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हम सभी, ईश्वर से दया की प्रार्थना करते हैं और वही प्रार्थना हमें दूसरों पर दया करना भी सिखाती है |
पंजाब केसरी का दंड
पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह अपने अंगरक्षकों के साथ कहीं बाहर जा रहे थे। वे अपने विचारों में तल्लीन थे कि पत्थर का टुकड़ा बड़े जोरों से आकर उनके सिर पर लगा। जिधर से पत्थर आया था, अंगरक्षक उधर दौड़े। थोड़ी ही देर बाद उन्होंने एक बुढ़िया को पकड़कर महाराजा के सामने हाजिर किया। बुढ़िया थर थर काँप रही थी। आँसू भरकर बोली, मेरा बच्चा कल से भूखा है। घर में खाने को कुछ नहीं था। पत्थर मैंने बेर के पेड़ को मारा था, ताकि कुछ बेर बटोरकर उसका पेट भर सकूँ । वही पत्थर भूल से आपको आ लगा। मैं बेकसूर हूँ, महाराज, मुझे क्षमा कर दें। महाराज ने कुछ पल सोच-विचार किया, फिर बुढ़िया से बोले, माँ! यह लो एक हजार रुपए। घर जाकर बच्चों को खाना खिलाओ और पढ़ाओ। यह देख अंगरक्षक अवाक् रह गए। महाराजा रणजीत सिंह बोले, निर्जीव वृक्ष जब पत्थर लगने पर मीठे-मीठे फल दे सकते हैं तो मनुष्य होते हुए भी पंजाब केसरी कहा जाने वाला रणजीत सिंह क्या इस वृद्धा को खाली हाथ लौटा देता!
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