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मुहम्मद साहब रोज अपने घर से मस्जिद में नमाज पढ़ने जाया करते थे। मस्जिद के रास्ते में एक दुष्ट बुढ़िया रहती थी। उस बुढ़िया को उनसे इतनी चिढ़ थी कि जब वे उसके घर के सामने से गुजरते तो वह उनके सिर पर कूड़ा फेंक देती।
एक दिन उनके सिर पर कूड़ा नहीं गिरा। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। नमाज पढ़कर लौटे तो वे बुढ़िया का हाल-चाल जानने के लिए उसके घर पहुँच गए। वहाँ उन्होंने देखा कि बुढ़िया खाट पर बीमार पड़ी है।
मुहम्मद साहब ने उसका हाल पूछा, उसे तसल्ली दी और स्वयं उसकी सेवा में लग गए। जब तक बुढ़िया स्वस्थ नहीं हो गई, वे वहाँ से नहीं हटे।
स्वस्थ होने पर बुढ़िया ने अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा माँगी और उसी दिन से उनकी अनुयायी बन गई।
कूड़ा
जीतो मगर प्यार से... न तलवार की धार से...
प्यार से नफरत को भी दूर किया जा सकता है।