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एक महात्मा से एक धनिक ने कहा, "महात्मन्, आप मुझसे जितना धन चाहें, ले लें, लेकिन सुख और शांति को प्राप्त करने की राह बता दें।" अँधेरा होने पर महात्मा जी ने धनिक से कहा, "मेरा कमंडलु खो गया है, मैं उसे खोजने के लिए बाहर जा रहा हूँ।'' यह कहकर महात्मा जी कुटी से बाहर चंद्रमा के प्रकाश में कमंडलु ढूँढने लगे। धनिक शिष्य पीछे-पीछे जाकर बोला, “महात्मन्, आपने कमंडलु तो कुटी में रखा था, फिर आप उसकी खोज बाहर क्यों कर रहे हैं ?'' महात्मा जी ने उत्तर दिया, "प्रियवर, कुटी में तो अँधेरा है, वहाँ कमंडलु कैसे ढूँढ़ ? यहाँ प्रकाश है, इसलिए यहीं कमंडलु ढूँढ रहा हूँ।" धनिक को इस बात पर हँसी आई। वह बोला, "महात्मन्, कुटी में प्रकाश कीजिए, बाहर के प्रकाश से भीतर तो सहायता नहीं मिलेगी।'' तभी महात्मा जी ने कहा, ''भद्र ! यही तो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। बाहर की धन-सामग्री से भीतर मन में प्रकाश कैसे हो सकता है ?"
ज्यों तिल मांहि तेल है, ज्यों चकमक में आग । तेरा सांई तुझ में झांक सके तो झांक ||
शांति की खोज
शांति की खोज में हम चाहे पूरे संसार का चक्कर लगा आएँ|
अगर वह हमारे भीतर नहीं है तो कहीं नहीं मिलेगी।
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