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मक्खियाँ और शहद ।। खगमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा ।।
एक बनिए की दुकान पर रखी हुई शहद की बरनी उलट गई। चारों ओर से भिनभिनाती हुई मक्खियों ने बिखरे शहद पर धावा बोल दिया। सब कुछ भूलकर वे शहद चाटने में इतनी मशगूल हुई कि उनके पैर शहद में चिपक गए। अब उनके लिए उड़कर लौट पाना नामुमकिन था। तब एक मक्खी ने रूआँसी आवाज में कहा, "कितनी मूर्ख हैं हम ! कुछ पल के मौजमजे के लोभ में हमने अपनी जान खतरे में डाल दी।"
अल्प समय का भी विषयसुख दीर्घ काल के दुःख का आमंत्रण है |
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