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।। उववूह थिरीकरण... ||
प्रोत्साहन
से मिलता है साहस महाभारत के युद्ध के समय की एक घटना है। पांडवों के मामा, माद्री के भाई शल्य राजा, कर्ण के सारथी थे। श्री कृष्ण ने उनसे कहा, "तुम हमारे विरुद्ध जरुर लड़ना पर मेरी एक बात मानना। जब भी कर्ण प्रहार करे तब उससे कहना 'भला, ऐसा भी कोई प्रहार होता है। तुम प्रहार करना जानते ही नहीं।'' इन बातों को तुम दोहराते रहना। शल्य ने श्रीकृष्ण की बात मान ली। जब युद्ध प्रारम्भ हुआ तब कर्ण के प्रत्येक प्रहार पर शल्य ने कहा, "तुम प्रहार करना जानते ही नहीं। भला ऐसा भी कोई प्रहार होता है ?" उधर अर्जुन के प्रत्येक प्रहार पर श्री कृष्ण कहते, "वाह, क्या प्रहार है! क्या निशाना साधा है !" इस तरह अर्जुन प्रोत्साहित होने लगे
और कर्ण हतोत्साहित । कर्ण के हतोत्साह से दुर्योधन का बल क्षीण हो गया, उसकी शक्ति टूट गई। दूसरी तरफ श्रीकृष्ण के प्रोत्साहन से पांडवों की शक्ति बढ़ती गई।
माता - पिता को चाहिए कि, वे अपने बच्चों में हीन भावना न भरें, यथोचित प्रशंसा करें, उन्हें धर्म में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे अभी उद्देश्य की सिद्धि होगी।
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