा बिदक गया। कोचवान छिटककर दूर जा गिरा। घोड़ागाड़ी में बैठी स्त्री सहायता के लिए चीख-पुकार मचाने लगी। वह कलकत्ता की भीड़ सड़क थी और उस समय भी लोगों के ठट-के ठट सड़कों के दोनों ओर जुड़े थे। पर किसी की भी इतनी साहसी हिम्मत नहीं हुई कि आगे बढ़कर घोड़े को वालक काबू कर ले। तभी अचानक भीड को तेजी से चीरता बारह-तेरह वर्ष का एक लड़का सड़क पर आया और उछलकर घोड़े की पीठ पर बैठने की कोशिश करने लगा। पर घोड़े ने उसे गिरा दिया। उसके हाथ, पैर, घुटने रगड़ खाकर बुरी तरह छिल गए। वह खून से लथपथ हो उठा, फिर भी उसने हिम्मत नहीं - हारी। उसने बार-बार कोशिश की और अंतर में उसे सफलता मिली। वह छलाँग मारकर घोड़े पर सवार हो गया और उसे काबू करने में सफल हो गया। तब कहीं घोड़ागाड़ी पर । बैठी स्त्री और बच्चे की जान में जान आई। क्या तुम जानते हो, यह साहसी बालक कौन था? यह था नरेंद्र, जो बड़ा होकर स्वामी विवेकानंद के नाम से संसार में Lov प्रसिद्ध हुआ। परोपकार के लिये साहस प्रगति की निशानी है। || परोपकार: कर्तव्य: प्रागैरपि धनैरपि ।। San Education International Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ।। सओवसंता ।। जनेवाले बादल महात्मा सुकरात यूनान के बहुत बड़े विद्वान् और दार्शनिक हुए हैं। कहते हैं, वे जितने शांत स्वभाव के थे, उनकी पत्नी उतनी ही गरम और क्रोध की साक्षात् मूर्ति थीं। सुकरात जब भी कोई पुस्तक पढ़ते, वह चिल्ला उठती, "आग लगे इन मरी पुस्तकों को ! इन्हीं के साथ ब्याह कर लेना था। मेरे साथ क्यों किया ?" एक दिन जब सुकरात अपने कुछ शिष्यों के साथ घर E आए तो उनकी पत्नी उन पर बरस पड़ीं। सुकरात शांत बैठे रहे। सुकरात की चुप्पी ने उन्हें और आग बबूला कर दिया। वह E तुरंत एक लोटे में घर की नाली से कीचड़ भर लाई और सुकरात • के सिर पर उलट दिया। सुकरात के शिष्यों ने सोचा कि अब तो सुकरात अवश्य क्रोधित हो उठेंगे। किंतु वे हँसकर बोले, "देवी, आज तो तुमने पुरानी कहावत झुठला दी। कहते हैं कि गरजने वाले बादल बरसते नहीं, पर आज देख लिया कि गरजने वाले बरसते भी हैं।" उनके एक शिष्य को E सुकरात का यह अपमान बरदाश्त न हुआ। वह क्रोध से चिल्लाकर बोला, "यह स्त्री तो दुष्ट है। आपके योग्य नहीं है।" सुकरात बोले, "नहीं, यह मेरे ही योग्य है, क्योंकि यह ठोकर लगा-लगाकर देखती रहती है कि सुकरात कच्चा है या पक्का | इसके बार-बार उत्तेजित करने से मुझे यह भी पता चलता रहता है कि मुझमें सहनशक्ति है या नहीं।" गजनत क्रोध का बाझार मिले तो क्षमा का व्यापार कर लेना, न्याल हो जाओगे | 37 wwwjainelibrary.org Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दया सुख-संपन्नता की कजी है | वसंत ऋतु आई। चिड़ियाँ अपने स्वभाव के अनुसार चहचहाने लगीं। किसान ने यह देख अपने बच्चों को बुलाया और कहा, "कभी इन चिड़ियों को नुकसान न पहुँचाना। जो लोग इनका घोंसला उठाकर फेंक देते हैं उनके घर से सुख और संपन्नता खत्म हो जाती है। हमारे पड़ोसी ने यही किया था। तब से उनके ऊपर ऐसी आफत आई कि उनका सारा व्यापार चौपट हो। गया । बेचारे कहीं के नहीं रहे।" किसान के छोटे बेटे राज ने । यह सुन कहा, "पिताजी, आप हमें उनकी पूरी कहानी सुनाइए न !'' किसान ने घटना बयान की, "हमारे पड़ोसी के दादा-परदादा चिड़ियों को बेहद प्यार करते थे। उन्होंने कभी चिड़ियों को नुकसान नहीं पहुँचाया, बल्कि वे सुबह चिड़ियों की मीठी चहचहाहट सुन जाग जाते थे और वक्त से अपने काम के लिए निकल पड़ते थे। किंतु हमारे पड़ोसी अपने । बाप-दादा की परंपरा का निर्वाह न कर 'सके। वे रात भर होटल में काम करते । थे, सुबह घर लौटकर सोते थे। ऐसे में। सुबह चिड़ियों की मीठी चहचहाहट उन्हें तंग करती थी। उन्होंने उनका घोंसला उठाकर फेंक दिया, अंडे फोड़ डाले। तभी से वे भीख माँगते हैं।" घोसला Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीड़ा का कारण _ कुरुक्षेत्र का मैदान। भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे हैं। मगर उनके प्राण नहीं निकल रहे हैं। अर्जुन ने तीर मारकर पाताल फोड़ डाला। पाताल के झरने का पवित्र पानी भीष्म पितामह पर छिड़का, फिर भी उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली। आसपास पांडव खड़े हैं। भीष्म कातर दृष्टि से कृष्ण को निहार रहे हैं। श्रीकृष्ण ने कहा, 'आपने पाप देखा है, दादा इसीलिए यह यातना भोग रहे हैं।" भीष्म तो गंगाजल से पवित्र हैं फिर भी ? श्रीकृष्ण ने आगे कहा, "कौरवों की भरी सभा में जब दुःशासन द्रौपदी का चीर खींच रहा था, उस वक्त आप भी वहाँ उपस्थित थे, दूसरों की तरह मूकदर्शक थे। न आप दुःशासन का हाथ पकड़ सके, न दुर्यो धन को ललकार सके।" पाप देखना भी पाप में भागीदार बनने से कम नहीं है। - www.jainelibrary.319 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम भी टेढ़े... माँ ने केंचुए को डपटा, "बेटे, तुम हमेशा टेढ़े-मेढ़े चलते हो, कभी तो सीधे चला करो !" नन्हें केंचुए ने तपाक से जवाब दिया, आप चलकर दिखाइए। अगर आप सीधा चल सकेंगी तो मैं भी हमेशा वैसा ही चलने की कोशिश करूँ ! उच्चारण करना हमारा धर्म नहीं, आचरण में लाना हमारा धर्म है। ain Education International Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पविन्न हाथ सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी एक बार घूमते-फिरते एक बहुत बड़े जमींदार के घर पहुंचे। वह जमींदार उनका शिष्य था। जमींदार हाथ जोड़े गुरुजी की सेवा के लिए खड़ा था। तभी गुरुजी ने पीने के लिए पानी माँगा। जमींदार ने अपने बड़े लड़के से कहा, "बेटा, गुरु की सेवा का अवसर बड़े भाग्य से मिला है। तुम अपने हाथ से पानी लाकर गुरुजी को पिलाओ।" लड़का तुरंत पानी लेने दौड़ा। पानी का पात्र जब उसने गुरु जी की ओर बढ़ाया तो उन्होंने पूछा, “बेटे, तुम्हारे हाथ तो बड़े सुंदर लगते हैं। इन हाथों से तुम मुझे ही पानी पिला रहे हो या और भी किसी को पिलाते हो ?" लड़के के उत्तर देने के पूर्व ही जमींदार बोल उठा, "महाराज, इसकी जिंदगी में यह पहला ही मौका है, जब यह अपने हाथ से पानी लाया है। आप इसके हाथ का पानी पी लेंगे तो यह धन्य हो जाएगा।" पर गुरुजी ने उसके हाथ का पानी नहीं पिया। बोले, ''मैं तुम्हारे अपवित्र हाथों से पानी नहीं पीऊँगा।" लड़के ने कहा, “पर महाराज ! मैं इन हाथों को अच्छी तरह धोने के बाद आपके लिए पानी लाया हूँ।'' गुरु गोविंद सिंह ने उत्तर दिया, “बेटा, हाथ तो पवित्र होते हैं दूसरों की सेवा करने से । वह तुमने कहाँ की ? पहले दूसरों की सेवा करो, तभी मैं तुम्हारे हाथ से पानी पीऊँगा।" पवित्रता मिलती है परोपकार से... हर खुशी मिलती है परोपकार से.. ।। परोपकारो हि पावित्र्यम् ।। | परोपकार करते रहो। 41 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 अहंकार स्वामी शंकराचार्य समुद्र के किनारे अपने शिष्यों से वार्तालाप कर रहे थे। एक शिष्य ने चापलूसी भरे शब्दों में कहा, "गुरुदेव ! आपने इतना अधिक ज्ञान कैसे पाया, यह सोचकर मुझे आश्चर्य होता है। मेरे विचार से दुनिया में आपसे बढ़कर ज्ञानी दूसरा नहीं है।" शंकराचार्य मृदु हँसी हँसे । फिर बोले, "गलत सोचते हो तुम। मुझे तो अभी अपने ज्ञान में दिन-प्रतिदिन वृद्धि करनी है।" उन्होंने अपने हाथ का दंड पानी में डुबोकर बाहर निकाला और उसके भीगे हुए छोर को शिष्य को दिखाते हुए आगे कहा, "इस दंड को जल में डुबोने पर इसने मात्र इस बूँद को ही ग्रहण किया। यही बात ज्ञान को लेकर भी है। " शिष्य उनका उत्तर सुनकर बड़ा लज्जित हुआ । हम भी इस कि तरह अलपज्ञ है। ॥ को नु विज्ञानदर्पः ॥ केवलज्ञान के सागर की कभी ज्ञान का अहंका एक बिंद भी नहीं www.jalnelib Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब कोई नही आता... || आजीवन कारावास की सजा पाए हुए व्यक्ति को प्रार्थना का अंतिम अवसर दिया जाता है। उचित लगने पर राष्ट्रपति उसे क्षमा भी कर सकता है। ऐसी ही एक अर्जी अमेरिका के राष्ट्रपति को प्राप्त हुई। प्रायः होता यह है कि ऐसे प्रार्थना पत्र के साथ किसी की सिफारिशी चिट्ठी भी हुआ करती है। मगर जब इस कैदी का पत्र राष्ट्रपति के पास पहुँचा तो उन्होंने अपने सचिव से पूछा, "अरे, क्या इस व्यक्ति का कोई मित्र नहीं है ? किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने इसके क्षमादान की सिफारिश नहीं की?" "श्रीमान, यह कैदी अकेला प्रतीत होता है।" सचिव ने उत्तर दिया । राष्ट्रपति बड़ी देर तक कुछ सोचते रहे। फिर बोले, "जिसका कोई मित्र नहीं है उसका मित्र मैं बनता हूँ और उसके लिए क्षमा दान की सिफारिश करता हूँ।" फिर उन्होंने उस अपराधी का क्षमापत्र स्वीकार कर लिया। अपराधी को जब इस बात का पता चला, वह भावविभोर हो उठा। ये दयाशील राष्ट्रपति थे अब्राहम लिंकन। जिसका कोई नहीं होता उसका ईश्वर होता है। Folderivatee www.jainelibran or Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताड़ का पेड़ गर्व देवदूतों को भी नष्ट कर देता है। | Saamananelene || किसी जंगल में एक ताड़ का पेड़ था। उसका तना एकदम सीधा और मजबूत था। जब तेज हवा चलती थी तो जंगल के सारे पेड़-पौधे झुक जाते थे, पर ताड़ का पेड़ तना हुआ अडिग खड़ा रहता था। एक दिन उसकी छाँव में घास का एक तिनका उग आया। ताड़ ने उससे कहा, "यार! 'तुम तो हवा के हर झोंके के साथ झुक जाते हो।" घास के तिनके ने विनम्रता से उत्तर दिया, "मित्र ! मैं तुम्हारी तरह मजबूत नहीं।" ताड़ का पेड़ इस प्रशंसा पर फूल उठा। झूमकर बोला, "हाँ, बंधु ! इस जंगल में सबसे ताकतवर मैं ही हूँ।" उसी रात जंगल में भयानक आँधी आई। घास का - तिनका हर झोंके से इधरउधर डोलता रहा, पर तूफान ने ताड़ के पेड़ को उखाड़कर फेंक दिया। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जानी नाम का एक लड़का महल के भीतरी दरवाजे पर पहरेदारी के लिए तैनात किया गया। रात में राजा शयनकक्ष में सोने की कोशिश कर रहा था, पर नींद उससे कोसों दूर थी। ऊबकर उसने पहरेदार को बुलाने के लिए घंटी बजाई। लगातार कई घंटियाँ बजाने के बाद भी पहरेदार जानी नहीं आया। अंत में राजा अपने बिस्तर से उठकर दरवाजे के करीब आया। देखा तो जानी मेज पर सिर टिकाए गहरी नींद में सो रहा था । बगल में एक मोमबत्ती जल रही थी और सामने एक अधूरा पत्र लिखा पड़ा हुआ था। राजा ने वह पत्र पढ़ा, जो इस तरह शुरू किया गया था-'मेरी प्यारी माँ, आज यह तीसरी रात है जब मुझे पहरेदारी का मौका दिया गया है। मैं यहाँ कब तक रहूँगा, कह नहीं सकता; किंतु कुछ हफ्तों में मैंने करीब दस रुपए कमाए हैं, जो मैं तुम्हें भेज रहा हूँ । शायद वह तुम्हारी कुछ जरूरतों को पूरा कर सकें।' माँ के प्रति लड़के के इस गहरे प्यार ने राजा को द्रवित कर दिया । वे फौरन अपने शयनकक्ष में लौटे और अशर्फियाँ ले जाकर उस पहरेदार की जेब में डाल दीं। लड़का जब जागा तो अपनी जेब में अशर्फियाँ पाकर फौरन समझ गया कि यह काम किसने किया होगा। सुबह राजा जब अपने शयनकक्ष से निकले तो वह दौड़कर उनके समक्ष नतमस्तक हो गया और अपनी गलती के लिए क्षमा माँग ली। साथ ही उसने अशर्फियाँ भी लौटा दीं। राजा ने लड़के के मातृप्रेम की ही नहीं बल्कि ईमानदारी की भी प्रशंसा की और उसे दुगुनी अशर्फियाँ इनाम में दीं। पहरेदार लड़का 00 000 JC JKL 1470 214 Older RT 4567890 wertyuiops FGXJXLE ngoliM: 4760 ,000|jesham / EUUBayabo ईमानदारी और लगन सुनहरे भविष्य के साथी हैं । 45 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किसी राज्य के खजांची पर यह शक किया गया कि वह राजकोष से हीरे-मोती चुराकर अपने घर के तहखाने में छिपाकर रखता है। राजा ने जब यह अफवाह सुनी तो वह खजांची के घर जाँच-पड़ताल के लिए पहँचा और तहखाने का दरवाजा खोलने की आज्ञा दी। तुरंत तहखाने का दरवाजा खोल दिया गया। किंतु यह क्या ! वहाँ जो कुछ था, देखकर सब हैरान रह गए। तहखाने के भीतर एक खाली कमरा था, जिसमें एक टूटी-फूटी मेज पड़ी थी और उस पर एक बाँसुरी रखी हुई थी। बाँसुरी की बगल में ही एक थैला रखा था। साथ में एक चरवाहे की लाठी भी रखी थी। उस कमरे में एक खिड़की थी, जहाँ से हरी-भरी घाटी का ढलान दिखाई पड़ रहा था, जो किसी स्वर्ग का हिस्सा प्रतीत होता था। खजांची ने कहा, "मैं बचपन में अपनी भेड़-बकरियाँ चराते हुए कितना प्रसन्न था, तभी आप मुझे महल में ले आए और आपने मुझे खजांची बना दिया। पर मैं अपने पुराने दिनों को नहीं भुला पाया। हर रोज मैं इस तहखाने में आता हूँ और बाँसुरी की धुन पर उस समय को दोहराता हूँ जो गरीबी के होते हुए भी कितने सुख के थे, शांति के थे। इस महल में सारी शान-शौकत के बाद भी मुझे वह सुख नसीब नहीं है।" धनवान होना ही सूखी होना नहीं है | tematiepal Jain Education LIN न कर्मणा न प्रजया धनेन ।। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसंत की सुबह एक नन्हा चरवाहा घाटी के ढलान पर अपनी भेड़-बकरियाँ चरा रहा था। बकरियाँ चर रही थीं और वह अपनी मधुर आवाज में एक गीत गुनगुना रहा था। तभी वहाँ का राजा शिकार के लिए भटकता-भटकता उस घाटी में पहुँचा । चरवाहे को इतना खुश देखकर राजा ने उससे पूछा, "तुम इतने प्रसन्न क्यों हो?" चरवाहा राजा को पहचान नहीं पाया। बोला, "क्यों प्रसन्न न होऊँ ! शायद हमारा राजा भी इतना समृद्ध नहीं होगा जितना कि मैं हूँ।'' ''ऐसा है !" राजा हैरान हो उठा, "पर यह तो बताओ, तुम राजा से ज्यादा धनी कैसे हो?" For Private & Personal ।। सुहाई संतोससाराई।। सुरखी होने के लिए धन का होना जरूरी नहीं। संतोष का होना जरूरी है। 0 सुख-समृदि "मेरे पास प्रकृति की संपदा है। यह सूरज मुझे रोशनी देता है, यह नीला आकाश मुझे बाँहें पसारे दुलारता है। यह घाटी अपनी पीठ पर मुझे लादे हुए किसी अनंत यात्रा का सुख देती है। मैं मस्त इन घने जंगलों की सुरसुराती हवा की बाँसुरी सुनता रहता हूँ। मुझे रोज पेट भर खाना मिल जाता है। साल भर में मैं अपनी जरूरत भर का कमा लेता हूँ। न चोरों का डर, 9 न छीना-झपटी की चिंता । अब तुम ही बताओ, सुख-संतोष हरी की जो संपदा मेरे पास है वह राजा के पास होगी ?" Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्ची भक्ति यह उन दिनों की बात है जब पाँचों पांडव जुए में अपना पूरा राजपाट हार कर जंगल-जंगल भटक रहे थे। धर्मराज युधिष्ठिर घंटो पूजा-पाठ में लगे रहते। एक बार जब वे पूजा से उठे तो द्रौपदी ने कहा, ''महाराज ! आप भगवान् का इतना भजन-पूजन करते हैं, फिर भगवान से यह क्यों नहीं कहते कि वे हमारे संकट दूर कर दें ? हमारी कितनी बुरी अवस्था हो रही है !" "सुनो द्रौपदी !" धर्मराज युधिष्ठिर ने शांत स्वर में कहा, "मैं परमात्मा का भजन सौदे के लिए नहीं करता, अपने मन की शांति के लिए करता है, शक्ति पाने के लिए करता है। इससे मुझे दुःख सहने की क्षमता प्राप्त होती है।" द्रौपदी सच्ची भक्ति का अर्थ समझ गई। सच्ची भक्ति स्वार्थ के लिए नहीं होती। ain Education International www.jainelibrary.orn Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personal Use On ॥ वस्तुमूल्यं विचारय । । कौड़ी-कौड़ी का मोल बापू के लेखन-स्थान की सफाई करते हुए मनु बहन ने उनकी एक बहुत छोटी पेंसिल हटाकर उसके स्थान पर दूसरी बड़ी पेंसिल रख दी। जब बापू लिखने बैठे तो अपनी छोटी पेंसिल न पाकर उन्होंने मनु बहन से उसके बारे में पूछा। मनु बहन ने जवाब दिया, "पेंसिल बहुत ही छोटी थी। मैंने उसके बदले में बड़ी पेंसिल रख दी। आपको शायद काम करने में तकलीफ होती होगी।” इस पर बापू बोले, "मनु, यदि मैं इतना सा भी कष्ट सहन न कर सका तो अहिंसा की कड़ी कसौटी पर खरा कैसे उतरूँगा ! आज भारत में करोड़ों माता-पिता ऐसे हैं जो स्कूल जाने वाले अपने बच्चों के लिए पेंसिल का टुकड़ा भी नहीं खरीद सकते। पेंसिल का इतना सा टुकड़ा हमारे कंगाल देश में सोने के टुकड़े का महत्त्व रखता है। जब तक हम कौड़ी कौड़ी का मोल नहीं समझेंगे, हमारा देश गरीबी और भुखमरी से नहीं उबरेगा ।" हमे जो सुख-संपत्ति मिली है, उस का दुरुपयोग छोड़ कर उसे बाँटना शुरू कर देना चाहिये । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्ज लेकर भूलना नहीं चाहिए... नेपोलियन बोनापार्ट बचपन में बहुत निर्धन थे। किंतु अपने साहस और प्रयत्नों से वे एक दिन फ्रांस के सम्राट् बन बैठे । सम्राट होने के बाद वे घूमते हुए एक दिन उस स्कूल के पास जा पहुँचे, जहाँ बचपन में पढ़ते थे। अचानक उन्हें कुछ याद आया और वे पास बनी एक टूटी-फूटी झोंपड़ी के सामने जा पहुँचे। झोंपड़ी में रहने वाली बुढ़िया बाहर आई तो उससे पूछा, “क्या तुम्हें याद है ? बहुत पहले इस स्कूल में बोनापार्ट नाम का एक लड़का पढ़ता था ?'' ____ "हाँ-हाँ, खूब अच्छी तरह याद है। बड़ा भला लड़का था।'' वह बोली। नेपोलियन ने फिर कहा, वह तुमसे फल और मेवा खरीदा करता था। क्या उसने तुम्हारे सारे पैसे चुका दिए थे या कुछ उधार रह गया था ? वह कभी उधार नहीं रखता था। बुढ़िया ने जवाब दिया, यहाँ तक कि कभी उसके साथी कुछ उधार लेते तो वही चुकता कर देता था। नेपोलियन ने बताया, माँ, तुम बहुत बूढी हो गई हो। अतः तुम्हारी याददाश्त अब कमजोर हो गई है। तुमने उस लड़के को एक बार कर्ज दिया था। तुम भूल गई, पर वह नहीं भूला है। आज वही लड़का तुम्हारा कर्ज चुकाने आया है। बुढ़िया अवाक् रह गई। नेपोलियन ने रुपयों की एक भारी-भरकम थैली बुढ़िया के चरणों में रख दी। कर्ज बोझ के समान होता है। अनुकूल अवसर आने पर उसे तुरंत उतारकर फेंक देना चाहिए | Education International www.jainelibranton Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने जानवरों को चराते हुए एक दिन चरवाहे को एक मजाक सूझा। बेवजह वह चिल्लाने लगा, "बचाओ, बचाओ ! बाघ आया रे बाघ ! मेरी सारी भेड़-बकरियाँ खाए जा रहा है।'' चिल्लाहट सुनकर गाँव वाले कुल्हाड़ी, भाला लेकर उसकी मदद को दौड़े आए। तब चरवाहे ने हँसकर कहा, "जाओ-जाओ, यहाँ बाघ-शेर कुछ नहीं है। मैं तो झूठ-मूठ चिल्ला रहा था।" गाँव वाले झुंझलाकर वापस लौट गए। एक दिन हमेशा की तरह चरवाहा अपनी भेड़-बकरियाँ चरा रहा था कि तभी अचानक भेड़-बकरियों पर बाघ ने सचमुच हमला बोल दिया । भयभीत चरवाहे ने सहायता के लिए गाँव वालों को पुकारा, "बाघ आया रे, बाघ आया, अरे, बचाओ ! नहीं तो मेरी सारी भेड़-बकरियाँ मारकर खा जाएगा ।” गाँव वालों ने चरवाहे की चीख-पुकार सुनी, पर उसकी मदद को कोई नहीं आया। उन्होंने सोचा, पिछले दिन की तरह वह अब भी शायद उनसे ठिठोली कर रहा होगा । Education International इस अमूल्य जीवन का अणमोल समय मजाक के लिये नही है, परोपकार करने के लिये है। बाघ आया रे बाघ ! 51 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुत्ता और खरगोश एक कुत्ते ने एक खरगोश को देख लिया। शिकार के लिए उसके पीछे दौड़ा। खरगोश भी अपने प्राण बचाने के लिए तेजी से भागा। कुत्ता बराबर उसका पीछा करता रहा। अंत में उसकी साँस फूल गई। थक-हारकर उसने खरगोश का पीछा करना छोड़ दिया। तभी एक चरवाहे ने उसकी ओर देखकर ताना कसा, “एक छोटे से खरगोश ने दौड़ में तुम्हें पछाड़ दिया।" कुत्ते ने तपाक से जवाब दिया, "महाशय ! मैं अपने पेट के लिए दौड़ रहा था, वह अपने प्राणों के लिए दौड़ रहा था।" सब को अपने प्राण प्यारे होते है, अतः किसी भी जीव को मारना नहीं चाहिये। ||अत्तानं उवमं किंच्चा न हणे न विघायए ।। Sain Education International Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रस्सी दो छोटे लड़कों को सड़क पर एक पुरानी रस्सी पड़ी मिली। दोनों उसे लेने के लिए बुरी तरह छीना-झपटी करने लगे। उनकी चीख-पुकार ऐसी थी कि दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी। एक लड़के ने रस्सी को एक तरफ पकड़ा, दूसरे ने दूसरी तरफ । दोनों ने पूरी ताकत से उसे अपनी-अपनी तरफ खींचना शुरू कर दिया। अचानक रस्सी बीच में से टूट गई। एक लड़का कीचड़ में जा गिरा, दूसरा पास के एक नाले में। __एक यात्री वहाँ खड़ा यह तमाशा देख रहा था। वह जोर से हँस पड़ा। "बच्चो ! किसी चीज के लिए झगड़ा करने से यही नतीजा निकलना है।'' वह बोला। स्वार्थ से सुख नहीं मिलता। || लुब्धात्मन: कुत: सुखम्? || Jain Education i n Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेन-देन और जमा-पूँजी एक मेहनती बढ़ई था। वह काफी पैसे कमाता था, किंतु उसका खान-पान सादा था। न उसे बढ़िया कपड़े चाहिए थे, न तरह-तरह का खाना । उसे फिजूल खर्च की भी आदत नहीं थी। एक दिन उसके पड़ोसी ने उससे पूछा, "मित्र ! हर हफ्ते तुम इतने ज्यादा पैसे कमाते हो, आखिर इन पैसों का करते क्या हो ?" ''कुछ रुपयों से मैं अपना लेन-देन चुकाता हूँ, कुछ को मैं जमा कर देता हूँ।" “छोड़ो भी।" पड़ोसी ने कहा, 'मजाक मत करो । मैं अच्छी तरह जानता हूँ, न तुम्हें कोई लेन-देन चुकता करना होता है, न तुमने कुछ जमा ही कर रखा है। जिसका तुम्हारे पास ब्याज आता हो।" "समझो !'' बढ़ई बोला, "जन्म से अब तक जो माँ-बाप ने मुझ पर खर्च किया है वह मेरा लेन-देन है। मुझे भरना पड़ता है। जो रुपए मैं अपने बच्चों को उनका भविष्य बनाने के लिए खर्च करता हूँ वही मेरी जमापूँजी है। आगे चलकर वह मुझे ब्याज के रूप में तब वापस मिलेगी जब मैं बूढा हो जाऊँगा। जैसे मैं अपने पालन-पोषण की एवज में इस वृद्धावस्था में माँ-बाप का खयाल रखता है, मेरे बच्चे भी देखा-देखी यही करेंगे; क्योंकि तब मैं कमाने लायक नहीं रहूँगा।" उतनी ही ज्यादा मिलती है। भलाई जितनी ज्यादा की जाती है। 54 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मक्खियाँ और शहद ।। खगमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा ।। एक बनिए की दुकान पर रखी हुई शहद की बरनी उलट गई। चारों ओर से भिनभिनाती हुई मक्खियों ने बिखरे शहद पर धावा बोल दिया। सब कुछ भूलकर वे शहद चाटने में इतनी मशगूल हुई कि उनके पैर शहद में चिपक गए। अब उनके लिए उड़कर लौट पाना नामुमकिन था। तब एक मक्खी ने रूआँसी आवाज में कहा, "कितनी मूर्ख हैं हम ! कुछ पल के मौजमजे के लोभ में हमने अपनी जान खतरे में डाल दी।" अल्प समय का भी विषयसुख दीर्घ काल के दुःख का आमंत्रण है | 55 FOT Private Personal use only ab rayon Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारुण्यपुष्यहृदयम मेरे लिए लँगोटी ही काफी है। गांधीजी उत्कल की यात्रा कर रहे थे। यात्रा में उन्होंने एक ऐसी गरीब स्त्री को देखा जो फटा हुआ मैला कपड़ा पहने थी। गांधीजी ने उससे कहा, "बहन ! तुम अपने कपड़े क्यों नहीं धोती? इतना आलस्य तो तुम्हें नहीं करना चाहिए।'' स्त्री ने सिर नमा कर कहा, "बापूजी ! मेरे पास पहनने के लिए इसके अलावा कोई दूसरा कपड़ा ही नहीं है। फिर धोऊँ कैसे?'' यह सुनकर बापू की आँखें डबडबा आईं, "हाय! आज मेरी भारत माता के पास पहनने को चिथड़ा भी नहीं है!" गांधीजी ने उसी समय प्रतिज्ञा की, "जब तक देश स्वतंत्र नहीं होता और गरीब-से-गरीब को भी तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं मिलता तब तक मैं कपड़े नहीं पहनूँगा। लाज ढकने के लिए मेरे लिए लँगोटी ही काफी है।" महापुरुष दूसरों का दुःख-दर्द अपनाकर चलते हैं। Jain Education Intemational Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोमी और कैरोलिन एक दिन अपने बगीचे में घूम रही थीं। घूमते-घूमते व गुलाब के एक पौधे के सामने आकर ठहर गईं। रोमी ने कहा, "सारे फूलों में मुझे गुलाब सबसे सुंदर और प्रिय लगता है।" For Prvate a Personal use only सुनकर कैरोलिन ने कहा, "उस क्यारी में जो मोगरे लगे हैं, वे सबसे सुंदर और महकदार हैं। मुझे तो इनसे बढ़कर सुंदर कोई फूल नहीं लगता।" हर चीज में खुशबू है, यदि मनुष्य महसूस कर सके। रोमी ने तुनक कर कहा, "इनसे अच्छे तो ये गेंदे हैं। पिछली सर्दियों में देखा नहीं था। कैसे खिले थे कि देखकर जी खुश हो गया था !" उनकी माँ, जो पास ही बैठी उन दोनों की बातें ध्यान से सुन रही थी, बोली, "हर फूल की अपनी-अपनी खासियत है। अतः कोई एक-दूसरे से पर कम नहीं है। गुलाब-शांति और सौम्यता का प्रतीक है, मोगरा-भोलेपन का । और गेंदा-तेजस्विता व वीरता का।" Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गधा, लोमड़ी और शेर || मित्रद्रोहो महापापम्।। 4-ror Private &PersolaE Only लोमड़ी और गधे ने मिलकर तय किया कि वे शिकार खेलने साथ-साथ जाएँगे। दोनों चल पड़े। कुछ दूर जाने पर लोमड़ी आगे निकल गई। तभी अचानक उसकी मुठभेड़ शेर से हो गई। चालाक लोमड़ी ताड़ गई कि अब जान की खैर नहीं। फौरन उसे गधे का खयाल आ गया। बोली, "जंगल के राजा अगर आप मुझे छोड़ दें तो मैं आपके भोजन के लिए एक गधा भेंट दे सकती हूँ। आप मेरे साथ चलिए।" शेर । राजी हो गया और लोमड़ी के साथ चल दिया। थोड़ी दूर जाने पर एक पेड़ की छाँव - में गधा बैठा नजर आया। शेर उस पर टूट पड़ा। पूरा गधा खाने पर भी उसकी भूख नहीं मिटी। उसने लोमड़ी की ओर देखा और पलक झपकते उसे भी धर दबोचा। ID rip BRIDPUR II II 58 Education Internatiolla Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intemational hEDO OODC जो तुम्हारी पहुंच से बाहर हैं। उन वस्तुओं की आलोचना गलत है, For Private & Personal use only लोमड़ी और अंगूर , 59 एक दिन एक भूखी लोमड़ी अंगूर के खेत में घुसी। पके अंगूरों के गुच्छे बहुत ऊँची टहनियों पर लटक रहे थे। अंगूरों तक पहुँचने के लिए वह उछली, पर टहनी तक पहुँच न सकी। दुबारा उछली, तिबारा उछली। कई बार कोशिशों के बावजूद जब वह अंगूरों तक पहुँचने में नाकाम रही तो गुस्से से यह कहती हुई चल दी, "किसे खाने हैं ये अंगूर! ये तो खट्टे हैं !" Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सगोतका प्रभाव वह लोहा कंचन करे, वह करै आप समान || पारस में अरू संत में, बहुत अंतरौ जान । ।। भावुगदव्वं जीवो ।। संत शेख सादी एक दिन अपने शिष्यों के साथ जा रहे थे। रास्ते में वे संत सत्संग की महिमा भी उनको समझाते जा रहे थे। लेकिन शिष्यों के मन में यह बात पूरी तरह से बैठ नहीं रही थी। तभी महात्मा शेख सादी ने रास्ते के एक किनारे गुलाब के फूलों को देखा। उन्होंने गुलाब के पौधों के नीचे . पड़ा मिट्टी का एक ढेला उठाकर एक शिष्य को • उसे सूंघने के लिए कहा। शिष्य ने सूंघकर कहा, "महात्मन् ! मिट्टी के इस ढेले में तो गुलाब की सुगंध आ रही है।" ___ तब महात्मा शेख सादी ने पूछा, "लेकिन मिट्टी की तो अपनी बू होती है, तब यह सुगंध कहाँ से आई ?" __ शिष्य ने कहा, "इस ढेले पर गुलाब के फूल टूट-टूटकर गिरते रहते हैं, इसीसे इसमें यह सुगंध आ गई है।" महात्मा शेख सादी ने गंभीर स्वर में कहा, "सत्संग की महिमा भी यही है।" जो व्यक्ति जैसी संगति में रहता है वैसे ही गुण-दोष उसमें आ जाते हैं। 60 Jan Education Intemational . Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दो मित्र थे। उनमें एक कुम्हार था। वह मिट्टी के तैयार बर्तन गाँव-गाँव बेचने जाता। दूसरा था माली। वह भी बाग में उगी सब्जी टोकरी में भरकर गाँव-गाँव बेचता फिरता। दोनों ने सोचा-क्यों न हम एक ऊँट खरीद लें। ऊँट पर एक ओर बर्तन तथा दूसरी 'ओर सब्जी लादकर बाजार जाया करेंगे। गड्ढा खोदता है, स्वयं ही उसमें गिरता है। सोचने भर की देर थी कि दोनों ने मिलकर एक ऊँट खरीद लिया। अब वे ऊँट पर अपनाअपना सामान लादकर बाजार जाने लगे। देखते-देखते दोनों की आमदनी बढ़ गई ।एक जो टसरों के लिए दिन जब वे ऊँट पर अपना-अपना माल लादकर मंडी में बेचने ले जा रहे थे कि हरी-हरी ताजा सब्जी को देखकर ऊँट का मन ललचा आया। उसने अपनी लंबी गरदन तिरछी की और सब्जी से मुंह भर लिया। कुम्हार ऊँट की हरकत देख रहा था । पर उसने सोचा, कौनसा मेरा नुकसान हो रहा है - और आगे जाकर घास-दाना तो खिलाना ही पड़ेगा। दाम और खर्च होंगे, सो चरने दो। ऊँट मजे से गरदन घुमा-घुमाकर सब्जी चरता रहा। सब्जी खा लेने से एक तरफ का बोझा कम हो गया, जिससे दूसरी तरफ रखे बर्तन धीरे-धीरे नीचे खिसकने लगे और कुछ। देर बाद जमीन पर गिरकर चूर-चूर हो गए। अब तो कुम्हार मन-ही-मन बहुत पछताया। उसने सोचा, कहाँ तो मैं माली का नुकसान चाहता था, मेरा तो उससे अधिक नुकसान हो गया। अब मैं कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा।। 61 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परोपकार का फल एक वृद्ध बैठा हुआ कुछ वृक्षों के पौधे रोप रहा था। तभी राजा की सवारी गुजरी। राजा ने वृद्ध से पूछा, "यह क्या कर रहे हो, बाबा ?" "आम के पौधे लगा रहा हूँ।" वृद्ध ने जवाब दिया। "ये आम के पौधे कब बड़े होंगे और कब इनमें फल लगेंगे, यह बता सकते हो ?'' राजा ने पूछा। "इसमें कई बरस लग जाएँगे। माफ करना, बाबा! क्या तुम इतने बरसों तक इन पेड़ों के फल चखने के लिए जिंदा रहोगे ?" वृद्ध हँसा और बोला, "मैं न चख सका तो क्या, कोई और तो चख सकता है।" उस वृद्ध की बात सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुआ । खुश होकर तुरंत उसने उस वृद्ध को पचास स्वर्ण मुद्राओं का पुरस्कार दिया । वृद्ध ने हँसकर कहा, "देखो, राजन् ! इनके फलों के लिए मुझे इतने वर्षों तक इंतजार भी नहीं करना पड़ा। इन स्वर्ण मुद्राओं के रूप में मीठे फल अभी ही प्राप्त हो गए !" पर चंदन की भाँति घिसे जाएंगे मिट जाएंगे, परंतु चारों दिशाओं को मनभावन महकायेंगे। KOK परोपकार का फल मीठा होता है। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संत राबिया किसी धर्मग्रंथ का अध्ययन कर रही थीं। अचानक उनकी दृष्टि एक पंक्ति पर अटक गई, 'दुर्जनों से घृणा करो।' कुछ देर वे मौन सोचती रहीं, फिर उन्होंने उस पंक्ति को काट दिया। कुछ समय बाद एक संत घूमता-घामता उनके यहाँ आकर ठहरा । उसने कोई धर्मग्रंथ पढ़ने के लिए माँगा। संयोगवश उसे वही धर्मग्रंथ दे दिया गया। उसने वह कटी हुई पंक्ति देखी तो पूछा, "इस पंक्ति को किसने काटा ?'' राबिया ने विनम्र उत्तर दिया, ''मैंने ही।" संत उबल पड़ा, "धर्म के विषय में दखल देना कोई अच्छी बात नहीं है। फिर आपने ऐसा क्यों किया ?" राबिया गंभीर हो गईं, "महात्मन्, एक समय मैं भी स्वीकार करती थी कि दुर्जनों से घृणा करनी चाहिए। किंतु जब मेरे अंतःकरण में प्रेम की बाढ़ उमड़ आती है तो मुझे पता ही नहीं चलता कि घृणा को कहाँ स्थान दूं।" संत निरुत्तर हो राबिया को देखने लगा। अपने में घृणा का होना अपनी कमजोरी की निशानी है। 63 For Private Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - बलिदान राजा को खबर मिली कि दुश्मनों ने उसके राज्य पर चढ़ाई कर दी है। उसके राज्य में एक बहुत गरीब बुढ़िया रहती थी। बुढ़िया का एक बेटा था। देश पर आए संकट को देख वह किसी प्रकार राजा के पास पहुंची। उस समय राजा मंत्री से लड़ाई के बारे में सलाह कर रहा था। तभी बुढ़िया को उसके सामने उपस्थित किया गया। राजा ने बुढ़िया से पूछा, 'कहो माई, कैसे आना हुआ ?" बुढ़िया ने कहा, ''महाराज, मेरे पास कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे मैं अपने देश के लिए दे सकूँ । लेकिन जिस तरह अन्य माताएँ अपने-अपने बेटों को शस्त्रों से सजाकर लड़ाई में भेज रही हैं, मेरी भी इच्छा है कि मेरा यह इकलौता बेटा देश की रक्षा में मदद करे।" राजा बुढ़िया की इच्छा सुन दंग रह गया। उसने बुढ़िया को बहुत समझाने की कोशिश की, पर वह अपने इरादे से टस से मस न हुई। ___भयानक युद्ध हुआ। खून की नदियाँ बह निकलीं। वीर कट-कटकर गिरने लगे। उस बुढ़िया का बेटा भी युद्ध में काम आया। बेटे अपने देश के लिए जो कुछ भी के बलिदान की खबर पाकर बुढ़िया बिलखती बलिदान दिया जाय, कम है। हुई राजदरबार में पहुंची। यह देख राजा बड़ा दुःखी हुआ। बोला, "मुझे बहुत दुःख है कि...." बुढ़िया बोली, “राजन् ! दुःखी न हों। मैं तो इसलिए रो रही हूँ कि अगर फिर देश पर संकट आया तो मैं दूसरा बेटा कहाँ से लाकर दूंगी।" 64 Jain Education Interational Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ail:ገበር at ance ईश्वर का सच्चा सेवक दिखावे से दूर रहता है। anu aance हाजी साहब | हाजी मुहम्मद एक मुसलमान संत थे। कहते हैं, वे साठ बार हज कर आए थे और पाँचों वक्त नमाज पढ़ा करते थे । एक दिन उन्होंने सपना देखा कि एक फरिश्ता स्वर्ग और नरक के बीच खड़ा है । वह लोगों को क्रमानुसार जन्नत या दोजख भेज रहा है। जब हाजी मुहम्मद सामने आए तो उसने पूछा, "तुमने कौन सा अच्छा काम किया है ?" हाजी साहब ने कहा, "मैंने साठ बार हज किया है।" फरिश्ता बोला, “सच है । मगर नाम पूछे जाने पर तुम गर्व से 'मैं हाजी मुहम्मद हूँ' कहते हो, इस 'अहं' से तुम्हारे हज करने का पुण्य नष्ट हो गया। और कोई अच्छा काम किया हो तो बताओ ।" "मैं पिछले साठ सालों से पाँचों वक्त की नमाज पढ़ता रहा हूँ।” "तुम्हारा वह पुण्य भी नष्ट हो गया ।" "कैसे ?" हाजी ने प्रश्न किया । तब फरिश्ते ने कहा, "एक दिन कुछ मेहमान तुम्हारे घर आए थे। तुमने उन्हें दिखाने के लिए और दिनों की अपेक्षा अधिक देर तक नमाज पढ़ी थी। उस प्रदर्शन की भावना से तुम्हारी वह साठ वर्ष की तपस्या भी नष्ट हो गई।" इस स्वप्न के बाद हाजी की आँख खुल गई । उसी पल उन्होंने गुरूर और नुमाइश से दूर रहने का संकल्प लिया । 65 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काम और आराम पं. विष्णु शर्मा संस्कृत के प्रकांड विद्वान् थे । एक दिन वे बच्चों के संग खेल रहे थे। इसी बीच उनके कुछ मित्र वहाँ आ पहुँचे। एक मित्र ने पूछा, “पंडित जी, आप इतने बड़े विद्वान् होकर बच्चों के साथ खेल रहे हैं ! इससे आपका मूल्यवान् समय नष्ट नहीं होता ?" पंडितजी ने मित्र की बात का कोई उत्तर न देकर एक बच्चे को संकेत किया कि वह धनुष ले आए। जब धनुष आ गया तो उन्होंने उस धनुष की डोरी ढीली करके रख दी। सभी मित्र असमंजस में पड़ गए कि आखिर पंडित जी कहना क्या चाहते हैं । तब उन्होंने अपनी बात स्पष्ट की, "भाई, हमारा मन धनुष की तरह है। अगर धनुष पर डोरी हमेशा चढ़ी रहे तो उसकी मजबूती कुछ समय में ही जाती रहेगी और यह जल्दी टूट जाएगा; किंतु अगर काम पड़ने पर ही इस पर डोरी चढ़ाई जाए तो वह अधिक समय तक टिकेगा और काम भी अच्छा होगा। इसी प्रकार हमारा मन है। काम के बाद यदि उसे आराम मिलता रहे तो वह स्वस्थ रहेगा और अच्छा काम करेगा।" 66 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ********** बुरी संगत आदमी को बुरा बना देती है। बुरी संगत पवन के पिता जी बड़े परेशान थे । कुछ दिनों से पवन बुरी संगत में पड़ गया था। अंत में उन्हें एक युक्ति सूझी। वे बाजार से कुछ आम खरीद कर लाए। सब आम तो पके हुए और बढ़िया थे, पर एक आम काफी सड़ा हुआ था । उन्होंने अच्छे आमों को एक बड़ी प्लेट में चारों ओर रखकर सड़ा हुआ आम उनके बीच में रख दिया। अगले दिन जब पवन ने आम खाने के लिए खुशी-खुशी अलमारी में से प्लेट निकाली तो यह देखकर उसकी हैरानी का ठिकाना न रहा कि सभी आम सड़ गए हैं और उनमें से बदबू उठ रही है। पवन के पिताजी तो इसी मौके की तलाश में थे । उसे दुःखी देखकर बोले, "बेटा ! इसी तरह एक दिन तुम भी अपने बुरे मित्रों के बीच रहकर भ्रष्ट हो जाओगे। तब तुम्हारी छाया से भी लोग दूर भागेंगे।" पवन पर इस घटना का इतना प्रभाव पड़ा कि उसने उसी समय से अपने बुरे मित्रों का साथ छोड़ दिया । I 67 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 एक बार एक नौजवान ईसा के पास आया। बोला, "मैं अमर सबसे जीवन प्राप्त करना चाहता हूँ । कठिन मुझे क्या करना चाहिए ?" ईसा ने कहा, "जाओ, अपनी सारी काम संपत्ति बेच दो। जो पैसे प्राप्त हों उन्हें गरीबों में बाँट दो।” नौजवान बड़ा अमीर था । उसके पास लाखों-करोड़ों की धनसंपत्ति थी । ईसा की बात सुनकर वह स्तब्ध रह गया। उसके लिए यह काम सबसे कठिन था। युवक ने लाचारी से ईसा की ओर देखा । ईसा मुस्कुराए । बोले, "कोई भी आदमी एक समय में परमात्मा और दौलत-दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता । तुम्हें परमात्मा के रास्ते पर चलना है तो दूसरा रास्ता छोड़ना होगा।" की पूजा एक साथ नहीं हो सकती । AWKWARD... ww Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Interational सच्ची शिक्षा जिस के अनुसार चल कर जीवन पवित्र बनता है | वही ज्ञान वास्तविक है, महाभारत का युग था। हस्तिनापुर के सभी राजकुमार-कौरव और पांडव गुरु से शिक्षा पाते थे। एक दिन गुरुजी ने पाठ पढ़ाया, "कभी क्रोध न करो। सदा सत्य बोलो।" अगले दिन सबने अपना पाठ सुना दिया। परंतु युधिष्ठिर ने कहा, "मुझे अभी याद नहीं हुआ।" गुरुजी बोले, "ठीक है, कल सुना देना।" किंतु दूसरे दिन भी युधिष्ठिर नहीं सुना पाए । उनका वही उत्तर था। इस प्रकार कई दिन बीत गए। अब तो गुरुजी गुस्से में पागल हो उठे और उनको खूब पीटा। पिटाई के बाद युधिष्ठिर ने गुरुजी के पैर पकड़ लिये। बोले, "गुरुदेव ! आपने मुझे मारा, फिर भी मुझे क्रोध नहीं आया। अतः पाठ का पहला भाग 'कभी क्रोध न करो' मुझे अब याद हो गया है; परंतु पाठ का दूसरा भाग ‘सदा सत्य बोलो' अभी मुझे याद नहीं हुआ। अभ्यास कर रहा हूँ।" गुरुजी ने ये शब्द सुने तो वे समझ गए। असली पढ़ाई वही है जिसका पालन किया जाए, अन्यथा पुस्तक पढ़ने से क्या लाभ ? wwwjainelibrary 169 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृत्यु अनिवार्य है। गोमती का प्यारा इकलौता पुत्र मर गया। वह पगला सी गयी। पुत्र की लाश छाती से चिपका कर भागती हुई महात्मा बुद्ध के चरणों पर जा गिरी और रो-रो कर उनसे अपने बच्चे को जीवित करने की प्रार्थना करने लगी। भगवान् बुद्ध ने कहा, "बड़ा अच्छा किया जो तुम यहाँ चली आईं। बच्चे को मैं जीवित कर दूंगा। तुम बस इतना काम करो, गाँव में जाकर जिस घर में आज तक कोई मरा न हो उस घर से सरसों के कुछ दाने माँग लाओ।" गोमती लाश को छाती से चिपकाए दौड़ी और लोगों से सरसों माँगने लगी। जब किसी ने उसे सरसों के दाने देने चाहे तो उसने पूछा, "तुम्हारे घर में आज तक कोई मरा तो नहीं है न?" उसकी बात सुनकर घर वालों ने कहा, "भला ऐसा भी कोई घर होगा जिसमें ___कोई मरा न हो ! मनुष्य तो हर घर में मरते हैं।" गोमती घर-घर फिरी, पर सभी जगह उसे एक सा - जवाब मिला। अंततः उसकी समझ में बात आ गई कि मृत्यु अनिवार्य है। जीवन को सुधार लो, मृत्यु भी सुधर जायेगा और परलोक भी सुधर जायेगा। मृत्यु को मिटाना मुमकीन नहीं, किन्तु सुधारना मुमकीन है, %00.0000 70 International Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ff शीशा और दूसरा हम स्वयं बना लेते हैं। ईश्वर ने हमें केवल एक चेहरा दिया है ॥ सर्वस्योद्वेगकारकः क्रोधः ।। नीना बड़ी गुस्सैल और बदमिजाज लड़की थी । अक्सर नीना की माँ उसे ऐसी आदतों से छुटकारा पाने के लिए समझाती; पर नीना थी कि उस पर किसी बात का असर ही नहीं होता था । एक दिन नीना अपनी मेज पर बैठी पढ़ रही थी । करीब ही तिपाई पर एक सुंदर फूलदान रखा था। अचानक उसके छोटे भाई से धक्का लग गया। फूलदान फर्श पर गिरकर चूर-चूर हो गया। यह देख नीना गुस्से से भर उठी। तभी माँ ने उसके तने हुए चेहरे के सामने शीशा दिखाया। नीना ने शीशे में जब अपनी बिगड़ी हुई भयानक सूरत देखी तो चौंक पड़ी। धीरे-धीरे उसका गुस्सा शांत पड़ गया। वह फफक कर रो पड़ी। "तुमको शीशे की जरूरत है ।" माँ ने कहा, "अगर तुमने अपना मिजाज शांत न किया तो धीरे-धीरे तुम्हारे चेहरे का तनाव तुम्हारे चेहरे को सचमुच बिगाड़ देगा और तुम अपनी सुंदरता अपनी वजह से ही खो दोगी।" नीना को माँ की बात सही लगी। उसने निश्चय किया कि वह धीरे-धीरे अपने गुस्से को काबू करेगी। 71 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईमानदारी की सूखी रोटी बेईमानी से कमाई गई घी चुपड़ी रोटी से कहीं अधिक श्रेष्ठ है। जूते जैक गरीब चरवाहा था। वह रोज सुबह भेड़-बकरियों को चराने पहाड़ो की ढलान पर जाया करता था। सर्दी के दिन थे और उस बेचारे के पास पहनने के लिए जूते तक नहीं थे । एक दिन जब वह भेड़ों को चरा रहा था कि अचानक एक गाड़ी उसके करीब आकर ठहर गई। उसमें से एक चोर निकला, जो कई बार जेल की सजा काट चुका था। वह जैक से बोला, "तुम मेरे साथ काम करोगे ? यदि करो तो मैं तुम्हें बढ़िया जूते खरीद दूँ। तुम्हें अपने भोजन और कपड़ों की भी चिंता नहीं करनी पड़ेगी।" 7an Education International यह सुनकर उस छोटे से लड़के जैक ने तपाक से जवाब दिया, "मुझे नंगे पाँव रहना मंजूर है, पर धोखाधड़ी और चालाकी से कमाए पैसों का सुख मुझे नहीं चाहिए। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम सभी, ईश्वर से दया की प्रार्थना करते हैं और वही प्रार्थना हमें दूसरों पर दया करना भी सिखाती है | पंजाब केसरी का दंड पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह अपने अंगरक्षकों के साथ कहीं बाहर जा रहे थे। वे अपने विचारों में तल्लीन थे कि पत्थर का टुकड़ा बड़े जोरों से आकर उनके सिर पर लगा। जिधर से पत्थर आया था, अंगरक्षक उधर दौड़े। थोड़ी ही देर बाद उन्होंने एक बुढ़िया को पकड़कर महाराजा के सामने हाजिर किया। बुढ़िया थर थर काँप रही थी। आँसू भरकर बोली, मेरा बच्चा कल से भूखा है। घर में खाने को कुछ नहीं था। पत्थर मैंने बेर के पेड़ को मारा था, ताकि कुछ बेर बटोरकर उसका पेट भर सकूँ । वही पत्थर भूल से आपको आ लगा। मैं बेकसूर हूँ, महाराज, मुझे क्षमा कर दें। महाराज ने कुछ पल सोच-विचार किया, फिर बुढ़िया से बोले, माँ! यह लो एक हजार रुपए। घर जाकर बच्चों को खाना खिलाओ और पढ़ाओ। यह देख अंगरक्षक अवाक् रह गए। महाराजा रणजीत सिंह बोले, निर्जीव वृक्ष जब पत्थर लगने पर मीठे-मीठे फल दे सकते हैं तो मनुष्य होते हुए भी पंजाब केसरी कहा जाने वाला रणजीत सिंह क्या इस वृद्धा को खाली हाथ लौटा देता! 73 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जियाफत ME भेड़ियों के सरदार ने भेड़बकरियों के सरदार को संदेश भेजा। संदेश में लिखा गया था कि कई साल से हमारे बीच दुश्मनी चली आ रही है। हम यह नहीं चाहते कि हमारे बीच यह दुश्मनी जारी रहे। वास्तव में हमारे और आपके बीच दुश्मनी की वजह वह चरवाहा है जो अपना डंडा पछाड़कर हमें ललकारता रहता है। अगर हमारे बीच से उसे हटा दिया जाए तो हम लोग अच्छे दोस्त की तरह रह सकते हैं। यह संदेश पढ़कर मूर्ख भेड़बकरियों ने सींग मारमारकर चरवाहे को खदेड़ दिया। भेड़िए तो यही चाहते थे। जैसे ही उन्हें इस बात का पता जला, वे भेड़-बकरियों पर टूट पड़े। मित्र की बुराई सुनकर उससे रिश्ता तोड़ने से पहले सौ बार सोचना चाहिए। YOU in Location Interional www.jatsupar Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन एक किसान अपने बेटे के साथ खेत पर यह देखने के लिए गया कि फसल पक गई है या नहीं। पकी फसल में कुछ बालियाँ सीधी तनी हुई खड़ी थीं और कुछ झुकी हुई थीं। यह दृश्य देख किसान का बेटा अपने पिता से बोला, "पिताजी, जो बालियाँ झुक गई हैं वे अच्छी नहीं लग रहीं। जो सीधी तनी खड़ी हैं वे कितनी प्यारी लग रही हैं !" किसान ने झुकी हुई कुछ बालियों को हाथ में उठाकर कहा, "देखो ! जो बालियाँ झुकी हुई हैं उनमें कितने अच्छे दाने पड़े हैं ! और जो बालियाँ सीधी तनी खड़ी हैं उनमें अनाज का एक भी दाना नहीं पड़ा।" जो विनम्रता से झुके होते हैं उन्हें ही कुछ प्राप्त होता है। अहंकार से सीना ताने लोगों के हाथ कुछ नहीं पड़ता। ali kali calon memeliona pe con tant Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2.LS.DER बात उन दिनों की है, जब यूनान में गुलामी की प्रथा प्रचलित थी और प्रत्येक धनी के घर गुलाम रखना अनिवार्य समझा जाता था। _डायोजिनीज नामक एक धनी के पास केवल एक ही गुलाम था। दूसरे धनी अपने गुलामों के साथ मनमाने अत्याचार करते थे जबकि डायोजिनीज अपने गुलाम के साथ बड़ी नम्रता से पेश आता। फिर भी उसका गुलाम एक दिन उसे छोड़कर भाग गया। डायोजिनीज चाहता तो अन्य धनिकों की तरह उसे पकड़वा मँगवाता, पर उसने ऐसा नहीं किया, न मन में बुरा ही माना; बल्कि उसके जाने के बाद से वह सारे काम अपने हाथों से करने लगा। ___ लोगों से यह बरदाश्त न हुआ। वे उसकी निंदा करने लगे कि वह पक्का डरपोक है। यह आरोप डायोजिनीज से सहन न हुआ। वह उन धनिकों से शांत स्वर में बोला, 'सोचा तो, मेरा गुलाम मेरे बिना रह सकता है तो मैं उसके बिना क्यों नहीं रह सकता !" और अपनी राह भी आप ही बनानी होती है | हर एक को अपना स्वर्ग आप बनाना होता है fain Education Interfonal www.jainterlorerarg Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लापरवाही नतीजा एक दिन एक किसान अपने घोड़े के साथ शहर जा रहा था। तभी उसने देखा कि घोड़े के अगले पैर का नाल ढीला हो गया है। पर बिना इस बात पर अधिक ध्यान दिए वह इत्मीनान से आगे चल पड़ा। अभी वह कुछ कदम ही आगे बढ़ा होगा कि सहसा घोड़े के पैर से वह ढीला नाल निकल गया। तभी अचानक जंगल में दो डाकुओं ने उस किसान पर हमला बोल दिया। जो कुछ भी उन्हें किसान के पास मिला, छीन-झपट कर भाग गए। किसान निरुपाय था, करता भी क्या। आखिर उसको अपनी लापरवाही का नतीजा भुगतना पड़ा। अगर वह थोड़ी सी तकलीफ उठा, आसपास ढूँढकर घोड़े के पैर में नाल लगवा देता तो सरपट भागने में उसे तनिक भी देर न लगती। अपनी ही गलती पर किसान बहुत पछताया। किसी भी चीज के प्रति लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। सत्तवैकवृतिधीरस्य ज्ञानिन: सुकरं पुन: ।। दुःख का साथी जो धैर्यसंपन्न है उस के लिये कुछ भी दुष्कर नहीं, और दुःस्वरूप भी नहीं. जॉन और मारिन एक दिन खरीदारी के लिए गए। काफी फल खरीदने की वजह से उनके थैलों का बोझ बढ़ गया। बोझ से परेशान जॉन रास्ते में बड़बड़ाता हुआ चल रहा था, पर मारिन पर उसकी झुंझलाहट का कोई असर नहीं पड़ रहा था। उलटा वह हँसती-हँसती उसे एक चुटकुला सुनाने लगी। जॉन चिढ़ गया और गुस्से से बोला, 'मारिन ! क्या तुम चुप नहीं रह सकती? बड़ी चुहल सूझ रही है न ! मेरी तरह अगर तुम्हें यह भारी बोझा उठाना पड़ता तो सारी हँसी भूल जातीं।" मारिन बोली, "प्यारे जॉन ! बोझा तो मेरा भी कम नहीं; पर हाँ, मैंने उसे अपने एक साथी से बाँट लिया है, इसीलिए महसूस नहीं हो रहा।" _जॉन सुनकर हैरान रह गया । बोला, ''मुझे भी बताओ, कौन है वह साथी? मैं भी उसे अपना मित्र बना अपना बोझा बाँ-गा।" 'मारिन ने उत्तर दिया, "जिस साथी को अपना मित्र बना लेने से सारा बोझ हलका हो जाता है उसका नाम है-धैर्य।" 78 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सात छड़ें छह बेटे एकता में बड़ी ताकत है । एक गाँव में एक बूढ़ा आदमी रहता था। उसके छह बेटे थे। वे अक्सर आपस में बेवजह लड़ा करते थे। पिता सबको समझाता कि आपस की फूट ठीक नहीं । पर उसकी बात किसी ने नहीं सुनी। एक दिन बूढ़े बाप ने अपने छहों पुत्रों को बुलाया और उनके सामने लकड़ी की सात छड़ें, जो आपस में एक-दूसरे से जुड़ी हुई थीं, रखकर कहा, मैं उस बेटे को सौ रुपए दूँगा जो इसे तोड़कर रख देगा। एक के बाद एक सभी लड़कों ने छड़ें तोड़ने की कोशिश की, पर वे उसे अपनी पूरी ताकत आजमाने के बाद भी तोड़ न सके । इसे तोड़ना नामुमकिन है। वे सब चिल्लाए । इन्हें तोड़ा जा सकता है, पर इस तरह । कहकर पिता ने सातों छड़ों को अलग कर दिया। फिर एक के बाद एक सभी छड़ों को तोड़ दिया । इस तरह तो इन्हें कोई नन्हा बच्चा भी तोड़ सकता है। छहों पुत्र पुनः चिल्लाए । इस पर उनके पिता ने उन्हें समझाया, सब मिलकर रहोगे तो इन छड़ों की तरह कभी कोई तुम्हें नहीं तोड़ सकेगा, न तुम्हें नुकसान पहुँचा सकेगा। पर तुम लड़-झगड़ कर अलग हो जाओगे तो किसी भी वक्त तुम्हें नुकसान पहुँचाया या नष्ट किया जा सकता है। 79 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहम्मद साहब रोज अपने घर से मस्जिद में नमाज पढ़ने जाया करते थे। मस्जिद के रास्ते में एक दुष्ट बुढ़िया रहती थी। उस बुढ़िया को उनसे इतनी चिढ़ थी कि जब वे उसके घर के सामने से गुजरते तो वह उनके सिर पर कूड़ा फेंक देती। एक दिन उनके सिर पर कूड़ा नहीं गिरा। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। नमाज पढ़कर लौटे तो वे बुढ़िया का हाल-चाल जानने के लिए उसके घर पहुँच गए। वहाँ उन्होंने देखा कि बुढ़िया खाट पर बीमार पड़ी है। मुहम्मद साहब ने उसका हाल पूछा, उसे तसल्ली दी और स्वयं उसकी सेवा में लग गए। जब तक बुढ़िया स्वस्थ नहीं हो गई, वे वहाँ से नहीं हटे। स्वस्थ होने पर बुढ़िया ने अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा माँगी और उसी दिन से उनकी अनुयायी बन गई। कूड़ा जीतो मगर प्यार से... न तलवार की धार से... प्यार से नफरत को भी दूर किया जा सकता है। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संब काट जहाँ मेहनत होती है वहाँ फल भी होता है। बूढ़ा दादा अपने घर के सामने सेब के पेड़ की छाया में बैठा हुआ अपने पोतों को लाल-लाल पके सेब खाता हुआ देख रहा था। बच्चे सेब खाने में लगे हुए थे, पर उनमें से कोई भी इन बढ़िया सेबों की तारीफ नहीं कर रहा था। बूढ़े दादा ने बच्चों को पास बुलाकर कहा, "अब मैं तुम्हें बताऊँगा कि यह सेब का पेड़ यहाँ कैसे आया।" बच्चे ध्यान से सुनने लगे। "करीब पचास साल पहले, एक दिन मैं इसी बंजर जमीन पर यों ही उदास खड़ा हआ अपने पड़ोसी से अपनी गरीबी का रोना रो रहा था। पड़ोसी बड़े भले आदमी थे। सुनकर बोले, 'अगर तुम सचमुच रुपए चाहते हो तो जहाँ इस वक्त तुम खड़े हो ठीक उस जमीन के नीचे सौ से भी ज्यादा रुपए गड़े हुए हैं। चाहो तो खोद निकालो।' "उस समय मैं छोटा था। बिना ज्यादा सोचे-समझे उसी रात को मैंने वह जगह खोद डाली। पर काफी गहरे तक खोद डालने के बावजूद भी मेरे हाथ कुछ नहीं लगा। सुबह जब मेरे पड़ोसी ने वह गड्ढा देखा तो ठहाका मारकर हँस पड़े। फिर वे बोले, 'मैं तुम्हें सेब का यह नन्हा पौधा इनाम में दे रहा हूँ। उसे उस गड्ढे में रोप दो। कुछ सालों बाद तुम पाओगे कि तुम्हारे रुपए तुम्हें मिल गए हैं।' ____"मैंने पौधा लगा दिया। शीघ्र ही वह बढ़ने लगा और कुछ सालों के भीतर बहुत बड़ा पेड़ बन गया, जो तुम अपने सामने देख रहे हो। इस पेड़ के मीठे सेबों की आय मुझे साल भर में सौ रुपए से ऊपर बैठती है।'' 81 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतम बुद्ध का एक शिष्य जब दीक्षा ले चुका तो उनसे बोला, “प्रभु ! अब मैं निकट के प्रांत में धर्म-प्रचार के लिए जाने की आज्ञा चाहता हँ।' गौतम बुद्ध ने कहा, "वहाँ के लोग क्रूर और दुर्जन हैं। वे तुम्हें गाली देंगे, तुम्हारी निंदा करेंगे तो तुम्हें कैसा लगेगा?" शिष्य - "प्रभु, मैं समझूगा कि वे बहुत ही सज्जन और भले हैं, क्योंकि वे मुझे थप्पड़-घूसे नहीं मारते।" गौतम बुद्ध - ''यदि वे तुम्हें थप्पड़-घूसे मारने लगें तो ?' शिष्य - "वे मुझे पत्थर या ईंटों से नहीं मारते, इसलिए मैं उन्हें भले पुरुष समझूगा।" गौतम बुद्ध - "वे पत्थर-ईंटों हमेशा दूसरों की अच्छाइयाँ देखो || सत्ता साधक से भी मार सकते हैं।" शिष्य - “वे मुझ पर शस्त्र प्रहार नहीं करते, इसलिए मैं उन्हें दयालु मानूँगा।'' गौतम बुद्ध - "शायद वे तुम्हारा वध ही कर दें।" शिष्य - "प्रभु, यह उनका मुझ पर बहुत बड़ा उपकार होगा। यह संसार दुःखों से भरा है। यह शरीर रोगों का घर है। आत्म हत्या पाप है, इसलिए जीना पड़ता है। यदि लोग मुझे मार डालें तो मैं उन्हें अपना हितैषी ही समझूगा कि मुझे बुढ़ापे से बचा लिया।" गौतम बुद्ध प्रसन्न होकर बोले, “जो किसी भी हालत में किसीको दोषी नहीं समझता, वहीं सच्चा साधक है। अब तुम जहाँ चाहो, जा सकते हो।" 82 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Ecllication Memetional For Privale & Personal use on हर पक्ष का अपना महत्त्व होता है। अनवरत वर्षा और घोर अँधेरे से दुःखी होकर बच्चों की टोली आपस में तर्क करने लगी, "कितना अच्छा हो, अगर सूरज हमेशा चमकता रहे !" उनकी इच्छा शीघ्र पूरी हुई। सूरज उगा और लगातार कई महीनों तक चमकता रहा । बादल का कोई एक 3 छोटा सा टुकड़ा भी आसमान में दिखाई नहीं दिया। भीषण गरमी से खेत-खलिहान 100 और पेड़-पौधे सूख गए। धरती सूखकर चटक गई। कहीं कोई हरियाली नहीं बची। तभी बच्चों को माँ ने समझाया, "देखो ! बरसात भी उतनी ही जरूरी है जितना कि सूरज । एक-दूसरे के बिना सब अधूरा है। कुदरत की इस व्यवस्था से तुम शिक्षा ग्रहण करो। आदमी पर भी यह लागू होती है। जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए दुःख और सुख दोनों ही आवश्यक हैं। जब तक दुःख से नहीं गुजरोगे, सुख का सही अनुभव नहीं कर सकोगे।" , Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बार मिस्र देश के प्रसिद्ध संत मैकेरियस से उनके एक शिष्य ने पूछा, "गुरुदेव ! कृपा करके मुझे मुक्ति का मार्ग बता दें, जिससे मैं अपने जीवन को सुखी बना सकूँ।" गुरुदेव ने अपने उस प्रिय शिष्य से नम्रता के साथ कहा, “बेटे, मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग तो बहुत ही सरल है। तुम ऐसा करो कि पहले कब्रिस्तान में जाओ और कब्रों में जो लोग सोए पड़े हैं उनको खूब गालियाँ दो । उन पर खूब पत्थर फेंको। फिर मेरे पास आओ, मैं तुम्हें मुक्ति का मार्ग बता दूंगा।" दूसरे दिन वह गुरुजी के पास लौट आया और बोला, "गुरुदेव ! आपकी आज्ञा के अनुसार मैं सारे काम पूरे कर आया हूँ।" गुरुजी ने कहा, "तुम फिर उसी कब्रिस्तान में जाओ और इस बार उन कब्रों की खूब तारीफ करो, उन पर फूल चढ़ाओ।" - कब्रिस्तान में पहुँचकर शिष्य ने वैसा ही किया। फिर वह गुरुजी के पास लौट आया। गुरुजी ने पूछा, “अब यह बताओ कि जब तुमने उन कब्रों को बुरा-भला कहा तो उन्होंने तुमसे क्या कहा ? और जब तुमने उनकी खूब तारीफ की तो उस समय उन्होंने तुमसे क्या कहा ?" शिष्य ने नम्रता से कहा, "गुरुजी ! मुझसे तो उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। वे तो उसी तरह शांत रहीं।" संत मैकेरियस ने कहा, “बेटे, बस उन्हीं कब्रों की तरह तुम भी अपना जीवन बिताओ। जो तुम्हें बुरा-भला कहे, उससे भी प्रेम से बोलो और आशीर्वाद दो। जो तुम्हारी प्रशंसा करे, उससे भी तुम प्रेम से बोलो और आशीर्वाद दो। उन कब्रों की तरह जब तुम सबके साथ एक सा व्यवहार करोगे तो तुम्हें मुक्ति का मार्ग दिखाई देने लगेगा।" मुक्ति का मार्ग 84 Jain Education Ijternational For Pria Personal Use Only niw.jainelibrary.org. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्वास बहादुरी, हिम्मत, निष्ठा और विश्वास की जीत | - ब्रिटिश सेनापति नेल्सन की गिनती विश्व के महान् योद्धाओं में होती है। बात उन दिनों की है जब नील नदी की भयानक जंग छिड़ने वाली थी। ब्रिटिश जहाजी बेड़े के सभी सेनाधिकारियों के हृदय में निराशा व्याप्त थी। सहसा कैप्टन ने कहा, "अगर हमारी जीत हो गई तो दुनिया दंग रह जाएगी।" नेल्सन ने एक तीखी दृष्टि कैप्टन पर डाली और पूछा, ''अगर' से तुम्हारा क्या मतलब है ?'' कैप्टन तनिक सकपकाया, फिर साहस बटोरकर बोला, "मेरा मतलब है कि दुश्मन हमसे कहीं ज्यादा ताकतवर है। ऐसे में हमारी जीत भाग्य पर ही निर्भर है।'' नेल्सन ने यह सुनकर गंभीर और दृढ़ स्वर में कहा, "कैप्टन ! हमारी जीत का भाग्य से कोई संबंध नहीं है। हम जीतेंगे और अवश्य जीतेंगे। यह भी समझ लो कि हमारी जीत भाग्य के सहारे नहीं, बहादुरी, हिम्मत, निष्ठा और विश्वास के बल पर होगी।" सेनापति के इन। आत्मविश्वास भरे शब्दों ने प्रत्येक सैनिक के हृदय में मंत्र सा फूंक दिया। भाग्य का भरोसा छोड़ वे विश्वास एवं साहस के साथ युद्ध में जूझ पड़े, और सचमुच, इस युद्ध में संसार उनकी विजय को देख चकित रह गया। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गरीब विधवा शीला रोज अपनी दिनचर्या शुरू करने से पूर्व ईश्वर की प्रार्थना करती थी। एक दिन प्रार्थना करते समय उसने एक पंक्ति पढ़ी, जो दूसरों की मदद करने का संदेश देती थी। शीला यह संदेश पढ़कर भाव-विभोर हो उठी। मन-हीमन हाथ जोड़ ईश्वर से वह बोली, 'हे भगवान्, मैं दूसरों की क्या मदद कर सकती हूँ ? मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। अपने चरखे मैं गुजारे भर का भी नहीं कमा पाती। उस पर सर्दी के दिन आ रहे हैं। ठंड से मेरी उँगलियाँ सिकुड़ जाती हैं, तब मैं चरखा भी नहीं चला सकती । यहाँ तक कि मैं अपने कमरे का किराया तक नहीं चुका पाती । मैं खुद दुःखी हूँ, दूसरों की सहायता किस प्रकार करूँ ?' तभी उसके मन ने तर्क-वितर्क किया। जो कुछ मैंने पढ़ा वह गलत नहीं हो सकता। मैं अवश्य दूसरों की कुछ-न-कुछ मदद कर सकती हूँ । उसे सहसा खयाल आया। उसकी एक सहेली बीमार पड़ी है। रुपए-पैसे से नहीं, पर सेवा-शुश्रूषा से तो मैं उसकी सहायता कर सकती हूँ। P हो जाना । अपने से परास्त सबसे शानदार विजय है अपने पर विजय प्राप्त करना और सबसे शर्मनाक बात है 86 शीला ने दो सेब खरीदे और अपनी उस बीमार सहेली के घर जा पहुँची। सहेली ने उसे देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। वह प्रसन्न होकर बोली, "मेरी प्यारी शीला, मैं अभीअभी तुम्हें याद कर रही थी। भाग्यवश मेरे हिस्से में एक छोटी सी जायदाद आई है। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरी देखरेख करने के लिए अब मेरे पास रहो। तुम्हारा सारा खर्चा मैं उठाऊँगी। किसी भी चीज के लिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है।" सहेली का प्रस्ताव सुन शीला खुश हो गई। उदारता का बदला (दो सहेली) www.ainelibra-org Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोने के अंडे एक किसान के पास एक जादुई बतख थी। वह बतख प्रतिदिन एक 'सोने का अंडा देती थी। एक दिन उस किसान ने सोचा, कई दिनों से यह बतख रोज एक अंडा देती है। मतलब यह कि इसके पेट में अवश्य सोने के उंडों का ढेर छिपा है । क्यों न ये अंडे एक ही दिन में हासिल कर लिये जाएँ। यह विचार आते ही किसान ने फौरन बतख का पेट चीर डाला। पर अफसोस ! पेट से कुछ भी न निकला। लालच में पड़कर अपनी किस्मत पर कुल्हाड़ी नहीं मारनी चाहिए। 7 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक किसान को खेत में एक हीरा पड़ा मिला। किसान को क्या समझ। उनके लिए तो वह मात्र रंगीन पत्थर भर था। घर में ले जाकर उसने उस हीरे को अपने बच्चे को खेलने के लिए दे दिया। लड़का दरवाजे पर हीरे के साथ कंचे की तरह खेल रहा था कि तभी पास से गुजरते हुए एक जौहरी ने उसे देखा। उसने किसान को बुलाया और कहा, "तुम्हें पता है, इस काँच के टुकड़े की क्या कीमत है ?" "होगी कुछ भी। तुम्हें जो देना है सो दे दो और रास्ता नापो।" उस हीरे की कीमत एक लाख रुपए थी। जौहरी चलता-पुरजा था। उसने मात्र एक रुपया किसान को थमाया और चलता बना। हममें से कितने ऐसे हैं जो पास में कीमती हीरा होने के बावजूद भी उसके मूल्य से अनभिज्ञ होते हैं और उसे पानी के भाव जाया करते हैं। अच्छे काम करने का अवसर हीरे जैसा है, उसे कभी निष्फल मत बनाना। एक लाख का हीरा n Education International www.jainelihrono Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संगोतं का प्रभाव | परमहस एक बार एक धनी व्यक्ति ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से निवेदन किया, "भगवान्, यह रुपयों की थैली मैं आपके चरणों में भेंट करना चाहता हूँ। कृपया आप इसे स्वीकार करें।" ___परमहंस मुस्कुराए, ''भाई, मुझे माया के जाल में न फँसाओ। मैं तुम्हारा धन ले लूँगा तो मेरा चित्त उसमें लग जाएगा। इससे मेरी मानसिक शांति भंग होगी।" धनिक ने तर्क दिया, "स्वामीजी ! आप तो परमहंस हैं। आपका मन उस तेल-बिंदू के समान है जो कामिनी-कंचन के महासमुद्र में स्थित होकर भी सदैव उससे अलग रहेगा।" ___परमहंस गंभीर हो गए, "भाई, क्या तुम नहीं जानते कि अच्छे से अच्छा तेल भी यदि बहुत दिनों तक पानी के संपर्क में रहे तो वह अशुद्ध हो जाता है और उससे दुर्गंध आने लगती है।''धनी ने अपना आग्रह त्याग दिया। मोह-माया जीवन का बंधन है। 1189 www.jainelibrary KCele&SSOCIAL PM सा Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरु नानक अपने शिष्यों के साथ घूमतेफिरते एक बार एक गाँव में पहुंचे। उस गाँव के लोग बहुत ही उदार थे, साधु-संतों के बड़े भक्त थे। उन्होंने गुरु नानक का बहुत स्वागत-सत्कार किया। जब गुरु नानक गाँव से विदा होने लगे तो उन्होंने गाँव वालों को आशीर्वाद दिया, "तुम्हारा गाँव उजड़ जाए और तुम सभी अलग-अलग गाँव में जाकर बसो।' गुरु नानक के शिष्यों को बड़ा अनोखा आश्चर्य हुआ। ___ कुछ दिन बाद गुरु नानक अपने उन्हीं आशीर्वाद शिष्यों के साथ घूमते-फिरते एक दूसरे गाँव में पहुँचे। उस गाँव के लोग बहुत ही स्वार्थी थे। उस गाँव में एक भी सज्जन नहीं था। उस गाँव के लोगों ने स्वागत-सत्कार तो दूर, गुरुजी को बैठने तक को नहीं कहा और उन्हें पत्थरों से मारा । पर गुरु नानक ने मन में दुःख नहीं माना। उन्होंने गाँव वालों को आशीर्वाद दिया, "तुम्हारा गाँव आबाद रहे और तुम लोग सदा इसी गाँव में बसे रहो।" अब तो शिष्यों को गुरुजी पर बड़ा क्रोध आया। गाँव से बाहर निकलने पर उन्होंने गुरुजी से पूछा, "गुरुजी, भला यह आपका कैसा न्याय है ?" गुरु नानक ने हँसकर उत्तर दिया, 'मैंने जो कुछ कहा है, उसमें एक राज है। अच्छे लोग जहाँ बसेंगे वहीं लोगों को अच्छी बातें सिखाएँगे, इससे अच्छाई फैलेगी। लेकिन यदि बरेलोगगाँव छोड़कर दूसरे गाँवो में जाएँगे तो लोगों को बुरी बातें सिखाएँगे, जिससे बुराई फैलेगी। इसलिए मैंने अच्छे लोगों की बस्ती को उजड़ जाने के लिए कहा, जिससे वे चारों ओर फैल जाएँ और बुरे लोगों को एक ही गाँव में बसे रहने के लिए कहा, जिससे अपने दुर्गुणों का वे प्रसार न कर सकें।" अच्छे बनो, अच्छाई फैलाओ इसी में जीवन की सार्थकता है। 90 Jain Education Internal Syeww.jainelibrary.org Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बूढ़ा शेर एक बूढ़ा शेर इतना कमजोर हो गया कि उसके लिए चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया। सारा दिन वह अपनी गुफा में चुपचाप पड़ा रहता था। जब इस बात का पता जंगल के अन्य प्राणियों को चला तो उन्होंने सोचा, मौका बढ़िया है पुराना हिसाब-किताब बराबर कर लेने , का। सबसे पहले एक बैल गुफा में दाखिल हुआ और उसने शेर को जोर से सींग मारी। शेर चुपचाप पड़ा रहा। फिर लोमड़ी अंदर आई और उसने शेर को काट खाया। एक के बाद एक । छोटे-बड़े प्राणी गुफा में आते गए और वैर चुकाते गए। अंत में जब एक गधे ने आकर शेर को दुलत्ती मारी तब शेर की आँखों में आँसू आ गए। बल का कभी गर्व मत करना, एक दिन सब का बल चला जाता है। 91 Jain Education Interational , Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दो मुसाफिर जंगल में मिले। दोनों खुश हुए। सोचा, एक से दो भले । अचानक कोई मुसीबत आ पड़े तो मिलकर सामना तो कर सकेंगे ! तभी झाड़ियों में से एक भालू बाहर आया । भालू को देखकर एक मुसाफिर, जो पतला-दुबला था, फौरन पेड़ पर चढ़ गया। दूसरा, जो काफी मोटा था, उसके लिए तो पेड़ पर चढ़ना या तुरंत भाग निकलना मुमकिन नहीं था । वह फौरन जमीन पर औंधा लेट गया । भालू उसके करीब आया। उसने साँस रोक्ने ली । भालू ने सोचा, यह तो मुरदा है, इसको क्या मारना ! सूँघ -साँघकर वह आगे बढ़ गया। थोड़ी देर बाद पेड़ पर चढ़ा यात्री नीचे उतरा और मोटे सहयात्री से पूछा, “यार ! मैंने देखा, भालू तुमसे कानाफूसी कर रहा था। क्या कहा उसने ?" मोटे मुसाफिर ने जवाब दिया, "भालू ने कहा कि..." भालूने कहा था.... لاله 0 0 0 0 0 0 0 काम न आए उसे मित्र नहीं कहते । जो वक्त पर Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MILK दुर्बल शरीर मन को भी दुर्बल बना देता है। एक बार गौतम बुद्ध के एक शिष्य ने भूख से व्याकुल एक भिखारी को धरती पर तड़पते देखा तो बोला, "अरे मूर्ख ! इस तरह धरती पर क्यों पड़ा है ? भगवान् की शरण में चल । तेरे मन को शांति मिलेगी।" पर भिक्षु की बात मानो उस भिखारी ने सुनी ही नहीं । भिक्षु ने गौतम बुद्ध से जाकर सारी बात कही। गौतम बुद्ध स्वयं चलकर भिखारी के पास गए। उसकी दशा देखकर उसके लिए भोजन मँगाया और फिर प्यार से उसे खिलाया। शिष्य को बहुत आश्चर्य हुआ । वह बोला, “भगवन्, आपने इस मूर्ख को कुछ उपदेश तो दिया ही नहीं । भोजन कराके आराम से सुला दिया। भला ऐसे जीवोद्धार कैसे होगा ?" गौतम बुद्ध मुस्कुराए और बोले, "सौम्य, यह भिखारी कई दिनों का भूखा था। भूखा मनुष्य भला धर्म का क्या पालन करेगा ! भूखे को भोजन कराना ही सबसे पहला और बड़ा धर्म है। जब यह स्वस्थ हो जाएगा, तभी तो ज्ञान और धर्म की बातें सुनेगा।” Jan Education International भूखे का धर्म 93 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94 जो कष्ट से घबराकर धर्म से विमुख होते है उन्हें कभी सुंदर फल नहीं मिलते। कष्ट, जो धर्म के लिये किया जाये, उस का फल तो इससे भी अनंतगुण है। एक बूढ़े किसान को लगा कि अब वह ज्यादा नहीं जिएगा। बस कुछ ही क्षणों का वह मेहमान है। उसके तीनों बेटे उस वक्त पर उसके करीब ही खड़े थे। उसने अपने बेटों से कहा, "मेरी उम्र भर की कमाई, मेरा सारा खजाना अपने खेतों में है।" यह कहते हुए उसके प्राण निकल गए । अभी उसकी चिता की राख ठंडी भी नहीं हुई थी कि उसके तीनों बेटे फावड़े लेकर खजाना खोजने खेत पर ت पहुँच गए। तीनों ने मिलकर सारा खेत खोद डाला, पर कुछ भी हाथ न लगने पर तीनों निराश हो गए। तभी गाँव का एक बूढ़ा वहाँ आया। उसने तजुरबे की बात बताई। कहा, "अब इस खेत में बीज बो दो। जो फसल तैयार होगी, वह किसी खजाने से कम नहीं होगी।" तीनों बेटों ने वैसा ही किया। फसल लहलहाई तो तीनों को अपनी मेहनत का फल भी मिल गया-अर्थात् खजाना मिल गया । खजाना कहाँ है ? Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोना और पत्थर एक कंजूस के पास काफी सोना था। उसने उसे एक बक्से में भरकर खेत में गाड़ दिया। रोज रात को वह अकेला छिपकर खेत में पहुँचता, बक्सा खोदकर बाहर निकालता, सोने की अशर्फियों को टुकुर-टुकुर देखता और फिर बक्सा बंद कर वापस जमीन में गाड़ देता । एक दिन एक चोर ने उसे ऐसा करते देख लिया। जैसे ही वह किसान अपने घर की ओर मुड़ा, चोर ने बक्सा खोद निकाला। बक्से का ढक्कन खोलते ही अशर्फियों की चमक से चोर की आँखें चौंधिया गई। फौरन उसने सारी अशर्फियाँ अपने झोले में भर लीं और खाली बक्से में पत्थर भरकर पुनः उसे गाड़ दिया। दूसरे दिन रात में कंजूस जब अपने खेत पर आया तो उसने बक्सा पत्थरों से भरा पाया । उसे चक्कर आ गया। कुछ देर बाद होश आने पर वह दहाड़ें मारकर चीखने-चिल्लाने लगा। गाँव वाले उसकी आवाज सुन खेत पर दौड़े आए । जब उन्हें हकीकत का पता चला तो उनमें से एक बूढ़े किसान ने कहा - जो धन किसी के काम नहीं आता उस धन का होना, न होना बराबर है। आप के पास जो कुछ भी है, उस से परोपकार करो, जीवन धन्य हो जायेगा। Jain Education Intemational www.jainelibrary.or 95 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक राक्षस हमेशा विभिन्न देशों के राजाओं के पास जाता और कहता कि मुझे नौकर रख लो । लगातार काम दो। अगर काम नहीं मिला तो मैं तुम्हें खा जाऊँगा । इस तरह वह कई देशों के राजाओं को खा चुका था। एक बार वह बीकानेर के राजा के पास पहुँचा और अपनी इच्छा दोहराई। राजा ने उसे युद्ध पर भेज दिया। युद्ध से लौटा तो उसे महल तैयार करने के लिए कहा। उसने झटपट महल खड़ा कर दिया। इस तरह जो काम राजा उसे बतलाता, वह झटपट कर देता। राजा यह देख घबराया। उसने मंत्री से सलाह ली । मंत्री चालाक था । बोला, “आप चिंता न कीजिए।" इतने में राक्षस आकर काम के लिए पूछने लगा। मंत्री ने एक कुत्ता मँगवाया और उससे बोला कि इसकी पूँछ सीधी कर दो। राक्षस कुत्ते की पूँछ सीधी करके छोड़ता तो वह फिर से टेढ़ी हो जाती। राक्षस पूँछ सीधी करतेकरते परेशान हो उठा। तंग आकर उसने राजा से क्षमा माँगी और वापस चला गया। काम बताओ, नहीं तो जान गँवाओगे... 96 मन को शांत रखो..... अशांति के निमित्तो से दूर रहो... तो हर समस्या का समाधान चुटकी मे मिल जाये। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मित्रता Hain Education Intemational संकट मे ही मित्रता की सच्ची परख होती है। एक गिलहरी और पिल्ले में गहरी मित्रता थी। वे दोनों साथ रहते, साथ खेलते। गिलहरी हर खेल में बाजी मार ले जाती । जब भी उसे लगता कि वह हार जाएगी, लपक कर पेड़ पर चढ़ जाती और वहाँ से झुककर अपने मित्र पिल्ले को चिढ़ाया करती। दोनो ही खुश रहकर अपना समय गुजार रहे थे। गरमी खत्म होते ही ठंड के दिन आए । बर्फ का गिरना शुरू हो गया। पिल्ला तो किसी तरह अपना बचाव करता रहा, लेकिन गिलहरी अपना बचाव नहीं कर पा रही थी। एक दिन गिलहरी पेड़ पर चढ़कर गूलर खा रही थी कि अचानक बरसात शुरू हो गई। आँधी चलने लगी। पेड़ पुराना था। जड़ समेत टूटकर जमीन पर गिर पड़ा। पेड़ के साथ ही गिलहरी भी पानी में जा गिरी। “बचाओ, बचाओ !'' गिलहरी चिल्लाई। पिल्ले ने जब अपनी मित्र की आवाज सुनी तो पानी में कूद पड़ा। गिलहरी उसकी पीठ पर बैठकर किनारे पर आ गई। इस तरह पिल्ले ने अपनी मित्र की जान बचाई और दोनों प्रेमपूर्वक रहने लगे। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक महात्मा लोगों को बुराइयों से दूर रहने का उपदेश दिया करते थे। एक बार जब वे नशे के बारे में लोगों को बतला रहे थे, भीड़ में से एक व्यक्ति बोला, “महात्मा जी, मुझे शराब पीने की आदत है। मैं उसे छोड़ना चाहता हूँ, पर वह है कि छूटती ही नहीं। क्या आप मुझे इसकी कोई तरकीब बतलाएँगे ?" अचानक महात्मा जी ने एक पेड़ के तने को पकड़ लिया और बोले, "मैं तुम्हें तरकीब बतलाता हूँ; पर क्या करूँ, मुझे इस तने ने पकड़ लिया है। अब यह मुझे छोड़े तो मैं तुम्हें उपाय बताऊँ।" _पहले तो वह व्यक्ति भौचक्का सा होकर महात्माजी को देखने लगा, फिर कुछ झिझककर बोला, “महात्मा जी, क्षमा करें ! क्या पेड़ भी आदमी को पकड़ सकता है ?" महात्माजी ने कहा, “मूर्ख ! मैं भी तो यही कहता हूँ। क्या कोई भी बुराई आदमी को पकड़कर रख सकती है !" दृढ़ संकल्प के आगे हर काम सहज हो उठता शराबी 98 Education International Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intemational फ्रांस का राजा हेनरी एक दिन पेरिस नगर में अपने उच्चाधिकारियों के साथ कहीं जा रहा था। मार्ग में एक भिक्षुक ने अपनी टोपी सिर से उतारकर तथा सिर झुकाकर उसे प्रणाम किया। प्रत्युत्तर में हेनरी ने भी अपनी टोपी उतारकर और सिर झुकाकर भिक्षुक को प्रणाम किया। यह देखकर एक अफसर ने कहा, "श्रीमान ! एक भिक्षुक को आप इस प्रकार प्रणाम करें, क्या यह उचित है ?" हेनरी ने सरलता से उत्तर दिया, "क्या फ्रांस के नरेश में एक भिक्षुक जितनी भी सभ्यता नहीं है ?" For Private & Personal use only सभ्यता सज्जनता की कसौटी सही आचरण है। 99 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निःस्वार्थ भाव से परोपकार करे इसमे धर्म का पालन है। साँच को आँच नहीं लगती। सेवा हमारा धर्म है... किसी जमाने की बात है, बगदाद में एक धनी आदमी रहता था। एक दिन उसकी हवेली में आग लग गई। अन्य सब तो बाहर निकल आए, पर एक नौकर भीतर रह गया । अमीर बड़ा दुःखी हुआ । उसने घोषणा की कि जो कोई उस नौकर को जलते घर से बाहर निकाल लाएगा, उसे वह एक हजार दीनार इनाम में देगा। ____ इतने में एक साधु वहाँ पर आया। उसने आव देखा न ताव, एकदम भीतर की तरफ दोड़ा और नौकर को निकाल लाया। लोगों ने देखा कि जलते हुए घर में घुसने के बाद भी न साधु के कपड़े जले, न बदन झुलसा । वे अचरज से भर उठे। धनी आदमी साधु के सामने श्रद्धा से झुक गया। फौरन उसने एक हजार दीनार उसके सामने रख दिए। साधु ने उत्तर दिया, “सेवा हमारा धर्म है। हम इनाम के लिए सेवा नहीं करते।" अब लोगों की समझ में आया कि साधु आग में से बेदाग क्यों निकल आया था। 100 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुःख की गठरी सुख साधन मे नहीं, साधना में है। साधना करते रहो, सुख मिलता रहेगा। एक नगर के लोग बड़े दुःखी थे। अचानक एक दिन आकाशवाणी हुई कि लोग अपना-अपना दुःख गठरी में बाँधकर ले जाएँ और शहर के बाहर अमुक जगह पर पटक कर वहाँ से सुख बाँध लाएँ। लोग बड़े खुश हुए। उन्होंने अपने दुःखों की गठरी बाँधी और चल दिए। फिर दुःख को फेंक कर और सुख को लेकर वे अपने-अपने घर लौट आए। सारे शहर में सुख का साम्राज्य छा गया। लेकिन मुश्किल से दो दिन बीते होंगे कि लोग फिर दुःखी होने लगे-यह सोचकर कि उनका पड़ोसी जितना सुखी है, वे उतने सुखी क्यों नहीं हैं ? दूसरे के पास यह है, वह है-पर उनके पास तो उतना नहीं है। लेकिन एक साधु मस्त था और हँस रहा था। वे उसके पास गए और बोले, “महाराज ! दुःख हमारा पीछा नहीं छोड़ता, लेकिन आप इतने सुखी कैसे हैं ?" साधु बोला, "बात यह है कि तुम लोग सुख बाहर खोजते हो, पर सुख बाहर है कहाँ ! सुख तो अपने अंदर है।" सुख और आनंद ऐसे इन हैं जिन्हें जितना अधिक तुम दूसरों पर छिड़कोगे उतनी ही अधिक सुगंध तुम्हारे अंदर आएगी। www.jainelibrary.ora 101 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेहनत की रोटी सबसे मीठी होती है। राब बादशाह बादशाह नासिरुद्दीन के बारे में मशहर है कि वे अपने खाने-पीने और ऐश-आराम के लिए शाही खजाने से एक भी पैसा न लेते थे। वे किताबों की नकल करते थे और उन नकल की हई किताबों को बेचकर जो पैसा मिलता था, उसी से अपना और अपने परिवार का खर्च चलाते थे। बादशाह होते हुए भी खाना पकाने के लिए। घर में कोई रसोईया नहीं था, जिस कारण बेगम को ही खाना पकाना पड़ता और घर के दूसरे काम भी करने पड़ते थे। एक बार रोटी पकाते समय बेगम की अँगुलियाँ जल गई। बेगम ने डरते-डरते बादशाह से एक दासी रखने के लिए कहा। इस पर बादशाह बोले, "मैं जो कमाता हूँ, उससे दोनों वक्त का खाना ही किसी तरह जुट पाता है, दासी कहाँ से रखू ? खजाने के रुपए तो प्रजा के हैं। उन्हें प्रजा की भलाई के लिए ही खर्च करना चाहिए। एक गरीब बादशाह की बेगम होकर तुम्हें ऐसी बात ख्वाब में भी नहीं सोचनी चाहिए।" 102 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मबोध एक बार एक गुरु आत्मा के बारे में अपने एक शिष्य को समझा रहे थे। पर शिष्य कहता, "आत्मा को कैसे मानें ? वह दिखाई तो देती नहीं ।" हारकर गुरु ने शिष्य से कहा, "अच्छा, जाओ, सामने के पेड़ से फल ले आओ।" शिष्य गया और फल ले आया। गुरु ने कहा, "इस फल को तोड़ डालो।" शिष्य ने वैसा ही किया। गुरु ने पूछा, “इसमें तुम्हें क्या दिखाई देता है ?" शिष्य ने उत्तर दिया, "गुरुदेव ! इसमें बीज दिखाई दे रहा है ।" गुरु ने कहा, "इस बीज को पीस डालो।" शिष्य ने बीज को पीस डाला। गुरु ने पूछा, “अब तुम्हें क्या दिखाई देता है ?" शिष्य ने बड़े ध्यान से देखा और बोला, "गुरुजी, अब तो कुछ भी दिखाई नहीं देता।'' तब गुरु ने कहा, "वत्स ! जो तुझे दिखाई नहीं देता उसी से इतना बड़ा वृक्ष पैदा हुआ है । बीज के अंदर जो शक्ति है वही आत्मा है। और तू भी वही है । " शिष्य की समझ में सारी बात आ गई । शरीर यही छूट जायेगा | आत्मा परलोक में जायेगी। अतः शरीर की चिंता कम कर के आत्मा की चिंता अधिक करनी चाहिये । Ke 103 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपमान का बदला महान् वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन से एक बार एक बालक ने पूछा, “अंकल ! मुझे कोई ऐसा मंत्र बताएँ जिससे जीवन में शत-प्रतिशत सफलता मिल सके।' आइंस्टीन ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "हिम्मत न हारो।" बालक ने पूछा, "यह कैसे, अंकल ?" आइंस्टीन ने बताया, "जब मैं तुम्हारी तरह बालक था तो स्कूल के साथी मुझे बहुत तंग करते थे और बुद्ध कहकर मुझे चिढ़ाया करते थे । गणित के अध्यापक मेरा इतना अपमान करते थे कि मैं शर्म से गड़ जाता था । वे हमेशा ताना कसते थे कि तुम सात जन्म में भी गणित नहीं सीख पाओगे। इन सब बातों से चिढ़कर मैंने निश्चय किया कि मैं पूरी मेहनत से सारी चीजें सीखूँगा। किसी के भी अपमानित करने से हिम्मत नहीं हारूँगा । इसीलिए मैं कुछ कर सका । सोचो, यदि मैं डरकर हिम्मत हार बैठता तो मेरी क्या गति हुई होती !" जो हिम्मत हारा वह जीवन हारा। अतः हिम्मत से अच्छे काम करते रहने चाहिये। 104 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक महात्मा से एक धनिक ने कहा, "महात्मन्, आप मुझसे जितना धन चाहें, ले लें, लेकिन सुख और शांति को प्राप्त करने की राह बता दें।" अँधेरा होने पर महात्मा जी ने धनिक से कहा, "मेरा कमंडलु खो गया है, मैं उसे खोजने के लिए बाहर जा रहा हूँ।'' यह कहकर महात्मा जी कुटी से बाहर चंद्रमा के प्रकाश में कमंडलु ढूँढने लगे। धनिक शिष्य पीछे-पीछे जाकर बोला, “महात्मन्, आपने कमंडलु तो कुटी में रखा था, फिर आप उसकी खोज बाहर क्यों कर रहे हैं ?'' महात्मा जी ने उत्तर दिया, "प्रियवर, कुटी में तो अँधेरा है, वहाँ कमंडलु कैसे ढूँढ़ ? यहाँ प्रकाश है, इसलिए यहीं कमंडलु ढूँढ रहा हूँ।" धनिक को इस बात पर हँसी आई। वह बोला, "महात्मन्, कुटी में प्रकाश कीजिए, बाहर के प्रकाश से भीतर तो सहायता नहीं मिलेगी।'' तभी महात्मा जी ने कहा, ''भद्र ! यही तो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। बाहर की धन-सामग्री से भीतर मन में प्रकाश कैसे हो सकता है ?" ज्यों तिल मांहि तेल है, ज्यों चकमक में आग । तेरा सांई तुझ में झांक सके तो झांक || शांति की खोज शांति की खोज में हम चाहे पूरे संसार का चक्कर लगा आएँ| अगर वह हमारे भीतर नहीं है तो कहीं नहीं मिलेगी। 105 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106 एक महात्मा नदी के किनारे स्नान कर रहे थे। उन्होंने देखा कि एक बिच्छू पानी की धार में बह रहा है। उन्होंने उसको बचाने के लिए हाथ में उठा लिया । बिच्छू ने डंक मारा, . जिससे हाथ हिला और बिच्छू फिर पानी में जा गिरा । महात्मा ने उसे फिर उठा लिया। बिच्छू ने फिर डंक मारा और हाथ हिलने से वह फिर पानी में गिरकर बहने लगा । तीन-चार बार ऐसा ही हुआ । किनारे पर खड़े एक व्यक्ति ने कहा, "अरे महात्मा जी, डंक मारता है तो उसे छोड़ क्यों नहीं देते ?" महात्मा ने उत्तर दिया, "भाई, बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है बचाना । जब यह कीड़ा होकर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव कैसे छोड़ू ?" बिच्छू के डंक दूसरे का स्वभाव चाहे तुम्हें पसंद न हो, लेकिन तुम्हें अपना नेक स्वभाव नहीं छोड़ना चाहिए । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर को तड़क-भड़क और दिखावा तनिक भी पसंद न था। वे सादगी के हिमायती थे। एक बार की बात है कि उनकी किसानों का देश पत्नी ने जन्मदिन के अवसर पर उन्हें सोने के बटन भेंट में दिए । रवींद्र ने उनसे कहा, "छि:-छिः ! मैं सोने के बटन लगाऊँगा ! मेरा देश किसानों का है, मुझे तो लोहे के साधारण बटन दो।" मूर्ति के समान मनुष्य का जीवन सभी ओर से सुंदर होना चाहिए। FOR PAVE manation 107 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108 अरब के खलीफा हजरत उमर ने अपने किसी सरदार को किसी प्रदेश का गवर्नर नियुक्त किया । तभी एक छोटा बच्चा दौड़ता हुआ हजरत उमर के पास आया । बस, फिर क्या था, प्यार से उन्होंने बच्चे को चूमा और उठाकर गोद में बैठा लिया। यह वह सरदार, जिसकी गवर्नर के पद पर नियुक्ति हुई थी, सब कुछ देखकर चकित था। वह बोला, "खलीफा साहब! मेरे यहाँ भी बच्चे हैं, पर मैंने कभी उनसे इस तरह का प्यार नहीं जताया। वे मुझसे इतना डरते हैं कि मेरी आवाज सुनते ही भीगी बिल्ली बन जाते हैं ।" "मुझे यह सुनते ही हजरत उमर गंभीर हो गए। उन्होंने कहा, अपने गलत चुनाव के लिए अफसोस है। पर खुदा का लाखलाख शुक्र कि तुमने समय रहते मुझे चेता दिया। जब तुम्हें अपने बच्चों से ही प्यार नहीं तो तुम मेरी प्रजा को कैसे प्यार कर सकोगे !" और यह कहकर खलीफा ने नियुक्ति पत्र के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। पोथी पढ़-पढ़ढ़ जग मुआ, भया न पंडित कोय । ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय || मनुष्य जिससे डरता है, उससे प्रेम नहीं करता । अपने आश्रितो को खूब प्रेम एवं वात्सल्य दे कर उन्हे अच्छे संस्कार दो। इसी तरह बड़प्पन सार्थक होता है। प्रेम का झरना Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = }} :)) : } : }} चोर और साहूकार एक साहूकार के घर चोरी हो गई। चोर हजारों के गहने चुरा ले गया। काफी तलाश करने के बाद भी जब चोर का पता न चला तो साहूकार बीरबल के पास आया और रो पड़ा। बीरबल ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा, सुबह तक चोरों को न ढूँढ़ निकालूँ तो मेरा नाम बीरबल "कल नहीं।'' फिर बीरबल ने साहूकार के चारों नौकरों को एक-एक लकड़ी दी और उन्हें यह कहकर अलगअलग कमरे में बंद कर दिया कि तुममें से जो चोर होगा, सवेरे तक उसकी लकड़ी एक बालिश्त बढ़ जाएगी। चारों नौकरों में से एक नौकर चोर था। उसने सोचा, मेरी लकड़ी जरूर सुबह तक एक बालिश्त बढ़ जाएगी। क्यों न उतना ही इसे कम कर दूँ । उसने फौरन एक बालिश्त लकड़ी काट दी। सवेरे बीरबल जब चारों नौकरों की लकड़ी देखने लगे तो एक नौकर की लकड़ी को एक बालिश्त छोटा पाया। चोर पकड़ा गया। बीरबल ने फौरन उस नौकर को थानेदार के हवाले कर दिया। थानेदार के पिटाई करने के पूर्व ही उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया और साहूकार के गहने लौटा दिए। - :)) . 2}} पापी हमेशा भयभीत होता है इस से तो अच्छा है, कि पाप ही न करे । - or 109 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बार एक राजा यज्ञ करने जा रहे थे। यज्ञ में बलि देने के लिए उन्होंने एक बकरा मँगवाया। बकरा चिल्ला रहा था। यह देखकर राजा ने अपनी सभा के एक विद्वान् पंडित से पूछा, "यह बकरा क्या कहता है ?" पंडित ने बताया, "यह कहता है कि स्वर्ग के उत्तम भोगों की उसे अब इच्छा नहीं है। स्वर्ग का उत्तम भोग दिलाने के लिए उसने आपसे कोई प्रार्थना भी नहीं की। वह तो घास चरकर ही संतुष्ट था। इसलिए उसे बलि देने के लिए आपने पकड़ मँगाया । यह उचित नहीं किया। यदि यज्ञ में बलि देने से प्राणी स्वर्ग जाता है तो अपने माता-पिता, भाई, पुत्र और अन्य कुटुंबियों को बलि देकर यज्ञ क्यों नहीं करते ?' विद्वान् पंडित जब बकरा बोल उठा...की बात सुनकर राजा ने बकरे को छोड़ दिया। ॥ अहिंसा परमो धर्मः।। जीवो को मारने से नहीं, बचाने से धर्म होता 110 Education International Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वामीजी बात उन दिनों की है, जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए हुए थे। सिर पर पगड़ी, कंधों पर चादर और उनके गेरुए वस्त्र अमेरिका वासियों के लिए बड़े कौतूहल की चीज थे। एक दिन जब स्वामीजी शिकागो नगर की एक मुख्य सड़क से होकर गुजर रहे थे तो एक भद्र महिला उनके वस्त्रों की ओर देखकर मुस्कुरा दी। स्वामी विवेकानंद उसका इशारा समझ गए। उन्होंने कहा, “बहन, मेरे इन गेरुए वस्त्रों को देखकर तुम्हें आश्चर्य नहीं करना चाहिए। तुम्हारे देश में तो सज्जनता की पहचान कपड़ों से होती है; लेकिन जिस देश से मैं आया हूँ, वहाँ सज्जनता की पहचान कपड़ों से नहीं बल्कि उसके चरित्र से होती है।" सज्जनता की पहचान आदमी के कपड़ों से नहीं, गुणों से होती है। Jain Education Intemational Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 अक्ल का कच्चा चार दिन से श्याम के पेट में दर्द था। वह दवा लेने डॉक्टर के पास पहुँचा। डॉक्टर ने उसे दवा थमाते हुए हिदायत दी, "यह है आपकी दवा। इसमें से आपको रोजाना एक चम्मच दवाई चार चम्मच पानी में मिलाकर लेनी होगी।" श्याम था अक्ल का कच्चा। बोला, "लेकिन डॉक्टर साहब, हमारे घर में तो सिर्फ दो ही चम्मच हैं।" समस्या अज्ञान से पैदा होती है, और समाधान ज्ञान से अतः सम्यक् ज्ञान को प्राप्त करने के लिये हमेशा प्रयत्न करना चाहिये। Perso Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन का लालच करना धन की गुलामी है। दरिद्र कौन । एक बार की बात है, एक संत के पास एक धनवान् आया। उसने रुपयों की थैली संत के चरणों में रख दी। संत ने । कहा, ''अत्यंत निर्धन का धन मैं स्वीकार नहीं करता।" "पर मैं तो धनवान् हूँ। लाखों रुपए मेरे पास हैं।" धनवान् ने उत्तर दिया। "धन की और कामना तुम्हें है या नहीं ?" संत ने प्रश्न किया। ''अवश्य है।'' "जिन्हें धन की कामना है उन्हें रातदिन धन जुटाने की चिंता रहती है। धन के लिए नाना प्रकार के दुष्कर्म करने पड़ते हैं। उनके जैसा तो कोई दरिद्र नहीं।" धनवान् अपनी थैली लेकर वापस लौट गया। 113 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक राजा बहुत दुष्ट स्वभाव का था। दीन-दुर्बलों को दुःख देने, सताने-तड़पाने में उसे बहुत मजा आता था। प्रजा उसके अत्याचारों से बहुत परेशान थी। एक बार एक सिद्ध महात्मा राजसभा में पधारे। राजा ने उनसे पूछा, "स्वामीजी, इस जीवन में मैंने जो चाहा, किया। अब मैं चाहता हूँ कि अगले जन्म में भी मुझे ऐसा ही राजपाट मिले। क्या आप इसका। कोई उपाय बताएँगे ?'' महात्मा सोच-विचारकर बोले, "आप दिन भर सोया कीजिए, राजन् ! जितना ही अधिक आप सोइएगा उतना ही अधिक पुण्य होगा।" जब महात्मा राजा से विदा लेकर सभा भवन से बाहर निकले तो एक सज्जन ने कहा, "स्वामीजी, सोने से भी कहीं पुण्य मिलता है !'' महात्मा ने कहा, "भाई, साधु पुरुषों का पुण्य सोने से भले ही न बढ़े, परंतु दुष्टों का तो बढ़ता ही है। क्योंकि सोते समय वे दुष्कर्मों से बचे रहते हैं। जितनी भी देर यह नर'पिशाच सोएगा उतनी ही देर लोग इसके जुल्मों से बचे रहेंगे। क्या इससे उसे पुण्य नहीं मिलेगा ?" 00000 'जागृति के काल में अधिक से अधिक अच्छे काम करने चाहिये। अत्याचारी की तपस्या (राजा एवं सन्यासी) 114 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MOVER PROOVEX ARE BUD Kids Kids Rudols Buddhs Buddha RIDE. KIONA RIONAK KIDO KIDX KI She Buddha dh KiddhX KIDO DOX dhe s goobs BudoX RIDI YOOX KIDOx side BONES RINNA OX KIDS KIDE BuddhX RUDN Kochs Kiddha sude BUDDHA RADNA NI bobX NIDOS BUDO subohs soos box Pooh PAON MOCS MONAY N POONIS POONS BO khs RANNAN Rocha Bu SAS KIDS सुख की शोध एक राजा था। वह जितना दयालु था राजकुमार उतना ही दुष्ट और निर्दयी था । आखिर जब प्रजा उसके अत्याचारों से हाहाकार कर उठी तो गौतम् बुद्ध स्वयं उसके पास गए। उसे घुमातेफिराते नीम के एक पौधे के पास ले गए और बोले, "राजकुमार, इस पौधे का एक पत्ता चखकर तो बताओ कि कैसा है !" राजकुमार ने नीम का एक पत्ता तोड़कर चखा । उसका मुँह कड़वाहट से भर उठा। उसने तिलमिलाकर नीम का पौधा ही जड़ से उखाड़ फेंका और कहा, "जब यह पौधा अभी से ऐसा कड़वा है तो बढ़ने पर तो पूरा जहरीला ही बन जाएगा। ऐसे पेड़ को जड़ से उखाड़ फेंकना ही उचित है।" अब गौतम बुद्ध ने हँसकर कहा, "राजकुमार ! तुम्हारे कटु व्यवहार से पीड़ित जनता भी यदि तुम्हारे साथ ऐसा ही करे तो तुम्हारी क्या गति होगी ? यदि तुम फलना-फूलना चाहते हो तो स्वभाव के मीठे बनो। इसी में तुम्हारी और सबकी भलाई है।" सुख का एक ही उपाय है, सारे विश्व मे सुख बाँटना शुरू कर दो। 115 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CIEWS ५ गर्व किस पर अहंकार ठीक नहीं | म ही सबका नहीं हमार अलावा भी बहुत कुछ है। एक दिन एक जमींदार महात्मा सुकरात से अपने ऐश्वर्य की डींग हाँकने लगा। सुकरात उसकी बात कुछ देर तो चुपचाप सुनते रहे, फिर उन्होंने दुनिया का नक्शा मँगाया। नक्शा फैलाकर वह बोले, "बता सकते हो, अपना देश इस नक्शे में कहाँ है ?' "यह रहा।" जमींदार ने नक्शे पर उँगली रखी। "और अपना प्रांत?" सुकरात ने फिर पूछा। बड़ी कठिनाई से जमींदार अपने छोटे से प्रांत को ढूँढ सका । सुकरात ने फिर पूछा, “इसमें तुम्हारी जागीर की भूमि कहाँ है ?'' ''श्रीमान ! नक्शे में इतनी छोटी जागीर कैसे बताई जा सकती है !" अब सुकरात ने कहा, "भाई, इतने बड़े नक्शे में जिस भूमि के लिए बिंदु भी नहीं रखा जा सकता, उस नन्ही सी भूमि पर तुम गर्व करते हो ! इस पूरे ब्रह्मांड में तुम्हारी भूमि और तुम कितने से हो, यह सोचो और विचार करो कि यह गर्व किस पर !" 116 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उम्र का सम्मानं (अमेरिकी प्रेसीडेन्ट रुजवेल्ट) उन दिनों रुजवेल्ट अमेरिका के राष्ट्रपति थे। कोई पार्टी हो रही थी। उसमें बहुत प्रतिष्ठित और महत्त्वपूर्ण व्यक्ति आए हुए थे । 'श्रीमती रुजवेल्ट भी वहाँ उपस्थित थीं। एक वृद्ध महोदय अपने स्थान से उठे और श्रीमती रुजवेल्ट के पास जाकर बोले, “मेरी पत्नी आपसे मिलने के लिए बहुत उत्सुक है। यदि आप अनुमति दें तो मैं उसे यहाँ बुला लाऊँ?" श्रीमती रुजवेल्ट ने पहले तो उन वृद्ध महोदय की ओर देखा और फिर पूछा, "आपकी पत्नी की उम्र क्या है?" "यही कोई बयासी वर्ष होगी।" वृद्ध ने उत्तर दिया। "ओह!" श्रीमती रुजवेल्ट उठ खड़ी हुईं और बोलीं, "वे तो मुझसे बारह वर्ष बड़ी हैं। वे क्या मेरे पास आएँगी, मैं ही उनके पास चलती हूँ।" बड़ों की इज्जत करना हमारा फर्ज है। 11 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक गाँव था। उसमें रहने वाले सभी अक्ल के दुश्मन थे। एक रोज बारिश के दिनों में कहीं से गाँव में एक मेंढक आ गया। सारा गाँव उसे देखने के लिए इकट्ठा हुआ; लेकिन कोई भी समझ नहीं पाया कि यह कौन सा प्राणी है। अतः एक ने अटकल लगाई। वह सोच-विचारकर बोला, 'मुझे तो यह घड़ियाल का बच्चा मालूम पड़ता है।" दूसरा तपाक से बोला, “काठ के उल्लू, यह घड़ियाल का नहीं, कछुए का बच्चा है।" तीसरे ने टोका, "कछुए का बच्चा क्या ऐसा होता है ? यह तो हाथी का बच्चा है।" यह सुनकर सब ने सिर पीट लिया। आखिरकार यह तय हुआ कि गाँव के बुजुर्ग मियाँ लाल बुझक्कड़ से पूछा जाए। दो लोग जाकर मियाँजी को बुला लाए। उन्होंने आँखों पर ऐनक पढ़ाकर बड़े गौर से मेंढक को देखा और मुस्कुरा दिए। फिर गर्व से कहा, "इसके आगे चुटकी भर दाने डालो। अगर चुगने लगे तो समझो कि यह काली चिड़िया है, वरना चमगादड़ तो होगा ही।" ज्ञान जीवन की चाबी है। अक्ल दुश्मन ज्ञानी से ज्ञानी मिले, रस की लूटम लूट । अज्ञानी से अज्ञानी मिले, होवे गाथा कूट । Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किसी तोते को एक तोते वाले ने एक वाक्य बोलना सिखाया - अत्र कः सन्देहः? अर्थात् इसमें क्या शक है? तोते वाला उस तोते को बेचने के लिए बाजार ले गया। एक आदमी ने उससे उस तोते का मूल्य पूछा; उसने कहा - सौ रुपये। फिर उसने तोते की परीक्षा लेने के लिए तोते से पूछा - क्या तुम संस्कृत जानते हो? तोता बोला - अत्र कः सन्देहः? फिर उसने पूछा - क्या तुम्हारा मूल्य सौ रुपये है? तोता फिर बोला - अत्र कः सन्देहः? उस आदमी ने सन्तुष्ट होकर तोता खरीद लिया। उसने तोते वाले को सौ रुपये दे दिये। वह उस तोते को घर ले गया और उसे एक नये पिंजरे में रखा। पर जब उसने यह देखा कि तोता तो हर प्रश्न के उत्तर में एक ही वाक्य बोलता है, तो उसने उससे पूछा - क्या तुम एक ही वाक्य जानते हो? अत्र कः सन्देहः? तोता बोला। क्या मैं मूर्ख हूँ, जो मैंने तुम्हे सौ रुपयों में खरीदा? आदमी ने पूछा। अत्र कः सन्देहः? तोते का जवाब तैयार था। उस आदमी को अपनी मूर्खता पर बड़ा क्रोध आया। उसने अपना सिर पीट लिया, पर इसमें उस बेचारे तोते का क्या दोष था? वह तो उतना ही बोल सकता था, जितना उसे सिखाया गया था। अत्र कः बिना विचारेजो करे, सो पीछे पछताय। सन्देहः? काम बिगारे आपणो, जग में होत हँसाय|| इसम क्या कहा अतः उचित तो यही है कि हर काम बहुत सोच समझ कर किया जाय। ॥ वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ।। 111 Jai Ede al Personal use only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईश्वर की खोज में लोग कहाँ नहीं भटकते? एक बार परम ज्ञानी रघुनाथ परचुरे शास्त्री हिमालय की छांव में बनी एक कुटिया में महायोगी आचार्य सत्यव्रत से मिले। उस महायोगी ने उनका परिचय पूछा तो उन्होंने कहा - "आचार्य जी, मेरा नाम हैं महामहोपाध्याय महापंडित रघुनाथ परचुरे शास्त्री विद्यावाचस्पति विद्यावारिधि ।' महायोगी हँस पड़े और कहा, "वत्स, ज्ञान मनुष्य को निर्भार बना देता है परन्तु लगता है उसने तुम्हें लद्दू बना दिया है।'' उन्होंने उनकी उपाधियों और पुस्तकों के भार की ओर संकेत किया था परन्तु वे उसे न समझते हए बोले, "आचार्य जी, मैं प्रभू की खोज में निकला हूँ। परमात्मा को पाने के लिए क्या करूँ ?' महायोगी ने कहा, "तुम जो भार ढो रहे हो उसे सर्वप्रथम उतार फेंको। फिर कभी उसे हाथ न लगाना। क्या तुम प्रेम से परिचित हो? क्या तुम्हारे चरण प्रेम के पथ पर चलते हैं। प्रेम को पाओ। हृदय को टटोलो। वह दिव्य मंदिर है। उसमें प्रभु का निवास है। उसका दर्शन करो। इसके बाद आना। फिर मैं तुम्हें परमात्मा तक ले जाने का आश्वासन दूंगा।" रघुनाथ शास्त्री इन बातों से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अपने ज्ञान की गठरी वहीं छोड़ दी और लौट गए। कई वर्ष बीत गए। महायोगी उनकी खोज में निकले। एक दिन एक गाँव में उनसे भेंट हुई। वे एक कुष्ठ रोगी की सेवा कर रहे थे। महायोगी ने उनसे पूछा, "आप आए नहीं। क्या तुम्हें परमात्मा से नहीं मिलना ?" उन्हें उत्तर मिला, “बिल्कुल नहीं, जिस क्षण मैंने प्रेम पाया उसी क्षण से मैं सभी प्राणियों में उसे ही निहार रहा हूँ - सच है प्रेम ही ईश्वर है।" Jain Education Internal For Piva a seen ON Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुवी, गेम्स, टी.वी. यह सब देते है नेगेटीव एनर्जी, जो आखिर में निराश और सुस्त करती है। सत् साहित्य देता है पोझिटीव एनर्जी, जो हर समय प्रसन्न और मस्त करती है। पसंद आपकी.. Have A Nice Choice Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहानी है कहानी जरा मज़ा ले लो HAVE FUN MULTY GRAPHICS 88888888BLUEL88