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कलकत्ता की एक सड़क पर घोड़ागाड़ी दौड़ी जा रही थी। इस घोड़ागाड़ी में एक स्त्री अपने बच्चे के पास बैठी हुई थी। अचानक घोड़ा बिदक गया। कोचवान छिटककर दूर जा गिरा। घोड़ागाड़ी में बैठी स्त्री सहायता के लिए चीख-पुकार मचाने लगी।
वह कलकत्ता की भीड़ सड़क थी और उस समय भी लोगों के ठट-के ठट सड़कों के
दोनों ओर जुड़े थे। पर किसी की भी इतनी साहसी हिम्मत नहीं हुई कि आगे बढ़कर घोड़े को वालक काबू कर ले। तभी अचानक भीड को तेजी
से चीरता बारह-तेरह वर्ष का एक लड़का सड़क पर आया और उछलकर घोड़े की पीठ पर बैठने की कोशिश करने लगा। पर घोड़े ने उसे गिरा दिया। उसके हाथ, पैर, घुटने रगड़ खाकर बुरी तरह छिल गए। वह खून से लथपथ हो उठा, फिर भी उसने हिम्मत नहीं - हारी। उसने बार-बार कोशिश की और अंतर में उसे सफलता मिली। वह छलाँग मारकर घोड़े पर सवार हो गया और उसे काबू करने में सफल हो गया। तब कहीं घोड़ागाड़ी पर । बैठी स्त्री और बच्चे की जान में जान आई। क्या तुम जानते हो, यह साहसी बालक कौन था? यह था नरेंद्र, जो बड़ा होकर स्वामी विवेकानंद के
नाम से संसार में Lov प्रसिद्ध हुआ।
परोपकार
के लिये साहस प्रगति की निशानी है।
|| परोपकार: कर्तव्य: प्रागैरपि धनैरपि ।।
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