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________________ एक बार एक जंगल में आग लगी। धू-धू करके पेड़ जलने लगे। एक पेड़ की शाखा पर कुछ पक्षी बैठे हुए थे। पेड़ जल रहा था, धुआँ निकल रहा था। पंख न होने से पेड़ का उड़ना सम्भव नहीं था, पर पक्षी तो उड़ सकते थे और आग की लपटों से अपने को बचा सकते थे; पर वे उड़ नहीं रहे थे। पेड़ ने उन पक्षियों से कहा - दव लागी निकसत धुआँ, सुण पंछीगण बात। हम तो जलते पाँख बिनु, तुम क्यों ना उड़ि जात ? पक्षियों ने जब यह सुना, तो उन्होंने आँखों में आँसू ला कर पेड़ से कहा – पान बिगाड़े फल भखे, उड़ि उड़ि बैठे डाल । तुम जलते हम उड़ि चलें, जीना कितने काल ? 1 और वे पक्षी पेड़ पर ही बैठे रहे। अपने उपकारों को पक्षी भी नहीं भूलते; फिर मनुष्य कैसे भूल सकता है ? जो किसी मित्र के उपकारों को भूल जाये, उसमें मनुष्यता ही नहीं होती, फिर मित्रता भला क्या होगी ? ॥ कयण्गुणा होयव्वं ।। तुम जलतेहम उडि चलें सच्चा मित्र वही है, जो सुख में ही नहीं दुःख में भी साथ रहे। दुःख मिटा सकता हो तो मिटाये; अन्यथा मित्र के साथ स्वयं भी हँसते हुए दुःख भोगे।
SR No.003221
Book TitleStory Story
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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