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संब
काट
जहाँ मेहनत होती है
वहाँ फल भी होता है।
बूढ़ा दादा अपने घर के सामने सेब के पेड़ की छाया में बैठा हुआ अपने पोतों को लाल-लाल पके सेब खाता हुआ देख रहा था। बच्चे सेब खाने में लगे हुए थे, पर उनमें से कोई भी इन बढ़िया सेबों की तारीफ नहीं कर रहा था। बूढ़े दादा ने बच्चों को पास बुलाकर कहा, "अब मैं तुम्हें बताऊँगा कि यह सेब का पेड़ यहाँ कैसे आया।"
बच्चे ध्यान से सुनने लगे।
"करीब पचास साल पहले, एक दिन मैं इसी बंजर जमीन पर यों ही उदास खड़ा हआ अपने पड़ोसी से अपनी गरीबी का रोना रो रहा था। पड़ोसी बड़े भले आदमी थे। सुनकर बोले, 'अगर तुम सचमुच रुपए चाहते हो तो जहाँ इस वक्त तुम खड़े हो ठीक उस जमीन के नीचे सौ से भी ज्यादा रुपए गड़े हुए हैं। चाहो तो खोद निकालो।'
"उस समय मैं छोटा था। बिना ज्यादा सोचे-समझे उसी रात को मैंने वह जगह खोद डाली। पर काफी गहरे तक खोद डालने के बावजूद भी मेरे हाथ कुछ नहीं लगा। सुबह जब मेरे पड़ोसी ने वह गड्ढा देखा तो ठहाका मारकर हँस पड़े। फिर वे बोले, 'मैं तुम्हें सेब का यह नन्हा पौधा इनाम में दे रहा हूँ। उसे उस गड्ढे में रोप दो। कुछ सालों बाद तुम पाओगे कि तुम्हारे रुपए तुम्हें मिल गए हैं।'
____"मैंने पौधा लगा दिया। शीघ्र ही वह बढ़ने लगा और कुछ सालों के भीतर बहुत बड़ा पेड़ बन गया, जो तुम अपने सामने देख रहे हो। इस पेड़ के मीठे सेबों की आय मुझे साल भर में सौ रुपए से ऊपर बैठती है।''
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