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________________ T आनद की साधना एक व्यक्ति ने एक अबोध शिशु को घास पर खेलते देखा। वह बहुत आनंदित था। उसके पास पेड़ से पत्ता गिरता, वह खुश हो जाता। चहकती चिड़िया उसके पास से गुजरती, वह प्रसन्न हो कर किलकारी भरने लगता। यहाँ तक कि बहती नदी में बहते किसी पशु को देखकर वह हर्षविभोर होकर तालियाँ बजाने लगता। आखिरकार इस बच्चे के निरन्तर आनंद का क्या कारण है? उस व्यक्ति ने सोचा और अपना सवाल लेकर गौतम बुद्ध के पास गया, समाधान के लिए। भगवान बुद्ध ने कहा, ''हर स्थिति में शिशु के हर्षित होने का सबसे बड़ा कारण है, उसका निर्मल पवित्र मन। इसलिए सभी वस्तुओं में समान रप से सौंदर्य का अनुभव कर वह अत्यधिक आनंदित होता है। अगर हम बड़े भी इस बात को समझ लें तो हम भी निर्मल पवित्र मन से आनंद साधना की पराकाष्ठा को प्राप्त हो सकते है।" ।। आज्ञा तु निर्मलं चित्तं कर्तव्यं स्फटिकोपमम् ।। 13 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003221
Book TitleStory Story
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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