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प्रभ का ध्यान
|| अरिहंतना ध्याने अरिहंत बनी जशो ।।
एक ऋषि दत्तात्रेय, जो अभित्रषि के पुत्र थे और विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक माने जाते हैं, भिक्षा मांगने एक गाँव में गए। वहाँ उन्होंने एक लड़की को देखा। वह लड़की चावल कूट रही थी। वह एक हाथ से पकड़े मूसल से चावल कूटती थी और दूसरे हाथ से ओखली में पड़े चावल को चलाती जा रही थी। थोडी देर में उसका छोटा भाई रोता हुआ उसके पास आया। लड़की ने चावल कूटना बंद नहीं किया और मीठी-मीठी बातों से उस बच्चे को चुप करा दिया। वाह, वह एक हाथ से मूसल चलाती और दूसरे हाथ से चावल चलाती और बातों से बच्चे को बहलाती। गजब का ध्यान था उसका! मूसल से हाथ में चोट नहीं लगी और बच्चा भी बाहर गया।
दत्तात्रेय ऋषि ने कहा, "धन्य है यह बालिका। एक शिक्षा मिली कि - कुछ भी काम करते हुए परमात्मा पर ध्यान लगाया जा सकता है।
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