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।। अतृणे पतितो वहि: स्वयमेवोपशाम्यति ।।
संत की
महानता दक्षिण भारत में तुकाराम नाम के एकत्र संत हैं। वे अत्यंत निर्धन थे। उनके पास एक छोटा खेत था। एक बार उन्होंने उस खेत में गन्ने बोए। जब गन्ने तैयार हो गए तो एक दिन उन्होंने गन्नों को काटा और गठरी बाँधकर अपने घर की ओर रवाना हुए। रास्ते में कई बच्चे उनके पीछे पड़ गए।
और गन्ना माँगने लगे। उन्होंने सभी बच्चों को गन्ना बाँट दिया। उनके पास सिर्फ एक गन्ना बचा, जिसे लेकर वे घर लौटे। उनकी पत्नी का नाम रखुमाई था । वह बड़ी गुस्सैल और चिड़चिड़े स्वभाव की थीं। __ जब रखुमाई ने देखा कि तुकाराम खेत से केवल एक गन्ना लेकर लौटे हैं, तो वे सारी बातें समझ गई। उन्होंने आव देखा न ताव, तुकाराम से गन्ना छीनकर उन्हीं की पीठ पर जोर से दे मारा । पीठ पर पड़ते ही गन्ने के दो टुकड़े हो गए।
संत तुकाराम तो पूरे संत ही थे, क्रोधित होने के बदले वे हँसते हुए बोले, 'कितनी अच्छी हो तुम ! हम दोनों के लिए गन्ने के दो टुकड़े मुझे करने पड़ते, पर यह काम तुमने मेरे बिना कहे ही कर दिया।"
ईंट का जवाब पत्थर से देने पर झगड़े की आग और भड़कती है।
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