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दो मित्र थे। उनमें एक कुम्हार था। वह मिट्टी के तैयार बर्तन गाँव-गाँव बेचने जाता। दूसरा था माली। वह भी बाग में उगी सब्जी टोकरी में भरकर गाँव-गाँव बेचता फिरता। दोनों ने सोचा-क्यों न हम एक ऊँट खरीद लें। ऊँट पर एक ओर बर्तन तथा दूसरी 'ओर सब्जी लादकर बाजार जाया करेंगे।
गड्ढा खोदता है, स्वयं ही उसमें गिरता है।
सोचने भर की देर थी कि दोनों ने मिलकर एक ऊँट खरीद लिया। अब वे ऊँट पर अपनाअपना सामान लादकर बाजार जाने लगे।
देखते-देखते दोनों की आमदनी बढ़ गई ।एक जो टसरों के लिए दिन जब वे ऊँट पर अपना-अपना माल लादकर
मंडी में बेचने ले जा रहे थे कि हरी-हरी ताजा सब्जी को देखकर ऊँट का मन ललचा आया। उसने अपनी लंबी गरदन तिरछी की और सब्जी से मुंह भर लिया। कुम्हार ऊँट की हरकत देख रहा था । पर उसने सोचा, कौनसा मेरा नुकसान हो रहा है - और आगे जाकर घास-दाना तो खिलाना ही पड़ेगा। दाम और खर्च होंगे, सो चरने दो। ऊँट मजे से गरदन घुमा-घुमाकर सब्जी चरता रहा। सब्जी खा लेने से एक तरफ का बोझा कम हो गया, जिससे दूसरी तरफ रखे बर्तन धीरे-धीरे नीचे खिसकने लगे और कुछ। देर बाद जमीन पर गिरकर चूर-चूर हो गए।
अब तो कुम्हार मन-ही-मन बहुत पछताया। उसने सोचा, कहाँ तो मैं माली का नुकसान चाहता था, मेरा तो उससे अधिक नुकसान हो गया। अब मैं कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा।।
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