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________________ एक गाँव में एक आदमी रहता था। उसे लोग डिट्टा कहकर बुलाते थे। वह कुछ भी पढ़ा लिखा नहीं था, इसलिए बेकार था । एक बार वह किसी दूसरे गाँव गया। गाँव के बाहर उसने एक गधा देखा, जो दूब चर रहा था। जब वह गाँव में पहुँचा तो उसे एक कुम्हार दिखाई दिया, जो अपना गधा खो जाने के कारण परेशान था । कुम्हार के पूछने पर डिट्टा ने बताया कि तुम्हारा गधा गाँव के बाहर है। कुम्हार वहाँ गया तो उसे गधा मिल गया। प्रसन्न होकर कुम्हार डिट्टा को अपने घर ले गया। जिस कमरे में डिट्टा बैठा था, उसके पास के कमरे में कुम्हारिन रोटी बना रही थी। रोटी सिकने पर राख झाड़ने के लिए वह उस पर ठपका लगाती । डिट्टा ने ठपके गिन लिए। जब वह भोजन करने बैठा, तो उसने कुम्हार से कहा कि आज इस चूल्हे पर पन्द्रह रोटियाँ बनी हैं। रोटियाँ गिनने पर संख्या सही निकली। डिड्डा का भाग्य ठाकुर अब डिट्टा अपनी भविष्यवाणी के लिए सारे गाँव में प्रसिद्ध हो गया। गाँव के ने उससे अपनी ठकुराइन के हार के बारे में पूछा । डिट्टा ने कहा इसका पता कल लगेगा। फिर वह ठाकुर की हवेली में ही सो गया। रात को लेटे-लेटे उसने नींद को बुलाया - आ निद्रा आ । निद्रा नामक दासी ने हार चुराया था। अपना नाम सुनकर वह डर गई। उसने तुरन्त वह हार डिट्टा को दे दिया। हार पाने के बाद ठाकुर ने अपनी मुट्ठी में मरा हुआ डिट्टा बन्द कर पूछा- बताओ ! इस मुट्ठी में क्या है ? घबरा कर डिट्टा बोला दूब चरन्ता गदहा देखा, ठपके रोटी पाई । हार मिला निद्रा से अब तो डिट्टा मौत आई ।। बात ठीक निकल जाने के कारण ठाकुर ने डिट्टा को बहुत बड़ा इनाम दिया। इसे कहते हैं भाग्य । 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003221
Book TitleStory Story
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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