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किसी राज्य के खजांची पर यह शक किया गया कि वह राजकोष से हीरे-मोती चुराकर अपने घर के तहखाने में छिपाकर रखता है। राजा ने जब यह अफवाह सुनी तो वह खजांची के घर जाँच-पड़ताल के लिए पहँचा और तहखाने का दरवाजा खोलने की आज्ञा दी। तुरंत तहखाने का दरवाजा खोल दिया गया। किंतु यह क्या ! वहाँ जो कुछ था, देखकर सब हैरान रह गए। तहखाने के भीतर एक खाली कमरा था, जिसमें एक टूटी-फूटी मेज पड़ी थी और उस पर एक बाँसुरी रखी हुई थी। बाँसुरी की बगल में ही एक थैला रखा था। साथ में एक चरवाहे की लाठी भी रखी थी। उस कमरे में एक खिड़की थी, जहाँ से हरी-भरी घाटी का ढलान दिखाई पड़ रहा था, जो किसी स्वर्ग का हिस्सा प्रतीत होता था।
खजांची ने कहा, "मैं बचपन में अपनी भेड़-बकरियाँ चराते हुए कितना प्रसन्न था, तभी आप मुझे महल में ले आए और आपने मुझे खजांची बना दिया। पर मैं अपने पुराने दिनों को नहीं भुला पाया। हर रोज मैं इस तहखाने में आता हूँ और बाँसुरी की धुन पर उस समय को दोहराता हूँ जो गरीबी के होते हुए भी कितने सुख के थे, शांति के थे। इस महल में सारी शान-शौकत के बाद भी मुझे वह सुख नसीब नहीं है।"
धनवान होना ही सूखी होना नहीं है |
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न कर्मणा न प्रजया धनेन ।।