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अहंकार
स्वामी शंकराचार्य
समुद्र के किनारे अपने शिष्यों से वार्तालाप कर रहे थे। एक शिष्य ने चापलूसी भरे शब्दों में कहा, "गुरुदेव ! आपने इतना अधिक ज्ञान कैसे पाया, यह सोचकर मुझे आश्चर्य होता है। मेरे विचार से दुनिया में आपसे बढ़कर ज्ञानी दूसरा नहीं है।" शंकराचार्य मृदु हँसी हँसे । फिर बोले, "गलत सोचते हो तुम। मुझे तो अभी अपने ज्ञान में दिन-प्रतिदिन वृद्धि करनी है।" उन्होंने अपने हाथ का दंड पानी में डुबोकर बाहर निकाला और उसके भीगे हुए छोर को शिष्य को दिखाते हुए आगे कहा, "इस दंड को जल में डुबोने पर इसने मात्र इस बूँद को ही ग्रहण किया। यही बात ज्ञान को लेकर भी है। " शिष्य उनका उत्तर सुनकर बड़ा लज्जित हुआ । हम भी इस कि तरह अलपज्ञ है।
॥ को नु विज्ञानदर्पः ॥
केवलज्ञान के सागर की
कभी ज्ञान का अहंका
एक बिंद भी नहीं
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