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सच्ची शिक्षा
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जिस के अनुसार चल कर जीवन पवित्र बनता है |
वही ज्ञान वास्तविक है,
महाभारत का युग था। हस्तिनापुर के सभी राजकुमार-कौरव और पांडव गुरु से शिक्षा पाते थे। एक दिन गुरुजी ने पाठ पढ़ाया, "कभी क्रोध न करो। सदा सत्य बोलो।" अगले दिन सबने अपना पाठ सुना दिया। परंतु युधिष्ठिर ने कहा, "मुझे अभी याद नहीं हुआ।" गुरुजी बोले, "ठीक है, कल सुना देना।" किंतु दूसरे दिन भी युधिष्ठिर नहीं सुना पाए । उनका वही उत्तर था। इस प्रकार कई दिन बीत गए। अब तो गुरुजी गुस्से में पागल हो उठे और उनको खूब पीटा। पिटाई के बाद युधिष्ठिर ने गुरुजी के पैर पकड़ लिये। बोले, "गुरुदेव ! आपने मुझे मारा, फिर भी मुझे क्रोध नहीं आया। अतः पाठ का पहला भाग 'कभी क्रोध न करो' मुझे अब याद हो गया है; परंतु पाठ का दूसरा भाग ‘सदा सत्य बोलो' अभी मुझे याद नहीं हुआ। अभ्यास कर रहा हूँ।" गुरुजी ने ये शब्द सुने तो वे समझ गए। असली पढ़ाई वही है जिसका पालन किया जाए, अन्यथा पुस्तक पढ़ने से क्या लाभ ?
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