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परोपकार का फल
एक वृद्ध बैठा हुआ कुछ वृक्षों के पौधे रोप रहा था। तभी राजा की सवारी गुजरी। राजा ने वृद्ध से पूछा, "यह क्या कर रहे हो, बाबा ?"
"आम के पौधे लगा रहा हूँ।" वृद्ध ने जवाब दिया।
"ये आम के पौधे कब बड़े होंगे और कब इनमें फल लगेंगे, यह बता सकते हो ?'' राजा ने पूछा।
"इसमें कई बरस लग जाएँगे। माफ करना, बाबा! क्या तुम इतने बरसों तक इन पेड़ों के फल चखने के लिए जिंदा रहोगे ?"
वृद्ध हँसा और बोला, "मैं न चख सका तो क्या, कोई और तो चख सकता है।"
उस वृद्ध की बात सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुआ । खुश होकर तुरंत उसने उस वृद्ध को पचास स्वर्ण मुद्राओं का पुरस्कार दिया । वृद्ध ने हँसकर कहा, "देखो, राजन् ! इनके फलों के लिए मुझे इतने वर्षों तक इंतजार भी नहीं करना पड़ा। इन स्वर्ण मुद्राओं के रूप में मीठे फल अभी ही प्राप्त हो गए !"
पर चंदन की भाँति घिसे जाएंगे मिट जाएंगे,
परंतु चारों दिशाओं को मनभावन महकायेंगे।
KOK परोपकार का फल मीठा होता है।
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