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________________ एक बार कबीर साहब बस्ती में घूम रहे थे, तब उनके कानों में चलती चक्की की ध्वनि सुनाई दी। वे वहीं खड़े रह गये और इस चक्की की क्रिया को देखने लगे। अनाज के दाने ऊपर से डाले जा रहे थे और चक्की के दोनों पाटों के बीच पिसे जा रहे थे। यह देखकर कबीर साहब से न रहा गया। उन्होंने उसी समय एक दोहा बनाया - चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय। दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।। यह दोहा दो अर्थों वाला है। यह अर्थ तो स्पष्ट ही है कि चलती चक्की के दोनों पाटों के बीच आया हुआ अनाज का दाना सुरक्षित नहीं रहता। दूसरा अर्थ इस प्रकार है - पृथ्वी और आकाश इन दोनों पाटों के बीच में पैदा होने वाले सभी प्राणी मरते हैं। दुःख में पिस जाते हैं। यह सुनकर चक्की पीसने वाली बुढ़िया ने उत्तर दिया - चक्की चले तो चलने दे, पिस पिस मैदा होय। कीले से लागा रहे, बाल न बाँका होय॥ चलती चक्की में भी अनाज का जो कण कीले के पास लगा रहता है, उसका कुछ नहीं बिगड़ता; उसी प्रकार इस संसार में जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है, वह दुःख से बच जाता है। कोले से लागा रहे... जमीन और आसमान के बीच नाना प्रकार का दुःख भोगने वाले प्राणी यदि धर्म का आश्रय लें, तो वे दुःख और मृत्यु से बच जाते हैं। इसलिए सदा धर्म का आश्रय लेना चाहिये | || धर्म एवामृतं परम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003221
Book TitleStory Story
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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