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चहक
एक
चिड़िया की....
एक पेड़ पर चिड़िया अपनी मस्ती में चहक रही थी । उस पेड़ के नीचे एक भक्त विश्राम कर रहा था। चिड़िया की चहक सुनकर भक्त बोला, "अहा ! चिड़िया भी भगवान को याद कर रही है।" एक बनिये ने भक्त की यह बात सुनकर पूछा, "सो कैसे ?"
राम
भक्त बोला, "चिड़िया बोल रही है सीता, दशरथ । राम-सीता, दशरथ ।" तब बनिया बोला, "नहीं, यह तो कह रही है - धनिया, मिर्च, अदरक । धनिया, मिर्च, अदरक ।" इतने में एक पहलवान वहाँ आ गया। उसने कहा, "यह चिड़िया तो व्यायाम का महत्त्व बता रही है। यह कह रही है • दण्ड, कुश्ती, कसरत । दण्ड, कुश्ती, कसरत ।”
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वहीं एक बुढिया एक ओर बैठी चरखा कात रही थी। उसने कहा, "अजी ! यह चिड़िया तो कह रही है - चरखा, पूनी, चमरख । चरखा, पूनी, चमरख ।"
उन सबकी इस प्रकार बातें चल रही थीं कि एक मौलवी साहब वहाँ आ गये। उन्होंने कहा,
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"अरे यह चिड़िया तो अपने बनाने वाले खुदा को याद कर रही है। यह कह रही है अल्लाह तेरी कुदरत । अल्लाह तेरी कुदरत ।"
इस प्रकार भिन्न-भिन्न लोगों ने अपनीअपनी समझ के अनुसार भिन्न-भिन्न कल्पनाएँ कीं; पर चिड़िया तो केवल चहक रही थी। उसे इनमें से कोई भी अर्थ मालूम नहीं था।
सच ही है - जाकी रही भावना जैसी । प्रभु मूरत देखी तिन जैसी ॥
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