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________________ कारुण्यपुष्यहृदयम मेरे लिए लँगोटी ही काफी है। गांधीजी उत्कल की यात्रा कर रहे थे। यात्रा में उन्होंने एक ऐसी गरीब स्त्री को देखा जो फटा हुआ मैला कपड़ा पहने थी। गांधीजी ने उससे कहा, "बहन ! तुम अपने कपड़े क्यों नहीं धोती? इतना आलस्य तो तुम्हें नहीं करना चाहिए।'' स्त्री ने सिर नमा कर कहा, "बापूजी ! मेरे पास पहनने के लिए इसके अलावा कोई दूसरा कपड़ा ही नहीं है। फिर धोऊँ कैसे?'' यह सुनकर बापू की आँखें डबडबा आईं, "हाय! आज मेरी भारत माता के पास पहनने को चिथड़ा भी नहीं है!" गांधीजी ने उसी समय प्रतिज्ञा की, "जब तक देश स्वतंत्र नहीं होता और गरीब-से-गरीब को भी तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं मिलता तब तक मैं कपड़े नहीं पहनूँगा। लाज ढकने के लिए मेरे लिए लँगोटी ही काफी है।" महापुरुष दूसरों का दुःख-दर्द अपनाकर चलते हैं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003221
Book TitleStory Story
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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