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________________ गरीब विधवा शीला रोज अपनी दिनचर्या शुरू करने से पूर्व ईश्वर की प्रार्थना करती थी। एक दिन प्रार्थना करते समय उसने एक पंक्ति पढ़ी, जो दूसरों की मदद करने का संदेश देती थी। शीला यह संदेश पढ़कर भाव-विभोर हो उठी। मन-हीमन हाथ जोड़ ईश्वर से वह बोली, 'हे भगवान्, मैं दूसरों की क्या मदद कर सकती हूँ ? मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। अपने चरखे मैं गुजारे भर का भी नहीं कमा पाती। उस पर सर्दी के दिन आ रहे हैं। ठंड से मेरी उँगलियाँ सिकुड़ जाती हैं, तब मैं चरखा भी नहीं चला सकती । यहाँ तक कि मैं अपने कमरे का किराया तक नहीं चुका पाती । मैं खुद दुःखी हूँ, दूसरों की सहायता किस प्रकार करूँ ?' तभी उसके मन ने तर्क-वितर्क किया। जो कुछ मैंने पढ़ा वह गलत नहीं हो सकता। मैं अवश्य दूसरों की कुछ-न-कुछ मदद कर सकती हूँ । उसे सहसा खयाल आया। उसकी एक सहेली बीमार पड़ी है। रुपए-पैसे से नहीं, पर सेवा-शुश्रूषा से तो मैं उसकी सहायता कर सकती हूँ। P हो जाना । अपने से परास्त सबसे शानदार विजय है अपने पर विजय प्राप्त करना और सबसे शर्मनाक बात है 86 Jain Education International शीला ने दो सेब खरीदे और अपनी उस बीमार सहेली के घर जा पहुँची। सहेली ने उसे देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। वह प्रसन्न होकर बोली, "मेरी प्यारी शीला, मैं अभीअभी तुम्हें याद कर रही थी। भाग्यवश मेरे हिस्से में एक छोटी सी जायदाद आई है। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरी देखरेख करने के लिए अब मेरे पास रहो। तुम्हारा सारा खर्चा मैं उठाऊँगी। किसी भी चीज के लिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है।" सहेली का प्रस्ताव सुन शीला खुश हो गई। उदारता का बदला (दो सहेली) For Private & Personal Use Only www.ainelibra-org
SR No.003221
Book TitleStory Story
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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