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पीड़ा का कारण
_ कुरुक्षेत्र का मैदान। भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे हैं।
मगर उनके प्राण नहीं निकल रहे हैं। अर्जुन ने तीर मारकर पाताल फोड़ डाला। पाताल के झरने का पवित्र पानी भीष्म पितामह पर छिड़का, फिर भी उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली। आसपास पांडव खड़े हैं। भीष्म कातर दृष्टि से कृष्ण को निहार रहे हैं। श्रीकृष्ण ने कहा, 'आपने पाप देखा है, दादा
इसीलिए यह यातना भोग रहे हैं।" भीष्म तो गंगाजल से पवित्र हैं फिर भी ? श्रीकृष्ण ने आगे कहा, "कौरवों की भरी सभा में जब दुःशासन द्रौपदी का चीर खींच रहा था, उस वक्त आप भी वहाँ उपस्थित थे, दूसरों की तरह मूकदर्शक थे। न आप दुःशासन का हाथ पकड़ सके, न दुर्यो धन को ललकार सके।"
पाप देखना भी पाप में भागीदार बनने से कम नहीं है।
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