________________
पविन्न हाथ सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी एक बार घूमते-फिरते एक बहुत बड़े जमींदार के घर पहुंचे। वह जमींदार उनका शिष्य था। जमींदार हाथ जोड़े गुरुजी की सेवा के लिए खड़ा था। तभी गुरुजी ने पीने के लिए पानी माँगा। जमींदार ने अपने बड़े लड़के से कहा, "बेटा, गुरु की सेवा का अवसर बड़े भाग्य से मिला है। तुम अपने हाथ से पानी लाकर गुरुजी को पिलाओ।"
लड़का तुरंत पानी लेने दौड़ा। पानी का पात्र जब उसने गुरु जी की ओर बढ़ाया तो उन्होंने पूछा, “बेटे, तुम्हारे हाथ तो बड़े सुंदर लगते हैं। इन हाथों से तुम मुझे ही पानी पिला रहे हो या और भी किसी को पिलाते हो ?" लड़के के उत्तर देने के पूर्व ही जमींदार बोल उठा, "महाराज, इसकी जिंदगी में यह पहला ही मौका है, जब यह अपने हाथ से पानी लाया है। आप इसके हाथ का पानी पी लेंगे तो यह धन्य हो जाएगा।"
पर गुरुजी ने उसके हाथ का पानी नहीं पिया। बोले, ''मैं तुम्हारे अपवित्र हाथों से पानी नहीं पीऊँगा।" लड़के ने कहा, “पर महाराज ! मैं इन हाथों को अच्छी तरह धोने के बाद आपके लिए पानी लाया हूँ।'' गुरु गोविंद सिंह ने उत्तर दिया, “बेटा, हाथ तो पवित्र होते हैं दूसरों की सेवा करने से । वह तुमने कहाँ की ? पहले दूसरों की सेवा करो, तभी मैं तुम्हारे हाथ से पानी पीऊँगा।"
पवित्रता मिलती है परोपकार से...
हर खुशी मिलती है परोपकार से.. ।। परोपकारो हि पावित्र्यम् ।। | परोपकार करते रहो।
41