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दुर्बल शरीर मन को भी दुर्बल बना देता है।
एक बार गौतम बुद्ध के एक शिष्य ने भूख से व्याकुल एक भिखारी को धरती पर तड़पते देखा तो बोला, "अरे मूर्ख ! इस तरह धरती पर क्यों पड़ा है ? भगवान् की शरण में चल । तेरे मन को शांति मिलेगी।"
पर भिक्षु की बात मानो उस भिखारी ने सुनी ही नहीं । भिक्षु ने गौतम बुद्ध से जाकर सारी बात कही। गौतम बुद्ध स्वयं चलकर भिखारी के पास गए। उसकी दशा देखकर उसके लिए भोजन मँगाया और फिर प्यार से उसे खिलाया। शिष्य को बहुत आश्चर्य हुआ । वह बोला, “भगवन्, आपने इस मूर्ख को कुछ उपदेश तो दिया ही नहीं । भोजन कराके आराम से सुला दिया। भला ऐसे जीवोद्धार कैसे होगा ?"
गौतम बुद्ध मुस्कुराए और बोले, "सौम्य, यह भिखारी कई दिनों का भूखा था। भूखा मनुष्य भला धर्म का क्या पालन करेगा ! भूखे को भोजन कराना ही सबसे पहला और बड़ा धर्म है। जब यह स्वस्थ हो जाएगा, तभी तो ज्ञान और धर्म की बातें सुनेगा।”
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भूखे
का धर्म
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