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TET
ETC
પ્રય જીર્ણોદ્ધાર
-: સંયોજક :શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર શા. વિમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવના હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૩૮૦૦૦૫. - મો. ૯૪૨૬૫ ૮૫૯૦૪ (ઓ.) ૦૭૯-૨૨૧૩૨૫૪૩ ;
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“અહો શ્રુતજ્ઞાન” ગ્રંથ જીર્ણોધ્ધાર ૧૦૯
જૈન લેખ સંગ્રહ ભાગ-૧
: દ્રવ્ય સહાયક :
1
%
પૂજ્ય બાપજી મ.સા.ના સમુદાયના
પૂ. આ. શ્રી નરરત્નસૂરીશ્વરજી મ.સા.ના આજ્ઞાવર્તિની
પૂ. સાધ્વીજી શ્રી જયવંતાશ્રીજી મ.સા. તથા અન્ય ઠાણાની પ્રેરણાથી
સુરત અઠવાગેટ પૌષધ શાળા, સૂરત જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી
: સંયોજક :
શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર
શા. વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-380005 (મો.) 9426585904 (ઓ.) 22132543
ઈ.સ. ૨૦૧૧
સંવત ૨૦૬૭
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"Aho Shrut Gyanam"
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પૃષ્ઠ
238
286
54
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અહો શ્રુતજ્ઞાનમ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર- સંવત ૨૦૬૫ (ઈ. ૨૦૦૯- સેટ નં-૧ ક્રમાંક પુસ્તકનું નામ
કર્તા-ટીકાકાસંપાદક | 001 | श्री नंदीसूत्र अवचूरी
पू. विक्रमसूरिजीम.सा. 002 | श्री उत्तराध्ययन सूत्र चूर्णी
पू. जिनदासगणिचूर्णीकार । | 003 श्री अर्हद्रीता-भगवद्गीता
पू. मेघविजयजी गणिम.सा. 004 श्री अर्हच्चूडामणिसारसटीकः
पू. भद्रबाहुस्वामीम.सा. 005 | श्री यूक्ति प्रकाशसूत्रं
| पू. पद्मसागरजी गणिम.सा. 006 | श्री मानतुङ्गशास्त्रम्
| पू. मानतुंगविजयजीम.सा. अपराजितपृच्छा
| श्री बी. भट्टाचार्य 008 शिल्पस्मृति वास्तु विद्यायाम्
| श्री नंदलाल चुनिलालसोमपुरा 009 शिल्परत्नम्भाग-१
| श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री 010 | शिल्परत्नम्भाग-२
| श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री 011 प्रासादतिलक
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 012 | काश्यशिल्पम्
श्री विनायक गणेश आपटे 013 प्रासादमञ्जरी
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 014 | राजवल्लभ याने शिल्पशास्त्र
श्री नारायण भारतीगोसाई 015 शिल्पदीपक
| श्री गंगाधरजी प्रणीत | वास्तुसार
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 017 दीपार्णव उत्तरार्ध
| श्री प्रभाशंकर ओघडभाई જિનપ્રાસાદમાર્તડ
શ્રી નંદલાલ ચુનીલાલ સોમપુરા | जैन ग्रंथावली
| श्री जैन श्वेताम्बरकोन्फ्रन्स 020 હીરકલશ જૈનજ્યોતિષ
શ્રી હિમ્મતરામમહાશંકર જાની न्यायप्रवेशः भाग-१
| श्री आनंदशंकर बी.ध्रुव 022 | दीपार्णवपूर्वार्ध
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 023 अनेकान्तजयपताकाख्यं भाग
पू. मुनिचंद्रसूरिजीम.सा. | अनेकान्तजयपताकाख्यं भाग२
| श्री एच. आर. कापडीआ 025 | प्राकृतव्याकरणभाषांतर सह
श्री बेचरदास जीवराजदोशी तत्पोपप्लवसिंहः
| श्री जयराशी भट्ट बी. भट्टाचार्य | 027 शक्तिवादादर्शः
श्री सुदर्शनाचार्यशास्त्री
156
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88
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018
498
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302
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| क्षीरार्णव
| श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 029 वेधवास्तुप्रभाकर
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई | 030 શિલ્પપત્રીવાર
| श्री नर्मदाशंकरशास्त्री 031. प्रासाद मंडन
पं. भगवानदास जैन 032 | શ્રી સિદ્ધહેમ વૃત્તિ વૃતિ અધ્યાય પૂ. ભવિષ્યમૂરિનીમ.સા. 033 श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्यायर पू. लावण्यसूरिजीम.सा. 034 | શ્રીસિમ વૃત્તિ ચૂક્યાસ અધ્યાય છે પૂ. ભાવસૂરિનીમ.સા. 035 | શ્રીસિમ વૃત્તિ ચૂદાન અધ્યાય (ર) (૩) પૂ. ભવિષ્યમૂરિનીમ.સા. 036 श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय५ पू. लावण्यसूरिजीम.सा. વાસ્તુનિઘંટુ
પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરા તિલકમન્નરી ભાગ-૧
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 039 | તિલકમન્નરી ભાગ-૨
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 040 તિલકમઝરી ભાગ-૩
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી સપ્તસન્ધાન મહાકાવ્યમ
પૂ. વિજયઅમૃતસૂરિશ્વરજી 042 સપ્તભીમિમાંસા
પૂ. પં. શિવાનન્દવિજયજી ન્યાયાવતાર
સતિષચંદ્ર વિદ્યાભૂષણ વ્યુત્પત્તિવાદ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક
શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) 045 | સામાન્ય નિયુક્તિ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક | શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા). 046 | સપ્તભળીનયપ્રદીપ બાલબોધિનીવિવૃત્તિઃ
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 047 વ્યુત્પત્તિવાદ શાસ્ત્રાર્થકલા ટીકા
શ્રીવેણીમાધવ શાસ્ત્રી 048 | નયોપદેશ ભાગ-૧ તરકિણીતરણી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી નયોપદેશ ભાગ-૨ તરકિણીતરણી
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 050 ન્યાયસમુચ્ચય
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 051 સ્યાદ્યાર્થપ્રકાશઃ
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી દિન શુદ્ધિ પ્રકરણ
પૂ. દર્શનવિજયજી 053 | બૃહદ્ ધારણા યંત્ર
પૂ. દર્શનવિજયજી | જ્યોતિર્મહોદય
સં. પૂ. અક્ષયવિજયજી
041.
480
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043
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પાદક | પૃષ્ઠ !
160
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322
અહો શ્રુતજ્ઞાનમ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર- સંવત ૨૦૬૬ (ઈ. ૨૦૧૦ - સેટ નં-૨ ક્રમ પુસ્તકનું નામ
ભાષા કર્તા-ટીકાકા(સંપાદક 055 | श्री सिद्धहेम बृहद्वत्ति बूदन्यास अध्याय-६
पू. लावण्यसूरिजीम.सा.
296 056 | विविध तीर्थ कल्प
पू. जिनविजयजी म.सा. 057 | भारतीय हैन श्रम। संस्कृत सने मना . पू. पूण्यविजयजी म.सा.
164 058 | सिद्धान्तलक्षणगूढार्थ तत्त्वलोकः
| सं श्री धर्मदत्तसूरि 059 व्याप्ति पञ्चक विवृत्ति टीका
श्री धर्मदत्तसूरि 0608न संगीत रामाका
| . श्री मांगरोळ जैन संगीत मंडळी 306 061 चतुर्विंशतीप्रबन्ध (प्रबंध कोश)
| श्री रसिकलाल एच. कापडीआ | 062 व्युत्पत्तिवाद आदर्श व्याख्यया संपूर्ण ६ अध्याय सं श्री सुदर्शनाचार्य
668 | 063 चन्द्रप्रभा हेमकौमुदी
पू. मेघविजयजी गणि
516 064 विवेक विलास
सं/J. | श्री दामोदर गोविंदाचार्य
268 065 | पञ्चशती प्रबोध प्रबंध
सं पू. मृगेन्द्रविजयजी म.सा. 456 066 सन्मतितत्त्वसोपानम्
|सं पू. लब्धिसूरिजी म.सा. 0676शमादा ही गुशनुवाई | गु४. पू. हेमसागरसूरिजी म.सा.
638 068 मोहराजापराजयम्
सं पू. चतुरविजयजी म.सा.
192 069 | क्रियाकोश
सं/हिं श्री मोहनलाल बांठिया
428 | कालिकाचार्यकथासंग्रह
सं/J. श्री अंबालाल प्रेमचंद | 071 सामान्यनिरुक्ति चंद्रकला कलाविलास टीका सं. श्री वामाचरण भट्टाचार्य |
308 072 | जन्मसमुद्रजातक
सं/हिं श्री भगवानदास जैन
128 073 | मेघमहोदय वर्षप्रबोध
सं/हिं श्री भगवानदास जैन
532 0748न सामुदिनi in jथो
J४. श्री हिम्मतराम महाशंकर जानी 0758न चित्र पदूम साग-१
४४. श्री साराभाई नवाब
374
420
070
406
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076 | ઇ જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૨
વન જ 17 સંગીત નાટ્ય રૂપાવલી 07 | ભારતનાં જૈન તીર્થો અને તેનું શિલ્પસ્થાપત્ય 079 | શિલ્પ ચિતામણિ ભાગ-૧
O80 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૧
114
08 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૨ 082 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૩ 083 આયુર્વેદના અનુભૂત પ્રયોગો ભાગ-૧ 084 | કલ્યાણ કારક 085 | વિશ્વનયન વોશ 086 | કથા રત્ન કોશ ભાગ-1 087
કથા રત્ન કોશ ભાગ-2 088 હસ્તસગ્નીવનમ
ગુજ. શ્રી સારામારૂં નવાવ
238 | ગુજ. | શ્રી વિદ્યા સરમા નવાવ
194 ગુજ. | શ્રી સારામારૂં નવાવ
192 ગુજ. | શ્રી મનસુહાનાન્ન મુવમન | 254 ગુજ. | શ્રી ગગન્નાથ મંવારીમ
260 ગુજ. | શ્રી નાગનાથ મંવારમ
238 ગુજ. | શ્રી નવીન્નાથ મંવારમ
260 ગુજ. | પૂ. વરાન્તિસાગરની ગુજ. | શ્રી વર્ધમાન પાર્શ્વનાથ શાસ્ત્રી
910 सं./हिं श्री नंदलाल शर्मा
436 ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરાન કોશી
336 | ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરાન તોશી |
230 સં. | પૂ. મે વિનયની
પૂ.સવિનયન, પૂ.
पुण्यविजयजी | आचार्य श्री विजयदर्शनसूरिजी 560
322
114
089 એ%ચતુર્વિશતિકા 090 સમ્મતિ તક મહાર્ણવાવતારિકા
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श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार
पृष्ठ
191
272
92
240
93
254
282
95
118
96
466
संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com
शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन
हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार-संवत २०६७ (ई. 2011) सेट नं.-३ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची।यह पुस्तके वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। क्रम पुस्तक नाम
कर्ता/टीकाकार भाषा संपादक/प्रकाशक स्याद्वाद रत्नाकर भाग-१
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-२
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-३
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-४
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-५
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना पवित्र कल्पसूत्र
पुण्यविजयजी
सं./अं
साराभाई नवाब 97 समराङ्गण सूत्रधार भाग-१
| भोजदेवसं . टी. गणपति शास्त्री 98 समराङ्गण सूत्रधार भाग-२
भोजदेव
टी. गणपति शास्त्री 99 भवनदीपक
पद्मप्रभसूरिजी
सं. वेंकटेश प्रेस 100 गाथासहस्त्री
समयसुंदरजी
सं. सुखलालजी भारतीय प्राचीन लिपीमाला
गौरीशंकर ओझा हिन्दी मुन्शीराम मनोहरराम 102 शब्दरत्नाकर
साधुसुन्दरजी
हरगोविन्ददास बेचरदास 103 | सुबोधवाणी प्रकाश
न्यायविजयजी
सं./गु हेमचंद्राचार्य जैन सभा 104 लघु प्रबंध संग्रह जयंत पी. ठाकर
ओरीएन्ट इस्टी. बरोडा 105 | जैन स्तोत्र संचय-१-२-३
माणिक्यसागरसूरिजी
आगमोद्धारक सभा 106 | सन्मतितर्क प्रकरण भाग-१,२,३ सिद्धसेन दिवाकर
सुखलाल संघवी सन्मतितर्क प्रकरण भाग-४,५ सिद्धसेन दिवाकर
सुखलाल संघवी 108 | न्यायसार - न्यायतात्पर्यदीपिका सतिषचंद्र विद्याभूषण
एसियाटीक सोसायटी
342
362
134
70
101
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सं./हि
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सं./हि सं./हि सं./हि
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सं./गु सं./गु
पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार अरविन्द धामणिया यशोविजयजी ग्रंथमाळा | यशोविजयजी ग्रंथमाळा | नाहटा ब्रधर्स | जैन आत्मानंद सभा
जैन आत्मानंद सभा फार्बस गुजराती सभा फार्बस गुजराती सभा | फार्बस गुजराती सभा
218
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656
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109 जैन लेख संग्रह भाग-१
पुरणचंद्र नाहर जैन लेख संग्रह भाग-२
पुरणचंद्र नाहर जैन लेख संग्रह भाग-३
पुरणचंद्र नाहर 112 | जैन धातु प्रतिमा लेख भाग-१
कांतिसागरजी जैन प्रतिमा लेख संग्रह
दौलतसिंह लोढा 114 राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह
विशालविजयजी 115 | प्राचिन लेख संग्रह-१
विजयधर्मसूरिजी बीकानेर जैन लेख संग्रह
अगरचंद नाहटा 117 | प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग-१ जिनविजयजी 118 | प्राचिन जैन लेख संग्रह भाग-२ जिनविजयजी 119 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-१ गिरजाशंकर शास्त्री 120 गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-२ गिरजाशंकर शास्त्री
गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-३ गिरजाशंकर शास्त्री
ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. | पी. पीटरसन 122 __इन मुंबई सर्कल-१
ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. | पी. पीटरसन 123 इन मुंबई सर्कल-४
ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. पी. पीटरसन
इन मुंबई सर्कल-५ कलेक्शन ऑफ प्राकृत एन्ड संस्कृत पी. पीटरसन
__ इन्स्क्रीप्शन्स 126 | विजयदेव माहात्म्यम्
जिनविजयजी
764
सं./हि सं./हि सं./हि सं./गु सं./गु सं./गु
404
404
121
540
रॉयल एशियाटीक जर्नल
274
रॉयल एशियाटीक जर्नल
41
124
400
अं.
रॉयल एशियाटीक जर्नल भावनगर आर्चीऑलॉजीकल डिपार्टमेन्ट, भावनगर जैन सत्य संशोधक
125
|
320
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Jaina Vividha Sahitya Shastra Mald No. 8.
JAINA INSCRIPTIONS.
Containing Inder of Places, glossary of names of Shrdvaka castes and Gotras
of Gackhas und Acharyas with dates.
Collected & Compiled
BT Puran Chand Nahar, M.A.,B.L, M.R.A.S., Vakil, High Court ; Examiner, Calcutta University; Member, Asiatic Society of Bengal ; Behar & Origsa Research Society ; Sahitya Parishad, Calcutta ;
Jains Shwetambur Education Board, Bombay ; &c. &c.
PART I. (With plates )
CALCUTTA,
1918
Price Rs. 51
Page #11
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________________
Printed by PUNDIT KRISHNA GOPAL MISHRA
at the
B. L. PRESS 1-2, Machuabazar Street, Calcutta. Except pp. 1-63 Printed by Ramdhin Singh at the Vishvavinode Press, Azimganj.
AND Published by V. J. JOSHI, Hony. Manager, Jaina Vividha Sahitya Shastra Mala Office, Benares City.
Page #12
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जैन-विविध-साहित्य-शास्त्रमाला [८]
जैन लेख संग्रह। कतिपय चित्र और आवश्यक तालिकायों से युक्त।
प्रथम खण्ड।
संग्रह कर्ता पूरणचन्द नाहर, एम. ए., बि. एल., वकील, हाईकोर्ट; रयाल एसियाटिक सोसायटी, पसियाटिक सोसायटी बेंगाल, रिसाचं सोसाइटी विहार-उड़िसा आदि के मेंबर; विश्वविद्यालय कलकत्ता के परीक्षक इत्यादि २
कलकत्ता
चीरसंवत् २४४४
मूल्य-५)
Page #13
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ल २:१२३, प३ १५ ग ८.११
४ए?
Page #14
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________________
SAIN INSCRIPTIONS.
जैन लेख संग्रह।
भारतके प्राचीन इतिहासके प्रमाणोंके प्रधान साधन लेख ही है। विशेषतः जैनियोंके सिलसिले वार इतिहासके अभाव में इन्हों के लेखों का संग्रह बहुत ही आवश्यक है। इतिहास का बहुतसा भाग शिलालेख पर निर्भर है। जो वात शिलालेखसे जानी जा सकती है वह इतिहाससे नहीं, क्योंकि इतिहास में समय परिवर्तनसे फेरफार पड़ जाता है किन्तु पत्थर पर जो कुछ लिखा गया वह पत्थर के अन्त तक बना रहता है । अतएव लेखों से इतिहास को बहुत सी सहायता मिल जाती है। यह आनन्दकी बात है कि आज कल बहुतसे सजनोंकी इस पर दृष्टी भी आकर्षित हुइ है। मैं इस विषय पर अधिक लिखकर पाठकोंका समय नए करना नहीं चाहता, किन्तु संक्षेपमें कुछ सूचना देता हूं ताकि इस ओर और भी लोग ध्यान देकर ऐसे संग्रहसे लाभ उठावें और मेरा परिश्रम सफल करें। मुझे लेखों का बहुत दिनों से प्रेम था, खास करके हमारे जैन लेख देखतेही मेरा जी हराभरा हो जाता था, परन्तु अङ्रेजी जर्नेल, पत्रिका, रिपोर्ट और स्वदेशो भाषाके पत्र या पुस्तकों में लेख देखने के सिवाय स्वयं कोई लेख देखनेका अवसर न मिला था। कुछ दिनोंसे यह जैन लेखों की उपयोगिता मेरे मस्तिष्क में ऐसी घुस पड़ो कि जहां कहीं किसीके पास लेखका हाल सुना या किसी मन्दिरादि स्थानों में गया तो वहां के लेख देखे बिना चित्त को शांति नहीं होती थी। इस कारण मैंने स्वयं जो लेख पढ़ें है इतने इकट्ठ हो गये कि उसका एक संग्रह हो सकता है। इसी विचारसे यह कार्यमें मैं प्रवृत्त हुआ हूं। मेरा संस्कृत आदि भाषाओं में अधिक प्रवेश नहीं है या मैं कोई बड़ा विद्वान नहीं है, विशेष कर जैन शास्त्र में मेरा स्वल्प प्रवेश है, इस कारण बहुतसे लेख पढ़नेमें भ्रम हो गया होगा सो, भाशा है, कृपया सुधी जन सुधार कर पढ़ेंगे।
लेख खास करके पत्थर और धातु पर ही होते हैं। पत्थर परका लेख धातु से शीघ्र क्षय हो जाता है। इस कारण प्रायः पत्थर पर का लेख कुछ काल में अस्पष्ट हो जाता । अतएव मैंने विशेष करके धातु परके लेखों को भधिक पढ़ने का प्रयास किया है । लेखों पर प्रायः निम्नलिखित बातें लिखी रहती हैं:
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________________
[
ट
]
१। वर्ष, मास, तिथि, वार आदि।२ । वंश, गोत्र, कुलो के नाम। ३ । कुर्शिनामा।
। गच्छ, शाखा, गण आदिके नाम । ५। आचार्यों के नाम, शिष्यों के नाम, पहावली।
। देश, नगर, ग्रामो के नाम। ७ । कारिगरों के,खोदनेवालो के नाम । ८। राजाओ के, मंत्रियों के नाम।८ । समसामयिक वृत्तान्त इत्यादि। ऊपरोक्त विवरणों में जैन श्रावकोंकी शाति, वंश, गोत्रादि और जैन आचार्योंके गच्छ शाखादिकी दो सूची पाठकों की सेवा में उपस्थित की जायगी, जिसमें सुगमता के लिये (१) ज्ञाति, वंश, गोत्र (२) संवत्, भाचार्योके नाम और गच्छ रहेगा। सुश पाठकगणको ज्ञात होगा कि बहुतसे लेखोंमें वंश, गोत्रादिका उल्लेत्र पूर्णरीति से पाया नहीं जाता है:-जैसे कि कोई २ लेखमें केवल गोत्र हो लिखा है, ज्ञाति, वशका नाम या पता नहीं है। ज्ञाति वंशादिके नाम भी कई प्रकारसे लिखे हुए मिलते हैं, जैसे कि “ओसवाल" शातिके नाम लेखों में आठ प्रकार से लिखे हुए मिलते हैं [१] उपकेश [२] उकेश [३] उवएश [४] ऊरश [५] उयसवाल [६] ओसलवाल [9] ओश [८] ओसवाल। लिखना निष्प्रयोजन है कि यहां सूचीमें ऐसे आठ प्रकारके नामों को एक 'ओसवाल' हेडिङ्ग में दिया गया है। इसी प्रकार कोई २ लेखोंमें आचार्यों के नाम, उनके शिष्योंके नाम, गच्छादि का विवरण पूर्णतया नहीं है। प्रतिष्ठास्थानोंके नाम भी बहुतसे लेखोंमें बिलकुल नहीं है। पुरातत्यप्रेमी सज्जनगण अच्छी तरह जानते हैं कि प्राचीन विषय में ऐसो बहुतसी कठिनाइयां मिलती है, स्थान २ में प्राचीन लेख घिस गये हैं, इस कारण बहुत सी जगह प्रयत्न करने पर भी खुलासा पढ़ा नहीं गया है। __ यह "लेख संग्रह" संग्रह करने में हमें कहां तक परिश्रम और व्यय उठाना पड़ा है सो सुश पाठक समझ सक्त हैं; नहि वन्ध्या विजानाति गर्भप्रसववेदनाम् ।" अधिक लिखना व्यर्थ है। यह संग्रह किसी भी विषयमें उपयोगी हुआ तो मैं अपना समस्त परिश्रम सफल समझंगा।।
आशा है कि और २ आचार्य, मुनि, विद्वान् और सजन लोग भी जैन लेख संग्रह करने में सहायता पहुचावें और उनके पास के, या जिस स्थानमें वे विराजते हों वहांके जैन लेंखों को प्रकाशित करें तो यहुत लाभ होगा और शीघ्र ही एक अत्युत्तम संग्रह बन जायगा। किंबहुना ।
कलकत्ता । इ० स० १८१५६
निवेदकपूरणचन्द नाहर।
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________________
सूचीपत्र ।
...
वरद.
पत्रांक
पत्रांक अजिममंज [ मुर्शिदाबाद]
कलकत्ता सुमतिनाथजीका मन्दिर
" १ धर्मनाथ स्वामीका मंदिर ... .. २२६४ पद्मप्रभुजीका
महावीर स्वामीका मैमिनाथजीका
चंद्रप्रभुजीका
शीतलनाथजीका , चिंतामणिजीका
माधोलालजीका घर दे० (बड़तल्ला) संभवनाथजीका
माधोलालजीका घर दे० ( मुर्गिहष्टा) शांतिनाथजीका
जीवनदासजीका घर दे० सांवलीयाजीका ,
पन्नालालजी का घर दे. राय बुधसिंहजी का घर दे० ..
आदिनाथजीका देरासर
३१६३ बालूचर [ मुर्शिदाबाद]
चंपापुरी [भागलपुर] आदिनाथजीका मन्दिर विमलनाथजीका ,
वासुपूज्यजीका मंदिर ... ... ... ३२ संभवनाथजीका
नाथनगर (भागलपुर)
सुखराजजीको घर देरासर सांवलीयाजीका ,
भागलपुर दादाजीकास्थान ...
वासुपूज्यजीका मंदिर रायधनपतसिंहजीका घर दे.
काकंदी [विहार ] किरतचन्दजीका घर दे० ...
सुविधिनाथजीका मंदिर कठगोला [ मुर्शिदाबाद] आदिनाथजीका मन्दिर .. ... ... १७
क्षत्रिय कुंड [विहार ]
महावीर स्वामीजीका मंदिर ____ महिमापुर [ मुर्शिदावाद] जगत्शेठजीका मन्दिर ... ... ... १८
गुणाया [विहार] ___ कासिमबाजार [ मुर्शिदाबाद] ।
श्रीमहावीरजीका मंदिर नमिनाथजीका मंदिर ... ... ... १९
पावापुरी [ विहार]
समवसरण ... दस्तुरहाट [ मुर्शिदाबाद]
जलमंदिर ... ... ... जीर्ष मन्दिर ...
| गांव मन्दिर
जाका
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________________
इङ्गलेन्ड
पत्रांक
पत्रांक विहार
चिकागो [ अमेरीका मथियान महल्लाका मन्दिर
| डॉ० कुमार स्वामी ... चंद्रप्रभुजीका
.... ५४ आदिनाथनीका
... ५५ | मेलबार्ड ... ... ... राजगृह
जयपुर [ राजपूताना ] पार्श्वनाथजीका मंदिर
५८ | व्यापारीओंके पासको मूर्ति पर ... विपुलगिरि
अजमेर [ राजपूताना ] रत्नगिरि
६५ वारली गाव से प्राप्त पत्थर ... ... उदयगिरि स्वर्णगिरि
बनारस [काशी] वैभार गिरि
| सुतटोला का मंदिर
बट्टजीका कुंडलपुर
पटनीटोलेका , आदिनाथजीका मंदिर
चुन्नीजीका , पटना
रामचन्द्रजीका , पार्श्वनाथजीका मंदिर
प्रतापसिंहजीका , दादावाड़ी ... ...
कुशलाजीका , स्थुलभद्र जीका मंदिर
सिंहपुरी [ बनारस] शेठ सुदर्शनजीका , ...
कुशलाजीका मंदिर समेत शिखर
मिर्जापुर ऋजुवालका
... ... ८४
| पचायती मंदिर
धनसुखदासजीका , मधुवन टोकके चरणों पर ..
दिल्ली तेजपुर [ आसाम]
चेलपूरीका मंदिर
नवघरेका , रायमेघराजजी का मंदिर ... ... ६३
चिरेखानेका , __ म्युनिक [जर्मनी] छोटे दादाजीका , जादुघर जादुघर ... ...
.
... ...
६६ ६ | हजारोमलजीका घर दे०
१०२
१०१
...
१०३
१०६
..
१२१
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________________
पत्रांक
..
१६.
पत्रांक अजमेर।
शजय पर्वत। गौरी पार्श्वनाथजी का मन्दिर ... ... १२४ | साकरचन्द प्रेमचन्दकी टुक
माकर प्रेमचन्दकी दंक ... सम्भवनाथजी का " ..... १२७/ प्रेमाभाई हेमाभाईकी , दादाजीकी छत्री ,
... ... १३३ प्रेमचन्द मोदीकी ,
शेठ वाल्हाभाईको जयपुर।
शेठ मोतीशाको पति श्यामलालजीके पास मूर्तियों पर ... ... १३४
| मूल (आदिश्वरकी ) , यति किशनचन्दजीके पास मूर्तियों पर ... ... १३५
राणकपुर। जोधपुर।
आदिनाथजीका मन्दिर ... महावीर स्वामीजीका मन्दिर
सादडी। केसरीयानाथजीका ,
१४१ पार्श्वनाथजीका मन्दिर मुनिसुव्रत स्वामीजीका , धर्मनाथजीका
नाकोडा। .. दिनाजपुर।
जैनमन्दिर चन्द्रप्रभु स्वामीका मन्दिर
बालोतरा। धुलेवा रिखमदेव ( मेवाड ) | शीतलनाथजीका मन्दिर ... केसरीयानाथजीका मन्दिर
| केसरीयानाथजीका मन्दिर ... दादाजीकी छत्री
वाड़मेड़। पगलीयाजी
बड़ा मन्दिर श्रीपार्श्वनाथजीका ... पालीताणा ( काठियावाड )
यति इन्द्रचन्दजीका उपाश्रय ... मोतीसुखीयाजीका मन्दिर
गोपोंका शेठ नरसिंह केशवजीका ,
मेडता। शेठ नरसिंह नाथाका , शेठ कस्तुरचन्दजीका ,
आदिनाथजोका मन्दिर गोडी पार्श्वनाथजीका ,
पार्श्वनाथजीका मन्दिर यति करमचन्द हेमचन्दका ,,
वासुपूज्यस्वामीका , बड़ा मन्दिर (गांवमें ) ,
धर्मनाथजीका , दिगंबरीका पञ्चायती ,
आदिश्वरजीका नया ,
:: :: : .
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________________
पत्रांक
पत्रांक
चिन्तामणिपार्श्वनाथका ,, कडलाजीका महावीरजीका तपमच्छका उपाश्रय
ओसिया महावीर स्वामीका मन्दिर सचियाय माताका , डुंगरीके चरण पर
पाली। मौलखा मन्दिर गोडीपाश्वनाथका मन्दिर लोढारो वासका , शान्तिनाथजीका , सोमनाथजीका ,
। नाडोल। आदिनाथजीका मन्दिर ताम्र शासनमें
नाडलाई। भदिनाथजीका मन्दिर नेमिनाथजीका ,
कोट सोलंकी। जैन मन्दिर
घाणेराव। जैन मन्दिर
केकिंद। | पार्श्वनाथजीका मन्दिर ...
सेवाही। महावीरजीका मन्दिर
सांडेराव । शान्तिनाथजीका मन्दिर
नाना। जैन मन्दिर
लालराई। जैन मन्दिर
हटुंदी महावीरजीका मन्दिर माताजीका खण्डरमें मिला हुआ पत्थर पर ...
जालोर। महावीरजीका मन्दिर चोमुखजीका , तोपखानामें
हरजी। | जैन मन्दिर
जूना। | जैन मन्दिर
...
२४३
" २४४
घेलार।
जूना बेडा।
जैन मन्दिर
..
२४५
भादिनाथाजीका मन्दिर ..
फलोदी। बड़ा जैन मन्दिर
नगर गांव।
१
जैन मन्दिर
...
२४७
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________________
पत्रांक
नोदिया
जैन मंदिर
जैन मन्दिर
किराडू
२६६
पत्रांक सांचोर
वघीणा जैन मंदिर
जैन मन्दिर ___रत्नपुर
लाज-नीतोडा जैन मंदिर
जैन मन्दिर बिलाडा जैन मंदिर
२६६ बोहिया ( मारवाड़)
कोटरा जैन मंदिर
जैन मंदिर कोटार [गोड़वाड़]
वरमाण जैन मन्दिर
२६९
लोटाना कुमारपालका जीर्ण मन्दिर
जैन मन्दिर सुंधा पहाड़ी
माकरोरा जैन मन्दिर
२५३ जैन मन्दिर घटियाला
धवली जैन मन्दिर
___... २५६ पिंडवाडा
सीवेरा जैन मन्दिर वीरवाडा
जोरावल पार्श्वनाथ जैन मन्दिर
जैन मंदिर
... २७० बसंतगढ़ जैन मन्दिर
अंजारा पार्श्वनाथ पालडी जैन मंदिर
... २७३ जैन मन्दिर
कापडा पार्श्वनाथ कालाजर
जैन मन्दिर ... ... ... २३ जैन मन्दिर
अलवर कामद्रा
जैन मंदिर ... ... ... २७४ जैन मंदिर उथमा
पटना म्युजियम जी मन्दिर
पाषाणके चरणों पर
" २७७
जैन मंदिर
२७०
मंदिर
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________________
अजमेर अजिगञ्ज ( मुर्शिदाबाद )
भतरौ
अलवर
अष्टार
अहमदाबाद
अहिलाची
आगरा
प्रतिष्ठा स्थान |
आमेण
आरामपुर
आवरणी
आसलपुर
इडर
***
इन्द्र
(दिली)
उदयगिरि (राजद)
कलकत्ता
कलवर्मा
उदयपुर
उन्नतनगर
उपकेश ( ओसिया )
उमापुर
ऋजुवालुका
कड़ी
कमलमेक
कर्यटक
...
...
...
...
...
४०
१०००
५३२
६६।११।१९२।३५६/३६० ३७२/३८२ ४४४/५२६
[]
लेखांक
...
७६६
८५/७६।१४२
...
...
२८५३०७३६३९०३१९ हे
२५३/२५४।२५५ ६४५/७४४
६८७
१३४
४८०
३३६
३२२/४३३/५०६ खुदीमपुर
१२५ गणना गणवाड़ा
३२७
गंधार
०६८ गुनशिला ૭૮
८५६
कीराट कूप
कोठारा
४४८ कोरडा
कलागर ( कालाजर )...
कादी
काकर
कायपा
कालघरी
३५
कालुपुर
कास्माबजार ( मुर्शिदाबाद )
४८३
६८१
८७
गुव्वर ग्राम ( बड़गांव )
६२७
हडी
५२२ गोरया
€98[E૭/૨૭
गोलकुंडा
गोलीषा
चंपक दुर्ग
चंपकनर
चंपानगर
चंपापुरी
चिमणीया
चंपरा ग्राम
जयनगर
...
जलवाह जवाच
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀
::
::::::
⠀⠀⠀⠀⠀⠀
लेखांक
६५६
१७३
२०६०६०८६५३०४२ १७७१३८९०६१८०
...
899
६४
६६०
८११८४
६४२
६५२
१०६
८९६
२२१
૪૭
२७१
३
५५४
१७२
મુદ્
८५०
४०४
१४३०१४५
१२७१४६।१५८
५१०
६२४
१६३
२९९
१६
Page #22
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________________
लेखांक
...
...
२९१ ६५४।६५५ ५८०१६१३
CEO
जाणांधारा जालोर मावरनगर जावालीपुर जीरावला पार्श्वनाथ जीर्णदुर्ग जैनगर जोधपुर झूझणू डिंडिला ग्राम देडया तिजारा दंतराई दधालीया दिल्लि दिवसा द्विपयन्दर देवक पसन धंध का धमडका (कच्छ)
२१॥५१॥५४॥११६१५५ ५०४।५४०५५६०५६८८५१
... "८०४८१३३८९४।०१५।८३२
... ८३० ८२५।८२६८२७
४२१
[3] लेखांक
. २८३ नन्दियाक (नोदिया) ८३७१९०५ | नल
७१५ नलीतपुर CERI800 नागपुर १७३६७६ नाणा
नापलीया
पत्तन "" ६१२।०२८।८३८
पाटण ९६६ पलिका ५६८ पालिका
पाली ७४ पल्यपत्र
पाटलिपुत्र ५२७ पाटलिपुर ६२४
पोडलीपुर पडलीपुर पटना
पाटझलि (पालड़ी) ६२१ | पाटरी
| पानविहार ८३७१८३६३८४५४८९२
| पावापुरी ... ४६४४
पींडरवाड़ा ८४१८४३/८४६०८५७ ८४०८५४०९५६०८५८
पीडवाड़ा ८४७ ८५२ | फलवद्धिका
पाडली
३२०१३२८१३३०
३२९ ३१३३१४
२७३
१३०
१३
धांदू
४२३
(५५
धार धुलेवा
४२२
मट्टल गडूल डागिका मडुलाइ नाइलाई नन्दकुलपती
१८४४१६.१९२१६७।२०६।२१०
७६४५४६४६।१४८ BY५१५१
१४. .... . ८७०1८७१
| प्रयाग
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________________
....
१३८
लेखांक
लेखांक बम्बई .. ... ... 280,३७४ | मानपुर ... वरागाम ... ... ... ... २१७ | मालवक यहादरपुर ... ... ... ५ माल्यचन
.. ... १५२ यहघिध ... ... ..
| माल्हेणस
... ... ९२२ बालुचर ( मुर्शिदाबाद) ... ३१, ३२, ४५,४६,३३० मिथिला बाडमेर ... ... ... ... ८
| मिरजापुर ...
... ... २३३ बीकानेर ... ... ...
मुंजिगपुर ...
...
८४१ ... ... बौलाडा
मुर्शिदाबाद ...
... ५६, ६७, १३८, १४७, ६६६
मेरुता ( मेडता) ... ४५५, ५४३, ७५०, ७५४, ७८३, बूयूयाणा
७८४, ७८७, ८२६,८२६, ०E बेगमपुर (पटना)
मेलीपुर ... ... ... १५ भट्टनगर
मोढ़ ... ... ... ७१५ भरतपुर
मोरकरा ... ... ... ६४२ भाणावट
रणसण भारठा
रतनगिरि ( राजगृह ) भिन्नमाल
.. २४६, २५०, २५१, २५२ भिल्लमाल
रत्नपुर भुडपद्र
राजगृह " भेया
राजपुर राणपुर
9००,७१३,७१४,७१६ मंहपदुर्ग ...
रोहिन्सकूप
१४५ मंडपाचल ..
लच्छवाड
१७४ मंडोवर
लींवष्ठी
१८.२८५ मंहुपे
वंगुद्रा मनेर
वघणोर
२८४ माक्रोडा
वडनगर माइपा
वरजा
१३२ मानंदपुर
बलहरा
५६१
:: :: :
:: :: :
{: : : : .
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________________
..
सापुर
६६०
[ ] लेखांक।
लेखांक बलहारो
६.३ | सनीपुर वसंतनगर ... ... ... ... ३११ सद्र'छलिया ... . ... ४१२ वसंतपुर
१५४
| सम्मेदशिखर ... ... ३५५, ३६१, ४४६ वहडा ... ... ... १२३, १२५ स्वर्णगिरि (जालोर) ... ...
" १०३, १०४ वाकपत्राकानगर
७४३ सहयाला वाघसीण ( वाणा) "
स्तंभतीर्थ वाराणसी
... ... ... २३५, ३४७ सांवोसण ... ... चासहड ... ... ... ... ८८. स्याहजानाबाद। दिल्ली) विकमनगर ... ... ... ... ७६५ सिरुत्रा ...
... विक्रमपुर
| सिवना ... ... ... ४.३ विपुलांगरि ( राजगृह) ... ... ... २४५ | सिंहपुर ... ... ...
४२५ यिपुलाचल ( राजगृह) ... २३६, २४६, २४७, २४६ | सीणोत
पास सीणोत ... ... ... वीजापुर ... ... ... ... ६.१ | सीणुरा
२८०,४८४,५५६ वीरमग्राम
सीतामढी (मिथिला) वीरमपुर
१२३, ७२५, ८२२ सीवेरा धीरपल्ली
... सारोही ...
... ... १ वीरवाडा
.... १५३ सेरपुर ( दाका) ... ... ... ३२६ घासलनगर ... ६४६, ६७७ | हस्थिकुडि (हथुडि)
८६७,८१८ वोसाडा " ८३३, ८३४ क्षत्रियकुर ... ...
२००,२२६ चुमुज
२४ चेदर वैभारगिरि (राजगृह) .. २५७, २१२८, २६०, २६३
२६४, २६५, २६६, २६७ ध्यवहारगिरि ( राजगृह ) ... २६३, २६२, ५२५ शंडली ... .. ... १४५ शमीपाटी
... ... ८७६, ८६४, शीलबंदही पंढेरक ... ... ८८१, ८८२, ८८३, सत्यपुर ... ...
...
८४
Page #25
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Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
999
Scze
2570
9023
S200
COS
Metal Image (Andha Padmasan) with inscription in Southern Character (back), in possession of the Author.
SCC
ESCOBOSE
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
JAIN INSCRIPTIONS
जैन लेख संग्रह।
प्रान्त - पूर्व । जिला मुर्शिदाबाद । स्थान अजिमगञ्ज ।
श्री सुमतिनाथजी का मन्दिर छ । __धातुर्यों के मूर्ति पर।
- [I] ॐ ॥ श्री सरवाल गच्छे असामूकेन कारित ॥ संतु १९१०४।
___ * नाहारों के पूर्वजों के प्रतिष्ठित जिनालयों में यह एक मन्दिर ग्रामके मध्य भागमें विद्यमान है । स्वर्गीया श्रीमति मयाकुमर के पुत्र स्वर्गीय बाबु गुलालचन्दजी तत्पुत्र संग्रह कौके परम पूज्य पिता राय सेताबचन्द नाहार बाहादुर हैं। पूर्व मन्दिर गङ्गास्रोतसे नष्ट हो जानेसे आप यह नवीन चैत्य संवत १९५४ में निर्माण करवाया है। प्रथम मन्दिरका लेख-॥श्री॥ सं १९१३ मिति बैशाख सुदि ५ शुक्रवासरे श्री जिन भक्ति सूरि साखायो उ. श्री आनन्द बल्लभ गणि । तत् शिष्य पं।प्र। सदालाभ मुनि उपदेशात् श्री जिनगञ्ज बास्तव्य नाहर श्री खड्गसिंहजी तत्पुत्र श्री उत्तमचन्दजी ततभायां श्री मयाकुमर एषः श्री सुमति जिन प्रासाद कारितः प्रतिष्ठाप्य श्री संघाय समपितश्च विधिना सतां ॥ जं । यु । प्र । श्री जिन सौभाग्य मूरिजी विजय राज्ये ॥ श्री रस्तुः ॥ कल्याणमस्तुः ॥ श्रीः ॥ श्रीः॥१॥ ___ - यह लेख श्री पार्श्वनाथजी के मूर्तिके पीछे खुदा भया है, अक्षर बहोत प्राचीन है। मुसल्मानोंने चितोर दरल करनेके पूर्व में यह मूर्ति वहां पर थी।
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________________
(२)
[2]
सं० १४६५ बर्षे माघ सुदि ६ रयो श्री आंचल गछे प्रग्वाट झातीय व्य० उदा नायीचत्त तत्पुत्र जोला नार्या डमणादे तत्पुत्रेण व्य० मूंडनेन श्री गछेश श्री मेरुतुंग सुरीणामुपदेशेन त्राता श्रेयोर्थ श्री पार्श्वनाथ विंबं कारित प्रतिष्टितं श्री सूरिभिः ।
- [3] संबत १४ बर्षे पोष वदि ५ शुक्र ग्रेहमी बास्तव्य श्रीमान झाती श्रे० प्रतापसींद जा० सोहगदे सुत इदाकेन पितु मातु श्रेयोथं श्री वासुपूज्य विंबं कारित पूर्णिमा गर्छ प्रतिष्ठितं श्री सूरि जिनबद्धन सूरि ।
[4]
सं० १५१० व० फा० शु० १५ उकेश बंशे जाणेचा गोत्रे सा० पदम पुत्र रउला सु० साजण ना जइसिरि पु० षेढा जा० कणसिरि पेता ना खषमसिरि पुत्र ३ का खेमधर देवराज ना० चांडू सा हापाकेन ना० ३ गूजरि सु० पुंजा राजीदि कुटुंब युतेन स्वश्रेयस श्रीश्रेयांस चतुर्विंशति पट्टः कारितः तपा श्रीरत्नशेखरसूरि श्रीउदयनंदिसूरिनिः प्रतिष्ठितः।
[5] ___ सं १५१७ बर्षे माह सु०५ शुक्रे श्री उपकेश ज्ञाती नाहर गोत्रे सालेला पु० लाघा नाय सोहिगि पु० चांपा सालू खादा सहितैः पितु श्रेयसे श्री श्रेयांस नाथ विंबं का प्रति श्री धर्मघोष ग श्री विजयचंड सूरि पट्टे ज० श्री साधू रत्नसुरिनिः ।
। [6]
संबत् १५३६ बर्षे मार्गशिर सु०६ शुक्र श्री श्रीमाल झाय व्यव० श्राका नार्या रातलदे सुत खावाकेन ना मानू नापा निमि । श्री शांतिनाथ विवं कारा०प्र० पिक श्री मुनि सिंधु एरि पदे श्री अमरचंड सूरिभिः ॥ नापलिया ग्रामे ।
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
" [7]
संवत् १६४१ बर्षे मागसर मासे । सी० श्री राजा ना रजमलदे पु० दोसा नकुर धना हाथी खीवा हाथा जाप हरषमदे पुजीवा एतत् स्वकुटुंब युतैः श्री पार्श्वनाथ विंबं कारापितं श्री संडेर गछे वा श्रीसहिज सुंदर पदे उदेमासुंदर पट्टे जा श्रीनय सुंदर प्रतिष्ठितं ।
॥श्री पद्मप्रजुजी का मंदिर ॥
[8] संबत १४ए७ बर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ वुधे उकेश बंशे लूणीया गोत्रे साः षीमा पुत्र साः सधारण श्रावकेण पुत्र सीहा सहितेन श्री पार्श्वनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनन सूरिजिः खरतर गन्छे ।
V [9]
संवत १५१ बर्षे बैशाख शु० ३ श्रीमाल झातीय सा० लाईयाकेन नायर्या गांगी पुत्र हासादि कुटुंव युतेन पुत्री रमाई श्रेयोर्थ श्री शांतिनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीतपा गछे श्रो रत्नशेखर सूरि पट्टे श्री लक्ष्मीसागर सूरिनिः। धंधूका बास्तव्य ॥
1 [10] संबत १५५७ वर्षे माघ सुदि १५ गुरौ ओकेश झातीय जारडा सुत मेहा जार्या पदमाई श्रेयसे जणसाली पताकेन श्रीवासुपूज्य विंबंकारितं प्रतिष्ठितं खरतर गळे श्रीजिनहंस सूरिभिः ।
- [11] संबत १५६४ बर्षे शा० १४१५ वर्तमाने मालवक देस ॥ उपकेस ज्ञातौ सा देवसी जा देमा पु० सा सागा जा० रूपणं पुत्र जसपाल जा सषमी पुत्र रखा विंबं प्रतिष्ठितं । बपा गछे श्री हेमवस ( विमल ) सूरिनिः ॥
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________________
( ४ ) V[12]
संवत १९०० मिति आषाढ़ सित ए गुरौ श्री आदिनाथ विंबं प्रतिष्ठितं । बृहत खरतर जहारक गछेश ज० । श्री जिन दर्ष पट्टे दिनकर ज० श्री जिन सौभाग्य सूरिजिः कारितं च श्रीमाल बंशे टाक गोत्रे मोहया दास पुत्र दनुतसिंहस्य जार्या फूलकुमार्या स्यश्रेयोर्थं ।
॥ श्री नेमिनाथजी का पंचायति मन्दिर ॥
✓ [13]
संवत १५११० माघ सु० ५ सोमे उसवाल ज्ञाती लिगा गोत्रे समदडीया उडके० सुड्डा जा० सुहागदे पु० कम्माकेन जा० कस्मीरदे पु० हेमा संसारचंद देवराज युतेन स्वश्रेयसे श्री नमिनाथ विंबं कारितं श्री उपकेश गछे श्री कुकुदाचार्य संताने प्र० श्री कक्क सूरिजिः ।
संवत १५२३ बर्षे वैशाख बदि ४ गुरौ उसवाल ज्ञातौ कटारीया गोत्रे सा० सरवण राणीसुत सा० सिंघा जा० सोम सिरि सु० सा० आडु नाम्ना जार्या विरणि सुत सा० पुनपाल सा० सोनपाल सुरपति प्रमुख कुटुंब युतेन स्वश्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं च । श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः ॥ श्री ॥
/ [15 1
[14]
संवत १६५३ बर्षे बेशाख सुदि • प्राग्वाट ज्ञा० व्यव० बेता जाय मदी सुत व्य० जोजान जा० राजू चातृ राजा रत्ना देवा सहितेन स्वपुर्विज श्रेयोथं श्री शांतिनाथ विंबं hoto तपाछे श्री हेम विमल सूरि श्री कमल कलस सूरिजिः सिरुत्रा बास्तव्य ।
[16]
संवत १६१५ वर्षे बैशाख वदि १० जौमे जवाब वास्तव्य हुवड ज्ञातीय मंत्री श्वर गोत्रे
Page #32
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________________
दो० स० केमाकेन ना राणी स० श्री पार्श्वनाथ विबं का प्र० श्री तेजरत्न सूरिजिः ॥
॥ श्री चिंतामणि पार्श्वनायजी का मंदिर ॥
[17] संवत १५०५ वर्षे माघ बदि ५ रबी उशवाय ज्ञातीय भएकारी गोत्रे साग गेल्हा पुण सोपी जा पोलश्री पुरा इराकेन आत्म पुण्यार्थ श्री अनिनंदन विंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री धर्मघोष गछे न श्री बिजयचंऽ सूरि पट्टे श्री साधुरत्न सूरिनिः।
V [18] संवत १५२५ वर्षे व० ११ बुधे लावडी वास्तव्य उकेश ज्ञातीय व्या षीमसी ना० वानू पुत्र व्य गणमा नावाबू पुत्र व्य केल्हाकेन ना मानू वृद्ध ना० घूघा पुत्र मेघादि कुटुंब युतेन श्री मुनिसुब्रत खामी चतुर्विंशति पट्ट कारितः प्रतिष्ठितः ॥ वम्रगत चांई सगीया श्री मर्त सुरि श्री उकेश विवदणीक गछे प्रतिष्ठा कारिता। * ( अक्षर अस्पष्ट है )।
V [19] संबत १५२७ वर्षे माघ वदि ५ शुक्रे मंत्रिदली वंश पुलह गोत्रे व पाहणमीकेन पुण्ठ कर्णसी उ उन्नयचंद व हेमा पुत्री थजाश्व सहितेन परिवार युतेन श्री शीतल नाथ विवं कारितं श्री खरतर गछे श्री जिनसागर सूरि पट्टे श्री जिनसुंदर सूरयस्तत्पट्टे श्री जिनहर्ष सूरिनिःप्रतिष्ठितं ।
[20] संबत १५६३ वर्षे माह सुदि५ युरो भेष्ठि गोत्रे सा बना जा वालइदे सुनकदा जा० पन्ह सु० गिरा गिरा थांवा सह लषा युत्तेन श्री पनप्रजु विंबं कारितं उपकेश गछे ककुदाचार्य संताने न श्री देवगुप्त सूरिनिःप्रतिहितं ॥
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V [21] संवत १६३० बर्षे माघ सुदि १३ दिने पत्तन वास्तव्य सा सांडा नार्या लषमाइ सुत वीर पालेन जार्या रंगार प्रमुख कुटुंब युतेन श्री संजवनाथ विवं कारितं प्रतिष्टितं तपा गछाधिराज श्री हीरविजय सुरिनिश्चिर नंदतात् ।
[22]
॥ रोप्य के मूर्ति पर ॥ संवत १९३३ का जेष्ठ शुक्ले १३ शनिबासरे श्री शांतिजिन पंचतिर्थीका उस वंशे उधे. डिया गोत्रे बाबु हर्षचंद तत्पुत्र बाबु बिसनचंखेन कारितं पुनमिया विजय गछे श्री शांति सागर सूरिजिः प्रतिष्ठितं ।
॥ श्री संजवनाथजी का मंदिर ॥
[23] संबत १५११ वर्षे ज्येण सु० ३ गुरौ दिने ऊन् ज्ञातीय श्री वरलद्ध गोत्रे नाथु संताने राजा नार्या राजलदे सुत सह सावलू राणा हुदा श्री मखयुतो पितृ मातृ श्रेयसे श्री चंड प्रन स्वामी विषं कारितं प्रतिष्ठितं श्री बृहमने श्री मुनिशेखर सूरि संताने श्री महेंड सूरि पट्टे श्री श्री श्री रत्नाकर सुरिनिः शुनं ॥
V[24] संवत १५४६ वर्षे माघ सु० १० रवी श्री श्रीमास ज्ञा० सं० जूनच नार्या संग जरमादे सुत सं० समरसी जार्या धनाश् सु० रा० अर्जन केन जार्या श्रहिवदे पु० सं० राणा शाणा प्र० कुटुंब युतेन खश्रेयसे श्री वासुपूज्य विंबं कारित प्रति० श्री बृहत्तपा श्री ज्ञानसागर सुरि पट्टे श्री उदय सागर सूरिनिः । वुगुज ग्राम ॥
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[25]) संवत १५६३ वर्षे माह बदि ११ दिने रवी श्री श्रीमाल ज्ञातीय सघु शाषायां । व्य केसव ना० नरमी सुत व्य० वीका नाप संपू । ब्रा० व्या आसान नार्या श्रमरादे जात न्या लाडण प्रमुख कुटुंब युतेन श्री वासुपूज्य चतुर्विशति पट्ट कारितः प्र० श्री सूरिनिः श्री स्तम्न तीर्थे । कुतवपुर वास्तव्यः ॥ शुजं भवतु ।
~ [26] संवत १५७७ वर्षे बैशाख सुदि सोमे उस्वाल ज्ञातीय सूराणा गोने साह शिवदास जिनदासकेन गृहे जार्या नाई नारिंग सुत नातृ राजपाल सहितेन मातृ नारिंग श्रेयोर्य श्री कुंथुनाथ विषं श्री चतुर्विंशति जिन सहित कारापित प्रतिष्ठितं श्री धर्मघोष गछे नंदिवर्द्धन सुरि पदे नयचंद सुरिनिः॥
v[27] संवत १७०० वर्ष फागुण सु० १५ - - - - - - - गछे जट्टारक शुजकीर्ति उपदेसात् अत्ताल ज्ञाती गोपख गोत्रे सं । दोर राज जार्या सेदख पुत्र सं० चेरह राज नायर्या जीरी पुत्र बालूमणी नित्यं प्रणमंति॥
(28]
॥ श्री शांतिनाथजी का मंदिर ॥ __ संवत १५१० बर्षे पौण् सु० १५ शुक्रे उपकेश ज्ञातीय फ० शिवा ना०प्रीमखदे सुत फ. रामाकेन जा बासूप्रमुख कुंटुब युतेन निज श्रेयसे श्री सुमतिनाथ विंबं का० प्र० श्री तपा मच नायक श्री श्रीश्री रत्नशेखर सुरिनिः॥
___[20]
॥राय बुधसिंहजी उधेड़िया का घरदेरासर ॥ संबत १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्री उकेश बंशे सेठि गोत्रे श्रेण सीधरेण ना०
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घिरी सुसूणी पु० थावरसिंह । जटादि युतेनं स्वश्रेयोर्थ श्री पार्श्वनाथ विवं का प्र० श्री खर तर गछे श्री जिनन सुरि पदे श्री जिनचं सुरिनिः।
॥श्री सांवलियाजी का मंदिर - रामबाग ॥
V[30] संवत १५४६ माघ बदि ४ सुचिंतित गोत्रे सा सोनपाल सु सा० दासू ना लाडो नाम्न्या पु० सिवराज नार्या सिंगारदे पुण् चूहड़धन्ना श्रासकरणादि सहितया स्वपुण्यार्थ श्री अजितनाथ विंबं का प्रण उपकेश गछे कुकुदाचार्य सं० श्री देवगुप्त सुरिनिः॥
जिला - मुर्शिदावाद । स्थान – बाखूचर । ॥ श्री श्रादिनाथजी का मंदिर ॥
V[31]
पत्थरों परका खेख । ॥शी जिनाय नमः ॥ शी मलिकमादित्य राज्यात् संवत १७४५ मिते । श्री शालिवाहन शकाब्दाबके १७१० प्रवत्तमाने । मासोत्तम माघ मासे शुक्ल पक्ष ३ तृतीयायां तियो गुरुवासरे श्री तपगठाधिराज जट्टारक श्री विजय जैनें सुरीश्वर विजय राज्ये । महिमापुर बास्तव्य बजलानी गोत्र। साहजी श्री जीवणदासजी तत्पुत्र धर्मजार धुरंधर माहजी श्री केशरी सिंहजी तस्यज्ञायां धर्म कर्मणि रता बीकी सरूपाजी पं। श्री नाव विजय गणिरुपदशात् । स्वगृह जिन विवं स्थापनार्थ ॥ बालोचर नगरे श्री जिन प्रासाद कारितं । प्रतिष्टितं पं० जाव विजय पं० गंजीर विजय गणिनिः । यावत्वरासुमेरोपि।विलोक्य जाखरं । तावत्तिष्टतु प्रासादं निर्विनन्तु सुनिश्चखं ॥ १॥ लिपिकृतं पं० पविजयेन ।
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(९)
1 [32]
श्री जिन शासनो जयति ॥ श्री मत्तपागण शुलांबर धर्मरश्मिः । श्री सूरि हीर बिजयोति ज्ञान लक्ष्क्षी ॥ यस्योपदेश बचनाय्यवनेश मुख्यो । हिंसानिराकृत परो प्रगुणो वजूब १॥ ततट्टे क्रमतारखीव विजय जैनें सूरीश्वर । स्तप्राज्ये प्रगुणो जिनालय वरो वालोचरे इंगके ॥ श्री संघेश सहायता शुनरुचिः श्री केशरी सिंहक । स्तत्पल्या जिन राज नक्ति बशतः कारापितायं मुदा ॥ ५ ॥ श्री वीर हीर सूरीश संघाटक गुणाकरः । वाचकोत्तम चूमान्यः श्री शशि विजयानवत् ॥३॥ तछिव्य नाव विजयोपदेश वाक्येन कारितं रम्यं प्रतिष्ठितं च सदनं जिन देव निवेशनं । शुजतः॥४॥ ज जवतु संघस्य नई प्रासाद कारके तथा नऊं तण गछ नई नवतु धर्मिणां ॥
[33]
॥ धातुर्योपरका लेख ॥ सबत १४ए बैशाख सुदि ५ जार उडिया गोत्र । सा जोदा सुत । सा पदाकेन पुन फासु रजनादि सहितेन खनार्या पदम श्री पुण्यार्थ श्री विमलनाथ विवं श्रीहेमहंस सुरिनिः
V [34] संत १५१३ बै० सुदि ५ गुरौ श्री ढुंबड ज्ञातीय फडी० शिवराज सुत महीया श्रेयसे ज्रातृ हीराकेन घ्रातृज कुलूया सुतेन श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रति बृद्ध तपा पक्षे श्री रत्नसिंद सूरिनिः॥
/ [25] संबत १५२७ वर्षे माघ वदि ५ गुरौ ऊपकेश ज्ञातीय श्रेण तेजा जा तेजलदे पुत्र जूना मा० पतसमादे पुत्र देवदास गणपति पट जैसिंग पोचा युतेन करणा श्रेयोर्थ संजवनाथ विधं का श्री साधू पुर्मिमा पक्ष श्री पुण्यचं सूरीणामुपदेशेन प्र० श्री विजयन सुरिणा कंडी वास्तव्यः ।।
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(१०)
/[38] संबत १५३४ वर्षे -- शु०३ दिने साथरसी नाया रानूं पुत्र साखूणाकेन नार्या टीसू प्रमुख कुटुंष युतेन स्वश्रेयसे श्री धर्मनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं तपा गछे श्री सदमी सागर सरिजिः पान बिहार नगरे ॥
V[37] संवत १५५३ वर्षे माह सुदि६ दिने वारडेचा गोत्रे सा कोहा ना सोनी पु० साह सीहा सहजासीहा जान्होरं श्रेयोर्य श्री कुंथुनाथ विवं कारित प्रश्री कोरंट गच्छे श्री--सूरिनिः ।
J[38] संवत १५७० वर्षे थाषाढ़ सुदि १ रवी श्री श्रीमालान्वये डउडा गोत्रे साह श्री चं पुत्र चौतादण अजय राजा रायमल श्रासधीर बाजा नार्या केली पुत्र सा योगा इटहा शकतन पासा नरपाल साह सहसमस पुत्र चिः कीर्तिसिंह साह रायमल पुत्र हेमा गजपति ठकुरसी । सा योगा पुत्र महिपाल गण इस्हा नार्या श्हणदे पुत्र सहसमस सीहम ल साह श्रासधर नार्या हासी सिंगारदे पुत्र राया शकतन जाण् शकतादे पुत्र षेता जश्तमल । पेता पुत्र जैरोदास जश्तमलेन राया शकतन पुण्यार्थ: श्री शांतिनाथ चवीस पट्ट कारित प्र० श्री धर्मघोष गछे श्री साधुरत्न सूरि पट्टे श्री कमसप्रन सूरि तत्पट्टे श्री उदयप्रन सुरिनिः ।
JH श्री विमलनाथजी का मंदिर ॥
[30] संयत १४२ वर्षे ज्येष्ट बदि ५ शनि उगड़ गोत्रे सा० पीडा पु० डाड़ा पुत्र साटा हारा रग सुकनाच्या डाडा पितृव्य सा रूल्हा पु० रेडा श्रेयसे श्री थादिनाथ विवं कारित प्र० बृद्दाशीय श्री अमरप्रन सुरिनिः ॥ शुभं भवतुः ।
J [40] संवत १५१५ बै० ब० ५ अतरी ग्रामे प्राग्वाट साभासा ना संसारी पुत्र साप
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( ११ )
कर्म सीन जा० सारू सुत गोइंद गोपा दापादि कुटुंब युनेन जातृज माहराज श्रेयसे श्री सुनि सुव्रत बिंवं का० प्र० तपा श्री सोम सुंदर सूरि शिष्य श्री रत्नशेखर सुरिनिः ॥
✓
[41]
सं० १५५१ वर्षे बैशाख सुदि १३ दिने श्री केश बंशे सखवाल गोत्र सा० बाला जाब सतादे पुत्र सा० जावडेन जा० जवणादे पुत्र रायपाल तेजा बेला लीला रामपाल जायी बांबू पुत्र लोइंट प्रमुख सपरिवार युतेन श्री मुनि सुव्रत त्रिंवं कारिनं प्रतिष्ठितं श्री खरतर श्री ३ जिनसमुद्र सूरिनिः ॥
J
J,
[42]
संवत १५१६ बर्षे श्री खरतर गठ जाड़ीया गोत्रे सा० नाथू पुत्र सा० पाल्ह सा० सकू जा० नीपारा - सटकया मपसीसू प्रमुख कुटुंबिया श्री व्यादिनाथ वि० का० ज० श्री जिनस खुरिनिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री ॥
√ [43]
सं १६५० वर्षे चै० ० ए जौमे श्रीमाल ज्ञातीय ढोर गोत्रे सा० धरमगज जाय बीरू सुत सा० सतीदास जार्या वा० इंद्राणी ताभ्यां पूष्यार्थं श्री शांतिनाथ बिंवं कारितं प्र० खरबरछे श्री जिनचंद्र सुरिनिः । श्री जिनजानु सूरीणामुपदेशेन । अजाईः ४२ घर्षे श्री कवर राज्ये ।
[44]
॥ रौप्य के मूर्तिपर ॥
॥ सं १९२० मि । श्रासोज सुदि एतिथो बुधवारे मू । बाबु श्री प्रताप सिंघजी तत्पुत्र पच । धनपत्त त्रसिंघ श्री आदिजिन विंवं कारापितं वा० सदालान प्रतिष्ठितं ॥ शांति जिनं, नेम जिनं, पार्श्व जिनं, बीर जिनं पञ्च तिर्थी । मिः मिगसर सुव २ ॥ श्रीः ॥
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(१)
॥ श्री सम्नव नाथजी का मन्दिर ॥ J॥ पडरोंपरका लेख ॥
[45] संवत १७४४ मिते बैशाख सुदि ५ रयो । श्री बालूचर पुर । न श्री जिनचं मूरि जी विजय राज्ये वाचनाचार्य श्री अमृतधर्म गणिनां पं० क्षमाकल्याण गणिः। तच्च कुमारादि युतानामुपदेशतः श्री मक्सूदावाद बास्तव्य समस्त श्री सङ्घन श्री सम्नव जिन प्रासादः कारितः प्रतिष्ठापितश्च विधिना । सतां कल्याण वृध्यर्थम् ॥
) [46] . श्रथ चैत्य वर्णनं । निधान कल्पैनवजिर्मनोरमै । विशुद्ध हेम्नः कलशैविराजितं ॥ सुचारु घंटावलि कारणाकृति । ध्वनि प्रसन्नी कृत शिष्टमानसम् ॥ १॥ चलत्पताका प्रकरैः प्रकाम । माकारयन्नुनमंनिन्द्यसत्वान् ॥ निषेधयनिश्चित पुष्टबुद्धीन् । पापात्मनश्चापततः कथंचित् ॥२॥ संसेव्यमानं सुतरां सुधीनि । नव्यात्मनि रितर प्रमोदात् ॥ बाखूचराख्ये प्रवरे पुरेदो । जीयाचिरं सम्नवनाथ चैत्यम् ॥३॥
J धातुयोंके मूर्तिपर।
[47]
ॐ संबत १५१५ वर्षे थाषाढ़ बदि १ उकेश बंश ढींक गोत्रे म० सिवा जा हर्ष पु० मा हीराकेण जा रङ्गादे पुत्री सेना प्रमुख परिवार युतेन श्री चंप्रन विवं कारितं श्री खरतर गछे श्री जिनन सूरि पट्टे श्री जिनचं सूरिनिः प्रतिष्टितं श्रीः ॥
___) [48] सं १५१९ बर्षे श्राषाढ़ वदि १ श्री मंत्रिदलीय उ० साधू जार्या धर्मिणि पुत्र स० अचल दासेन पुत्र उग्रसेन सदमीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देवपाल बीरसेन पहिराजादि युतेन खश्रे
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(११) यसे श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गठे श्री जिनसागर सरि पट्टे श्री जिन मन्दर सूरि पट्टासकार श्री जिनहर्ष सरिवरैः ॥ श्री ॥
। [40] सं० १५२३ बर्षे बैशाख बदि ४ गुगेश्री उपकेश बंशेस देव्हा नार्या म्हादे पुत्र वया सुश्रावकेण नार्या मेघू पुत्र जयजस्ता पोत्र पूना सहितेन स्वयसे श्री अञ्चल गलेश्वर श्री जय केसरि सूरीणामुपदेशेन श्री सम्नवनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री संघेन ।
150]
सं १५५४ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि १० शुक्रे उपकेश ज्ञातौ । श्रादित्यनाग गोत्रे सं० गुणधर पुत्र स० मालण ना कपूरी पुत्र स० क्षेमपाल ना० जिणदेवाइ पुत्र सारा सोहिलेन जातृ पास दत्त देवदत्त नार्या नानू युतेन पित्रोः पुण्यार्थ श्री चंद्रप्रन चतुर्विंशति पट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्री उपकेश गछे ककुदाचार्य सन्ताने श्री कक्क सूरिनिः श्री नट्टनगरे ।
V [51] सं १५५५ बर्षे ज्येष्ठ व० १ शुक्र उपके पत्तन बास्तव्य सा० देवा ना कपूर। पु० सा. पासा ना नाऊं पु० हर्षा जा० मनी ना साश्या रत्नसी सा श्रासकेन ग्लसी नमिण भी वासुपूज्य बिंवं उपश० श्री सिद्धाचार्य सन्तान प्र० ज० श्री सिद्ध सर्शिनः ॥
J[52] संवत १५२७ बर्षे ज्येष्ठ सुदि सोमे प्राग्वाट झातीय दुल गांगा वु० मुजा पुत्र वु० महिराज जा रमाश् श्राविकया श्री वासुपूज्य बिंवं कारितं श्री खरतर गष्ठे श्री जिनसागर सूरी श्री जिनसुन्दर सूरि पट्टराज श्री ३ जिनहर्ष सूरिनिः प्रतिष्ठितं श्रीरस्तु कल्याणं यात् ।
([53]) सं १५३४ वर्षे उपकेश झातीय बाल गोत्रे समवी जाटा जा जपतादे पु० माणिक
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( १४ )
अगिन्या वीपी नाम्या श्री धर्मनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं तपा गछे श्री रत्नशेखरसूरि पदे श्री लक्ष्मीसागर सूरिजिः ॥
J [ 64]
सं १५१ वर्षे बैशाख बदि ६ शुक्रे प्राग्वाट ज्ञातीय म० पाढदा पुत्र म० पांचा जागी बाइ देऊ पुत्र म० नाथा जार्या श्रा० नाथी पुत्र म० विद्याधरेण पु० म० हंसराज हेमराज त्रीमा पुत्री इंद्राणी इत्यादि कुटुंब युनेन श्रेयोथं श्री थादिनाथ बिंवं कारितं प्रतिष्ठितं तव पुरा गष्ठ श्री इंद्रनन्दि सूरिपट्टे श्री सौजाग्य नन्दि सूरिभिः श्री पत्तन वास्तव्यः ॥
J [55]
सं० १६०० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ शनौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय सा० जेठा जा० मल्दाई पुत्र रा० वा कमलादे पु० सोना वीराकेन श्री पूलिमा पक्षे श्री मुनि रत्न सुरियानुपदेशेन श्री श्रांसनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्र संधेन ॥ शुनं जवतु कल्याणमस्तु ।
J ॥ रौप्यकं मूर्त्तिवर ॥
[56]
संवत २००३ शाके १७६० प्र । माघ मासे कृष्ण पञ्चम्यां भृगौ वासरे श्री मनुवाद वास्तव्य जैसवाल ज्ञानी बृद्धशाखायां साद निहालचन्द इंद्रसिंघ स्वश्रेयोथं श्री शांतिनाथ जिन बिंवं कारापितं । खरतर गष्ठे श्री शांतिसागर सुरिनिः प्रतिष्ठितं । तप्पा सागर गष्ठे ।
राय धनपत सिंहजी का घरदेरासर ।
(57)
सं० २०२० फा० कृ० १ बुधे प्रताप सिंहजी डुगड़ जाय महताब कुंवर चंद्रप्रन पञ्चतीर्थीका | | सदा वाजेन प्र० श्री अमृत चंद्र सूरि राज्ये सं १९४७ याषाढ़ शुक्ल १० आत्मनः कख्याणार्थं ।
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( १५) किरतचन्दजी सेठिया का परदेरासर- चावलगोला ।
[58]
स० १५३३ वैशाख यदि ४ प्राग्वाट व्य० अपा जाप शाही पुत्र व्या जरसीइन नाग पद पु- साहादि कुटुंब युतेन स्वयसे श्री बासुपूज्य बिंवं का०प्र० तपा रत्नशखर सूरि पदे श्री सदमीसागर सूरिनिः।
श्री सांवलियाजी का मन्दिर-कीरतबाग ।
- [50]
पापाय के मूर्तियोंपर। ॥श्री सं० १७३० माघ शुक्ल ५ चंडे श्री पाश्वचंड गछे उ० श्री हर्षचंदजी नित्यचेहबीकानामुपदेशेन । उस बंशे गांधी गोत्रे साहजी श्री कमल नयनजी तत्पुत्र सा उदय चंजी तत्धर्मपत्नी तथा उस पं० गहखड़ा गोत्रे जगत्सेठजी श्री फत्तेचंडजी तत्पुत्र सेठ प्राणन्द चंडजी तत्पुत्री वा अजबोजी श्री मत्या श्वनाथ विवं कारापितं । प्रतिष्ठितञ्च वि० सुरिनिः श्री नानुचंदेणेति थाचंधार्कचिरं नन्दतालथं जूयाञ्चश्रियं ।
[0]
॥ श्री सं० १७३० माघ शुक्ल ५ चंॐ श्री पाश्वचंड गछे उ० श्री हर्षचंनी नित्यचं जीकानामुपदेशेन उस बं0 गांधी गोत्रे सा० श्री कमल नयन तत्पुत्र सा० उदय चंडजी तत्धर्मपत्नी तथा उस बंशे गहखड़ा गोत्रे जगत्सेठ श्री फतेचं जी तत्पुत्र सेठ आणन्द चंड तत्पुत्री बाइ खजबोजी श्री वासुपूज्य बिंवं कारापितं । प्र० सूरि श्री जानुवंजेणेति नई यालिवं सदा॥
___J[1]
पाषाणके चरणोंपर। सं० २०३० वर्षे माघ शुक्ल ४ चंडवासरे उस बंशे गांधी गोत्रे सा श्री कमल नयन
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(१६) मी तत्पुत्र सा० उदयचन्द जी तनार्या या थजयोजीकेन श्री पार्श्व प्रथम धार्यदिन्न गणधर पापुका कारापितं ।
J[[2] __ सं० १७३० वर्षे माघ शुक्ल ५ सोमे गांधी गोत्रे सा श्री कमल नयन जी तत्पुत्र साप श्ची उदयचंड जी तत्धर्मपत्नी बार अजयोजीकन श्री बासुपूज्य प्रथम सुजूम गणधर पाका काराप्ति।
___J [833 सं० १७६१ चैत्र शुक्ल पञ्चम्यां शनिवासरे चंछ कुलाधिप श्री जिनदत्त सूरीणां चरण स्थापनं श्री सदाग्रहण श्री जिनहर्प सूरीणामुपदेशात्प्रतिधितं ॥
___) [64]
धातुके मूर्तियोंपर। सं० १५१४ बर्षे बै० व०४ उके व्य० गोश्न्द ना राजू पुत्र नाथू नार्या रूपिणि जातृ-नाल्हा केन जार्या लीलू प्रमुख कुटुंब युतेन श्री श्रेयांसनाथ बिवं कारितं प्रतिष्टितं श्री सोमसुन्दर सूरिपट्टे श्री रत्नशेखर सूरि राज्येः ॥ कालधरी ॥
) [65] सं० १५३० वर्षे चैत्र बदि ५ गुरू रजीयाण गोत्रे हुवड़ ज्ञातीय दोसी गकुर सी ना। नाश् इसी सुत दोसी वासाकेन हरपाल दासा पोगा युतेन मातृ श्रेयसे श्री कुंथुनाथ बिवं कारितं हुवड़ गछे श्री सिंघदत्त सूरि प्रतिष्टितं । उपाध्याय श्री शीलकुअर गणि ।
[6] सं० १५३१ वर्षे वेशाख बदि ११ सोभे श्री श्रीमाल झा० सा० गोया जानाज सु. सा साजण मा० मदोथरि सु० सा० खटकण ला गुरा सु० सा० सोम सा पासा
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(१७)
सहसाख्यः पितृ मातृ श्रेयसे श्री अजितनाथादि चतुर्विशति पट्टः पूर्णिमा पो श्री पुष्सरल सूरीणामुपदेशेम कारितः प्रतिष्ठितश्च विधिना श्री अहमदावाद नगरे।
श्री दादास्थान का मन्दिर । पाषाण के चरणोंपर ।
[87] ॥ श्री ॐ नमः ।। संबत १०२१ मिति माघ सुदि १५ दिने मोपाध्याय जी श्री १०७ श्री समयसुन्दर जी गणि गजेंडाणां शिष्य मुख्योत्तम श्री १०५ श्री हर्पनन्दन जी शाखायां मितोत्तम प्रवर श्री श्री नीमजी श्री सारङ्गजी तशिष्य पं० वोधाजी तत्शिष्य पं० हजारी नन्दस्य उपदेशेन सुश्रावक पुण्य प्रभावक कातेस गोत्रे साहजी श्री सोलाचन्द जी तत् जात मोतीचन्द जी श्रीमत् बृहत खरतर गछे जङ्गम युगप्रधान चारित्र चूड़ामणि जट्टारक प्रजु भी १०७ श्री दादाजी श्री जिनदत्त सूरिजी दादाजी श्री १०७ श्री जिनकुशख सुरि नूरीश्वरायां पापुका कारापिता मकुशूदाबाद मध्ये प्रतिष्ठितं महेंज सागर सुरिनिः॥ शुजमस्तु ।
188] सं० १०७६ ग वर्षे मार्गशार्प मासे शुक्लपके १० तिथो शुक्रवारे बृहत श्री खरतर गछे जं। युवराज श्री श्री जिनचं सूरि सन्तानीय सकस शास्त्राशार्थ पाउन प्रधान बुद्धि निधान । श्रीमपाध्याय जी श्री १०७ श्री रत्नसुन्दर गणिजिघराणां चरण स्थापन । साहजी दूगड़ गोत्रीय श्री बाबु श्री बुधसिंह नी तत्पुत्र बाबु श्री प्रतापसिंह जी धामदेण प्रतिष्ठितं श्री रस्तुः कल्याणमस्तुः ।
श्री आदिनाथजी का मन्दिर - कठगोला।
[60]
संवत १४७५ वर्षे पोष पनि १० गुरो श्री नीमा ज्ञातीय गं गड़दा जा सक्षषु तयोः
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(१८)
सुतेन सह समयरेण स्वश्रेयसे श्री जीवत्स्वामि श्री सुपार्श्वनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री वृहत्तपा पक्षे श्री रत्नसिंह सूरिनिः शुभंजवतु ।
J[70] सं० १५३० वर्षे माघ सुदि ५ शुक्र सांबोसण वासि प्राग्वाट ज्ञा० व्य० सोना ना माऊ पु० व्या नारद बंधु व्य० विरूआकेन नावीन्दणदे पु० देधर मेला साश्यादि कुटुंब युतेन निज श्रेयसे श्री सम्नवनाथ विवं का०प्र० श्री तपा गछे श्री खदमीसागर सूरिभिः ।
J[1] सं० १५०३ शाके १७६७ प्रवर्तमाने माघ कृष्ण ५ भृगु थहमदावाद बास्तव्य उत्सवाल झाती बृद्ध शाखायां सा० केसरीसिंद तत्पुत्र साह विसंघजि तत्नार्या रुषमणी खयर्थे श्री थादिश्वर जिन विवं जरापितं श्री शांतिसागर सुरिनिः प्र०॥
श्री जगत्सेवजी का मन्दिर - महिमापूर ।
J [72] सं० १५५५ वर्षे माघ यदि १ गुरो प्रा० झा० म० जेसा ना० सुरी पुत्र सर्वणेन ना० रूपा मातृ पितृ श्रेयसे खश्रेयसे श्री कुंथुनाथ विवं का०प्र० श्री साधु पूर्णिमा पक्ष श्री पुण्यचं सुरीणामुपदेशेन विधिना श्री बिजयचंऽ सुरिनिः ॥ श्री रस्तु ।
V [73] सं० १५३६ ब० फा० सु० १५ प्राग्वाट व्या होरा ना० रूपादे पुत्र व्य० देपा ना० नीमति पु० गांगाकेन जा नाथी पुत्र मेरा लातृ गोगादि कुटुंब युतेन श्री नमिनाय विवं का० प्र० तपा ग श्री पदमीसागर सरिनिः । पीमरवाड़ा प्रामे मुंगलिया वंशे श्रीः ।
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J
[74]
१७ वैशाख सुदि ६ सोमे उपकेश ज्ञातो बलदि गोत्रे राका शाखायां सा० पास जा० हा पु० पेथाकेन जा० जीका पु० २ देपा डूदादि परिवार युतेन स्वपुण्या श्री पद्मप्रविं कारितं प्रतिष्ठितं श्री उपकेश गछे ककुदाचार्य सन्ताने ज० श्री सिद्ध सूरिजिः दन्तराइ बास्तव्यः ।
J
J
( १९ )
[75]
स्फटिक के बिंव पर ।
सं १९१० ब० ज्ये०सु० १ श्री स्तम्म तीर्थ वा० उकेश ज्ञा० गांधि गोत्रे प-सी सीत ना० शिवा श्री कुन्थुनाथ विंवं प्र० श्री विजयानन्द सूरिजिः । तप ( नय ) करण ।
[76]
रौप्य
मूर्ति पर ।
सं० २०७६ बर्षे बैशाख शुक्ल ५ तिथौ । उसवाल बंशीय श्रेष्ठ श्री माणिक चन्दजी स्वधर्म पत्नी माणिक देवी प्रतिष्ठितं श्रीमत् चतुर्विंशति जिन बिंवं चिरं जयतात् ॥ श्रेयांस्तः ॥
भद्र भवतुः ॥ १४
॥ श्री नमिनाथजी का मन्दिर
>[77]
धातुयोंके मूर्तिपर |
सं० १४८० बर्षे ज्येष्ठ बदि ५ उपकेश ज्ञातीय आयचणाग गोत्रे सा० घासा ना० वाहि पु० माजू नाहू जा० रूपी पु० खेमा ताल्दा सावड़ श्री नमीनाथ बिंवं का० पूर्वत लि० ० श्रात्मा श्रे० उपकेश कुक० प्र० श्री सिद्ध सुरिनिः ।
- कासिमबजार |
-
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(२०)
J[78] सं० १५२ए वर्षे फागुण बदि १ दिने शुक्ले श्रीमाल वंश साहू गोत्रे श्री सा० पद्दा पुत्र सा पासा जा० पूनादे पुत्र साना पाश्नादि परिवार परिवृतेन श्री श्रेयांसनाथ विवं स्वपु एयार्थ कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गछे श्री जिनन सुरि पट्टे श्री जिनचं सूरिभिः ॥
[70]
पाषाणोंके मूर्ति और चरणपर । सम्यत १५४५ वर्षे घेशाख सुदि श्री मुखसङ्घ नद्यारक जी श्री जिनचंड देव साह जीवराज पापड़ीवाल ---।
) Jr80]
॥ सं० १७७ए वर्षे मिती फागुण सुदि ५ गुरौ श्री गौतम स्वामि पाजुफा कारापितं काकरेचा गोत्रे सात वीरदास पुत्र खषमीपतिकेन ।
) [1] सम्बत् १७७० वर्षे मिती माह बाद ३ बार गुरु दिने कारितमिदं पंमित मुनिज गणि घरेष प्रतिष्ठितच विधिना उ० श्री कर्पूरप्रिय गणिनिः--- कास्माषाजार --।
) [82] सं० १७७१ मिति थाषाढ़ शुक्ल १० तियो शनिबारे पूज्य श्री हीरागरिजीना पापुका कारापिता सेठिया मुखावचन्द ॥
83]
सं० १७२१ माघ शुक्ल १३ रवौ महोपाध्याय श्री नित्यचंजी स्वमंगतः। श्री पाश्वर्या सरि गछे।
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(२१)
। [84]
॥ सम्बत १०६७ वर्षे मिति थापाढ़ सुदि ए शुनदिन बुधबारे श्री जिनकुशल सरिजी सद्गुरूप्पा चरणन्यासः कारितः भी सहेन । कास्माबाजार वास्तव्य श्रावकः सुगुणोज्योः । पूजनीयाः प्रतिदिनं गुरुपादाः --- निः१॥ ॥ श्री सम्नवनाथजी का मन्दिर -थजिमगा।
185]
पापाणको विशाख मूख बिंध पर। ॥श्री बीर गताब्दा २४०३ विक्रमादित्य सम्बत १९३३ शालिवाहन १७ए माघ शुक्ल एकादश्यां गुरुवासरे रोहिणी नक्षत्रे मीन लग्ने वङ्गदेशे म दावादांतर्गताजिमगञ्ज वासी बृहत श्रोस वंशे झुंपक गछे बुधसिंह पुत्र प्रतापसिंह तन्नार्या महताव कुमर्य तत् बृहत पुत्र राय लक्ष्मीपतिसिंह वदाउर तत् लघु जाता राय धनपतसिंह बहापुर स्वयं एवं गनपतसिंह नरपतसिंह सपरिवारेन श्री सम्भव जिन विवं शांतिनाथ जी नेमनाथ जी पार्श्वनाथ जी महाबीर जी परिकर सहित कारापितं जिक्टुरिया सम्राट विद्यामाने प्रतिष्ठितं सर्प सुरिनिः ।।
[30]
जोर्ष मन्दिर-दस्तुरहाट। डे जगवते नमः ॥ सम्बत श्रहारह से ग्यारह (२०११) कृष्ण द्वादसी भृगु बैशाख । उसवाल कुख गोत्र गोखरु श्री मौन धर्मकी साख ॥ सन्नाचन्द के अमरचन्द सुत तिन सुत मुहकमसिंह सुनाम । तिनके धाम राय मन्दिर यह जागीरथी तीर विश्राम ॥
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(२२
कखकचा-बड़ाबजार । ॥ श्री धर्मनाथ स्वामी का पञ्चायति मन्दिर ॥
पत्थर परका लेख।
1 [87] श्री॥ सम्बत चंऽमुनि सिद्धि मेदिनी । १७७१ । प्रतिष्ठितं शाके रसवहि मुनि शशी १७३ए । संख्ये प्रवर्तमाने माघ मासे धवनषष्ठि तिथौ बुधबासरे श्री शांतिनाथ जिनेंडाणा प्रासादोयम् । श्री कलकत्ता नगर पास्तव्यः श्री समस्त सकेन कारितःप्रतिष्ठितः श्री खरतर गझेश जद्वारक श्री निनहर्ष सरिनिः । श्रीरस्तु ॥
- [88]
धातुयों के मूर्तिपर। सम्बत ११९४ माघ सु० १४ पद्मप्रन सुत स्थिरदेव पत्नी रेवसिया श्रेयो ----
[0] सं० १२५ए वैशाख सु० ३ बुधे सौ जहड़ सुत सा बहुद्देव हीर जमान्यां मातृ राज श्री श्रेयो) श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता मलधारी श्री देवानन्द सरिनिः ।
- [20] सम्बत १३४५ बर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ वर्षे प्राग्वाट जाति० महं० सादा सुत महाराजा श्रेयसे ससुत मह० मातहिवि श्री श्रादिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठापितं ।
1 [01] सं० १३७५ प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० श्रामचं नायर्या रत्नादेवी पुत्र सहमा श्री शान्ति माथ का श्री हेमप्रज सरिनिः प्र महाहवाय ।
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• [02] सं० १४३४ बर्षे ज्येष्ठ वदिश गुरौ बरदुड़िया गोत्रे सा जोजदेव पुत्र मु० सरसति श्रेयसे श्री शान्तिनाथ बिवं कारितं प्र० देवाचार्य सं० -- सूरिनिः ।
- [3] सम्बत १४४ए भाषाढ़ सुदि । गुरो श्री अञ्चल गठे उकेश वंशे गोखरु गोत्र सा नालूण नार्या तिगुण सिरि पुत्र सा नाग राजेन स्वपितुः श्रेयसे श्री शान्तिनाथ विवं कारित प्रति. मृतश्च श्री सूरिभिः।
- 04] सं० १४५ घष ज्यष्ठ बदि १३ शनो प्राग्वाट ज्ञातीय श्रेण रवना नाया लखाद पुत्र सोगाकेन पित्रो श्रेयसे श्री आदिनाथ विं का० प्र० श्री-- ।
[25]
सं० १४५ए वर्षे मासि चैत बदि १ उवएस ज्ञातीय व्य० देवराज नायी जस्मादे पुत्र घूषा नाग धतूणादे सहितेन पित्रो जात रामसी श्रेयसे श्री पद्मप्रन बिवं कारितं प्र ब्रह्मापीय गछे श्री उदयानन्द सुरिनिः।
। [6]
स्वस्ति ॥ सम्बत १४७१ बर्षे फागुण सु० १५ बुधे श्रीमान महरोख गोत्रे साईदा सुत सा खेमराजे स० महादेवेन श्री आदिनाथ विवं प्र० श्री विजयप्रन सुरिनिः॥
[97]
सं० १५०३ बर्षे माघ सुदि ५ श्रोस बंशे काकरिया गोत्रे सा साजण पुत्र सा० साबिग जा- पद्माश्ना शान्तिनाथ षिवं का प्रतिष्ठितं कृर्णषीय श्री नयचं सुरिजिः ।
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( .२४ )
J[98]
सं० १५०६ वर्षे पोष सुदि ५ उस बंशे चत्तकरीया गोत्रे सा० पाइदेव जा० करणू पुत्र सामल नार्या नयष्णादे पु० श्रीवछ सदिता श्रात्म पुष्यार्थं श्री श्रेयांस बिंवं का० प्र० र्षि गर्छु भी नयचंद्र सूरिजिः ।
J[99]
सं० १५०६ बर्षे पोष सुदि १५ सोमे उपकेश बंशे श्री काकरिया गोत्रे सं० सुरजन जा० पुत्र श्रीरङ्गेन श्रात्म श्रेयसे निज मातृ पितृ श्रेयसे श्री चंद्रप्रन बिंवं का० प्र० श्री कृपर्षि गठे श्री नयचंद्र सूरिजिः ॥
A
[100]
सं० १५१० बर्षे फागुण बदि ३ शुक्रे श्री श्रीमाल ज्ञातीय ठकुर धरणी नाय बाई गाङ्गी सुत ठकुर मांगणार्या बाई वरघू तेन स्वकुटुम्ब श्रेयसे श्री आदिनाथ बिंवं कारितं प्रतिष्ठितं आगम गष्ठे श्री जिन रत्न सुरिनामुपदेशेन ॥ श्रीरस्तु कख्याण ॥
J[101]
सम्बत १५१३ बर्षे मा० सु० ६ रवो उसवाल ज्ञातीय बहुरा गोत्रे सा० स्त्रीमा पुत्र बरबा जा० वालड्दे स० जातृ रब्दा श्री विमलनाथ बिंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री चित्रवाल गठे श्री दोणाकर सूरिजिः ।
[102 ]
सं० १५१४ वर्षे थाप:० वदि १३ दिने वपुत्राणा गोत्रे तुंमिला गोत्रे सुत देवराजेन पु० पराज गुते विधं का० प्र० श्री सर्वानन्द सुरिजिः ।
\ [103]
सं० १५१ वर्षे भाषद सुदि १० मंत्रिदलीय श्री काणा गोत्रे उ० साधू ना० धर्मिणि
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पुण् अचल दासेन पु० उग्रसेन महीसेन सूर्पसेन बुद्धिसेन देवपाल वीरसेन महिराजादि युतेन श्री शान्तिनाथ का श्री जिनन सुरि पट्टे श्री जिनचंड सूरिनिः प्रतिष्ठितं ॥
J[1041 सम्बत १५१५ वर्षे कार्तिक बदि ४ गुरू श्रीमाली झातीय मंत्रि देपा नायर्या सहित सुत वरजांगकेन जात जेसा नरवद हापा सहितेन पितृ मातृ यार्थ श्री अजितनाथादि चतुविशति पट्ट कारित प्रतिष्ठित श्री ब्रह्माण गर्छ श्री मुनिचंड सूरि पट्टे श्री बीर सूरिनिः॥ जेया वास्तव्यः श्री शुनं जवतु ॥ श्रीः ॥
| (105] सं० १५१४ ये शु० १० उकेश वेदर वासि स० महिराज जार्या चपाई सुत पनसिंहेन नगिनी पद्माई प्रमुख कुटुम्ब युतेन श्री शीतलनाथ बिवं का०प्र० तपा श्री सोमसुन्दर सुरि सन्ताने श्री सदमीसागर सूरिजिः ॥ श्रीरस्तु ॥
[108] सं० १५२४ बैण् शु० प्रा० श्रे० पाता जा बाबू पुत्र जोगाकेन ना जावडि पु० रामदास जातृ अर्जुन जा० सोना प्र० कु० युतेन श्री शीतलनाथ बिवं का० प्र० श्री सोमसुन्दर सूरि सन्ताने श्री सदमीसागर सूर निः॥
[107] सं० १५३२ बर्षे धै० म०६ सोमे श्री उकेश बंशे श्राजू मन्ताने जजोजा पुत्र नखाता पूना नजोदहा नारदान्यां श्री बनिनन्दन जिन विवं कारित प्रश्र खरतर गढ़ श्री जिननं जिः ॥
___J[:08 ] सं० १५३५ वर्षे वैशाख १० १० शुक्र श्री उएश बंशे जोर गोत्रे सा० सरवण जा.
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(२६) काही पुत्र सा सीहा सुश्रावकेण ना सूइविद पुत्र श्रीवंत श्रीचंद स्तदान व शिवदास पौत्र सिद्धपाल प्रमुख कुटुम्ब युनेन श्री अञ्चल गछेश श्री जयकेशरि सूरीणामुपदेशन मातृ पुण्यार्य श्री कुन्थुनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री सबैन ॥
J[100] सं० १५३६ वर्षे वैशाख सुदिप लाम उपकेश ज्ञातीय उ० धरणी ना ऊली सु० देगला जा० कंती कनसू जतृ धात्म श्रयोथं श्री धर्मनाथ विवं का प्रति श्री नाणवाल गठ श्री धनेश्वर सूरिनिः । कारड़ा वास्तव्यः ।
__
[110]
सम्बत १५५५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ शुक्र श्रीमाल ज्ञातीय माथसपूरा गात्रे म हंसराज ना दासलदे पु० सा पेढा ला० बीमाद धात्म श्रेयसे श्री चंऽप्रन बिवं कारापित श्री धम घोष गळे ज० कमलप्रन सूरि तत्पट्टे न० श्री पुण्यवर्द्धन सूरिभिः प्रतिष्टितं ॥ 3 ॥
J [111] सम्बत १५७५ वर्षे माघ सुदि ६ गुरौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय अष्ठि लामण नार्या अजी मत पासण रूढ़ा जेसिंग इड़ा जा रमादे स्वपितृ मातृ श्रेयोथं श्री धर्मनाथ बिंवं कारितं भी पागम गछे श्रीमुनिरत्न सूरि पट्टे श्रीधानन्दरत्न सूरिनिःप्रतिष्ठितं बबयाणा वास्तव्यः॥
J [112] सं० १५७७ वष फागुण सु० ए बुधे राजाधिराज श्री नाजि नरेश्वर तम्नाया श्री मरु देव्या तत्पुत्र श्री आदिनाथ विवं का० इंशाणी अनिधानेन कर्मक्षयार्थ श्रेयोस्तु शुनं नवतु ॥
[113] सं० १६५७ वर्षे माघ सित पञ्चमी सोमे वृद्ध शाखायां अहम्मदावाद वास्तव्य उसवाल झातीय । सा घोघा नार्या कम्हा सुत सा राजा नार्या अदक सुत सा जयतमाख । जार्या
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(२७)
जीबादे सुत सागकुर नाम्ना नातृ सा पुण्यपाल सा नाकर खनार्या गमतादे सुन लालजी वीरजी प्रमुख कुटुम्ब युतेन खश्रेयसे श्री सम्नवनाथ विवं कारितं प्र० श्री तपा गछे महानृप प्रतिबोधक ज श्री हीरविजय सूरि तादृ प्रजावक सुविहित न० श्री बिजयसेन सूरिनिः आचार्य श्री ५ श्री बिजयदेव सूरि उपाध्याय श्री कल्याण विजय गणि प्रमुख परिवृतैः ॥
/ [114] सम्बत १६ए७ बर्षे फागुण सित पञ्चमि गुरुवासरे श्री स्तम्जतीर्थ वास्तव्य बृद्ध शाखायां उपकश शातीय सा० सदमीधर नायी बाई लखमाद पुत्री वा कह वाई नाम्न्या स्वमातृ साधनजी सा रतनजी सा पश्चासण प्रमुख युतया श्री नामनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठापितं च स्वप्रतिष्ठायां प्रतिष्ठितं च तपा गहाधिराज नहारक श्री विजयसेन सूरीश्वर पट्टालङ्कार श्री विजयदेव सूरीश्वर पट्टप्रनाकराचार्य श्री श्री विजयसिंह सरिनिः॥
॥ श्री महावीरस्वामी का मन्दिर-माणिकतला ॥
J[115] सं० १३४० बर्षे ----- उयसवाल ज्ञातीय सा० लाखणा श्रेयोर्थ श्री आदिनाथ विवं माता चापल श्रेयोथं श्री शान्तिनाथ विवं कुमर सिंहेन आत्म पुण्यार्थं श्री पार्श्वनाथ जार्या लखमादेवी श्रयोथं श्री महावीर विवं सुत खेतसिंह पुण्यार्थ श्री नेमिनाथ विवं कारित साह कुमरसिंहेन प्रतिष्ठितं कोरंटक गछे श्री नन्न सूरि सन्ताने श्री कक्क सूरि पट्ट श्री सर्वदेव सूरिजिः।
J [116] सं० १४४ बर्षे श्री श्रीमाल बंशे सात लामा सा हापा सुश्रावकेण पुत्र आढ़ा सहितेन खपुण्यार्थ श्री बर्द्धमान विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गछे श्री जिनराज सूरि पट्टे श्री जिनन सूरिनिः॥
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(२८)
[117] सं० १५११ बर्षे पोष बदि ५ बुध श्री ब्रह्माण गछे श्री श्रीमाल ज्ञातीयः श्रेण मांश्या ला० राणा सु० बस्ता पा० श्रलवेसरि नाम्न्या खजर्तृ श्रेण श्री कुन्थुनाथ वि० प्र० श्री विमल सूरिनिः । बगुजा बास्तव्यः ॥
[118]
सं० १५३५ बर्षे बैशाख बदि ५ रबी श्री नावमार गछे उपकेश ज्ञातीय वांगीया गोत्रे व्य० मीमण ना हलू पु० सादा ना० सूहगद पु० नेमीचन्द --- जात नेमा पुण्यार्थ समस्त कुटुम्ब श्रेयसे श्री सुविधिनाथ प्रमुख चतुर्बिशति पट्ट का प्र० श्री कालकाचार्य सन्ताने ज० श्री नावदेव सूरिनिः॥ सीरोही बास्तव्यः शुजम्नवतु ॥
- [110] सम्बत १५५१ वर्षे पोष सुदि १३ शुक्र श्री श्रीबंशे सा श्रदा जाप धर्मिणि पुत्र सा० वस्ता सा तेजा सा पीमा सा तेजा जार्या लीलादे सुश्राविकया स्वपुण्यार्थं श्री शान्तिनाथ विवं श्री अंचल गछेश श्रीमत् श्री सिद्धान्त सागर सूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं श्री पत्तन नगरे श्री सकेन ॥ श्रीः॥
1 [120] सं० १६६७ ब ज झा जड़िया गोण्स होला पुत्र स० पूरणमल्ल पुत्र सं0 नूपतिना श्री विमलनाथ बिवं महोपाध्याय श्री विवेकहर्ष गएयुपदेशात्का प्रा तपा गठे ज० श्री विजयसेन सूरिनिः ॥ ॥ श्री चंऽप्रनु खामीका मन्दिर-माणिकतला ॥
J [121] सं० १५११ बर्षे आषाढ़ बदि ए मागा उकेश ज्ञातीय सा जैसिंग जा चंनी पुत्रेण
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(२९) सा वीदाकन ना नषी सहितेन स्वश्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिवं कारित प्रतिष्ठितं श्री खरतर गछे श्री जिनन सूरिनिः ॥ श्री पुँजणू वास्तव्य ।
[122]
सं० १५१६ कार्तिक बदि रबौ श्री उएस बंशे लोढ़ा गोत्रे सा बाजू ला पीमिणि पु० सा गजसी नाग नूरा पु० सा धना ना धर्मादे पुण् सा समधरेण जाण सूढवदे सहितेन वृद्ध नातृ नरपति संसारचंड पुण्यार्थं श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं रुष पक्षीय गछे श्री सोमसुन्दर सूरिनिः॥
__ [123] सम्बत १५५२ वर्षे कार्तिक बदि ५ गुरौ श्री उएस बंशे। स घड़ीया नार्या कपूरी पुत्र स० गोवल नारा लखमादे पुत्र खेताकेन जात पितृ पितृव्य मातृ श्रेयसे श्री अंचलगन्छाधिराज श्री श्री जयकेशरि सूरीणामुपदेशेन श्री चंप्रन स्वामी विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सङ्घन ॥ कबदेशे धमड़का ग्रामे ॥ श्री॥
| [124] सं० १६३४ बर्षे फा० श्रु० - शः पत्तने सं० माइणना समस्त कुटुम्ब युतेन श्री श्रेयांस नाथ विंग का प्र० श्री बृहत्तपा गठाधिराज श्री हीरविजय सूरिनिः॥
॥ श्री शीतलनाथ स्वामीका मन्दिर-माणिकतला ॥
J [125]
सं० १५५६ बर्षे बैशाख बदि १ रबौ श्री श्रीमाल श्रेष्ठि श्रवण ना० का सु० पितृ बीरा मातृ नाणादे श्रेयोर्थ सुत माहाकेन श्री नेमिनाथ बिंवं कारितं श्री-पू-ण - रत्नसुरि पट्टे श्री साधुसुन्दर सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितो विधिना श्री सोना आमेण वास्तव्यः ।
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(३०)
[126] सम्बत १५५७ बर्षे माघ बदि १५ बुधे प्राण सा गेला ना० चा सुन सा गजा वना तपा दरपाल ना जीवणी सुहासा वसुणलादि कुटुम्ब सहितन कारापितं श्री कुन्थुनाथ विवं प्रतिष्ठितं सूरिनिः सीणोत नगरि गोत्र लीवां ।
। [127] सं० १५५० वर्षे माघ सु०५ श्री श्रीमाल ज्ञातीय दो शिवा ना सिरियाद शृङ्गारदे सुत दो धनसिंहेन नानां विहा सा कुंथरि जाण् देवसी धीरादि कुटुम्ब युतेन खश्रेयस श्री शान्ति विवं कारितं श्री सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
128} सं० १५६५ बर्षे बै० सु० १० रखो श्री तातहम गोत्रे स जेतू नार्या जिवूह पुत्र ३ सा० श्राद सा बुझू सा बाहड़ तन्मध्यात् सा बाहर नार्याया मेयाही नाम्न्या स्वश्रेयसे स्वपुण्यार्थच श्री सुमतिनाथ विवं का प्र० श्री उपकेश गछे ककुदाचार्य सन्ताने श्री देवगुप्त सूरिनिः॥ माधोखासजी उगड़ का घरदेरासर-बड़तला ।
- [ 129] ई सं० १५१५ बर्षे थाषाढ़ बदि श्री उकेश बंशे बरड़ा गोत्रे सान् हरिपाल सुत ना० थासा साधू तत्पुत्र मं ममलिक सुश्रावकेण नार्या सं० रोहिणि पुत्र सण साजण प्रमुख सपरिवार सहितेन निज श्रेयसे श्री विमलनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री खरतर गछे श्री जिनराज सूरि पदे श्री जिनन सूरिनिः।
माधोखाल बाबुका घरदेरासर-मूर्गीहाटा ।
। [130] सं० १६ए४ वर्षे माघ सु० ६ गुरौ रेवती नक्षत्र श्री छीप बंदिर वास्तव्य श्री उकेश
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(३१)
ज्ञातीय बृद्ध शाखायां सा श्री करण नार्या श्री सिरा श्रादि सुत सा सोणसी नार्या श्री संपुराई पुत्र रत्न सा शवराज नाम्ना श्री श्रादिनाथ विवं कारितं स्वप्रतिष्ठायां प्रतिष्ठापितं प्रतिष्ठितं तपा गछे जा श्री बिजयदेव सूरिनिः॥ जीवनदासजी का घरदेरासर - हरिसनरोड ।
[131] सं १५७५ बर्षे जे० ब० ११ रबी श्रेधणरी नार्या मच्च सुत सा 10 वराकेन वनगिनी श्रेयोर्य श्री पार्श्वनाथ बिंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री मत्तपागधमंडन श्री सोमसुन्दर सूरिभिः ।
(132]
सं १५७७ ब बैशाख सु० १३ दिने श्री श्रीमाली श्रेण बहजा ना बहजसदे पु० साल करणसी जाजीवादे काना सहितेन श्री शांतिनाथ बिवं का०प्र० पूर्णिमा पक्ष श्री मुनि चन्ड सूरिभिः परजा बा ॥
[13] ___ सं १६०४ बर्षे बैशाख बदि सोमे श्री उसवाल ज्ञातीय सा देवदास जार्या वा देव लदे तत्पुत्र सा० श्री रतनपाल ना वा० रतनादे सपने सा जावड़ ना० वा जासलदे तस पुत्री वा जीवण श्री धरमनाथ श्राप - जिदास परिवार बृतैः।
४७ न० ईशियन मिरर स्ट्रीट-धरमतला। श्री रत्नप्रभ सूरी प्रतिष्ठित मारवाड़ के प्रसिद्ध उपकेश (ओसियां) नगर की श्री महावीर स्वामीके मन्दिरके पार्चमें धर्मशालाकी नींव खोदने में मिली भई श्री पार्श्वनाथ जी के मूर्तिके परकरके पश्चातका लेख ।
1 [184] उ संवत १०११ चैत्र सुदि ६ श्री कक्काचार्य शिष्य देवदत्त गुरुणा उपकेशीय चेत्य रहे अखयुज् चैत्र षष्ठयां शांति प्रतिमा स्थापनीया गंधोदकान् दिवालिका जासुख प्रतिमा इति ।
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(३२)
तीर्थ श्री चंपापूरी।
यह प्राचीन जैनतीर्थ ६, थाई रेलवेके ग्रुप सैनके जागलपुरके पास नाथनगर टेसन से मिला हुवा है। यहां चंपापुरी-चंपानगर-चंपा-हालमे जिस्को चम्पनालानी कहते है ११ मां तीर्थङ्कर श्री वासुपुज्य खामीके पञ्चकल्याणक नये हैं। यहां श्वेताम्बरी दिगम्बरी दोनो सम्प्रदाय के जुदे २ मन्दिर वर्तमान हैं। राजगृहके श्रेणिक राजाका बेटा कोणिक जिस्को अजातशत्रु वा अशोकचं जी कहते हे राजगृहसे अपनी राजधानी उगकर यहां चंपामें लायाथा । सुनसा सतीजी इसी नगरकी रहनेवाली थी। तीर्थकर महावीर स्वामीने यहां ३ चौमासे कियेथे थौर उन्के थानन्दादि मुख्य श्रावकोमें कामदेव श्रावक यहांका रहनेवाला था और जैनागमके प्रसिद्ध दश बैकालिक सूत्रनी श्री शय्यंजव सूरी महाराजने इसी चंपापुरी में रचा था। बसुपूज्य राजा जया रानीके पुत्र श्री वासुपूज्यस्वामीका चवन जन्म फाल्गुण वदि १४, दिक्षा-फाल्गुण सुदि १५, केवल ज्ञान-माघ सुदि और मोक्ष-वाषाढ़ सुदि १५ यह पांच कल्याणक इसी नगरमें नयेथे इस कारण यह पवित्र क्षेत्र है।
पापापोंके बिंव और चरणोंपर ।
[135] सं १६६७ । श्री धर्मनाथ विवं का सा हीरानंदन । प्र० श्री जिनचंड सरिनिः॥
- [186] सं १७२७ वर्षे वे० सु० ११ --- श्री तपा गछे श्री वीरविजय सुरिनिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री सरन। * यह मुर्शिदाबाद के प्रसिद्ध जगत्सठके पूर्वज साह हीरानन्दजी है, जैसा सम्भव है।
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- [137] सम्बत १७५६ बर्षे बैशाख मासे शुक्ल पक्ष बुधवासरे। तृतीयायां । चंपापूरी तीर्या धिराज । श्री देवाधिदेव श्री वासुपूज्य जिन विवं समस्त श्री सकेन कारितं । कोटिक गण चऽ कुलालङ्कार । श्री मत् श्री सर्व सुरिनिः प्रतिष्ठितं ।
- [138] संवत १७५६ बैशाख मास शुक्ल पके बुधवासरे ३ तिथो श्री अजितनाथ स्वामि विवं प्रतिष्ठितं । श्री जिनचं सूरिनिः बृहत् खरतर गछे कारितं मकसूदावाद वास्तव्य --- ।
| [139] सं १७५६ शाख मासे शुक्ल पः तियो ३ ॥ बुधवासरे। श्री चंऽप्रन जिन बिवं प्रति ष्ठितं न। श्री जिनचंऽ सूरिभिः। बृहत् खरतर गछे कारितं च । बीकानेर वास्तव्य कोठारी अनोपचंद तत्पुत्र जेठमलेन श्रेयाथं ।
__ [140] सं १७५६ वेशाग्व माप्ते शुक्ल पक्ष बुधवासरे। तृतीया तिधो। श्री महाबीर खामि विवं प्रतिष्ठितं। ज०। श्री जिनचं सूरिजिः। बृहत् खरतर गछे कारितं समस्त श्री सकेन श्रेयोथं ।
[141] संबत १७५६ बैशाख मासे शुक्ल प०३ दिने। श्री शान्तिनाथ जिन बिंवं प्रतिष्ठितं । खर तर गठाधिराज ज०। श्री जिनसान सूरि पट्टालङ्कार । ज० श्री जिनचं सूरिनिः कारितं । --- समस्त श्री संघेन श्रेयोर्थ ॥
| [142] सं १७५६ बैशाख मासे शुक्ल पके बुधवासरे ३ तिथो श्री वासुपूज्य स्वामि बिंवं प्रतिष्ठित
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(३४) श्री जिनचंऽ सूरिभिः वृहत् खरतर गछे अजिमगा वास्तव्य कारितं गोलेष्ठा गोत्र -- --श्राविकया कारि॥
(२। शान्तिनाथ ३ । चंप्रनु । विमलनाथ --- अजयराजेन श्रेयोर्थ । )
, [148]
॥सं। १७५६ फाल्गुण कृष्ण प्रतिपत्तथो श्री वासुपूज्य जिन चरण न्यासः प्र। सब सूरिनिः । कारितं । सर्व संघेन । चंपानगर मध्ये ॥
J [144] ॥ संबत । १७५६ वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीयायां तिथो श्री जिनकुशल सूरि पाषुके । प्रतिष्ठितं नः श्री जिनचंड सूरिनिः बृहत् खरतर गछे कारितं । समस्त श्री संघेन श्रेयोर्थ ।
। [145] संवत ११ मिति माग शुक्ल षष्ठ्यां शुक्रवार काष्ठासंघ माथुर गछे पुत्कर गणे लोहाचार्याम्नाय जट्टारक श्री जगत्कीर्ति सदानाय अग्रोत कान्वये पिपल गोत्रे प्रयाग नगर बास्तव्य सा० क श्री हीरालाल पुत्र ऋषनदास पुत्र सन्नूलाल --- अगरवाल प्रजा सा --श्री पद्मप्रज---प्रतिष्ठा कारिता ।
। [146] संरए०० आषाढ शित ए गुरो श्री संजवनाथ बिवं प्रतिष्ठितं वृहत - - - सूरिभिः कारितं च दूगड़ सरूपचंद वात करमचंद हुलासचंद जननी प्राण बीबी श्रेयोर्थ ।
- 11471 संवत १० वर्षे मिः फागुण सुदि ३ दिने। श्री शान्तिनाथ विवं कारितं मकसुदावाद वास्तव्य श्री संघेन श्रेयसे प्रतिष्ठितं च ज । श्री जिनहर्ष सूरि पट्टालङ्कार न । श्री जिन सोनाग्य सूरिचिः वृहत् खरतर गछे ।
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Footprints, Champapuri Temple, dated S. 1856 (1799 A.D.)
॥सार८५६फागुएलालप्रतिपतियोशी
WITHPANKALTRANSAR
वासपूज्पजतचरगन्यासःला
गरमध्ये॥
जसर्वसरिलिाकारितासहसंघनापान
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(३५)
[148]
सं १ए५० मि । फा० कृष्ण ५ बुध --गड़ प्रताप ---
-- [149]
॥ संवत १९२५ मिति जेष्ठ शुक्ल छीतीया तिथो रबीवारे झूगड़ गोत्रे श्री प्रतापसिंहजी तघ्नार्या महताब कुंवर तत्पुत्र राय समीपत्तसिंघ बाहार तत् खपत्राता राय धनपतसिंघ वहापुर तत्पत्नी प्राणकुंवर जन्म सफली करणार्थ । ज । युन श्री जिनहंस सूरिजी बिजेराज ॥ ज श्री श्राणन्दबहन गणि तत् शिष्य उ० श्री सदालान गणि प्रतिष्ठिता ॥ पूज्याचार्य श्री रतनचन्द सूरि बुंपक गछे ॥श्रीः ॥ कल्याणमस्तु ॥ श्री नवपदजी श्री चंपा पूरोजी स्थापिताः ॥ श्रीः॥
- [150]
श्री वासुपूज्यजी जन्म कल्याणक । सं० १ए२५ मिः फागुन कृष्ण ५ तियो। ड्रगड़ श्री प्रतापसिंघजी तत्पुत्र राय खबमीपत्तसिंघ बहार तत्त्रात्र श्री धनपत्तसिंघ बहापुर कारापितं जंग। यु।प्र। न। श्री जिनहंस सूरिजी विजेराज्ये ॥ उ० श्री सागरचन्द गणि प्रति ष्ठितं ॥ शुनंच्यात् ।
[151]
धातुयोंके मूर्तिपर। सं १५०ए बर्षे ज्येण सु० - रबौ रंगू ला रमाई-- हेमा हापा खापा पु० साहस जाण लक्ष्मीरूपिणि पुण्यार्थ श्री चतुर्विंशति जिन प्रतिमा श्री नमिनाथ विवं का प्र० श्री संमेर गठे श्री शांति सूरिनिः ॥ श्रीः
J [ 152] संवत १५२७ बर्षे माघ ० १ सोमे प्रा० सं० धारा जा सखषू सुतेन सा वेखा बंधुना
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(३६)
स० वनाकेन ना सी प्रमुख कुटुम्ब युतेन निज श्रेयसे श्री सम्नवनाथ बिवं कारित प्रतिष्ठितं श्री सूरिनिः ॥ माल्यबन ग्रामे ॥
- [153] सं १५३७ श्री मूलसंघे श्री मानिकचन्द देवराज प्रतिष्ठापितं - - - ।
J[154]
सं० १५५१ बर्षे मा सु० १३ गुरू उकेश बंशे सिंघाड़िया गोत्रे सा चांपा ना राऊं पु० सा जोला ना लहिकू पु० सा० पूजा सा० काजा सा राजा पु० धना सा० कालू सा० काजा ना कुनिगदे इत्यादि परिवृतेन सा काजाकेन श्री श्रादिनाथ चतुबिंशति पट्टे का प्र० श्री खरतर गछे श्री जिनसागर सूरि पट्टे श्री जिनसुन्दर सूरि पट्टे श्री पूज्य श्री जिन हर्ष सूरिनिः॥
[155] संबत १५७१ बर्षे माघ बदि १० शुक्रे श्री प्राग्वाट ज्ञाण बृद्धशाखायां व्य० सहिसा सु० व्य० समधर जा० बड़धू सुत व्य० हेमा नार्या हिमाई सुत व्य० तेजा जीवा बर्द्धमान एते प्रतिष्ठापितं श्री निगम प्रजावक श्री आणंदसागर सूरिभिः ॥ श्री शान्तिनाथ विवं श्री रस्तु श्री पतन नगरे ॥
[156] संवत १५७५ बर्षे थापाड़ सुदि ५ सोमे श्री उसवाल ज्ञातीय आश्चणी गोत्रे चोर वेडीया शाखायं सं० जश्ता नार्या जश्तलदे पु० सं० चूहड़ा नार्या नूरी सुत ऊधरण चंड पाल आत्म श्रेयोर्थ श्री आदिनाथ विवं कारितं श्री उपकेश गछे कुक्कदाचार्य सन्ताने प्रति ष्ठितं श्री श्री श्री सिद्धि सूरिनिः। - - - -
J[157] संवत १६०३ बर्षे मामशिर सुद ३ शुक्रे प्राण ज्ञा-- वास्तव्य -- जा रङ्गादे सात
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Choubisi (Metal) Champâpur Temple, dated S. 1551 (1494 A.D.
साजालाजाला
सातारा
RRIER
रावारासिंघडियागोद
CELE-linethhot
प्रजासाकाजासाहराज्ञा
-
मानिसदस्या
सा कालसा काजाना
परितनसा कोजाक नधी दिनार शतिप का प्रचारवर गाजश्रीजिनसागरना
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(३७)
सूरा जा सूरमादे साए श्री रङ्ग सदारङ्ग श्रमीपलादि कुटुम्ब युतेन साह सा चवीरेण श्री सुमतिनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं श्री तपा गछे श्री विशाखसोम सूरि शिष्य श्री श्री५सूरिनिः।
4158]
झींकार यंत्रपर। सम्बत १६६ए वर्षे शुक्लपक्षे त्रयोदशी दिने शुक्रवारे श्री मूलसंघे सरखति गछे बखत्कार गणे चंपापूरी नगर शुनस्थाने ---
1150] सम्बत १६७३ वर्षे मूलसंघे ना श्री रत्नचंड उपदेशेन उपा० श्री जयकीर्ति प्रतिष्ठित -- ग्रामे समस्त श्री संघेन कारापितं ।
बाबु सुखराज रायजी का घरदेरासर - नाथनगर
पाषाणके मूर्तिपर।
[10] सं० १७७७ माघ सुदि १३ बुधे ओस बंशे कगरा गोत्रीय लाला जमनादास तन्नार्या थासकुवर तथा श्री वासुपूज्य जिन बिवं कारितं मुनि हेमचंञोपदेशात्प्रतिष्ठितं श्री बृहत् खरतर गडीय श्री जिन ----।
पञ्चतीर्थीयों पर।
__[161] सं० १५१ए - - - मंत्रिदक्षीय श्री काणागोत्र लाधू जाप धम्मिणि पु० स०
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( ३८ )
अचल दासेन पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेनादि युतेन श्री शान्तिनाथ बिवं का० प्रति० श्री जिनसुन्दर सुरि पट्टे श्री जिनदर्ष सूरिभिः ।
[162]
सम्बत १५७१ बर्षे बैशाख सुदि ३ सोमे श्रीमत्परा ॥ ते || मिधूज गोत्रे । स० इम ज० - - - सुश्रावकेण जा० जीवादे पु० ध्यानन्द सा० सोहिल प्रमुख सहितेन श्री श्रादिना ष विं कारित प्रतिष्ठितं श्री खरतर गठे ॥ श्री जिनरत्न सूरिनिः ॥
झकारके यंत्रपर |
✓[163]
सम्बत १०५६ बर्षे बैशाख मासे शुक्लपदे तिथौ ३ बुधे श्री सिद्धचक्र यंत्र प्रतिष्ठितं श्री जिन अक्षय सूरि पहालङ्कार श्री जिनचंद्र सुरिजिः जयनगर वास्तव्य श्री मालान्वये जरगड़ गोत्रीय सुश्रावक खुबचन्द तत्पुत्र रोसनराय बृद्धिचन्द खुस्यालचन्द सरूपचन्द मोतीचन्द रूपचन्द सपरिकरण कारित स्वश्रेयोयं ॥
स्थान
भागलपुर ।
श्री वासुपूज्यजी का मन्दिर ( धर्मशाला मे )
पाषाणपर ।
[164]
शुभ सं० बीर गतान्दा २४०५ बिक्रम नृपात् १९०३६ रा जेष्ठमासे वरे शुक्लपदे त्रयोदश्यां तिथौ – चम्पा नगयां श्री बासुपूज्यजी पञ्चकल्याणक भूम्युपरि खोश बंशे दूगड़ गोत्रे बृ । शा । बा । श्री बुधसिंघजी तत्पुत्र श्री प्रतापसिंघस्य चतुर्थ बधूः मद्द्ताबकुमरी खजव सफल करणार्थ इष्ठा कृतासिच कालबशात् सं० १९३२ श्रावण कृ० ६ दिने कालधर्म प्राप्तस्य मनोरथाय तत्पुत्र राय श्री लक्ष्मीपत सिंघजी बहादुर राय श्री धनपत सिंघजी बहादुर
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Footprints from Mithila, dated S. 1875 (1818 A.D.)
ऐ॥सवमा बिनागेदोराधक्काददानुगामविनायो:वदजी
|| मंमितीवेशादिशामुकेमिथिलानमयों ग्रामविनमिजिनचरणन्यासः
मितवरतरे एनीमिनट निदेनीठी गरमधील,किलमा
पलहितमदिवाकाट्राटद-शुपमम् ॥
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( ३९ )
तेन द्रव्येण धर्मशाला जिनालय कारापितं प्रतिष्ठितं सर्व सूरिजिः श्रीसंघ च संजालसी श्री संघमालक श्रीरस्तु श्री कल्याण मस्तु श्री जीकटरीया इमप्रेश राज्ये ष्ष्टाब्द १८७९ ।
पाषाण के चरणों पर ।
✓[165]
(१) च्यवन ( २ ) जन्म (३) दीक्षा ( ४ ) केवल ( ५ ) निर्माण कल्याणक पाडुका ॥ साधु १२००० | साध्वी १२५००० | श्रावक २१५००० । श्राविक्का ४३६००० ॥ श्री वासु पूज्य पञ्चकल्याणक चरण कारापितं चंपा नगरे घोशवाल वृ । शा । डूगड़ गोत्रे वा । श्री बुधसिंघजी तत्पुत्र श्री प्रतापसिंघजी तत्नार्या महतावकुमर बीबी तत्पुत्र राय श्री लक्ष्मी पतसिंघ श्री धनपतसिंघ बहादुर कारापितं प्रतिष्ठितं सर्वसूरिनि श्री संघस्य शुजंभवतु ॥
✓[166]
॥ ए ए ० ॥ सम्बद्वार्षि नागेन्दो राध शुक्लादशी भृगौ मल्लि नम्योः पदं जीर्णमुद्धृत खरतरेण श्री जिनदर्ष निदेशी वा जाग्यधीर गणि किल माल्हू गोत्रस्य प्रष्णेन्दोर्वित्तमुद्दिश्य काय्यकृत् २ युग्मम् ॥ र्स० १०१५ मिती बैशाख सुदि १० शुक्रे मिथिला नगय श्री मल्लि जिन चरणन्यासः ॥
✓[167]
सं० २०३१ माघ शुक्लपदे १२ बुधे श्री वासुपूज्य ( छा िजतनाथ, सम्भवनाथ ) जिन
* यह चरण दरभङ्गा लैन में सीतामढी ष्टेसनक पास मिथिला नगरी से उठाकर लाया भया है। वहां इस समय कोई जैन मन्दिर नही है । १९ मां तीर्थङ्कर श्री मल्लिनाथ स्वामी के चार कल्याणक और २१ मां श्री नमि नाथ स्वामी चार कल्याणक यहां भये थे । श्री मल्लिनाथ मिथिला के कुंभ राजा और प्रभावती रानीकी कुमरी थी । जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान मार्गशीर्ष सुदि ११ के दिन भया था। इसी नगरके विजय राजा और विमा रानोके पुत्र श्री नाममाथ स्वामीका जन्म श्रावण वदी ८, दीक्षा आषाढ़ वदि ९, केवल ज्ञान मार्गशीर्ष सु० ११ के दिन भयाथा किसी २ ग्रन्थमें “ मिथिला ” के स्थान में " मथुरा " नगरी भी देखने में आया है। सत्या सत्य ज्ञानगम्य है । चरम तीर्थङ्कर महावीर भगवानका भी ६ चौमासा यहां भयाथा ।
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विवं श्रोस वंश गढ़ गोत्रे वाबु प्रतापसिंह पुत्र गय बहापुर धनपतसिंदेन कारापितं । मखधार पूर्णिमा श्री मद्विजय गळे नद्यारक श्रो जिन शांतिसागर सूरिनिः ॥
[188] ॥ सं० १९३३ मा । शु । ११ श्री मद्विजिन विवमिदं मकसुदावाद बास्तब्य श्रोश बंशीय झुंपक गणोपाशक दूगड़ गोत्रीय वाबु प्रतापसिंहस्य जार्या महताव कुंवरिकस्य लघु पुत्र राय धनपतसिंहेन कारापितं प्रतिष्ठितंचाचार्येण अमृतचं सूरिणाबुकागठीयेन ॥ श्री मिथिलापुरवरे ।
[160] सं० १९३३ मि। मा। सु । १५ श्री नमिजिन विवमिदं मकसुदावाद बास्तब्य श्रोश बंशीय झुपकगणोपाशक दूगड़ गोत्रीय बाबु प्रतापसिंहस्य नार्या महताब कुंव रिकस्य लघु पुत्र राय धनपतसिंहेन कारापितं प्रतिष्ठितं चाचार्येण अमृतचं सूरिणा झुंकागष्ठीयेन सीतामढ़ी मिथिलायां।
पंचतीर्थी पर।
[170] ॥ सं० १५ आषाढादि ए६ वर्षे आपाड़ शुरु ११ दिनः राजएकारी गोत्रे नं० सिवा जा रत्नादे पु० न० हेमराज वेला ना वासहदे पु० पता -- विवं कारापितं पुण्यार्थ श्री संमेर गछे न० श्री साल सूरिनिः प्रतिष्ठितं ॥ सू० तानाकेन कृतं ।
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Footprints. Kakandi Temple, dated S. 1822 (1765 A. D.)
नमः स्वत८ २२२ वैशा२ मा से शुक्ल ९ रवीति श्री सुविधिनाथ निंदर चर एक
मलेश
वित्ते ॥
कं दी।
ऊमा
एक ।
श्री सं
जीर्णो
रा
निंदतीर्थों
स्था
श्री की
नगरी
कल्या
स्थान
घेना।
वारक
तिर
का कं दीना मकोवर:
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तीर्थ काकंदी और क्षत्रियकुण्ड लखीसराय स्टेशन से ६ कोस पर काकंदी है। नवमा तीर्थंकर श्री सुविधिनाथ जी का चवन-जन्म-दीक्षा और केवल ज्ञान यह चार कल्याणक यहां जये हैं। सुग्रीव राजा रामा रानी के पुत्र थे। मृगशीर बदि ५ जन्म, मृगशीर बदि ६ दीक्षा और कार्तिक सुदी ३ के दिन केवल ज्ञान नया । जैन मुनि धन्ना काकन्दी जी यहीं गये हैं।
यहां से नव कोस पर खत्रिय कुएफ आज कल लबगड़ गांव के नामसे प्रसिद्ध है। चौविशमां तीर्थंकर श्री महाबीर खामी का चवन, जन्म और दीक्षा यह ३ कल्याणक यहां जये हैं।
मूर्तियों पर।
/ [171] संवत १५०४ बर्ष फागुण सुदि ए महतियाण वंशे मुंमतोड़ गोत्रे । मं० महणसी पुत्र स देपाल नार्या मू० महिणि खकुटुंबेन प्राता द० मित्र लखमी पुत्र व्य० हंसराज पुत्र - -- श्री महावीर विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सरतर पाण शुलशील गणिनिः --- ।
[172] संवत १५०४ फागुण सुदि ए दिने महतियाण बंशे मुंमतोड़ गोत्रे । सं० -- राजपुत्र मंग महादेपाल न० माहिणि पुत्र मं० सिवाई।
चरण पर।
[173] थों नमः । संबत २०२२ वर्षे बैशाख मासे शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथौ श्री सुविधिनाथ जिन वर चरण कमले शुने स्थापिते ॥ श्री काकंदी नगरी जन्म कल्याणक स्थाने श्री संघेन जीर्णोद्धार कारापितं ॥ १ चिरं नन्दतु तीर्थोयं काकंदी नामको वरः ।
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( ४२ )
पापाण पर । ✓ [174]
शूदाबाद अजीमगञ्ज बास्तव्य डूगड़ गोत्रे बाबु प्रतापसिंहजी तनार्या महताब कुंवर तत्पुत्र राय लक्ष्मीपत तत्लघु सहोदर राय धनपतसिंह बहादुरेण न्याय द्रव्यण व्यय बोर प्र का जिनालय करापितः लबवाड़ मध्ये उ० श्री सागरचंद्र गणि प्रतिष्ठितं । सं० १९३० मिती बैशाख वदी १ चन्द्रे
--1
N
श्री गुनायाजी ।
नवादा ( गया लाईन) टेसनसे १ || माल पर यह स्थान है। इसका नाम शास्त्र में "गुणशील चैत्य" से प्रसिद्ध है । यहां २४ मां तीर्थंकर श्री महाबीर स्वामीका १४ चौमासा प्रयाथा । स्थान मनोहर और श्री पावापुरी तीर्थके जलमन्दिर की तरह तालाव वा विचमें मन्दिर है ।
धातुके मूर्त्तिपर |
J
[175]
संवत् १५१८ वर्षे फागुण बदि १२ उसवालान्वये मूधाला गोत्रे स० - मीला जा० बील्हू पुत्र सा० तोहा जा० पई नाम्न्या स्वपुण्यार्थं पद्मप्रन बिंवं कारितं प्र० श्री पद्मानंद सूरिजिः ।
पाषाणके चरणों पर ।
[176 ]
संवत १६०० बर्षे बैशाख सुदि १५ तिथौ मंत्रीदल बंसे चोपरा गोत्रे ग० बिमलदास तत्पुत्र ठग० तुलसीदास तत्पुत्र श्री ठा० संग्राम गोबर्द्धनदास तस्य माता ठकुरी श्री निदालो तत्पु० जार्या ठकुरेटी यु० ज० श्री जिनकुसल सूरिका कारापिता पूज्य श्रीश्री ५ श्री श्री राज सुरि बिद्यमाने उपाध्याय अजय धर्मेन प्रतिष्ठा कृता स्थिर लग्ने खरतर गछे ।
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Footprints, Gunashila (Gunawa) Temple, dated S. 1688 (1631 A. D.)
JAN 2018ISASSPO AL
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टिका कातिविता पूजा
हान्नहबमवरनर
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पताना
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संबटनप्रीगतमाम
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( ४३ )
✓[177]
संवत १९७२४ मिति माघ कृष्ण ए जोमे श्री गुण शिलाख्ये चैत्ये श्री डूगड़ प्रतापसिंह कानां जाय मह्ताव कुंवर तत्कुदितोत्पन्न कनिष्ठ पुत्र श्री राय धनपतसिंह बहादुर नाम्ना स्वपत्नी प्राणकुंवर जन्म सफली करणाथं श्री अष्टापद तीर्थे श्री शत्रुंजय निर्वाण खाजता श्री यदि जिन चरण पाडुका कारापिता श्री जिननकि सूरि शाखायां उ० सदा लाज गणिना प्रतिष्ठितं शुभम्
j.
[178]
सं० १९३० माघ शु० ५ सकल संघेन श्री बीर पाडुका कारापित स्थापितं श्री गुणशीघ्र चेत्ये श्रात्महिताय ॥
पाषाण पर ।
✓[179]
सं० २०१४ मिती माघ कृष्ण ए जोमे गुणशीले चैत्ये डूगड़ गोत्रे श्री प्रतापसिंहजी तत्जार्या महताब कुंवर तत्पुत्र चिरू राय बढ़ापुर तत् प्रथम पत्नी प्राणकुंवर जन्म साफल्य करा पिता जीर्णोद्धारं । उ० श्री आणंद बलन गपि ततशिष्य उ० श्री सागरचंद गणि उपदेशात् ॥ श्रीः ॥ शुनंचूयात् ।
पाषाण पर ।
[180]
= 1 श्री जिनेंद्र जयती । स्वस्ती श्री मद बीरजिनेंद्र सं० २४२९० वि० सं० १९५९ बर्षे बै० वद० बुधवारे श्री तपा गछामनाय धारक सुश्रावक दसा श्रीमाल ज्ञातीये सा० रुपचन्द रंगीलदास देवचन्द पाटनवाला दाल मुकाम येवला मुंबई ये वनना स्मर्नार्थं तत्त बन्धु चतुर चन्द सुत वेल चन्द वाल चन्द भाग चन्द जय = ३ ये ॥ श्री गुणशील चैत्य था
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(v)
धर्मशाखा धावत्या देरासरमा पपासणो गोखलायो दरवाजो नमतीनी देरी = ४ सहीत मर पारसनु काम तथा सखावनी प्रीत तथा रीपेर बीगरे जीर्णोद्धार करावा भी शुनं जयतु सदा । सबाट प्राचंद नगजीवन मीनी पानीताणा वाखा -- ।
तीर्थ श्री पावापूरी। शासन नायक श्री महावीर स्वामीका यह निर्वाण कल्याणक का स्थान जेनीयोंका प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र है। २४ मां तीर्थकर के समवसरण की रचना और उनका मोक्ष यहां गये हैं। समवसरण के स्थानमें १ स्तंन वर्तमान दे कोई लेख नही है। वहांसे प्राचीन घरण उगकर जलमंदिर के पासमें तलावके पाड़ पर विराजमान हुथे हैं। अग्निसंस्कार की जगह तालाव और मंदिर है। प्राचीन मंदिर १ गांव में है और नवीन मंदिर = १ खेताम्बरी और १ दिगम्बरी उस तालाब के पाड़में पनाहे और कई धर्मसालायें है।
समवसरणजी के प्राचीन चरणों पर ।
V [181] सं० १६४५ वर्षे बैशाख सुदि३ गुरो श्री----- कनकविजय गणिनिः---। (अक्षर घस जानेके कारण पढ़ा नही जाता)
___ जसमंदिर - पावापुरीजी भी गोतमखामीजीके चरणोंपर ।
2 [ 182 ] सं० १९३५ मि० मा शुक्र एवं गोतम गपधर पाका काराप्तिं उसवान चोमिया
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(५५) गोत्रे नानकचंद जीवनरास प्रार। ज० । भी जिन नहीपन सूरी तशिण मुनि पर अब उपदेशात् ।
भी सुधर्मा खामीजीके चरणोंपर ।
1183] सं० १९३५ मि० था शुक्ल५ इदं पाएका श्री सुधर्मा स्वामी कारापितं ओसवाल ज्ञातो पाड़ेवा गोत्रे - न सुख प्रतिष्ठितं वृ० ज० श्री जिन नंदीवर्द्धन सूरि तत्शिष्य मुनि पयजय उपदेशात् ।
पामे तर्फकी गुमटीमें १६ चरणोंपर ।
-[184] संवत १९३१ का मिती माघ शुक्ल १० तियो चंडबारे श्री वृहत् गुजराती खुंका गछे भी पूज्याचार्य श्रीश्री १०० श्रीश्री अक्षयराज सुरि तत्पहालङ्कार श्री अजयराज सरि चरण प्रतिष्ठितं सुश्रावक बाबू श्री प्रताप सिंघजी राय धनपत सिंघजी दूगड़ गोत्रीयण षोड़श महासती चरण कारापितं ॥ श्री शुजंजूयात् ॥ पावापूरीमें - स्थापितं ॥
दाहिने तर्फकी गुमटीमें चरणपर ।
-[ 185] ॥ संबत १७५३ वर्षे भाषाढ शुदि पञ्चमि दिने गणि दीप विजयणा पाऊका ॥
गांव मंदिर - पावापूरी।
पंचतीर्थीपर।
) [188] सं० १५१९ श्रापाद यदि १० मंत्रिदलिय श्री उसियड़ गोत्रे स० मेघराज स० जियदास
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(४६)
मा० करगिणि पुत्रेण स शुनकरण ना० पद्मिन्या: पु० लक्ष्मीसेन दाबू जनम्याः श्रेयोपं श्री संनवनाथ विवं का० श्री खरतर श्री जिनन सूरि पट्टे श्री जिनचंड सुरिनिः प्रति ष्ठितं श्रेयोस्तुः॥
! [187] सं० १५६५ वर्षे वैशाख सु० १० दिने श्रीमाल ज्ञातीय गोत्रे मोतिप्पा सा रणमल पुत्र सा दीपचंद नार्या जीवादे कारितं । श्री खरतर गछे नहारिक श्री जिनहंस सूरि गुरुभ्यो नमः ॥ प्रतिमा श्री शांतिनाथ विं कारितं ॥
पापापके चरण पर।
/ [188] सं० १६५५ वर्षे घेशाख सुदि ३ गुरौ --- रुपचंद पुत्र जसराज अपेण चापा - श्री बर्द्धमान जिनस्पेयं पाउका कारा --।
/ [180]
॥ संवत १७७२ वर्षे माह सुदि १३ दिने सोमवारे श्री पुएकरक चरण कमल पाय
। मध्यके चरणपर।
[100]
॥५०॥ स्वस्ति श्री जयोमंगवान्युदयश्च ॥ श्री गौतमस्वामिनोखब्धिः ॥ संघत ११एछ बैशाख मुदि ५ सोनबासरे ॥ श्री बिहार नगर वास्तव्य श्री पन जिनेश्वर प्रथम पुत्र श्री जरत चक्रवर्चि राजान मुख्य मंत्रिदख संतानीय महतीयाण ज्ञाती मुख्य चोपड़ा गोत्रीय संघनायक मं० संग्राम । राहदिया गोत्रीय संघ० परमाणन्द प्रमुख श्री वृहत खरतर गछीय नरमणि मएिकत नावस्थ.श्री जिनचंड सूरि प्रतिबोधित महतीयाण श्री संघ कारित थी बीर जिन निर्वाण चमि श्री पावापूरी समीपर्चि वरविमानानुकार भी वीर जिन प्रासाद
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Footprints (in the centre) Pawapuri Temple, dated S. 1698 (1641 A.D.)
Euu स्वस्ति श्रीस योम गलीत्यक्ष्य
तवा पितोतला सतत १६ Care खसुदिप
में बासर
या विहार
मान नानमुवाम जहनायाझा नायधनायक
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जनवंदना माणमा ताना मापनfai जानित प्रदिORTS
आदनाला हावामान
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Pawapuri Temple Prashasti, dated S. 1698 (1641 A. D.)
सासतिरक्षणे वेशा खुम दिए सामवासरे पनि माद श्री मा दिनादस के लन कलासावितथि रा । प्राचालितमजिना विराजनीवारदरमा नमामि Galmकल्याण विनाशपरिसर शवार जिन दिस शिवशायी।
राम रामश्रिारमहरा राज सकलमलमल क्षमरिछीदनसमायम तमा हात गारवाएमागीय संघनादक संघतानलमादाम ना गरिनहालोसा मयाम । घद्वारा नपामाजजागेसादाबायमघरमाल दसपरतार मताना श्रीशिवम
Aधयकवलायममदत सामीदासमतोहर मनोदरदास रोदविका माद मनोमानटिक गत चंदानादर में बात कह्याणमल मन्त्रक दलना
PARENESसत कमालबावराट कोसावरायसनिलि.काइमानदयाल मिना लायो म पनि दासमार दाम लिलाका पीयो जान से मजेदा
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( ४७ )
धाम प्रतिष्ठित श्री महावीर बर्द्धमान जिनराज पाडुके महतियाण श्री संघेन कारिते । प्रतिष्ठिते च श्री बृहत्खरतर गठाधीश्वर श्री शत्रुंजयाष्टमोद्धार प्रतिष्ठाकर युगप्रधान श्री जिनसिंह सूरि पट्टोदय गिर दिनकर युगप्रधान श्री जिनराज सुरिजिः ॥ श्रीवतु । श्री कमल लाजोपाध्यायाः पं० लब्धकीर्त्ति राजहंसादि शिष्य सहिताः प्रणमंति ।
११ गणधरोंके चरणों पर [191]
१ | संबति १६८ प्रमिते । बैशाख सुदि ५ सोमबारे । श्री बिहार नगर वास्तव्य श्री जरत चक्रवर्त्ति महाराजात सकल मंत्रि मुख्य मंत्रिश्वर दलान्वीय नरमणि मंकित श्री जिन चंद्रसूरि प्रोक्ति मतियाण ज्ञाति मएकन चोपड़ा गोत्रीय संघवी संग्राम सपरिवारेण ।
श्री गौतम स्वामि ॥ १ श्री श्रमिति ॥ १ श्री बायुभूति ॥ ३ श्री व्यक्तखामि ॥ ४ श्री सुधर्मा स्वामि ॥ ॥ श्री मंएिकपुत्र स्वामि ॥ ६ श्री मौर्यपुत्र स्वामि ॥ ७ श्री ठाकं पिक स्वामि ॥ श्री अचलाता स्वामि ॥ ए श्री मेतार्य स्वामि ॥ १० श्री प्रजास स्वःमि ॥ ११
J मंदिर प्रशस्ति ।
[192]
| ० ॥ स्वस्ति श्री संवत १६०८ बैशाख सुदि ५ सोमबासरे । पातिसाद श्री साहिजां इसकल नूर मएकलाधीश्वर बिजयिराज्ये ॥ श्री चतुर्विंशतितम जिनाधिराज श्री बीर बर्द्धमान स्वामि निर्वाण कल्याणक पवित्रित पावापूरी परिसरे श्री बीर जिन चैत्य निवेशः ॥ श्री शषन जिनराज प्रथम पुत्र चक्रवर्त्ति श्री जरत महाराज सकल मंत्रि मएकल श्रेष्ठ मंत्रि श्री दल संतानीय मतिश्राण ज्ञाति श्रृंगार चोपड़ा गोत्रीय संघनायक संघवी तुलसी जायी निहालो पुत्र सं० संग्राम लघुजातृ गोबर्द्धन तेजपाल जोजराज । रो दिय गोत्रीय स० पर
* यह वेदीके अन्दर दवा भया है इस कारण सब पढ़ा नही गया ।
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( ४८ )
माणंद सपरिवार महधारा श्रीय विशव धर्म कर्मोद्यम विधायक व० दुखाचंद्र काजड़ा गात्रीय म० मदन सामीदास मनोदर कुशला सुंदरदास रोहविया पुत्र मथुरादास नारायणदास गिरिधर संतोदास प्रसादी । वार्तिदिपा गो० गुजरम पूदड़मल मोहनदास माणिकचं बूदम जेठमल । ठ० जगन नूरीचंद । दान्दरा गो० ० कल्याणमल्ल मलूकचंद संतोषचंद सपला गोत्रीय ठ० सिंह कीर्त्तिपाल बाबूराम केसवराय सूरतिसिंघ । काऊंड्रा गो० दयाव बास नोवालदास कृपालदास मीर मुरारीदास किन्नू । काणी गोत्रीय ठ० राजपाल रामचंद • कीर्त्तिसिंघ वा० बत्रीचंद । जीजीयाण गो० सं० नथमल नंदलाल । दास सुंदरदास सागरमति कमलदास । रो० सुंदर सूरति
- महावीर नान्दा गोत्रीय
१३
मूरति सवकृती प्रताप
उ० मदनल्ल जा० हरदासपुर ---1
पाषाणके मूर्तिपर ।
--
--
माह सुदि १३ दिने
——
[193]
॥ सिरि देवगिपि खमा समया ढोत्ता तेसिं सिरि बीर निवाषाउ नवसय असी बरि सेहिं जिलागम रकगा तुम्हलेद कारणाउ चिंवमिषं पद्धावियं सिरि जिल महिंद सुरीहिं ॥ सं० १९१० वर्षे मा। सु० २ ।
बेदी पर |
J[194]
सं० २०३८ मिति जेष्ठ शुक्ल ५ बुधवासरे इदं वेदिका कारापितं उसवाल ज्ञातो राख सेठिया गोत्रे सेठजी श्री लबमणदासजी तत्पुत्र कल्लुमलजी तत्वात् धनसुख दासजी ।
दाहिने तर्फ दादाजी की कोठरी के चरथोंपर !
[195]
सूरीया पाडुके
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(४९)
"[196] संवत १६०६ बर्षे-क---। प्रवर्ग---:। श्री खरतर गछे भी उपाध्याय ग्ल (सक सूरिना ता शिष्येन श्री सन्धिसेन गणि श्री युगप्रधान श्री जिनचंद शाखा पितं उपदेन - - गुजु -- पाठकस्य --- श्री रत्नतिक गलि प्रतिष्ठितं वा पति सन गणि प्रनिडा कृता ॥ श्री रस्तु श्रीः॥१॥
" | 107] मुख नायक ---- राज सजासन धारकं । । । गुर्जरे मह -नति -- गोत्रे -- 30 बेनीदाप्त । तुलसीदास - माणिक - - दास - - कारापितं । श्री-... स्या पापुका श्री-- स्य गुरु -- श्री जिन लब्धिसेन सूरि कृता ॥ यस्यां पाउके बृहत् श्री खर तर गणा - यं० जुग -- श्री युगप्रधान -- श्री जिनचंड सूरि शाखायां श्री उपाध्याय - श्री रत्नतिलक -- तत्पहासकार श्री वाचनाचार्य - मधिसेन गणि श्रादेशेन श्री दयचंद -- - याणा बालिडिवा गोत्रे । नैरवन .. - गप गुजरमलेन -.. श्री रत्नतिक्षक वा --- अ. करेन प्रतिष्ठा पुनमीया --।
103] ॥ संवत १७०५ बर्षे माह सुदि १३ दिने सोमवारे श्री जिन कुशल सुरीपा पादुके। महतीयाण चोपड़ा गोत्रे । समयी तुलसी दास नार्या कल्याणी निहालो पुत्र सच्ची संग्राम सिंह --- गणिनिः प्रतिष्ठिता श्री पावापूरी समस्त श्री सा सहिता श्री रस्तु ।
J[100]
॥ सं० । १९१० वर्षे शाके १७७५ माघ शुक्र श्री जिनदत्त सूरी सद्गुरुणा श्री जिन उशख सूरीणां पादन्यासो प्रतिष्ठितं० न० श्री जिन महें सूरिनिः । का। बा । मो। श्री सिपप्रसाद पुत्र शीतख प्रसादेन भेयोर्य मानंदपुरे ॥
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(१.)
दाहिने श्री स्थूलन कोठरी के चरणों पर ।
___
[200]
श्री॥ नमनिधि गज गोत्रा सम्मितायां समायां ( १७ए ) नयन रस सरत्वाश्चन्छ युक्तेषु शाके ( १७६१ ) ॥ सित पटधर पाटो फाल्गुन शुक्ल पक्ष जुजगपति तियो (५, सम्नार्गवे बासरे ॥१॥श्री मद्ब्रह्मचर्य धर्म बृद्धर्थ्य श्री स्थूलनाचार्य पादपद्म प्रतिष्ठा बहत खरतर गणेश श्री जिनहर्ष सूरि पट्ट प्रनाकर श्री जिन महेंछ सूरिणा कारिता उ० । श्री हीरधर्म गणि बिनय विछत्कुलका प्रनाकर श्री कुशखचंड गएयुपदेशतः । काशीस्थ श्री संधैः ॥ बदलिया गोत्रीयोत्तम चंडात्मज मुनिलालानिधेन ॥
/ [201] (१) ॥ स श्री ५ श्री जिन बिमख सूरि पाउका । (२)॥ श्री जिन खलित सूरि पाडका।
[202] सं० १७ए७ वर्षे कार्तिक मासि शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथौ १५ गुरुवासरे० बृहत् खरतर गले यु० ज० श्री जिनरंग --- ।
1 [203] सं० १७एy बर्षे कार्तिक शुक्ल पक्ष राका तियो १५ गुरु बासरे बृहत् खरतर गछे यु. जा श्री जिनरंग सूरि शाखायां श्राचार्य श्री जिनचंड सूरिणां शिष्य वा० श्री सुमतिनंदन गणिनां पादपने स्थाप्यते० वा जुवनचंडेण । बा सुमतनन्दन गणिनां चरण कमले जवन: था श्री जिन चन्द सूरीणां चरण कमले श्मे नवतः ।
श्री चंदनवाला कोठरी के चरणों पर ।
{2043 ॥ सं० १७२० प्र० श्री सुजाण विजयाजी पाडका।
आप
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(५१)
1 [205] सं० १७०० मा बर्षे सिते १५ ॥ बृहत् खरतर गछे यु० न० श्री जिनरङ्ग सूरि शाखायां० शि० चरण रेणुना दीप बिजयायाः स्थापिते । श्री कीर्ति बिजयायां -- चरण सरसी रुहे प्रतिष्ठितं ॥ साध्वी ॥ श्री सोजाग्य बिजयाया। पादपद्म प्रतिष्ठितं ।
[206] सम्बत १७४७ शाके १७१३ बर्षे मिति वैशाख शुक्ल ३ तिथौ भृगु बासरे श्री मत् खरतर गई नहारक श्री जिनरङ्ग सूरि शाखायां साध्वीमहतरा मति विजयाकस्य पादुका शिष्यनी रूपविजिया पावापूरी मध्ये प्रतिष्ठापितेः
J[207]
॥ श्री संवत १९३१ का मिति माघ शुक्ल दशमी तिथौ चन्छ बारे श्री मद्बहल्लाका गुराधिपति ॥ श्री पूज्याचार्य जी श्रीश्री १०७७ श्रीश्री अक्षयराज सूरिजी चरण कमलो स्थापितौ श्री अजयराज सुरिनिः प्रतिष्ठितं च श्री शुनंनवतु =
J[208] ॥ नमः ॥ संबत १७१ए बर्षे माघ मासे शुक्लपक्ष षष्ठी तिथौ गुरुवासरे श्री महावीर जिनवर चरण कमले शुने स्थापिते । हुगली वास्तव्य उस बंशे गांधि गोत्रे बुलाकी दास तत्पुत्र साद माणिक चंदेन श्री क्षत्रीयकुंम नगर जन्मस्थाने जन्मकल्याणक तीर्थे जीर्णोद्धार फरापितं ॥ स्वपरयोः शुजाय ॥१ यावन्नमस्तले सूर्य चंडमसौ स्थिती बरौ तावन्नंदतु तीर्थोयं स-------
[200]
॥ नमः ॥ संबत २०१ए वर्षे श्री महाबीर जिन चरण कमले स्थापिते श्री क्षत्रीकुंके संघाटे साह माणिकचंदेन जीर्णोद्धार करापितं ॥ श्री रस्तु ।
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(५३)
[210] सं २०३७ माघ शु०५ सकय संघेन श्री वीर पाकुका कारापितं स्थापितं श्री पावापूर्या । आत्म हितायः श्री रस्तुः।
विहार।
बिहार वा सूवेविहार का प्राचीन नाम “तुंगिया नगरी" था। निकट में विशाखा नगरी भी थी। जैन सदर था, पश्चात् बौद्ध लोगों के समयसे “बिहार" नाम प्रसिद्ध नया।
धातुथों के मूर्ति पर। मथियान महहा।
_/[211] सं० १४३० श्री -- तिनाथ प्रति० सा पद्मसिंहेन समस्त परिवार युतेन निज पित सा देव्हा पुण्यार्थ का० प्र० श्री जिनराज सूरि ।
1212] प० ॥ सं० १५६ए वर्षे माघ सुदि ६ दिने उकेश बंशे साग सामंत पुत्रेण सा वषमणेन पुत्र रतना नरसिंह नयणा ना - दादि परिवार सहितेन निज पुण्यार्थ श्री शांतिनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं खरतर गछे श्री जिन बर्द्धन सूरिचिः॥
(213] सं० १५०६ माघ सुदि ५ -- लोढ़ा गोत्र ---पुत्र काकाकेन ना काक श्री पु० -- मावा - ना हेम -- नाथू ना कुझिमदे स्वश्रेण धर्मनाथः का प्र० चैत्र गछे श्री मुनि तिखक सूरि।
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(५३)
[214]
ए । सं० २५०७ बर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने श्री उकेश बंशे खोढ़ा गोत्रे सा० जोखा संताने सा० बीरा जाय जावसदे पुत्र सा० जाडाकेन पुत्र नीमल बीसल डूदा माका सहितेन श्री बासुपूज्य बिंवं कारितं प्रति० श्री खरतर नष्ठाधीश श्री जिनराज सूरि पहालङ्कार श्री जिन सूरि युगप्रधान गुरुराजौ ।
/
[215]
सं० १५१० बर्षे ध्याषाढ़ बदि १ मंत्रिदलीय काणा गोत्रे ० नगराज सुत उ० लघूनाय धमिणि पु० सं० श्री व्यवलदासेन पुत्र उ० उमसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन बीरसेन देपाल पढिराजादि परिवार वृतेन स्वपसे थं घादिनाथ विं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गछे श्री जिन सूरि पदे श्री जिनचंद्रसूरिभिः ॥
[26]
सं० १५१ वर्षे आषाढ़ यदि १ श्री मंत्रिदलीय शाखायां वायड़ा गोत्रे स० षौमराज जा० सुरदेवी पुत्र उ० दासू जा० कपूरदे पु० त० सदय वछ ( १ ) प्रमुख परिवार सहितेन स्वयसे श्री शितलनाथ बिंवं कारितं प्र० श्री खरतर गछे थी जिनसुंदर सूरि पट्टे श्री जिनदर्ष सुरजः ॥ श्री ॥
✓[217]
सं० १५१० बर्षे आषाढ़ बदि १ मंत्रिदलीय काया गोत्रे उ० श्री नगराज सुत उ० श्री लघुजार्या धर्मिणि पुत्र स० सिंगारसी जा० कुंवरदे पु० स० राजमल सुश्रावकेण पुत्रादि परि वार सहितेन श्री आदिनाथ मूल बिंवश्चतुर्विंशति पट्ट कारितः प्रतिष्ठितः खरतर श्री जिन सूरि पट्टे श्री जिनचंद्र सूरि युगप्र० बरागामेः ॥ ६ ॥
[218]
सं० १५१० बर्षे माघ सुदि दशम्यां बुधे श्रीमाल ज्ञातीय स० बाजु जाय धरणी आत्म
--
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(५४)
श्रेयोर्थ श्री नेमिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गछे श्री मिनजर सूरि पदे श्री जिन चंद सूरिराजैः॥ श्री मंझपे सूर्गे महता गोत्रे ॥
श्री चंऽप्रजु खामीका मंदिर।
[210]
सं० १४एए बर्षे फागुण बदि गुरौ उपके सुर गोत्रे सा० सिवराज ना माकु पुछ पासा सहसा नातृ बलराज पुण्यार्थ श्री शितलनाथ बिं का प्रति श्री उपकेश गन्ने ककुदाचार्य संताने श्री कक्क सूरिनिः ॥॥
[220] सं० १५४७ वर्षे बैशाख मासे उकेश बंशे दोसी गोत्रे सा कलू पुत्र सा लषा नार्या रुपाई पुत्र खपमी धरेण नार्या लीलादे सहितेन श्री अजितनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं खरतर गछे श्री जिनसमुप सूरिजिः श्रेयोस्तु ॥१॥
चतुष्कोण पट्टक पर।
. [221] सं० १६३८ समये फाल्गुण सुदी ५ नोमे श्री मूलसंघ सरखति गछे बलात्कार गणे श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये ना श्री धर्मकीर्ति देव तत्पट्टे ना श्री शीखजूषण तत्पट्टे जा श्री ज्ञान नूपण अयन सुमित्रनो तत्सहेजा श्री सुमतिकीर्ति ततशिष्य । मंकवाचार्य श्री मेरुकीर्ति गुरुपदे - ज् ॥ मगध देसे। खुदिमपुर बास्तव्य जेसवालान्वये कष्टहार गोत्रे सा बीरम तप्तायां वंयंत्रयोः पुत्र सहसी तन्नार्या अजेसिरि त्रयों पुत्रौ प्रथम किन तनार्या परिमल तत्पुत्र जिनदास तन्नार्या मोना त्रयो पुत्र जगदीस द्वितिय संघ पति श्री रामदास जाया रुकमिनि मेतेषां मध्ये संघपति रामदास नित्यं प्रणमंति । शुनं जवतु ।
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(५५)
लालबाग का मंदिर।
[222] सं० १५३ए ब बै० शु०३ सोमे प्रा० बृ० मं माया ना बरजू पु० सीधर ना मांजू पुत्र गोरा ना रुकमिणि पु० बर्द्धमान मातृ पितृ श्रेण श्री कुंथुनाथ विकारापितं प्रण तपा० श्री लक्ष्मीसागर सूरिजिः।
[223] सं० १६७३ फा० सि० ११ श्री हीर विजय शिष्य श्री विजयसेन सूरिनिःप्रा श्रादि
नाथ --
[224] सं. १७33 चैत्र सु. १५ - - वि श्री जिनहर्ष सूरिणा E = महतावचदं नायी श्राविका -- च्या गुलाबचंद पुत्र युतया --।
[225] सं० १७९६ ज्येष्ठ बदि ज्योसवास ज्ञाती जम्मड गोत्रीय बावु प्रेमचंद तत्पुत्र विहारी झालेन श्री सिद्धचक्र पढे कारापितं प्रतिष्ठितं विष्णुदय गणिना।
पाषाण पर।
[228] संवत १५५४ जेष्ठ बदि ४ श्री उपकेश ज्ञातौ साह श्री शक्तिसिंघ जा सहजखद - -- साह सोमा नार्या श्रापु नाम्न्या आत्म श्रेयसे श्री अजितनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री उपकेश गडे श्री कक्क सूरिनिः॥ श्री अजितनाथ प्रणमति बाई श्रापू नाम्न्या :
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1227] संवत १६७४ बर्षे -- माघ सुदि ए दिने नोम बासरे श्रवण नक्षत्रे --- - गोत्रे गकुर --- गकुर काडेन तत्पुत्र गकुर फुलीचंद श्री जिन कुशल सुरीणं पाके कारितं ।
[228]
सं० १६ए। शाके १५५ए ईश्वर वर्षे सम्बतसरं चत्र बदि १३ शुक्र शुने मुहुर्ते दक्षिण देशे न श्री कुमुदचंड दिनंद पट्टे ना श्री मूल श्रृंगार हा ----- बघेरवाल ज्ञातौ स० श्री तोला जा० सं .--- पुत्र स० श्री कृष्ण ॥ - - - - देव नार्या सोहि - - - श्रेयोथ
श्री महावीर पाउका स्थापितं ।
[220] सं० १७३० माघ शुदि. ५ - श्री सकस संघे श्री पार्श्व ना पा कारापि -
[230] सं० १३० माघ शु० ५ सकल संघेन शांतिनाथ पापु० कारापिता
[231]
प्रणमहिये गूणवीस सय बरसे वश्साह - सुद्ध - - - वह पियामह सिरि जिन कुशल सूरि पाय हवणा कारिया सिरिमाल वंसे वदलीया गुत्ते साह कमला वश्णा विसाला सुपर हिय सयल सूरीहिं ॥ श्री॥
[232]
श्री दादाजी श्री कुशल सुरजी सहायः सं० १७४६ मीती बेसाख सुदी १३ - - -!
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(५७)
[233]
सं० । १०३० फाल्गुन कृष्ण 9 गुरौ श्री जिन कुशल सुरी पादन्यास | जं० । यु । प्र । श्री जिन मुक्ति सूरिश्वराणामादेशात् श्री दालचंद गणिनिः प्रतिष्ठितं ॥ सेठ गोत्रीय ताराचंदात्मज रामचंद्रेण कारितः स्वश्रेयोर्थं मिरजापुर बरो
[234]
॥ ँ नमः सिद्धम् । संवत् १०५० सि० फागुण सुदि ३ श्री मूलसंघे सरखति गच्छे बलात्कार गण कुंद कुंदाचार्य याम्नाय सकल कीर्त्ति जट्टारक तत्पट्टे । जट्टारक कनक कीर्त्ति उपदेशात् शा० कुबेरचंद दरीचंद तनार्या केशरबाई खुरदेवाले प्रति
[235]
संवत् १९०५५ पोस सुद १५ गुरु ॥ श्री लुंपक गछे श्री पूज्य अजयराज सूरिः प्रतिष्ठितम् ॥ बाबू लब्मीपत गोविंदचंद की माजी करा पितं श्री दादाजी चतुः चरण पाडुके न्योः ॥ श्री स्थूल न सूरिः ॥ श्री जिनदत्त सूरिः ॥ श्री जिनकुशल सूरिः ॥ श्री जिन चंद्र सूरिः ॥
राज गृह ।
मगध देशकी राजधानी यह राजगृह ( राजगिरि) बहुत प्राचीन नगर है । २० मां तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामीका ३ कल्याणक ज्येष्ठ बदि- जन्म फाल्गुन सुदि - ११ दीक्षा फाल्गुन बदि - १२ केवल ज्ञान यहां होनेके कारण यह स्थान पवित्र है । २२ मां तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के समय में जरासंघकी जी यही राजधानी थी । २५ मां तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी के समय में प्रसिद्ध नगर था । गौतम बुद्ध की जी यही लीला भूमि थी । प्रसेनजित उनके पुत्र श्रेणिक, उनके पुत्र को पिक यहां के राजा थे। श्री महाबीर स्वामी जी १४ चौमासे यहां किये। जंबुस्वामी, धन्ना, शालिनडजी घ्यादि बड़े २ लोग यहांके रहने वाले थे। यहां
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(५८)
पर पढ़ाड़ के निचे ब्रह्मकुएफ. सूर्य कुएक यदि उष्ण कुएक बहुत से है और स्थान देखने योग्य है | पांच पाहाड़ जो सामने दिखाई देते हैं (१) विपुल गिरि ( २ ) रत्न गिरि ( ३ ) उदय गिरि ( ४ ) स्वर्णगिरि ( ५ ) वैजार गिरि । पहाड़ पर बहुत से जैन मंदिर बने हुये हैं । बहुत से चरण वा मूर्त्ति इधर से उधर बिराजमान है इस कारण यहां के सब लेख एक साथ मिला दिया गया है ।
पार्श्वनाथ मंदिर प्रशस्ति ।
[236]
( १ ) प० ॥ नमः श्री पार्श्वनाथाय ॥ श्रेयः श्री बिपुलाचलामर गिरि स्थेयः स्थिति स्वीकृतिः पत्र श्रेणि रमा जिराम भुजगाधीशस्फटासंस्थितिः । पादासीन दिवस्पतिः शुन फल श्री कीर्त्ति पुष्पोजमः श्री संघाय ददातु बांछित फ
( २ ) सं श्री पार्श्व कल्पद्रुमः ॥ १ यत्र श्री मुनि सुव्रतस्य सुबिजोर्जन्म व्रतं केवलं साम्राजां जय राम लक्षण जरासंधादि भूमीजुजां । जज्ञे चक्रि वलाच्युत प्रतिद्दि श्री शालिनां संभवः प्रापुः श्रेणिक नुधवादि
*" जैन तीर्थ गाईड " के तवारिख सुत्रे बिहार में उसके ग्रंथकर्त्ता लिखते है कि मययान महल्ला के “ मंदिर में एक शिला लेख जो अलग रखा हुवा है - संवत तिथि वगेरा की जगह टुटी हुई है पंक्ति ( १६ ) हर्फ़ उमदा मगर घीस जाने की वजह से कम पढ़ने में आता है अखीर की पंक्ति में जहां गच्छ का नाम है वहां किसीने तोड़ दिया है बज्र शाखा बगेरह नाम बेशक मौजूद है " यह पढ़ कर मुझे देखने की बहुत अभिलाषा हुई । पता लगाने पर १७ पंक्तिका एक लेख दिवार पर लगा भया पाया । किसी २ जगह दूट गया है संवत वगेरह साफ है और दुसरा टुकड़ा मालून भया । पहिले टुकड़ेके लिये बहुत परिश्रम करने पर पता लगा और अब वहकि रईस बानु धन्नुलालजी सुचंति के यहां रखा गया है। यह प्रशस्ति पूर्व देश की अपूर्व बस्तु है आज तक अप्रकाशित था । इसमें श्री खरतर गच्छकी पट्टावली है जिस्से बहुत पक्षपातीयों का भ्रम दूर हो जावेगा । यह पांच सौ साठ वर्ष प्राचीन है और उस समय के मुसलमान सम्राट और प्रादेशिक शासन कर्ताका भी नाम विद्यमान है। पांडित्य और पद लालित्य भी पुरा है ।
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(३) नविनो धीराच्च जैनी रमां ॥२ यत्रानय कुमार श्री शालिधन्यादि माधनाः। सर्वार्थ सिद्धि संजोग जुजो जाता बिधापिहि ॥ ३ यत्र श्री विपुलानिधोवनि धरो बजार नामापिच श्री जैनें बिहार नूषण धरौ पूर्वाप ।
(४) राशा स्थिती। श्रेयो लोक युगेपि निश्चित मितो खन्यं बुवाते नृणां तीर्थ राजगृहाजिधान मिह तत्कैः कैर्न संस्तुयते ॥ ५ सत्रच संसारापार पारावार परपार प्रापण प्रवण महत्तम तीर्थे । श्री राजगृहम
(५) हातीर्थे । गजेंडाकार महापोत प्रकार श्री विपुलगिरि विपुल चूला पीठे सकल महीपाल चक्रचूला माणिक्य मरीचि मंजरी पिंजरित चरण संरोने । सुरत्राण श्री साहि पेरोजे महीमनुशासति । तदीय
(६) नियोगान्मगधेषु मलिक बयोनाम मएमलेश्वर समये । तदीय सेवक सह णास पुरदीन साहाय्येन । यादाय निर्गुण खनिमुणि रंग नाजं ॥ घुमौकिकावलि रत्नं कुरुते सुराज्य बक्षः श्रुती थपि शिरः
(७) सुतरां सुतारा सोयं बिजाति जुवि मंत्रि दखीय वंशः ॥ ५ वंशेमुत्र पवित्र धीः सहज पाखाख्यः सुमुखयः सतां जझे नन्यसमान सद्गुणमणी श्रृंगारितांगः पुरा । तत्सूनुस्तु जनस्तुत स्तिहुण पालेति प्रतीतो नव
(G) जातस्तस्य कुले सुधांशु धवले राहानिधानो धनी ॥ ६ तस्यात्मजोजनिच उकुर मंझनाख्यः सद्धर्म कर्म बिधि शिष्ट जनेषु मुख्यः। निःसीम शील कमलादि गुणा विधाम जझे गृहेस्यः गृहिणी थिर देवि नाम
(ए)॥ ७ पुत्रास्तयोः समनवन् जुवमे विचित्राः पंचात्र संतति भृतः सुगुणैः पवित्राः। तत्रादिमात्रय श्मे सहदेव कामदेवानिधान महराज इति प्रतीताः॥ तुर्यः पुनर्जपति संप्रति षष्ठराजः श्री मा
(१०) न् सुबुद्धि लघु बांधव देवराजः । याच्या जमाधिकतया घनपंक पूर्व देशेपि धर्मरथ धुर्य पदं प्रपेदे ॥ ए प्रथम मन व माया षष्ठराजस्य जाया समजनि रत नीति स्फीति सन्नीति रीतिः । प्रनवति पहराजः सह
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(६०)
(११) ण श्री समाजः सुत इत श्ह मुख्यस्तत्परश्चोढराख्यः ॥ १० द्वितीया च प्रिया नाति बीधी रिति विधि प्रिया । धनसिंहादयश्चास्याः सुता बहु रमाश्रिताः ॥ ११ बजनि च दयिताद्या देवराजस्य राजी गुण म
(१२) णि मयतारा पार श्रृंगार सारा । स्मनवति तनुजातो धमसिंहोत्र धुर्य स्तदनुच गुणराजः सत्कला केलिवर्यः॥ १२ अपरमथ कलत्रं पद्मिनी तस्य गेहे तत उरु गुणजातः पीमराजोंग जातः । प्रथम उदित पद्मः पद्म
(१३) सिंहो द्वितीयस्तदपर घमसिंदः पुत्रिका चाउरीति ॥ १३ श्तश्च ॥ श्रीवर्तमान जिनशासन मूलकंदः पुण्यात्मनां समुपदर्शित मुक्तिनंदः। सिद्धांत सूत्र रचको गणभृत सुधर्मनामाजनि प्रथम कोत्रयुग
(१४) प्रधानः ॥ १४ तस्यान्वये समनवदशपूर्वि वन खामी मनोजव महीधर नेद वजः यस्मात्परं प्रवचने प्रससार वज्र साखा सुपात्र सुमनः सफल प्रशाखा ॥ १५ तस्यामहर्निश मतीव विकाशवत्यां चांजेक
(२५) ले विमल सर्वकसा विलासः। उद्योतनो गुरुरजाबुिधो यदीये पट्टे जनिष्ट सु मुनि गणि बर्द्धमानः॥ १६ तदनु जुवनाश्रांत ख्यातावदात गुणोत्तरः सुचरण रमानूरिः सरिर्वजूव जिनेश्वरः । खरतर
(१६) तिख्यातिं यस्मादवाप गणोप्ययं परिमलका श्रीषंद --- उगणो वनौ ॥ १७ ततः श्रीजिन चंडाख्यी बनूव मुनि पुंगवः । संवेग रंगशालां यश्चकारच वजारच ॥ १७ स्तुत्वा मंत्र पदादरै रवनितः श्रीपा
पुसरा पत्थर। (१७) व चिंतामणि ----- ताकारिणं । स्थानेनंत सुखोदयं विवरणं चके नवान्यायके । - - ताऽ जय देव सुरिगुरव स्तेतः परं जझिरे ॥ १ए - - -
(१७)--- (जिनववन)- - शांगनोवल्सनो - -- - प्रियः यदीय गुण गौरवं श्रुतिपुटेन सौधोपमं निपीये शिरसो धुनापि कुरुते नकस्तां डवं ॥ २० तपट्टे जिनदत्तसूरिरजवयोगीक चूडामणि मिथ्याध्वां
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(६१) (१०) त निरुद्ध दर्शन --- - श्रावक यान्य देशि सुगुरुः क्षेत्रेत्र सर्वोत्तमः सव्यः पुण्यवतां सतां सुचरण ज्ञान श्रिया सत्तमः॥ २१ ततः परं श्रीजिनचं सूरिर्वजुव निःसंग गुणास्त नृरिः।
(२०) चिंतामणि नालतले यदीये ध्युवास वासादिव नाग्य लदम्याः॥ २२ पदे लक्ष्य गतेसु शासनमपि प्रेत्यापि फुःसाधनं दृष्टांत स्थिति बंध बंधुरमपि प्रवीण दृष्टांतकं । वादेर्वा दिगत प्रमाणमपि ये वाक्यं ।
(१) प्रमाण स्थितं ते वागीश्वर पुंगवा जिनपति प्रख्या वनूवु सूतः॥ २३श्रथ जिनेश्वर सूरि यतीश्वरा दिनकरा व गोजर, नास्वराः। चुवि विवोधित सत्कमला करा समुदिता वियति स्थिति सुन्दराः ॥२४ जिन प्र
(२५) बोधा हत मोह योधा जने विरेजुर्जनितप्रधाः। ततः पदे पुण्य पदे दसीये मण्यं छ चर्या यति धर्म धुर्याः ॥ २५ निरुधानो गोनिः प्रकृति जम्धीनां विससितं ब्रमनश्य मोतो रस दश कला केलि
(२३) विकसः। उदितस्तत्पढे प्रतिहत तमः कुग्रह मति नवीनो सौ चंसो जगति जिन चंसो यतिपतिः ॥ २६ प्राकट्यं पंचमारे दधति विधि पथ श्रीविलास प्रकारे धर्मा धारे सुसारे विपुल गिरिवरे मानतुंगे विहा
(२४) रे कृत्वा संस्थापनां श्रीप्रथम जिनपते येन सोचे यशोजि श्चित्रंचक्रे जगत्यां जिन कुशल गुरु स्तपदे नाव शोनि ॥ २७ वाल्पे पियत्र गण नायक सदिमकांतां केसी विलो क्य सरसा हृदि शारदापि । सौजाग्य
(२५) तः सरल संविखसास सोयं जातस्ततो मुनि पर्ति जिन पद्मसूरिः ॥ दृष्टा पदृष्ठ सुविशिष्ट निजान्य शास्त्र व्याख्यान सम्यगवधान निधान सिद्धेः । जझे ततोऽस्त कलिकाल जना समान ज्ञान क्रिया
(२६) ब्धि जिन लब्धि युग प्रधान: ॥ २ए तस्यासने विजयते सम सूरि वर्यः सम्यग दृगंगि गण रंजक चारु चर्यः। श्रीजैन शासन विकासन नूरि धामा कामापनोदन मना जिन चंड नामा ॥ ३० तत्कोपदेश
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(६२)
(२७) वशतः प्रजु पार्श्वनाथ प्रासाद मुत्तम मची करत - - - । श्रीमबिहार पुर वस्थिति वराजः श्रीसिद्धये सुमति सोदर देवराजः॥ ३१ महेन गुरुणा चात्र वष्ठराज रावा. न्धवः । प्रतिष्ठा कारयामास मंझनान्वय
(२७) ममनः ॥ ३२ श्रीजिनचंड सूरीन्जा येषां संयम दायकाः । शास्त्रेष्व ध्यापकास्तु श्रीजिनस ब्धि यतीश्वराः ॥ ३३ कर्तारोश्च प्रतिष्ठाया स्ते उपाध्याय पुगावाः । श्री मंतोजुवन हितानिधाना गुरु शासनात् ॥ ३४ न
(२९) यनचंड पयोनिधि नूमिते ब्रजति विक्रम नूभृदनेहसि । वहुल षष्ठि दिनेश्रुचि मासगे मही मचीकर देव मयं सुधीः ॥ ३५ श्रीपार्श्वनाथ जिन नाथ सनाथ मध्यः प्रासाद एष कससध्वज मएिमतो
(३०) ईः । निर्माप कोस्य गुरवोत्र कृत प्रतिष्ठा नंदंतु संघ सहिता जुवि सुप्रतिष्ठा॥ ३६ श्रीमग्निर्जुवन हितानिषेक वर्षे प्रशस्ति रेषाच । कृत्वा विचित्र वृत्ता लिखिता नीकीर्ति रिव मूर्त्ता ॥ ३७ उत्कीमाच सुवर्मा उकुर मा
(३१) हांगजेन पुण्यार्थ । वैज्ञानिक सुश्रावक वरेण बीधानिधानेन ॥ ३० इति विक्रम संवत १४१५ श्राषाढ़ बदि ६ दिने।श्रीखरतर गठ शृङ्गार सुगुरु श्रीजिनलब्धि सुरि पहासकार श्रीजिने सूरिणामुपदे
(३२) शेन । श्रीमंत्रि बंश मंझन मंमन नंदनान्यां । श्रीनुवन हितोपाध्ययानां पं० हरिप्रन गणि । मोद मूर्ति गणि । दर्ष मूर्चि गणि । पुण्य प्रधान गणि सहितानां पूर्व देश विहार श्रीमहातीर्थ यात्रा संसूत्र
(३३) णादि महा प्रजावनया सकस श्रीविधि संघ समान नंदनाज्यां । ८० वष्ठराज do देवराज सुश्रावकाच्यां कारि----- स्य । श्रीपार्श्वनाथ प्रसादस्य प्रशस्तिः ॥ शुलं जवतु श्रीसंघस्य ॥॥७॥
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( ६३ )
गांव मन्दिर - धातुओंके मूर्ति पर ।
( 237 )
सम्बत १९११० चैत मास सुदि १३ संसनाथ प्रतिमा कारित- --1
(238)
सं० १४८० वर्षे आषाढ़ वदि रखो ऊ० ज्ञा० सा० सपुरा भा० सीतादे पु० कर्मसिंहेन श्री नमिनाथ विंव पितृमातृ श्रेयसे कारितं उकेश गच्छे श्रीसिद्धाचार्य संताने प्र० श्रीदेव गुप्त सूरिभिः ।
पाषाण पर ।
(239)
सम्बत् १५०४ वर्ष फागुण सुदि ९ दिने महतिआण वंशे जाट गोत्रे सा० देवराज पुत्र सं० षीमराज पुत्र सं० सिवराज तेन पुत्र सं० रणमल धर्मदास । श्रीशांतिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्टिते खरतर गच्छे श्री जिनवर्द्धन सूरिपट्ट े श्रोजिन चन्द सूरिपट्ट े श्री जिन सागर सूरीणां निदेसेन वाचनाचार्य शुभशील गणिभिः ।
( 240 )
ॐ नमः सिद्धं ॥ सम्बत १८१९ वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्ष ६ तिथौ गुरुवासरे श्री मुनि सुव्रत स्वामि जन्म कल्याणक चरण कमले स्थापिते हुगली वास्तव्य ओसवंशे मंधी गोत्रे बुलाकीदास पुत्र साह माणिक चंदेन राजगृहे जीर्णोद्धारं करापितं ।
( 241 )
सं० १८२५ माघ सु० ३ गुरुषेता साह पुत्र्या उमरवाई केन शांतनाथ विंवं कारापिता ।
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J
( ६४ )
( 242 )
श्री शुभ सम्प्रत १९०० वर्षे मार्गशीर्षमासे शुक्ल पक्ष दशम्यां तिथौ शुभवासरे श्री वर्द्धमान तीर्थंकरस्य चरण पादुका प्र० श्री वृहत्खरतर गच्छे जंगम युग प्रधान महारक श्री जिनरंग सूरीश्वर शाषायां य० यु० प्रहारक श्रीजिन नंदीवर्द्धन सूरी राज्ये श्री वाचनाचार्य श्री मुनि विनय विजयजी तत् शिष्य पं० कीर्योदयोपदेशात् ओसवाल वंशीद्भव बाबू खुस्यालचन्दस्य पत्नी वीवी पराण कवरी तेन प्र० का० श्री संघस्य कल्याण कारिणो भवतु शुभमस्तु ।
( 243 )
शु० स० १९०० व० मार्गशीर्षमासे शु० वा० श्रीचन्द्रप्रभकस्य च० क० प्र० श्री ट० ख० ० श्री जिन नन्दी वर्द्धन सू० व० मुनिकी दयोपदेशात् महताबचन्द संचीतीकस्य पत्नी रोजी बीबी प्र० का० शुभमस्तु ।
J( 244 )
सं० १९११ व। शा० १७७६ प्र । शुचि शु। १० ति । श्रीचन्द्र प्रम विंवं प्र० । भ । श्री जिन महेंद्र सूरिभिः का । सा श्री हकु- - खरतर गच्छे ।
विपुलगिरि ।
(245)
संवत १७०७ शाके १५७२ प्रवर्त्तमाने आश्विन शुक्ल पक्षे त्रयोदश्यां शुक्र वासरे । श्री बिहार वास्तव्येन महतीयाण ज्ञातीय चोपड़ा गोत्रेण म० तुलसीदास तत्मार्या संघवण निहालो तत्तनयेन मं० संग्रामेण यत्रीसारपुत्र गोवर्द्धनेन सह श्रीराजगृह विपुल गिरौ - अजीर्णा उद्धरिता संघवी संग्रामेण प्र० कल्याण कीत्युपदेशात् श्रीखरतर गच्छे-लिषतं रतनसी खंडेलवाल गोत्रे पाटनी गुमानासिंही रासिंग ग्राम मुकाम राजग्रिही ।
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(६५)
(246 ) सं० १८४८ मिती कातिक सुदि ७ तिथौ।श्रीसंघेन । श्रीविपुलाचले मुक्तिंगतस्याति मुक्तकमुने मतिः कारिता । प्रतिष्टिताच श्रीअमृतधर्म वाचकः।
(247 ) सम्वत १९३८ ज्येष्ठमासे शुक्ल पक्ष द्वादशी गुरु वासरे श्रीचन्द्रप्रभ जिन चरण न्यासः प्रतिष्ठतं वृद्ध विजय गणि प्रथम जीर्णोद्धार माणिकचन्द गंधी करापितं विपुलाचल दुतिय जीर्णोद्धार राय लछमीपति सिंह धनपति सिंह करापितं । श्रोरस्तु ॥
(248 )
संवत १९३८ ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे द्वादश्यां श्री मुनि सुव्रत जिन घरण न्यासः वृद्ध विजय प्रतिष्टितं राय लछमीपति सिंह धनपति सिंह जीर्णोद्धार करापितं श्रीरस्तुशुभं भूयात् विपुलाचल।
रत्नगिरि।
( 249 )
॥ ॐनमः ॥सम्बत १८१९ वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्ष तिथौ श्री नेमिनाथ जिन चरण कमले स्थापिते हुगली वास्तव्य ओश वंशेगांधी गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चन्देन श्रीराजगृहे रतनगिरी जीर्णोद्धार फरापिते ॥ श्रियोस्तु ॥
( 250 ) ॥ ॐनमः ॥ सम्बत १८१८ वर्षे माघमासे शुक्ल पक्ष ६तिथो श्रोशांतिनाथ जिन चरण कमले स्थापिते हुगली वास्तव्य ओशवं0 गांधी गोत्रे बुलाकोदास तत्पुत्र साह माणिक चन्देन श्रीराजगृहे रतनगिरी जीर्णोद्धारं का।
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(६६)
( 251 ) ॥ॐनमः ॥ संवत १८१८ वर्षे माघमासे शुक्ल पक्ष । तिथी श्री पार्श्वनाथ जिन चरण कमले स्थापिते हुगली वास्तव्य ओशवंशे गांधी गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चन्देन श्रीराजगृहे रतनगिरी जीर्णोद्धार करापितं ॥ श्रीः ॥१॥
( 252 ) ___ नमः ॥ संवत १८१८ वर्षे माघमासे ६ तिथी श्री वासु पुज्य जिन घरण कमल स्थापिते हुगली वास्तव्य ओश वंशे गांधी गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र माणिकचंदेन श्री राजगृहे रतनगिरि पर्वते जीर्णोद्धारं करापितं । स्वपरयोः शुभम् ॥ श्रीः॥
उदयगिरि।
(253 ) ॥ॐ नमः ॥ संवत १८२३ वर्षे वैशाष शुक्ल पक्ष ६ तियो श्री अभिनन्दन जिन चरण फमले स्थापिते हुगली वास्तव्य ओश वंशे गांधी गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चन्देन उदयगिरी जीर्णोद्धार करापितं ॥
J( 254 ) ॥ ॐनमः ॥ संवत १८२३ वर्षे वैशाष शुक्ल पक्ष ६तिथौ श्री सुमति जिन चरण कमले स्थापिते हुगली वास्तव्य ओश वंशे गांधी गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र माणिकचन्देन उदय गिरी जीर्णोद्धार करापित ॥
(255) ॐनमः । संवत १८२३ वर्षे वैशाष मासे शुक्ल पक्ष षष्टी तिथौ श्री पार्श्वनाथ जिन चरण कमल स्थापिते ॥ हुगली वास्तव्य ओश वंशे गांधीगोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिकचन्देन श्री राजगहे उदयगिरि राजे जीर्णोद्धारं करापितं ॥ स्वपरयो कल्याण हेतवे ॥ श्रोः॥
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स्वर्ण गिरि ।
( 256 ) सं० १५०४ फागुण सुदि दिने महतियाण क्शे जाटडगोत्रे सं० देवराज सं० पीमराज पुत्र सं० सिवराजेन । भार्या सं० माणिकदे पुत्र सं० रणमल धर्मदास सकुटुम्वेन श्री आदिनाथ विवंकारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिन वर्द्धन सूरिप श्रीजिन चन्द्र सरि पह श्रीजिन सागरसूरीणां निदेसेन वाचकाचार्य शुभ शील गणिभिः श्रीखरतर गच्छे ।
वैभार गिरि।
'( 27 )
सं० १५२४ आषाढ़ सुदि १३ खरतर गणेश श्रीजिन चन्द्रसूरि विजय राज्ये तदादेशे श्रीवैमार गिरौ मुनि मेरूणा मि० ॥ -- श्री कमल संयमोपाध्यायः स्वगुरु श्री जिन भन्द्र सूरि पादुके प्र० का० श्री माल वं० भीषू पुत्र ठ० छीतमल श्रावकेण ।
( 238 ) सं० १५२७ आषाड सुदि १३ श्रीजिन चंद सूरिणामादेशेन श्री कमल संयमोपाध्यायः घनाशालि भद्र मूर्ति-- का० प्र० पीमसिंह (?) आवकेण ।
J( 259 )
ॐनमः ॥ सम्वत १८२६ वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्षे १३ तिथौ श्री आदिनाथ जिन चरण कमले स्थापितं हुगली वास्तव्य ओसवंशे गांधि गोत्रेबुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चंदेन राजगृहे वैभार गिरे जीर्णोद्धार करापितं ॥ स्वपरयोः शुभाय ॥ श्री॥
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। (६८)
' ( 260 ) ॥ श्री सम्वत १८३० माघ शुक्ल ५ चन्द्रे ओसवंशे गहलडा गोत्रे जगत्सेठजी श्री फते चन्दजी तत्पुत्र सेठ आणंदचन्दजी तत्पुत्र जगत्सेठजी श्री महताव रायजी सद्धर्म पत्नी जगत्सेठाणीजी श्रीशंगारदेजी श्रीमदेकादश गणघर पादुका कारापितं। स्था० राजगृह नगरोपरि वैमार गिरी॥
(261) सम्बत १८७४ वर्षेशाके १७३९ मिति जेष्ठ वदि ५ सोमदिने श्री व्यवहार गिरि शिषरे श्री पार्श्वनाथ घरणन्यासः प्रतिष्ठितं H० श्री जिन हर्ष सूरिमिः।
( 263 ) सम्वत १८७४ वर्षे शाके १७३९ मिति ज्येष्ठ वदि ५ सोम दिने । श्री व्यवहार गिरि शिषरे । श्रीयुगादि देव चरण न्यासः प्रतिष्ठितं । महारक श्री जिन हर्ष सूरिमिः॥
__ -( 268 ) सुम स० १९०० वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्ल पक्ष १० दशम्यां तिथौशुभवासरे श्रीमत् शांतिनाथ चरण कमलप्र० श्रीमत् वहत्खरतर ग० श्री जिन रंगसूरीश्वर साखायां वृ० १० यं० गुं० श्री जिन नन्दी वर्द्धन सूरि राज्ये वा० श्री मुनि विनय विजयजि तत् शिष्य पं० मु. कीर्युदयोपदेशात् ओसवाल बं० बाबू मोहन लाल कस्यात्मज बाबू हकुमत रायेन प्र. का० शुभमस्तु ॥
J( 284 ) ___ अनमः सु० सं० १९०० वर्ष मार्गशीर्ष मासे शु० पक्षे १० द. श्री पद्म प्रभुकस्य चरण क० प्र० श्री वृ०प० ग० भ० श्रीजिन नन्दी वर्द्धन सूरीवा श्री मुनि विनय विजयजि तत् शि• मु० कीर्युदयोपदेशात् बाबू पुस्याल चन्द पीपाडागोत्रीयास्य पत्नी पराण कुंवरेन प्र.का. श्री वैमार गिरे सुममस्तु ।
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( ६८ )
( 265 )
॥ सु० स० १९०० वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्ल पक्ष १० दशम्यां शुभवासरे श्रीमत्पार्श्वनाथस्य चरण कमल प्र० श्रीमत् बृहत परतर ग० श्री जिन रंग सूरीश्वर साषायां श्री जिन नन्दी वर्द्धन सूरि राज्ये वा० श्री मुनि विनय विजयजि तत् शि० मु० कीदयोपदेशात् ओ० वं० पुस्याल चन्द पीपाडा गोत्रस्य पत्नी पराण कुंवर श्राविका प्र० का० वैभार गिरे ।
J( 266 )
॥ ॐ नमः सिद्धं सं० १९०० वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्ल पक्ष १० दशम्यां तिथौ शुभ वा० श्री कुंथनाथस्य चरण क० प्र० श्री मत्कृ० ख० ग० श्री जिन रंग सूरीश्वर साषा० श्री जिन नन्दी वर्द्धन सूरि ब० वा० श्री मुनि विनय विजयजि तत् शिष्य मुनि कीर्य्युदयोपदेशात् ओसवाल वंसोद्भव वावु मोहनलालजी त् कस्यात्मज वावु हकुमत राय - कस्य गोत्रीय प्र० कारापित शुभमस्तु । वैभार गिरौ ।
1
(267)
ॐ नमः सिद्धं ॥ शु० सं १९०० वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्ल पक्ष १० दशम्यां तिथौ शुभ वा० श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथस्य च० प्र० श्री मत्बृ० खरतर ग० श्री जिन रंग सूरिश्वर साखा० भ० यं०यु० प्र० श्री जिन नंदी वर्द्धन सूरि वर्तमान वा० श्री विनय विजयजि सत् शि० मुनि की दयोपदेशात् बाबु महताब चन्दस्य सचिती गोत्रीयो तत्पत्नी चिरंजी वीवी प्र० का० शुभ मस्तु वैभार गिरे ।
Jo
( 268 )
सं० १९११ व । शाके १७७६ प्र० । शुचिः सुदि । तिथौ श्रीनेमनाथ पादन्यासो कारा० प्र० भ० श्रोजिन महेन्द्र सूरिभिः का । से० । गो । श्री उदयचन्द्रस्य पत्नी महा कुमा-तस्या श्रेयोर्थं भवतुः ॥
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[७०)
कुण्डलपुर। आज कल यह स्थान वडगांव नामसे प्रसिद्ध है परन्तु शास्त्र में इस्का गुन्धर ग्राम नाम है । यहां श्री महावीर स्वामीजीके प्रथम गणधर श्री गोतमस्वामो ( इन्द्रभूति ) जी का जन्म स्थान है। वौद्धोंके समयमें निकटमें नालंदा नामका प्रसिद्ध विश्वविद्यालय
और छात्रावास था। चारों तर्फ प्राचीन कीर्तियों के चिन्ह विद्यमान हैं। गवर्णमेंट के तर्फसे इस वर्ष यहां खुदाई आरम्भ भई है आशा है कि प्राचीन इतिहासके उपयुक्त बहुतसे साधने यहां मिलेगी।
पाषाणपर।
(269 ) ॥५॥ संवत १४७७ वर्षे ज्येष्ट वदि ६ शुक्रे श्री आदिनाथ ऋषत विंवं का० ।
( 270 )
॥ सं० १५०४ वर्षे फागुण सुदि दिने महतियाण वंशे काणा गोत्रे स० कउरसी पुत्र म० भीषण कारित श्री महावीर विवं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनसागर सूरीणां निदेशेन वाचकाचार्य सुभ शील गणितिः ।
( 21 ) सं० १६८६ वर्षे वैशाष सुदि १५ दिने मंत्रिदल वंशे चोपरागोत्रे ठा० विमलदास तत्पुत्र ठा. तुलसीदास सत्पुत्र ठा० संग्राम गोवर्द्धनदास तस्य माता ठ० नीहालो तत्पुत्र मौर्या ठकुरेटी देहुरा गोतमस्वामीका चरण गुन्धर ग्राम --कारा पिता वृहत्खरतर गच्छे पूज्य श्री श्री जिनराज सूरि विद्यमाने उ० अभय धर्मेन प्रतिष्ठा कृता॥
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(७१)
( 273 ) सम्वत १६८६ वर्षे शाके १५५१ प्रवर्त्तमाने---- मासि शुक्ल पक्ष सप्तमी गुरु वासरे वृहत श्रीषरतरगच्छे युग प्रधान श्रीजिन चन्द्र सूरिपादुका ठाकुर देवा तस्यात्मज मांडन तस्य भार्यान्हालो प्राविका पुण्य प्रपाधिका तस्य पुत्र दुलि चन्द्रेण प्रतिमा कारापिता श्री माहतीयाल (महसियाण) श्रावकेन गुरु भक्ति दुलिचन्द्र प्रतिष्टा क. श्री उपाध्याय श्री रत्नातिलक गणि पादुके प्रतिष्ठितं वा. लब्धिसेन गणि प्रतिष्ठा० ।
पटना (पाटलिपुत्र) मगधके राजाओंकी राजधानी राजगृहीसे राजा श्रेणिक के पुत्र कोणिक चंपा नगरी को राजधानी वनाया। उनके पुत्र उदाई राजा वहांसे यह पाटलिपुत्र नवीन नगर वसा कर राजधानी कायम किया। पश्चात् यहां पर नव नन्द मौर्य वंशी चन्द्रगुप्त अशोक आदि बड़े २ राजा राज्य कर गये। पं० चाणक्य, आचार्य उमास्वाति, भद्रवाहू-आर्य महागिरि, सुहस्थि, बज स्वामि महान् लोग यहां रह गये हैं। आचार्य श्री स्थूल भद्रजी और सेठ सुदर्शन जी का भी यहीं स्थान है । दादा जी की छत्री भी यहां प्राचीन है सहरका मंदिर जीर्ण होगया है-आज कल विहार उड़ीसाके शासन कर्ता यहां रहने के कारण और प्रधान विचारालय स्थापित होनेसे यह स्थान उनति पर है।
। सहर मन्दिर-पाषाण पर ।
( 273 ) संघत १८५२ वर्षे पोष शुक्ल ५ भृगुवासरे श्री पडलीपुर वास्तव्य । श्री सकल संघ सम्दायेन भी विशाल स्वामी। श्री पार्श्वनाथ स्वामी प्रासादस्य जीर्णोद्धारं कारापिर्त । कार्यस्याग्रेश्वरी तपागच्छोय श्रार्दुः । कुहाड श्री ज्ञानचन्दजी प्रतिष्ठितं च श्री सकल सूरिभिः शुभं भूयात् ।
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। ७२) धातुओं के मूर्तिपर।
- ( 274 ) सं० १४८६ वर्षे वैशाख सुदि ७ सोमे श्री श्री दूगड गोत्रे सा० अर्जुन पुत्रेण सा० उदय सिंहेन भार्या जयताही पु० सा० मूला सा० नगराज सा० श्री पालादि युतेन आत्मश्रेयसे श्रीचंद प्रभ कारितं प्रतिष्ठितं वृहद्गच्छीय श्रो मुनीश्वर सूरि पट्टे प्रभ सूरिभिः ॥
J(275) ___ सं० १४९२ वर्षे श्री आदिनाथ विवं प्रति० श्रीखरतर गच्छे श्री जिनमद्र सूरिभिः कारितं कांकरिया सा० सोहड़ भार्या हीरादेवी श्री--कया।
J(276 )
सं० १५०३ वर्षे माघ सुदि बुधौ वासरे घोरपट श्रीदेवां कीर्ति भटकी घौरेय मुल संघे सहिजे पतिमर्जर्षिः भ्यमिरि पुत्र उदत्य-पिम्वराजामन । शुभं ॥
( 27 ) सं० १५०८ वर्षे वैशाष सु. ५ चन्द्रे उप० सा. घेता भा० षेतलदे पुत्र चाचा वील्हादेपा ताकेन डूंगर निमित श्री धर्मनाथ बि० का० प्र० चैत्र गच्छे भ० श्री मुनि तिलक सूरिभिः॥
| ( 18 ) सं० १५०६ माह सुदि १० के० सा० ला गो० दो० साल्हा मा० माल्ही पु० जदा मा. ऊमादे पु० राणा थिरदे कंपा पांचा स० अदाकन पीकातमि० (?) श्रीवासुपुज्य विवं का० प्र० श्री संडेर गच्छे श्री शांति सूरिभिः ॥
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(७३) ( 279 )
सं० १५१४ जलवाह ग्राम वासि ओसवाल सा० लीला भा० अमरी पुत्र सा० नाथू नाम्ना भा० चनू पुत्र इंगशादि युतेन भात उगम श्रेयसे श्री मुनि सुव्रत विवं का० प्र० श्री तपा गच्छेश श्री रत्नशेषर सूरि पुरंदरैः ।
1280 )
सं० १५१७ वर्षे फा० शु० ११ सीणुरा वासि प्रा० वा. माई (?) आन बाकुंसुत समघरेण भा० राजू पुत्र वानर पर्वतादि युतेन स्व श्रेषसे श्री कुंयु विवं का० प्र० तपागच्छे श्री रत्नशेषर सूरिपदे श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः आचंद्रार्क जपतत् ॥ श्रो॥
( 231 ) सं० १५१९ वर्षे आषाड़ वदि१ श्री मंत्रिदः श्री काणा गोत्रे सा० लाधू भार्या धर्मिणि पुत्र सं० अचल दासेन पुत्र उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देवपाल महिराजादि यतेन स्वश्रेगो) श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतरगच्छे श्री जिन सुन्दर सूरिपदे श्री जिन हर्प सूरिभिः।
( 282 ) __सं० १५२३ वर्षे फा०व०८ छाव गोत्रे उकेश स. सान्हा भा० कल्ह पुत्र सं-नरसिंह मा० नामलदे पुत्र सं० साधूकेन श्री यमना भातृ साहसमधर प्रमुख कुटुम्ब युनि स्व श्रेयसे श्री धर्मनाथ विं कारितं प्रतिष्ठितं श्री-रिभिः ॥ देप । तप-- श्री ॥
(283 ) सं० १५२४ वै. शु. १३ प्राग्वाट सं० आस. भा. रात सुत सा. आल्हा भा० सोनी पुत्र हासादि कुटुम्ब युतेन स्व श्रेयसे श्री वासु पूज्य विंवं कारितं प्रतिष्ठितं तपा श्री लक्ष्मी सागर सूरितिः ॥ जाणांधारा (2) वास्तव्य वासियाः ॥
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J
( 92 )
✓
( 284 )
सं० १५३१ वर्षे ज्येष्ठ वदि १९ सोमे श्रीमाल ज्ञातीय घेवरीया गोत्रे सा० केल्हण मा० णी पुत्र साहसू जगपतिकेन भा० साक्तू पुत्र सहसू युतेन श्री विमल नाथ विंवं कारि० म० श्री खरतर गच्छे श्री जिन हर्ष सूरिभिः ॥
( 285 )
सं० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० सोमे लींबडी वास्तव्य सं० खेमा भा० गोरी श्राविकया पुत्र घेडसीम हिलया निज श्रेयसे श्री अंचल गच्छे श्री कुंथ केसरि सूरीणामुपदेशेन श्री कुंपनाथ विंवं का० प्रतिष्ठितं श्री संघेन ॥
√( 286 )
सं० १५३५ श्री मूलसंघ श्री विद्यानंदि गुरु रोहिणी व्रतोद्यापन वासु पूज्य स्वामी प्रतिष्ठितं सदा प्रणमंति गुरवः ।
√(287)
सं० १५३६ फा० सु० ८ ओसवाल ज्ञा० सा० देल्हाणधा सुः सरठवणेन (?) सु० सरवण द श्री शांतिनाथ विंवं का० ॥ प्र० ॥ उके । - कव ।
(288)
सं० १५३८ वर्षे आषाढ़ वदि ५ सर मूलसंघ श्री मानिक चंद ल
J ( 289 )
श्री ॥
सं० १५६३ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने श्रीमाल ज्ञातीय मांडिया गोत्रीय सा० अजिता पुत्री सा० लाषा भार्या आढी सुश्राविकया श्री चन्द्र प्रभविंवं कारितं स्त्र पुण्यार्थं प्रतिष्ठितं
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( ७५) श्री खरतर गच्छे श्री जिन समुद्र सूरि पहालंकार श्री जिन हंस सूरिभिः कल्याणं भूयात् माह सुदि १॥ दिने।
* 200 ) सं० १५६६ वर्षे ज्येष्ठ शुक्ल नवम्यां श्रीमाल वंशे महता गोत्रे सा० हाल्हा तस्य पुत्र सा. सकतनेनेदं पार्श्वनाथ विवं कारितं खरतर गच्छे श्री जिनदत्त (?) सूरि अनुक्रमे श्री जिनराज सूरिप? श्री जिन चन्द्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
/( 291 ) सं० १५६६ वर्षे माघ ०५ गुरौ लघु शाखायां सा. वीरम मा० कलापुत्र सा० आसा मा० कुंअरि नाम्न्या मुनि सुव्रत विंव का. स्वश्रेयसे प्र० तपागच्छे श्री हेम विमल सूरिभिः ॥ नलकछे ॥ (?)॥
J ( 292 )
सं० १५७५ वर्षे वैशाष सु. ३ शुक्रे श्री श्री (?) वंशे। सा० माला मा. खात नाम्ना सुण्यो (2) जावड़ शी• अदा समस्त कुटुम्ब युसया श्री अंचलगच्छे श्रीभावसागर सूरीणामुपदेशेन श्री आदिनाथ षिवं कारितं श्री संघेन ॥ श्रेयोऽयं ॥
( 293 ) सं० १५७६ वर्षे वैशाख सु० ६ सोमे पं० अभयसार गणि पुण्याय शिष्याः पं० अभय मंदिर गणि अभय रत्न मुनि युताभ्यां श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं तिब्र सपा पट्टे श्री सौभाग्य सागर सूरिभिः ।
J( 294 ) सं० १५७६ वर्षे माह सुदि ५ दिने उसवाल ज्ञातीय नवलपा गोत्रे साहधान मा०जसिरि पु० पदमा-णापदमा-पांचा हेमादि युतेन सा० पहमाकेन पूर्वज पूण्या) श्री
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(७) शितलनाथ विवं कारित प्र० नागोरी तपागच्छे १० मो राजरत्न सूरिभिः वधणोर वास्त व्यः श्रो।
( 295 )
सं० १७०१ ३० मार्गशिर १० ११ दिने आगरा वास्तव्य श्रीमाल ज्ञातीय वृद्धशाखीय सा. नानजी मा. गुजर--पुत्र स. हीरानन्द भा० यमिन रंगदे नाम्ना स्व च पुत्र-- एवं प्रमुख कुदुम्व श्रेयोर्य श्री वासुपूज्य चतुर्विंशति पह कारितं प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छे श्री श्री विजयदेव सूरिप श्री विजयसिंह सूरिभिः पं० लाल कुशल लिः ॥ श्री।
( 296 ) सं० १८५३ वर्षे वैशाप सुदिश् युधे वीवी मेंमाजी श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं सर्व समुदायेन।
( 297 ) सं० १७१० वर्षे मार्गशिर ----श्री शांतिनाथ विवं कारित ।
( 298 ) सं० १०६३ वै० सु०२ ---- पार्व
( 299 ) सं० १०६३ २० फा० २० १४ प्र० तत्र श्री पार्श्वनाथ ---।
(300) __ सं० १७७१ वर्षे शाके १६३६ वर्षे मगसिर सुदि १ शुक्रे मानपूर वास्तव्य वीराणी गोत्रीय सा. वेणीदास वरपुत्र सा० भीमसी तत्पुत्र सा० मयाचंद वासी हाजीपुर पटणा
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( ७७ ) कातेन शांतिविवं गृहीतं श्री मेदिनी पूरे प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छे भ० विजयरत्न सूरिराज्ये प० जय विजय गणिभिः। श्री।
( 301 ) सं० १७८६ वर्षे माघ सुदि १५ दिने घोडरिया गोत्रे सा० जीवण रामजी मार्या मन सुषदेजीः । सुत जगतसिंघजी विवं कारापितं ।
( 302 ) सं० १८२० वर्षे मिः मि-सु० ३ श्री भ० श्री जिन लाम सूरि ----
( 503 ) सं. १८२० वर्ष मिः मा• सु० ५ श्री १० जिन लाम सूरि प्र० धीर गोत्रे ० मोतीचंद कारी--जिनः--1
( 304)
सं० १८२० मि० फा० कृ०२ बुध दूगड़ महताव कुवर का० प्र० सागर---श्री अमत्त चन्द्र सूरि राज्ये
(305)
२४ जिन माता पट्टपर। संवत १८४८ मिति माद्र सुदि ११ तियो ॥ श्री पाटलिपुत्रे माल्हू गोत्रे सा० हुकुमचन्दजी पुत्र गुलावचन्द भार्या फुल्लो वीवी कया इष्ट सिध्ययं श्री चतुर्विंशति जिन मात स्थापना कारिता प्रातष्टिता च श्री जिनमक्ति सूरि प्रशिष्य श्री अमत धर्म वाचनाचार्यः श्री रस्तु।
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(७८)
( 306 ) सं० १९०. मिः आपाढ़ सिः ६ गुरौ श्री महावीर जिन विवं प्रति. खरतर महारक गच्छे महारक श्री जिन हर्ष सूरिप दिनकर म० श्री जिन सौभाग्य सूरिभिः कारितं तेन ओसवंशे दूगड़ गोत्रे भोलानाथ पुत्र दोलतरामेन स्वश्रेय सोर्यम् ।
पाषाण के मूर्तियों और चरणों पर।
( 307 )
( चंन्द्रप्रम विवपर) सम्बत १६७१ श्री आगरा वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय लोढ़ा गोत्रे गाणी वसे स० ऋपमदास भार्या सुः रेष श्री तत्पुत्र संघराज सं० रूपचन्द चतुर्भुज सं. धनपालादि यते श्रीमदचल गच्छे पूज्य श्री ५ धर्ममूर्ति सूरि तत् प पूज्य श्रीकल्याण सागर सूरीणा मुपदेशेन विद्यमान श्री विसाल जिन विंव प्रति --
( 308 ) संवत १६७१ वर्षे ओसवाल ज्ञातीय लोढा गोत्रे गाणी वंसे साह Qर पाल सं० सोनपाल प्रति० अंचल गच्छे श्री कल्याण सागर सूरीणामुपदेशेन वासु पूज्य बियं प्रतिष्ठापितं ॥
(309) ॥ श्री मस्संवत १६७१वर्षे वैशाष सुदि ३ शनी आगरा वास्तव्योसवाल ज्ञातीय लोढा गोत्रे गावंसे संघपति ऋषभ दास भा० रेष श्री पुत्र सं० क्रुरपाल सं० सोनपाल प्रवरौ स्वपित ऋष दास पुन्यार्थं श्रीमदंचल गच्छे पूज्य श्री ५ कल्याण सागर सूरीणामुपदेशेन श्री पदम प्रभु जिन बिंद्य प्रतिष्ठापितं स० चागाकृतं।
- ( 310 ) श्री मत्संवत १९७१ वर्षे वैशाष सुदि ३. शनी भो आगरा वास्तव्य उपकेस ज्ञातीय लोढा गोत्रे सा. प्रेमन भार्या शक्तादे पुत्र सा० पेतसी लघुभ्राता सा. नेतसा
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युतेन श्री मदंचल गच्छे पूज्य श्री ५ कल्याण सागर सूरीणामुपदेशेन श्री वास पूज्य विवं प्रतिष्ठापितं सं० Qरपाल सं० सोनपाल प्रतिष्ठितं ।
( 311 )
श्री मत्संवत् १६७१ वर्षे वैशाष सुदि ३ शनी श्री आगरा नगरे ओसवाल ज्ञाती लोढा गोत्रे-गा वंसे सा० पेमन भार्या श्री सत्तादे पुत्र सा० षेतसी भा० भक्कादे पुत्र सा० - सांग - श्री अंचल गच्छे पूज्य श्री ५ कल्याण सागर सूरीणामुपदेशेन श्री विमलनाथ विवं प्रतिष्ठितं सा० Qरपाल--।
( 312 ) (सं० १६७१ ) ॥संघपति श्री oरपाल स० सोनपालै स्वमात पुण्यार्य श्री अंचलगच्छे पूज्य श्री ५ श्रीधर्ममूर्ति सूरि पहाम्बुजहंस श्री ५ श्री कल्याण सागर सूरीणामुपदेशेन श्रीपार्श्वनाथ विवं प्रतिष्ठापित पुज्यमानं चिरं नंदतु ।
( 318 ) ॥ सं० १७६२ वर्षे कार्तिक शु०६ सा वेणीदास पुत्र भीमसेन पुत्र मयाचन्द प्रतिष्ठा करापितं बीराणी गोत्रे पाडली पुरे।
( 314 ) सं० १७६२ वर्षे कार्तिक शुक्ल : सा. वेणीदास पुत्र भीमसेन पुत्र मयाचन्द वोराणो गोत्रे--- प्रतिष्ठा करापितं पाटली पुरवरे।
( 315 ) ॥ सं० १७६२ व० का० सु० ६ सा० वेणीदास पुत्र भीमसेन पुत्र मयाचन्द प्र. बीराणी गोत्र पटना नगर श्री नेमनाथ ॥ श्री शांतिनाथ ॥
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(८०)
( 316)
॥सं० १७८६ वर्षे आसोज सुदि ८ श्रीपासचन्द गच्छे ॥ श्री उपाध्याय षेमचन्द जीना पादुका ॥
( 317 ) ॥ संवत १८१८ वर्षे श्री संभवनाथ जिनधरण कमल स्थापिते साह माणिक चंदेन जीर्णोद्धार करापितं ॥
( 318 ) सं० १८२५ वर्षे माघ शु० ३ गुगै गोवर्द्धन सत सरुपचंदेन प्रति महि - - नाथ बिंब कारापितं।
(319 ) ॥ संवत् १८२६ श्री ५ पं० लोलचन्दजी पादुकं ॥ मनसारामेन स्थापितं । सवंत् १८२६ श्री ५ पं० रूपचन्दजी पादुका ॥ संवत् १८२६ श्री ५ श्री वा० भारमल्लजी ॥
( 320 )
॥ शुभ संवत् १८७७ वर्षे ॥ वैसाख शुक्ल पंचम्यां चंद्रवासरे श्री जिन कुशल सूरीश्वर सद्गुरूणा चरण पादुका प्रतिष्ठिता श्री महत्खरतर गच्छे भहारक श्री जिन अक्षय सूरि पहालं कृत श्री जिनचन्द्र सूरिभिः श्री मत्पाटलिपुर वास्तव्य । समस्त श्री संधैः प्रतिष्ठा कारापिता। पं । गणि श्री कीर्युदयोपदेशात् ॥ श्री रस्तु।
( 321 ) ॥ सम्बत् ॥ १८७७ ॥ वर्षे वैशाष शुक्ल पंचम्यां चन्द्र वासरे श्री जिन कुशल सूरीश्वर सद्गुरूणां चरण पादुका प्रतिष्ठिता भहारक श्री जिन अजय सूरि पहालंकृत श्री जिन
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Footprints, Pataliputra (Patna) Temple dated S. 1877 (1820 A. D.)
दतवरता miumतारका
छत्तसेवावधीसारवशता पम्पा बासरी जिन ऊनालस्तरीश्वसजरूणावरणमा कातिल तालीम रतर
अक्षयन पाल
पतन। मालि समस्त लाकारा
नववा
ভিী
,
देशात
HAN
IS
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(८१) चन्द्र सूरिभिः मनेर वास्तव्य श्रीमालान्वये--वदलिया गोत्रे सुश्रावक श्री कल्याणचन्द तत्पुत्र श्री भग्गुलाल कीर्तचन्द्र तत्पौत्र किसनप्रसाद अभय चंद्रादि सपरियारेण स्वधेयोऽर्थं प्रतिष्ठा कारापिता पं । ग । कीर्युदयोपदेशात् ।
( 322 ) श्री आगरा नगर वास्तव्य सं० पति श्री श्री चन्दपालेन प्रतिष्ठा कारिता।
( 323 ) ॥ संवत २४९ वर्षे वेशाप सुदि ३ श्री मुलसंघे महारक जी श्री जिन चन्द्रदेव साह जीवराज पापडीवाल नित्य प्रणमति सर मम श्री राजाजी स संघ---
( 324 ) संयत १५४८ वर्षे वैसाष सुदि ३ मुलसंघे महारक श्री जिन चन्द्र सा. जिवराज पापडिवाल सहरम-सा श्री राजसी संघ रावल ॥
(325) ॥ संवत १६०४ ज्येष्ठ वदि ३ सोमवारे क्रुरवंशे महाराजधिराजजी श्री मत स्याहजा राज्य H० ॥ चंद्रकीर्तिजी तत्पदे भ० श्री देवेन्द्र कीर्तिजी सदाम्नाये सरस्वती गच्छे बलात्कारगण कुंदाचार्यान्वये शुभां।
( 326 ) संवत १७३२ वर्षे मार्गशिर्ष वदि पंचमी गुरी ढाकामध्ये ----काष्ठा संघ माथुर गच्छे पुष्कल गण लोहाचार्या न्वये दिगम्बर धर्म महारक रूपचन्द्र प्रतिष्ठितं अग्रवाल गांगलु गोत्रे सा० गुलाल दास मा० मुलादे पुत्रः। सावलसिंघवी अमरसिंघवी केसर सिंह वि---प्रतिष्ठा कारापितानि सेरपुरेन्तिके ---- ढाकायां प्रतिष्ठा । --- पादुकानां ॥ श्रेयोस्तुः॥ पादुका आदिनाथकी। गुरुपादुका ॥
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(२)
( 397 )
नेमनाथजीके विवपर। ॥ सं० १९१० माघ शु० १४ शनी काष्ठासं (घ) मायुर गच्छ पुष्कर गण लोहाचार्य याम्नाय न देवेंद्र कीर्त्तिदेव तत्पह भ० जगत् कीर्चिदेव सत्पदे १० ललित कीर्तिदेव तत्पदे १० राजेन्द्र कीर्चदेव हदाम्नाय अग्रोत् कान्वय वासिल गोत्रे सा. श्री सोषीलाल तत्पुत्र याबु मुनिसुव्रत दासेन थी जिनालय पूर्वक श्री जिन विवं प्रविष्ठा कारापिता आरामपुर वास्तव्य---स्य रामसरा मध्ये श्रीरस्तु ॥ श्री ३॥
( 328 )
॥ श्री संवत १९१० शाके ॥ १७७५ साल मिती वैशाख शुक्ल पंचम्यां गुरौ पाटलीपुर सर जिनालय पूर्वक श्री श्री नेमनाथ मंदिरजी जेसवाल माणकचन्द तत्पुत्र मटरु मल तत्पुत्र सीवनलाल प्रतिष्ठो कारापितं श्रीरस्तु ।
(329)
श्री स्थूलभद्रजी का मंदिर। ॥संवत १८४८ वर्षे मार्गशिर वदि ५ सोमवासरे श्री पाडलीवास्तव्य श्री सकल संघ समुदायेन श्री स्थलमद्र स्वामीजी प्रसादस्य कारापितं कार्य स्याग्रेस्वरी श्री सपा गच्छीय पार्दुः श्री लोढा श्री गुलाबचन्दजी प्रतिष्ठि तंसकल सूरिभिः ।
( 330 )
चरण पर। सं० १८४८ ॥ भाद्र सुदि ११ श्री संघेन । श्रुत केवलि श्रोस्यूल भद्राचार्याणां देवगृहं कारयित्वा तत्र तेषां चरण न्यासः कारितः प्रतिष्ठितं श्री अमृतधर्मवाचनाचार्यैः ॥
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( ८३ )
सेठ सुदर्शनजी का मन्दिर ।
( 331 )
चरण पर ।
toreपदाप्तस्य श्री श्रेष्ठ सुदर्शनस्य इमे पादुके संप्रतिष्ठिते सकल संघेन शुभ संवत्सरे ॥
दादावाड़ी |
( 332 )
संवत १६८२ मार्गशिर्ष शुदि ५ सा० कटार मल तस्यात्मज सा० कल्याण मल पुत्र चिंतामणि श्री जिन कुशल सूरि० भ । वेगमपुर वास्तव्य ।
( 333 )
'संवत १६८९ वर्षे पूर्व देशे पाडलिपुर नगरे वेगमपुर
--
(334
तपागच्छे भ० श्री ५ श्री हीर विजय सूरि जगत पादुकेभ्यो नमः पं० चंद्र कुशल गणि नित्यं प्रणमतिश्च । सं० १७६२ वर्षे कार्तिक शुक्ल ९ सा० वेणीदास पुत्र भीमसेन पुत्र मयाचन्द वीराणी गोत्रे प्रतिष्ठितं - वीराणी मयाचन्द प्र० क० पाडलीपुरे ।
(335)
साध्वीजी के चरण पर ।
सं० १८४४ वर्षे शाके १७०९ प्रवर्त्तमाने मिति माघ मासे शुक्ल पक्ष सूरीशाषायां साध्वी महत्तरा सुजान विजयाजी सत् शिष्यणी दीप विजयाजी तत् शिष्यणी अंते वासिनी पान विजया कारापितं वाराणसी मनसा रामेन प्रतिष्ठा कारापितं शुभमस्तु ॥
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(८)
श्री समेत शिखर तीर्थ। यह प्रसिद्ध जैन तीर्थ पूर्व देश जिला हजारिवागमें है। १ । १२ । २३ । २४ यह १ तीर्थंकरोंके सिवाय और २० तीर्थंकरोंका निर्वाण कल्याणक यहां हुवे हैं। यह पवित्र पहाड़के २० टोंकमेंसे १९ टोंक पर छत्रिमें चरण पादुका विराजमान हैं और श्री पार्श्वनाथ स्वामीके टोंक पर मंदिर है। तलहटी मधुवनमें मंदिर और धर्मशालावने हुवे हैं। यहांसे ४ कोस पर ऋजुवालुका नदी बहती है जिसके समीपमें श्री वीर भगवानका केवल ज्ञान भया था। यहां पर चरण पादुका है। यहांका और मधुवनका लेख जैन तीर्थ गाइ उसे लिया गया है।
ऋजुवालुका नदीके किनारे छत्रिमें
चरण पर।
4( 336 ) ऋजुवालुका नदी तटे श्यामाक कुटुम्वी क्षेत्रे वैशाख शुक्ल १० ततीय प्रहरे केवल ज्ञान कल्याणिक समवसरणमभत् मुर्शिदावाद वास्तव्य प्रतापसिंह सद्धार्या मेहताव कुवर तत्पुत्र लक्ष्मीपतसिंह बहादुर तत्कनिष्ट भ्राता धनपतसिंह वहादुरेण सं०१९३० वर्षे जीर्णोधार कारापितं।
मधुवनके मन्दिरके मूर्तियों पर ।
( 337 ) संवत् १८५४ माघ कृष्ण पंचम्यां चंद्रवासरे श्रीपाश्र्व जिन विंवं प्रतिष्ठितं --।
- ( 338 ) संवत १८५५ फाल्गुण शुक्ल तृतीयायां रवी श्रीपाश्र्वनाथस्य शून स्वामी गणघर विवं प्रतिष्ठितं जिन हर्ष सूरिभिः कारितं च वालुचर वास्तव्य श्रीसंघेन ।
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(८५)
( 339) रंवत १८७७ - - श्रीपार्श्व विवं प्रतिष्ठितं श्री जिन हर्ष सूरिणा कारितं - - सांवत सिंहज पदार्य मल्लेन ---।
( 340 )
संवत् १८७७ वैशाख शुक्ल १५ श्रीपार्श्वविवं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्ष सूरिणा गोलेछा महतावो - - मूलचन्द्र धर्मचन्द्रेण कारितं ।
___.( 341 )
संवत १८८७ वर्षे फाल्गुन शुक्ल १३ श्रीपार्श्वनाथ जिन विवं दुगड़ ज्येष्ठमल्ल भार्या फत्ती नाम्न्या वाचक चारित्रनंदि गणि उपदेशात् कारितं प्रतिष्ठितं च ।
V ( 342 ) संवत १८८८ माघ शुक्ल पंचम्यां सोमवासरे श्री शितलनाथ विंवं कारितं ओशवंश दुगड़ गोत्र प्रतापसिंहेन प्रतिष्ठितं च श्री जिन चंद्र सूरिमिः।
"( 343 ) संवत १८८८ माघ शुक्ल पंचम्यां चंद्रवासरे श्रीचंद्रप्रभ जिनविवं कारितं ओशवंशे भवलखा गोत्रे मेटामल पुत्र जसरूपेन प्रतिष्ठितं च वृहद महारक खरतर गच्छ श्री जिनाक्षयसूरी चंचरीक श्रीजिनचंद्र सूरिभिः।
- ( 344 ) सं० १८८७ वर्षे ---श्री ऋषम जिनवि कारितं प्रतिष्ठितं ---।
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(
६)
( 345 ) सागरांकवसुचंद्र वर्षे (१८८७) नेत्रषण गणधरायुते शके (१७६२) फाल्गुनां तिमदले सुनागके (५) भार्गवे सितपटौघपालके वाणारस्यां श्रीमद्भगवत्सहस्रफणालंकृत श्री पार्श्वनाथ जिनमूर्तिः कारापितं श्रे० उदय चंन्द्र धर्म पत्नी महाकुवराख्यया मूल चंद्र सुत युतया यहत्खरतर गणेश श्री जिन हर्ष गणि पदालंकृत श्री जिन महेंद्र सूरिणा प्रतिष्ठिता।
( 346 ) सं० १९०० वर्षे.. श्री गोडी पार्श्वनाथ विवं का० ---।
"( 347 ) सं०१९१० शाके १७७५ माघ शुक्ल द्वितीयायां श्री पार्श्वविवं प्रतिष्ठितं वृहत्खरतरगच्छे---।
टोंकपरके चरणों पर।
. ( 348 ) ॥ संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरो विरानी गोत्रीय सा० खुसाल चन्देन श्री अजितनाथ पादुका कारापिता श्री मत्तपा गच्छे ।
( 349) ॥ संयत् १९३१ । माघे । श। १० चंद्र। श्री अजितनाथ जिनेन्द्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा श्री संघेन कारापिता। मलधार पूर्णिमा श्री मद्विजय गच्छे । महारक । श्री जिन शांतिसागर सूरिमि प्रतिष्ठितं च ॥
- ( 350 ) ॥ संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानी गोत्रीय सा० खुसालचंदेन श्री संभव पादुका कारापिता श्री मचपा गच्छे ।
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(८७)
(351)
संवत् १९३० । माघे । । शु० १० | चंद्रे । श्री संभव जिनेंद्रस्य चरण पादुका श्री संघेम पितां । मलधार पूर्णिमा ॥ विजय गच्छे । श्री महारकोत्तम श्री पूज्य श्री जिन शांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
( 352)
॥ सं० १९३३ का जेष्ठ शुक्ल द्वादश्यां शनिवासरे श्री अभिनन्दन जिनेंद्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा श्री संघेन कारिता मलधार पूनमीया विजय गच्छे श्री जिन चंद्र सागर सूरि पट्टोदय प्रभाकर महारक श्री जिन शांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितां । स्थापितांच । शुभं श्रेयसे भवतु ।
(35
353 )
॥ सं० । १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानी गोत्रीय सा० खुसाल चंद्रेण श्री सुमति नाथ पादुका कारापिता च । सर्वं सूरिभिः श्री तपा गच्छे ।
( 354 )
॥ सं । १९३१ । माघे । शु। १० श्री सुमतिनाथ जिनेंद्रस्य चरण पादुका । जीर्णोद्वार रूपा । गुर्जर देसे श्री संघेन स्थापिता । कारापिता । विजय गच्छे । भ । श्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं ॥
/ ( 355 )
॥ सं १९४९ माघ सु० १० सुक्रवा । श्री समेत शैल पर्वते श्री पद्म प्रभु जिन चरण स्थापितं प्रति । भ । श्री विजय राज सूरि तपा गच्छे ।
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( ८ ) ✓ ( 356 )
संवत् १८२५ मह सुदि ३ गुरी विरानी गोत्रीय साह खुसाल चंदेन श्री सुपार्श्व - पादुका कारापिता प्र० ।
✓
( 357 )
संवत् ११३१ । माघे । शु । १० । सुपार्श्वनाथ जिनेंद्रस्य । चरण पादुका जीर्णोद्वार रूपा । सेठ उमा भाई हठी सिंहेन तया स्थापना कारापित पूर्णिमा विजय गच्छे । अहारक | श्री जिन शांति सुरिभि । प्रतिष्ठितं च ।
✓(358)
॥ संवत् १८४९ माघ मासे शुक्ल पक्ष पंचमी तिथौ बुद्धवारे । श्री चंद्र प्रभु जिनस्य चरण न्यासः श्री संघाग्रहेण । श्री बृहत् खरतर गच्छीय । जंगम । युग प्रधान महारक ! श्री जिन चंद्र सूरिभिः । प्रतिष्ठितः ॥ श्री ॥
(359)
॥ संवत् १९३१ वा वर्षे । माघ सुदि १० तिथौ श्रो सुविधि जिनेंद्रस्य चरण पादुका । अहमदावाद वास्तव्य सेठ उमा भाई हठी सिंहेन कागपिता। मलधार पूर्णिमा विजय गच्छे । भट्टारक । श्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं ॥
✓ (360)
॥ संवत १९३१ । माघे । शु। १० तिथौ । चंद्रे । श्री सुवधि जिनेंद्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्वार रूपा । अहमदावाद वास्तव्य । सेठ उमा भाई हठी सिंहेन स्थापिता कारापित च । मलधार पूर्णिमा । श्री मद्विजय गच्छे। श्री भहारकोत्तम । श्री श्री जिन शांति सागर सूरिभिः ॥ प्रतिष्ठितं । स्थापितं च शुभ श्रेय ।
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(८
)
- ( 361 )
॥ सं० । १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरे विरानी गोत्रीय सा० श्री खुसाल चंद्रेण । श्री शीतल जिन पादुका कारापिता श्री तपा गच्छे ॥
V( 362 ) ॥ संवत् १९३१ वर्षे माघे । शु। १० । चंद्रे श्री सीतल नाथ जिनेद्रस्य चरण पादुका जीर्णोधार रूपा गुजराती श्री संघे कारापिता ॥ मलधार पूर्णिमा विजय गच्छे । महाएक । श्री जिन शांति सागर सूरिभिः। प्रतिष्ठितं । स्थापितं च ।
( 363 ) ॥ संवत १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरी विरानी गोत्रीय साह खुसाल चंदेन श्री श्रेयांस प्रभु पादुका कारापिता प्रतिष्ठिता च श्रीमत्तपा गच्छे।
- ( 364 ) ॥ संवत् १९३१ माघे शु। १० तिथी। श्री श्रेयांस नाथ जिनेंद्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्वार रूपा । गुजरातका श्री संघेन तया स्थापना कारापितं पूर्णिमा श्रीमद्विजय गच्छे । म । श्री पूज्य । श्री जिन शांति सागर सूरिभिः।प्र।
( 365 ) ॥ संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरो विरानी गोत्रीय साह खुसालचंदेन श्री विमल नाथ पादुका कारापिता प्रतिष्ठिताच श्रीमत्तपा गच्छे ॥ श्री ॥
( 386 ) ॥ संवत् १९३१ माघ शुक्ले १० चंद्रो श्री विमलनाथ जिनेंद्रस्य पादुका चीर्णोद्धाररूपि। गुजरात का श्री संघेन । तया स्थापना कारापिता। मलधार श्री विजय गच्छे। जं। यु प्र। महारक। श्री पूज्य । श्री जिन शांति सागर सूरि प्रतिष्ठितं च ।
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(९०)
"( 367 ) ॥ संवत् १८२५ वर्षे माय सुदि ३ गुरी विरानी गोत्रीय साह खुसाल चंदेन श्री अनंत प्रधु पादुका कारापिता प्रतिष्ठिताच सर्व सूरिभिः श्रीमत्तपा गच्छे ॥ श्री रस्तुः ॥
" ( 368 ) ॥ संवत् १९३१ वर्षे माघ शु०१० चंद्र श्री अनंत नाथ जिनेन्द्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा। श्री संघेन स्थापना कारापिता । मलधार पूर्णिमा श्री मद्विजय गच्छे महारक । श्री शांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितं । स्थापितं ।
"( 389 )
॥ सं १९१२ वर्षे शाके १७७७ मिते माषोत्तम मापे मार्गशीर्ष कृष्ण पक्षी नवमी तिथी सोमवासरे विजय योगे कुंभ लग्ने श्री सम्मेत शैले श्री धर्मनाथ चरण पादुका प्रतिष्ठिता वृहत् खरतर भहारकोत्तम भट्टारक श्रो जिन हर्ष सूरीणां । पद प्रभाकर श्री जिन महेंद्र सूरिभिः स साधुभिः कारिवाश्च वाराणसीस्य श्री संघेन कालिपुरस्य संघेनया।
( 370 ) ॥ संवत् १९३१ माघे । शु। १० तिथी श्री धर्मनाथ जिनेंद्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्वार रूपा । मम्बई वास्तव्य । सेठ नरसिंह भाई । केसवजी केन स्थापना कारापिता। पूर्णिमा विजय गच्छे । जं। यु ।प्र। महारक जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं ॥ स्थापितं च । शुभं भवतु ॥
( 371)
। संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानी गोत्रीय साह खुसाल चंदेन श्री शांति नाथ पादुका कारापिता प्रतिष्ठितं च सर्व सूरिभिः श्रीमत्तपा गच्छे ।
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(११)
( 372 ) । संवत् १९३९ । माघे । शु।१०। चंद्र। श्री शांतिनाथ जिनेंद्रस्य । चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा। अहमदावाद वास्तव्य । सेठ भगु भाइ पेम चंदेन स्थापना कारापिता। पूर्णिमा बिजय गच्छे । जं। युग प्रधान ।। श्री पूज्य श्री जिन शांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितं स्थापितं च ॥
"( 273 ) ॥ संवत १८२५वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानीगोत्रीय साह खुसाल चंदेन श्री कुंथुनाथ पादुका कारापिता प्रती० श्री तपा गच्छे ।
( 374) ॥ संवत् १८३१ माघ शुक्ले १० चंद्रो श्री कुंथु जिनेंद्रस्य। चरण पादुका -- जीर्णोद्धार रूपामम्बईवास्तव्य सेठ केसवजी नायकेनस्थापना कारिता --- पूर्णिमा। श्री बिजय गच्छे। श्री जिनचंद्र सागर सूरि पहोदय प्रभाकर - - भहारक श्री जिन शांति सागर सूरिभिः। प्रतिष्ठिता स्थापिता च।
(375) ॥ सं० १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरो विरानी गोत्रीय सा० खुसाल चन्देन श्री अरनाथ पादुका कारापिता प्र० श्री सपा गच्छे ।
/ (376) ॥ संवत् १९३१ । माघे । शु।१०। चंद्र। श्री अरनाथ जिनेन्द्रस्य। चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा। गुजरातका श्री संघेन तया स्थापना कारापिता मल ॥ पूर्णिमा।विजय गच्छे । जं। यु । प्रभाश्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं।
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(९२) ( 37 )
॥संवत् १८२५ वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्ष ३ गुरौ विरानि गोत्रीय साह खुसाल चंदेन । श्री मल्ली नाथ पादुका कारापिता प्र • श्री सपा गच्छे ।
( 378 )
॥ संवत् १९३१ माघे । शु। १० चंद्रे। श्री मल्लि नाथ जिनेंद्रस्य । चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा अहमंदावाद वास्तव्य । सेठ भगु भाई पेम चंद स्थापना कारापिता मलधार पूर्णिमा। श्री मद्विजय गच्छे। भहारक । श्री पूज्य। श्री जिन शांति सागरसूरिभि प्रतिष्ठितं । स्थापितं च ॥
( 379 )
॥ सं० । १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानी गोत्रीय साह खुसाल चंद्रेण श्री सुब्रत जिन पादुका कारिता श्रीमत्तपा गच्छे ।
। ( 380 )
॥ संवत् १९३१ माघे । शु।१०। श्री मुनि सुब्रत जिनेंद्रस्य । चरण पादुका। जीर्णोद्धार रूपा। गुजरातका। श्री संघेन स्थापना कारापिता। मल । पूर्णिमा । श्री मद्विजय गच्छे श्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं ॥ स्थापितं च॥
J( 381 )
॥ संवत १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरी विरानी गोत्रीय साह खुसाल चंदेन श्री नमिल नाथ पादुका कारापिता प्रतिष्ठिता सर्व सूरिभिः श्री तपा गच्छे।
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(६३)
( 382 ) ॥ संवत १९३१ माघ शुक्ने दशम्यां चंद्रवासरे श्री नमिनाथ जिनेंद्रस्य चरण पादुका। जीर्णोद्धार रूपा । अहमदावाद वास्तव्य । सेठ उमा माई हठी सिंहेन स्थापना कारापिता। पूर्णिमा विजय गच्छे भट्टारक। श्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं ॥
तेजपूर (आसाम) राय मेघराजजीका मंदिर।
( 383 ) संवत १५१३ वर्षे वैशाष शुदि ७ शनी श्रीश्रीमाल ज्ञातीय श्रे० सानंद भार्या हीसू सुत पूनसीकेन मातपित श्रेयो) श्रीशीतलनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः ।
(384 )
सं० १९४३ का मिति वैशाष शुक्ल सप्तम्यां ----
( 35 ) सं० १९५७ वर्षे ज्ये० शु० १२ तिथौ शुक्रवासरे ॥ श्री जिन कीर्ति सूरि प्रतिष्ठितं श्री जिनदत्त सूरि नाम पादुका का।
कलकत्ता श्री कुमरसिंह हल - नं० ४६ इंडियन मिरर स्ट्रीट।
धातुयोंके मूर्ति पर।
( 386 )
श्रीपार्श्वनाथ विव। ब्रह्माण सत्व संयकः श्रियावे सुनः सुपुण्यक श्री द्वः (?) सीलगण सूरि भक्तस्प (?) द्रकुले कारयामास संवत १०३२
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( ९४ )
✓( 387 )
सं० ११५० ज्येष्ठ सुदि १० श्री महेशराचार्य श्रावक पूना सुताभ्यां पाल्हण राहणाभ्यां सोमा श्रेयसे चतुर्विंशतिः कारिता ॥
स्वमातृ
( 388 )
श्री मूलसंघे गुणभद्र सूरेः संडिल्ल ( खडिल्ल = खंडेल ? ) वालान्वय सारभूतः । यो विस्नु ( श्रु ) तोसौ सिवदेवि पुत्रः सच्छ्रावकोऽभून्मुनिचंद्र नामा ॥ १ तस्माच्छीतेति विरण्याता मार्या शील विभूषणा ।
कारिता कर्मनाशाय चतुर्विंशतिका शुभा ॥ २ संवतु १२३९ फा सु० २ गुरौ ॥
✓
(389)
संवत १४८५ वर्षे जेठ सुदि १३ चंद्रवारे उपकेश गच्छे कक्क० उ०केश ज्ञातीय बापणा० सा० छाउ जीदा (?) भा० जईतलदे पु० साचा माय - सिवराजकेन मातृपितृ श्रेयसे श्री शांतिनाथ विंवं कारा० प्रतिष्ठितं श्री सिद्ध सूरिभिः ।
बडाबजार - पंचायति मंदिर |
J
(390)
मनाथ वीतनाग पत्नीलं मुलसरक ॥ सं० १०८३ वै० सु० १५
[ पृ० २२ के लेख नं० ( द ) का संशोधित पाठ ]
संवतु १९५४ माघ सुदि १४ पद्मप्रभ सुत स्थिरदेव पत्न्या देवसिया श्रेयो नूहेन ॥
करिता ।
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(५) यति पन्नालालजी मोहनलालजीका घर देरासर ।
( 391 ) ॥ संवत १५०६ वर्षे श्री श्रीमाल ज्ञातीय दोसी ड्रेगर भार्या म्यापुरि सत पूजाकेन भार्या सोही सुत बीका युतेन आरमश्रेयसे श्री सुविधिनायादि चतुर्विंशति पह कारितः । मागम गच्छे श्री अमरसिंह सूरि पहे श्री हेमरत्न सूरि गुरूपदेशेन प्रतिष्ठितः॥ गंधार वास्तव्य ॥ शुभं भवतु ॥ श्रीः॥
V( 392 ) सं० १५१६ वर्षे फा० शु०८ प्राग्वाट सा० जोगा भा० मरगदे सुत सा० हदाकेन भा. करमी पु० पाल्हादे कुटुम्ब युतेन स्वश्रेयसे श्री विमलनाथ विवं का० प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्री सोमसुंदर सूरि प श्रीरत्नशेषर सूरिभिः।
V( 393 ) सं० १७७१ वै. वदि ५ गुरी प्राग्वाट ज्ञातीय वृद्धशाषायां सा. प्रेमचंद ग्रामीदास स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथ प्रतिष्ठितं श्री विजय ऋद्धि सूरिभिः । कलकत्ता अजायब घर (म्युजियम ) के पाषाणके मूर्तियों पर ।
- ( 394 ) १५८४ --संवत १-८४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १५ गुरौ श्रीश्रोमाली ज्ञातीय जंबहरा स० केशव सुत सं० मंडिलक सुत० सं० चांपा भार्या चापलदे सुत सं० ---- भार्या श्री गांगी सुतमेघाकेन भार्या राजु पुत्र सा० नाकर सा० मागादि तथा (?) पुत्री जीवणि प्रमुख रामसु (?) कुटुम्ब युतेन निज श्रेयोऽवाप्ताय श्री श्रेयांसनाथ विवं कारितं ॥ वृद्ध तपागच्छ नायक भ० श्री रत्नसिंह सूरि पहालंकरण भ० श्री उदय वल्लभ सूरिभि श्री ज्ञान सागर सूरि युतो प्रतिष्ठितं।
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V, 395)
संवत १६०८ वर्षे माघ वदि गुरी प्राग्वाट ज्ञाती सा० राघव मा. रतना सा० नरसीआ भा० सुजलदे सा० रणमल भा. वेनीदे सुत लाला सीमल श्री संतनाथ विवं प्रतिष्ठितं। म्युनिक ( जर्मनि ) के जादुघरके धातुकी मूर्ति पर ।
( 396 ) सं० १५०३ वर्षे माघ वदि ४ शुक्र उ. गोष्टिक आल्हा भा० शृगारदे सुत सुडाकेन भा. सुहवदे स० आत्मश्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विवं कारि० प्र० जरापल्लिय श्री शालिभद्र सूरि पट्टे श्री उदय चन्द्र सूरिभिः शुभं भवतु ।
डाः कुमार स्वामिके पास 'समवसरण' के चित्र पर ।
(
397 )
संवत १६० वर्षे भाद्रव शुदि २ श्री मदुत्तराध गच्छे आचार्य श्रीकृष्ण चंद विद्यमाने लिः ऋषि ताराचंद शुभं भूयात् कल्याणमस्तु ॥ छ ।
मेः लुवार्ड के मध्य भारतसे प्राप्त धातुकी मूर्तियों पर ।
। ( 398 )
सं० १५२७ पौष वदि ५ शुक्रे प्राग्वाट ज्ञातीय श्री सहिजक तत्पुत्र श्री डूंगर मा० श्रा० सुडि सपरिवार भा० सहिजलदे धरमसि करमण आदि पुत्रादि युतेन पुण्यार्थं श्री कंथुनाथ विवं का० तणगच्छे श्री लक्ष्मी सागर सरिभिः प्रतिष्ठितं ।
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(६७)
( 399 )
सं० १५३३ वै. शु. १२ गुरौ प्राग्वाट ज्ञा० सा० ताल्हा भा. राजु पु. सा. लिमपाक तत् भा. रत्न रुटु धाता सा० किवालघ मेघ आदि सपरिवारेन श्री कुंथुनाथ विंवं का० प्रति श्री तपगच्छाचार्य श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः श्री वसंतनगरे।
जैपुरके वेपारियोंके पासकी मूर्तियों पर।
( 400 )
सं० १४०५ वैशाप सु० ३ श्री उएस गच्छ तातहड़ गोत्र प्र० साः-ज्ज भा० ब्रह्मादे वही पुत्र संघ. सा. चाकेन सकुटुंवेन श्री रिषभविवं का० प्र० श्री ककुदा चार्य संताने श्री कक्क सूरिभिः॥
V(401)
सं० १५१२ वर्षे वै. शु. ५ ओसवाल गोत्रे सा० महणा भा० महणदे सुत सा० सीपा केन भा० सूलेसरि प्रमुख कुटुम्बयुतेन श्री आदिनाथ विवं का० श्री कक्क सूरिभिः ॥
अजमेर राजपुताना म्युजिउमके वारलि गांवसे प्राप्त पत्थर पर।
___ ( 402 ) ---विरय भगवत (त)- - थ -- चतुरासि तिव ( स ) -- ( का ) ये सालिमालिनि -- रंनि विठमाझिमिके--
इसमें भी महावीर स्वामिका नाम और ४ वर्ष मध्यमिका नगरका जो कि चित्तोइसे ४ कोस उत्तरमें था उमर है और यह।३।४ पूर्वशताब्दि का बहोत प्राचीन लेख ऐसा द्विामाँका विचार है।
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(६८)
* बनारस काशीदेशका यह वाराणसी वा वनारस सहर जैनियोंका बहुत पवित्र स्थान है। हिन्दुओंका भी प्रसिद्ध तीर्थ है। यहां प्रतिष्ठ राजा और पृथ्वी राणीके पुत्र ७ मां तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथजी का च्यवन और जेठ सुदि १२ जन्म, जेठ सुदि १३ दीक्षा, फागुन वदि ६ केवल ज्ञान और अश्वसेन राजा वामा राणी के पुत्र २३ मां तीर्थंकर भी पार्श्वनाथजी का भी च्यवन, पोष वदि १० जन्म, पौष वदि ११ दीक्षा और चैत वदि १ केवल ज्ञान यह ८ कल्याणक भये हैं। महल्ले भेलुपुरा और अदेनीमें मंदिर बने हुए हैं सहरमें कई एक मंदिर हैं। यहां से? कोस पर सिंहपूरी है यहां ११मांतीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथजी का च्यवन, फागुन वदि १२ जन्म, फागुन वदि १३ दीक्षा और माघवदि ३ केवल ज्ञान भया है। निकटमें वौट्ठोंका सारनाथ नामक प्राचीन स्थान है।
सुत टोलका मंदिर। पंच तीर्थी पर।
- ( 403 )
सं० १५१५ वर्षे माह शुक्ल १३ दिने श्री ओसवाल ज्ञातीय अ० मूंधा मार्या माधलदे सु० धनदत्तन पित श्रेयो) श्री शितलनाथ विंवं पूर्णिमा पक्ष भ० श्री सागर तिलक सूरि पट्टे श्री महितिलक सूरि कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः ॥
V ( 404 ) सं० १५५६ वर्षे आषाढ़ सुदि दिने चंपकनर वासि श्रे. जावड़ भार्या पूरी सुत धरणाकेन आर्या हर्षाई सुत नाकर प्रमुख कुटुम्ब युतेन श्रीशांतिनाथ विवं श्री निगमागमा भार्या कारितं प्रतिष्ठितं श्री निगमा विभावक श्री इन्द्रनंदि सूरिभिः ॥ श्रीः ॥ श्रीः॥
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( 6 ) बट्टीका मंदिर।
- ( 405 )
सं० १५१९ वैशाष शु०५प्राग्वाट सा० सिधा मा० लादां सु० साह हीराकेन मा. संजत्री प्रमुख सुरत श्री-जिनावति का० प्र० तपा रत्न शेखर सूरिभिः ॥
पटनी टोलेका मन्दिर।
V ( 406 ) सं० १४८५ वर्षे आ० सुदि १० रवी माल्हू --अ० ज्ञा० साह वीजड पु० साह हरपाल आ. हेमादे पुत्र साह साडाकेन श्रीपार्श्वनाथ विवं राजावर्तक रत्नमयं सपरिकरं का. प्रतिष्ठितं श्रीमल धारि गच्छे श्रीविद्यासागर सूरिभिः ।
V( 407 )
सं १५८६ वर्षे वैशाप सुदि ३ भीमे श्री श्रीमाल ज्ञातीय परी. नरसिंघ भ्रातपरी पनपा भार्या हीरूपुत्र कुरपालेन श्री श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सुविहित सूरिभिः॥
चुनिजी यतिका मन्दिर गणेशघाट ।
( 408 ) संवत १२५७ उपेष्ठ सु. १० महेष्ठीराचार्य ---स्वमातृ सोमा श्रेयसे चतुर्विशतिः कारिताः॥
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( १०० )
रामचन्द्रजी का मंदिर । (409)
सं० १४०६ वर्षे फागुन सु० ११ गुरौ सूराणा गोत्रे सा० जतरा शु० सा० जगद भार्या जयत श्री पु० नरपाल रणमीरभ्यां मातृ श्र े० महावीर वि० का० प्र० श्रीधर्म घोष गच्छे श्री ज्ञान चंद्र सूरि शिष्ये श्री सागरचंद्र सूरिभिः ॥
( 410 )
सं• १४५८ ज्यैष्ठ वदि १२ शनो सूराणा गो० सा० अमर भा० अइहब दे सुत सा० ताला साल्हा श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ वि० का० प्र० श्रीधर्म घोष ग० भ० श्रीमलय चन्द्र सूरिभिः ॥
( 411 )
सं० १९८१ वर्षे वैशाष वदि ८ शुक्रे श्री उमेश वंशे मणी सा० पासढ भार्या पाहण देवी सुत सा० सिवाकेन सा० सिधा मुख्य 8 जिनोनुजैः सहितेन स्वयं यसे श्री आदिनाथ विंवं श्री अंचल गच्छेश श्री जय कीर्त्ति सूरीन्द्राणामुपदेशेन कारितं प्रविष्ठतं श्री संघेन ॥ शुभं भवतु सर्वदा सर्व कुटुम्ब ॥ श्रीः ।
ツ
( 412 )
सं० १५०७ वर्षे मार्गशिर सुदि २ शुक्रे श्रीमाल ज्ञातीय गोवलिया गोत्रे सा० हेमापु० -- वाल्हा उपा - उपदेशेन विमलनाथ विंवं का० प्रति० पवीर्य गच्छे श्री यशोदेव सूरिभि: ॥
----
1-7
J ( 413 )
सं० १५४८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ घेवरिया गोत्रे श्री माल बीलीज देवी गोवेद पु० षीमा पु० सा० सिंघण सुमेरू आत्म पुण्यार्थं कुंथुनाथ विंवं श्रीमल धार गच्छे भ० गुण कीर्त्ति सूरि प्रतिष्ठितं वा० हर्ष सुन्दर शिष्य उपदेशेन ।
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________________
(१०१)
'( 414 ) सं १५६२ वर्षे वैशाष सु० १० रवी श्रीमाल मउवीया गोत्रे सा० परसंताने सा० पहराज पुत्र सा० ईसरेण भा० तिलकू पु० त्रिपुर दास युतेन पार्श्वनाथ विंवं स्वपुण्यार्थं कारितं । प्र. श्री खरतर गच्छे श्री जिन विलफ सूरिप० श्री जिनराजसूरि प श्रीभिः॥
श्रीकुशलाजी का मन्दिर-रामघाट ।
। ( 415 ) सं० १३७८ ज्येष्ठ वदि ७ शुभ दिने श्रीषंडेरकीय गच्छे श्रीवाहड़ आर्य धीरु पु. धरा ---मयणल्ल---णिग भार्या केल्हंण सहितेन विंवं कारितं प्र० श्री सुमति सूरिभिः ।
.( 416 ) सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० गुरी उके० व० सा० रेडा भार्या रण श्री पुत्र पद सादा जीतकेन श्री अंचल गच्छेश श्री जय केसरि सूरीणामुपदेशेन श्री संभवनाथ विवं का० प्रतिष्ठितं च ॥श्री॥
/( 417 ) सं० १५.६ वै० वदि० ११ शुक्रे श्री कोरंट गच्छे श्री नवाचार्य संताने उवएश वंशे डागलिक गोत्रे साह धनापु० स० पासवीर मार्या संपूरदे नाम्न्या निज अयो) श्रीकुंथनाथ विवं कारापितं प्र० श्रीकक्क सूरिप सद गुरु पक्रयर्ति महारक श्री सावदेव सरिमिः।
/ ( 41 ) सं० १५१९ वर्षे आषाढ़ वदि १ मंत्रिदलीय काणा गोत्रे ठ० नाग राजसु० लडू भार्या धर्मिणि सु० सं० श्री केवल दास मार्या वीर सिंघि पु० स. सूर्यसेन श्रावकेण श्री कंथुनाथ विवं कारितं० प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिन सागरसूरि पह श्रीजिन सुन्दर रारि पह श्री जिन हर्ष सूरिभिः॥
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( १०२ )
419 )
सं० १५१९ आषाढ़ वदि - मंत्रि दलीय श्री काणा गोत्रे ठा० लाघू भा० धर्मिणि पु० स० अचल दासेन पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेनादि युतेन श्री आदि विंवं का० प्र० जिन भद्र सूरि पट्ट े श्रीजिन चंद्र सूरिभिः श्री खरतर गच्छे ॥ श्रोः ॥
420)
सं० १५३६ वर्षे वै० वदि ११ ओसवंशे साह शिवराज भा० माणिक सुत देवदत्त भा० रूपाई सुख साह कर्म सिहन भार्या हंसाई स्वकुटुम्व युतेन स्वश्रेयसे श्री संभवनाथ विंवं का० प्र० वृद्वतपापक्षे श्रीउदय सागर सूरिभिः श्री मंहुपे ।
( 421 )
सं० १५०० वर्षे माह सुदि ११ रवौ उपकेश वंशे छजलाणी गोत्रे साह श्री पाल भार्या सुहवदे पु० सा० ऊधा सा० जोधा ऊधा भार्या उमादे प्रमुख कुटुम्ब सहितेन श्री चंद्रप्रभ स्वामि विंवं कारितं नागुहरी तपागच्छे श्री सोम रतन सूरि प्रतिष्टितं तिजारा नगरे ॥
प्रतापसिंहजी का मंदिर । √ ( 422 )
सं० १५२० वर्षे पोष सुदि १३ शुक्रे श्री ब्रह्माण गच्छे श्री श्रीमाल ज्ञातीय श्रे० मंडलिक सुतकामा भार्या कामीदे सुत झाकण नगराज रत्ना सहितेन आत्म श्रेपोर्थं श्री नमिनाथ विवं का० प्र० श्रीशील गुण सूरिभिः पाटरी वास्तव्यः ।
/ ( 423 )
सं० १५४८ वर्षे वैशाष शुदि ३ गुरौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय श्रे० वीरम सु० वेला मातर भार्या सोही सु० महिराज जिणदास महिपति लहूआ कुटुम्ब युतेन आत्म श्रेयोर्थं श्री श्रेयांस विंवं आगम गच्छे श्रीसोम रत्न सूरि गुरूपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना घांदू वास्तव्यः ॥
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( १०३ )
सिंहपूरी ।
/ ( 424 )
सं० १५३४ वर्षे मार्ग सुदि १० शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय सा० राज भार्या वारू पु० सा० असपति प्रा० असल देवी माई सुत गुणराज सरादि कुटुम्ब युतेन श्री मुनि सुव्रत विव कारितं प्रतिष्ठतं श्री वृहत्तपाच्छे श्री उदयसागर सूरिभिः ।
V (425)
चरण पर ।
सं० १८५७ मिति चैत्रक मासे कृष्ण पक्ष षष्ट्यां कर्म्मवा-पूज्य महारक श्रीजिन हर्ष सूरि विजयराज्ये श्रीसिंहपूर ग्रामेतेषां केवलोत्पत्ति स्थाने गांधि गोत्रीय मयाचंद प्रमुख समस्त श्रीसंघेन श्रो श्रेयांसाख्या नामेकादशानां लोक नाथानां पादन्यासः कारितः प्र० श्री जिन लाभ सूरिणां शिष्यैः उपाध्याय श्रीहोरधर्म गणिभिः खरतर गच्छे ।
मिर्जापुर |
पञ्चायती मन्दिर | /426
)
श्री पार्श्वनाथ विंव पर ।
सं० १३७९ वर्षे उएसज्ञातीय वावेला गोत्रे देवात्मज सा० घीका पुत्र संघपति झाझा सुत सा०- जूकेन पितृ श्रेयसे का० प्रति० श्री कृष्णर्षिगच्छे श्री प्रसन्न चंद्र सूरिभिः ॥ J (427)
श्रेयसे
सं० १४२० वर्षे वैशाष शुदि १० शुक्रे श्री श्री मालज्ञातीय ठ० वीजा भार्या मोहनदेवि सुत 'जोलाकेन श्री पार्श्वनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं त्रिभवीया श्रीधर्मदेवसूरि संताने श्रीधर्मरत्न सूरिभिः ॥
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(१०४)
“( 428 ) सं० १४८२ २० वैशाष वदि १ प्र० फूलर गोत्र सा. लाहड भा. वाहिणदे पु० महिराज जिनपितव्य सोमसिंह आत्म ० श्री वासुपूज्य विवं कारितं प्र० श्री धर्मघोष गच्छे श्रो मलयचद्र सूरिप प्रोपद्मशेखर सूरिभिः । छः। श्री ॥
( 29 ) सं० १४६० व० वैशाष वदि कंठउतिया गोत्रेसा० कमसिंह पुत्र ढालण तत्सुताभ्यां स्वपूर्वज पूण्यार्थं श्रोjथु विवं कारितं प्रति श्रीहेम हंस सूरिभिः ॥
-( 450 ) सं० १४८१ वर्षे फागुण सुदि २ सोमे श्री श्री माल ज्ञा० श्रे० देवस सुतवाछा मा० जसमादे सुत रागा भीमा षीमाभिः भ्रातषेता तथा पित्रोः श्रेयसे श्रीवासुपूज्य विवं का.प्र. श्री पोपलगच्छे श्री सोमचन्द्र सूरिप४ श्री उदयदेव सूरिभिः।
7 ( 431 )
___ सं० १५१८ वर्षे माघ सु०४ रवी उपकेश ज्ञा० व्यव० गोष्ट सा० माडण भा० मोहणि पु. काल्हा भा. मालूरूपी सहितेन ॥ पित्रो श्रेयसे श्री नेमिनाथ विंवं कारित प्रतिष्ठितं पूर्णिमापक्ष जयचंन्द्र सूरिपट्टे श्रीजयभद्र सृरिभिः॥:॥
/ ( 432 ) सं० १५२९ वर्षे माह व० ६ रवी उप. ज्ञातीय कठउड़ गोत्रे सा० बरसा भा० माल्ही पु० रामा भाडा राजा चांदा मा० मरधू पु० जीपा समस्त कुटु वेन पितृ श्रेयर्थं श्रीचन्द्रप्रास्वामि विवं कारा. प्रसि० श्री चैत्रावाल गच्छे भ. श्री सोमकीर्ति सूरिभिः सद्रंछलिया नगरे।
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( १०५)
( 433 ) श्री मत्संवत १६७१ वर्षे वैशाष सुदि३ शनी श्री आगरा वास्तव्योसवाल ज्ञातीय लोढा गोत्रे गावं-ज्जा स० ऋषभदास भार्या रेषश्री सत्पुत्र श्री कुरपाल सोनपाल संघाधिपे स्वानुवर दुनोचंदस्य पुण्यार्थं उपकाराय श्री अंचलगच्छे पूज्य श्री ५ कल्याण सागर सूरिणामुपदेशेन श्री आदिनाथ विवं प्रतिष्ठापितं ॥
( 434 )
सं० १८७७ मि. फा० शु० १३ श्री कुंथुनाथ जिन विंव दू० विसनचंदन कोरितं प्रतिष्ठितं श्री जिनहर्ष सूरिमिः ॥
( 435 ) सं० १८९७ फा० शु०५ श्रीपार्श्वनाथ वि० प्र० श्री पार्श्वनाथ वि०प्र० श्री जिन महेन्द्र सूरिण्युपदेशेन कारिता। सेठ उदयचन्द धर्म पत्नी महाकुमारिभिदया। वाचनाचार्य श्री चारित्र नन्दन गणिभिर्देश---
( 436 )
सं० १८८७ फा० सु० ५ श्री आदिनाथ विवं प्र. श्री जिनमहेन्द्र सूरिणा का. वोहरा नाथूराम पत्नी साहवां नाम्न्यात्म श्रेयसे वाचक चारित्र नन्दन गण्युपदेशतः॥
सेठधनसुखदासजी का मंदिर।
( 437 ) सं० १४९३ वर्षे माह वदि १ वुधे श्री श्रीमाल ज्ञातीय व्य. नरपाल मार्या नयणादे सुत देपाकेन श्रीपद्मप्रभ विवं कारितं प्रतिष्टितं।-- गच्छे श्रीगुणदेवसूरिभिः॥
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( १०६)
( 438 )
सं. १५३३ वर्षे माह सुदि १३ सोमदिने वघेरवाल ज्ञाती राय भंडारी गोत्रे सा. सीहा मा. पूरी पुत्र ठाकुरसी भा० मह पुत्र आका आत्मपूजार्थं श्री आदिनाथ त्रिंवं करापितं श्रोसर्व सूरिभिः शुभं भवतु ॥
( 439 ) सं० १८७७ वै० सु० १५ श्रीपार्श्वविबं प्र. जिन हर्ष सूरिना कारित। छजलानी चतुर्भुज पुत्र्या दोपो नाम्न्या चोरडिया मनुलाल वधू --
( 40 ) सं० १८८७ का• भु० ५ श्रीपार्श्वविवं प्र० श्रीजिन महेन्द्र मूरिणा का० । सकल श्रोसंधै।
देहलि बा दिल्ली सहर । यह भारतवर्षका एक प्राचीन स्थान है । कुरु पांडवके समयमें यही 'इंद्रप्रस्थ' था। हिन्दुराजा पृथ्वीराजकी राजधानी थी। मुसलमानों के समयमें बहुत काल तक यह राजधानी रही। कुछ दिनसे अपने सरकार बहादुरने भी दिल्लीमें भारतकी राजधानी स्थापनकी है और आज कल उन्नतिपर है, यहां से १ कोस पर आचार्य महाराज श्रोजिन कुशल सूरिजीका स्थान है जिस्को छोटे दादाजी कहते हैं और ७ कोसपर प्रसिद्ध कुतुब मिनारके पास बड़े दादाजीका स्थान है वहां कोई लेख नहीं है।
चेलपुरी का मंदिर। धातुयोंके मूर्तिपर
| ( 41 ) सं० ११६३ मार्गशिर सुदि १ ओं गागसादेव धर्मोयम्--(आगे अक्षर अस्पष्ट पढ़ा नहीं जाता)
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(१०७) ( 449)
सं० १५१६ वर्षे जे०३० ११ शुक्रे सोमसर पासि उकेश सा. मेहा भा० माल्हणदे पुत्र सधाकेन भा० सल्ही प्रमुख कुटुम्बयुतेन श्री कंथनाथ विंव कारितं प्रतिष्ठितं-- श्री कक्क सूरिभिः॥ सचितीगोत्रे॥
'( 443 )
सं० १५२१ वर्षे माघ सुदि १२ युधे लोढ़ा गोत्रे सा. हरिचन्द गोगा गोरा संताने साधु आसपाल पुत्रेण सं तेजपालेन पुत्र परवत सांडादि युतेन भात पूनपाल पुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथ विवं कारितं प्रतिष्टितं तपागच्छे श्री हेमहंस सूरि प० । श्रीहेम समुद्र सूरिभिः॥
(4) संवत १५२१ व० माघ सु० १३ प्राग्वाट ० कटाया भा० रांउ सुत धुना मा० हमकू सुत चांपाकेन भा. धर्मिणि नामाणिकादि कुटुंवयुतेन स्वश्रेयोथै नेमिनाथ विवं कारितं प्रति तपागच्छे श्री लक्ष्मी सागर सूरि श्री सोमदेव सूरिभिः अहमदावादे।
V ( 445 ) सं० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दिने उकेश वंशे साधुशाखायां सा• पाचाभा०पाल्हपदे तोल्ही सा. देपा मा. जयती पुत्र सा० ताकेन तोल्ही पुत्र झांकां जाल्हा रूपा चांपा चरमा युतेन सा० पोपा पुण्यार्फ श्री मुमि सुव्रत का० प्र० खरतर गच्छे श्री जिन चंद्र सूरिभिः।
सं० १५३६ माघ शुदि ५ दिने प्राग्वाट ज्ञाति सा० काजा भा० सारू पुत्र सा. हापा केन भा० नाई प्रमुख कुटुंवयुतेन श्री चन्द्रप्रभ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सपागच्छे श्री ५ लक्ष्मी सागर सूरिभिः।
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(१०८)
( 447 ) संवत १५६० वर्षे ज्येष्ठ वदि दिने श्रीमाल वंशे सिंधुड़ गोत्रे व० अभय राज मार्या आमलदे पुत्र चउ० ठकुरसीहेन भा० ठकुरादे पुत्र व. भारमल्ल प्रमुख परिवृतेन श्री आदि जिन विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखतर गच्छे श्री पूज्य श्री जिनहंस सूरिभिः ।
___V ( 448 ) सं० १५६६ वर्षे फागुण सुदि ३ सोमे ब्रह्माणीया गच्छे बहुरा हीरा मा. हीरादे पु० जीदा सोमा रूपा पुण्यार्थं श्री शांतिनाथ विवं का. प्रतिष्ठितं श्री गुणसुन्दर सूरिभिः अहिलाणी।
V ( 449 ) ॥ श्री पार्श्वनाथ स. १६०५ फागुन सुदी दसमी चरवडिया गोत्रे गागपत्नी स्वरमिनी पुत्र पेतु लघु प्रनमल गुरु श्री जिन भद्र सूरि रुद्रपलो गच्छे १० श्री भातिलक सूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री समेत सिषर।
( 450 )
सं० १६१२ वर्षे ज्येष्ठ सु० ११ शनी उकेशवंसे----।
J( 451 ) सं० १६६० वर्षे फागुण वदि ५ गुरुवासरे महाराजाधिराज महाराजा मानसिंघ जी राजे श्री मूलसंचे आम्नाये वलात्कार गणे सरस्वती गच्छे कुंदकुंदाचार्यन्वये १० श्री बिई कीर्ति स्तदाम्नाय पंडेलवालान्वये पोस ॥सं श्री होला भा० कोसिगदे पु० भ० श्री कचराज भा० उमदे कोउमदे गुजरि पु० २ थातु दानु स० श्रीरायत मा. रयणदे---पु. हरदास ---भा० महिमादे लाड़मदे --।
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________________
( १०६ )
" ( 4se ) सं० १९७७ मार्ग शु०-रवी श्रीमाल ज्ञातीय सा. तेजसी नाम्ना श्रीपार्श्व विवं का प्र. तपा गच्छे श्री विजयदेव सूरिभिः ॥
( 453 ) सं० १६८१ व० फा० शु० १० १० चंद्रकीर्ति प्र. अग्रवाल ज्ञाती गोयल गोत्रे सा० नीमा भा० सरूपादे।
/( 454 )
नवपदजी पर।
सं० १८५१ वर्षे कार्तिक मासे कृष्णपक्ष प्रतिपदा तिथौ गुरुवासरे- - सुभावक पुन्य प्रभावक देव गुरुभक्ति कारक फतेचन्द भार्या विदामो तत्पुत्र वस्तिरामजी॥ श्रीमाल ज्ञाती।
नवघरेका मन्दिर।
मूलनायक श्रीसुमतिनाथजीके विंव पर।
( 455 )
संवत १६८७ वर्षे ज्येष्ठ शुक्ला १३ गुरौ मेरुता नगर वास्तव्य दुहाड गोत्रे सं० जयराव भा० सोभागदे पु० सं० ओहणकेन श्रीसुमतिनाथ बिंव का०प्र० सपागच्छे भ० श्री विजयदेव सूरिभिः आचार्य श्री विजयसिंह सूरि परिवृत्तिः ।
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( ११० )
सर्व धातुयों के मूर्तियों पर ।
J
आं। संवत ११ ९७ वैशाष सुदि ५ श्री चंद्रप्रभाचार्य गच्छे सतु श्री वि--- ।
J (457)
( 456 )
संवत १२८० वर्षे - - सांडा प्रणमंति ।
————
( 458 )
सं० १३३१ ० ० २ हल -
सं० १४४५ पौष शुदि १२ बुधे ऊ० विंवं कारापितं प्र० ऊ० गच्छे श्री सिद्ध
J
1
459 )
सं० १४३३ आषाढ शु० -- प्रा० लघु व्य० आसा भा० ललतदे-- श्री पार्श्वनाथ वि० काo श्री गुणभद्र सूरीणामुपदेशेन ।
(460)
० जोला भा० : सूरिभिः
।
हीरी पुत्र लालाकेन श्री शांतिनाथ
| ( 461 )
सं० १४५४ वर्षे मोठा गोत्रे उ० ज्ञा० सा० पोपा भा० पाषी पुत्र लाषाकेन स्वपुत्र वीसल श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विंवं का० श्रीरुद्रपल्लीय गच्छ सुभिः प्रतिष्ठितं श्रीदेव सुन्दर सूरिभिः ।
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० १४६३ बै०
सं०
शु० १०- - सा
( १११ )
(462)
(463)
सं० १४७१ माघ शुदि १० रवी प्राग्वाट ज्ञातीय साः रामा झा०-- ठाकुर पितृ श्रेयोर्थं श्री आदि नाथ लक्ष्मी
---1
J (464)
सं० १४७२ वर्षे फागुण सु० ६ शुक्रे ऊ० ज्ञा० सा० तिहुणा भा० तिहुणाांसोर पु० चाहड़ भा० केल्हु पु० हापा भा० तेजू पु० करमोकेन पितृ - - श्री पद्मप्रभ वि० का० प्र० श्री संडेर गच्छे श्री श्री यशोभद्रसूरि सं० श्री शांति सूरिभिः ॥
(465)
सं० १४७९ वर्षे माघ सु० ४ दिने सा० धरणा पुत्र संग्राम समरासिंघ श्रावकः श्री महावीर विंवं पुण्यार्थं कारिते प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरिभिः ॥
(466)
सं० १४८२ वर्षे माह सुदि ५ सोमे नाहर गोत्रे सा० छाडा पु० जयता भार्या साल्ही पुत्र घोषाकेन पित्रो श्रेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ विं० का० प्र० श्री धर्म घोष ग० श्री धर्म घोष ठाo श्री मलयचन्द्र सूरि पह श्री - - देव सूरिभिः ।
J(467)
सं• १४८२ वर्षे माघ सु० ५ सोमे ऊ० ज्ञा० पालडेचा गोत्रे सा० टापर भा० तेजलदे पु० अगड़ाकेन भा० सहितेन पित्रो स्वश्रेय० श्री वासुपूज्य वि० का० प्र० श्री सुविप्रभ सूरिभिः श्री वोरभद्र सूरि सहितेन ॥
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(११२) (468 )
सं० १४८३ फा० २०११ ऊ. ज्ञा० टपगोत्रे व्यव. रूपा भा. रूपाई पु. कालू पाचाभ्यां भ्रा० अदा भा० आल्हणदेविः श्री पद्मप्रभ वि. का. प्र.श्री संडेर गच्छे श्री शांति सूरिभिः॥
'( 469 ) सं० १४८६ वै. शु०-प्राग्वाट सा० साजण भा० लाष पुत्र केल्हाकेन भा. लक्ष्मी भ्रात भीम पदमदि कु० यु० श्री धर्मनाथ विवं कारितं प्रति० तपा श्री सोमसुन्दर सूरिभिः श्री-५।
( 470 )
सं० १४८६ वर्षे जेष्ठ सु० १३ सोमे श्री दूगड़ गोत्रे सं० सिवराज भार्या सीधरही पुत्र सा. मोहिल धण राजाभ्यां पितुः श्रेयसे श्रीअजितनाथ वि. का. प्र. वृहडा० श्री मुनिश्वर सूरि पह श्रीरत्नप्रभसूरिभिः ।
( 41 ) सं० १४९६ व फा०व०२ उपकेश ज्ञातौ आदित्य नाग गोत्रे सा० देसल मा. देसलदे पु० धमी भा० सुहगदे युतेन स्व श्रे० श्री आदिनाथ विवं का० उपकेश ग० ककुदाचार्य सं० प्रति० श्री कक सूरिभिः।
( 472 )
सं०१५०४ वर्ष आ. सु०६ श्री मूलसंघे भ० श्री जिनचंद्र देवाः जैसवालान्वये सा०लर भार्या रैनसिरि तत्पुत्र सोनिग भार्या प्रेमा प्रणमति।
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( ११३)
"( 473 ) सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सु०२ दिने उकेश वंशे नाहटागोत्रे सा. जयतामार्या जयसलदे तत्पुत्र सा० संगरेण पुत्र सलषा अजादि परिवार युतेन श्री सुमतिनाथ वि. का. प्र. श्री जिन भद्र सूरिभिः खरतर गच्छे ।
"( 474 ) सं० १५०७ वर्षे माघ सु० १३ शुक्रे अवाणागोत्रे उदा भार्या लावि पु. देवराजेन स्व पुण्यार्थं श्री वासुपूज्य वि. का. प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्री पदमसिंह सूरिभिः।
*( 475) सं० १५०७ वर्षे वै० ५० ५ दिने ऊकेश ज्ञात । सा० चापा मा. चापलदे सुत गंगव केन भा. वापू सु० चांईयादि कुटुम्ब्युतेन श्री पार्श्वनाथ वि० का०प्र० तपगच्छेश श्री जयचन्द्र सूरि शिष्य श्री उदयनंदि सूरिभिः । कायषा ग्राम।
( 476 ) सं० १५०७ वष वैशाष वदि ६ गुरौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय अ० वोडा भा० कुतिकदे तयोः सुताः ० भार्या समरानायक पांचा एतेषां मध्ये ० भादा भा० शवकूकेन आत्म श्रेयो) श्री मुनिसुव्रत स्वामि विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री आगम गच्छे श्री शीलरत्न सूरिभिः गीलीषा वास्तव्यः।
(477 )
सं० १५०७ वर्षे फा० सु०- सं० हमा पायपुत्र सा० सारंग भार्या मचकु पुत्र नाथा भाडादि कुटुम्ब युतेन श्री सुपार्श्व का. तपा श्री सोम सुन्दर सूरि शिष्य श्री रत्नशेषर सूरिभिः।
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( १९४)
। ( 478 )
संवत १५१२ वर्षे फा० शु० १२ दिने लोढा गोत्रे स० पासदत्त भार्या अपूर्द तत्पुत्र सा. कमलाकेन पुत्र जावा गोरादि परियुतेन भेयसे पुण्यार्थं श्री अभिनन्दन कारित ओखरतर गच्छे श्री जिनराज सूरि पहे श्री जिनभद्र सूरिभिः ॥ श्री ॥
( 479 ) सं० १५१३ वर्षे फा० षदि १२ ऊ• ज्ञा० सोधिल गो. रणसीपु. गहणा पु० वील्हा मा० जसमी पु० सादाकेन मा. चांदा सहितेन पित पुण्यार्थं श्री कंथनाथ विका०प्र० श्री संडेगच्छे श्री यशोभद्र सूरि संताने श्री श्री ५शांति सूरीणां पह श्री ईश्वर सूरिभिः शुभं भूयाः॥
( 480 )
सं० १५१५ वर्षे माघ सु० १४ दिने ऊ० ० जांगड़ा गोत्रे सा० काल्हा भार्या कवकू सुत सा. रुपाकेन सपरिवारेण श्री सम्भवनाथ विवं कारितं प्रतिष्टितं श्री ष. ग. श्री जिन सागर सूरि पहें श्री जिन सुन्दर सूरिभिः ॥
( 481 )
सं० १५१५ व० मा० सु० १ शुक्र श्री श्रीमाल ज्ञा० अ० गूगा भार्या लालू पुत्र जीवण केन पितृ मातृ निमित्तं आरमश्रेय्ये) श्री धर्मनाथ वि० प्र० श्री नागेंद्र गच्छे श्री विनय प्रभ सूरिभिः काकरवास्तव्य।
J ( 482 ) सं० १५१६ वर्षे वैशा० शु० १३ हस्तार्क दिने महतिआण सा. सुरपति मा० त्रिलोकादे पुच्या सा० ग्यान भगिन्या सा. चाचिंग मार्या नारंगदेव्या श्री अजित विवं का. प्र. श्री खरतर गच्छे श्री जिन सागरसूरिप श्री जिनसुन्दर सूरिमिः ॥ श्री॥
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(११५)
- ( 483 )
सं० १५१७ वै० शु०८ प्रा० सा० देपाल सु० हउसी करणा मा० चन्हडा धर्मा कर्मा हासा काला भ्रातृ हीराकेन भा० हीरादे सुत अदा बरा लाजादि कुटुंवयुतेन श्री शांतिनाथ विवं का० प्र० तपा श्री सोमदेव सूरि शिष्य श्री रत्न शेषर सूरि शिष्य श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः ॥ कमल मेरू।
- ( 484 ) सं० १५२५ वर्षे मा० शु० ६ सीणुरा वासि प्रा० सा. राजा भा० स्या पूरि पु० तोपाकेन भा. रानू पुत्र सधारण हीरायतेन श्री पद्मप्राविवं स्वयसे का० प्र० सपा श्री सोम सुन्दर सूरि शिष्य श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः॥
- ( 435 )
सं० १५३० फा० शु०२ गोखरू गोत्रे सा० पासवीर भा० कुडी नाम्न्या पुत्र साधारण पुत्र देवा सब-युत श्री मुनि सुव्रत स्वामि विवं का. प्र. तपा गच्छनायक श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः ॥ वहादुर पुरे॥
( 486 )
सं० १५३४ वैशाष सुदि ५ गुरौ---सिवो पुत्र काला सिरिपुत्र--
J ( 487 ) सं० १५३५ श्री मूलसंघे १० श्री भुवन कीर्ति स्र० स० श्री ज्ञान भूषण गुरूपदेशात् ॥ साषेतसी मा० शबूः।
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( ११६ )
( 488 )
सं० १५३६ वर्षे फा. सुदि ३ दिने उकेश वंशे श्रेष्ठि गोत्रे श्री कीहाट भार्या लषी पुत्र देवण मांडण धर्मा श्रावकैः श्रे० देवण मार्या दाडिमदे सुत समरादि परिवार युतैः श्री धर्मनाथ विवं प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिन भद्रसूरि पट्टालंकार श्री जिन चंद्र सूरिभिः।
( 459 )
सं० १५३७ वर्षे वै० शु० १० सोमे उमापुरवासि उ० व्य० महिराज भा०माणिकदेसु० श्रीपाल सहिजाभ्यां भा० सुहवदे। अदादि कुटुंवयुताभ्यां श्री वासुपूज्य वि. का. प्र. श्री लक्ष्मी सागर मूरिभिः।
( 490 ) सं० १५४५ वर्षे वैशाष वदि जडिया गोत्रे स. नासण पु० स० षिमघर नोकापोमा पागा पहिराज आढू लाल्ला लेषसी पितरनिमित्त श्री शांतिनाथ वियं कारापितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे भहारक श्री सोमरतन सूरिभिः॥
( 491 ) सं० १५४८ ज्ये. वदि ६ बुधे १० श्री हेमचन्द्राम्नाये स० नगराज पु. दामू भा० स० हंसराज हापु---।
( 492)
संवत १५५१ वर्षे वै० सुदिर रवी उपकेश ज्ञातीय नाहर गोत्रे सा० लाषा भार्या सोहिणी पु० चांपा आय पौत्र पुत्र पौतादि सहितेन आत्मपुण्यार्थं श्री धर्मनाथ विवं का० श्री धर्मनाथ विवं का० श्री धर्मघोष गच्छे प्र० श्री पुण्यवर्द्धन सूरिभिः।
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( ११७)
( 493 ) संवत १५५३ वर्षे सिवनाग्राम वास्तव्य श्रीमाल ज्ञातीय वहकटा गोत्रे सा० जयत कर्ण सुत सा० जिणदत्त पुत्र सो० सोनपाल सुश्रावकेण भा. गउराई लघु भ्रात रत्नपाल पृथ्वीमल्ल सस्री केण श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्री जिन चंद्र सूरि पह श्री जिन समुद्र सूरिभिः ॥
V1494 )
सं० १५५३ व. आ. सु० २ रवी श्री श्रीमाली ज्ञातीय सा० सीधर भा० सोही सुत सा० जूठा सा० संधा सा० भ--इ सा. पावाकै सा. जावड वचनेन श्री पार्श्वनाथ विंवं का. प्र. मलधार गच्छे श्री सूरिभिः। सर्वेषां पूजनार्थं ॥
( 495 )
सं० १५५६ वैशाषवदि १३ श्री मूलसघे पंडेलवाल सा. देवा पुत्र परवत नित्यं प्रणमति गोधा गोत्र।
( 496 ) सं० १५५६ व. पोस वदि ४ दिने गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीय सा. राजा भा० राजलदे पु. पोमा भा० झमकू सु० श्रेयो) श्री वासपूज्य विवं का० प्र० महाहडीय गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीमति सुन्दर सूरिभिः दधालीया वास्तव्यः ।
- ( 497 ) सं० १५६२ व० वै० सु. १० रवी श्री उकेश ज्ञातौ श्री आदित्यनाग पौत्रे चोरवेडिया शाषायां व० डालण पु० रत्नपालेन स० श्रोवत व० घघुमल्ल युतेन मातृ पितृ श्री. श्री संभवनाथ वि० का० प्र० श्री उकेश गच्छे ककदाचार्य श्री देव गुप्तसूरिभिः॥
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( ११८ )
' ( 498 ) सं० १५६२ वर्षे वैशाष शु. १३ बुधे श्री श्री मालीज्ञातीय सा० पूजा मात्र मूजा मा. विमलाई श्री मुनि सुब्रत स्वामि विवं कारापितं-श्री साधुसुन्दर सूरि प्रतिष्टितं ॥ श्री लपराज श्री अभयराज ॥
1. ( 499 )
सं० १५६८ वर्षे माह सुदि १ दिने उकेशवंशे नाहटा गोत्रे सा० राजा आ. अपू पु० सा० पीम भार्या रत्त पु० श्रोपाल नायूभ्यां मातृ पुण्यार्थं श्री चंद्रप्रभ विवं का० प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिन हंस सूरिभिः ॥
( 500 )
सं० १५७४ वर्षे माह सु० १३ शनी उ४ वं० पमार गोत्रे स. वक्रामा० वुलदे पु० सा० पतोला श्री अंचल गच्छेश भाव सागर सूरीणामुपदेशेन ।
( 501 )
सं० १५९८ वर्षे वै० सु० ५ गुरौ श्री रुद्र पल्लीय गच्छे अ० श्री गुण सुन्दर सूरि शिष्य उ० श्री गुणप्रम -- श्री आदि नाथ विवं का० प्रतिष्ठितं ।
(502 )
सं० १६०८ वर्षे वैशाख सु० ३ सोम श्री मलसंघे सरस्वती गच्छे १० श्री ज्ञान भूषण देवा स्तत्पदे भ. श्री विजय कीर्ति देवास्तत्पह महारक श्री शुभचंद्रोपदेशात् हूंवड़ ज्ञातीय गंगागोत्रे। सं। धारा। भार्या सं ॥ धारु सुत सं० डाईआ भार्या सिरिक्षमणि । सुतसा० श्री पाल श्री शांतिनाथ विंवं कारापितं नित्यं प्रणमंति॥
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( ११९ )
( 503 )
सं० १६१८ सिंघुड़ सा० गोपी भार्या विमला सुत घणराजेन कारितं ।
( 504 )
सं० १६४३ वर्षे फाल्गुन सु० ११ गुरु प्रा० ज्ञा० से विधोगा भार्या वाई पूराई सुत देवचन्द भार्या वाई हासी सुत रायचन्द भीमा श्री शीतलनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं वृहत्तपा गच्छे श्री विजयदान सूरि तत्प? श्री हीर विजय सूरि आचार्य श्री विजयसेन सूरि श्री पत्तन वास्तव्यः।
( 505 )
सं. १७०० फा० सु० १२ श्री मल स. स्वर० गच्छे व. ग. श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये सं० सांवल । साकार-साहमल अ-जा। गा---।
( 506 )
सं० १७०१ व मार्ग व० ११ दिने श्रीमाल ज्ञाती वाई गूजरदे सुत स. हीगणंद भा. सबरंगदे श्री पद्मप्रभ विः का० प्रति. सपागच्छे श्री विजयसिंह सूरिभिः आगरा वा०
चीरेखानेका मन्दिर ।
( 507 )
सं० १४८६ वर्षे पौस वदि १० गुरौ श्री हुंबड़ज्ञातीय श्रे० उदवसीह भार्या वईराऊ तयोः पुत्र तथा दोहीदासुत दोगा--पत्नी वई चमक नाम्न्या आत्म श्रेयसे अजितनाथ -- विवं कारापितं श्रीवृहत्तपा पक्ष श्री रत्न सिंह--।
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( १२० )
(508 )
सं० १४९२ वैशाख सुदि२--ओसवाल ज्ञातिय भरि गोत्रे-- श्रीश्रेयांस विवं का. प्र. श्री धर्मघोष गच्छे श्री श्री महेन्द्र सूरि प्र. --।
(509 )
सं० १५०६ माघ सुदि ५ श्री जकेश वंशे चोपड़ा गोत्रे सा० ठाकुरसी सुत सा० कालू केन पुत्र मेघा माला नाल्हा पौत्र सुरजन प्र० परिवारेण स्वयोर्थं श्री विमल विवंका. श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
(
510)
सम्बत् १५१७ वर्षे फाल्गुण सुदि ६ गुरौ श्री श्री माल ज्ञातीय मंत्रि पोपा भार्या पाल्हणदे सुत मण्याकेन मार्या सोहासिणि सुत उधरण प्रमुख कुटुंव सहितेन मातृ पित श्रेयोर्थ आत्म अयोर्थं च श्री संभव नाथ चविंशति पह जीवत स्वामी नागेन्द्र गच्छे श्री गुण समुद्र सूररुपदेशेन आचार्य श्री गुणदेव सूरिभिः प्रतिष्ठितं च चिमणीया वास्तव्यः। श्री।
( 51 )
सं० १५-५ फा० वदि सोमे प्रा० ज्ञा० -- सा० घेरा भा० पूजी पुत्र पूना भा० ललतु पुत्र तोला पु० कर्मसिंह श्री संभव नाथ विवं कारितं प्र. श्रीसर्व सूरिभिः॥
(512 )
सं० १६०५ फागुण सुदि दशमि समेत सिखरे प्रतिष्ठितं मागपत्नी त्वरमिनी पुत्र षवू लघु एनमल गुरु श्रीजिन भद्र सूरि --
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( १२१ )
( 513 )
सं० १६६३ वर्षे ज्ये. १०८ श्रो-धर्मनाथ विंवं प्रति०-।
( 514 )
सं० १७०३ वर्षे ज्ये. व० ७ शुक्रे श्री आसवाई नाम्न्या श्री पार्श्व वि. का. प्र. तप० ग० श्री विजय देव सूरिभिः ।
( 515 )
सं० १७२५ वर्षे मार्गसिर सुदि ५ रवी श्री मालदास भार्या --पार्श्व वि० कारापित ।
( 516 )
सं० १८५२ पोस सु० ४ दिने वृहस्पति वासरे श्री सि० च० यं० मिदं प्र. लालचन्द गणिना कारितं जैनगर वास्तव्य श्री माल रत्नचंद टोडरमल्लेन श्रेयो)।
लाला हजारीमलजी का घर देरासर ।
( 517 )
सं० १२१४ आषाढ़ सुदि २ श्री देवसेन संघे स० रामचन्द्र भार्या मना-।
(518)
सं० १३०७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ गुरी--- सुहव भा० ---।
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( १२२)
( 519 )
ॐ संवत १३५० वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ श्रीषंडेर गच्छे श्री यशोभद्रसूरि संताने । अ० जगघर भार्या जमति पुत्र झांकण अरि सिंह लघुभ्राता अरिसिंहेन ज्येष्ठ भ्रातृ शांण श्रेयसे श्री अजितनाथ विंवं कारितं । प्र० श्री सुमति सारिभिः ॥
(520 )
सं० ११६६ माघ सु०६ सागरदास भार्या नालू -- ।
( 521 ) संवत १४८३ वर्षे श्री श्रीमाल ज्ञातीय वहरा धड़ला मार्या ललता देवि साविलीदास हीराकेन भार्या हीरा देवि स० संघ श्रेयसे श्री शांतिनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं । नागेंद्र गच्छे श्री रत्नप्रभ सूरि पर श्री सह दत सूरिभिः शुभं भवतु।
( 522 ) __सं० १४८६ वर्षे माघ वदि ११ बुध श्री देवीसिंग संघवो अ० कावा भार्या विजीपरनागड प्रणमति।
( 523 )
सं १६६१ व० चै० वदि ११ शु० सा० वदी या कारितं श्रीपार्श्व विवं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे । श्री जिनचंद्र सूरिभिः ।।
( 524 )
संवत १५६६ वर्षे ज्येष्ट सुदि ७ श्री माल ज्ञातीय सिंधुड गोत्रेसा. घोल्हरण पु. सा. छेयतन श्री श्रेयांसनाथ विवं कारितं प्र० श्रीजिनचंद्र सूरिभिः ।
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( १२३ )
( 626 )
सं• १९३५ वर्षे माथ कृष्ण पंचमी भृगो अहमदाबाद वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय वृद्ध शाषायां सा० हठी संघ केशरी संघ भार्या वाई रुकमणि स्वश्रेयोर्थं श्री शांतिनाथ विंव कारापितं भहारक श्रीशांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितं सागर गच्छे तपा वीरुटे ।
छोटे दादाजी का मन्दिर ।
( 527 )
संवत १८७१ वर्षे वैशाष शुक्ल पक्ष तिथौ ८ वुधे भहारक श्री जिन कुशल सूरि पादुका कारिता श्री स्याहजानावाद नगर वास्तव्य श्री संघेन प्रतिष्टितं च बृहद्धहारक खरतर गच्छीय श्रीजिनचंद्र सूरिभिः स्वश्रेयोर्थं श्रो मद्वादस्याह अकबर स्याह विजय राज्ये शुभं भूयात् ॥ संवत् १९०८ मिती चैत्र शुदि १२ सूर्य्यवारे श्रीजिन नंदि वर्द्धन सूरिभिः विजय धर्म राज्ये श्री दिल्लि नगर वास्तव्य सकल श्रीसंघेन जीर्णोधार पूर्वकं कारापितं पूज्या राधकानां मङ्गलमाला वृद्धितरां यायात् ॥ श्रीमान्माणिक्य सूरि शाखायां पाठक मति कुमार सच्छिष्य हर्ष चंदोपदेशात् ॥
( 528 )
॥ संवत १६२९ वर्षे वैसाष मास शुक्ल पक्ष ३ श्रीमाल ज्ञातीय धीधीद गोत्रे वखतावर सिंघकस्य भार्या महताव वोधी श्री शांतिनाथ विं० प्र० करापितं प्रतिष्ठितं वृहत् खरतर गच्छे श्रीजिन श्रीकल्याण सू० ।
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( १२४ )
( 529 ) श्री सं० १९७२ मिः माघ शुक्ल : शनिवासरे रंग विजय खरतर गच्छीय जं. यु. प्र. भ० श्रोजिन कल्याण सूरि चरण पादुका कारापितं । इंद्रप्रस्थ नगर वास्तव्य समस्त श्री संघेन प्रतिष्ठितं जं य० प्र. वृ. . रंग विजय खरतर गच्छीय श्री जिनचंद्र सूरि पदा श्रिते भ० श्री जिनरत्न सूरिभिः पूज्याराधकानां मंगल मासा वृद्धितरां यायात् श्री संघस्य शुभं भूयात् ॥ श्री॥
अजमेर।
यह भी प्राचीन नगर है। मुसल्मानोंके पूर्व में यहां श्री खरतर गच्छनायक महा प्रभाविक श्री जिनदत्त सूरि संवत् १२११ आषाड ११ देवलोक हुऐ।
श्री गाडी पार्श्वनाथका मंदिर। पंचतीर्थीयों पर।
( 530 ) संवत् १२४२ आषाढ़ वदि-गुरौ श्री यश सूरि गच्छे श्रे० नागड सुत आसिग तत्पुत्र राल्हण थिरदेव मातृ सूहपादि पुत्रैः आसग श्रेयो) पार्श्वनाथ विवं कारापिता।
( 531 ) संवत् १४८५ वर्षे ज्येष्ठ सु० १३ उप. ज्ञातीय तातहड़ गोत्रे सा. वीकम भा. देवल दे पुत्र रेडा भा० हीमादे पुत्र सुहड़ा भा० सुहडादे पु० संसारचंद। सामंत सोभा स० श्री सुमतिनाथ विं० श्री उपकेश गच्छे ककुदाचार्य स० श्री सिंह सूरिभिः।
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( १२५ )
(532)
सं० ० १५०७ वर्षे वैशाष वदि ३ गुरौ श्री श्री माल ज्ञातीय श्रे० चांपा भा० चापलदे तया सुता ० व्यधा बीघा विरा भार्या षीमा पूना भगिनी हरषू एतेषां मध्ये पूनाकेन स्वमातृ पितृ श्रेयसे श्री संभवनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः अष्टार वास्तव्यः ।
( 533 )
सं० १५१३ वै० सु० २ सोमे उसवाल ज्ञातीय छाजहड गोत्रे माघाहरू पु० रानपाल भा० कपूरी पुत्र - हारलण भा० सारतादे माता डासाडा सहितेन श्री शीतलनाथ विं० प्र० श्री पहिल गच्छे श्री यश सूरि ।
( 534 )
सं० १५१५ वर्षे फागुन सु. ९ वी ऊ० आईचणा गोत्रे सा० समदा भा० सवाही पुत्र दसूरकेन आत्मश्रेयसे सितलनाथ वि० का०- - प्रति० श्री कक्क सूरिभिः ॥
( 535 )
सं० १५२१ वर्षे ज्ये० शु० 8 प्राग्वाट सा० जयपाल भा० वासू पुत्र्या सा० हीरा भा० हीरादे पुत्र सा० माउण भार्या रंगू नामा श्रेयसे श्री सुमतिनाथ विंवं का० प्र० पापक्ष श्री रत्न शेषर पट्ट े श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः ।
( 536 )
सं० १५२१ वर्षे ज्येष्ठ सु० १३ गुरौ श्री राजपुर वास्तव्य श्री श्री मालज्ञातीय श्रे० सारंग भार्या मक्कू सुत लाईयाकेन भा० हीरू सुन गाईया गुदा प्रमुख कुटुम्वयुतेन भार्या श्रेयसे श्री संभवनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्तपा श्री उदय बल्लभ सूरिभिः ॥
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( १२६ )
( 537 )
संवत १५२५ वर्ष चैत्र वदि शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय श्र े० सोमा भा० सूहूला सुत सिवा भार्या सोभागिणि सुत् पद्मा भार्या पहती श्री सुविधिनाथ विंवं का० सद्गुरूप देशेन विधिना प्र० विंवं - ----छ॥
(538)
सं० १५२७ वर्षे पोष वदि १ श्री० प्राग्वाट ज्ञा० म० हेमादे सु० बईजा स्वसाकला नान्या श्री नेमिनाथ विंवं कारितं प्र० वृद्ध तपापक्ष भ० श्री जिन रत्न सूरिभिः ।
( 539 )
सं० १५२६ माह व० ५ बुधे श्री ओस वंशे धनेरीया गोत्रे साह माहड़ पुत्र वीका भार्या वील्हणदे पुत्रैः साह कोहा केल्हा मोकलाख्यैः स्वश्रेयसे श्रीधर्मनाथ विंवं का० श्री पल्लिवाल गच्छे श्री नन्न सूरिभिः प्र० ।
( 540 )
सं० १५७० वर्षे माघ वदि १३ बुधे श्री पत्तन वास्तव्य मोढ़ ज्ञातीय ठ० भोजा भार्या वाली सुत • ठ० रत्नाक्रेन भार्या रूपाई सुत ठ० जसायुतेन श्री आदिनाथ विंवं कारितं स्व श्रेयोर्थ श्रीवृद्धतपा पक्ष श्री रत्न सूरि संताने श्री उदय सूरिः ॥ श्रलक्ष्मी सागर सूरीणा पह प्रतिष्ठितं श्री धन रत्न सूरिभिः श्री रस्तु ।
(541)
सं० १६०३ वष आषाड वदि ४ गुरौ भिन्नमाल वास्तव्य म० देवसी भा० दाडिमदे पुत्र मानसिंघ भा० घेतखी युतेन स्वश्र यसे श्री वासुपूज्य विं० का० प्र० तपगच्छे भ० श्री ५ श्री विजयदेव सूरिभिः ।
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( १२७)
(542)
सं० १६८३ वर्षे आषाड़ वदि ४ गु० उसवाल ज्ञातीय वेद महता गोत्रे म० भयरव मा० भरमादे पुत्र मे० सुरताणाख्येन श्री सुविधिनाथ विंव का० प्र० तपा गच्छे १० श्री विजयदेव सूरिभिः॥
( 543 )
संवत १६८७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ गुरौ मेडता नागर वास्तव्य उस गोत्र को. जयता भार्या जसदे पुत्र को दीपा धनाकेन श्रीपार्श्व वि. का. प्र. तपा गच्छे अ० श्री विजय देव सूरिभिः स्वपद स्थापित श्री विजयधर्म-सू--।
श्री संभवनाथजी का मन्दिर ।
( 544 )
सं० १२६० माह सुदि १० अ० धन्नल सुत जैमल श्रेपोथं--कारितः ॥
(
545 )
सं० १३७८ वर्षे वै० वदि ५ गुरी प्राग्वाट ज्ञातीय महं कंधा आर्या --- पुत्र मालह श्री शांतिनाथ वि. का. प्र. श्री महेंद्र सूरिभिः ।
( 546 )
सं० १४८१ माघ शु. १. प्राग्वाट --- स्व श्रेयसे पद्मप्रभ विंवं का० श्री सोम सुंदर सूरिभिः।
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( १२८ )
(547)
सं• १४८९ वर्षे वैशाष सु० ३ रवौ रहूराठी (?) गोत्रे सा० वीजल भार्या विजय श्री पु० रावा ---- - श्रेयोर्थं श्री अजितनाथ वि० प्र० श्री धम--- - श्रीपद्म शेषर सूरिभिः ।
( 548 )
० ११८५ वर्षे माघ सुदि १४ बुधे लिगा गोत्रे सा० माला सागू युतेन सा० जील्हा केन निज पित्रोः श्रेयोर्थं श्री सुमतिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छे श्री हेम हंस सूरिभिः ।
( 49 )
॥ॐ॥ सं० १४८६ वर्षे माघ सु० ११ शनी श्री पंडेरकीय गच्छे उपकेश ज्ञा० गूगलीया गोत्रे सा० महूण पु० षोना पु० नेमा पु० नूनाकेन भा० लषी पु० करमा नाल्हा सहितेन स्वश्रेयसे श्रीमुनि सुव्रत विंवं का० प्रतिष्ठितं श्री शांति सूरिभिः शुभं भूयात् ॥ श्री ॥
( 550 )
सं० १४८८ वर्षे पोष सु० ३ शनौ उकेश ज्ञाती सीवट गोत्रे वेसटान्वये सा· दादू भा० अणुपदे पु० सचवीर भा० सेत पु० देवा श्री वंताभ्यां पित्रो श्रेयसे श्री विमलनाथ विंवं का० प्र० श्री उकेश गच्छे ककुदाचार्य संताने श्री सिद्ध सूरिभिः ।
( 551 )
सं० १४८० वे० सु० शनी श्री मूलसंघे नंदिसंघे वलात्कार गणे सरस्वती गच्छे श्री कुंद कुंदाचार्यान्त्रये भहारक श्री पद्मनंदि देवाः तत्पट्ट श्री सकल कीर्त्ति देवाः । उत्तरे
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( १२६ ) श्रख्योभि (?) हं. ज्ञातीय व आसपाल भा. जाणी सु० आजाकेन भा. मघूसुतविरुआ भात वीजा भा० वान सुत समधरादि कुटुंव युतेन श्रीपद्म प्रास चतुर्विशति पहः कारितः तंच सदा प्रणमति सुकुटुंवः।
( 552 )
सं० ११ १२ वर्षे मार्गशिर वदी १ गुरुवारे श्री उपकेश वंशे लूसड गोत्रे सा० देव राज भार्या हेमश्रिया पुत्र सा० वाहडेन आत्मा कुटुंव श्रेयो) श्री विमलनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीधर्म घोष गच्छे भ० श्रीपनशेखर सूरिभिः।
( 553 )
सं० ११९६ माघ सु० ५ प्राग्वाट व्य. धीरा धीरलदे पुत्र्या व्य. भीमा भावल दे सुसव्य० वेला पत्नया वीरणि नाम्न्या श्रीसंभव विवं का• प्र. तपा श्री सोम संदर सूरिभिः ॥श्री॥
( 554 )
सं० १५१६ वर्षे वैशाष वदि १२ शुक्रे श्री श्रीमाल ज्ञातीय पित सं० रामा मात्र शाणी श्रेयो) सुत सागाकेन श्रीश्री अभिनंदन नाथ विवं कारितं श्री पूर्णिमा पक्ष श्री साधुरत्न सूरिणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना श्री संघेन गोरईया वास्तव्य ॥
(555)
॥ १५१६ आषाड़ सु०५ ओष्ठ गोत्रे तीवा भार्या रूपा पु० तोल्हा तेजा ----- पद्मावति प्रणमंति।
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(556 )
सं० १५१७ वर्षे फागुन सुदि २ उकेश वंशे बहरा गोत्रे सा० सोढा मा० शाणी पु० नगाकेन भा० नायक दे पुत्र नापा गोपा प्र० परिवार सहितेन स्वपित मा० सोढा पुण्यार्थं श्री श्रेयांस विवं का० श्री खरतर गच्छे श्री जिन भद्र सूरि पर श्री जिनचंद्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
( 557 )
सं० १५१७ वर्षे माघ सु० ५ शुक्रे प्राग्वाट ज्ञा० श्री. डउढा भा० हरष सु. श्रे• नागा भा० आजी सुत श्रे. जिनदासेन स्व श्रेयसे श्रीधर्मनाथ विंवं आगम मच्छे श्रीदेवरत्न सूरि गुरूपदेशेन कारितं प्रतिष्टित ।
(558 )
सं० १५१९ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ शुक्रे उपकेश ज्ञातीय चोरवेडिया गोत्रे उएस गच्छे सा० सोमा भा० धनाई पु० साधू सुहागटे सुत ईसा सहितेन स्वश्रेयसे श्री सुमति माथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीकक्क सूरिभिः ॥ सीणोरा वास्तव्यः ॥
(559 )
सं १५२० वर्षे वै. शुदि ५ भौमे श्री ज्ञातीय श्री पल्हयउ गोत्रै सा० भीषात्मज सा० घेल्हा तत्पुत्र सा० सांगा---प्रभृतिभिः स्वपितृ पुण्यार्थं श्री आदिनाथ विवं कारितं । वृहद्गच्छे श्रीरत्नप्रभ सूरि पह प्रतिष्ठितं श्री महेंद्र मूरिभिः।
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( १३१ )
( 560 )
सं० १५२४ आषाढ़ शु० १० शुक्रे उक्रेश वंशे -- भा० संपूरा पु० जेसाकेन भा० धर्मिणि पु० माईआ पौत्र इसा वीसालादि कुटुंब युतेन पु० माझ्या श्रेयसे श्री नमि विंव का० प्र. तपा श्री सोमसुंदर सूरि संतान श्रीलक्ष्मी सागर सूरिभिः ।
(561)
सं० १५३२ वर्षे चेत्र वदि २ गुरौ श्री ओमाल ज्ञा० सं० जोगा भा० जीवाणि स० गोलाभा० कर्मी पु० नरवदेन श्री श्रेयांसनाथ विंवं कारितं श्री पूर्णिमा पक्षीय श्री साधु सुंदर सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना वलहरा ।
(562)
सं० १५३५ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रो उकेशवंश भ० गोत्रे स • नीवा भार्या पूजी सा० पूना श्रावण भातृ सजेहण मा० अंवा परिवार युतेन श्री सं१ त्रनाथ विंवं कारिल प्रतिष्ठित श्री खरतर गच्छे श्रीजिन भद्र सूरि पट्ट े श्री जिनचंद्र सूरिभिः ॥
( 563 )
संवत १५४७ वर्षे मा० वदि ८ दिने प्राग्वाट ज्ञातीय व्य० रूपा भा० देपू पुः मेरा भा० हीरू श्रेयोर्थं श्रो वासुपूज्य विंवं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः ।
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( १३२ )
(564)
॥ संवत १५५७ वर्षे वैशाप सुदि ३ दिने मंगलवासरे उ० ज्ञातीय वेछाच गोत्र मा० बीमा पु० जालू नारिगदे अगस--- - श्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथ विंवं का० प्र० श्रीसंडेरग गच्छे श्रोशांति सूरिभिः तत्प - श्रीर- सूरिभिः ।
( 565 )
सं० १५५६ (?) वर्षे आषाड सु० १० सूराणा गोत्रे स० शिवराज भा० सीतादे पुत्र स० हेमराज भार्या हेमसिरी पु० पूजा काजा नरदेव श्री पार्श्वनाथ विंवं कारितं प्र० श्रीधर्मं घोष गच्छे भ० श्रीपद्मानंद सूरि पट्ट े नंदिवर्द्धन सूरिभिः ।
(566)
सं० १५५८ वर्षे आषाढ सुदि १० आईचणाग गोत्रे तेजाणी शाषायां सा० सुरजन मा० सूहवदे पु० सहस मल्लेन भा० शीतादे पु० पाडा ठाकुर भा० द्रोपदी पौ० कसा पीघा श्रोत युतेनात्मपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथ विंवं कारितं प्र० श्रीउपकेशगच्छे भ० श्रीदेवगुप्त सूरिभिः ॥ श्रीः ॥
( 567 )
सं० १५६७ वर्षे श्री माह सुदि ५ बुधे गोठि गोत्रे सा० तत्पु० पहराज तत्पुत्र राठा --- त्यादि परिवार युतेन सुविधि नाथ विंवं का० प्र० खरतरगच्छे श्री जनचन्द्र सूरिभिः ।
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________________
( १३३ )
(568)
संवत १५१९ वर्षे आषाढ़ सुदि १३ दिने रबिवारे श्री फसला गोत्रे मं० सधारण पुत्र रत्न मं० माणिक भार्या माणिकदे पुत्र मूलाकेन पुत्रपौत्रादि परिवृतेन श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रोजिनहंस सूरिभिः श्रीपत्तन महानगरे ।
(569)
सं० १९०४ वर्षे पौष मासे शुक्ल पक्ष पूर्णिमायां तिथौ श्रोअजमेर पूया श्री चतुविशति जिनमातृका पट्ट लुनिया गोत्रेन सा० पृथिराजेन का० प्र० श्रीवृहत् खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भ० श्रोजिन सौभाग्य सूरिभिः विजयराज्ये ।
श्रीदादाजीके छतरिके पास मन्दिरमें ।
( 570 )
सं० १५३५ वर्षे आषाढ़ सुदि ६ शुक्रे बड़नगर वास्तव्य उकेशज्ञातीय सा० साजण मार्या तारू पुत्र सा० उषाकेन भार्या लीलादे प्रमुख कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छनायक श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः ॥ पं० पुण्यनन्दन गणीनामुपदेशेन ।
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________________
( १३१)
जयपुर। यति श्यामलालजी के पासकी मूत्तियों पर
(571)
सं०१३-- वर्षे माघ सुदि १३ सोमे श्रीकाष्ठासंघ श्रीलाड वागड (2) गण श्रीमन-- मुरूपदेसेन हुंवउ ज्ञातीय व्य० वाहड भार्या लाछि सुत षीमा मार्या राजलदेखि अयोथं सुत दिवा मार्या संभव देवि नित्यं प्रणमति।
(572)
सं० ११३६ वर्षे पौष : सोमे श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमा० --- माथलदे पु० सामलेन श्रोशांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबुद्धिसागर सूरिमिः ॥ श्री॥
( 53 ) सं० १५१५ वर्षे फागुण शुदि १ शुक्रवारे। ओसवाल ज्ञातीय बच्छस गोत्रे सा. धीना भार्या फाई पु. देवा पद्मा मना वाला हरपाल धर्मसी आत्मपुण्यार्थ श्रीधर्मनाथ विवं कारितं श्रीम० तपागच्छे - - - - ।
( 574 ) सं० १५२१ वर्षे ज्येष्ट सुदि १३ गुरी रणसण वासि श्रीश्रीमाल ज्ञासीय श्रे• धर्मा मा. धर्मादे सुत भोजाकेन भा० भली प्रमुख कुटुम्ब युतेन स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथ चतुर्विंशति पहः कारितः प्रतिष्ठितः श्री सुविहत सूरिभिः ॥ श्रीरस्तु ॥
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( १३५ )
यति किसनचन्दजी के पासकी मूर्तियों पर
( 575 )
सं० १३१८ फागुन --- गेहलडा गोत्रे वटदेव पुत्र विसल पुत्र श्रेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ विंवं कारितं प्र० श्रो भावदेव सूरिभिः ।
( 576 )
सं० १५०५ वर्षे माह वदि शनौ श्री --- गच्छे--- जलहर गोत्रे सा० लुणा भा० लुणादे पुत्र पविन पाल्हा सानाभि पितृमातृ श्र ेयोर्थं श्री संभवनाथ विंवं कारि० प्र० ।
लषमणेन
मातृ वीरी
( 577 )
सं० १५०८
वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० श्रीमाल ज्ञाती भांडावत गोत्रे सा० भोजा भार्या सासु नेना भार्या फुला श्री धर्मनाथ विंवं कारितं श्री पल्लि गच्छे
पुत्र
( 578 )
|----
संवत १५०९ वर्षे जएस वंसे सा० हऊदा भार्या आलूणादे पुत्र केन्हाकेन श्री अंचल गच्छेश श्री जय केशरि सूरिणां उपदेशेन पितृ श्रेयोर्थं श्री आदिनाथ विंबं कारितं ।
( 579 )
सं० १५३२ वर्षे ज्ये० व॰ ३ रवी बणागीआ गोत्रे सा० वादी भ० षीमाइ सु० तिउण श्र ेयोर्थं सा० सावउन श्रोवंत साजण प्र० कुटुंब युतेन श्री पद्मप्रभविंवं कारितं रोद्रपल्लिय गच्छे श्रीदेव सुंदर सूरि पट्ट े प्रतिष्टितं श्री गुण सुंदर सूरिभिः ।
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( 580 ) संवत १५५६ वर्षे माघ सुदि १५ गुरौ ओसवाल ज्ञातीय सा. हासा पत्र हरिचंदेन मा० हीरादे पुत्र पुना धूनादि कुटुंव युतेन गहिलडा गोत्रे श्री सुविधिनाथ विवं का० प्र. सपागच्छे श्री हेम विमल सूरिभिः नागपुरे।
( 531 ) संवत १६७४ वर्षे माघ वदि २ दिने गुरु पुष्ययोगे ओसवाल ज्ञातीय चोरडिया गोत्रे स. सिघा भार्या नवलादे तत्पुत्र स० भैरवदास मार्या अर्मादे नाम्न्या श्री नमिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छे अहारक श्री विजयदेव सूरिभिः ।
( 582 ) सं० १६८८ व० माघ ०१ गुरौ----हस गोत्रिय सावजाकेन ... सुविधिनाथ वि. गृहीत घ० ट० श्रीतपा गच्छे श्री विजयदेव आचार्य श्री विजयसिंह सूरि प्रतिः।
जोधपुर। यह मारवाड़ की राजधानी एक प्रसिद्ध स्थान है। श्रीमहावीर स्वामीका मन्दिर ( जुनी मंडि )
धातुओंके मूर्ति पर।
(583 ) सं० १४५६ वर्षे माह सुदि ११ स० हाप-सीह पुत्रो सषदे-केन पुत्र पूजा काजा युतेन पित अयो) श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनरोज सूरिभिः ।
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( 584 )
सं. १४८० वर्षे वैशाष सु.३ धांधगोत्रे सा. मोल्हा पुत्रेण सा० सांचडेन स्वपुत्रेण भार्या सिरिधादे श्रेयसे श्रीआदिनाथ विवं कारितं प्र. श्री विद्यासागर सूरिभिः ॥ श्री॥
(585)
सं० १५०१ प्रा. ज्ञा० डोडा भा० राणी सुत सुपाकेन भा• सरसू पुत्र साजणादियुतेन श्री अजितनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः ।
(586 ) सं० १५.३ आषा० सु० ८ शु० राउ खावरही गोत्रे सा० महिराज भा० सीता पु० षीद मा. लोली पु. कीडा देताभ्यां युतेन श्री धर्मनाथ विं कारापितं श्री- - र्षि गच्छे श्री जयसिंह सूरि पट्टे श्रीजय शेषर सूरिभिः तपा पक्ष ।
(587 )
सं० १५०३ वर्षे मार्ग वदि २ खुचंती भंडारी गोत्र सा. सोमाभा० सोम श्री पुत्र हीरा केन आत्म० श्री श्रेयांस विवं का० प्र० श्री धर्म घोष गच्छे श्री पद्म शेषर सूरि पह श्री विजय नरेन्द्र सूरिभिः ॥
( 588 )
सं० १५१७ वर्षे चैत्र सु. १३ गुरौ उप० ज्ञा० म० नूणा भा. माणिकदे पु. सांडा मा. वाल्हणदे पुत्र पेतसि वास. प्रा०मा० अ० श्री सुमतिनाथ विवं का०प्र० ब्रह्माणीया ग. श्री उदय प्रभ सूरिभिः।
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( ३३८ )
( 589 )
सं• १५२२ वर्षे वैशाष सु० ३ नना ज्ञा० ओ० जहता भा० परि पुत्र गेला भा० वाली नाम्न्या पुत्र अमरसी भा० तिलू सजन कवेला मातृ दूसी ज्येष्टमाला प्रमुख कुटुंब युतया स्व श्रेयोर्थं श्री विमलनाथ विंवं का० प्र० तपा श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः ॥ श्री ॥
( 590 )
सं० १५२४ बै० शु० ३ श्री मूलसंघे सरस्वती गच्छे श्रीकुंदकुंदाचार्य म० पद्मनंदि सत्प० भ० श्रीसकल कीर्त्ति तत्प० अ० श्री विमल कीर्त्या श्री शांतिनाथ विंवं प्रतिष्ठितं । श्रो जे संग भा० मरगादे सु० तेजा टमकू सु० सिवदाय ।
( 591 )
सं• १५२७ वर्षे माह सु० र बुधे श्री गोत्रे सा० भादा भा० सावलदे पु० मेलाकेन भा० मालूणदे पुत्र वक्ता कान्हा रूपादि युतेन स्व श्रेयसे श्री आदिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं जिनदेव सूरि पट्ट े श्रीमत् श्री भावदेव सूरिः ।
(592)
...
स० १५३२ वर्षे वैशाष वदि ५ रवौ उप० ज्ञा. गो० उरजण भा० राउं सु० भीदा भा० भावलदे सु० गारगा वरजा युतेन आत्म० श्री सुमतिनाथ विंवं का० प्र० श्री जीरापलीय गच्छे श्री उदयचन्द्र सूरि पट्टे श्रीसागर नाद सूरिभिः शुभं भवतु
( 593 )
स० १५३५ श्री मूलसंघे भ० श्री भुवन कीर्त्ति स्र० भ० श्री ज्ञान भूषण गुरूपदेशे --
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(१३)
( 594 ) सं० १५५४ वर्षे फागुण मासे शुक्ल पक्षे ३ वुध वासरे साइ चांपा भार्या मेथू डंगर भार्या चांद्र पु. डाहा भा० मालू श्री नमिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं पूर्णिमा पक्षिक छोली वाल गच्छे भहारिक श्री विजय राज सूरिभिः ॥ श्री ॥
( 595 ) सं० १५६३ वर्षे माह सुदि १५ गुरो प्रग्वाट ज्ञा० सा० कला भा० अमणादे पु० सदो ---पु. धना --- सहितेन आत्म पुण्यार्थ श्रीसुमति विंवं का० प्र० पूणिमाक गच्छे ---सागर सूरि---।
( 596 ) सं० १५६५ वर्षे चैत्र सु० १५ गुरौ उप. भंडारी गोत्रे सा. नरा मा० नारिंगदे पु० तोली भा० लाछलदे पु० चिजा रूपा कूणा विजा मा. वीकलदे पु. नाम्ना डामर द्वि. मा. वालादे पु० खेतसी जीवा स्वकुटुंवेन पित निमित्त श्री सुमतिनाय विवं कारितं प्र. श्री संडेर गच्छे १० श्री शांति सूरिभिः ।
( 597 ) सं० १५६५ वर्षे माह सुदि ८ रवी श्री उपकेश वंशे वि० सांडा मार्या धम्माई सत वीसा सूरा भार्या लाली द्वि० मार्या अरधाई धर्म श्रेयसे श्री शीतलनाथ विवं प्रति सिद्धांती गच्छे श्रीदेव सुदर सूरिभिः प्र० ।
(598)
॥ ॐ संवत १५६५ वर्षे वैशाष वदि १३ रवी ढेढीया ग्रामे श्री उएसवंशे सं• पीदा भार्या धरणू पुत्र सं० तोला सुश्रावकेण भा० नीनू पुत्र सा० राणा सा० लषमण भ्रात
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(११.) सा० आसा प्रमुख कुटुंघ सहितेन स्वश्रेयोर्थं श्री अंचल गच्छेश श्री भाव सागर सूरीणा मुपदेशेन श्री अजितनाथ मूलनायके चतुर्विंशति जिन पट्ट कारितः प्रतिष्टितः श्रीसंघेन ।
( 569 ) सं० १५७० वर्षे आ. सु० ३ सोमे ओसवाल ज्ञातीय चंडलिआ गोत्रे सा. सारिग पुत्र कालू मा० हामी पु० हासा देवा गणाया भार्या दमाई पु० साह विमलदास सा. हरवलदास सा. विमलदास मा. सोनाई पु० सुन्दर वच्छ रिषभदास भार्या अमरादे सुत अमरदत्त पूर्वत भु० श्री सुविधिनाथ विंवं कारितं प्र. श्रीमलधार गच्छे १० श्री गुण सागर सृरिपट्टे श्री लक्ष्मीसागर सूरि प्रतिष्ठितः ॥
( 600 ) सं० १८२१ मि. वै० सुदी ३ श्री पार्श्वजिन-म० श्री जिन लाभ सू० यति हीरानंद करापितं ।
देविजीके मूर्तिपर। (४ भूजा+ सर्प छत्र)
( 601 ) सं० १४७२ वर्षे ज्येष्ठ वदि १२ सोमे वीजापूर वास्तव्य नागर ज्ञातीय ठा. भवासुत धरणाकेन कुटुंब सम-- अयोर्थ देवो वेइरुठा० रूपं प्रतिष्ठापितं ।
( 602 ) सं० १५५४ माह सुदि ५ दिने उ० ज्ञातीय मंडोवरा गोत्रे सा० पासवोर पु.सा. सूरा भा. सूहवदे पु० सा० श्रीकरण सा०शिवकरण सा. विजपाल श्रा० सूहवदे आत्मपुण्याय श्री शांतिनाथ विवं का० प्र० श्रीधर्म घोष गच्छे १० श्रीपुण्यवर्द्धन सूरिभिः ।
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( १४१ )
(603)
संवत १५७९ वर्षे वैशाख सुदि ७ बुधे उशवाल ज्ञातीय वृद्धशाषीय पोसालेवा गोत्र सा० षीमा भा० अधी- पु० सा० श्रीवंत भा० सोनाई पु० सकल युतेन स्वश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ विंवं का० श्री कोरट गच्छे श्री कक्क सूरिभिः ॥ श्री ॥
(604)
स्वस्ति श्रीः ।। सं० १५९८ वर्षात्पौष वदि ११ सोमे उकेश वंशे व्य० परवत भा० फदकु सत्पुत्र व्य० जयता भा० अहिवदे पु० व्य० श्री ५ सपरिवारेण सोक्त विहान कर्मा निज परिवार श्रेयोर्थं आदिनाथ विंवं कारितं प्र० श्रो पूर्णिमा पक्ष भीमपल्लीय भ० श्री मुनिचन्द्र सूरिप श्री विनयचंद्र सूरिणामुपदेशेनेति भद्र ं ।
( 605 )
ॐ संवत १६३८ वर्षे माघ सुदि १३ सोमे श्री स्तंभ सीर्थ वास्तव्य सोनो मनजी भायां मोहदे सुत सोनी मंगलदास नाम्ना श्री श्री माल ज्ञातीय श्रो अजितनाथ विंवं कारापितं तपागच्छे श्री हीर विजय सूरीश्वरै प्रतिष्ठितं ।
श्री केसरियानाथजी का मंदिर - मोती चौक ।
(606)
ॐ ॥ संवत १२३९ द्विः वैशाख सुदि ६ शुक्रे पल्यपद्र वास्तव्य श्री ति-नि गच्छे भ० श्री देवाचार्य सत्क श्री नवत्सार सुत-ष्टे - गुण स्वपत्नी सलखणायाः श्र ेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा कारिता प्रतिष्टिता श्री बुद्धि सागराचार्यैः ॥
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(१४२)
( 607 ) सं० १४५८ वर्षे माह सुदि ५ लोढा गोत्रे सा. देवसीह भार्या देलूणदे पुत्र रेडा मार्या रूपादे पुत्र सा० सालू सायराभ्यां पितृ मातृ पुण्यार्य श्री आदिनाथ विंवं का० प्रति. श्री धर्मघोष गच्छे श्री मलयचन्द्र सूरिभिः ।
( 608 )
सं० १५१३ वर्षे पोष वदि १ शुक्र श्रीमाल ज्ञा० ऋ० संग मा. श्रेयादे सु० महिराजेन पित मातृ भ्रातृ समधर सारंगा भी मान मित्रं स्वात्म श्रेयसे श्रीश्री सुमतिनाथ विवं पंचतीर्थी कारापिता प्रतिष्ठितं पिप्पल गच्छे १० श्री गुण रत्न सूरिभिः गंधारवास्तव्य ॥
(609)
सं० १५२४ चैत्रवदि ५ -- ड माणिक भा. वारूदे-श्री विमल कोति-धर्मनाथ विव प्र० वाई सपदे जा० काल्हा -- ।
( 610 ) सं० १५२८ वर्षे वैशाख यदि दिने सोमे उकेश वंश कुर्कट शाखायांव्यै० तोला मा. घेतलदे पुत्र सदस मल्लेन तील्हादि पुत्र पौत्रादि युतेन स्व श्रेयो) श्री सुमतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठित श्री खरतर गच्छे श्री जिनचंद्र सूरिभिः ।
( 611 ) सं० १५७२ वर्षे फागुण सु. ६ मं० भंडारी गोत्रे सा० तोला भा० पलाउदे पुत्र सा. विद्रा सा० परूपा सा० कूपा भा० करमादे पु० माता - पुण्यार्य श्री सुमतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री संडेरे गच्छे भ० श्री शांति सूरिभिः ।
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( १४३ )
( 612 )
सं० १८९३ ना मा । सु० १० वु० । श्री जोधपूर वास्तव्य श्री ओसवाल ज्ञातीय टट्टु शाखायां संघ माणक चंद तेउ स्वश्रेयार्थं श्री चतुर्विंशति जिन विवस्य भरापीतं ।
( 613 )
सिद्ध चक्र के पट्ट पर |
श्री सिद्धचक्र लिखतो मया वै । अहारकीयेन सुयंत्रराजः ॥ श्री सुन्दराणां किल शिष्यकेन। स्वरूपचंद्रेण सदऽर्थ सिद्वैयः ॥ १ ॥ श्री मन्नागपुरे रम्ये चंद्रवेदाऽष्ट भूमिते । अब्दे वैशाख मासस्य तृतियायां सिते दले ॥ २ ॥
श्री मुनिसुव्रतस्वामीजी का मन्दिर ।
( 614 )
सं० ९४२३ वर्षे फागुन शु० १ श्री श्री ० ज्ञा० व्य० काला भा• काल्हणदे सु० -- पद्म प्रभु वि० श्री पू० श्री उदयानंद सू० प्र० ।
( 615 )
सं० १४४१ वर्षे वैशाख वदि १२ दिने नाहर वंशालंकारेण सा० घड़सिंह पुत्रेण भ्रातृ सा० सलकेन सरवणादि युतेन श्री पार्श्वनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनराज सूरिभि: श्री खरतर गच्छेश: ॥
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( १४४ )
( 616 ) सं० १४९८ वर्षे फागुण वदि २ गुरौ श्री प्रवडार गच्छे पांढरा गोत्रे जेसा भा० जसमादे पु० तोजा भा० वापू पुठीयलमेदा सह० श्री शांतिनाथ वि० प्र० का० श्री कीर्तिका चार्य स० श्री वीर सूरिमिः।
(617 )
सं० १५३६ वर्षे फा० सुदि ३ रवी उके० पदे दोसी गोत्र सा० सीरंग -- पुत्र सा० ड्रडकेन भा. दाडिमदे पुत्र कीता तेजादि परिवारयत श्री धर्मनाथ विवं कारितं श्रेयसे प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरि पट्टे श्री जिनचंन्द्र सूरि श्री जिन समुद्र सूरिभिः श्री पद्म प्रभ विंव।
( 618 ) सं० १५८२ वर्षे जे० सुदि १० शुक्र वहसप श्री बन रतन सूरि --- ।
श्री धर्मनाथजी का मन्दिर ।
(619 )
सं० १४९३ जेठ वदि ३ मंगले उप. ज्ञा० पावेचा गोत्रे सा. बीरा मा० वील्हणदे पुत्र कुंभाकेन भा० कामलदे युतेन स्वश्रे० विमल विवं का. प्र. वृहत गच्छे देवाचार्यान्वये श्री हेमचन्द्र सूरिभिः ॥ छ॥
( 620 )
___ सं० १५०३ वर्षे डोसो-धर्माकस्य पुण्यार्थं दो० वूछा पुत्र संग्राम श्रावकेण कारितः श्री श्रेयांस विवं प्रतिष्टितं श्री जिनभद्र सूरिभिः श्री खरतर गच्छे ।
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( १४५ )
(621)
सं० १५०४ वर्षे वै० शु० ३ प्राग्वाट ज्ञा० अ० भंडारी शाणी सुत श्र० षीमसी सापाभ्यां प्रा० मदीखतजता मालादि कुटुंवयुताभ्यां स्वयं यसे श्री मुनि सुव्रत स्वामि विवं का० प्र० तपा श्री सोम सुन्दर सूरि शिष्य श्री जयचंद्र सूरिभिः धार वास्तव्यः शुभं भवतु ॥
( 622 )
सं० १५०७ वर्षे मार्गसिर वदि २ गुरौ उपकेश वंशे जारंउढा गोत्रे सा० पिमपालात्मज सा० गिरराज पुत्र सहदेवो भ० लोला समदा सहितेन मातृ गवरदे पूजार्थं श्री नमि वि० का० प्र० तपा भट्टारक श्रीं हेमहंस सूरिभिः ॥
( 623 )
सं० १५१२ वर्षे फागुन सु० १२ आहतणा ( आईचणा ? ) गोत्रे सा० धना भा० रूपी पु० मोकल भा० माहणदे पु० हासादि युतेन स्त्रमाकल श्र ेयसे श्री संभवनाथ विंवं का० उकेश गच्छे श्री सिद्धाचार्य संताने प्र० भ० श्री कक्क सूरिभिः ।
( 624 )
सं. १५२५ वर्षे दिवसा वासे श्रीमाल ज्ञातीय सा० दशरथ भा० सामिनी सुत माना केन भा० राना भातृसालू भा० सोढी कुटुंवयुतेन स्वप्रयोर्थं श्री शांतिनाथ विवं का० प्रतिष्ठितं तपा गच्छे श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः नलुरीया गोत्रः ॥
( 625 )
सं० १५२८ वर्षे वैशाख वदि ६ चंद्र उपकेश ज्ञासो आदित्यनाग गोत्रे सा० तेजा पु० जासी - भा० जयसिरि पु० सायर भा० मेहिणि नाम्न्या पु० गुणा पूता, सहज सहितया
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( १४६ ) स्वपुण्यार्य श्री संभवनाथ विवं का. प्र. उपकेश ग. कुक्कदाचार्य स० श्री देव गुप्त सूरिभिः।
( 626 )
सं० १५६३ वर्षे माघ सु० १५ गुरौ उ० विदाणा गोत्र सा. रतना भा० रतनादे पु. रामा० रूपा स० पि. श्री कुंथनाथ विवं का० प्र० श्री संडेर गच्छे श्री शांति सूरिभिः श्रेयात् ॥
दिनाजपूर । श्री मूलनायकजीके विवं पर।
( 627 ) --- सु० ४ श्री चन्द्र प्रभ जिन विंवं संघेन कारितं प्रतिष्ठितं च ॥ श्रीजिनचन्द्र सूरिभिः ॥ श्री विक्रमपूरे।
धातुके मूर्तियों पर।
( 628 ) संवत १४४७ वर्षे फागुण सुदि सोमे श्री अंचल गच्छे श्री मेरुतुंग सूरीणामुपदेशेन शानापति ज्ञातीय मारू ठ० हरिपाल पत्नि सूहव सुत मा० देपालेन श्री महावीर विवं कारितं । प्रतिष्ठितंच श्री सृरिभिः ॥
( 629 ) सं० १५१५ वर्षे फागुण वदि ५ गुरौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय लघुशाखायां • अर्जन मा. मंदोअरि पितृ मातृ श्रेयसे सुत गोईदेन मा० माकू पुत्र मेहाजल सहितेन श्री कुयनाथ
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( ११७) विवं कारितं पूर्णिमा पक्ष भीमपल्लीय भट्टारक श्री जयचंद्र सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठित ॥श्रीः ॥छ॥
( 630)
सं० १५३१ वर्षे माघ वदि ८ सोमे श्री श्रीमाल ज्ञातीय श्री. भरमा भार्या परमादे पुत्र आसा भार्या वईरामति नाम्न्या स्वक्षत पुण्यार्थं आत्म अयोथं श्री जीवित स्वामि श्री सुविधिनाथ चतुर्विंशति पट्ट का० प्र० श्री धर्मसागर सूरिभिः।
( 631 )
सं० १६२७ वर्षे वैशाख वदि १० श्री मूलसंघे भ० श्री सुमति कीर्ति गुरूपदेशात् का. जो देवसुत को सिंघा सु• धर्मदास रुरिदास अनंतनाथ नित्यं प्रणमति ।
( 632 )
सं० १८१४ रा मिती अषाढ सुदी १३ श्री नेमनाथजी वि० ॥ छ ।
दादाजी के चरण पर।
( 633 )
सं०१८४८ मिति ज्येष्ठ कृष्ण ८ तिथो बुधवारे। भ। श्रीजिनचद्र सूरिभि प्रतिष्ठितं ॥ म। श्री जिनकुशल सूरिजो पादुका ॥ १। श्री जिनदत्त सूरिजीरा पादुका।
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( १४८ )
श्री केसरियानाथजी (मेवाड़)
यह स्थान जो मेवाड़ की राजधानी उदयपूर से २० कोस पर है रखभदेओ नामसे भी प्रसिद्ध है । मूलनायक श्री ऋषभदेवकी मूर्त्ति स्थामवर्ण बहुत प्राचीन और इनका अतिशय बहुत विलक्षण हैं। मन्दिरके बाहर महाराणा साहबों के अघाट बहुत से हैं ।
पंचतीर्थी पर ।
( 635 )
सं० १५९९ वर्षे माघ सु० १३ दिने उप० ज्ञा० अ० पोमा भा० पोमी सु० जावलकेन भा० गोलादे सु० जसा घना वना मना ठाकुर परवतादि कुटुंवयुतेन स्वपितृ श्रेयसे श्री धर्मनाथ विंवं का० प्र० तपा गच्छे श्री सोम सुंदर सूरि संताने श्रीलक्ष्मी सागर सूरिभिः ।
पाषाण पर ।
(636)
श्री कायास वास वासीता केवलापदाग नमो क्षमाग्रत (?) आदिनाथ प्रणमामि -- विक्रमादित्य संवत १४३१ वर्षे वैशाख सुदि अक्षय तिथौ वुध दिने चादी नाधुराल ---|
( 637 )
श्री आदिनाथ प्रणमामि नित्यं विक्रमादित्य संवत १५७२ वैशाष सुदि श्वार सोमवार श्री जशकराज श्री कला भार्या सोवनवाई चीजीराज यहां धुलेवा ग्राम श्री ऋषभ नाथ प्रणम्य कढीआ फोईआ भार्या भरमी तस्या पवेई सा० भार्या हासलदे तस्य पगकारादेव रारगाय म्रात वेणीदास भार्या लास्टी चाचा भार्या लीसा सकलनाथ नरपाल श्री काष्ठा संघ - श्री ऋषभनाथजी श्री नाभिराज कुष श्री तां-री कुल
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( १९९)
( 638 ) संवत १४४३ वै० शु० १५ पूर्णिमा तिथो रविवासरे हत्खरतर गच्छै श्री जिन भक्ति सूरि पहालंकार अहारक श्री १०५ श्री जिनलाभ सूरिभिः ।-- श्री राम विजयादी प्रमुख सहूक -- आदेशात् सनीपुर - श्री ऋषभदेवजी - - ।
सरस्वतीजी महादेव जी के चरण चौकी पर ।
(639 )
संवत १६७६ वर्षे मा० सुद० १३ -- ।
मरुदेवी माताजीके हस्ति पर।
(640 ) __ संवत १७११ वर्षे वैशाष सुदि ३ सोमे श्री मूलसंघ सरस्वति गच्छे वलात्कारगणे श्री कुं--।
(641 ) __ संवत १७३४ व० माघ मासे शुक्लपक्षे - तिथौ अगुवासरे श्री मलसंघ काष्ठासंघ अहारक श्री रामसेनीन्वये तदाम्नाये १० श्री विश्व भूषण भ० यशः कीर्ति १० श्री चिमुवन कीर्ति--।
( 642 ) संवत १७४६ वर्षे फागुण सु० ५ सोमे श्री मूलसंघ सरस्वति गच्छे वलात्कार गणे श्री श्री कुंदकुदाचार्यन्वये अहारक श्री सकल कीर्ति स्तदन्तर महारक श्री दामकीर्ति --।
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( १५० ) ( 643 )
संवत १७६५ वर्षे माघ मासे कृष्णपक्ष पंचमी तिथौ सोमवासरे महारक श्री विजय रत्न केश्वर तपागच्छे काष्ठासंघे श्रा० पु० दे० वृ. शा० मुहता गोत्रे मुहताजी श्रीरामचंद्र जी तस्यमार्या वाई सूर्यदेवि तस्यात्मज मुहताजी श्री सोनाग चंद्रजी मुहताजी श्री सातु जी भाई मुहताजी श्री हरजीजी श्रीपार्श्वनाथ जिन विंवं स्थापितं ।
श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ प्रशस्ति ।
( 644 )
॥ ॐ ॥ प्रणग्य परया अक्तया पद्मावत्याः पदाम्बुजं । प्रशस्तिल्लिख्यते पुण्या कविकेशर कीर्त्तिना ॥ १॥ श्री अश्वसेन कुल पुष्पक रथञ्च भानुः । वामांग मानस विकासन राजहसः ॥ श्रीपर्श्वनाथ पुरुषोत्तम एष भाति । घुलेव मंडनकरा करूणा समुद्रः ॥२॥ श्री मज्जगत्सिंह महीश राज्ये। प्राज्यो गुणे र्जात ईहालथोयं ॥ आपुष्पदत्त स्थिरतामुपैतु। संपश्यतां सर्व सुख प्रदाता ॥ ३ ॥
दोहा । सुर मन्दिर कारक सुखद सुमतिचंद महा साधः । तपे गच्छमें तप जप तणो उयत उदधी अगाधः॥ ४ ॥ पुन्ययाने श्रीपार्श्वनो पुहवी परगट कीधः । खेमतणो मन षा तिसु लाहो अवनो लीध ॥५॥राजमान मुहता रतन चातुर लषमी चंद । उच्छ व किया अति घणा आणिमन आनन्द ॥६॥ दिल सुध गोकल दासरे की प्रतिष्ठा पास। सारे ही प्रगटयो सही जगतिमें जसवास ॥ ७॥ सकल संघ हरषित हूओ निरमल रविजिन नाम राषो मुनि महंत सरस करता पुण्य सकाम ॥८॥ ___कवित्त । सांतिदास सचितसंत दावडा लषमी चंदहः । संघ मनुष्य सिरदार सहस किरण सुषके कंदहः ॥ वल्लभ दोसी वीर धीर जिन धर्म धुरंधरः । मुलचंद गुण मूलहीर धोया उर गुणहरः ॥ सकल संघ सानिध करः सुमतिचंद महासाधः। पास सदन कियो प्रगट
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( १५१ ) निश्चल रहो निरवाधः ॥६॥ __श्लोक ॥ तद्वारेक पूज्यकृद कृपाख्यो देवेरप्रविलग्न विचित्रः पूजावतेस्मै प्रविलं लितावै संघेन सत्सौम्य गुणान्वितेन ॥ १०॥ गजधर सकल सुज्ञान धराहरी कीधो गुणहेर । रच्योविवजिनराजको करुणा बंत कुवेरः ॥११॥ आर्या । शशीव सुख राज वर्षे। माधव मासे वलक्ष पक्षच । पंचम्यां भूगुवारे हि कृता प्रतिष्ठा जिनेशस्य ॥ १२ ॥ महागिरि महा सूर्य्य शशिशेष शिवादयः । जगवल्लभ पार्श्वस्य तावतिच्छतु विंवकं ॥ १३ ॥
श्री संवत १८०१ शाके १६६६ प्रमिति वैशाख सुदि ५ शुक्र वासरे श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ विवं प्रतिष्टितं वृहत्तपा गच्छीय सुमतिचन्द्रगणिना कारापितं ॥ श्रीरस्तु ॥ शुभं भवतु ॥
पगलीयाजी पर।
( 645 ) स्वस्ति श्री संवत १८७३ वर्षे शाके १७३९ वर्तमाने मासोत्तम मासे शुभकारी ज्येष्ठमासे शुभे शुक्ल पक्ष चतुर्दशि तिथी गुरुवासरे उपकेश ज्ञातीय वृद्धिशाखायां कोष्ठागार गोत्रे सुश्रावक पुण्य प्रभावक श्री देव गुरु भक्तिकारक श्री जिनाज्ञा प्रतिपालक साह श्री शंभुदास तत्पुत्र कुलोद्धारक कुल दीपक सिवलाल अंवाविदास तत्पुत्र दोलतराम ऋषभदास श्री उदेपूर वास्तव्य श्री तपागच्छे सकल भह रक शिरोमणि अहारक श्री श्री विजय जिनेंद्र सूरिभिः उपदेशात् पं० मोहन विजयेन श्री धुलेवानगरे ॥ भंडारी दुलिचंद आगुंछइं॥
दादाजी के चरण पर।
( 646 ) संवत १९१२ का मिति फागुन वदि ७ तिथौ गुरु वासरे श्री घुलेवानगरे श्री क्षेम कीर्ति शाख्योद्भव महोपाध्याय श्री राम विजयजी गणि शिष्य महोपाध्याय शिवचंद्र
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( १५२ ) गणि शिष्य----चंद्र मुनिना शिष्य मोहनचन्द्र युतेन श्री सत्गुरुचरण कमलानि कारितानि महोत्सवं कृत्वा प्रतिष्ठापितानि स्थापितानिच वर्तमान श्री वृहत्खरतर गच्छ भहाराज्ञयाच श्री अभयदेव सूरि जिनदत्त सूरिजिनचंद्र सूरिजिन कुशल सूरिणां चरणन्यासः।
पालिताना। श्वेताम्बरियोंका विख्यात तीर्थ श्री शत्रुजय (सिद्धाचल) पहाड़के नीचे यह काठियावाड़का एक प्रसिद्ध स्थान अवस्थित है।
मोती सुखियाजीका मन्दिर ।
( 647 )
संवत १५०३ वर्षे ज्येष्ट शु० १० प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० आमा मा० सेग सुत परवतेन मा० मांई कुटुंवयुतेन स्वयोर्थं श्री श्रेयांस नाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं तपा श्री जयचंद्र सूरिभिः ॥ गणवाडा वास्तव्यः ।
( 648 ) संवत १५५८ वर्षे फागुण शुदि १२ शुक्र श्री उकेश वंशे गांधो गोत्र अविका भक्त। सा० छाजू सुत सेंघा पुत्र सूरा मा० मेथाई सु० साऊंया मा० मकू नाम्न्या स्व श्रेयो) श्री सुमतिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्टितं मलधार गच्छे श्री लक्ष्मीसागर सूरिमिः ।
( 649 ) संवत १५७१ वर्षे माघ वदि १ सोमे वीसल नगर वास्तव्य प्राग्वाट क्षतीय व्य. चहिता मा. लाली पु० व्य० नारद भार्या नारिंग पु. जयवंतकेन भार्या हर्षमदे प्रमुख
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( १५३ ) परिवार युतेन स्वयोर्थे । श्रो नमिनाथ चतुर्विंशति पहः कारित: प्रतिष्ठित सपागच्छे श्री सुमतिसाधु सूरि पट्टे परम गुरुगच्छ नायक श्री हेम विमल सूरिभिः ॥ श्री ॥
सिद्धचक्र पट्ट पर।
( 650 )
__ संवत १५५६ वर्षे आश्विन सुदि ८ वुधे श्रीस्तंन तीर्थ वास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातीय म० वछाकेन श्री सिद्ध चक्र यंत्र कारितः।
सेठ नरसी केशवजकिा मन्दिर ।।
( 651 )
संवत १६१४ वर्षे वैशाष सुदि २ बुधे प्राग्वाट ज्ञातीय दोसी देवा आर्या देमति सुत दो० वना भार्या वनादे सु० दो० कुधजी नाम्न्या पितु श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ विवं कारापितं तपागच्छाधिराज महारक श्री विजयसेन सूरि शिष्य पं० धर्मविजय गणिना प्रतिष्ठितमिदं मंगलं भूयात् ॥
( 652 )
संवत १८२१ वर्षे शाके १७८६ प्रवर्त्तमाने माघ शुदि ७ तिथौ गुरुवासरे श्रीमदंचल गच्छे पूज भहारक श्री रतन सागर सूरिश्वराणामुपदेशात् श्री कच्छदेसे कोठारा नगरे ओशवंशे लघुशाषायां गांधिमोती गोत्रे सा० नायकमणजी सा० नाक नणसी सस भार्या हीरवाई सत्सुत सेठ केशवजी सस भार्या पावी वाई ( तत्पुत्र नरसी भाई नाना मना) पंचतीर्थी जिनविवं अरापितं (अंजन शलाका करापितं ) अठास गण ।
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( १५४ )
सेठ नरसीनाथाका मन्दिर ।
(653)
सं० १५३० वर्षे वैशाख शुदि १० सोमे श्री गंधारबास्तव्य श्री श्री माल ज्ञातीय व्य० साहसा भ० वाल्ही ठ० सालिग भा० आसी ठ० श्रीराज भा० हंसाई । व्य. सहिसा सुत धनदत्त भा० हर्पाई पत्तै सात्म श्रेयोर्थं आदिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री वृहत्तपा पक्ष श्री विजयरत्न सूरिभिः ॥ श्री ॥
( 654 )
सं० १९२१ वर्षे माघ सुदि ७ गुरौ श्रीमदंचलगच्छे पूज भट्टारक श्री रत्न सागर सूरी श्वराणां सदुपदेशात् श्री कच्छदेशे श्रो नलितपुर वास्तव्य । ओश वंशे लघुशाखायां नागडा गोत्रे सेठ होरजी नरसी सद्भार्या पूरवाईना पुण्यार्थे श्री पार्श्वनाथ विंवं कारितं सकल संघेन प्रतिष्ठितं ।
( 655 )
सं० १९२१ वर्षेमाघ सुदि० गुरौ श्री मदंचल गच्छे पूज प्रहारक श्री रत्न सागर सूरीणां सदुपदेशात् श्रां कच्छदेशे श्री नलित पुर वास्तव्य | ओशवंशे लघुशाखायां नागडा गोत्रे सा० श्री राघव लक्ष्मण सद्भार्या देमतबाई तत्पुत्र सा० अभयचंदेन पुन्यार्थं शांतिनाथ विवं कारितं सकल सघेन प्रतिष्ठितं ॥
सेठ कस्तुरचन्दजी का मन्दिर
(656)
संवत १६९३ वर्षे वईशाष सुदि ६ गिरौ वास्तव्य श्रीपत्तन नगरे ओसवाल ज्ञातीय वृद्ध शाषायां सोनी तेजपाल सुत सोनी विद्याधर सुत सोनी रामजी भार्या वाई अजाई
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( १५५) सुत सोनी वमलदास सोनी धर्मदास सोनी रूपचन्द पुत्री वाई शीत्ति एतेन श्री विजयनाथस्य विवं कारापितं श्री तपगच्छाधिराज श्री विजयदेव सूरि राज्ये प्रतिष्ठितं आचार्य श्री विजयसिंह सूरिभिः।
श्री गौडी पार्श्वनाथजी का मन्दिर ।
( 657 ) सं० १३८३ वैसाख वदि ७ सोमे पल्लिवाल पदम भा. कोल्हण देवि श्रेयसे सुत कीकमेन श्री महावीर विंवं कारितं प्रति.
( 658 )
सं० १४८६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ नाहर गोत्रे सं । आसो सुतेन देवाकेन स्ववांधव सहजा हरिचन्द पनि षेता-श्रेयो निमित्त श्री विमलनाथ विवं कारापितं प्र. श्री हेम हंस सूरिभिः ।
( 659 ) सं० १५०५ वर्षे माघ सुदि १० रवी उकेश वंशे मीठडीआ सा. साईआ भार्या सिरीआदे पुत्र सा० मोला सा सुश्रावकेण भार्या कन्हाई लघु भ्रातृ सा० महिराज हरराज पघ राज भ्रातृध्य सा• सिरिपति प्रमुख समस्त कुटुंव सहितेन श्री विधिपक्ष गच्छपति श्री जयकेशर सूरिणापमुदेशेन स्व श्रेयोर्थं श्रो सुविधिनाथ विवं प्रतिष्टितं श्री संघेन ॥ आचन्द्रार्क विजयतां ॥
(660
)
सं० १५१५ वर्षे माह शुदि ५ शनी प्राग्वाट ज्ञा०म० राउल भा० राउलदे द्वितीया हांसलदे सु• मूलू भा० अर) सु० भोजा हासा राजा मा० भकू सु० हीरामाणिक हरदास
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(१५६ )
युतेन स्थपूर्विज पित अयोधू श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्टितं आगमगच्छे श्री श्री पाद प्रभ सूरिभिः सहयाला वास्तव्यः ।
( 661 )
सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि शनौ प्रा० सा० काला मा० मालहणदे पुत्र स० अर्जुनेन भा. देऊ भ्रातृ सं० भीम मा० देमति सुति हरपाल भा० टमकू युतेन स्व श्रेयसे श्री वासु पूज्य विवं का० प्र० श्री रत्नसिंह सूरिपद श्री उदय वल्लभ सूरिभिः ।
( 662 )
संवत १५२८ वर्षे वेशाष वदि ११ रवी श्री उकेश वंशे सा. चाचा मा० मायरि सुत राजाकेन भार्या वरजू सहितेन श्री सुविधिनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री जिनहर्ष सूरिभिः।
( 663 ) सं० १५२८ वर्षे फा० वदि ३ सोमे स० वाछा भा० राज सु० महीपालेन भा. अहवदे पुत्र वसुपालादि युतेन मा० सपूरों श्रेयोर्थ श्री मुनि सुव्रतनाथ विंवं कारितं प्र० तपा गच्छेश श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः ॥ श्री॥
( 664 )
संमत १५३० वर्षे माघ शुदि १३ रवी श्रीश्री यंशे श्रे० देवा मा० पाच पु. अ. हापा मा० पुहती पु. श्रे० महिराज सुश्रावकेण भा० मातर सहितेन पितृ श्रेयसे श्री अंचल गच्छेश जय केसरि सूरिणामुपदेशेन श्री सुमतिनाथ विवं कारितं प्र० श्री संघेन।
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( १५७ )
( 665 ) सं० १५३१ वर्षे माघ सुदि ३ सोमे श्री अंचल गच्छेश श्रीजय केशर सूरिणामुपदेशेन उएशवंशे स. जहता भार्या जहतादे पुत्र माईया सुश्रावकेण रजाई मार्या युतेन स्वश्रेय से श्री अजितनाथ विंवं कारितं प्रतिष्टितं सु---।
( 666 ) संवत १५३८ वर्षे वैशाख सुदि १० गुरौ श्री श्री वंशे ॥ श्री गुणोया भार्या तेजू पुत्र अमरा सुश्रावकेन भार्या अमरादे भात रत्ना सहितेन पितुः पुण्यार्थं श्री अंचल गच्छेरा श्रीजय केसरि सृरिणामुपदेशेन वासु पूज्य विवं का प्रतिष्ठितं ॥ श्री ॥
( 667 )
सं० १५६६ वर्षे माह वदि ६ दिने प्राग्वाट ६ ज्ञातीय पार विलाईआ भा. हेमाई सुत देवदास भा. देवलदे सहितेन श्री चंद्रप्रभ स्वामि विवं कारितं प्रतिष्ठितं द्विवंदनीक गच्छे अ० श्री सिद्धि सूरीणां पह श्री श्री कक्कसूरिभिः कालू - र ग्रामे ॥
( 668 ) सं० १५८३ वर्षे वैशाष सुदि ३ दिने उसवाल ज्ञाति मं० वानर भा० रहो पु० म० नाकर मं० भाजो म. ना. ना. हर्षादे पु० पघु वनु मोजा भार्या अवलादे एवं कुटुंब सहित स्वयो) सुविधिनाथ विं० कारितं प्रति. विवदणीक ग० १० श्री देव गुप्त सूरिभिः । भारठा ग्रामे।
( 669 ) सं० १६९४ व० माघ सुदि ६ गुरौ देवक पत्तन वास्तव्य उ० ज्ञा० वृद्ध सा० जसमाल सत सा. राजपालेन भा. वाह पूराई प्रमुख कुटुंव युतेन श्री सुमतिनाथ विंवं का० प्र० तप गच्छे १० श्री विजयदेव सूरिभिः ।
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( १५८ )
( 670 )
सं० १६८४ व० माघ सुदि ६ गुरी देवक पत्तन वास्तव्य उकेश ज्ञासीय बद्ध शाषायां सा० राजपाल सद्भार्या वा० पूराई सुत सा. वीरपाल नाम्न्या श्री संभव विवं प्र. सपा गच्छे श्री विजयदेव सूरिभिः।
यति कर्मचन्द हेमचन्दजी का मन्दिर ।
( 671 )
संवत १५५८ वर्षे चैत्र वदि १३ सोमे उपकेश ज्ञा० वर्द्धन गोत्रे श्री. बना भार्या वनादे सुत अजिणदास केन आर्या आलणदे पुत्र राजा सांडादि कुटुंव युतेन श्री शितलनाथ विवं का०प्र० पल्लीवाल गच्छे श्रीनन्न सूरिपह श्री उजोयण सूरिभिः ।
- ( 672 )
संवत १५५६ वर्षे वैशाष यदि ११ शुक्र उपकेश ज्ञातो पीहरेचा गोत्रे सा-गोवल पु. सा--भा. धारूपु० साह नर्वदेन भा० सो मादे पु० जावड। भा. चड --- पितुः श्री. श्री मुनि सुत्रत वि० का० प्र० श्री उपकेश-श्री कक्क सूरिभिः ॥ श्री कुक्कुदाचार्य संताने॥
गांव मन्दिर बड़ा।
- ( 673 ) ___ सं० १५०७ वर्षे माघ सुदि १३ शुक्र श्री श्रीमाल वंशे व्य० जीदा १ पुत्र व्य० जेताजंद २ पु० व्य० आसपाल ३ पु० व्य० अभयपाल? पु. व्य. वांका ५ पु. व्य० श्रीवाउडि६ पु. व्य. अणंत ७ पु० व्य० सरजा ८ पु० व्य० धींचा पु० व्य• राजा १० पु. व्य० देपाल ११
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(१५६ )
पु० वसनाना १२ पु० व्य० राम १३ पुत्र व्य० मीना भार्या मांकू पुत्र वसाहर रयणायर सुश्रावकेण मा० गउरी पु० भूभव पौत्र लाडण वरदे भातु समधरीसायर भ्रातृ व्यसगरा करणसी- सारंग वोका प्रमुख सर्व कुटुंव सहितेन श्री अंचल गच्छे श्री गच्छेश श्री जय केसरि सूरिणामुपदेशात् स्व श्रेयसे श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री संघेन श्री भवंतु ॥
" ( 674 ) सं० १५३१ वर्षे श्री अंचल गच्छेश श्रीजय केसरि सूरीणामुपदेशेन श्री श्री माल ज्ञासीय दो० मोटा भा. रत्तु पु० वीरा भा० वानू पु. लषा सुश्रावकेन भगिनी चमकू सहितेन श्री शांतिनाथ विवं स्वश्रेयोथं कारितं श्री सघ प्रतिष्ठितं ॥
' ( 675 ) सं० १५४८ वर्षे कातिक सुदि ११ गुरौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय धामी गोवल मा० आपू सु० वावा भा० पोमी सु० गणपति स्वयसे श्रीचन्द्रप्रभ स्वामि वि. का. प्र० चैत्रगच्छे श्री सोमदेव सूरि प्रतिष्ठितं ।
'( 676 ) सं० १५४६ वर्षे वै० सु० १० शु० श्री उ० ज्ञा० पीहरेवा गोत्र साह भावड भा० भरमादे आस्मश्रेयो) श्री जीवित स्वामी श्री सविधिनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री उसवाल गच्छे श्री कक्क सूरि पट्टे श्री देव गुप्त सूरिभिः ॥
- ( 677 ) संवत १५७२ वर्षे वैशाष सुदि १३ सोमे श्री श्री प्राग्वाट ज्ञातीय दोसी सहिजा सुत दो• भरणा मार्या कटि सुत दोसी वहु मार्या वल्हादे तेन आत्म पितृमातृणां श्रेयसे श्री
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( १६० ) संभवनायस्य चतुर्विशति पहः कारापित: श्री नागेन्द्र गच्छे १० श्रीगुणरत्न सूरि पह आचार्य श्री गुण बर्द्धन सूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री जीर्ण दूर्ग वास्तव्य ॥
( 678 ) सं० १६०३ वर्षे चैत्रवदि १३ रवी उ० टप गोत्रे---क सा० नरपाल आ० रंगाई पु. महिराज सोहराज धनराज श्री महिराज भार्या धनादे पु० धनासुतेन स्वपुण्यार्थं श्री पार्श्वनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री संडेर गच्छे भ. श्री यशोभद्र सूरि संताने श्री शांति सूरिभिः।
( 679 ) सं० १९२१ व० माह सु० ७ गुरुवासरे श्री जिनविंवं प्र० सा. जीवा अषाजो----।
दिगम्बरी पंचायती मन्दिर ।
( 680 ) ___ संवत १५२३ वर्षे वैशाख सुदि तेरस गुरौ श्रीमूलसंघे सरस्वति गच्छे बलात्कार गणे भहारक श्रोविद्यानंदि गुरूपदेशात् ब्रह्मपदमाकर कारापिता।
श्री शत्रुञ्जय तीर्थपर टोकोंमें पञ्चतीर्थीयों पर ।
साकरचंद प्रेमचन्द टोंक।
__(631 ) सं० १५.८ वर्षे मार्गशीर्ष वदि २ वुधे श्री दूताड़ गोत्रे सा. भूना भार्या मोल्ही एतयोः पुत्रण मा० नाजिग नान्याः पित्रो पु० श्रीचंद्रप्रभ विवं का० प्र० श्री वृहद् गच्छे श्री रत्नप्रभ सूरि पहुं श्री महेंद्र सूरिभिः॥
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( १९१)
प्रेमा भाई हेमा भाई टोंक।
( 682 ) सं० १५३२ वर्षे ज्येष्ठ वदि १३ वुधे आसापद आ (?) श्री श्री माल ज्ञातीय सा. मेवा सुत सा. कर्मण भार्या कर्मादे पुत्र व्य. समधर भार्या वईजू पुत्र व्य• सहिता व्य. सहिता व्य. सिहदत्त व्य. श्री पति आत्म श्रेयसे सा० सहिसाकेन भार्या अमरादे ---- युतेन श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्टितरच वृद्धसपा पक्षे श्री श्री उदय सागर सूरिभिः ॥ श्री॥
प्रेमचन्द मोदी टोंक।
। ( 683 ) सं० १३६८ वर्षे अ• जगधर भार्या दमल पुत्र तीकतेन भार्या सहजल सहितेन- श्रेयसे श्रीशांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रोगुणचंद्र सूरि शिष्यैः श्री धर्मदेव सूरिमिः।
- ( 684 ) सं० १३७८ प्राग्वाट ज्ञातीय ठ० वयजलदेव पुत्रिकाया वाएल - - मलधारि श्री पद्मदेव सृरि --- श्री तिलक सूरिभिः ।
। ( 685) सं० १८८१ वर्षे चैत्र सुदि ६ वार रवि दिने श्री वृद्धपोसल गच्छे- श्री माली वृद्ध शाखायां सा० माणकचंद कुवेरसा--भार्या वाई डाहीकेन श्रीसुमतिनाथजी विंवं भरापितः श्रीआणंद सोम सूरिजी प्रतिष्ठितं सुख श्रेयस्तु ।
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( १६२)
( 686 )
सं० १३१४ वै० सु० ३ ---विवं का० श्री चन्द्र सूरिभिः ।
( 687 ) सं० १३७३ ज्ये. सु. १२ श्री. राणिग भा० लाडी पु० महण सीहेनपितामाता अयोध श्री महावीर विंवं का० प्र०---- श्री सालिभद्र (?) सूरि श्री मणि भद्रसूरिभिः ।
' ( 688 )
सं० १३८७ - -- श्री आदिनाथ वि० का० प्र० श्री महातिलक सूरिभिः ।
( 689 )
सं० १४४६ वर्षे वै० व०३ सोमे प्रा. ज्ञा० पितृ धणसोह मात हांसलदे श्रेयसे सुत सादाकेन श्री अजितनाथ विंवं पंचतीर्थी का. प्र. श्री नागेन्द्र गच्छे श्रीरत्नप्रस सूरिभिः॥ छ ।
( 690 )
सं० १४६३ फा० सु. ६-- श्रीमाल -- श्री तेजपाल भा० ... श्रेयसे सुत भादाकेन श्री आदिनाथ वि० प्र० श्री जयप्रन सूरीणामुपदेशेन ।
( 691 ) सं० १४८६ वर्षे -- श्रीमाल .. आदिनाथ विवं प्र० श्री नरसिंह सूरीणामुपदेशेन ।
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( १६३)
( 692 )
सं० १५११ व ज्येष्ठ व० ६ रवी उसवाल ज्ञा० म० पूना भा. मेलादे सु० वीजल मा० डाही सयो श्रेयसे भातु आसुदत्त हीराभ्यां श्री विमलनाथ विवं का. पूर्णिमापक्षे भीम पल्लीय अहा. श्री जयचंद्र सूरीणामुपदेसेन प्रतिष्ठितं ॥
( 693 ) सं १५१९ व० फा० वा०४ गुरु श्रीमाली ज्ञा० म० गोवा भा० नाऊ सुत जूठाकेन पितृमातृ श्रेयोर्थ श्रीधर्मनाथ विवं का० प्र० श्रीब्रह्माणगच्छे श्री मुनि चंद्र सूरि पह श्री वीर सूरिभिः ॥ वलहारि वास्तव्यः ॥ श्री।
( 694 )
सं० १६८५ व० वै० सु० १५ दिने क्षत्रि रा. पुजा का .... श्री नमिनाथ विवं श्री विजयदेव सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
( 65 )
सं० १७७८ ५० --.. श्रीसुमतिनाथ वि. का. प्र. वि. श्रीधर्मप्रभ सूरिभिः पिप्पलगच्छे।
सेठ वाल्हा भाई टोंक।
(696 ) संवत १५२५ वर्षे फाल्गुन सुदि ७ शनौ श्रोमलसंघे सरस्वती गच्छे बलात्कार गणे श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये . श्रीपद्मनंदिदेवा तत्पदे १० श्री सकल कीर्ति देवा तत्पदे
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( १६४ ) H० श्री विमलेंद्र कीर्ति गुरूपदेशात् श्री शांतिनाथ हूंवड़ ज्ञातीय सा. नादू भा० अंमल सु० सा० काहा भा. रामति सु. लषराज भा. अजो भ्रा० जेसंग भा. जसमादे भ्रा० गांगेज भा० पदमा सु० श्री राजसचवीर नित्य प्रणमंसि श्रीः।।
( 697 ) संवत १६२८ वर्षे वै. बु० १० बुधे श्रीमालज्ञातीय महषेता भा• हासी सुत मूलजी मा० अहिवदे केन श्री वासपूज्य विवं कारापितं श्री तपा ओ होर विजय सूरिमिः प्रतिष्ठितं शुभं भवतु ॥ छ ।
मोती साह टोंक।
( 698 )
सं० १५०३ ज्येष्ठ शु० ६ प्राग्वाट स० कापा भार्या हासलदे पुत्र काणेन भार्या नागलदे पुत्र मुकुद नारद भ्रातृ धना श्रेयसे जीवादि कुटुम्ब युतेन निज पितृ श्रेयसे श्री नमिनाथ विंवं क० प्र० तपा गच्छे श्री जयचन्द्र सूरि गुरुभिः ।
मूल टोंक ।*
( 699 )
सं० १९९३ ना मिती ज्येष्ठ बदो १२ गुरुवासरे श्रोमकसुदाबाद वास्तव्य ओसवाल जातीय वृद्ध शाषायां नाहार गोत्रीय सा० खडग सिंहजी तत् पुत्र सा उत्तम चंदजी तत् भार्या वीवी मया कुवर श्री सिद्धाचलोपरि श्री ऋषभदेवजी परौ प्राशाद मध्ये
* श्री आदिश्वर भगवामके मूल मंदिरके ऊपर संग्रह कर्ताकी वृद्ध पितामही साहिवाकी प्रतिष्ठित यह आलेख का लेख है। इस महान तीर्थके और लेख प्रशस्ति आदि पश्चात प्रकाशित होगा।
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(१६५)
आलोषे प्रतिमा विधि मया कुंवर स्वहस्ते स्थापितं प्रतिष्टितं च श्रो वृहत खरसर गच्छे भ०। यं । जु । श्री जिन सौभाग्य सूरि जी विजै राज्ये पं० देवदत्त जी तत् शि० पं० हीरा चंद्रेण प्रतिष्ठितं च ॥ श्री॥
रैनपूर तीर्थ । मारवाड़के पंचतीर्थी में रैनपूर तीर्थ नलिनीगुल्म विमानाकार तेमंजिला अगणित स्तम्भोंसे भरा हुआ त्रिलोक्य दीपक नामक विशाल मंदिरके कारण जगत्प्रसिद्ध है। “आबुकी कोरणी रैन पूराकी मांडनी" देखने ही योग्य है।
मंदिरकी प्रशस्ति ।
( 700 ) स्वस्ति श्री चतुर्मुख जिन युगादीश्वराय नमः ॥ श्रीमद्विक्रमसः ११६६ संख्य वर्षे श्री मेदपाट राजाधिराज श्री वप्प १ श्री गुहिल २ मोज ३ शील ? कालसोज ५ अर्त भर ६ सिंह ७ सहायक ८ राज्ञो सुत युसस्व सुवर्णतुला तोलक श्रीखुम्माण ६ श्रीमदल्लट १० नरवाहन ११ शक्तिकुमार १२ शुचिवर्म १३ कीर्तिवर्म १४ जोगराज १५ वैरट १६ वंशपाल १७ बैरिसिंह १८ वीरसिंह १६ श्री अरिसिंह २० चोड़सिंह २१ विक्रमसिह २२ रणसिंह २३ क्षेमसिंह २४ सामंतसिंह २५ कुमारसिंह २६ मथनसिंह २७ पद्मसिंह २८ जैत्रसिंह २९ तेजस्विसिह ३० समरसिंह ३१ चाहूमान श्रीकोतक नृप श्रीअल्लावदीन सुरत्राण जैत्र वप्प वंश्य श्री भुवन सिह ३२ सुत श्रीजय सिंह ३३ मालवेश गोगादेव जैत्र श्री लक्ष्मसिंह ३४ पुत्र अजयसिंह ३५ प्रातु श्री अरिसिंह श्री हम्मीर ३७ श्री खेससिह ३८ श्री लक्षाहूयनरेन्द्र ३६ नंदन सुवर्ण तुलादिदान पुण्य परोपकारादि सारगुण सुरद्रुम विश्राम नंदन श्रीमोकल महिपति ४० कुलकानन पंचान
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( १६६ )
नस्य । विषम समाभंग सारंगपुर नागपुर गागरण नराणका अजयमेरु मंडोर मंडलकर बुदी खाटू चाट सुजानादि नानादुर्ग लीलामात्र ग्रहण प्रमाणित जित काशित्वाभिमानस्य। निज भुजोर्जित समुपार्जितानेक अद्र गजेन्द्रस्य। म्लेच्छ महीपाल व्याल चक्रवाल विदलन विहंगमेंद्रस्य। प्रचंड दोदंड खंडिताभिनिवेश नाना देश नरेश माल माला लालित पादारावंदस्य। अस्खलित ललित लक्ष्मी विलास गोविंदस्य । कुनय गहन दहन दवानलायमान प्रताप व्याप पलायमान सकल बलूस प्रतिकूल दमाप श्वापद वदस्य। प्रवल पराक्रमाकांत दिल्लिमंडल गूर्जरत्रा सुरत्राण दत्तासपत्त प्रथित हिन्दु सुरत्राण विरुदस्य सुवर्ण सत्रागारस्य षड्दर्शन धर्माधारस्य चतुरंगवाहिनी वाहिनी पारावारस्य कीर्त्तिधर्म प्रजापालन सत्रादि गुण क्रियमान श्रीराम युधिष्ठिरादि मरेश्वरानुकारस्य राणा श्री कुभकर्ण साव:पतिसार्वभौमस्य ४१ विजयमान राज्ये तस्य प्रासद पात्रेण विनय विवेक धैर्योदार्य शुभ कर्म निर्मल शीलाद्यद्भुत गुणमणिमया भरण मासुर गात्रण श्री मदहम्मद सुरत्राण दत्त फुरमाण साधु श्रीगुणराज संघ पति साहचर्य कृताश्चर्यकारि देवालयाडंबर पुरःसर श्री शत्रुजयादि तीर्थ यात्रेण । अजा हरी पिंडर वाटक सालेरादि बहुस्थान नवीन जैन विहार जीर्णोद्वार पद स्थापना विषम समय सत्रागार नाना प्रकार परोपकार श्री संघ सत्काराद्य गण्य पुण्य महार्य क्रयाणक पूर्यमाण भवार्णव तारण क्षम मनुष्य जन्म यान पात्रेण प्राग्वाट वंशावतंस स० सागर (मांगण ) सुत स० कुरपाल प्रा० कामलदे पुत्र परमार्हत घरणाकेन ज्येष्ठ भातृ सं० रत्ना भा. रत्नादे पुत्र सं० लाषा म(स)जा सोना सालिग स्व मा० स० धारल दे पुत्र जाज्ञा जावडानि प्रवर्द्धमान संतान युतेन राणपुर नगरे राणा श्री कुभकर्ण नरेन्द्रण स्वनाम्ना निवेशिते तदीय सुप्रसादादेशसस्त्र लोक्यदीपकाभिधानः श्री चतुर्मुख युगादीश्वर विहार कारितः प्रतिष्ठितः श्रीवहत्तपा गच्छे श्रीजगच्चंद्र सूरि श्रीदेवेंद्र सूरि संताने श्रीमत् श्रीदेवसुन्दर सूरि पह प्रभाकर परम गुरु सुविहित पुरंदर गच्छाधिराज श्रीसोमसुन्दर सूरिभिः ॥ कृतमिदंच सूत्रधार देपाकस्य अयं च श्रीचतुर्मुख विहार: आचंद्रार्क नंदाताद् ॥ शुभं भवतु ॥
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( १६७ ) पाषाण और धातुओंके मूर्ति पर।
( 701 )
सं० ११८५ चैत्र सुदि १३ श्री ब्रह्माण गच्छे श्री यशोभद्र सूरिभिः ---- स्थाने देव सरण सुत बीशके ---श्री गुह -- कारिता।
( 702 )
संवत १२६० वर्षे माघ सुदि ५ सुक्र ० वढपाल श्री. जगदेवाभ्यां श्रेयौर्य पुत्र सामदेवेन भातृ पून सिंह समेतेन चतुर्विंशति पट्ट कारितः प्रतिाष्ठतं वृहद्गच्छीयैः श्रो शांति प्रा सूरिभिः।
( 703 )
संवत १४९८ वर्षे सा० साजण भार्या सिरिआदे पुत्र चांपाकेन भार्या चापल देष्यादि कुटुम्ब युतेन अनागत चतुविंशत्यां श्री समाधि विवं का० प्र० सपा श्री सोम सुन्दर सूरिभिः।
(704 )
संवत १५०१ ज्ये. सुदि १० प्राग्वाट व्य. करणा सुत रामाकेन भार्या तीचणि युतेन श्रो क सुमतिनाथ विवं कारितं प्र० सपा श्री सोमसुंदर शिष्य श्री मुनि सुंदर सूरिभिः ।
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( १६८ )
( 705 ) - शत्रुजयके नक्सके निचे।
॥ॐ ॥ सं० १५०७ वर्षे माघ सु० १० अकेश वंशे स० भीला भा० देवल सुत सं० धर्मा सं० केल्हा भा० हेमादे पुत्र स० तोल्हा षांगां मोल्हा कोल्हा आल्हा साल्हादिभिः सकुटुवैः स्वश्रेयसे श्री राणपुर महानगर त्रैलोक्य दीपकाभिधान श्री युगादि देव प्रासादे ... धन्त -- महातीर्थ शत्रु जय श्री गिरनार तीर्थ द्वय पहिका कारिता प्रतिष्ठिता श्री सूरि पुरंदरैः ॥ सीर्थनामुत्तमंतीय नागानामुत्तमा नगः। क्षेत्राणामुत्तमं क्षेत्र सिद्धाद्रिः श्री जिं -- -मं ॥ १ श्री रुसुपूजकस्य ---।
v
( J06 )
संघत १५३५ वर्षे फाल्गुन सुदि-दिने श्री उसवंशे महोरा गोत्र सा० लाघा पुत्र सा० बीरपाल मा० नेमलादे पुत्र सा• गयणाकेन मा० मोतादे प्रमुख युतेन माता विमलादे पुण्यार्थं श्रोचतुर्मुख देव कुलिका कारिता ॥
-
( 707)
॥ ॐ ॥ सं० १५५१ वर्षे माघ बदि २ सोमे श्री मंडपाचल वास्तव्य श्री उश वंश शंगार सा• धर्मसुत सा० नरसिंग मा० मनकू कुक्षि संभूत सा० नरदेव भार्या सोनाई पुत्ररत्न सा० संग्रामेन कायोत्सर्गस्थ श्री आदिनाथ विवं कारितं । प्र० ३० तपा श्री उदयसागर सूरिभिः स्थापित श्री चतुर्मुख प्रासादे धरण विहारे ॥ श्री ॥
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( १६६ )
सहस्रकूट पर।
J( 708 )
सं० १५५१ व० वैशाख वदि ११ सोमे से. जावि भा० जिसमादे पु० गुणराज मा. सुगणादे पुजगमाल भा० श्री बच्छ करावित ( उत्तर तर्फ) वा. गांगांदे नागरदात वा० साडापति श्री मूजा कारापिता प्रा० नीत्तवि. रामा० भा० कम ---।
(709 ) संवत १५५२ ब० मिगशर सुदि गुरु दिने श्री पाटण वास्तव्य ओस वंस ज्ञातीय म. धणपति मा० चांपाई भाई मं० हरषा भा. कीकी पु. मं. गुणराज म० मिहपाल । करावत॥
J (110) सं० १५५६ वर्षे वे० सुदि ६ शनी श्री स्तम्भतीर्थ वास्तव्य श्री उस वश सा० गणपति मा० गंगादे सु० सा० हराज भा० धरमादे सु० सा. रत्नसीकेन भा० कपूरा प्रमु० कुटुंब युतेन राणपुर मंडन श्री चतुर्मुख प्रासादे देव कुलिका का --- श्री उसबाल गच्छे श्री देव नाथ सूरिभिः।
(111)
सं० १५५६ वर्षे वै० सुदि ६ शनी श्री स्तभ्मतीर्थ वास्तव्य श्री उसवंश सा० आसदे भार्या सपांड सुत सा० साजा मार्या राजी सुप्त सा. श्री जोग राजेन भ्रातृ सभागा स्वमार्या प्रथ० सोवती देती० सं० अखा ---सहजो सा० भाकर प्रमुख कुटुंब युतेन
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( १७०)
स्वयसे श्री राणपुर मंडन श्री चतुर्मुख प्रासाद देव कुलिका कारिता श्री चतुर्मुख । प्रासादे श्री उदय सागर सूरि श्री -ष्टि सागर सूरिणामुपदेशेन।
(712)
संघत १५८- वर्षे माघ सुदि १० उकेश वंशे छाजहड़ गोत्र सा० साध पुत्र सा० उमला मातृ पुण्यापं श्री धर्मनाथ का० प्र० श्री जिन सा--- सूरिभिः ।
पूर्व सभामण्डपके खंभे पर।
- ( 713 ) ॥ॐ॥सं १६११ वर्षे वैशाख शुदि १३ दिने पात साह श्री अकबर प्रदत्त जगद्गुरु विरुद धारक परम गुरु सपा गच्छाधिराज अद्यरक श्री ६ हीर विजय सूरीणामुपदेशेम श्री राणपुर नगरे चतुर्मुख श्री घरण विहार श्री महम्मदावाद नगर निकट वच्र्युसमापुर वास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातीय सा. रायमल भार्या वरजू भार्या सुरूपदे सस्पुत्र खेसा सा० नायकाभ्यां भावरधादि कुटुंब युताभ्यां पूर्व दिग् प्रतोल्या मेघनादाभिधो मंडपः कारितः स्व अयोर्थे ॥ सूत्रधार समल मंडप रिवनाद विरचितः ॥
दूसरे आंगनमें।
( 714 ) ॥ ॐ ॥ संवत १६४७ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्लपक्षा पंचम्यां तिथी गुरुवासरे श्री तपा गच्छाधिराज पातसाह श्री अकबरदत्त जगद् गुरु विरुद धारक भहारिक श्री श्री श्री ४ हीर विजय सूरीणामुपदेशेन चतुर्मुख श्री धरण विहारे प्रारवाद ज्ञातीय सुश्रावक साल
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(१७१) खेता नायकेन वा पुत्र यशवंतादि कुटुंम्बयुतेन अष्टचत्वारिंशत् (४८) प्रमाणानि सुवर्ण नाणकानि मुक्तानि पूर्व दिकृसत्क प्रतोली निमित्तमिति श्री अहमदाबाद पावें उसमा पुरतः ॥ श्रीरस्तु ।
(715)
नमः सिद्ध श्री गणेशाय प्रसादात् । संवत १७२८ वर्षे शाके १५९४ वर्तमाने जेठ सुदि ११ सोम जावर नगरे काठुह गोत्रे दोसी श्री सूजा भार्या कथनादे सुत गोकलदास भार्या गम्भीरदे अमोलिकादे सुत रणछोड़ हरीदास प्रतिष्ठित श्री संडेरगच्छे अहारक श्री देवसुंदर सूरि प्रतिष्ठित उपाध्याय श्री-न सुंदरजी चेला रतनसी
( ( 7165 सं० १७२८ मा० संडेरगच्छे उ० श्री जनसुंदर सूरि चेला रतन राणकपूर महानगर त्रैलोक्य दीपकाभिधाने ---।
( 717 ) संवत् १९०३ वर्षे वैशाख सुदि ११ गुरौ दिने पूज्य परमपूज्य भहारक श्री श्री कक्क सूरिभिः गण २१ सहिता यात्रा सफली कृता श्री कवल गच्छे लि० पं० शिवसुंदर मुनिना ॥ श्री रस्तु ॥
| ( 18 ) संवत् १९०३ वर्षे वैशाख सुदि ११ श्री जिनैश्वराणां चरणेषु। पं० शिवसुंदरः समागतः।
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(१७२)
सादडि। यह ग्राम रैनपुरसे ३ कोस पर है।
((:19 )
स्वस्ति श्री ऋद्धि रद्धि जया मंगलाभ्युदय श्री- अथ श्रीत--विक्रमादित्य समयात्.१६४८ वर्षे वैशाख मासे कृष्णपक्ष अष्टम्यां तिथौ लामदासार गंगाजल निर्मलायां श्री उसवाल ज्ञातौ कावेडिया गोत्र साह श्री भारमल गृहे भार्या बहू श्री मेवाडी--- तत्पुत्र साह श्री तारा चंदजी स्वर्गारूढो जातः तत्र बहू श्री तारादे १ बह ओ त्रिभवणदे २ बहू श्री असडवदे ३ बहू श्री सोनागदे ४ सहगत ---।
। नाकोडा।
मारवाड़ के मालानी-परगने के नगरके पास पहाड़ोंके बीच यह एक प्राचीन स्थान है।
- ( 720 ) संवत १६२१ --- पार्श्वनाथ जिन चैत्ये चतुष्किका कारापिस श्रावक संघेन ।
( 721 ) - - संवत १६३८ आशाढ़ सुदि २ गुरुवार ---।
( 722 ) संवत १६४२ भाद्रपद सुदि१२ सोमवार ---राउल श्री मेघराजजी विजय राज्ये --।
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( १७३ )
(723) संवत १६६६ भाद्रपद शुक्ल पक्ष तिथि द्वितीया दिने शुक्रवासरे वीरमपुर श्री शांतिनाथ प्रासाद भूमि गृहे श्री खरतरगच्छे श्री जिन चंद्र सूरि विजयाधिराज आचार्य श्री सिंह सुरि राज्ये श्री संघेन लिखितं ।
7 (724)
उपाध्याय श्री ५ देवशेखर विजय राज्ये ॥ ॥ॐ॥ सं० १६ असाढ़ आदि ६७ वर्षे भाद्रपद शुक्ल पक्ष श्री नवमि दिने शुक्रवासरे श्री वीरमपुरवरे श्री पार्श्वनाथ श्री महावीर स्वामी श्री पल्लीवाल गच्छे महारिक श्री यशोदेव सूरि विजय राज्ये राउल श्री तेजसोजी विजय राज्ये कारित श्री संघेन पंडित श्री सुमति शेखरेण लिपीकृतं सुत्रधार दामा तत्पुत्र मना धना वरजांगेन कृतं ॥ भ्रात्रीज सामा मेया कला पुत्र कल्याण ॥ भानेज नासण श्री पार्श्वनाथ श्री महावीरजी रक्षा शुभं भवतु ---
(725)
संवत् १६६८ वर्षे द्वितीय आसाढ़ शुक्ल ६ शुक्रवासरे उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रे श्री तेजसिंहजी द्राज्ये श्रीतपागच्छे अहारक श्री विजय सेन सूरि विजय राज्ये आचार्य श्री विजयदेव सूरि विजय राज्ये।।
। ( 728 )
स्वस्ति श्री तथा मंगलमभ्युदयश्च । संवत १६७८ वर्षे शाके १५४४ प्रवर्तमान द्वितीय आसाढ़ सुदि २ दिने रविवारे रावल श्री जगमालजी विजय राज्ये श्री पलिकीय
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( १७४ )
गच्छे महारक श्री यशोदेव सूरिजो विजयमाने श्री महावीर चैत्ये श्री संघेन चतुष्किका कारिता श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ प्रसादात् शुभं भवतु । उपाध्याय श्री कनक शेखर शिष्य पं० सुमति शेखरेण लिखित श्री छाजाड़ दीव सेखाजी संघेन कारापिता सूत्र धारः ऊजल भातु मामा घडिता भवन कचरा--।
छत्रीमें।
(727)
॥ * ॥ श्रीमत् श्री जिन भद्र सूरि भुत्याणां बुजाप्तोदया। धन्याचार्यपदावदातवदिताः श्री कीर्तिरत्नाह्वया ॥ नम्रा नम्र सरोज रस्मणि विना प्रोच्छासितां हिद्वया। राजा नन्द करा जयंतु विलसत् श्री शंखबालान्वया ॥ - - - - - -
बालोतरा। श्री शीतलनाथजी का मंदिर धातु मूर्तियों पर।
. (728 )
सं० १२३४ ज्येष्ठ सुदि ११ सा० जणदेव आर्या जेउत पुत्र वीरा देवेन भात वाहड़ वीरदे श्रेयार्थमकारि प्र. देव सूरिभिः ।
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(
५)
सं० १४०१ वैशाष : श्री आदित्य नाग गोत्रे सघ. कुलियास्मजा सा० काम पुत्रेण स - - पुत्र श्रेयसे श्री शांति विवं कारितं प्रति श्री कक्क सूरिभिः ।
(730)
___ सं० १५०१ वर्षे माघ यदि ६ बुधे उपकेश ज्ञाती आविणाग गोत्र सा० कालू पु० वील्ला भार्या देवा आत्म श्रेयसे श्री श्रेयांस विवं कारितं श्री उकेश गच्छे ककुदाचार्य संताने प्रतिष्ठितं श्री कुकुम सूरिभिः ।
। ( 731 )
__ सं० १५०४ वैशाख सु.७ दिने श्री उकेश वंशे सा० डोडा पुत्र सा नाय ---- सहितन स्वपुण्यार्थं श्री पार्श्व जिन विवं का प्र. श्री खरतरगच्छे श्रोजिन भद्र सूरिभिः ।
( 732 )
सं० १५०६ वर्षे कार्तिक सु० १३ गुरौ उपकेश वंशे वहरा गोत्र सा०--- पुत्र हरिपाल भार्या राजलदे पुत्र सा. धरमा आर्या धनाई पुत्र सा० सहजाकेन स्वपित पुण्यार्य श्री वासुपूज्य विवं कारितं । श्री खरतर गच्छे श्री जिनराज सूरि प श्री जिन भद्र सूरि युगे प्रधान गुरुभिः प्रतिष्ठितः।
( 733 )
__ सं० १५०० वर्षे -- उपकेश वंशे बहरा गोत्र सा० - - - श्री सुमतिनाथ विवं कारिता श्री खरतर गच्छे श्री जिनराज सूरि पह श्री जिन अद्र सूरिभिः प्रां ष्ठितं ।
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( १०६ )
(734)
सं० १५२५ वर्षे मार्ग शीर्ष बदि शुक्र श्री उपकेश ज्ञातीय त्री दूगड़ गोत्र मं पनरपास पु० बछराज भा० कम्मी पुत्र सारंग सुदय वच्छाभ्यां पितु पुण्यार्थं श्री कुंघुनाथ विंवं कारिता प्र० श्री रुद्र पल्लीय गच्छे श्री देवसुंदर सूरि पट्ट े भ० श्री सोम सुंदर सूरिभिः ।
/
(735)
सं० १५३७ वर्षे वैषाख सुदि ७ दिने श्रो उपकेश वंशे व - रा गोत्र े अभयसिंह संताने सा० कुता भार्या लषमादे सा० डाहत्थ श्रावण भा० पूराई पुत्र मरा जीवा देवादियुतेन श्री धर्मनाथ विंवं का० श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरि पट्ट े श्री जिनचंद्र सूरि पह त्री जिन समुद्र सूरिभिः प्रतिष्ठितः ॥
भावहर्ष गच्छके उपासरे में केशरियानाथजी का देरासर ।
॥ ॐ ॥ सं० १०६ - वैशाख बदि ५
(736)
• प्रतिमा कारितेति ।
(737)
सं० १५३३ श्री माल फोफलिया गोत्रे सा० बूहड़ भा० नापाई पुत्र बुढाकेन प्रा० कुटु' बेन युतेन श्रीविमलनाथ विंवं का० प्र० श्रीधर्म घोष गच्छे श्री पद्मानन्द सूरि श्री ।
(738)
सं० १७१८ सा० रामजा सुत तेजसी श्री आदिनाथ विंवं का० प्र० श्री विजय गच्छे वापणा सुमति सागर सूरिभिः आचार्य श्री
---|
--
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( १७७)
वाड़मेड़। गोपोंका उपासरा । धातुके मूर्तियों पर।
( 739 ) स० १५२७ व० माह शु० १३ उ० सा० साल्हा भा० ह्वीसलदे पुत्र सा० गुण दत्त न भा. गेलमदे पु० सिहणा गोपादि कु० युतेन श्रीसुमतिनाथ विवं का. प्र. तपागच्छे श्री सोम सुन्दर सूरि संताने श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः ॥ श्री ॥
(740)
सं० १५८० वर्षे वैशाष सुदि १३ शुक्र श्री श्री माल ज्ञा० म० डोरा भा. सषो सु० सं० हेमा मा० हमीरदे मं० प्रचाकेन भा० वमी सु० अमरा युतेन स्वश्रेयसे श्री सुविधिनाथ विवे श्री पू० श्री पुण्य रत्न सूरि पदे श्री सुमति रत्न सूरिणामुपदेशेन कारित प्रतिष्ठितंच विधिना ॥ श्रो॥
यति इंद्रचन्दजीका उपासरा ।
( 741 ) सं० १५१२ वर्षे बैशाष सुदि ५ श्री श्रीमाल ज्ञा० ऋ० सहसा मा० मोली पुत्र जिनदास महाजल युतेन स्वयसे श्री कुंथुनाथ विंवं का. आगम गच्छे श्री हेम रत्न सूरिणा मुपदेशेन प्रतिष्ठितः ॥
J (742) सं० १५१४ मा-शु० - प्राग्वाट ज्ञा० सल्हाकेन भा० वर्जू सुत सा. वीरा माणिक
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(805)
छादि कुटुंब युतेन पितृव्य सा० चांपा श्रेयोर्थं सुमति नाथ विंवं कारितं प्र० तपा श्री सोम सुन्दर सूरि श्री मुनि सुन्दर सूरि पट्ट े श्री रत्न शेखर सूरिभिः ।
Mast मन्दिर श्रीपार्श्वनाथजीका ।
सभा मण्डप ।
J
( 743 )
ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय नमः ॥ संवत १८५८ वर्षे माह सुदि ५ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथौ सोम वासरे राठउड़ वंशे राउत श्री उदयसिंह श्री वाकू पत्राका नगर राज्ये कुपा - श्री त्रां - कीय सहिभिः ॥ श्री विधि पक्ष मुख्याभिधान युग प्रधान श्री पता श्री धर्म मूर्ति सूरि अंचल गच्छीय समस्त श्री संघ में शांति श्रेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ प्रासाद कारितः ।
पञ्च तीर्थियों पर ।
( 744 )
सं० १९०३ माह यदि ५ शुक्रे श्री उदयपुर नगर वास्तव्य श्री सहस्र फणा पार्श्वनाथजी की घरिसासांता संघ समस्त मीणक बाई श्री शांतिनाथ पञ्च तीर्थ कारापिसं सपा गच्छे पं० रूप विजय गणिभिः प्रतिष्टितं च ।
दुसरा मंदिर |
---
(775)
संवत १५४० वर्षे जेष्ठ सुदि १० सोमे श्री श्री माल ज्ञातीय पितामह रा० बस्ता पितामही कोल्हणदे सुत पितृ स० पवा मातृ राजू श्रेयोर्थं सुत सं० सहसा सागा सहदे
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( १७६ ) धरणा एत श्री आदिनाथ मुख्यश्चतुर्विंशति पहः कारितः पुनिम पक्ष साघु रत्न सूरिणामुपदेशेन प्रतिष्ठित शंडलि वास्तव्यः ।
V (746 )
सं० १५२० श्री मूल संघेन महारक श्री विजय कीर्ति श्री.
सभा मंडप।
(747 )
॥ॐ ॥ संवत् १६७६ वर्षे माघ सुाद १५ रात्र वासरे खरतर गच्छ महारक श्री जिन रत्न - - पुष्य नक्षत्र राऊत श्री उदयसिंहजा विसरि विजय राज्ये जयराज्ये ॥ श्री सुमसिनाथ रउ नववु कीउ श्री संघ करावउ सूत्रधार पीसा पुत्र नसा नववु कीउ। सूत्रधार नारयण नट सेध धन ।
(748 ) सं० १९२८ वर्षे भद्रपद कृष्णपक्ष ७ बुध - - वृहत्खरसर गच्छे प्रहारक श्रीमगत सुर रावतजी श्रो वाकीदासजी--। जुहारसिंग विजय राजे ओ सुमतनाथजीशिणगार कीधी..।
( 749 )
॥ ॐ ॥ संवत १३५२ वैशाख सुदि ४ श्री वाहडमेरी महाराज कुल श्री सामंत सिंह देव कल्याण विजय राज्ये तन्नियुक्त श्री करण मं० वीरामेल वेलाउल भा० मिगन प्रभुत बोधं अक्षराणि प्रयच्छति यथा। श्री आदिनाथ मध्ये संविष्ठमान श्री विघ्नमर्दन
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(१९.)
क्षेत्रपाल श्रीचउंड राज देवयो उअय मार्गीय समायात सार्थ उष्ट्र १० वृष २० उभयादपि उर्दू सार्धं प्रति द्वयो वयोः पाइला पदे प्रियदश विशोप का० अौटुंन ग्रहीतव्याः। असो लागो महाजनेन सामतः॥ यथोक्तं बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजमिः सगरादिमिः । यस्य यस्य यदा भूमी तस्य तस्य तदाफलं ॥१॥छ ।
मेडता
यह भी मारबाडका एक प्राचीन नगर है।
श्री आदिनाथजी का मंदिर-डानियोंका मुहल्ला ।
(750) संवत १६७७ वसे ॥ वैशाख मासे शुक्ल पक्ष तृतीयाया तिथौ शनि रोहिणी योगे श्री मेडता नगर वास्तव्य श्री माल ज्ञातीय पाताणी गोत्रीय सं भोला भार्या मोजलदे पत्रण संघपसि तसोकेन स्व० भा० चतुरंगदे पुत्र डंगसी प्रमुख कुटुंब युतेन स्व श्रेय से स्वकारित रंगदुत्तौंग शिखर वद्ध श्री ऋषभदेव विहार मंडन सपरिकर श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठापितंच प्रतिष्टायां प्रतिष्ठितंच तपागच्छे श्रीमदकव्वर सुरत्राण प्रदत्त - - - क श्री शत्रुजयादि कर मोचक अहारक श्री हीर विजय सूरि राज पहोदय पर्वत सहस्र किरण यमान युग प्रधान महारक श्री विजयसेन सूरिश्वर पह प्रभावक श्री श्री मद् जांहगीर साहि प्रदत्त श्री महासपा बिरुदधारक श्री महावीर तीर्थंकर प्रतिष्ठित श्री सुधर्म स्वामि पट्टधर - - सुविहित सूरि समा शृगार भहारक ओ विजय देव सूरिभिः ।
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( १८१ )
सर्व धातुकी मूर्तियों पर।
( 751 ) सं० १५३४ वर्षे आषाड़ सुदि २ गुरौ भंडारी गोत्रे सा० वील्हा संताने मं० मायर मार्या सुहदे पुत्र स० अस्का भार्या लषमादे भात सांपायने श्री कुंथु नाथ विवं कारितं अयसे प्रति संडेरग गच्छे श्रोईसर सूरि पह ओ शांति सूरिभिः ।
तपगच्छका उपासरा ।
(752 ) __सं० १६५३ वर्षे चै. शु०१ श्री कंधनाथ विवं गांदि गोत्रे श्रो-स. सुरताण मा० सवीरदे पुत्र सादूल --- श्री तपागच्छे श्री विजयसेन सूरि - - पं० विनय सुंदर गणि प्रतिष्ठितं।
श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर।
( 753 ) सं० १५२८ वर्षे फा० बदि १३ ओ माली श्री समरा मा० धर्मिणि पु० श्री. मलू भा. अ. काका भा० का पुत्री लापू नाम्न्या पु० सोंगा भा० बाधी २० कुटुम्ब युतया श्री शांति विवं का० तपा श्री क्षम सुन्दर सूरि---।
(734 )
सं० १६७७ वर्षे अक्षय तृतीया दिने शनि रोहिणी योगे मेडता नगर वास्तव्य सा०
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(१८२)
लापा मा० सरू पदे नाम्न्या श्री मुनि सुव्रत विवं कारितं प्रतिष्ठितं अहारक श्री विजयसेन सूरीश्वर पह प्रभाकर जिहांगीर महातपा विरुद विख्यात युग प्रधान समान सकल सुविहित सूरि सभा शृंगार महारक श्री ५ श्री विजय देव सूरि राजेंद्रैः।
श्री वासुपूज्यजी का मंदिर।
(15) सं० १५३२ वर्षे ज्येष्ठ बदिा १३ बुध प्राग्वाट ज्ञा० श्री. आसधर मार्या गागी सुत मदन दमा जिनदास गीवा पुत्र पौत्रादि सहितेन आत्म श्रेयाय श्री श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री वहत्तपा गच्छै श्री जिनरत्न सूरिभिः ।
(735) सं० १६८७ व. ज्येष्ठ सुदि १३ गुरौ स० जसवंत भा. जसवंत दे पु० अचलदास केन ओ विजय चिन्तामणि पार्श्वनाथ विवं का० प्र० सपा श्री विजयदेव सूरिभिः ।
श्री धर्मनाथजी का मंदिर।
J(757 ) सं० ११५० वर्षे फाल्गुन सुदि १० बुधै ज० गुगलिया गोत्र सा० चीरा ५० सोहाकेन श्री आदिनाथ वियं स्व अयसार्थे संडर गच्छे प्रतिष्ठा श्री शांति सूरिभिः।
___J ( 758 )
सं० ११६६ वर्षे माघ सुदि ६ रवी जकेश ज्ञा० टप गोत्रे सा० ललना मा. ललनादे पुत्र लपमा भार्या लाखण दे पुत्र दील्हा मार्या चील्हणदे पुत्र घडसी सकुटुम्वेन श्री
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( १८३ ) वासपूज्य विवं कारापितं श्री संडेर गच्छे श्री यशोभद्र सूरि संसाने प्र० श्री सुमति सूरिभिः।
(759 )
सं० १५१५ वर्षे आपाढ़ बदि १ दिने श्री उकेश वंशे धुल्ल गोत्र सा० सार्दूल जाया सुहवादे पुत्र स० पासा श्रावकेण आर्या रूपादे पुत्र पूजा प्रमुख परियार युतेन श्रीशांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रो खरतर गच्छे श्री जिन भद्र सूरिभिः ।
4 (760) सं० १५१७ वर्षे माह सुदि १० सोमे सोनी गोत्र सा० धन्ना पुत्र सा० हिमपाल पुत्राभ्यां सा. देवराज खिमराजाभ्यां स्वपितृ पुण्यार्थं श्री श्रेयांस विंवं कारित प्रतिष्ठित तपागच्छ महारक श्री हेम हंस पदे श्री हेम समुद्र मूरिभिः ।
" (81)
___ सं० १५४७ वर्षे माध सु. १३ रवौ श्रीमाल दो शिवा भार्या हेली सुत दो घांईया केन भा० सलवू सु० दो० दासा संना कणेसी गांगा पौत्र कमल सीक भार्या चाडा दाया प्र. कुटुंबयुतेन श्री शितल विवं कारितं श्री मधूकरा खरतर ---।
(762) सं० १५५६ वर्षे चैत्र सु०७ सोम प्राग्वाठ ज्ञातीय सा. चां(?) दरा भार्या संलषणदे पुत्र लोला सा. पीमा मा. पंतलदे --- सकुटुम्बयुतेन आत्म पु. श्री चंद्रमा स्वामि विवं का० अंचल गच्छे श्री सिवांश सागर सूरि विद्यमाने रा. भाव वर्द्धन गणीमामुपदेशेन प्रतिष्ठित श्रीसंघेन -..।
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(१४)
( 76s ) सं० १५६८ वर्षे माघ सुदि ५ दिन श्री माल वंशे भांडिया गोत्रै सा० साहा पुत्र सा० भरहा सुत सा. नरपाल भा. नामल दे स्वपुण्यार्थं श्री श्री श्री श्रेयांस विंव कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिन हंस सूरिभिः खरतर गच्छे ।
। (764 ) सं० १५७२ वर्षे वैशाष सु०२ सोमवारे पट बड गोत्र सा० सा- र --- अयसे श्री आदिनाथ विंवं कारापितं श्री प्रभाकर गच्छे अट० पुण्यकीर्ति सूरि पह महा० श्री लक्ष्मीसागर सूरि प्रतिष्ठितं ।
( 765 )
सं० १५८१ वर्षे श्री विक्रम नगरे ऊकेश वंशे वादि-रा गोत्रै सा० तेमंजउ सा. जीवास श्रावकेण भार्या नीवदे पुत्र जेवा काजी ताल्हण पंचायण भारमल सांदा नरसिंह सहितेन श्री श्रेयांस विवं कारित --1
__
(106)
सं० १८८३ माघ व सु०५ -- पार्श्वनाथ विवं श्री विजय जिनेन्द्र सूरि --।
श्री आदिश्वरजी का नवा मंदिर।
(767 ) सं० १५०७ वर्षे फा० ब०३ वुधे । ओश वंशे वहरा हीरा भा० हीरादे पु० वा घेता
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( १६५ )
भा० तलदे पु० व० हियति पितृ श्रेयसे श्री शांतिनाथ विंवं कारितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरि श्री जिन सागर सूरिभिः प्रतिष्ठिता ॥
( 768 )
सं० १५२७ वर्षे वैशाख बदि ६ शुक्र श्री माल ज्ञातोय पितामह वीरा पितामही वीरादे सुत पितृ डाहा मातृ जासू श्रेयोर्थं सुस राजा भोज ठाकुर सी एवं श्री विमलनाथ मुख्य चतुविंशति परः कारितः श्री पूणिमा पक्ष श्री साधु रत्न सूरि पट्ट े श्री साधु सुंदर सूरीणामुपदेशेन प्रति० विधिना श्री संघेन आंवरणि वास्तव्यः ।
/ (769)
संवत १५७९ वर्षे माघ सुदि १३ दिने बुध वासरे स्तम्भ तीर्थ वासी ऊकेश ज्ञातीय सा० पातल भा० पातलदे पुत्र सा जइता भार्या फते पुत्र सा० सीहा सहिजा भा• गुरी (?) पुत्र सा० पडलिक भा० कमला पुत्र सा०जीराकेन भा० पुनी पितृव्य सा० सीमा पापा वजा कुटुंब युसेन पितृवचनात् स्वसंतान प्रयोर्थे श्री सुमतिनाध विंवं कारितं प्रति० तपागच्छे श्री सोम सुन्दर सूरि संताने श्री सुमति साधु सू० पह े श्री हेम बिमल सूरिभिः महोपाध्याय श्री अनंत हंस गणि प्र० परिवार परिवृत्तौ ।
/ (770)
संवत १६११ वर्षे वृहत खरतर गच्छे श्री जिन माणिक्यसूरि विजय राज्ये श्री माल ज्ञातीय पापड़ गोत्र ठाकुर रावण सत्पुत्र उणगढमल तद्भार्या नयणी तरपुत्र जीवराजेन श्री पार्श्वनाथ परिग्रह कारापितं धर्म सुंदर गणिना प्रतिष्ठितं शुभ भवतु ।
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(१८६)
(771)
सं० १६७७ ज्येष्ट वदि ५ गुरो ओसवाल ज्ञातीय गणधर चोपड़ा गोत्रीय स. नामा मार्या नयणादे पुत्र संग्राम भार्या सोली पु० माला भार्या मालहणदे पु० देका मा देवलदे पु० कचरा मायां कउडमदे चतुरंगदे पुत्र अमरसी भार्या अमरादे पुत्र रत्नसेन श्री अर्बुदाचल श्री विमलाचलादि प्रधान तीर्थ यात्रादि सद्धर्म कर्म करण सम्प्राप्त संघपति तिलकेन श्री मास करणेन पितृव्य चांपसी प्रोतु अमीपाल कपूरचंद स्वपुत्र ऋषभदास सूरदास भातृव्य गरीवदास प्रमुख सस्त्रोक परिवारेण संपरूप जी कारित शत्रुजयाष्टमोद्धारमध्य स्वयं कारित अवर विहार शृगार हार श्री आदिश्वर विवं कारित पितामह बचनेन प्रपितामह पुत्र मेधा कोजा रताना समुख पूर्वज नाम्मा प्रतिष्ठितं श्री वृहत्खरतर गच्छाधीश्वर साधूपद्रववारक प्रतियोधित साहि श्रीमदकवर प्रदत्त युगप्रधान पद धारक श्रोजिन चन्द्र सूरि जहांगीर साहि प्रदत्त युगप्रधान पदधारक श्री जिन सिद्ध सूरि पह पूर्वाचल सहन करावतार प्रतिष्ठित श्री शत्रजयाष्टमोद्धार श्री भाणवट नगर श्री शांतिनाथादि विबं प्रतिष्ठा समयनि-रत्सुघार श्री पार्श्व प्रतिहार सकल महारक चक्रवर्ति श्री जिनराज सूरि शिरः शृगार सार मकटोपमान प्रधानैः।
(772) सं० १७०० व द्वि० चै सित ८ गुरौ गोलकुंडा वा० सा० मेघा मा० मीहणदे सुत सा. नानजी नाम्ना श्री मुनि सुब्रत विवं का० प्रतिष्ठितं तपाधिपति परम गुरु महारक श्री विजय सेन सूरि पहालङ्कार पसिस्याहि श्री जहांगीर प्रदत्त महातप विरुध धारि श्री विजयदेव सूरिभिः।
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________________
( १८७ )
चिंतामणि पार्श्वनाथजीका मंदिर |
( 773 )
सं० १६६९ वर्ष माघ सुदि ५ शुक्रवारे म्हाराजा धिराज महाराज श्री सूर्य सिंह विजय राज्ये श्री उपकेशि ज्ञातीय लोढा गोत्र स० टाहा तत्पुत्र स० राय मल्ल भार्या रंगादे तत्पुत्र स० लापाकेन भार्या लाडिमदे पुत्र ॥ वस्तपाल सहितेन श्री पार्श्वनाथ विंवं कारित प्रतिष्ठित श्रीमत श्रीवृहत्खरतर गच्छे श्री आद्यपक्षीय श्री जिन सिंह सूरि तत्पहोदयाहि मार्तंड श्री जिन चंद्र सूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥
पंचतीर्थयों पर ।
( 774 )
सं० १४७९ वर्षे माघ सु० १३ बुध दिने ऊक्रेश वंशे वापणा गोत्र सा० सोहड सु० दाद भा० ण पितृ - निमित्त श्री शांतिनाध विंवं का० प्र० उएरागच्छे श्री देव गुप्त सूरभिः ।
66
(775)
सं० १५१० जेष्ठ सु० ३ दिने प्राग्वाट पोपलिया बासिया सीरा भा० घीरी पुत्र सा० डुंगर भ्रातृ सा० खेतसि सहसा समरंदे धारकमी भार्या जासलि जरा भाई कर्मादि कुटुम्ब युतेन श्री मुनि सुव्रत (?) दिथं का० प्र० तपा श्री सोमसुन्दर सूरि श्री मुनिसुन्दर सूरि प े श्री रत्नशेखरसूरिनिः ।
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( १८६)
(776) सं० १५२९ वर्षे माघ यदि ५ रयो ऊकेश ज्ञातीय श्री दणवट गोत्रे सा• भीम मा. भरमादे पु० ---दि कुटुंब युतेन श्री कुघुनाथ विंवं का. प्र. श्री धर्मघोष गच्छे श्री प्रज्ञ शेखर सूरि पढे श्री पद्मानन्द सूरिभिः ।
(177) ___ सं० १५३२ जैष्ठ सुदि १३ बुधे प्राग्वाट ज्ञातीय सा० मही श्री भा० राणी सुत हीर भा० भरमी नाम्न्या स्व अयार्थ श्री सुविधिनाथ विंबं का० प्र. तपा श्री रत्न शेखर सूरि पट्टाल'करण श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः ॥ श्री ॥
( 778 ) __ सं० १५४७ वर्षे वैशाख सुदि २ सोमे श्री काष्टा -... श्री सोम कीर्ति आ. श्री बिमलसेन नारसिंह ज्ञातीय बोरठेच गोत्रे सा० षेईथा मा० खेइ पुत्र सा० भीमा जा० प्रटी श्री आदि -- कारापितं नित्यं प्रणमसि ।
( 770 ) सं० १५५२ वर्षे माध सु०५ प्रा० ज्ञा० सा• पुंजा भार्या रमक पुत्र - सोमकेन भा. गौरी पुत्र सा० हर्षादि कुटुम्ब युतेन श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छे श्री सोमसुन्दर सूरिभिः श्री इन्द्रनन्दि सूरि श्री कमल कलस सूरिभिः।
(780 )
सं० १६५६ वर्षे वैशाष मासे सित ३ दिने रविवार उकेश वंशे लोढा गोत्र संघवी टोहा भार्या तेजलदे पुत्र रा० रायमल्ल भार्या रंगदे पुत्र सं० जयवन्त भीमराज तयो
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( १८६ ) भगिनी सुश्राविका वोरा नाम्न्या स्वयसे श्री अजित नाथ विंबं कारित प्रतिष्ठित श्री चतुर्विशति जिन बिंबं प्रतिष्ठित श्री वृहत्खरतर गच्छे श्री जिन देव सूरि तत्प श्री जिनहंस सूरि तत्पहालङ्कार विजयमान श्रीजिनचंद्र सूरिभि सकल संघेन पूज्यमान आचन्द्रार्क नन्दतात् शुभं भवतु ॥
कडलाजी का मंदिर।
(781 )
संवत १९८४ वर्षे माघ शुदि १० सोमे सघ हरषा मा० मीरा दे तत् पु० संघवो जसवंत मा. जसवंत दे तत्पुत्र सं० अचलदाससं० शामकरण कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे भहारिक श्री विजय चंद्र सूरिभिः।
महावीरजी का मंदिर।
( 782 ) सं० १६५३ वर्षे वै० शु०४ घुधे श्री शांतिनाथ विवं गादहीआ गोत्रे सं० सुरताण भा• हर्षमदे पु० स० हांसा भा० लाडमदे पु० पदमसी कारितं प्रतिष्ठतं श्री तपागच्छे श्री हीर विजय सूरि पह श्री विजयसेन सूरिभिः ॥ पं० विनय सुन्दर गणिः प्रणमति । श्री रस्तु ॥
(783)
॥ॐ ॥ संबस १६८६ वर्षे वैशाख सु०८ महाराज श्री गजसिंह विजयमान राज्य श्री मेडता नगर वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय सुराणा गोत्र वाई पूरा नाम्न्या पु० सक
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(१९०) मणादि सपरिवार - श्री सुमतिनाथ विं कारित प्रतिष्ठित तपागच्छाधिराज महारक श्री बिजय देव सूरिभिः स्वपद प्रतिष्टिताचार्य श्री श्री श्री श्री विजय सिंह सूरि प्रमुख परिकर परिवृतैः॥
(74)
संवत १६७७ वर्षे वैशाख मासे अक्षय तृतीया दिवसे श्री मेडता वास्तव्य अ. ज्ञा. समदडिआ गोत्रीय सा० माना मा० महिमादे पुत्र सा० रामाकेन भ्रातृ राय संगच्छात मा० केसरदे पुत्र जईतसी रूपमीदास प्रमुख कुटुब युतेन श्री मुनि सुव्रत विंवं का० प्र० सपा गच्छे अहारक श्री पं श्री विजय सेन सूरि पहालङ्कार H० श्री विजय देव सूरि सिंहैः।
(715) सं० १६७७ ज्येष्ट बदि गुरौ श्री मोसलवाल ज्ञातीय गणधर चोपड़ा गोत्रीय स० कचरा आर्या कउडिमदे चतुरगद पुत्र स० अमरसी मा० अमरादे पुत्ररत्न स० अमीपालेन पितृव्य चांपसी वृद्ध भातृ स० आसकरण लघु भातृ कपरचन्द स्वभार्या अपूर वदे पु० गरीबदासादि परिवारेण श्री अजितनाथ वि. का. प्र. वृ० खरतर गच्छाधीश्वर श्री जिनराज रि सूरिचक्रवर्ति ॥
(780) पह प्रभाकरै श्री अकबर साहि प्रदत्त युग प्रधान पद प्रवरैः प्रति वर्षापाढीया प्टाहिकादि पामोसिका अमारि प्रवर्तकैः श्री-तं तीर्थोदधि मीनादि जीव रक्षकः श्री शत्रूजयादि तीर्थकर मोचकैः । सर्वत्र गोरक्षा कारकैः पंचनदी पीर साधकैः युग प्रधान श्री जिन चन्द्र सूरिभिः आचार्य श्री जिन सिंह सूरि थी समय राजोपाध्याय ॥ वा हंस प्रमोद वा० समय सुन्दर वा० पुण्य प्रधानादि साधु युतैः ।
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(787 ) संबत १६७७ ज्येष्ठ बदि ५ गुरुधारे पातसाहि श्री जिहांगीर विजय राज्ये साहियादा साहिजहां राज्ये ओसवाल ज्ञातीय गणघरचोपड़ा गोत्रीय स० नामा भार्या नयणादे पुत्र संग्राम भा० तोलो पु० माला मा० माल्हणदे पु० देका भा. देवलदे पु० कचरा ना. कउडिमदे पु. अमरसी--भा० अमरादे पुत्ररत्न संप्राप्त श्रा अर्बुदाचल विमलाचल संघपति तिलक कारित युग प्रधान श्री जिन सिंह सूरि पह नंदि महोत्सव विविध धर्म कर्तव्य विधायक स० आस करणेन पितृव्य चांपसी भातृ अमीपाल कपूरचन्द स्वभार्या अजाइयदे पु. ऋपमदास सूर दास भ्रातृव्य गरीबदासादि सार परिवारेण अयोर्थ स्वयं कारित मर्माणीमय विहार शूगारक श्री शांतिनाथ विंबं कारित प्रतिष्ठितं श्री महावीरदेव - - - परंपरायत श्री वृहस्खरसर गच्छाधिप श्रीजिन भद्र सूरि संतानीय प्रतियोधित साहि श्री मदकव्वर प्रदत्त युग प्रधान पदवीधर श्री जिन चंद्र सूरि विहित कवित काश्मीर विहार वार सिंदूर गर्जणा विविध देशामारि प्रवर्तक जहांगीर साहि :प्रदत्त युग प्रधान पद साधक श्रीजिनसिंह सूरि पहोत्तस लब्ध श्री अम्बिका वर प्रतिष्ठित श्री शत्रुजयाष्ठमोद्धार प्रदर्शित भाण वडमध्य प्रतिष्ठित श्री पार्श्व प्रसिमा पीयूष वर्षण नाव बोहित्थ वंशमण्डन धर्मसी धारलदे नन्दन भहारक चक्रवर्ति त्री जनराज सूरि दिन करैः । आचार्य श्री जिन सागर सूरि प्रति यति राजः ॥ सुत्रधार सुजा। प्रतिष्ठित महारक प्रभु श्री जिन राज सूरि पुरंदरैः श्रा मेडता मगर मध्ये।
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(१९२)
प्रोसियां। ओसियां एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थान है, विशेषकर ओसवालों के लिये यह तीर्थ रूप है। यहां पर बहुतसे प्राचीन कीर्ति चिन्ह विद्यमान है। शासन नायक श्री महावोर स्वामीके मन्दिरका कुछ दिनसे जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है। सचियाय देवी का मन्दिर भी बहुत जीर्ण हो गया है और भी बहुनसे प्राचीन मंदिर इधर उधर टूटे फटे पड़े हैं और समिपमें एक छोटी डूगरी पर मुनियों के अनशनके स्थान पर चरण प्रतिष्ठित है।
मंदिर प्रशस्ति ।
( 788 ) ॥ ॐ ॥ जयति जनन मृत्यु ध्याधि सम्बन्ध शन्यः परम पुरुष संज्ञः सर्ववित्सर्व दी। ससुर मनुज राजामीश्वरोनीश्वरोपि, प्रणिहित मतिभिर्यः स्मर्य्यते योगिवय्यः॥१॥ मिथ्या ज्ञान धनान्धकार निकरावष्टब्ध सद्वोध दृग्दृष्टा विष्टपमुभवद् घनघृणः प्राणभृतां सर्वदा कृत्वा नोति मरीचिभिः कृस युगस्यादौ सहस्रां शुवत्प्रातः प्रास्तसमास्तनोतु भवतां भद्रस नालेः सुतः ॥ २॥ यो गाणि सर्व-भिद भिहितां शक्ति मश्रधा नः क्रूरः क्रीड़ा चिकीर्ष्या कृत - - - - वृद्ध - - - - मुष्टया यस्याहतो सौ मूलि मित इयता नामरत्वं यतो भूत्पुण्यः सत्पुण्य वृद्धि बितरतु भगवान्वस्स सिद्धार्थ सूनुः ॥ ३ ॥ स्वामिनिकं स्वनिवासालय बन समयोस्माक माई ---- नस्यावसाने - - - उत्त महली काचिदन्याय देषा इत्युनान्तरात्मा हरि मति अयतः सस्व जेशच्य नीचैर्यत्पादांगुष्टकोद्याकनक नगपतौ प्रेरिते व्यांत्सवीरः ॥ ४॥ श्री मानासीत्प्रभुरिह भुवि --- यक वीर स्त्रैलोक्येयं प्रकट महिमा राम नामासयेन चक्र
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( १९३ )
शाकं दृढमरमुरी नियालिङ्गनेषु स्वप्रयस्या दशमुख वधोत्पादित स्वास्थ्य वृत्तिः ॥ ५ ॥ तस्या काषस्किल प्र ेम्णालक्ष्मणः प्रतिहारसामू ततोऽभवत् प्रतोहार वंशो - राम समुद्भवः ॥ ६ ॥ तद्वंशे सबशी बशी कृत रिपुः श्री वत्स राजोऽभवत्कीर्त्तिर्यस्य तुषारहार विमला ज्योत्स्नास्तिरस्कारिणी नस्मिन्मामि सुखेन विश्व विवरे नत्वेष सस्माद्वहिर्निर्गन्तु ं दिगिभेन्द्र दन्त मुसल व्याजाद कायीन्मनुः ॥ ७॥ समुदा समुदायेन महता चमूः पुरा पराजिता येन समदा ॥८॥ 1- - समदारण तेनावनोशेन कृता भिरक्षः सब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्रः । समेतमेतत्प्रथितं पृथिव्या मूकेशनामास्ति पुरं गरीयः ॥ ९ ॥ सक्रान्तं परैः - • सिव श्री महपालितं यन्महोभुजा । तस्यान्तस्तपनेश्वर स्य भवन बिद्ध शं शुभूतामभूरुपृमुद्गराज कुंजर युतं स जयन्ती लतम् किं कूटं हिम - सूल रति- - - ॥ १० ॥ सद कायँ तार्य्य बचसा संसार --- या ॥ ११९ ॥ क्वचित् - बुद्धयधिकम धोयते साधवः क्वचित्पटु पटीयों प्रकटयन्ति धर्म स्थितिम् । क्वचिन्तु भगबरस्तुतिं परिपठयन्ति यस्या जिरे -
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निमदेव गाम्भीर्य्यत ॥ १२ ॥ वीक्षणे क्षणदां स्त्रस्य वर्जलक्ष्मी विपश्चिताम् । बुद्धिfaceवद्यास्ते यत्र पश्यन्त्यदः सदा ॥ १३ ॥ आचार्य्यादेर्व्वचन बन - न्नि मुच्चैः स पयार्यः प्रतिध्वान दण्डम् सत्यं मन्ये यदु दित मिसोबा वादीरसमन्तारसोय भूयः प्रकट महिमा मण्डपः कारियोत्र ॥ १४ ॥ --- किं चान्ह विकार त्रैव ------------ ब्धः । सारापितं येन सुबंश भाजा सद्दानस माणित मार्गणेन ॥ १५ ॥ पुत्रस्तस्था भवत्सोम्बो वणिग्जिन्दक संज्ञितः । इन्दुवरकान्ति
लयः ५१६॥ - - चदुह्नग ह्वया प्रसाद युक्ता स्वयशोभिरामा । सदानुषत्रों स्त्रपतिं नदीनं तरगा ॥१७॥ तस्मात्तस्यामभूदुर्मा त्रिवर्ग
मार्गणावास
॥ १८ ॥ यन्नाकारि सितेतरच्छवि नरवा दिन याचितं ध्यर्थे न्नास्थिं जनरपि प्रतिगतं यद्गेहमभ्यस्थितं । किं चान्यद्भुवने दरोरु सरसि व्याप -- नीर नीर दलित ॥ १९ ॥ जिनेन्द्र धर्म प्रति युक्त "योनयो
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( १८४) .ताये .कुमतेर्मनागपि। मि.। वंसतोपिहि मण्डलेथवान सन्मणीनां भवतीहकाचता ... ॥२०॥ यदि वादि . "संज्ञिता...... जाकलावपि ॥ २१ ॥ सत्र ब्रह्म वौ स्वा सम्पाप्त तन्महिलया। दुर्गया प्रतिमा कारि स . ..त्रधामनि ॥ २२ ॥ आम्रकात्सर्वदे व्यातु. यस देवदत्त
. .मिवागमे ॥ ... " पुति दिनमिति ...... ..... या कार्य प्रति विदधते यद्वदधिकं ॥ ध्यैर्यवन्तो पिये त्यन्तं भीरबः परलोकतः । मोगि ..... .. हिको .
... च दूरगाः ॥ ... .. ति ....."बला यसत्स
भिः पुनरयं भूमण्डनो मण्डपः । पूर्वस्यां ककुमि त्रिपारा विकलः सन्गोष्ठिकानु .
..."जिन्दक ..." मतदु ...व्य. कृतोय ... नेन जिनदेव धाम तत्कारित पुनरमुष्य भूषणं । मत्स दृग्दृश्यते वजयत्री भूजयन्त . ॥ संवत्सर दशशत्यामधिकायां वत्सर स्त्रयो दशभिः फाल्गुन शुक्ल तृतीया आद्र पदाजा .."सं० १०१३ ....."
र्याम ॥ पाजापत्यं दधदपि मना गक्षमालो पयोमी शंखं चक्रं स्फुटमपिव ... करोवः पाया ....भुवन गुरुन्नति .............. ॥ भावद्गौग्गूढ वन्हिग्गुरु भर विन मन्मूर्दुभिायर्यते धोयावन्मेरुमरुभिन्नि .. "सि युते.. वशिखमुखच्छेद ...... श्री मदु ... दशा पुच.. . नित्यमस्तु ॥ जयतु अगवांससाव.... ... कीर्तिन्नि रीति वपुः सदा॥ यस्मादस्मिन्निजम्मन्यवरि पति पसि श्री ...... समा ..... ..."प्रकट सुतारनो ....... सूत्रधारत्व .... .. विति... दित मिदं।
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(१९५) तोरण पर।
( 789 ) सं० १.३५ आपाढ़ सुदि १० आदित्य वारे स्वाति नक्षत्र श्री तोरणं प्रतिष्ठापिमिति
स्तम्भ पर।
( 790 ) सं६ १२३१ मार्ग सुदि ५ वांधल पुत्र यशोधर वोहिव्य मूला देवि - -- -।
२४ माताके पट्ट पर।
( 701 ) सं० १२५९ कार्तिक सु० १२ सुचेत गुत्री सहदिग पुत्रैः शशु दरदी सुखी सल्ल सर्व प्रसादै चतुर्विशति जिनः मातृ पहिका निज मातु जन्हव अयोर्थ कारिता श्री का सूरिभिः प्रतिष्ठिता।
मूर्तियों पर।
( 2 ) सं० १०८८ फाल्गुन बदि ४ श्री नागेन्द्र गच्छे श्री बासदेव सूरि संघ नानेतिहड़ श्रेयार्थ राखदोव कारिता।
(793 ) सं० १२३४ वैसाख सुदि १४ मंगल। नागदेव वर्षा शामपद थनाय शोध । भार्या यशोदेव्या घामर्थे पोयं पदे।
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( 794 ) सं० १२३४ वैशाख शुक्ल १४ मंगलवार सार्वदेव सुत नागदेव तत्सुतेन पारो पारेन जिन तुत्रित सादेव मणि कुतेन ।
(795 )
सं० १४३८ वर्षे आषाढ सुदि : शुक्रे मोढ़ वास्तव्य सा. डा-भार्या यससारदे भार्या सूमलदे सुत साहूण सामल पितृ मातृ श्रेयार्थं ठ० महिपालेन श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं आगम गच्छे श्री जय तिलक सूरि उपदेशेन ।
(796 ) सं० १४९२ वर्षे वैशाख वदि ५ श्री कोरंटकीय गच्छे सा. ३० शंष बालेचा गोत्रे सा० वास माल भार्या लक्ष्मीदे पुत्र ३ प्रता लिहा सूरांयाभी पित अंबसे श्री संभवनाथ विंवं कारितं पुताकेन का० प्र० श्री सावदेव सूरिभिः।
( 797 ) सं० १५१२ वर्षे फाल्गुन सुदि ८ शनि श्री उसास से० मार्या माणिकदे सुत रणाग्र भार्यायां ४० पिधा भार्या चां सुतयो याते जखाण श्री कंथुनाथ विवं कारित प्रतिष्ठित श्री वृहद सपापंकज श्री विजय तिलक सूरि पट्टे श्री विजय धर्म सारे श्री भूयात् ॥
( 798 )
सं० १५३४ वर्ष माघ सुदि ५ दिने सीढ ज्ञातीय मंत्रि देव वकु सुत मंत्रि सह साइताभ्यां श्री धर्म नाथ विवं पित्रो श्रेयसे प्रतिष्ठित श्री विद्याधर गच्छे श्री हेम प्रभु सूरि मंडलिराभ्यां कृपः।
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( १७ )
( 799 )
सं० १५४९ वर्षे माघ सु० ५ गुरौ गंधार वास्तव्य श्री श्री माल ज्ञातीय सा० शिवाआर्या माणिक्यदे नाम्नी तयो सुत सा० लोजक्रेन भा० भम्मीदे धर्मादे नाम्नी न स्वमात्री श्रेयसे श्री विमल नाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठा श्री बृहत् तपा पक्षे श्री उदय सागर सूरिभिः ।
(800)
सं० १६१२ वैशाख सुदि ५ दिने श्री लालूण करापितं ।
( 801 )
स० १६८३ ज्येष्ठ सु० ३ कडुया मति गच्छे भादेवा पुत्री राजवाई केन श्री सम्भव वित्र सा० तेजपाल ेन प्र० ।
(802)
संवत् १७५८ वर्षे आषाढ़ सुदि १३ । रविवार शुभ दिने श्री वृहत् खरतर गच्छ भहारक श्री जिन राज सूरि । गणे शिष्य ---1
नींव में प्राप्त मूर्त्तिके टूटे चरण चौक पर ।
ॐ संवत् ११०० मार्गशिर सुदि ६ श्रेयोर्थं कारित जिनेत्रिकम् -
1--.
( 803 )
साली भद्र
देव कर्म
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( १९८)
श्री सचियाय माताका मंदिर ।
(804)
सं० १२३६ कार्तिक सुदि १ बुधवारे अद्यह श्री केल्हण देव महाराज राज्ये तत्पुत्र श्री कमर सिंह सिंह बिक्रमे श्री माडव्य पुराधिपती - - - दक्षिकान्वीय कीर्ति पाल राज्य वाहके सद्धती श्री उपकेशीय श्री सञ्चिका देवि देव गृहे श्री राजसेवक गहिलगो क्रय विषयी धारा वर्षेण श्री क संचिका देवि भक्ति परेण श्री संच्चिका देवि गोष्ठिकान अणित्वा सस्समक्ष सइयं व्यवस्था लिखापिता। यथा। श्री सच्चिका देवि द्वारं भोजकैः प्रहरमेकं यावदुद्धाय द्वार स्थितम् स्थातव्यं । मोजक पुरुष प्रमाणं द्वादश वर्षायोत्परः । तथा गोष्ठिकैः श्री सच्चिका देवि कोष्ठागारात् मुग मा०॥ चूत कर्ष १ भोज केम्यो दिन प्रति दासव्यः ॥
(805)
संवत् १२३४ चैत्र सुदि १० गुरौ घोर बड़ांशु गोत्र साध बहुदा सुत साधु जाल्हण तस्य भार्या सूहवं तयोः सुतेन साधु माल्हा दोहित्रन साधु गयपालन-- सच्चिको देवि प्रासाद कर्मणि चंडे का शीसडा श्री सच्चिका देवि क्षेमं करी श्री क्षेत्र पाल प्रतिमाभिः सहितं जंघा धरं आत्म श्रेयार्थं कारित।
(806)
संवत् १२४५ फाल्गुन सुदि ५ अद्येह श्री महावीर रथशाला निमित्तं पाल्हिया धीय देव चन्द्र बधू यशोधर भार्या सम्पूर्ण श्राविकया आत्म श्रेयार्थं आत्मीय स्वजन वर्गा समन्तेन स्वगृहं दत्त।
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(१९९)
( 807 ) सं० १२४५ फाल्गुन सुदि ५ अद्येह श्री महाबीर रथशाला निमित्तं - - - - - - पाल्हिया धील देव चंड बधू यशधर आर्या सम्पूर्ण श्राविकया आत्म श्रेयार्थं समस्त गोष्ठि प्रत्यक्ष च आत्मीया स्वजन वर्ग समतेन आत्मीय गृहं दत्त ।
हूंगरीके चरण पर।
( 808 )
सं० १२४६ माघ अदि १५ शनिवार दिने श्री मज्जिनभद्रोपाध्याय शिष्यैः श्री कनक प्रभ महत्तर मिश्र कायोत्सर्गः कृतः।
पाली।
यह भी मारवाड़का एक प्राचीन स्थान है। यहांके लेख पण्डित रामानन्दजीने संग्रह किया है।
नौलखा मंदिर।
( 809 ) संवत् ११४४ वैशाख बदि ७ पल्लिका चैत्ये वीर ।
( 810 ) संवत् ११४४ ज्येष्ठ वदि ४ शीधरेल - -.।
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(२००)
( 811 ) संवत् ११४४ माघ सु० ११ वीर उल्लदेव कलिकायां पुल भाजिताभ्यां सांत्याप्त कृतः श्री ब्राह्मी गच्छां प्रदेवाचार्येन प्रतिष्ठितः ।
( 812 ) संवत् ११५१ आसाढ सुदि ८ गुरौ --- ।
( 813 )
॥ॐ ॥ संवत् ११७८ फाल्गुन सुदि ११ शनौ श्री पल्लिका श्री वीरनाथ महाँ चैत्यो श्री मदुद्योतनाचार्य महेश्वराचार्यामनाय देवाचार्य गच्छे साहार सुत धार सधण देवी सयोर्मस्य धनदेव सुत देवचन्द्र पारस सुत हरिचन्द्राभ्यां देव चन्द्र आर्या वसुन्धरिस्तस्या निमित्तं श्री ऋपा नाथ प्रथम तीर्थंकर विवं कारितं गोत्रार्थच मंगलं महावीरः ।
( 814 ) ___ ॐ। संवत् १२०१ ज्येष्ठ यदि ६ रबी श्री पल्लिकायां श्री महावीर चैत्ये महामात्य श्री आनन्द सुत महामान्य श्री पृथ्वोपालेनात्मयो) जिन युगलं प्रदत्तम् श्री अनन्त नाथ देवस्य।
( 813 ) ॐ। संवत १२०१ ज्येष्ट बदि ६ रवी ओ पल्लिकायां श्री महावीर चैत्ये महामान्य श्री आनन्द सुत महामान्य श्री पथ्त्री पालेनात्म श्रेयो) जिन युगलं प्रदत्तम् श्री विमल नाथ देवस्य।
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- सुदि ३ सा
सं• १५ --- विवं का० प्र० श्री भिन्नमाल गच्छे ।
संवत् १५०६ वर्षे भाद्र सुदि ५ रबी
( २०१ )
(816)
का० सा० मद्या ---
(817)
---|
(818)
सं० १५१३ माघ सुदि ३ दिने उकेस सा० मदा भा० वालहदे पुत्र सा० क्षेमाकेन भा० सेलखू भातृ हेमा कान्हर मल प्रमुख कुटुंब युतेन श्रो अजित नाथ विंवं का० प्र० तपा श्री रतन शेखर सूरिभिः ।
स्त्र श्रेयसे श्रो कुंथनाथ
(819)
सं० १५२९ वर्षे माह सु० ५ रवी ऊ० भोगर गो० सा० राणा भा० रहनादे पु० चाहड़ भा० रइणे पु० खरहथ खादा खात खना धितृ श्री नेमिनाथ विंवं कारि० श्री नागेन्द्र गच्छे प्रतिष्ठित श्री सोम रतन सूरिभिः ।
( 820 )
संवत् १५३२ वर्षे चेंत्र सुदि ३ गुरु ऊ० गुगलिया गोत्र सा० खीमा पुत्र काजा भा० रतमादे पु० वरसा नरसा थादा भार्या पुत्र सहितेन स्व श्रेयसे श्री संडेर गच्छे श्री जिशोभद्रसूरि संताने श्री चंद्र प्रभ स्वाभि विंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सालि सू - - ।
( 82I )
स० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० श्री लखमादे पुत्र खा० भोजा सुश्रावक्रेण भ्रातृ
ऊकेश वंशे गणधर गोत्र साधु पासड़ भार्या सा० पदा तत्पुत्र सा० कोका प्रमुख परिवार
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( २०२ )
सहितेन स पुण्यार्थं श्री संभवनाथ विंवं कारित प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्रो जिन भद्र सूरि पट्ट े श्री जिन चन्द्र सूरिभिः ॥
(822)
सं० १५३४ वर्षे फागुन शु० २ गुरौ ऊ० चूदालिया गोत्र े च ऊ० सा० सिवा भा० सहागदे पुत्र सा० देवाकेन आर्या दाड़िमदे पुत्र आसा भार्या ऊमादे इत्यादि कुटुंब युतेन स्व श्र ेयसे श्री संभवनाथ विंवं का० प्रति० श्री सूरिभिः श्री वीरमपुरे ।
( 823 )
संवत् १५३६ वर्षे फाल्गुन सुदि ३ रवौ फीफलिया गोत्र सा० मूला पुत्र देवदत्त भार्या सह पुत्र सा० वरु श्रावकेण भार्या नामल ढे परिवार युतेन श्रो आदिनाथ विबं श्रयसे कारितं श्री खरतर गच्छे श्री जिन भद्र सूरि पह े श्री जिनचन्द्र सूरि श्री जिन समुद्रसूरि प्रतिष्ठितं ।
(824)
संवत् १५५५ वर्षे जेष्ठ बंद १ शुक्रे उकेस न्यातीय काकरेचा गोत्रे साह जारमल पुः ऊदा चांपा ऊदा भा० रूपी पु० वाला खंतावाला भा० बहरङ्गदे सकुटुव अ० उदा पूर्व प० श्री चंद्र प्रभ मूलनायक चतुर्विंशति जिनानां विंवं कारितं प्रतिष्ठित श्री खंडेर गच्छे श्रो जसो भद्र सूरि सन्ताने श्री शांति सूरिभिः ।
(825)
सम्वत् १६८६ वर्षे वैशाख सुदि ८ शनौ महाराजाधिराज महाराज श्री गज सिंह बिजय माम राज्ये युवराज कुमार श्री अमर सिंह राजिते तत्प्रसाद पात्र चाहमान वशाक्तन्स श्री जसवन्त सुत भो जगन्नाथ शासने श्री पाली नगर बास्तव्य श्री श्री श्री
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(२०३ ) माल ज्ञातीय सा० मोटिल भा० सोभाग्यदे पुत्र रत्न सा० इंगर भाखर नाम भ्रातृ द्वयेन सा० डुंगर मा. नाथदे पुत्र सा० रूपा रायसिंह रतन सा० पौत्र सा० टीला सा. भाखर मा० भाबलदे पुत्र ईसर अरोल प्रमुख कुटुव यतेन स्व द्रव्य कारित नवलखाख्य प्रसादोरि श्री पार्श्वनाथ विवं सपरिकरा स्व श्रेयसे कारितं प्रतिष्ठापितंच स्व प्रतिष्ठायां प्रतिष्टितंच श्रीमदकवर सुरत्राण प्रदत्त जगद्गुरु विरुद धारक सपा गच्छाधिराज महारक श्री हीर विजय सूरि पह प्रभाकर महारक श्री विजयसेन सूरि पहालंकार भहारक श्री बिजय देव सूरिभिः स्वपद प्रतिष्टिनाचार्य श्री विजय सिंह प्रमुख परिकर परिकरितः ओं श्री पल्लीकीये द्योतनाचार्य गच्छे द्वौ भादा मादा को तयोः श्रेया) लखमण सुत देशलेन रिखानाथ प्रतिमा श्री वीरनाथ महाचैत्ये देवकुलिकायां कारित ॥
( 826 ) संवत् १६८६ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्ष अति पुण्य योगे अष्टमी दिवसे श्री मेड़ता नगर वास्तव्य सूत्र धार कुधरण पुत्र सूत्र० ईसर हदाह सा नामनि पुत्र लखा चोखा सुरताण ददा पुत्र नारायण हंसा पुत्र केशवादि परिवार परिवतैः स्वश्रेयसे श्री महावीर विवं कारित प्रतिष्ठापितं च श्री पाली वास्तव्य सा. दुगर भाखर कारित प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठितं च महारक श्री विजय सेन सूरि पहालंकार भहारक श्री श्री श्री विजय देव सूरिभिः स्वपद प्रतिष्ठाचार्य श्री विजय सिंह सूरिभिः ।
(827)
सं० १६८६ वर्ष वैसाख मासे शुक्ल पक्षे पुण्य योगे अष्ठमी दिससे महाराजाधिराज महाराज श्री गजसिंह विजयमान राज्ये सत्सुत युवराज कुमार श्री अमर सिंह राजिते सत्प्रसाद पात्रं चाहमान वंशावतंस श्री जगन्नाथ नाम्नि श्री पालि नगर राज्यं कुर्वति सन्नगर वास्तव्य श्री श्री श्री माल ज्ञातीय सा० मोटिल भा० सोभाग्यदे पुत्र रत्न सा. भाखर नाम्ना मा० मावलदे पुत्र स० ईसर अटोल प्रमुख परिवार युतेन स्व श्रेयसे श्री
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(२०१) सुपार्श्व विंब कारितं प्रतिष्ठापितं स्व प्रतिष्ठिायां प्रतिष्ठितं पातशाह श्री मदकवर शाह प्रदत्त जगद्गुरु विरुद धारक सप गच्छाधिपति प्रतिष्ठिताचार्य श्री विजय सेन
सूरि।
J ( 828 ) से० १७०० वर्षे माघ सित द्वादश्यां बुधे श्री श्री योधपुर वास्तव्य उसवाल ज्ञातीय मुहंणोत्र गोत्र जयराज भार्या मनोरथ दे पुत्र सुभा पु. ताराचन्द भोज राजादि युतेन श्री शीतल पार्श्व वीर नेमी मूर्ति स्फूर्ति मस्कोशं विशन्ति जिन विंव विराजित दल दशकं चतुर्विशति जिन कमल कारितं प्रतिष्ठितं सपा गच्छे भहारक श्री विजय देव सूरि आचार्य श्री विजय सिंह निदेशात् उ० सप्तमे चंद्र गणिमिः ।
श्री गौड़ी पार्श्वनाथजीका मंदिर । । मूलनायकजी पर।
(829 ) __ संवत् १६८६ वर्षे वैशाख सुदि ए राजाधिराज महाराज श्री गजसिंह विजय मान रोज्ये मेड़ता नगर वास्तव्य ---- हा वंशे कुहाड़ गोत्रे सा. हरषा भार्या मिरादे पुत्र सा० चसवंत केन स्व श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं स्थापितं च। महाराणा श्रीजगतसिंह बिजय राज्ये श्री गोड़वाड़ देशे श्री विजयदेव सूरीश्वरोपदेशतः वीघरला। वास्तष्य समस्त संघेन। शिशरिराया उपरि निर्मापितेन विवेन प्री० श्रा प्रतिष्टितंच तप गच्छाधिराज अहारक श्री मदकवर सुरत्राण प्रदत्त जगद्गुरु विरुद धारक H० हीर विजय सूरीश्वर पह प्रभाकर महारक श्री विजय सेन सूरीश्वर पहालंकार महारक श्री विजय देव सूरिभिः स्वपद प्रतिष्ठाचार्य श्री विजय सिंह सूरि प्रमुख परिकर परिकरितः।
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(२०५) लोढारो बासका मंदिर।
J ( 830 ) ॐ हाँ श्रीँ नमः ॥ श्री पातिसाह षुण साहजी विजय राज्ये। संवत् १९८६ वर्षे वैशाख सिताष्टमी शनिवासरे महाराजाधिराज महाराजा श्री गजसिंह जी विजय राज्ये श्री पालिका नगरे सोनिगरा श्री जगनाथ जी राज्ये ऊपकेस ज्ञातीय श्री श्री माल चंडालेचा गोत्रे सा. गोटिल भार्या सोनागदे पुत्र सा० दुगर भातू सा-माषर -- नामभ्यां - डुगर मार्या नाथलदे पुत्र रूपसी राई त्यघर भना भाषर भार्या चाचलदे पु० देसर आयेल रूपा - पु० टीला युतेनं स्व श्रेयसे श्री शांतिनाथ विंवं कारापितं प्रतिष्ठित ॥ श्री चैत्र गच्छे शार्दूल शाखायां राज गच्छान्वये १० श्री मानचन्द्र सूरी सत्य श्री रत्नचन्द्र सूरि वा० तिलक चंद्र मु. पति रूपचंद्र युतेन प्रतिष्ठा कृता स्व श्रेयोर्थे श्री पालिका नगरे श्री नवलषा. प्रासादे जोर्णोद्धार कारापित मूल नायक श्री पाश्वनाथ पमुख चतुर्विशति जिनानां बिंव० प्रतिष्ठापितानि सुवर्णमय कलश डंडे रुप्य सहस्र ५ द्रव्य व्यय कृते नाव बहु पुन्य उपार्जितं अन्य प्रतिष्ठा गुरजर देशे कृतो श्री पार्श्व गुरु गोत्र देवी श्री अम्बिका प्रसादात् सर्व कुटुम्ब वृद्धि भूयात् ॥
श्री शांतिनाथजी का मंदिर।
( 831 ) संवत् ११४५ आषाढ सुदी ६....।
• श्री सोमनाथका मंदिर।
(839)
संवत् १२०६ द्वि० ज्येष्ठ यदि १ अद्यह भी पल्लिकायां ग्रामे अणहिल पाटकाधिष्टित
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(२०६ ) समस्त राजावलो विराजित परम प्रहारक महाराजाधिराज परमेश्वर उमापति वर लब्ध --.-.-.- निज विक्रमे रणांगन विनिर्जित शाकं भरी मूशल श्री मस्कुमार पाल देव कल्याण विजय राज्ये -----
नाडोल।
मारवाडके देसूरी जिलेके समीप यह स्थान भी बहुत प्राचीन है।
श्री आदिनाथजी का मंदिर ।
(833)
ॐ संवत् १२१५ वैशाख सुदि १० भौमे वीसाडा स्थाने श्री महावीर चैत्ये समुदाय सहितः देवणाग नागड जोगड सतैः देम्हाजधरण जसचन्द्र जसदेव जसधवले जसपालैः श्री नेमिनाथ विवं कारितं ॥ वृहद्गच्छीय श्री मट्टीव सूरि शिष्येन पं० पद्मचन्द्र गणिना प्रतिष्टितं ॥
( 834 ) ॐ संवत् १२१५ वैशाख सुदि १० मोमे वीसाडा स्थाने श्री महावीर चैत्ये समुदाय सहितः देवणाग नागड जोगड सुतैः देम्हाजधरण जसचन्द्र जसदेव जसधवल जसपालः श्री शांतिनाथ विवं कारितं ॥ प्रतिष्टितं वृहद्गछीय श्री मन्मुनिचन्द्र सूरि शिष्य श्री मट्टव सूरि विनेवेन पाणिनीय पं० पदमचन्द्र गणिना। यादृिषि चन्द्र खीस्यातां धर्मोजिन प्रणीतोस्ति। सावज्जाया देत जिन युगलं वीर जिन भुवने।
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(२०७)
(
83.5 )
संवत् ११३२ वर्षे पोह सुदि-यत्रत जैता भार्या कह पुत्र नामसी मार्या कमालदे पितब्य निमित्तं श्री शांति नाथ विवं कारापित्त प्रतिष्टितं श्री नांवदेव सूरिभिः ॥
(836 )
सं० १४८५ वै० शु० ३ बुधे प्राग्वाट श्री समरसी सुत दो० धारा भा० सूहबदे सुत दो महिपाल भा. माल्हणदे सुत दो० मूलाकेन पितृव्य दो. धर्मा भ्रातृ दो० माईआभ्यां च दो० महिपा श्रेयसे श्री सुविधिविंवं कारितं प्रतिष्टितं श्री तपागच्छेश श्री सोम सुदर सूरिभिः।
(837 )
श्री चन्दा प्रभु विवं। सं० १६८६ प्रथमाषाढ़ वदि ५ शुक्र राजाधिराज श्री गज सिंह प्रदत्त सकल राज्य व्यापाराधिकारेण मं० जेसा सुत जयमल्ल जी नाम्ना श्री चन्द्र प्रभु विवं कारितं प्रतिष्टापितं स्वप्रतिष्ठायां श्री जालोर नगरे प्रतिष्ठितं च तपागच्छाधिराज भ०। श्री हरि विजय सेन सूरि पहालंकार भ। श्री विजय सेन सूरि पहालंकार पातशाहि जहांगीर प्रदत्त महासपा विरुद धारक १० श्री ५ श्री विजयदेव सूरिभिः स्व पद प्रतिष्ठिताचार्य श्री विजय सिंह सुरि प्रमुख परिवार परिकरितैः राणा श्री जगत सिंह राज्ये नाहुल नगर राय विहारे श्री पद्मप्रभ विवं स्थापित ।
( 838 ) संवत् १६८६ वर्षे प्रथमाषाढ व०५ शुक्र राजाधिराज गजसिंह जी राज्ये योधपुर नगर वास्तव्य मणोत्र जेसा सुतेन । जयमल जी केन श्री शांतिनाथ विंव कारित
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( २० )
प्रतिष्ठापित स्व प्रतिष्ठाया प्रतिष्ठितं च श्री सपा गच्छेश ओ ५ श्री विजय देव तूरिभिः स्व पट्टालंकार आचार्य श्री ५ श्री विजय सिंह सूरि प्रमुखः स परिवारः ॥
ताम्र शासन ।*
(839)
ओं ॥ ओं नमः सर्वज्ञाय । दिसतु जिन कनिष्ठः कर्म बंध क्षयिष्ठः परिहृत मद मार क्रोध लोभादि वारः । दुरित शिखरि सम्बः स्त्रो वशीयं च सम्य स्त्रिभुवन कृतसेवा श्री महाबीर देञः ॥१॥ अस्ति परम आजल निधि जगति तले चाहुमाण वंशोहि तत्रा सोन नडूले भ्रूप श्री लक्ष्मणादौ ॥२॥ तस्मात् वभूत्र पुत्रो राजा श्री सोहिया स्तदनु सूनुः । श्रो बलि राजी राजा विग्रह पालोनू च पितृव्यं ॥३॥ तस्यात्तनुजो भूपालः श्री महेन्द्र देवाख्यः । तज्जः श्री अणहिल्लो नृपति वरो भूत पृथुल तेजः ॥ ४ ॥ तत्सूनुः श्री बाल प्रसाद इत्यजनो पार्थिव श्रेष्ठः । तदुभ्राताऽभूत क्षितिपः सुभटः श्री जैद्र राजाख्यः ॥५॥ श्री पृथिवी पालोऽभूत् तत्पुत्राः सौर्य वृत्ति शोभाढ्यः । तस्मादभवत्माता श्री जो जल्लो रण रखाह्मा ॥६॥ तदेव राजो भूच्छ्रीमान् आशा राजः प्रताप वर निलयः । तत्पुत्राः क्षोणिपः श्री अल्हण देव नामाभूत् ॥७॥ यस्य प्रताप प्साले संकुल दिक् चक्र पृथुल विस्तारं । सिंचंति सुदिताहित गण ललना नयन सलिलौघैः ॥८५ सोय महा क्षितिशः सारमिदं बुद्धिमान चिन्तयत । इह संसार असारं स जन्मादि जन्तूनां ॥९॥ यतः । गर्भ स्त्रि कुक्षिः मध्ये पल रुधिर बसा मेदसा बटु पिण्डो मातु प्राणांतकारी प्रसवन समये प्राणिनां स्थान्नु जन्मा धर्मादानामवेत्ता भवतिहि नियतम् बाल भाव स्ततः स्यात् तारुण्यम् स्वल्प मात्र स्वजन परिभव स्थानता वृद्ध भावः ॥ १०॥ खश्चोतोद्योत तुल्यः क्षणः मिह सुखदाः सम्पदो दृष्ट नष्टः प्राणित्वं चंचलं स्याद्दलमुपरि यया तोर बिन्दुन्न किन्याः ज्ञास्त्रमंत्र
* यह तामापत्र प्रसिद्ध कर्नेल टड साहब यहांसे लेकर विलायतके रयल एशियाटिक सुसाइटीमें दान किया है।
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( २०६ )
पित्रो स्पृहयनमरताम् चैहिकम् धर्म कोर्ति देशान्तो राज पुत्रान जन पद गणान योधयत्येव वोस्तु ॥११॥ सं० १२१८ वर्षे प्रावण सुदि १४ रवी अस्मिन्नेव महा चतुर्दशी पर्वणी। स्नात्वा धौत पटे निबेश्य दहने दत्वाहुनीन पुण्य कृन मार्तण्डस्य समः प्रपाटन पटोः सम्पर्य चाचंजलिं । त्रैलोकस्य प्रभु चराचर गुरु संस्नप्य पंचामृतैः ईशान कनकान्न वस्त्र नदनः सम्पूज्य विप्रां गुरु ॥१२॥ अनुसिल कुशाक्षतोदकः प्रगुणी भूता पसव्यकः पाणिः शासनमेनमयच्छत यावत् चंद्राकं भूपालं ॥१३॥ श्री नडु ल महास्थाने श्री संडेरक गच्छे श्री महावीर देवाय श्री नड्डूल तल पद शुल्क मंडपिकायां मासानुमासं धूप वेलार्थं शासनेन द्र०५ पंच प्रादात् अस्य देबरस्यन मुंजानस्य अस्मद्वशे जयिभवि भोक्तिभिरपरैश्च परिपंथाना न कार्या। यतः सामान्योयं धर्म सेतु न पाणां काले काले पालनीयो भवद् मिः सर्वान एवं भावीनः पार्थिवेन्द भूयो भूयो याचते रामचन्द्रः ॥१४॥ सस्मात् । अस्मदन्वयजा भूपा भावी भूपतयश्च ये। तेषामहं करे लग्नः पालनोयं इद सदा ॥१५॥ अस्मद्वंशे परीक्षीणे यः कश्चिन नपति भवेत् तस्याहं करे लग्नोस्मि शासन न ब्यतिक्रमेत् ॥१६॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजक: सगरादिभिः यस्य यस्य यदा भूमि तस्य तस्य सदा फल ॥१७॥ षष्टि वर्ष सहस्राणि स्वर्गे तिष्ठति दानदः आच्छेत्ता चानुमत्ता च तान्येव नरकम् वशेत् ॥१८॥ स्व दत्तं पर दत्त वा देव दायं हरेत यः स विष्टायों कृमिभुत्वा पितृभिः सह मज्जति ॥१९॥ शन्याटको व्यतोयासु शुष्क कोटर बासिनः । कृष्णा हयोभि जायते देव दायम् हरंति ये ॥२०॥ मङ्गल महा श्रोः। प्राग्वाट वंशे धरणिग्ग नाम्नः सुतो महो मात्यवर: सुकर्मा वभूव दूताः प्रतिभा निवासो लक्ष्मीधरः श्री करणे नियोगी ॥२१॥ आसीत् स्वच्छ मला मनोरथ इति पार नै गमानां कुल शास्त्र ज्ञान सुधारस प्लवित धिष्टज्जो अवत वासलः । पुत्रस्तस्य वभूव लोक वसनिः श्री श्री धरः श्री धरे सूपास्ति रचयांचकार लिलिखे चेदं महा शासन ॥२२॥ स्व हस्तोयं महाराज श्री अल्हण देवस्य।
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( २१० )
तामापत्र ( महाजनों के पास )
(810)
ॐ स्वस्ति ॥ श्रियै भवंतु वो देवा ब्रह्म श्रीधर शंकराः । सदा विरागवंतो ये जिना जगति विश्रुताः ॥ १ ॥ शाकंभरी नाम पुरे पुरासी च्छ्री चाहमानान्त्रय लब्ध जन्मा। राजा महाराज नतांहि युग्मः ख्यातो वनौ वाक्पति राज नामा ॥२॥ नड्डूले समाभूत्तदोय तनयः श्री लक्ष्मणा भूपति स्तस्मात्तव गुणान्बितोः नृपवरः श्री शोभिताख्यः सुतः । तस्माच्छ्री बलिराज नाम नृपतिः पश्चात् तदीयो मही ख्यातो विग्रह पाल इत्यभिधया राज्ये पितृव्योऽ भत्रत् ॥३॥ तस्मित्तीत्र महा प्रताप तरणिः पुत्रो महेंद्री भवत्तज्जा च्छी अणहिल्ल देव न पतेः श्री जेंद्रराजः सुतः । तस्माद्दुर्द्धर बेरि कुंजर बध प्रोताल सिंहोपमः सत्कीर्त्त्या धवलाली कृताखिलजग च्छ्री आशराजो नृपः ॥४॥ तरपुत्रो निज विक्रमार्जित महाराज्य प्रतापोदयो यो जग्राह जयश्चिय रण भरे व्यापाद्य सौराष्ट्रका | शौचाचार विचार दानव सति नंड्डुल नाथो महा संख्योस्पादित वीर वृत्तिरमल : श्री अल्हणो भूपतिः ॥५॥ अनेन राज्ञा जन विश्रुतेन । राष्ट्रोड वंश जव रासहुलस्य पुत्रो अन्नल्ल देवीरिति शोल विवेक युक्ता । रामेण बै जनकजेव विबाहिता सौ ॥६॥ आभ्यां जाताः सुपुत्रा जग ाधयो रूप सौंदर्य युक्ताः । शस्त्रः शास्त्रैः प्रगल्माः प्रवर गुणः गणास्त्यागवन्तः सुशोला: ज्येष्ट श्री केल्हणाख्य स्तदनु च गज सिंह स्तथा कीर्ति पालो । यद्वन्नेत्राणि शंभो स्त्रि पुरुष वदधामीजने बंदनीयाः ॥७॥ मध्यादमसां परिवारानथो ज्येष्ठोगंजः क्षोणि तले प्रसिद्धः । कृतः कुमारो निज राज्य धारी श्री केल्हणः सर्व गुणोरुपेतः ॥८॥ आभ्यां राज कुल श्री आल्हण देव कुमार श्री केल्हण देवाभ्यां राजपुत्र श्री कोर्त्ति पालस्य प्रसादे दत्त नडूलाई प्रतिवद्ध द्वादश ग्राम ततोराज पुत्र श्री कीर्त्तिपालः । संवत् १२१८ श्रावण वदि ५ सोमे ॥ अहं श्री नडुल े स्नात्वा धौतघास सी परिधाय तिलाक्षत कुश प्रणयिनं दक्षिण करं कृत्वा
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(२११)
देवानुदकेन संसl । वहलतम तिमिर पटल पाटन पटीयसो निःशेष पातक पंक प्रक्षालनस्य दिवाकरस्य पूजां विधाय। चराचर गुरु महेश्वरं नमस्कृत्य । हुन भुजि होम द्रव्याहुती वा नलिनी दल गत जल लव तरलं जीवितव्यमाकलय्य । ऐहिकं पारत्रिक च फलमंगीकृत्य स्व पुण्य यशोभि वृद्धये शासनं प्रयच्छति यथा ॥ श्री नडूलाई ग्रामे श्री महावीर जिनाय नड्लाई द्वादश ग्रामेषु ग्राम प्रति वो द्रम्मौ स्नपन विलेपन दीप धूपोपभोगार्थं । शासने वर्ष प्रति भाद्रपद मासे चंद्राक्कं क्षिति कालं यावत् प्रदत्तौ ॥ नद लाई ग्राम । सूजेर । हरिजी कविलाई । सोनाणं। मोरकरा। हरबंदं माहाड । काण सुर्व। देवसूरो । नाडाड मउबड़ो। एवं ग्रामाः एतेषु द्वादश ग्रामेषु सर्वदाप्यस्मामिः शासने दत्तो। एभिर्यामेरधुना संवत्सरं लगिस्वा सर्वदापि वर्ष प्रति भाद्र पदे दातव्यो। अत ऊई केनापि परिपंथना न कर्तव्या। अस्मद्वंशे व्यतिक्रांते योऽन्य कोपि भविष्यति तस्याहं करे लग्नो न लोप्यं मम शासनं । षष्ठि वर्ष सहस्राणि स्वर्गो तिष्ठति दायकः । आच्छेत्ता चानुमंता च तान्येव नरके वसेत् ॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमि र्तस्य तस्य तदा फलं ॥ स्व हस्तोयं महाराज पुत्र श्री कीर्ति पालस्य ॥ नैगमान्वय कायस्थ साढनप्ता शुभं करः दामोदर सुतो लेखि शासनं धर्म शासनं मंगल महा श्रीः॥
( 841 )
संवत् १२१३ वर्षे मार्गा वदि १० शुक्रे ॥ श्रीमदणहिल्ल पाटके समस्त राजा बली समलं कृत परम महारक महाराजाधिराज परमेश्वर उमापति घर लब्ध प्रसाद प्रोद प्रताप निज भुज विक्रम रणं गण विनिर्जित शाकंभरी भूपाल श्री कुमार पाल देव कल्याण विजय राज्ये। तत्पाद पद्मोपजीविनि महामात्य श्री बहड़ देव श्री श्री करणादौ सकल मुद्रा व्यापारान्परि पंथयति यथा। अस्मिन् काले प्रवर्त्तमाने पोरित्य वोडाणान्वये महाराज श्री योगराज स्तदे सदीय सुत संजात महामंडलीक० श्री वस्त
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। २१२)
राजस्तदस्य सुत संजात ऽनेक गुण गणालंकृत महा मंडलीक० श्री मता प्रताप सिंह शासन प्रयच्छति यथा। अत्र नदूल डागिकायां देव श्री महायोर चैत्ये। तथाशरष्टनेमि चैत्ये शील बंदडो ग्रामे श्री अजित स्वामि देव चैत्ये एवं देव त्रयाणां स्वीय धर्माथे वदर्य मंडपिका मध्यात् समस्त महाजन भहारक ब्राह्मणादय प्रमुख प्रदत्त त्रिहाइको रूपक १ एक दिन प्रति प्रदातव्यामद । यः कोपि लोपियति सो ब्रह्महत्या गो हत्या सहस्रेण लिप्पते। यस्य यस्य यदा भूमि तस्य तस्य तदा फलं। बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः। यः कोपि बालयति तस्याहं पाद लग्न स्तिष्टामीति। गोडान्वये कायस्थ पण्डित. महीपालन शासनमिदं लिखितं ।
नाडलाई।
वर्तमानमें मारवाड़ के देसूरी जिले के नाडोलके पास एक छोटासा गांव है परन्तु प्राचीन कालमें यह एक बड़ा आबादी नगर था और वही स्थान है कि
संवत दश दाहोतरे बदिया चोरासी बाद।
खेड नगर थो लाबिया, नारलाई प्रासाद ॥१॥ यहां पर बहुतसे प्राचीन जैन मंदिर वर्तमान है।
श्री आदिनाथजी का मंदिर ।
( 842 )
संयत् ११८७ फाल्गुन सुदि १४ गुरुवार श्री पंडेरकान्वय देशी चैत्य देव श्री महावीर दत्तः। मोरकरा ग्रामे घाणक तैल बल मध्यात् चतुर्थ भाग चाहुमाण पत्तरा सुत विंसराकेन कलसो दत्तः ॥ रा. वाच्छल्य समेत। साखिय भण्डो नाग सिउ। अतिवरा
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( २१३ ) वीद्धरा पोसरि । लष्मणु । वहुभिर्वसुधा भुक्ता राजिलिः सागरादिभिः। जस्य जस्य यदा भूमि । तस्य तस्य तदा फलं ॥१॥
( 843 )
ॐ ॥ संवत् ११८६ माघ सुदि पंचम्यां श्रो चाहमानान्वय श्री महाराजाधिराज रायगल । देव तस्य पुत्रो रुद्रपाल अमृत पालौ। ताभ्यां माता श्री राज्ञो मानल देवी तया नद ल डागिकायां ॥ सतां परजतीनां राजकुल पल मध्यात् पलिका द्वयं । घाण मति धर्माय प्रदत्त ० नागसिव प्रमुख समस्त ग्रामीणक । रा०त्तिमदा वि० सिरिया षणिक पोसरि। लक्ष्मण एते साखिं कृत्वा दत्तं । लोपकस्य यदु पापं गो हत्या सहनेण। ब्रह्म हत्या सतेन च। तेन पापेन लिप्यते सः॥ श्री॥
(844 )
ॐ ॥ संवत् १२०० जेष्ठ सुदि ५ गुरौ श्री महाराजाधिराज श्री राय पाल देव राज्ये --- हास - - समाए रथयात्रायां आगतेन । रा. राजदेवेन । आत्म। पाइला मध्यात् सर्व साउत पुत्र विसोपको दत्तः । आत्मीय घाणक तेल बल मध्यात् । माता निमित्त पलिका द्वयं । प्लो २ दत्तः ॥ महाजन ग्रमीण। जन पद समझाय । धर्माय :निमित्त विसोपको पलिका द्वयं दत्त । गो हत्याना सहस्रेग ब्रह्म हत्या सतेन च । स्त्री हत्या भ्रूण हत्या च जतु पापं तेन पापेन लिप्यते सः ॥१॥
( 845 ) संवत् १२०० कार्तिक यदि १ रवी महाराजाधिराज श्री राय पाल देव राज्ये । श्री नदूल दागिकायां रा. राजदेव ठकुरायां। श्री नदूला इय महाजनेन सवै मिलित्वा श्री महावीर चैत्ये । दान दत्त। घत तेल चौपड़ मणि पित पाइय प्रति। क धान लव
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(२१४) नमपि तद्रोणं प्रति मा० कपास लोह गुढर षाड होंगु माजीठा तौल्ये घडो पति । पु.! पूगहरी कि पमुख गणितः। सहस्रं पति । पुगु १ एततु महाजनेन चेतरेण धर्माय प्रदत्तं लोपकस्य जतु पापं । गो हत्या सहस्त्रेण ब्रह्महत्या शतेन च तेन पापेन लिप्यते सः ॥
( 846 )
__ ॐ ॥ संवत् १२०२ आसोज बदि ५ शुक्रे । श्री महाराजाधिरान श्री रायपाल देव राज्ये प्रवर्त्तमाने। श्री नदूल डागि कायां । रा० राजदेव ठकुरण प्रवरांमानेन । श्री महावीर चैत्ये साधुतपोधन निष्ठार्थे । श्री अभिनव पुरीय वदार्या । अत्रेषु समस्त वणजार केषु । देसी मिलित्वा वृषभ भरित । जतु पाइल ल गमाने। सतु बीसं प्रति। रुआ २ किराड उआ। गाडं प्रति रु. १ वणजारकै धर्माय पुदत्तं ॥ लोपकस्य जतु पापं गो हत्या सहस्रेण ॥ ब्रह्म हत्या सतेन। पापेन । लिप्यते सः ।
(847 )
संवत् १४८६ वर्षे अषाढ़ बदि नाडलाई रीमाउहीत को-विसति को तेल सेर०॥ दीधे छुटि सुपासना श्री संघ मतं दिना १ प्रत देस।
( 848 ) १५६८ वीरम ग्राम वास्तव्य श्री संघेन पक्ष
( 849 ) सं० १५६६ वर्षे । कसबपुरा पक्ष तपागच्छाधिराज श्री इन्द्र नन्दि सूरि गुरुपदेशात् मुजिगपुर श्री संघेन कारिता देव कुलिका चिरनन्दतात् ॥
( 850 ) __ सं० १५७१ वष कुतवपुरा तपागच्छाधिाज श्री इन्द्र नन्दि सूरि शिष्य श्री प्रमोद सुन्दर सूारराज गुरुपदेशात् चम्पकं दुर्ग श्री संघेन करापिता देव कुलिका चिरं नन्दतात्
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(२१५)
V ( 851 ) सं० १५७१ वर्षे कुतथपरा पक्ष तपागच्छाधिराज श्री इन्द्र नंदि सूरि शिष्य प्रमोद सुन्दर सूरि गुरुणामुपदेशात् पत्तनोय श्री संघेन कारिता देव कुलिका चिरं जीयात् ॥
- ( 552 )
श्री यशोभद्र सूरि गुरुपादुकाभ्यां नमः । संवत् १५६७ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्ष षठ्यां तिथौ शुक्र वासरे पुनवसु ऋक्ष प्राप्त चंद्र योगे श्री संदुर गच्छे कलिकाल गौतमावतारः समस्त भविक जन मनोबुज विवोधनक दिन करः सकल लब्धि विश्रामः युग प्रधानः जितानेक वादीश्वर वृदः प्रणतानेक नर नायक मुकुट कोटि घृष्ट पादारबिंदः श्री सूर्य इव महाप्रसादः चतुः षष्टि सुरेन्द्र संगीयमान साधुवादः । श्री पंडेरकीय गण बुधावतंसः सुभद्रा कुक्षि सरोवर राजहंसः यशोवीर साधु कुलांबर नमो मणिः सकल चारित्रि चक्रवर्ति वक्त चड़ामणिः म० प्रभु श्री यशोभद्र सूरयः तत्प४ श्री चाहुमान वंश अङ्गारः लब्ध समस्त निरवद्य विद्या जलधि पारः श्री पदरा देवी दत्त गुरु पद प्रसादः स्व विमल कुल प्रबोधनक प्राप्त परम यशो बादः भ० श्री शालि सूरि स्त० श्री सुमति सूरिः त० श्री शांति सूरिः त. श्री ईश्वर सृरिः । एवं यथा क्रममनेक गुण मणि गण रोहण गिरीणां महा सूरोणां बंशे पुनः श्री शालि सूरिः त. श्री सुमति सृरिः तत्पहालंकार हार H० श्री शांति सूरि बराणां सपरिकराणों विजय राज्ये ॥ अथेह श्री मदेपाट देशे। श्री सूर्य वंशीय महाराजाधिराज श्री शिला दित्य वंशे श्री गुहिदत्त राउल श्री वप्पाक श्री खुमाणादि महाराजान्वये राणा हमीर श्री षेत सिंह श्री लखम सिंह पुत्र श्री मोकल मगांक वशोद्योतकार प्रताप मार्तंडावतारः आ समुद्र मही मंडला खंडलः अतुल महायल राणा श्री कुम्भकर्ण पुत्र राणा श्री राय मल्ल विजय मान प्राज्य राज्ये तत्पुत्र महाकुमार श्री पृथ्वो राजानुशासनात । श्री उकेश बंश राय जडारी गोत्र राउल श्री लाखण पुत्र मं० दूदवंशे मं० मयूर सुत मं. सादूल स्तस्पुत्राभ्यां मं• सोहा समदाभ्यां सद्वांधव मं० कर्मसीधा रालाखादि सुकुटुम्थ
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( २१६ )
श्री नंदकुलवत्यां पुर्या सं० ९६४ श्रो यशोभद्रसूरि मंत्र शक्ति समानीतायां त० सायर कारित देव कुलिकाद्युद्वारितः सायर नाम श्री जिन वत्यां श्री आदीश्वरस्य स्थापना कारिता कृता श्री शांति सूरि पट्टों देव सुंदर इत्यपर शिष्य नामभिः आ० श्री ईश्वर सूरिभिः । इति लघु प्रशस्तिरियं लि० आचाय्य श्रो ईश्वर सूरिणा उत्कीर्ण सूत्रधार सोमाकेन शुभं ॥ | ( 853 )
संवत् १६७४ वर्षे माघ बदि १ दिने गुरु पुष्य योगे उसबाल ज्ञाती भण्डारी गोत्र • सायर तुत्र साहल तस पु० समदा लषा धर्मा कर्मा सोहा लखमदा पु० पहराज प्रद मान
म भार्या तत् पु० । भीमा मं पहराज पुत्र कला मं० नगा पुत्र काजा मं० पदमा पुत्र जईचन्द्र मं भीमा पुत्र राजसी मं वाला पुत्र सकर उसबाल: जैचन्द्र पुत्र जस चंद जादव | मं० सिवा पुत्र पूजा जेठा संयुतेन श्री आदिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छाधिराज भटा० श्री हीर विजय सूरि तत्पटालंकार श्री विजयसेन सूरि ततपटा - लंकार भटारक श्री विजय देव सूरिभिः ।
J ( 854 )
महाराजाधिराज श्री अभय राज राज्ये संवत् १७२१ वर्षे ज्येष्ट सुदि ३ रवी श्री नढुलाई नगर वास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातोय वृ० सा । जीवा भार्या जसमादे सुत सा । माथाकेन श्री मुनि सुव्रत विंवं कारापितं प्रतिष्टितं च । भहारक श्री हीर विजय सूरिभिः ।
J
(855)
संवत् १७६८ वर्षे वैशाख सुदि २ दिने ऊकेश ज्ञात १ वोहरा काग गोत्र साह ठाकुर सी पुत्र लाला हे सुवर्णमये कलस करापितं श्री आदिनाथजी सेतरभेद पूजा गुहिलेन संप्रति प्रतष (प्रतिष्ठितं) माणिक्य त्रिजे शि० जित विजय शिष्य ॥ कुश विजय उपदेशात् शुभे भूयात् ।
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( २१७ )
856 )
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संवत् १९८६ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्ष शनि पुष्य योगे अष्टमी दिवसे महाराणा श्री जगत सिंह जी विजय राज्ये जहांगोरी महा सपा विरुद धारक अहारक श्री विजय देव सूरीश्वरोपदेश कारित प्राक प्रशस्ति पहिका ज्ञात राज श्री संप्रति निर्मापित श्री जेषल पर्वतस्य जीर्ण प्रासादोधारेण श्री नडु लाई वास्तव्य समस्त संघेन स्वयसे श्री श्री आदिनाथ विंवं कारित प्रतिष्ठितं च पातशाह श्री मदकधर शाह प्रदत्त जगद्वगुरु विरुदधारक तपागच्छाधिराज अहारक श्री श्री श्री श्री श्री होर विजय सूरीश्वर पह प्रभाकर भ० श्री विजय सेन सूरीश्वर पहालंकार प्रभु श्री विजयदेव सूरिभिः स्व पद प्रतिष्ठिताचार्य श्री विजय सिंह सूरि प्रमुख परिवार परिवृत्तः श्री नडुलाई मंडन श्री ज़खल पर्वतस्य प्रासाद मूलनायक श्री आदिनाथ विवं ॥ श्री ॥
- श्री नेमिनाथजी का मंदिर ।
( 857 ) ओं नमः सर्वज्ञाय ॥ संवत् ११८५ आसउज वदि १५ कुजे ॥ अद्यह श्री नडूलडागिकायां महाराजाधिराज श्री रायपाल देवे। विजयीराज्यं कुर्वतस्ये तस्मिन काले श्रो मदुर्जित तीर्थः श्री नेमिनाथ देवस्य दोप धूप नैवेद्य पुष्प पूजाद्यर्थ गुहिलान्वयः । राउत उधरण सूनुना मोक्तारि १४० राजदेवेवन स्व पुण्याय स्वीयादान मध्यात् माग्गे गच्छता नामा गतानों वृषभानां शेकेषु यदा भाव्यं भवति तन्मध्यात् विंशतिमो भागः चंद्रा यावत् देवस्थ प्रदत्तः ॥ अस्मद्वंशीयेनाम्येन वा केनापि परिपंथना न करणीया॥ अस्मदत्त न केनापि लोपनीयं ॥ स्वहस्ते पर हस्ते वा यः कोपिं लोपयिष्यति । तस्याह करे लग्नो न लोप्य मम शासनमिदं ॥ लि. पांसिलेन ॥ स्व हस्तोत्रं सामिज्ञान पूर्वकं राउ. राज देवेन मतु दत्त ॥ अत्राहं साक्षिण ज्योतिषिक दूदू पासूनुमा गूगिना ॥ तथा पला. पाला पधित्रा १ मांगुला ॥ देवसा । रापसा ॥ मंगलं महा श्रीः॥
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( २१८)
J(858 ) ओं॥ स्वस्ति श्री नप विक्रम समयातीत सं० १४४३ वर्षे कार्तिक वदि ११ शुक्र श्री नडुलाई नगरे पाहुमानान्वय महाराजाधिराज श्री वणवीर देव सुत राज श्री रणवीर देव विजय राज्ये अत्रस्थ स्वच्छ श्री मदवहद्गच्छ नभस्तल दिनकरोपम श्री मानतुग सूरिवंशोमव श्री धर्मचन्द्र सूरि पह लक्ष्मी श्रवणो उत्पलाय मानः श्री विनय चंद्र सूरि मिररूप गुण माणिक्य रत्नाकारस्य यदुवंश शृगार हारस्य श्री नेमीश्वरस्य निराकृत जगद विषादः प्रसाद समुद्दधे आचंद्रार्क नन्दतात् ॥ श्रो॥
J कोट सोलंकी।
( 859 ) ॐ ॥ स्वस्ति श्री न प विक्रम कालातीत संवत् १३८४ वर्षे चैत्र सुदि १३ शुक्र श्री आसल पुरे महाराजाधिराज श्री वणवीर देव राज्ये राउत माल्हणान्वये राउत सोम पुत्र राउत वांधी भार्या जाखल देवि पुत्रेण राउत मूल राजेन श्री पार्श्वनाथ देवस्य ध्वजारोपण समये राउत बाला राउत हाथा कुमर लुभा नीवा समक्ष मातृ पित्रोः पुण्यार्थं ढिकुय उबाडी सहितः प्रदत्तः आचंद्रार्क यावदियं व्यवस्था प्रमाण ॥ बहुभिर्व सुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमी सस्य तस्य तदा फलं ॥ शुभ भवतु ॥ श्री॥
धानेराव।
( 860 ) संवत् १२१३ भाद्रपद सुदि १ मंगल दिने श्री दंडनायक बैजल्ल देन राज्ये श्री वंस
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( २१६ ) गत्तीय राउत महण सिंह भुक्ति बंसंह उवाट मध्यात श्री महावीर देव वर्षे प्रति द्राम ४ खाज सूणो दत्ताः जस्य भूमिः तस्य तदांमत्य। सेठ रायपाल सुत राव राजमल्ल महाजन रक्ष पाल विनाणि यस्स दिवहिं।
बेलार ।
मारवाड़ के देसूरी जिलेके घानेराव नामक स्थानके समीप यह ग्राम है।
श्री आदिनाथ जी का मंदिर।
( 861 ) ओं संवत १२३५ वर्षे श्री. साधिग भार्या माल्ही तत्पुत्रा आववीर धदाक आवधराः आववीर पुत्र साल्हण गुण देवादि समन्वित आत्म श्रेयसे लगिका कारितवान।
J( 862 ) ॐ संवत १२३५ वर्ष फाल्गुन वदि ७ गुरौ प्रौढ प्रताप श्री मद्धांधल देव कल्याण विजय राज्ये बाधल दे चैत्ये श्री नाणकीय गच्छे श्री शांति सूरि गच्छाधिपे शाश्च । आसीद् धर्कट वंश मुख्य उसनः श्राद्धः पुरा शुद्धधीस्तद्गोत्रस्य विभूषणां समजनि श्रष्ठि सपाश्र्वाभिधः । पुत्री तस्य वभूवतुः क्षितितले विख्यात कीर्ति अशं पूमल्ह प्रथमो वभूव सगुणी रामाभिधश्चापरः ॥ तथान्यः ॥ श्री सर्वज्ञ पदार्चने कृत मर्तिट्टाने दयालु महु राशादेव इति क्षितौ समभवत पुत्रोस्य घांघाभिधः । तत्पुत्रो यति संप्रतिः प्रति दिन गोसाक नामा सुधीः शिष्टाचार विशारदो जिन गृहोद्वारोद्यतो योऽजनि ॥२॥
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( २२० ) कदाचिदन्यदा चित्त विचिंत्य चपलं धनं । गोष्ट्याच राम गोसाभ्यां कारितो रंग मंडपः ॥३॥ भद्रं भवतु।
(863 )
संवत १२३८ पौष बदि १० वला नागू पुत्र थे. उद्धरण भार्यया श्री. देवणाग पुत्रिकया उत्तम परम श्राविकया स्व श्रेयोर्य श्री पार्श्वनाथ देव चैत्य मंडपे स्तंभोयं कारितः।
J ( 864 ) अ॥ संवत १२३८ पौष वदि १० श्री मांय कुमार पुत्र श्री. धवल भार्यया वला. नागू पुत्रिकया संतोस परम धाविकया स्व श्रेयार्थ श्री पा।
J ( 865 ) ॐ सं० १२६५ वर्षे यांथां भार्या तिण देवि तत्पुत्रिका पउसिणि पुत्र गोसा मार्या लक्षा श्री पाल्हाया --- माल्हा-.--भार्या श्री ति---- भार्या ---न भार्या पूरी श्री गोसाकेन सकल बंधु सहितेन सोहि ।
J( 666 ) ___ ॐ गच्छे श्री नाणकाभिख्ये सुधर्म सुत वल्हणः। अमुच्चारित्र संयुक्तो वाल भद्रो मुनिः पुरा ॥१॥ तच्छिष्यो हरिचंद्राह्वो मुनिचन्द्र - - परः। तदन्वये धनदे - - पाव दे। घोस सोमको ॥२॥ पार्श्व देवः स्वशिष्येन वीर चंद्रण संयुतः। लगिकां कारयामास गुरु कंद विषद्धये ॥३॥
( 867 ) ओं संवत १२६५ वर्षे धर्कट वंशे भार्या जिन देवि तत्पुत्री पंचगोसा० सदेव भार्या सुखमति तत्सुत थांथां काल्हा राल्ह घोर सीह पाल्हण प्रमुख गोसा पुत आमू
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( २२१ )
वीर आम जाल काल्हा पुत्र लक्ष्मीधर महीधर राल्हण पुत्र आखे शूर घोरहसी पुत्र देव जस पाल्हण पुत्र घण चंडा रथ चंडादि स्वकलत्र समन्विताः स्व श्रवोर्थं स्तंभ लगामिमं कारापयामासुः ।
( 868 )
ओं संवत १२६५ वर्षे उसम गोत्र श्रेष्ठ पार्श्वभायां दूल्हेषि तत्पुत्र मगाकेन भार्या राजमति राहू तस्याः पुत्राश्चत्वारो लक्ष्मीधर अभय कुमार मेघ कुमार शक्ति कुमार लक्ष्मीधर पुत्र वीर देव अभय दे पुत्र सर्वदेबादिषु कुल कुटुब सहितेन स्तंभन माकारितेदमिति --
---|
( 869 )
ॐ संवत १२६५ वर्षे श्री नाणकीय गच्छे धर्केट गोत्र आसदेव तत्सुत जागू भार्या - थिर मति तत्सुत गाहड़स्तस्य भार्या सातु तत्पुत्र आजमदादेः समुर्त्तिका सूरि काम कारयदात्म यसे ॥ छ ॥
फलोदी |
यह स्थान मारवाड़ के मेड़ता नगरके पास है ।
बड़े जैन मंदिरके देहलीके पत्थरों पर ।
( 870 )
संवत् १२२१९ मार्गसिर सुदि ६ श्रो फलवर्द्धिकायां देवाधिदेव श्री पार्श्वनाथ चैत्ये श्री प्राग्वाट वंसीय रोपि मुणि मं० दसाढ़ाभ्यो आत्म श्रेयार्थ श्री चित्रकूटीय सिलफ्ट सहितं चन्द्रको प्रदत्तः शुभं भवत् ॥
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(२२२ )
( 871 ) चैत्यो नरवरे येन श्री सल्लक्ष्मट कारिते। पंडपो मंडनं लक्ष्या कारितः संघ भास्वता ॥१॥ अजयमेरु श्री वीर चैत्ये येन विधापिता श्री देवा बालकाः ख्याताश्चतुर्विंशति शिखराणि ॥२॥ श्रेष्ठी श्री मुनि चंद्राख्यः श्री फलवर्द्धिका पुरे उत्तान पह श्री पार्श्व चैत्येऽचीकरदद् भूतं ॥३॥
कोकिन्द । यह प्राचीन स्थान भी मारवाड़के मेड़ता जिलेमें है
श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर।
J( 2) ॐ॥ संवत् १२३० आषाढ़ सुदि श्री किष्कंधर दिवा प्रमुख वाला मलण बास ददिवा रावधी विधि चैत्ये मूल नायकः श्री आनन्द सूरि देशनया श्रे॥१॥
J ( 873 ) ___ॐ ॥ संवत १२३० आषाढ़ सुदि किष्कंध विधि चैत्य मूल नायकः श्री आनंद सूरि देशनया अ० धाधल श्रे० वाला लण दास ददिवा पीवर दिवा प्रमुख पाक -.।
( 874 ) ॐ॥ नमो बीतरागाय ॥ श्री सिद्धिर्भवतु ॥ स्वति श्रियामास्पदमापसिद्विजगत्त्रये यस्य भवत् प्रसिद्धि। सोऽस्तु श्रिये स्फूर्जदनव रिद्विरादीश्वरः शारद भास्य दिद्धि ॥१॥ यमाहता शैव मताऽवलंया। हिन्दु प्रकाराय वन प्रकाराः। सर्वेऽप्यमी
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( २२३ )
मोद भृतो भजंते । युगादि देवो दुरितं सहंतु ॥ २ ॥ दूर्ध्वा प्रसारः सवट प्रसारः । कच्छ प्रसारो व्रतति प्रसारः । इमे समे कोटितमेऽपिभागेऽपत्य प्रसारस्य न यांति यस्य ॥३॥ गीर्व्वाण सालो नहि काष्ठ भावात् । तथा पशुत्वान्नहि कामधेनुः । मृदां विकारान्नहि काम कुंभश्चिंतामणिन्नैव च कर्करत्त्रात् ॥४॥ सूर्यो न तापाकुलता करत्वात् । सुधाकरोनैव कलंकवत् खात् ॥ सुवर्ण शैलो न कठोर भावात् । नाभ्यंगजातेन तुलामुपैति ॥ ५॥ दुग्धो दधौ संस्थित तोय विंदून । पुष्पोच्चयान्नंदन कानन स्थान् । करोत्करान् शारद: चन्द्र सरकान् । कश्चिन्मिमीतेन गुणान् युगादेः ॥६॥ यस्माद् जगत्यां प्रभवंति विद्याः । सुर्पव्वलोकादिव काम गव्यः । द्वय्योऽपि वांच्छाधिक दान दक्षाः । पुष्णातु पुण्यानि स नाभि सूनुः ॥७॥ यतोंतराया स्टयरितं प्रणेश । मृगाधिराजा दिव मार्गः पूगाः । यद्वा मयूरादि वले लिहानाः । स मारु देवो भवताद् विभूत्यै ॥८॥ राठोड वंश व्रतति प्रताना नीकोपमो नीक निकाय नेता । राजाधिराजो जनि मल्ल देव । स्तिरस्कृतारि प्रति मल्ल देवः ॥ ९ ॥ तस्मौरसस्सम जनिष्ट बलिष्ठ बाहुः प्रत्यर्थिता पनकदर्थन पर्व्व राहुः । श्री मल्लदेव नृप पह सहस्र रश्मिः । श्री मानभूदुदय सिंह नृपः सरश्मिः ॥१०॥ कम धज कुछ दीपः कांति कुल्या नदीप । स्तनु जित मधु दीपः सौम्यता कौमुदीपः । नृपतिरुदय सिंहा स्व प्रतापास्त सिंहः सितरद मुचुकुंदः सर्व्व नित्या मुकुन्दः ॥११॥ राज्ञां समेषामय मेव वृद्धो । वाध्यस्तद न्येरथ वृद्ध राजः । यस्येति शाहिर्विरुदं स्मदया । दकन्धरो वर्व्वर वंश हंसः ॥ १२ ॥ तरपट्ट हेम्नः कप पट्ट शोभा । मश्रीभरत्संप्रति सूर सिंहः । यो माष पेषं द्विषतः पिपेष | निर्मूल का कषितार्त्तितांतिः ॥१३॥ राज्य श्रियां भाजन मिठु धामा । प्रताप मंदी कृत चंड घामा । संपन्न नागावलि नाव सिंहः पृथ्विी पती राजति सूर सिंहः ॥ १४॥ प्रतापतो विक्रमत् सूर्य सिंहौ गतो व्योम वनं च भीतो । अन्वर्थतो नाम जगाम सूर्य । सिंहे तियः सर्व जन प्रसिद्धं ॥ १५॥ यदीय सेनोच्छलितै रजोभि । मलीमसांगो दिनसाधि नाथः । परो दया दस्त मिषेण मन्ये । स्नातु प्रवेशं कुरुते विनम्रः ॥१६॥ अप्येक मीहेतन
।
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(२२४)
शुद्ध वंशो। धारे चकं तप्ति युतो विशेषात् । स्वयं हताराति वसुन्धरा खो परिग्रहात्त द्वहुता करस्सः ॥१७॥ तथापि राज्ञः परितोष भाजः । स्तुति विज्ञा विविधः कवित्वेः । वहंति भक्तिं स्व कुटुवलोका। अहो यशो भाग्य वशोपलभ्यं ॥१८॥ द्वाभ्यां युग्मं । सुरेष यद्वन्मधवा विभाति । यथैव तेजस्विषु चंड रोचिः। न्यायानुयायि विव रामचन्द्र। स्तथाघुना हिन्दुषु भूधयोयं ॥१९॥ द्रव्य जिनाचौचित कुकमादि दीपार्य मा जाद्यममारि घोषं । आचामतोम्लादि तपो विशेषं विशेषतः कारयते स्वदेशे ॥२०॥ ना पुत्र वित्ताहरणं न चौरी नन्या समोषो न च मद्य पानं । नाखेटको नान्य वशा निषेवे। त्यादि स्थितिः शासति राज्यमस्मिन् ॥२२॥ अभूदृधानो युवराज मुद्रां तस्मात्कुमारो गजसिंह नामा। गत्या गजोऽसीव बलेन सिंहस्ते नैव ले गजसिंह नाम ॥२२॥ श्रो ओसबालान्वय वार्द्धिचन्द्रः। प्रशस्त कार्यषु विमुक्त तंद्रः। विज्ञ प्रगेयो चितवाल गोत्रः पणेष्वपिस्वेष्व चलत्व गोत्रः ॥२३॥ आसीन्निवासो नगरांतरेच। प्रायः प्रसूतैःविणैरुपेतः जगाभिधानो जगदीश सेवा। हेवाभिरामा व्यवहारि मुख्यः ॥२४॥ द्वाभ्यां युग्मं । विद्यापुरः सूरि सुवाचकानां। करे पुरे गेधपुरामिधाने। दंतं प्रमाणाब्दवया जगाख्यः सएष तुर्य व्रतमुच्चचार ॥२५॥ सदंगजन्मा जनित प्रमोदः पुण्यात्मनां पुण्य सहाय भावात् । विशिष्ट दानादि गुणैः सनायो। नाथा भिधी नाथ समाप्त मानः ॥२६॥ तस्योज्वलस्फार विशाल शोला। भाऱ्या भवद् गूजर दे सुनामा। रूपेण वर्या गृह भार घुर्या। श्री देव गुर्वाः परिचर्य यार्या ॥२७॥ असूत सा पूर्व दिगेय स्य। मुक्ता मणिं वंश विशेष यष्टिः। वजांकुरं रोहण भूमि केव। नापाभिधानं सुत राज रत्न ॥२८॥ गणेरनेकै सकृत रनेकैः । लेने प्रसिद्धि भवि तेन विष्वक। सदर्थिनीन्येपि समञ्जयतु । गुणान्सपुण्यान्विधुवद्विशुद्वान ॥२९॥ तस्यासीन्नवलादे। बनिता वनितार सार रूप गुणा । शीलालंकृत रम्या गम्या नापाहुये नव ॥३०॥ आसानिधानोह्यमृतासिंधश्व । सुधर्म सिंहोप्युदयाभिधोपि । सादूल नामेति च सेति पंच। तयोस्तनूजा इव पांडु कुत्याः ॥३१॥ आसा भिधानस्य वभूव भार्या सरूप देवोति तयोः सुतो दी।
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( २२५ )
तयारदादिम वीर दासो । लघुश्चिरंजीवित जीव राजः ॥३२॥ वृद्धे सरस्याऽमृत संज्ञितस्य । मृगे चणा मलिक देभिधाना । सुता वभूतामनयेोस्तथा द्वी मनोहराख्यो पर वर्द्धमानः ॥३३॥ खदा मुदे धारल दे भिधाना । सुधर्म सिंहस्य सधर्मिणीति । कुटु' बिनी साउछ रंगदेवी । प्रिया वभूवादय सज्ञितस्य ॥ ३४ ॥ इति परिवार युत श्चज्जयंत शत्रुंजये ध्वकृत यात्रां । निधि शर नरपति १६५९ संख्ये । वर्ष हर्षेण ना पारुयः ॥ ३५॥ अर्बुद गिरि राण पुरे नारदपुर्या'च शिवपुरी देशे । योत्रां युग षट् पद पद | कला १६६४ मितेन्दे चकार पुनः ॥ ३६ ॥ श्रीविक्रमात सक्कं पढभू । वर्षे १६६६
1
फाल्गुन शुक्ल पक्ष । सौ दंपती स्वी कुरुतः स्मतुर्य । व्रतं तृतीया हनि रुप्य दानैः॥३७॥ दानं च शीलं च तथोपकार । स्त्रयात्मकोयं शुभ योग आस्ते । नापाभिधान व्यवहारि मुख्ये । यथा लोके गुरु पुष्य पूर्णा ॥ ३८ ॥ भुजार्जिताया निज चारु संपदो । न्यायजितायाः फलमिष्टमिच्छता । वांणागषट् शीतगु १६६५ संख्य हायने । विधापित स्तेनहि मूल मंडपः ॥३९॥ चतुष्किके द्वेअपि पार्श्वयो यो । नपा भिधानेन विधापिते इमे । पित्रोर्यशः कीर्त्ति रुभे इव स्वयोः । कर्त्ता द्वयं सोडर सूत्र धारकः ॥४०॥ विविध वादि मतं गज केसरी | कपट पंजर भंग कृते करी । भव पयोधि समुत्तरणे तरी । प्रबल धैर्य हरैवंसनेदरी ॥४१॥ असम भाग्य पथश्चय सागरः । स्त्र गुण रंजित नायक नागरः । विजय सेन गुरु स्तप गच्छ राड् । विजयते जय तेज उदाहृतः ॥४२॥ द्वाभ्यां युग्मं । तत्पहोदयि वयो विजयंते विजय सूरोशः । श्रो उचितवाल गोत्रावतंस तुल्या अनूचानाः ॥४३॥ तेषां निदेशेन सदो विभा करे। गंगा तरंगालिल सद्य शोमरैः । जिनालयाय प्रतिभा बधूवरे । प्रतिष्ठिता वाचक्र लब्धि सागरैः ॥ ४४ ॥ पंडित पंक्ति प्रभावः श्रो विजय कुशल विबंध वरास्तेषां शिष्येणादय रुचिना प्रशस्तिरेषा विनिरमाथि ॥४५॥ श्री सहज सागर सुधी विनेय जय सागरः प्रशस्ति ममां । उदली लिखदुत्कीर्णा वर ताडर सूत्रधारेण ॥४६॥
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( २२६ )
सेवाड़ी |
मारवाड़ के गोड़वाड़ इलाकेके वाली जिलेके समीप यह प्राचीन स्थान है ।
श्री महावीर जी का मंदिर ।
J
(875)
ॐ ॥ सं० ११६७ चैत्र सु० ६ महाराजाधिराज श्री अश्यराज राज्ये । श्री कटुक राज युवराज्ये । समी पाठीय चैत्ये जगतो श्री धर्मनाथ देवसां नित्य पूज्जार्थं । महा साहणिय पूअवि-- - पौत्रेण ऊशिम राज पुत्रेण उप्पल राकेन। मां गढ आंचल | वि० सल खण जोगरादि कुटुब समं । पट्टांडा ग्रामे तथा मेद्रांचा ग्रामे तथा छेछड़िया मी ग्रामे ॥ अरहट अरहटं प्रति दत्तः जब हारकः ॥ एक यः कोपि लोपयिष्यति ते स्मदीय धर्म भाग्याः सदा भविष्यति । इति मत्वा प्रतिपालनीयं । यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदाफलं । वहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः ॥ १ ॥ छ ॥
(876)
ॐ ॥ स्वजन्मनि जनताया जाता परतोषकारिणी शांतिः । विबुध पति विनुत चरण: स शांति नामा जिनेा जयति ॥ १॥ आसीदुग्र प्रतापाद्यः श्री मदण हिल भूपतिः । येन प्रचंड देईंड प्रराक्रम जिता मही ॥२॥ तत्पुत्रः चाहमाना नामन्वये नीति सद्वहः । जिन्द राजाभिधो राजा सत्यस शोर्य समाश्रयः ॥ ३ ॥ तत्त नूजस्ततो जातः प्रतापा क्रांत भूतलः । अश्वराजः श्रियाधारो भूपतिर्भूभृतां वरः ॥४॥ ततः कटुकराजेति तत्पुत्रा धरणी तले । जज्ञे स त्याग सौभाग्य विख्यातः पुन्य विस्मितः ॥५॥ तदुकी पचनं रम्यं शमी पाटी ति नामके । तस्त्रास्ति वीर नाथस्य चेत्यं स्वर्ग समेोपमं ॥६॥ इतश्चासीद विशुद्धात्मां
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( २२७ ) यशोदेवो बलाधिपः। राज्ञां महाजनस्यापि समायामग्रणी स्थितः ॥७॥ श्री पंडेरक सग्दच्छे बंधूनां सुहृदां सतां। नित्योपकुर्वता येन न श्रांतं समचेतसा ॥८॥ तत्सतो बाहडो जातो नराधिप जन प्रियः। विश्व कर्मेव सर्वत्र प्रसिद्धो विदुषां मतः ॥तत्पुत्रः प्रथितो लोके जैन धर्म परायणः । उत्पन्नः थल्लको राज्ञः प्रसाद गुण मंदिर ॥१०॥ दया दाक्षिण्य गांभार्य बुद्धिचिध्यान संयुतः। श्री मस्कटुक राजेन यस्य दानं कृतं शुभं ॥ ११॥ माद्येयंवक संप्राप्तो वितीणं प्रति वर्षकं । द्रम्माष्टकं प्रमाणेन घल्लकाय प्रमोदतः ॥१२॥ पूजार्य शांति नाथस्य यशोदेवस्य खत्तके। प्रवर्द्धयतु चंद्रार्क यावदादनमुज्वलं ॥ १३ ॥ पितामहेन तस्येदं समीपादयां जिनालये। कारितं शांति नाथस्य बिंबं जन मनोहरं ॥१४॥ धर्मेण लिप्यते राजा पृथ्विी भुनक्ति यो यदा। ब्रह्महत्या सहस्रेण पातकेन विलोपयन् ॥१५॥ संवत् ११७२ ॥
(877)
ॐn संवत् ११९८ असोज यदि १३ रयो अरिष्ट नेमि पूर्व दिसायां अपवरिका अग्रे भित्ति द्वार पत्रे चर्तुलनाते कत्तु मम च गोष्ठ्या मिलित्वा निषेधः कृतः ॥ लिखितं पं० अश्वदेवेन।
( 878 ) सं० १२४१ मासाढ यदि रवी ओ संभव देव फागुण सुदि चवण ...लर .. पधर --- ॥ - - - - सुदि १४ जंसो- - - हेकर जिसं देव ॥ - - - सुदि १५ विरवार -..- हेतु श्री बहेव ॥ - - - कार्तिक यदि ५ माणु --- देव पास देव ॥ - - - सुदि ५ रवी --- ण शांवव ॥
1 ( 879 ) *॥ सं० १२५१ कार्तिक वदि १ रवी अय वाससा नालिकेर ध्वजा खासटी मूल्यं
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(२२८) निज गुरु श्री शालि भद्र सूरि मूर्ति पूजा हेतो श्री सुमति सूरिभिः । प्रदतात् बलाः ५ मास पाटकेने चके व्ययनीयाः ॥छ॥
( 880) ॥ॐ॥ संवत् १२९७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ गुरौ बासहड़ वास्तव्य अजाजल गोत्र श्रेष्ठ चांदा सुत नाना ...- देव सधोरण सुत आस पाल गुण पाल सेहड़ सुत पूस देव सायूदेव पूसदेव सुत धण देव सहड़ मायां शीत पुत्रिका साजणि जाल्ह सती रण भार्या राहीअई - . - - सेहड़ भार्या अइहव सूमदेव भार्या मदावति सावदेव भार्या प्रहल सिरि कुटुब समुदायेन सेहड़ेन मार्या समन्वितेन देव कुलिका कारापिता ॥ मेद पुत्रिका देह साहुसा उसभ दासेन सुभं भवत् ॥
सांडेराव । यह भी मारवाड़के पाली जिलेमें है।
श्री शांतिनाथजी का मंदिर ।
( 881 ) श्री पंडेरक चैत्ये पंडित। जिन चन्द्रण गोष्ठियुतेन धीमता देव नाग गुरो मूर्ति कारिता घिरपाल मुक्ति बांछतां सं० ११४६ वैशाख वदि--।
( 882 ) सं. १२ - - वर्षे फागुण सुदि ११ गुरौ अद्य हे श्री षंडेरक निवासी श्रेष्टि गुणपाल पुत्रीकाया गो--- ला -- सुखमिणि नामिकाया। श्री महावीर देव घेत्ये चतुष्फिका कागपिता ।
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( २२६ )
( 883 )
ॐ ॥ संवत् १२२१ माघ बदि २ शुक्र े अद्येह श्री केल्हण देव विजय राज्ये । तस्य मातृ राज्ञी श्री आनत्न देव्या श्रो षंडेरकीय मूलनायक श्री महावीर देवाय चैत्र वदि १३ कल्याणिक निमित्तं राजकीय भोग मध्यात् । युगंधर्याः हाएल एकः प्रदत्तः । तथा राष्ट्रकूट पालू केल्हण तद्भातृज ऊत्तमसीह सूद्रग काल्हण आहड आसल अणतिगादिभिः तला राभाव्यधस ? गट सरकात् । अस्मिन्नेव कल्याण केंद्र १ प्रदत्तः ॥ १॥ तथा श्री पंडेरक वास्तव्य रथकार घणपाल सूरपाल जोपाल सिगडा अमियपाल जिस हड - देल्हणादिभिः चैत्र सुदि १३ कल्याणके युगंधर्याः हाएल एक १ प्र ----
J( 8 84 )
सम्बत् १२३६ कार्त्तिक यदि २ बुधे अद्य ह श्री नड्ले महाराजाधिराज श्री केल्हण देव कल्याण विजय राज्ये प्रवर्त्तमाने राज्ञी श्री जाल्हण देवि भुको श्रो पंडेरक देव श्री* पार्श्वनाथ प्रतापतः थांथा सुत राल्हाकेन भा भ्रातृ पाल्हा पुत्र सोढा सुभकर रामदेव धरणि यवोहीष वर्द्धमान लक्ष्मीधर सहजिग सहदेव सहियगछा ? रासां धोरण हरिचन्द्र वर देवादिभिः युतेन म परम श्रेयोर्थं विदित निज गृहं प्रदत्तः ॥ राल्हारा सरक मानुषै सद्भिः वर्ष प्रति द्रा० एला ? प्रदेया । शेष जनानां बसतां साधुभिः गोष्टिक सारा कार्य्या ॥ संवत् १२६६ वर्षे ज्येष्ट सुदि १३ शनौ सोयं मातृ धारमति पुनः स्तंभको उधृत । धांधा सुत राल्हा पाल्हाभ्यां मातृ पद श्री निमित्त स्तंभको प्रदत्तः ।
नाना
मारवाड़के वाली जिलेमें यह ग्राम है।
✓ (885)
संवत १२०३ वैशाख सुदि १२ सोम दिने श्रो महंत सूरिभिः प्रतिष्ठितः समस्तः ॥
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( २३० )
-
( 886 )
संवत १४२६ माह बदि ७ चंद्र श्री विद्याधर गच्छे मोढ ज्ञा० ठ• रत्न ठ. अर्जन ठं. विहणा पुत्र भोन्द देव श्रेयसे भात टाहाकेन श्री पार्श्व पंचतीर्थी का० प्र० श्री उद. देव सूरिमिः।
- ( 887 ) सं० १५०५ वर्षे माह बाद ६ शनो श्री ज्ञावकीय गच्छे महावीर विवं प्र० श्री शांति सूरिभिः - - . - ष ण जिन - -- भवतं
___V ( 888 ) सं० १५०६ वर्षे माघ वदि ११ सा० दूदा वीर मं महिया - - - लहराज -..
सं १५०६ वर्षे माघ बदि १० गुरौ गोत्र वेलहस ऊ. ज्ञातीय सा० रतन भार्या रतना दे पुत्र दूदा वीरम माह पादे पलू णा देव राजादि कुटुम्ब युतेन श्रीवीर परिकरः कारित प्रतिष्ठितः श्री शांति सूरिभिः ।
(890) ॥ ॐ ॥ अथ संवत्सरे नप विक्रमादित समयात संवत १६५८ भाद्र पद मासा शुक्ल पक्ष ७ सातमी तिथौ शनिवारे। श्री बैद्य गोत्रे। श्री सविया किण्णोत्रजा। मंत्रीश्वर त्रिभुवन तत्पुत्र पूना० तत्पुत्र मुहता चांदा तत्पुत्र मु० षेससी तत्पुत्र मुहता नीसल १ चाइमल २ वीसन पुत्र मुहता श्री उरजन तत्पुत्र मुहता पतागढ़ सिवाणे साको करी मूउ। पिता पुत्र मुहता श्री नाराइण १ सादूल २ सूजा ३ सिघा १ सहसा ५ मुहता श्री नारायण नुराणा श्री अमर सिंघ जी मया करेने गांव नाणो दीयो मुहतो नाराइण अरहट १ साईमल देव श्री महावीर नु सतर भेद पूजा सारु केसर दीबेल सारु दीधी
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( २३१) डोदूनां बरोस। उत्थापे तियेनु गाईरो--सुस। तुरक उत्थापे तियेनं सुयररी संस चले ..... को उथाप जो -- . गांव नाणारो चढ़ियो गांव वीबलाणे-- वो-सि-ए। इजाएन - गांब - दम १ चेटियो--.-तको उथाप जो । बीजोको उथापसी तिषनु गदहउ गाव मुहता श्री नारायण भार्या नवरंगदे तत्पुत्र मु. श्री राज -- जणयल -.. दा पुत्री जषमी ....नाराण विजी भार्या नवलदे पुत्र जसवंत १ सहितं श्री... गच्छ भहारक श्री सिद्ध सूरि विद्यमाने --- ।. श्री ... -चंद शिष्य चांपा लिषितं । ए--- जको - . . सिणु - - - -।
लालराई।
मारवाड़के वाली जिलेके समीप इस ग्रामके एक प्राचीन खंडर जैन मंदिरमें यह लेख है।
- ( 891 ) संवत् १२३३ वैशाख सुदि ३ संनाणक मोक्ता राज पुत्र लाखण पाल राज पुत्र अभय पाल तस्मिन राज्ये वर्तमाने चा० भीवड़ा पड़ि देह बसी सू. आसधर समस्त सीर सहित खाड़िसीर जव मध्यात् जवा से १ गूजरी जात्रा निमित्त श्री शांति नाथ देवस्य दत्ता पूण्याय य: कोपि लुप्यते स पापो न छिद्यतेमंगल भवतू ॥ तथा अड़िया उस अरहह आसधर सीरोइय समस्त सीरण जवा हरीयु १ गूजर तृयात्रहि वील्हस्य पुण्या ॥१॥
( 893 )
* संवत् १२३३ ज्येष्ठ बदि १३ गुरी अद्यहं श्री मडूले महाराजाधिराज श्री केल्हण देव राज्ये वर्तमानः श्री कीर्चिपाल देव पुत्रै सिनाणकं भोक्ता राज पुत्र वाषण
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( २३२ )
पाहू राज पुत्र अभय पाल राज्ञी श्री महिषल देवि सहितैः श्री शांतिनाथ देव यात्रा निमित्त भढिया उव अरघट उरहारि मध्यात् गूजर तृहार १ जवा ग्राम पंच कुल दानं कृतं पुण्याय साक्षि अत्र वास्त -- गण --- सो० देवलये. मितस्य २ त
—-
समक्ष एतत् - समीपाटीय पातकेन लि
पाजून आप्र--. समक्ष आदानं
... हत्या
११ ।
111
कुंदी |
मारवाड़ के गोड़वाड़ इलाके के बीजापुर के पास यह प्राचीन स्थान है ।
श्री महावीरजी का मंदिर ।
(893)
ॐ ॥ सं० १२९९ वर्षे चैत्र सुदि ११ शुक्रे श्री रत्न प्रभोपाध्याय शिष्यः श्री पूर्ण चन्द्रोपाध्यायै रालकद्वय शिखराणि च कारितानि सर्वानि ।
( 894 )
1
ॐ सं० १३३५ वर्षे श्रावण वदि १ सोमे ऽद्यह समीपाही । मंडपिकायां भां पाहट वां । पथरा महं सजन उ महं० घीणा उधण सीह उ० व० देव सिंह प्रभृति पंच कुलेन श्रो शताभिधान श्री महावीर देवस्य नेचाप्रचयं ? वर्ष स्थितिके कृत द्र० २४ व विंशति । द्रम्माः वर्ष वर्ष प्रति समी मंडपिका पंच कुलेन दातव्याः पालनीयश्च बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः यस्य यस्य यदा भूमि तस्य तस्य सदा फलं शुभं भवतु ॥
-4
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(२३३)
( 895 ) सं० १३३६ वर्षे श्रष्टिको नाग श्र। श्र- : अर सीहेन सय पक्ष दत्त द्र० उमयं द्र ३६ समीपाटी मडपिकायां व्याष्टपय माण पंच कुलेन वर्ष वर्ष प्रति आचंद्रार्क - - यावत् दातव्याः। शुभमस्तु ।
( 896 ) ओं नमो भीतरागाय संवद १३४६ वर्षे श्रावण वदि ३ शुक्र दिने खहेड़ा ग्रामे महादपाल लमारावा कर्म सीहपा--..।
माताज'के मंदिरके स्तम्भ पर ।
( 897 ) ॥ ॐ ॥ नमो योत रागाय ॥ संवत् १३४५ वर्षे प्रथम:भाद्रवा यदि शुक्र दिने अद्येह श्री नडूल मंडले महाराज कुल श्री सम्पंत सिह देव राज्येत्र तन्नियुक्त श्री ॥ श्री करणे महं ललनादि पंच कुल प्रच्छति भूमि अक्षराणि पञ्चा ॥ समो तल पदित्य मंडपिकायां साधु • हेमाकेन भाद्वि हाथीउड़ी ग्रामें श्री महाबीर देव नेवार्थं वर्ष प्रति वर्ता - - क द्र २४ चत्वबिसि ,मा. प्रदत्ता शुभं भवतु ॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभि सगरादिपि। जस्य जस्य जदा भूमी तस्य तस्य क्दा फलं ॥ कपूर विजय लिषतं ।
खण्डहर में मिला हुआ पाषाण पर।
(898)
-.- ॥ विरके - पजे रक्षा सस्था जवस्तवः। परिशासतु ना'-- परार्य ख्यापना जिनाः ॥१॥ ते वः पातु जिना पिनाम समये यत्पाद पद्मोन्मुख मेंखा संख्य मयूख
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( २३४) शेखर नख श्रेणीषु विम्योदयात् । प्रायैकादशभिर्गुणं दशराती शक्रस्य शुम्मदृशांकस्य स्योद्गुण कारको न यदि वा स्वच्छात्मनां सङ्गमः ॥२॥..क्त-- नासत्करीलोप शोभितः। सुशेखर -- लो मूढेि रूढों महीभृतां ॥३॥ अभि बिभ्रचिं कासां सावित्री चतुराननः हरिवर्मा वभूधात्र भूविभुवनाधिकः ॥४॥ सकल लोक विलोचन पंकज स्फुरदनं बुद बाल दिवाकरः। रिपु बधूवदनेन्दु हृत द्युतिः समुदपादि विदग्ध नृपस्ततः ॥५॥ स्वाचाय या रुधिर बचनेर्वासुदेवाभिधाने बोघं नीतो दिनकर करैन्नीर जन्मा करो व। पूर्व जैनं निजमिव यशो कारयदस्तिकुण्या रम्यं हयं गुरु हिम गिरेः शृङ्ग शृङ्गार हारि ॥६॥ दानेन तुलित बलिना तुलादि दानस्य येन देवाय । भागद्वयं व्यतीर्यत भागश्चाचार्य वर्याय ॥७॥ तस्मादभूच्छुद्ध सस्तो ममटाख्यो महीपतिः । समुद्र बिजयी श्लाघ्य तरवारिः सदूर्मिकः ॥८॥ तस्माद समः समजनि समस्त जन जनित लोचनानंदः। धवलो बसुधा व्यापी चंद्रादिव चन्द्रिका निकरः ॥॥ अंतवाधार्ट घटाभिः प्रकटामिव मद मेदपाठे भटानां जन्ये राजन्य जन्ये जनयति जनताजं रणं मुज राजे। श्रीमाणे प्रणष्टे हरिण इव भिया गूजरेशे धिनष्ट तत्सैन्यानां शरण्यो हरिरिव शरणेयः सुरणा बभूव ॥१०॥ श्री मट्टला राज भूभुजि अजै जत्य भंगां भुवं दंडैभण्डन शौंड चंड सु अटै स्तस्याभिभून विभुः। यो दैत्यंरिव तारक प्रभूतिमिः श्री मान्महेद्रं पुरा सेनानोरिव नीति पौरुष परो नैषोत्परां नितिं ॥११॥ यं मूलादुद मूलयद्वगुरु बलः श्री मल राजो नपो दो धो धरणो बराह नृपतिं यह वपिः पादपं । आयातं भुविकां दिशी कमभिको यस्तं शरण्यो दधो दंष्ट्रायानिव रूढ मूढ महिमा कोलो मही मण्डलं ॥१२॥ इत्यं पृथ्वी भर्तृभिर्नाथ मानः सा - . - सुस्थितैरास्थितोयः । पायो नाथो वा विपक्षात्स्वपक्षां रक्षा कांक्ष रक्षणे बटु कक्षाः ॥१३॥ दिवाकरस्वेव करैः कठोरैः करालिता भर कदम्पकस्य। अशि श्रियं ताप हृतोरुतापं यमुन्नतं पादप वज्ज नौधा ॥ १४॥ धनुर्द्धर शिरोमणे रमल धर्ममभ्यस्यतो जगाम जलधेर्गुणो गुहरमध्य पारंपरं। समोयुर्राप सन्मुखाः सुमुख मार्गणानां गणाः सतां चरितमद्भुतं सकलमेव
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( २३५ ) लोकोत्तरं ॥१५॥ यात्रासु यस्य वयदौर्ण विषुर्विशेषात् वलगत्तुरंग खुरखात मही रजांसि। तेजोभिरूजित मनेन विनिर्जित त्वाद्धास्वान्विलज्जित इवासितगं तिरोभूत् ॥१६॥ न कामना मनो धीमान् घ- लनां दधौ । अनन्योहार्य सस्कायं भार धुर्योर्यतोपि यः॥१७॥ यस्तेजोभिरहस्करः करुणया शोद्धोदनिः शुद्धया। भीष्मो वंचन वंचितेन वचसा धर्मेण धर्मात्मजः। प्राणेन प्रलाय निलो बलभिदो मंत्रेण मंत्री परो रूपेण प्रमदा प्रियेण मदनो दानेन कोंभवत् ॥१८॥ सुनय तनयं राज्ये याल प्रसाद मतिष्ठिप त्परिणतवया निःसंगो यो बभूत सुधीः स्वयं । कृत युग कृतं कृत्वा कृत्यं कृतात्म चमत्कृती रकृत सुकृतीनो कालुप्यं करोति कलिः सतां ॥१६॥ काले कलावपि किलामलमेतदीयं लोका विलोक्य फलनातिगतं गुणोघं । पार्थादि पार्थिव गुणान् गणयन्तु सत्यानेकं व्यधाइगुणनिधि यमितीव वेधाः॥२०॥ गोचरयंति न वाचो यच्चरितं चंद्र चंद्रिका रुचिरं । वाचस्पते प्रचस्वी को वान्यो वर्णयेत्पूर्ण ॥२९॥ राजधानी भुवो भर्तु स्तस्यास्ते हस्ति कुण्डिका अलका धनदस्येव धनाढय जन सेविता॥२२॥ नीहार हार हरहास हिमांशु हारि nाकार वारि भुवि राज विनिराणां । वास्तव्य भव्य जन चित्त समं समंतात्संताप संपद पहार परं परेषां ॥२३॥ धौत कलधौत कलशाभिराम रामास्तनाइव न यस्यां । सत्य परेप्य पहारा: सदासदाचार जनतायां ॥२१॥समद मदनालीलालापाः प-नाकुलाः कुवलय दृशां संदृश्यंते दृशस्तरलाः परं। मलिनित मुखा यत्रोवृत्ताः परं कठिनाः कुचा निविड रचना नीवो वधाः परं कुटिलाः कचाः ॥२५॥ गाढ़ोत्तंगानि सार्दु शुचि कुच कलशैः कामिनीनां मनोज्ञौविस्तीर्णानि प्रकामं सहं धन जघनवता मंदिराणि । भ्राजंते दभ्र शुभ्राण्यतिशय सुभगं नेत्र पात्रः पवित्रः सत्रं चित्राणि धात्रो जन हृत हृदयविभमैर्यत्र सत्रं ॥२६॥ मधुरा घन पर्वाणो हृद्यरूपा रसाधिकाः। यत्रेक्ष वाटा लोकेभ्यो नालिकत्वादिदेलिमाः ॥२०॥ अस्यां सूरिः सुराणां गुरु रिव गुरुभिर्गौर वाहाँ गुणौघे भूपालोनां त्रिलोकी वलय विलसिता नंतरानंत कीतिः। नाम्ना श्री शांति भद्रो भवदनि भवितुं भासमाना समानो कामं कामं समर्था जनित जनमनः संमदा यस्य मूर्गिः ॥२८॥ मन्गेमुना मुनीन्द्रेण मनोभू रूप निर्जितः । स्त्रघ्नेपि न स्वरूपेण समगन्स्ताति लज्जतः ॥२६॥
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( २३६ ) प्रोद्यपदमाकरस्य प्रकटित विकटा शेष भावस्य सूरेः सूर्यस्येवामृतांशं स्फरित शुभ रुचि वासुदेवाधिस्य। अध्यासीनं पदव्यां यम मल विलसज्ज्ञान मालोक्य लोको लोका लोकावलोकं सकलमचकलस्केवल संभवीति ॥३०॥ धर्माभ्यास रतस्यास्य संगतो गुण संग्रहः। अभग्न मार्गणेच्छस्य चित्रं निर्वाण वांछना ॥३१॥ कमपि सर्वगुणानुगतं जनं विधिरयं विदधाति न दुर्विघः । इति कलंक निराकृतये कृती यमकृतेव कृताखिल सद्गुणं "३२॥ तदीय वचनान्निज धन कलत्र पुत्रादिकं विलोक्य सकलं चलं दल मिवानिलांदोलितं । गरिष्ठ गुण गोष्ट्यदः समुददी घरद्धीर धीरुददार मति सुंदरं प्रथम तीर्थ कृन्मंदिरं ॥३३॥ रक्तं वा रम्य रामाणां मणि ताराव राजितं । इद मुख मिवा भाति भास मान वरालकं ॥३४॥ चतुरस्र पट ज्जन घाड्डनिकं शुम शुक्ति करोटक युक्त मिदम्। बहु भाजन राजि जिनायतनं प्रविराजति भोजन धाम समं ॥३५॥ बिदग्ध नप कारिते जिन गृहेति जीणे पुनः समं कृत समुद्धताविह भवांबुधिरात्मनः । अतिष्टिपत सोप्यथ प्रथम तीर्थ नाथा कृतिं स्वकीर्तिमिव मर्ततामुपगतां सितांशु धूतिं ॥३६॥ शांत्याचार्य खिपंचाशे सहस्र शरदा मियं । माघ शुक्ल त्रयोदश्यां सुप्रतिष्ठैः प्रतिष्ठिता ॥३७॥ विदग्ध नृपतिः पुरा यद तुलं तुलादेईदी सुदान मवदान धारिदम पोपलन्नाद्भुतं । यतो धवल भूपतिर्जिनपतेः स्वयं सात्मजोरघहमथ पिप्पलोप पद कूपकं प्रादिशत् ॥३८॥ यावच्छेष शिरस्थ मेक रजतस्थ्णा स्थिताभ्युल्ल सत्पातालातुल मंडपा मल तुलामा लंबते भूतलं । तावत्तार रवाभिराम रमणी गंधर्व थीर ध्वनि मन्यत्र धिनातु धार्मिक धियः सद्धप वेला विधौ ॥३९॥ सालंकारा समधि करसा साधु संधान बंधा श्लाघ्यश्लेषा ललित विलसत्तद्धिता ख्यात नामा। सत्ताढ्यारुचिरविरतिद्ध र्यमाधर्यवर्या सूर्याचार्य यरचिरमणी वाति रम्या प्रशस्तिः ॥४०॥ सम्बत १०५३ माघ शुक्ल १३ रवि दिने पुष्य नक्षत्रे श्री ऋषम नाथ देवस्य प्रतिष्ठा कृता महा ध्वज श्यारोपितः ॥ मूलनायकः ॥ नाहक जिन्दज सशम्प परभद्रः नागपोचिस्थ श्रावक गोष्ठिकर शेष कर्म क्षयार्थ स्व संतान भवाब्धि तरणार्थं च न्यायोपार्जित वित्तन कारितः ॥७॥ परवादि दर्प मथनं हेतु नय सहस्र अंगकाकीण। भव्य जन दुरित शमनं जिनेंद्र वर शासन जयति ॥१॥ आसीडी धन संमतः शुभगुणो भास्वत्प्रतापोज्ज्वला विस्पष्ट प्रतिभा
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( २३७ ) प्रमाव कलितो भूपत्तिमांगार्चितः। योषित्पीन पयोधरांतर सुखाभिष्वङ्ग सन्लालितो यः श्री मानहरि धर्म उत्तम मणिः सद्वंश हारे गुरौ ॥२॥ तस्माद्वभूव भुवि भूरि गुणोपपेतो भूप प्रभूत मुकुटार्चित पाद पीठः। श्रो राष्ट्रकूट कुल कानन कल्प वृक्षः श्री मान्विदग्ध नपतिः प्रकट प्रतोपः ॥३॥ तस्माद्भ.प गुणान्वित तमा कौतः परं भाजनं संभूतः सुतनुः सुतोति मतिमान् श्री मंमटो विश्रुतः। येनास्मिनिज राज वंश गगने चंद्रायितं चारुणा तेनेदं पितु शासनं समधिकं कृत्वा पुनः पाल्यते ॥४॥ श्री वलभद्राचार्य विदग्ध नृप पूजितं समभ्यर्पा । आचंद्राक्क यावदृत्त भवते मया प्रपाल्यते सर्वम् ॥५॥ श्री हस्ति कडिकायां चैत्य गृहं जन मनोहरं मक्त्या । श्री मबलभद्र गुरोद्विहितं श्री विदग्धेन ॥६॥ तस्मिलोकान्समाहूय नाना देश समागतान । आचंद्रार्क स्थितिं यावच्छासनं दत्त मक्षयं ॥७॥ रूपक एको देयो वहतामिह विंशतेः प्रवहणानां । धर्म - - - - क्रय विक्रयेच तथा ॥८॥ संभूत गंध्या देयस्तथा वहत्याश्च रूपकः श्रेष्टः। घाणे घटे च कर्क देयः सर्वेण परिपाट्या ॥६॥ श्री महलोक दत्ता पत्राणां चोल्लिका त्रयोदशिका। पेल्लक पेल्लक मेतद् द्यूत करैः शासने देयं ॥१०॥ देयं पलाश पाटक मर्यादावर्तिक - - - प्रत्यर घह धान्याढकं तु गोधूम यव पूर्ण ॥११॥ पेड्डा च पंच पलिका धर्मस्य विशोपक स्तथा भारे। शासन मेतत्पूर्व विदग्धेन राजेन संदत्तं ॥१२॥ कर्पासकांस्य कुकुम पुर मांजिष्ठादि सर्व मांडस्य । दश दश पलानि भारे देयानि विक - - - ॥१३॥ आदानादे तस्माद्भाग द्वय मर्हतः कृतं गुरुणा। शेषस्तृतीय भागो विद्या धन मात्मनो विहितः॥११॥ राज्ञा तत्पुत्र पोत्रैश्च गोष्ठ्या पुरजनेन च। गुरुदेव धनं रक्ष्यं नापेक्ष्यं हितमीप्सुभिः ॥१५॥ दत्ते दाने फलं दानोत्पलिते पालनात्फलं । अक्षितो पेक्षिते पापं गुरु देव धनेधिकं ॥१६॥गोधम मुदग यव लवण रालकादेस्तु मेयजा तस्य । द्रोणम् प्रति माणकमेक मत्र सर्वेण दातव्यं ॥१७॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः। यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलं ॥१८॥ राम गिरि नंद कलिते विक्रम काले गते तु शुचिमासे। श्री मवलभद्र गुरोविदग्ध राजेन दत्त मिदं ॥१०॥ नवसु शतेषु गतेषु तु षण्णवती समधि केषु माघस्य कृष्ण कादश्यामिह समर्थितं मंमट नृपेण ॥२०॥ यावद भूधर भूमि भानु भरतं भागीरथी
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( २३८ )
भारती भास्वद्मानि भुङ्ग राज भवन भाजद् भवांभोदयः । सिष्ठन्त्यत्र सुरासुरेंद्र महित जैनं च सच्छासनं श्री मत्केशव सूरि सन्तति कृते सावरप्रभूयादिदम् ॥२१॥ इदम् चाक्षय धर्म साधनम् शासनम् श्री विदग्ध राजेन दत्तं ॥ सम्बत ९७३ श्री मंमट राजेन समर्थितम् सम्बत् ९९६ ॥ सूत्रधारोद्भव शत योगेश्वरेण उत्कीर्णे यम् प्रशस्तिरिति ।
जालोर ।
मारवाड़का यह भी बहुत प्राचीन स्थान है । इसका प्राचीन नाम जावालीपूर था । तोपखाना ।
( 895)
लक लक्ष्मी विपुल कुलगृहं धर्मवृक्षालवालं । श्री मन्ना भेय नाथ क्रम कमल युगं मंगलं व स्तनोतु । मन्ये मंगल्य माला प्रणत भव भूतां सिद्धि सौध प्रवेशे यस्य स्कंध प्रदेशे विलसति गल श्यामला कुंसलाली ॥१॥ श्री चाहुमान कुलांवर मृगांक श्री महाराज अणहिला न्वयोवद्भव श्री महाराज आल्हण सुत - irat दुर्ललित दलित रिपुवल श्री महाराजकीर्तिपाल हेव हृदयानं दिनंदन महाराज श्री समर सिंह देव कल्याण विजय राज्ये तत् पाद पद्मोपजीविनि निज प्रौढि मातिरेकतिरस्कृत सकल पील्वाहिका मंडल तस्कर व्यतिकरे । राज्यचिंतके जोजल राजपुत्रे इत्येवं काले प्रवर्त्तमाने । रिपुकुलकमले दुःपुण्यलावण्यपोत्रं नय विनय निधान' धाम सौंदर्य लक्ष्म्याः । धरणि तरुण नारी लोचनान' दकारी जयति- - समर सिंह क्ष्मा पतिः सिंह वृत्तिः ॥ २ तथा ॥ औत्पत्तिकी प्रमुख बुद्धि चतुष्टयेन निर्णीत भुप भवनोचित कार्यवृत्तिः । यन्नातुलः समभवत् किल जो जलाह्वो - -- खंडित दुरतं विपक्ष लक्षः ॥ ३ श्री चंद्रगच्छ मुख मंडन सुविहित यतितिलक सुगुरु श्री श्री चन्द्रसूरि चरण नलिन युगल दुर्ललित राजहंस श्री पूर्ण भद्र सूरि चरण कमल परि चरण चतुर मधुकरेण समस्त गोष्टिक समुदाय समन्वितेन श्री श्रीमाल वंश विभूषण श्रेष्ठि यशोदेव सुतेन सदाज्ञाकारि निज- सुयशोराज जगधर विधीयमान निखिल मनोरथेन श्रेष्ठि यशोवीर
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( २३८ ) परम श्रावकेण संवत् १२३८ वैशाख सुदि ५ गुरौ सकल त्रिलोकी सलामोग भ्रमेण परिश्रांत कमला विलासिनी विश्राम विलास मंदिरं अयं मंडपो निर्मापितः ॥ तथा हि ॥ नाना देश समागतैर्नवनवैः स्खो पंसबर्ग मुहु यस्य -- -- पाव लोकन परैनौ तृप्तिरासाद्यते। स्मारं स्मारमधो यदीय रचना वैचित्र्य विस्फूर्जितं तैः स्वस्थान गतैरपि प्रतिदिनं सोत्कंठमावर्ण्यते ॥ १॥विश्वंभरावर वधू तिलकं किमेसहलीलारविंदमथ किं दुहितुः पयोधेः। दत्त सुरै रमृत कुंड मिदं किमत्र यस्यावलोकनधिधी विविधा विकल्पाः ॥ ५॥ गर्तापूरेण पासालं . . . प महीतलं । तुंगत्वेन नमो येन व्यानशे भुवन त्रयं ॥ ६॥ किं च ॥ स्फूर्जद्वयोमसर: समीनमकरं कन्यालिकुमाकुलं मेपाढय सकुलीरसिंह मिथुनं प्रोद्यद्वृषालंकृतं । ताराकैरवमिंदुधाम सलिलं सद्राजहंसास्पदं यावत्तावदिहादिनाय भवने नंद्यादसो मंडपः ॥ ७॥ कृत्तिरियं श्री पूर्ण भद्र सूरीणां ॥ अद्रमस्तु श्री संघाय।
( 899 ) ओं ॥ संवत् १२२१ श्री जावालिपुरीय कांचनगिरि गढ़स्योपरि प्रभु श्री हेम सूरि प्रयोघिस गूर्जर धराधीश्वर परमाईस चील्लक्य ॥ महाराजाधिराज श्री कुमार पाल देव कारिते श्री पार्श्वनाथ सत्कमूल विंच सहित श्री कवर विहाराभिधाने जैन चैत्ये । सद्विधि प्रवतनाय वृहद्गच्छीय वादींद्र देवाचार्याणां पक्षे आचंद्रा समर्पिते ॥ सं० १२४२ वर्षे एसद्वेशाधिप चाहमान कुल तिलक महाराज श्री समर सिंह देवादेशेन मां० पासू पुत्र मां. यशोवीरेण समुद्र ते । श्री मद्राजकुलादेशेन श्री देवा चार्य शिष्यैः श्री पूर्ण देवाचार्यैः । सं० १२५६ वर्षे ज्येष्ठ सु० ११ श्री पार्श्वनाथ देवे तोरणादीनां प्रतिष्ठा कार्ये कृते। मूल शिखरे च कनकमय ध्वजा दंडस्य ध्वजा रोपण प्रतिष्ठायां कृतायां ॥ सं० १२९८ वर्षे दीपोत्सव दिने अभिनव निष्पक्षप्रेक्षा मध्य मंडपे श्री पूर्णदेव सूरि शिष्यैः श्री रामचंगाचार्यः सुवर्णमय कलसारोपण प्रतिष्ठा कृता ॥ सुभं भवतु ॥ छ ।
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( २१०)
( 000 ) संवत् १२९४ वर्षे श्री मालीय श्रे० वीसल सुत नाग देवस्तत्पुत्रो देल्हा सलक्षण सोपाख्याः कांवा पुत्रो वीजाकस्तेन देवड़ सहितेन पितृकां श्रेयो) श्री जावालिपुरीय श्रा महावीर जिन चैत्ये करोदि कारिताः ॥ शुभं भवतु ॥
__ . ( 001 ) संवत् १३२० वर्षे माघ सुदि १ सोमे श्रो नाणकीय गच्छ प्रतिबद्ध जिनालये महाराज श्री चंदन विहारे श्री क्षी व रायेश्वर स्थान पतिना महारक रावल लक्ष्मीधरेण देव श्री महावीरस्य आसोज मासे अष्टाहिका पदे द्रम्माणां १०० शप्तमेकं प्रदत्त ॥ तद्वयाज मध्यात् मठ पतिना गोष्ठिकैश्च द्रम्म १० दशकं वेधनीयं पूजाविधाने देव श्री महावीरस्य ॥
( 903 ) ओ संवत् १३२३ वर्षे माग सुदि ५ बुधे महाराज श्री चाचिग देव कल्याण विजय राज्ये तन्मुद्रालंकारिणि महामात्यः श्री जलदेवे ॥ श्री नाणकीय गच्छ प्रतिबद्ध महाराज श्री चंदन विहारे विजयिनि श्री मटुनेश्वर सूरी तैलं गृह गोत्रोद् भवेन महं नरपसिना स्वयं कारित जिन युगल पजा निमित्तं मठ पति गोष्ठिक समक्ष श्री महावीर देव मांडागारे द्रम्माणां शनार्दु प्रदत्त ॥ तव्याजोसवेन द्रम्मान नेचकं भासं प्रति करणीयं ॥ शुभं भवतु ॥
( 903 ) ओं॥ संवत् १३५३ वर्षे वैशाख यदि ५ सोमे श्री सुवर्ण गिरी अद्येह महाराज कुल श्री सामंतसिंह कल्याण विजय राज्ये सत्पादपद्मोपजीविनिn राज श्री कान्हदेव राज्य धुरामुद्वहमाने इहैव वास्तव्य संघपति गुणधर ठकुर आंबड पुत्र ठकुर जस पुत्र सोनी महणसीह भार्या माल्हणि पुत्र सोनी रतनसिंह णाखी माल्हण गजसीह तिहुणा पुत्र सोनी नरपति जयता विजयपाल नरपति भार्या नायकदेवि पुत्र लखमीधर भुवण
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( २११ ) पाल सुहडपाल द्वितीय भार्या जाल्हण देवि इत्यादि कुटंध सहितेन मार्या नायक देवि अयोधे देव श्री पार्श्वनाथ चैत्ये पंचमी बलि निमित्त निश्रा निक्षेप हहलेक नरपतिना दत्तं सत् भाटकेन देव श्री पार्श्वनाथ गोष्ठिकैः प्रति वर्षः आचंद्रार्क पंचमी वलिः कार्या ॥ शुभं भवतु ॥ छ ।
महावीरजी का मन्दिर ।
- ( 904 ) संवत् १६८१ वर्षे प्रथम चैत्र वाद ५ गुरौ अद्येह श्री राठोड़ वंशे श्री सूरि सिंह पह श्री महाराजे श्री गजसिंह जी विजयि राज्ये....."मुहणोन गोत्रे वृद्ध उसवाल ज्ञातीय सा० जेसा आर्या जयवंत दे पुत्र सा. जयराज भार्या मनोरथदे पुत्र सा० सादा सुमा सामल सुरताण प्रमुख परिवार पुण्यार्थ श्री स्वर्ण गिरि गढ़ादुर्गी परिस्थित श्री मत कुमार विहारे श्री मती महावीर चैत्ये सा. जैसा भार्या जयवंतदे पुत्र सा० जयमल जी वृद्ध भार्या सरूपदे पुत्र सा० नइणसी सुन्दरदास आस करण लघुभार्या सोहागदे पुत्र सा. जगमालदि- - पुत्र पौत्रादि श्रेयसे सा० जयमल जी नाम्ना श्री महाघोर विवं प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्वकं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रो तपा गच्छ पक्ष सुविहिताचारकारकशिथिलाचार वारक साधु क्रियोद्धार कारक श्री ६ आणंद विमल सूरि पह प्रभाकर श्री विजय दान सूरि पह शृङ्गार हार महा म्लेच्छाधिपति पातशाह श्री अकवर प्रतिबोधक सदृत्त जगद्गगुरू विरुद धारक श्री शत्रुजयादि तीर्थ जीजीयादि कर मोचक षण्मास अमारि प्रवर्गक अहारक श्री ६ हीर विजय सूरि पह मुकुटायमान १० श्री ६ विजय सेन सूरि पह संप्रति विजयमान राज्य सुविहित शिरः शेखरायमाण महारक श्री ६ विजय देव सूरीश्वराणामादेशेन महोपाध्याय श्री विद्यासागर गणि शिष्य पण्डित श्री सहज सागर गणि शिष्य पं० जय सागर गणिना श्रेयसे कारकस्य ॥
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(२४२)
(905 ) संवत् १६८३ आषाढ़ वदि गुरौ श्रवण नक्षत्रे श्री जालोर नगरे स्वर्ण गिरि दुर्गे महाराजाधिराज महाराजा श्री गजसिंह जी विजय राज्ये महुणोत गोत्र दीपक में अचला पुत्र मं जेसा भार्या जेवंस दे पु० मं श्री जयल्ला नाम्ना मा० सरूपदे द्वितीय सुहागदे पुत्र नयणसी सुंदरदास आसकरण नरसिंहदास प्रमुख कुटु व युतेन स्व श्रेयसे श्री धर्मनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सपा गच्छ नायक मट्टारक श्री हीर विजय सूरि पहालंकार महारक श्री विजय सेन - ..।
( 906 ) संवत् १६८३ वर्षे अषाढ़ वदि ४ गुरौ सूत्रधार जडारण तत्पुत्र तोडरा इसर टाहा। दूहा हांराकेन कारापितं प्रतिष्ठितं सपा गच्छ भ० श्री विजय देव सूरिभिः ॥
( 907 ) संवत् १९८३ वर्षे अषाढ़ वदि १ गुरौ। महणोत्र गोत्र । प्र० जमल भार्या सरूपदे समर्पित । श्री सुपार्श्व विवं । प्रतिष्ठितं तपागच्छे भ० - - ।
(908
)
संवत् १६८३ वर्षे श्री अजित बिय प्र० स० म० श्री विजय देव सूरिभिः॥
- ( 909 ) संवत् १६८४ वर्षे माघ सुदि १० सोमे श्री मेड़ता नगर वास्तव्य उकेश ज्ञातीय प्रामेचा गोत्र तिलक सं हर्ष लघु भार्या मनरंगदे सुत संघपति सामीदासकेन श्री कुथु नाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं भी सपा गच्छे श्री तपा गच्छाधिराज महारक श्री विजय देव सूरिभिः ॥ आचार्य श्री विजयसिंह सूरि प्रमुख परिवार परिकरितैः । श्रीरस्तुः॥
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( २४३ )
( 910 )
संवत् १६८३ वर्षे आ० व० गुरौ प्र० लठांक श्री माण विप्र आ० विजयदेव सूरिभिः ।
( 911 )
चौमुखजी का मन्दिर |
संवत् १६८९ वर्षे प्रथमा चैत्र वदि ५ गुरौ श्री श्री मुहणोत्र । गोत्र सा० जेसा भार्या जसमादे पुत्र सा० जयमाल भार्या सोहागदेवी श्री आदिनाथ विवं कारित प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्वकं प्रतिष्ठितं च श्रो तपा गच्छे श्री ६ विजय देव सूरीणा मादेशेन जय सागर गणिना ।
हरजी
यह मारवाड़ के जालोर के पास गांव है।
(912)
संवत् १२३१ मार्ग सुदि ८ भ० शांति शिष्येण नेमिचंद्र ण आत्म श्रयार्थं प्रदतः
(913)
संवत् १५१७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ - वा० श्री मुनिशेषर शिष्य दया रत्न श्री वीरस्य किया केकृत ॥
J
( 914 )
संवत् १५४७ वर्षे फागुण सुदि ११ दिने रा० श्री विलास म० सोम रात्रे क्षाः --
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(२४४ )
( 915 ) श्री शीले सार्थो मतिर्यस्यासः स्पृहा धीर देगिते । महिमा कीर्ति लेखा स्या। तस्य देवेषु दुर्लभा ।
(
916 )
-- श्रो पज्जु वध असोचय - - वहुया अज्जा सुहंकर वणिस्स । सो अन सरावियाए धम्मत्यम कारि लग एसा ॥१॥
( 917 )
... - चंदण वाल नासा -..षा मति सिरी सा-. पी. - लगा कारिता
जूना। यह मारवाडका वाडमेर इलाके में गांव है।
( 918 ) ओं ॥ संवत् १३५२ वैशाख सुदि १ श्री बाहड मेरी महाराज कुल श्री सामंस सिंह देव कल्याण विजय राज्ये सन्नियुक्त श्री २ करणे मं० चोरासेल वेलाउल मां. मिगल प्रभृतयो धर्माक्षराणि प्रयच्छन्ति यथा। श्री आदिनाथ मध्ये संतिष्ठमान श्री विघ्न मर्दन क्षेत्रपाल श्री चउंडराज देवयोः उभय मार्गीय समायात सार्थ उष्ट्र १० वृष २० उमयादीप ऊर्द्ध सार्थं प्रति द्वयोर्दवयोः पाइला । पक्ष भीम प्रिय दर्शावशापक अर्टिन ग्रहीतव्याः। ओसो लागो महाजनेन मानितः ॥ यथोक्तं बहुमिवसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य सदा फलं ॥१॥छ ।
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( २४५)
जूना वेडा ( मारवाड)
( 919 )
ॐ ॥ संवत् ११४४ माघ सु० ११ नपतेरं प्रदेव्यास्तु सूनुना जेज्जकेन स्वयं प्रपूर्ण वज मानाचे मिलित्वा सर्व वांधवः ॥ १॥ खनके पूर्ण भद्रस्य वीरनाथस्य मंदिरे कारिता वीर नाथस्य श्रेयसे प्रतिमानघा ॥२॥ सूरे प्रद्योतनार्यस्य ऐन्द्र देवेन सूरिणा भूषिते सांप्रतं गच्छे निःशेष नय संजुते ॥३॥
( 920 ) संवत् १६४४ वर्षे फागुण दि १३ उकेस ज्ञातीय वापणे गोत्रे सेंधवी टीलु भार्या दीडम दे पुत्र सं० गोपा भार्या गेलमदे पुत्र रूपा चंदा श्री रादुलिया भार्या मन भगोदे पुत्र भोजा प्रा. ना . . . - श्री पार्श्वनाथ विंव कारित सपा गच्छ महारक श्री श्री हीर विज ----
(921 )
संवत् १३४७ वर्षे वैशाख सुदि १५ रवौ श्री जकेश गोत्रे श्री सिद्धा चार्य संताने श्रे. वेल्हू मा० देमलतत्पुत्र श्रे० जन सीहेन सकुटुम्बन आत्म श्रेयसे पारवनाथ विवं कारितं प्र. श्री देव गुप्त सूरिभिः ॥
( 922 )
संवत् १५०७ वर्षे माहि सुदि ५ रवी प्र० ग० दोला राजू पु० बीसा भा० विमलादे पु० ड्रगर सहितेन स्व पुण्यार्थे श्री विमलनाथ विवे का० प्र० श्री मडाहड़ा गच्छे श्री नय कोचि सूरि भि० माल्हेणसू ग्रामे वास्तव ।
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, ( २४६ )
( 923 )
सं० १६३० वर्गषि वैशाख वदि ८ दिने श्री वहड़ा ग्रामे उसबाल सुते गोत्र सोलाकी बाघणे सागासाहा भी दाना. खेमलदे पुत्र राजा भार्या सेवादे पुत्र माना कमरसी श्री कुंथुनाथ विवं श्री हीर
। ( 924
सं० १५३० वर्षे सा०व०६ प्रारबाट ज्ञाति व्य० चाहड सार्या राणी पु० व्य० वेला प्रमुख कुटुम्ब युतेन स्व श्रेयसे श्री संभवनाथ विवं का० प्र० तपा श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः चुंपरा ग्रामे
( 925 )
सं० १६३० वर्षे वैशाख अदि ८ दिने श्री वहड़ा ग्राम उसवाल ज्ञातीय गोत्र तिलहरा सा० सूदा भार्या सीहलादे पुत्र नासण वीदा नासण आर्या न काग देवीदा भार्या कनकादे सुत वला श्री आदिनाथ विंवं कारापित श्री हीर विजय सूरिभिः प्रतिष्ठितः ।
J( 926 ) सं० १५१५ वर्षे माघ शु. १५ उमेश लोढ़ा गोत्र सा. कांत श्रा० कपूरी सुत सा धीरपालेन मा० गांगी पुत्र पनर्वल कर्मसी मातृ दिल्हादि युतेन श्री संभवनाथ विवं कारिस प्रतिष्ठितं तपा श्री रत्न शेखर सूरिभिः
( 927 ) सं० १६२३ वर्षे वैशाख मासे शुक्रवारे १. तिथौ इडर नगर वास्तव्य उसवाल ज्ञातीय। मं० श्री। लहुआ सुत मं. जसा में श्री रामा महा प्राधेन भार्या रला। दम कडूआ
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( २१७ ) म. सिंघराज प्रमुख सकल कुटुंब युतेन श्री शांतिनाथ विवं कारितं । श्री श्रीतपागच्छ युगप्रधान विजय दान सूरि पह श्री हीर विजय सूरिभि प्रतिष्ठितं । वैशाख सुदि दशमी दिन ॥
V ( 928 )
संवत् १६३४ वर्षे माघ सु० ६ उप० ज्ञाती गादहीया गोत्रे सा० कोहा मा. रसनादे पु. आका मा० यस्मीदे पु० हराजावड़ मेर-दि साहि तिथी सति मतं श्री वास पूज्य विवं कारि० श्री वपु श्री कुकुदाचार्य संताने प्र० देव गुप्त सूरिभिः । श्री।
( 929 ) सं० १४२२ श्री सर प्रभु सूरि उपदेशेन प्रतिष्ठितं ।
V ( 930 ) संवत् १६४४ वर्षे फागुण वदि १५ उपकेश ज्ञातीय वाहड़ा गोत्रे..... संभवनाथ ---- लध गछ लघ श्री श्री होर विजर सूरि ।
नगर गांव ( मारवाड)
- ( 931 )
संवत् १५१६ वर्षे पौसष वदि ११ दिने गुरुवारे श्री राउड राज्ये श्री सोभ्र बंम पुत्र श्री श्री वयं रसल्ल नरेस्वरेण बांधव सामंत सल्हा पुत्र हरुव मुख सपरिवारेण तेज बाई भरतार भाटी महिप पुण्यार्थं गोबिंदराजेन श्री श्री महावीर चैत्ये वा० मोदराज गणि उपदेशेन पटहो यांधव मं० धारा पुत्र थाथल मंडाही पुत्र नाल्हा मं० जाणा मं० दे० क्रट प्रमुख श्री संघ समु म पटही वाद्यमानो चिरं जयातः शुभं भवतु नारदेन उषतं ।
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(२४)
सांचोर (मारवाड )
(932)
स्वस्ति श्री संवत् १२२५ वर्षे वैशाख वदि १३ दिने श्री सत्य पुर महा स्थाने राज श्री भीमदेव कल्याण विजय राज्ये उपकेश ज्ञातीय भंडारी अंजग सिंह पुत्र भंडारी पाल्हा सुत छोघाकेन वृद्ध भातृ भ० साम वधू घासकितेन श्रा महावीर खेत्ये आत्म श्रेयसे चतुष्किका उद्धारः कारितः ॥
रत्नपुर ।
मारवाड़ के जसवंतपुरा इलाके में यह स्थान भी बहुत प्राचीन है ।
J ( 933 )
ॐ संवत् १२३८ पोष बदि १० बला० नागू पुत्र थे० उद्धरण भार्यया श्रे० देवणाग पुत्रिकया उत्तम परम श्राविकया स्व श्रेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ देव चैत्य मंडपे स्तंभोयं कारितः ॥
J (934)
ॐ ॥ संवत् १२३८ पोष बदि १९ ० आंत्र कुमार पुत्र थे. धवल भार्यया बला० नागू पुत्रिकया संतोख परम श्राविकया स्व श्रेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ देव चैत्य मंडपे स्तंभयं कारितः ॥
(935)
संवत् १३३३ वर्षे माघ सुदि १ प्रतिपदायां महामण्डलेश्वर राज श्री चाचिग देव कल्याण विजय राज्ये तनियुक्त महामात्य श्री जावा प्रभृति पंच कुल प्रतिपत्ती रत्न पुरे देव श्री पार्श्वनाथाय पौष कल्याणिक यात्रा निमित्तं मह माधव
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१ २४८ ) सुत महं मदन सुन महं धीणा । श्री कुमरसिंह सुत महं ऊदल प्रति पंच कुलेन मी पार्श्वनाथः देव प्रतिवद्ध श्री चैत्र गच्छीय श्रीदेवचंद्र सूरि संताने श्रा अमरचंद्र सूरि शिष्य श्री अजित देव सूरीणा मुपदेशेन हह द्वय भूमिः प्रदत्ता आ चंद्रार्क नंदतु ॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः। यस्य यस्य यदा भूमि स्तस्य तस्य सदा फलं।
( 936 )
संवत् १३४८ वर्षे चैत्र सुदि १५ गुरावधेह रत्न पुरे महाराज कुल श्री सांवत सिंह। कल्याण विजइ राज्ये नियुक्त महं० कटुआ प्रभूति पंच कुल प्रतिपत्तौ श्री पार्श्वनाथ प्रतिवद्ध महा महणा ने सांता मह. विजय पाल गो. लषण प्रभूति समस्त गोष्ठिकानां विदितं अक्ष्यसणि प्रयच्छंसि यथा रत्नपुर वास्तव्य गूर्जर न्यातीय ० राजा सुत बादा गांगा सुत मंडलिक मदन प्रति कानां देव श्री पार्श्वनाथ प्रति वटु तोडक प्रवेश द्वार दक्षिण हस्त प्रथम हहात् द्वितीय हह अंगांगा अयोथं वादा सत्क देव कलिका विंय पूजापनार्थं श्री पार्श्वनाथ देवेन गोष्ठिकै। विदितं हह समर्पितं। अस्य हह निक्रइ प्रतिदेय भी पार्श्वनाथस्य श्री वाघकेन वीसल प्रीययाय एक विशसस्याधिक शत मेकं प्रदत्तं । हह मिदं चतुर्मि गोष्टिकैः संमिलते भूत्वा नाहक संस्था करणीया स्वात्मीय परिणा अष्ठि यादा भुतक सांय विनैः भाहक हह कस्यापि नार्पणीयं । तथा सरक उतपत्ति व्यय कर्ण वाण्गोष्ठिकानु विना एकाकिनैः न कर्त्तव्या। उतपत्ति मध्यातु देव कुलिकाया विधानां नेचकप देवी० २। ३ वर्ष प्रसिदातव्या उतपत्ति मध्यात् हह पसित दुसित पदे कमठाय कारापनीया। यच्च माहक स्वक द्रव्यं वर्द्धति तत् पोष कल्याणक दिने देव कुलिकाया बिंव भोग करणोय । उरितं द्रव्यं श्री पार्श्वनाथ सत्क नालि कायां यवं । न्यां खेपनीयं निक्षेप उधार गोष्ठिकै करणीय। अत्र मतान महा महष्णा मतं अष्टि सोता मतं घराणे गती वा हस्तेन महं विजय पाल मतं । गोष्टिक उषणा मतंस
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( २५० )
बिलाड़ा (मारवाड )
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सं० १८०३ वर्षे शाके १६६८ प्रवर्त्तमाने मगशिर सुदि २ दिने सोम वारे महाराज राज राजेश्वर महाराजा जी श्री अभयसिंह जी कुंवर श्री रामसिंह जो विजय राज्ये वृहत खरतर श्री आचार्य गच्छे । अहारक श्री जिन कीर्त्ति सूरि जी वर्त्तमाने सति । श्री बिलाड़ा नगरे कटारीया कलावत साह श्री तुरंता जी पुत्र गिरधरदासजी केन जिनालय करापितः स्थानको द्यमः उपाध्यायजी श्री करम चंद हरष चन्दाभ्यां कृतः कलावत श्रकाणामपि विशेषोपदेशो दत्तस्ते नायं श्री सुमतिनाथ जी देव लो - द्रधर भीषन कमाभ्यां कृतः उपाध्याय श्री करमचंद गणि पं० हरषचंद
जातः
मणि पं० प्रतापसी गणि प्रमुख सपरिकरेन विव- श्री भवतु ।
बोईया ( मारवाड )
( 937 )
J
(938)
संवत् १२५० आषाढ़ वदि १४ रवा भुडपद्र वास्तव्य श्रावक सामण भार्या जिसवई सुत रोहड रामदेव भावदेव छुटुंब सहितेन राम्बदेवेन स्तंभ लता प्रदत्ता द्वा० २० ।
J (939)
ओं० संवत् १२५० आसाढ़ वदि १४ वो बहुविध वास्तव्य २० रोहिल सुत घांघल सरसुत गुण घर साल्हणाभ्यां मातृ थिरम्मति श्रयार्थे स्तम्भ लता द्रां० २०
प्रदत्ता ।
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( २५१ ) - कोटार (गोड़वाड़)
( 940 ) संवत् १३३५ वर्षे श्रावण वदि १ सोमेऽयह समाण · · · स · · · या ना हनउ • • • • पचरा महं सज्जन ठ० मह भा - 'ठ धणसीह ठ देवसीह प्रभूति पज कलेन श्रीधात भिधान श्रीमहाबीर देवस्य ने च के - - - वर्ष स्थितके कृत द्र २४ चतुविशति द्रम्माः वर्षं वर्ष प्रति - मी मंडपिका पंच कुलेन दातव्याः ॥ पालनीया श्च ॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः यस्य यस्य यदा अमी सस्य तस्य तदा फलं ॥ शुभं भवतु।
( 941 ) सं० १३३६ वर्षे श्रोष्ठि को सीहन चयपने दत्तद्र १२३ - यद् ३६ स - प - १ मडाया स्वस्ति यमाण पञ्च कुलेन वर्ष वर्ष प्रति - - - - या दातव्याः॥
किराडू। मारवाड़ के मालानी परगने में यह स्थान प्राचीन है। हिन्दुओं के समय में इस स्थान का नाम किराट कूप था और जैनियों के प्रसिद्ध नपति कुमार पाल ने इस स्थान में जैन धर्म में दीक्षित होने के पूर्व कईएक बहुत सुन्दर शिव मन्दिर बनवाया था। काल के चक्र से इस समय उन देवालयों की बहुत बुरी हालत है और सब लेख भी नष्ट हो गये हैं।
( 943 )
ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ नमोऽनंताय सूक्ष्माय ज्ञान गम्याय वेधसे । विश्वरूपाय शुद्धाय देव देवाय शंभवे ॥१॥ देवस्य तस्य चरितानि जयंति शंभोः स (I) स्वत् कपाल
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( २५२ ) विधु ( भस्म ) विपणस्य । गर्वः स कोपि हृदि यस्य पदं करोति गौरी जितं च चिरवल्झल वर्ष दर्शात् ॥२॥ वशिष्ठ . . . . . - भूपिते बूंद भूधरे। सुरभ्याः परमाराणां शो - - - नलं कंडतः ॥३॥ तत्रानेक मही पाल . • - - - सिंधु धिराजो महाराज - - - रणे समभन्मरु मंडले ॥१॥ निरर्गाल मिलवारि - - - - . प्रतापो ज्वल दूसलः ॥५॥ शंभुवद् भूरि अमीशाभ्यर्चनीयो भ - - - - सूः ॥६॥ खड्ग रणरकार रावणो ल्वण वैरिहं भवः॥ - - - - ॥७॥ सिंधु राज घरा धार धरणी धर धाम वान ॥ मा . - ८॥ जो भवत्त स्मात् सुर राजो हराया देव राजेश्वर- - - - ॥ - - - मपहाय मही मिमां। मन्ये कल्प द्रुमः प्रायाद दृश्यक - - - ॥१०॥ - - दारणात् । श्री मददुर्लभ राजोपि राजेंद्रो रंजितो - - - ॥११॥ - - - धंधुक - सः। येन दुर्धार वीर्येण भूषितं मरु मंडलं ॥ १२॥ धर्म करो वभू - - - - - कृष्ण राजो महा शब्द विभूपिन: ॥ १३ ॥ तत्पुत्रः सोछट्ट राजाख्यः च्य - - - स्व - - - - कल्पद्र मो अवत् ॥ १४ ॥ तस्मा दुदय राजाख्यो महाराज- - - मंडलीक पदाधिकः ॥ १५॥ प्राचोड़ गौड़ कर्णाट मालवोत्तर पश्चिम। - - कृ-शजं ॥ १६ ॥ प्राश्च सिंधु राज भूपालारिपतु पुत्र कमात्पुनः । तस्मादुदय राजश्च पुत्रः सोमेश्वरः सुतः ॥ १७ ॥ उस्कीर्ण मपि यो राज्य मुद्धे भुज बीयतः । जयसिंह महिपालात् --- यवं - ॥१८॥-- अतश्च नव गत वर्षे ११८६ १२०० विक्रम भूपतेः प्रसादा जयसिंहस्य सिद्धराजस्य भू भुजः ॥ १६ ॥ श्री सोमेश्वर राजेन सिंधु राजपुरोद्भवं । भूपो निर्याज शौर्येण राज्य मेतत्समुह तं ॥ २० ॥ पुनादश संख्येषु पंचाधिक शते १२०५ ष्वलं । कुमार पाल भूपालात् सप्रतिष्ठ मिदं कृतं ॥ २१ ॥ किराट कूप मारमोयं शिव कूप समन्वितं । निजेन क्षत्र धर्मेण पालयामास यश्चिरं॥२२॥ अष्टा दशाधिके चास्मिन शत द्वादशकेऽश्विने । प्रतिपद्गुरु संयोगे सार्धयामे गते दिनात् ॥ २३ ॥ दंडं सप्तदश शता न्यश्वानां नप जज्जकात् । सह पंच नखांश्चैवमयरादिभिरष्टभिः ॥ २४ ॥ तणु कोद नवसरो दुग्र्गों सोमेश्वरो ग्रहीत् । उच्चांगवरहा साढ्यां चक्रे चैवात्म सादसो ॥ २५ ॥ बहुशः सेवकी कृत्य चौलुक्य जगती पतः । पुनः
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( २५३ ) संस्थापयामास तेषु देशेषु जज्जकं ॥ २६ ॥ प्रशस्ति मकरो देतां नरसिंहो नपाज्ञया। लेखको प्रय (णे ] देवः सूत्र धारोस्तु जशोधरः ॥ २७ ॥ विक्रम संवत् १२१८ अश्विन सुदि १ गुरौ । मंगलं महा श्रीः ॥
सूंघा पहाड़ी। मारवाड़के जसवंतपुरा के पास उत्तरकी तर्फ पहाड़ीके ढलाव में सुंधा माता नामक चामुंडाके मदिरमें लगे हुए दो पत्थरों पर यह लेख खुदे हुए हैं।
( 943 ) सों ॥ श्वेतांसोजातपत्रं किम गिरि दुहितुः स्वस्तटिन्या गवाक्षः किंवा सौख्यास वा महिम मुख महासिद्ध देवी गणस्य। त्रैलोक्यानंदहेतोः किमुदितमनचं श्लाघ्य नक्षत्र मुच्चै शंभो लस्थलेंदुः सुकृति कृतनुतिः पातु वो राज लक्ष्मीं ॥ १॥ ईशस्यांकानिग्नुपमानंद संदोह मूला चंचद्वासोंचल दलमयी भूषण प्रौढ पुप्पा। सल्लावण्योदय नुफलिनी पार्वती प्रम वल्ली लक्ष्मी पुष्णात्वनु दिन मति व्यक्त भक्त्या नतानां ॥२॥ विकट मुकदमाद्यत्तेजसा व्योम्नि दैत्यानिव भुवि मणिमय्या मेखलायाः क्वणेन। अनणुरणित लीला हंसस्त्रासयंती फणि पति भुवनांतश्चंडिका वः श्रियेस्तु ॥३॥ श्री मद्वत्समहर्षि हर्प नयनो दृभूतांवु पूर प्रमा पूर्वार्धधर मौलि मुख्य शिखरालंकार तिग्मद्युतिः। पृथ्वी त्रातु मपास्त दत्य तिमिरः श्री चाहमानः पुरा वीर: क्षीर समुद्र सोदर यशो राशि प्रकाशो भवत् ॥ ४॥ रत्ना वल्यामिव नपततो सरक्रमे विश्रुतायां धर्मस्थान प्रकर करण प्राप्त पुण्योत्सवायां। श्री नटूलाधि पसिर भव लक्ष्मणो नाम राजा लक्ष्मीलीला सदन सदृशाकार शाकंभरीद्रः ॥५॥ आपासाला समर जलधिं मदरो यस्य खड्गो मुष्टिव्याजाद्धजग पतिना शृंखले नावयद्धः । मिर्मथ्योच्चैः सपदि कमला लीलयोद्धृत्य मत्तश्चक नृत्तं रणित कटकः केलि कंपलेन
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(२५४ ) ॥ ६ ॥ तस्मादि माद्रि भवनाय यशो पहारी श्रीशोमिती जनि नपो स्य सनूरोध । गांभीर्यधैर्य सदन बलि राज देवो यो मुजराज यल अंगमचीकरतं ॥७॥ साम्राज्याशा क रेणु रिपु नपति गज स्तोम माक्रम्य जहु यस्खड्गो गंध हस्ती समर रस भरे विंध्य शैलाय माने । मक्ता शक्तोंदु कांतोजपल रुचिषु सस्कोतिरेवातटेष प्रौढान दोपचारो स्वण पुलकतति: पुष्कराणां छलेन ॥ ॥ सरिपतव्य जतयाथ बांधवः श्री महादुर जनिष्ट भूपतिः । यस्कृपाण लसिकामुपेयुषां छायथा विरहितं मुखं द्विषां ॥ ॥ जज्ञ कांतस्तदनु घभुवस्तत्तनुजो श्वपालः कालः करे द्विपि सुचरिते पूर्ण चंद्रायमानः। यः संलग्नो न खल समसा नैव दोषाकरात्मा तेजो मक्तः क्वचिदपि न यः किंच मित्रोदयेषु ॥१०॥ केयूरान निविष्ट रत्न निकर प्रोद्यस्यमाडं बरं व्यक्तं संगर रंग मंडपतले यं वैरिलक्ष्मीः श्रिता। धीरेषु प्रसूतेषु तेषु रजसा नीतेषु दुर्लक्ष्यतां लब्धो पायबलापि निर्मल गुणैर्वश्या प्रशस्या कृतिः ॥ ११ ॥ पुत्रस्तस्याहिल इति नपस्तन्मयूख च्छलेन स्रष्टा यस्य व्याधित यशसां तेजसा सोलनां नु । गंगा तोले शशि सपनयो दंतश्चारु चेले मध्यस्थायि ध्र मिष लसत् कंटके कौतुकेन ॥ १२॥ गुर्जराधिपति भीम भूभुज: सैन्य पूर मजयद्रणेषु यः । शंम्वत् त्रिपुर संभवं बलं वाडवानल इयांयुधे र्जलं ॥ १३ ॥ सैन्या क्रांसा खिल वसुमती मंडलस्तरिपतव्यः श्रीमान् राजा प्रवदथ जिताराति मल्लो पहिल्लः । भीम क्षोणी पति गज घटा येन भग्ना रणाग्र हृद्यार्था भोनिधि रघु कृते वहे पंक्तिः खलानां ॥ १४ ॥ अंमोजानि मुखान्यहो मृग दृशां चंद्रो दयानां मुदो लक्ष्मीर्यत्र नरोत्तमानुसरण व्यापार पारंगमा। पानानि प्रसनं शुमानि शिखरि श्रेणीव गुप्यद्गुरुस्तोमो यस्य नरेश्वरस्य तलनां सेनांबु राशेर्दधौ ॥१५॥ उव्वीरुद् विटपावलंब सुगृही हयेषु दत्त्वा दृशं ध्यातात्यंत मनोहराकृति निज प्रासाद वातायनः। भूस्फोटानि वनांतरेषु वितसान्या लोक्य हाहेति वाक् सस्मारा सपवारणानि शतशो यद्वीरि राज ब्रज-॥ १६ ॥ दृष्टः केनं चतुर्भुजः स समरे शाकंभरी यो बलाज्जग्राहानुजघान मालव पतेोजस्य साढाह्वयं । दंडाधीशम पार सैन्य विभवं तीव्र तुरुष्कं च यः साक्षाद्विष्णुर साधनीय यशसा शंगारिता येन भूः ॥ १७ ॥ जज्ञ भूभृत्तदनु तनयस्तस्य बाल प्रसादो नीमक्ष्मा
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( २५५ )
स्वरण युगडी मर्द्दन व्याजतो यः । कुर्वन्पीडा मति बलतया मोचयामास कारागाराष्ट्र भूमी पतिमपि तथा कृष्णदेवा भिधानं ॥ १८ ॥ श्रीकर्यो जलद भ्रमं दधुरहो सैन्येस्य सेवारसा यातर्तुप्रतिमे समुज्ज्वल पटा वासा मराल श्रियं । कंपं वायु वशेन केतु निबहाः शस्यानुकारं च ते सङ्गीतानि च कोकिलारव तुलां चिशे तु तापं द्विपः ॥ १९ ॥ श्रीमांस्तस्याजनि नर पति बधवो जिंदुराजो यः संडेरेऽर्क इव तिमिर वैरि वृंद विभेद । यस्य ज्योति: प्रकरमभितो विद्विषः कौशिकाभा द्रष्टुं शक्ता न हि गिरि गुहा मध्यमध्या श्रितास्तत् ॥ २० ॥ गच्छतीनां रिपु मृगदृशां भूषणानां प्रपाते वाप्पा सायेर्घनतति तुलां बिभ्रतीनामरण्ये । दूर्ध्वा भ्रांतिं मरकत मणि श्र ेणयो यत्प्रयाणे सांबूलीय भ्रममिव चिरं चक्रिरे पद्म रागाः ॥ २९ ॥ पृथ्वी पालयितुं पवित्र मतिमान् यः कषुकाणां करं मुंच प्रापयशांसि कुंद धवला न्यानंद हृद्याननः । पृथ्वी पाल इति ध्रुवं क्षिति पति स्तस्यांग जन्माभवत्प्रत्येक्षोरु निधिः स गूर्जर पतेः कर्णस्य सैन्या पहः ॥ २२ ॥ यत्सेना किल कामधेनु सदृशी कीर्त्ति स्रवंती पयः स्वच्छंदं सचराचरेपि भुवने शत्रू - स्तृणीकुर्वती । धर्मं वत्समिव स्वकीय मनघं वृद्धिं नयंती मुदा कस्यानंद करी बभूव न भुवोभीष्टं समातन्वती ॥ २३ ॥ श्री योजको भूपतिरस्य बंधु विवेक सौध प्रबल प्रतापः । श्वेतातपत्र ेण विराजमानः शक्त्याणहिल्लाख्य पुरेपि रेमे ॥ २४ ॥ त्यक्त्वा सोघमुदार केलि विपिनं क्रीडाचले दीर्घिकां पल्यंका श्रयणं करेणुषु मुदां स्थानं समंतादपि । यस्यारि क्षितिपाठ बाल ललनाः शैले वने निर्झरे स्थूल ग्रावशिरस्सु संस्मृति मगुः पूर्वोपभुक्त श्रियां ॥ २५ ॥ श्री आशा राज नामा समजनि वसुधा नायक स्तस्य बंधु : साहाय्यं माaarti भुवि यदसि कृतं वीक्ष्य सिद्धाधिराजः । तुष्टो धत्त े स्म कुंभं कनक मय महो यस्य गुप्यद्गुरुस्थ तं हर्तुं नैव शक्तः कलुषित हृदयः शेष भूपाल वारितः ॥ २६ ॥ उदय गिरि शिरः स्थं किं सहस्त्रांशु बिंबं वितत विशद की मूर्ध्नि र्किनु प्रतापः । उपरि सुभग वाया उद्गता मंजरी कि कनक कलश आभाद्यस्य गुप्यद्गुरु स्थः ॥ २० ॥ कनक रुचि शरीरः शैलसाराभिरामः फणि पति मयनीयस्यावतारः स विष्णोः । सलिल निधि सुताया मंदिरे स्कंध देशे दधववनि मुदारामग्रिमः पुण्य मूर्तिः ॥ २८ ॥ सत्रागार
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( २५६ ) सड़ाग-कानन-हरप्रासाद-वापी-प्रपा-कंपादीनि विनिर्ममे द्विज जनानंदी क्षमा मण्डले। धर्मस्थान शतानि यः किल बुध श्रेणीषु कल्पद्रमः कस्तेस्यंदु तुपार शैल धवलं स्तोतं यशः कोविदः ॥ २६ ॥ श्वेतान्येव यशांसि तंगतुरग स्तोमः सितः सुनवां चंचम्मौक्तिकभूपणानि धवलान्युच्चैः समग्राण्यपि। प्रेमालाप भवं स्मितं च विशदं शुभ्राणि वस्त्रोकतां वृदानीति नपस्य यस्य पृतना कैलास-लक्ष्मी श्रिता ॥ ३० ॥ प्रशस्ति रियं बहद्गच्छीय-श्री जयमंगला चार्य-कृतिः॥भिषग्विजयपाल-पुत्र-नाम्वसिंहेन लिखिता। सूत्र जिसपाल-पुत्र-जिसरविणोरकीर्णा ॥
(94)
ॐ ॥ जदा मूले गंगा प्रबल लहरी पूरकुहना समुन्मील छत्र प्रकर इव ननेषु नपतां । प्रदातुं श्री शंभुः सकल भुवनाधीश्वर तया तया वा देयादः शुभ मिह सुगंधाद्रि मुकुटः ॥ ३१ ॥ आशा राज क्षितिप सनयः श्री मदाल्हादनाह्वो जज्ञ भूभृद्धवन विदित श्चाहमानस्य वंशे । श्रीनद्दूले शिव भवन कृद्धर्म सवस्व वेत्ता यस्सा हाय्यं प्रति पद महो गूजरेश सूचकांक्ष ॥ ३२ ॥ चंचत्केतक चम्पक प्रविलसत्ताली तमाला गुरु स्फूर्ज
चन्दन नालिकेर कदली द्राक्षान कम्र गिरी। सौराष्ट्र कुटिलोन कण्टक मिदात्युद्दाम कीर्तस्तदा यस्या भूदभिमान भासुर तया सेनाचराणां रवः ॥ ३३ ॥ श्री मांस्तस्यांगज इह नृपः केल्हणो दक्षिणा शाधीशोदेचद्भिलिम नपते नि हृत्सैन्य सिंधुः । निर्भिद्योच्चैः प्रबल कलितं य स्तुरुष्कं व्ययत्त श्री सोमेशास्पद मुकट वत्तोरणं कांचनस्य ॥३४॥ मातास्य प्रबल प्रताप निलयः श्री कीर्तिपालो अवटु भूनाथः प्रति पक्ष पार्थिव चमूदावांबु वाहो पमः । यत्खगां बुनिधी हतारि करिणां भस्थलीभ्यः क्षरन्मुक्तानां निकरो मराल ललितं धत्ते स्म धारा श्रयः ॥३५॥ यो दुर्दा त किरात कूट नृपति भित्वाशरैरासलं तस्मि कांसहदे तुरुष्क निकरंजित्वारण प्रांगणे। श्री जावालि पुरे स्थितिं व्यरचयनदुदुल राज्येश्वर श्चिता रत्न निमः समग्र विदुषां निःसीम सैन्याधिपः ॥ ३६॥ श्री
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( २५७ ) समर सिंह देवस्तत्तनयः क्षोणि मण्डलाधिपतिः । इन्द्र इव विबुध हृदयानन्दी पुरुषोत्तमो हरिवत् ॥ ३७ ॥ प्राकारः कनका घले विरचितो येनेह पुण्यात्मना नामा यंत्र मनीज्ञ कोष्ठक ततिर्विद्याधरी शीर्षवान् । किं शेपः फण वदमेदुर तनुर्वक्षस्थले वा भुवो हारः किं भ्रमण श्रमादुई गणः किं वेष भेज स्थितिं ॥ ३० ॥ कमल वनमिवेदं वप्रशीर्षा लि दंभाविखिल विपुल देश श्री समा कर्षणाय । लिखित विशद विंदु श्रोणिवन्मत्त वैरि क्षितिपति विफला जिस्तोम संख्या निमित्त ॥ ३९ ॥ तोलयामास यः स्त्रणरास्मानं सोमपर्वणि । आराम रम्यं समरपुरं यः कृतवानथ ॥१०॥ श्री कीर्ति पाल भूपति पुत्रो जावालि पुरवरे चक्रे । श्री रूदल देवी शिव मंदिर घुगले पवित्र मतिः ॥४१॥ श्री समरसिंह देवस्य नंदनः प्रबल शौर्य रमणीयः । श्री उदयसिंह भूपतिर भूत्प्रभा जास्वदुपमानः ॥ ४२ ॥ श्री नटूल-श्री जावालि पुर-माण्डव्यपुर-वाग्भटमेरु-सूराचंद्रराट हृद-खेत--रामसैन्य श्रा माल-रत्नपुर-सत्यपुर-प्रभूति देशा नामय मधिपतिः ॥४३॥ शेषः स्तोतुमिव प्ररुढ रसना भारः समंतादभूत् क्षीराब्धिः परिध मुद्धुरभुजः कल्लोल माला मिषात् । द्रष्टुं चानि मिपाक्षि पंकज वनो वास्तोः पतिर्यस्य तां विश्व श्री हृदयस्य हारलतिका कार्ति सितांशूज्ज्वलां ॥ १४ ॥ श्रा प्रहलादनदेवी राज्ञो यस्यां गजं प्रसूते स्म। श्री चाचिग देवाह तथैव चामुंडराजाख्यं ॥ ४५ ॥ धीरो दात्तस्तुरुष्काधिपमददलतो गूर्जरे र जेयः सेवायात क्षितीशीचित करण पटुः सिंधु राजांतको यः। प्रोढामन्याय हेतु भरत मुख महा ग्रन्थ सत्यार्थ वेत्ता श्री मज्जावालि संज्ञ पुरि शिव सदन द्वंद्व कर्ता कृतज्ञः ॥ १६ ॥ तत्पहोदय शैल भानुरनधप्रोदाम धर्म क्रिया निष्पातः कमनीय रूप निलयो दानेश्वरः सु प्रभुः। सौम्यः शूर शिरोमणिश्च सदयः साक्षादिवेंद्रः स्वयं श्री मांश्चिाचिग देव एव जयति प्रत्यक्ष कल्प द्रुमः ॥१७॥ भ्रूभंगेन भयंकरेण विजित प्रत्यथिं भूमी पतिः श्री मांश्चाचिग देव एव तनुते निर्विघ्न वृशि भुवं । वौजिह्वष विदधातु पन्नग पतिर्वक्र घराहो मुखं कूर्मों नकततिं करींद्र निवहः संघात सौस्थ्यं परं ॥ १८ ॥ मेरोः स्थैर्य धचन रचनं वाक्पते यस्य तुल्यं पृथ्वी भारोद्धरणमसमं पन्नगेंद्रानुषंगि। साक्षादामः किमयमथवा पूर्ण पीयूष रश्मिश्चिंता
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( २५८ ) रत्न प्रणयिनि जने देव एवैप सस्मात् ॥ १६ ॥ स्फूर्जद्वीरम गूर्जरेश दलनो यः शत्रु शल्य द्विपंश्चंचत्पातुक पातनैकरसिकः संगस्य रंगा पहः । उन्माद्यनहरा चल स्य कुलिशा कार स्त्रिलोकी तल भ्राम्यत्कीर्तिर शेष वेरि दहनोदन प्रतापोल्वणः ॥ ५० ॥ श्री माले द्विज जानुवाटिक कर त्यागी तथा विग्रहादित्य स्यापि च राम सैन्य नगरे नित्यार्चनार्थ प्रदः । प्रोत्तंगेप्य पराजितेश नवने सौवर्ण-कंसध्वजारोपी सूप्यज मेखला वितरण स्तस्यैव देवस्य यः ॥ ५१ ॥ चक्रे श्री अप राजितेश भवने शाला तथास्यां रथः कैलास प्रतिमखिलोक कमलालंकार रत्नोच्चयः। येन क्षोणि परंदरेण कृतिना मानंद संवित्तये भाग्यं वा निज मेव पर्वत तुलां नीतं समंतादपि ॥ ५२ ॥ कर्णो दान रुचिर्वलिश्च सुकृतो श्लाघ्यो दधीचि स्तथा हृद्यः कल्पतरुः प्रकाम मधुराकारश्च चिन्तामणिः। श्री मच्चाचिगदेव दान मुदिता स्तन्नाम गृहणंति यत्तत्कीतरपि नूतनरव मनवभूमीमुजां सनसु ॥ ५३ ॥ स्फूर्ज निर्धार कांकृतेन सुभगं तत्केतकीनां वनं मिश्री भूतमनेक कम्र कदली वृदेन धत्तेऽत्र यः। आम्राणां विपिनं च देव ललना वक्षोरुह स्पर्द्धये वोद्यस्योढ़ फलावली कवचितं जम्बू वने नाचितं ॥ ५४ ॥ मरी मेरो स्तुल्यस्त्रिदश ललना केलि सदनं सुगन्धा दिर्नानातरु निकर सन्नाह सुभगः । न पेणेंद्रणेव प्रसृमर तुरङ्गोच्चय खुर प्रकं पाठवीं पीठ रतिरस वशात्तेन ददृशे ॥ ५५ ॥ सन्मूर्दिधन त्रिदशेंद्र पूजित पदां भोज द्वयां देवतां चामुंडा मघटेश्व रीति विदिताम भ्यर्चितां पूर्वजः। नत्वा भ्यर्च्य नरेश्वरोथ विदधेस्या मंदिरे मंडपं क्रोडस्किनर किन्नरी कल रवो माद्यन्मयूरी क लं ॥ ५६ ॥ सम्वत् १३१८ त्रयोदश शतै कोन विशतौ मासि माधवे। चक्रेऽक्षय तृतीयायां प्रतिष्ठा मंडपे द्विजैः ॥ ५७ ॥ संपल्लाभ घटयतु शुभं कभि वक्त्रो गणेशः सिद्धिं देयादभि मत तमां चंडिका चारु मूर्तिः। कल्याणाय प्रभवतु सतां धेनु वर्ग: पृथिव्यां राजा राज्यं भजतु विपुलं स्वस्ति देव द्विजेभ्यः ॥ ८ ॥ स श्रीकरी सप्तक वादि देवा चार्य स्य शिष्योऽजनि रामचन्द्रः। सूरिविने यो जय मङ्गलो ऽस्य प्रशस्तिमेतां सुकृती व्यधत्त ॥५६॥ भिषग्वर-विजय पाल-पुत्रेण नाम्यसीहेन लिखिता ॥ सूत्रधार-जिसपाल-पुत्रेण-जिसरविणोत्कीर्णा ॥
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(२५६ )
घटियाला। यह स्थान मारवाढ़ के राजधानी जोधपुर के पश्चिम उत्तर की ओरमें अवस्थित है और इसी गांवके पास यह शिला लेख मिला था इसकी भाषा प्राकृत है और मारवाड़ के सय लेखों से प्राचीन है। __ यह लेख जोधपुर के प्रसिद्ध ऐतिहासिक मुंशी देवीप्रसादजी ने अपने मारवाड़ के प्राचीन लेख नामक पुस्तक मे संस्कृत अनुवाद के साथ छपवाया था वही यहां पर प्रकाशित किया जाता है।
( 945 )
घटियाला। ओं सग्गापवरगमगं पढ़मं सयलाण कारणं देवं । णीसेस दुरिअ दलणं परम गुरुं णमह जिणणाहं ॥ १॥ रहुसिलओ पड़िहारो आसी सिरिलक्खणोतिरामस्स । तेण पडि. हार वन्सो समुणई एत्य सम्पत्तो ॥२॥ विपो सिरि हरिअन्दो मज्जा मासीसि खत्तिा भट्टा । अरुस सुओ उप्पणो वीरो सिरि रज्जिलो एस्थ ॥ ३ ॥ अववि णरहड़ णांमो जा ओसिरि पहड़ोत्तिए अस्स। अवि सणओ ताओ तस्सधि जसबटुणो जाओ॥४॥ अस्सवि चन्दुअ णांमा उप्पणो सिल्लुओ विए अस्स । कोडोत्ति तस्स सणओ अस्स वि सिरि भिल्लुओ जाई॥५॥ सिरि भिल्लु अस्स तणो कक्को गुरु गुणेहि गारविओ। अस्सवि कक्अ णामो दुल्लह देवीए उप्पणो ॥ ६ ॥ ईसिविआसंहसिअ महुरं भणि पलोईअलोम्भं । णमयं जस्सण दीणां रासोथे ओथिरामेत्ती ॥ ७॥णोजम्पिअं ण हखियंण कयं ण पलोहों णम्सरिअ। णथि अ णपरिठा मिअ' जेण जणे कज्ज परिहीणं ॥८॥ सुत्थादुत्थादि पया महमात हउत्तिमा विसोक्खेण । जणणिब्ध जेष धरिआ णिच्चणिय मण्डले सव्वा ॥६॥ उअगेहरा अमच्छर लोहे हिमिणाय वज्जि अजेण । णक ओदो एह विसेसो ववहार कावमण यम्पि॥ १० ॥ दिअवर दिएणाणुज्ज जेण जणं रंज्जिऊण सयलम्पि। णिम्मच्छरेण जणि दुट्ठाण विदण्ड णि?षणं ॥ ११॥
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( २६० ) घनरिटु समिद्धाणं थि पउराणं णिअफरस्स अम्महि। लक्खं सयज सरिसं सणंच तह जेण दिट्ठाई॥ १२॥ णवजोठवणरूअपसाहिएण सिंगार गुणग छक्केण । जणवयाणउज मलजं जेण णेह संचरिअ॥ १३ ॥ वालाण गुरु तरु णाण तह सही गय वयाण तण ओव्य । इय सुचरिऐहि णिच्चं जेण जणो पालिओ सम्यो ॥ १४ ॥ जेण णमन्तेणसया सम्माणं गुण थुई कुणं तेण । जम्पन्तेण य ललिअदिण्णं पणईण धणियहं ॥१५॥ मरु मारवल्ल तमणी परिका अज्जगुञ्जरित्तासु । जणिओजेण जणाणं सच्चरिअ गणेहि अणराओ॥ १६ ॥ गहिजण गोहणाई गिरिम्मि जाला उलाओ पल्लिओ। जणिआओ जेण विस मेवडणाणय मण्डले पयडं ॥ १७ ॥ णीलुप्पल दल गन्धारम्मा मायं दमह अविं देहि । वरइच्छुपण्ण छण्णा एसा भूमी कया जेण ॥ १८ ॥ वरिस सएसु अणवसु अट्ठारह समग्गले सु चेतम्मि। णक्खत्ते विहु हत्थे वहवारे धवल वीआये॥ १६ ॥ सिरि कक्कुएण हलु महाजणं विप्यपय इवणि बहुलं । रोहिन्स कुअ गामे णिवेसिअंकित्ति विहिए ॥२०॥ मड्डोअस्म्मे एक्को वीओ रोहिन्स कुअगामंम्मि । जेण जसरस व पुजांए एस्थम्मा स. मुत्थविआ ॥ २१ ॥ तेण सिरि कककुएणं जिणस्स देवस्स दुरिअ णिलणं । कारविअं अघल मिमं अवर्ण भत्तीए सुहजणयं ॥ २२ ॥ अप्पिअमेए भवणं सिद्धस्स धणेसरस्स गच्छम्मि । सह सन्त जम्ब अम्बय वणि भाउड पमुह गोहीए ॥ २३ ॥ श्लाध्ये जन्म कुले कलंक रहितं रूपं नवं योवनं । सौभाग्यं गुण भावन शुचि मनः शांति यशो नम्रता ॥ २४ ॥
संस्कृत अनुवाद । स्वर्गापवर्ग मार्ग प्रयमं सकलानां कारणं देवं । निःशेष दुरित दलनं परम गुरु नमत जिन नाथम् ॥१॥ रघु तिलकः प्रतिहार आसीत् श्री लक्ष्मण इति रामस्य । तेन प्रतिहार वंशः समुन्नतिमत्र संप्राप्तः ॥२॥ विप्रः श्री हरिचंद्रः भार्या आसीत इति क्षत्रिया भद्रा। अस्य सुत उत्पन्नः वीरः श्री रज्जिलोत्र ॥३॥ अस्यापि नर अट नामा जातः श्री नाग भट इति एतस्य। अस्यापि तनयस्तातः तस्यापि यशो वर्द्धनो जातः॥४॥ अस्यापि
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( २६१ ) चंदुक नामा उत्पन्नः सिल्लुकोपि एतस्य। कोट इति तस्य तनयः अस्यापि श्री भिल्लुको जातः ॥ ५॥श्री भिल्लुकस्य तनयः श्री कक्कः गुरु गुणः गर्वितः । अस्यापि कक्क नामा दुर्लभ देव्यामुत्पन्नः ॥ ६ ॥ ईषद्विकाश हसितं मधुर क्षणितं प्रलोकितं सौम्यं । नमनं यस्य न दीनं रासः स्थयः स्थिरा मैत्री ॥ ७॥नो जल्पितं न हसितं न कृतं न प्रलोकितं न संभतम् । न स्थितं न परिभातं येन जने कार्य परिहीनं ॥८॥ सुस्था दुःस्था द्विपदा अधमा तथा उत्तमा अपि सौख्येन । जनन्येव येन धृता नित्यं निज मण्डले सर्वे ॥६॥ उपरोध राग मत्सर लोमैरपि न्याय वर्जितं येन न कृतो द्वयोर्विशेषः व्यवहारे कदापि मनागपि ॥ १०॥ द्विजवर दत्तानुज्ञं येन जनं रक्तवा सकलपि । निर्मत्सरेण जनितं दुष्टानामपि दण्डनिष्टपनम् ॥ ११ ॥ धन ऋद्व समूदानामपि पौराणां निज करस्याभ्यर्थितम । लक्ष शतं च सदृशस्वेन तथा येन दृष्टानि ॥ १२ ॥ नव यौवन रूप प्रसाधितेन शृङ्गार गुणज्ञ कक्क केण जनवचनीयमलज्जं येन जने नेह संचरितम् ॥ १३ ॥ बालानां गुरुस्तरुणानां तथा सखा गत वयसां तनय इव । प्रिय सुचरितैर्नित्यं येन जनः पालितः सर्वः ॥ १४ ॥ येन नमता सदा सन्मानं गुणस्तुतिं कुर्वता। जल्पता च ललितं दत्तं प्रणयिभ्यो धननिवहः ॥ १५ ॥ मरुमाडवल्लस्त्र मणी परि अका अज्जगुर्जरेषु । जनितो येन जनानां सच्चरित गुणैरनुरागः ॥ १६ ॥ गृहीत्वा गोधनानि गिरी जाला कुलाः पल्लयः । जनिता येन विषमें वदनाण कमण्डले प्रकटम ॥ १७॥ नीलोत्पल द लगन्धा रम्यमाकन्द मधुप वृन्दैः । वेरा पर्णछन्ना एषा भूमिः कृतायेन ॥ १८ ॥ वर्ष शतेषु च नवसु अष्टादश सम ग्रलेषु चैत्रे नक्षत्र यिधु भस्थे बुधवारे धबलि द्वितीयायाम् ॥ १६ ॥ श्री कक्ककेन हह महाजन विप्र प्रकृति बणिज बहुलम् । रोहिन्स कूप ग्रामे निवेशितं कोर्ति वृद्ध ॥२०॥ मण्डोवरे एको द्वितोयो रोहिन्स कूप ग्रामे । येन यशस इव पुजावेतौ स्तंभी समुत्तब्धौ ॥ २१ ॥ तेन श्री ककुकेन जिनस्य देवस्य दुरित निर्दलनम्। कारितमचलमिदं भवनं भक्तया शुभ जनकम् ॥ २२ ॥ अपितमेतद्धवन सिद्धस्य धनेश्वरस्य गच्छे। सह शांत जम्बु आम्रक पनि नाटक प्रमुख गोष्टयै ॥ २३ ॥ श्लोध्य जन्म कुले कलंक रहितं रूपं नवं यौवनं । सौभाग्यं गुण भावनं शुचिमनः क्षान्तिर्यशो नम्रता ॥ २४ ॥
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( २६२)
पिंडवाडा। सिरोही राज्यका यह स्थान भी प्राचीन है। यहां रेलवे स्टेशन है और सिरोही जाने वाले लोग यहां उतर कर जाते हैं।
( 946 ) ओं। संवत १६०३ वर्षे माह वदि शुक्रे श्री सिरोही नगरे रायि दूर्जण सालजी श्री विजय राज्य प्राग वंशे साह गोयंद आर्या धनी पुत्र केल्हा भार्या चापलदे गुसदे पुत्र जीवा जिणदास केल्ला पीडरवाड़ा ग्रामे श्री माहावीर प्रासादे देहरी कारापितं श्री तपा गच्छे श्री कमल कलस सूरि तत्पह श्री विजय दान सूरि। साः जीवा अयोर्थं सा. जीवा दिने ४० अणसण सीधा संवत् १६०२ का० फागुण वदि ८ दिने अणसण सीधा शुभं भवतु कल्या०॥
- ( 947 ) ओं ॥ संवत् १६०३ वर्षे माह वदि शुक्र श्री सीरोही नगरे। रायि श्री दुर्जण साल जी विजय राज्य प्राग वंशे कोठारी छाछो भार्या हासिलदे पुत्र कोठारी ओ पाल भार्या षेतलदे तस्य पुत्र कोठारी तेजपाल राज पाल रसन सी राम दास ----- वाई लाछल दे श्रेयो) पींडरबाडा ग्रामे श्री माहावीर प्रासादे देहरी कारापितं । श्री सपा गच्छे श्री हेम विमल सुरि तत्पह श्री आणंद विमल सूरि तस्पर्ट श्री विजय दान सूरि। शुभं भवतु कल्याणमस्तु श्रा० बा. बाछलदे रे।
( 943 )
___ सं० १६०३ वर्षे माह यदि शुक्र श्री सिरीही नगरे रायि श्री दुर्जण साल जी विजय राज्ये प्राग वंशे कोठारी छाछा भार्या हासल दे पुत्र कोठारी श्री पाल भार्या घेतलदे।
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( २६३ ) छाछलदे ससारदे पुत्र कोठारी तेज पाल राजपाल रतन सी रामदास शहंस कर्ण पीडरवा ग्रामे श्री माहावीर प्रासादे देहरी फरापित कोठारी तेजपाल अयोथै श्री सपा गच्छे श्री हेम विमल सूरि तरपद श्री आणद विमल सूरि तत्पश्री विजय दान सू० शुभं भवतु कल्याणमस्तु ।
( 99 ) औं । संवत् १९०३ वर्षे माह वदि शुक्रे श्री सिरोही नगरे रायि श्री दूर्जण साल जी विजय राज्ये प्राग वंशे सा थापा मार्या गांवादे पुत्र सा - मा भार्या कसमीरदे पुत्री रनी पींडर वाडा ग्रामे श्री माहावीर प्रासादे देहरी करापितं पाई गांगादे श्रेषोर्थ श्री तपा गच्छ श्री कमल कलस सूरि सुसं भवतु कल्याणमस्तु ।
( 950 ) __ओं ॥ संवत् १६१२ वर्षे मागुण वदि ११ शुळे श्री सिरोही नगरे माहाराज श्री उदइ सिंघ जी विजय राज्ये प्राग वंशे कोठारी छाछा भार्या हंसलदे पुत्र कोठारी श्री पाल भार्या लाछलदे पुत्र रामदास करण श्री सहस करण - - - पीडर वाड़ा ग्रामे श्री माहावीर प्रासादे देहरी करापितं श्री तपा गच्छे श्री हेम विमल सूरि तत्प आणंद विमल सुरि - - - -
(961 )
मोनमः श्री वर्द्धमानाय ॥ प्राग्वाट वंशे व्यवहारि सागा सूनुः प्रसूनोज्वल कांत कारिः। श्री पुण्य पुणा जनि पूर्ण सिंह स्वस्य प्रिया जारहण देवि नाम्नी ॥ १॥ मद्धर मदारत रोरु ---- -- -- कलापः किल कुर पालः । जाया घर्म मोदिकन्दो प्रमुक्ता तस्या अवस्कामल देवि नाम्नी ॥ २ ॥ सदयो २ घामामुतैः सुहिती लोक हितो सतां मतिः।
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( ४६४ )
सनय विनयौ विती घणौ विजयते तनयौ सयोरिमौ ॥ ३ ॥ सत्राद्यः सज्जन श्रेणी रत्न रत्नाभिधो धनं । धनाढ्य जन मूढ़ - राज मान्यो घियां निधिः ॥ ४ ॥ द्वितीय सुद्विती
दुकांतिकांच गुणोच्चयः । धरणः शरणं श्रीणां प्रवीणः पुण्य कर्मणि ॥ ५ ॥ रत्ना देवी धारल देव्यो जाल्यौ तयोरनुक्रमसः । समभूता मति निर्मल शोलालंकार घारिण्यौ ॥ ६ ॥ तस्य सुता ५--तेजा षासल वास जाल्हणेनाख्याः । शांत स्वभाव कलिसा गुण तरु मलयाः कला निलयाः ॥ ७॥ इतश्व | श्री प्राग्वाटाभिघ जाति शृंग शृंगार शेखरः । पुरा भून्महुणा नामा व्यवहारी परस्थितिः ॥ ८ ॥ तस्य जोला भिधः सूनु स्तपुत्रो भाषठोऽठः ॥ ८ ॥ सदीय पुत्रः सुगुणैः पवित्रः स्वाजन्य वित्तः सुनया सूवित्तः । Baाभिधानः सुकृति प्रधानः सत्कार्य धुर्यो व्यवहार वर्यः ॥ १० ॥ नयणा देवी नाम सू देवी विख्यात संज्ञिक सस्था दयिते ढययो पेते शीलाद्युद्यम गुण कलिते ॥ ११ ॥ नयणा देवी तनुजो मनुजो चित चारु लक्ष्मणो पेतः । अमरो भ्रमरो गुरु जन जन - जनन्यादि पद कमले ॥ १२ ॥ भीम कांत गुण ख्याते प्रजा पालन लालसे। हाजाभिधे धरा धी प्राज्य राज्यं - रीक -- ॥ १३ ॥ आस्यामुभाभ्यां धनि पूर पाल लीबाभिधाभ्यां सदुपासकाभ्यां । ग्रामेऽग्रिमे पींडर वाडकाख्ये प्रसाद - विरुद धारि सारः ॥ १४ ॥ विक्रमाद्वाण सर्वाधि भूमिते बरसरे तथा । फाल्गुनाख्ये शुभे मासे शुक्लायां प्रतिपत्तिथौ ॥ १५ ॥ कल्याण वृद्धय भ्युदयैक दायकः, श्री वर्द्धमान श्चरमो जिनेश्वरः । श्री मत्तपः संयम धार सूरिभिः प्रतिष्ठितः स्पष्ट महा महादीह ॥ १६ ॥ आरवींदु समयादनया श्री वर्द्धमान जिन नायक मूर्त्या । राजमानमभिनंदतु विश्वानंद दायक मिदंवर चैत्यं ॥ १७ ॥ श्लो० ॥
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(952)
राज श्री अमर सिंह जी लषावता देहनारा देहथी आरोहतो - कमनइ काथोछइ । वान देश माहि घोलसह सिनइ गधइ ड - गाल छइ संघ १७२३ वर्षे
-
आजक
मगसिर सुदि - ॥
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( २६५ )
वीरवाडा (सिरोही) महावीर स्वामी का मंदिर।
( 953 ) सं० १४१० वर्षे श्रे० महणा मा० कपूर दे० पु. जगमालेन भा० सुतलदे पु० कड्या देल्हा समं वीरवाडा ग्राम श्री महावीर चैत्योहारः कारितः कछोलीवाल गच्छे अ. श्री नरचंद्र सूरि पट्टे श्री रत्नप्रास सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्टितः । मंगल ॥ प्राग्वाट ज्ञातीयः ॥
बसंत गढ़ (सिरोही) (किले के अन्दर जैन मंदिर के मूर्ति पर। (असन के दोनो तरफ पीठ पर )
( 954 ) सं० १५०७ वर्षे माघ सुदि ११ वुधे राणा श्री कुंभ कर्ण राज्ये वसंत पर चैत्ये तदद्वार कारको प्राग्वाट ध्य. सगड़ा भा० मेघादे पुत्र व्य० संडनेन भा० माणिक दे पुत्र कान्हा पौत्र जोणादि युतेन प्राग्वाट व्य. धणसी मा० लींवी पुत्र व्य. भादाकेन भा० आल्ह पन्न जावडेन भोजादि युतेन मूल नायक श्री शांतिनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं सपा श्री सोम सुन्दर सूरि सत्पहालंकरणं श्री मुनि सुन्दर सूरि श्री जय चंन्द्र सूरि पह प्रतिष्टित गच्छाधिराज श्री रत्न शेषर सूरि गुरुमिः।
पालडी (सिरोही)
( 955 ) सं० १२४६ वर्षे माघ सुदि १० गुरौ अद्येह श्री नटूले महाराजाधिराज श्री केल्हण देव राज्ये तस्पुत्र राज श्री जयत सीह देवो विजयी ज.. तत्पादपद्मोपजीधिन महा
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( २९६ ) मीरमय वाल्हण प्रति पंच कुलेन महं सुम देव सुत राजदेवेन देव श्री महावीर प्रदत्त द्र. १ पाह्यली मध्यात् । बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजमि सागरादिभि यस्य यस्य यदा दत्तं तस्य तस्य तदा फलं n
कालाजर ( नवाना के निकट )
( 256 ) सं० १३०० घरषे जेठ सुदि १. सोमे अद्यह चंद्रावत्या महाराजाधिराज श्री आरहण सिंह देव कल्याण विजय राज्ये सत्रियुक्त मुद्रायां महं श्री पेता प्रति पंच कुलं शासन मभि लिख्यते यथा महं श्री घेताकेन - • - नान कलागर ग्रामे...... श्री पार्श्व नाथ देवस्य लो - - - - रहिता - - - एवं ॥ आचंद्रार्क - .. यस्य यस्य यदा भूमी तस्य सस्य तदा फलं ॥ साखि राउल० वा अलिणव बाद उव - ब्रजव • सोहण - .. वणादे सणा - - - - - - - फरहा।
कामद्रा (सिरोही)
( 957 ) ओं। श्री भिएलमाल निर्यातः प्राग्वाटः वणिजांवरः श्री पतिरिव लक्ष्मी युग्गो लं ( च्छों ) - राज पूजितः ॥ आफरो गुण रत्नानां वंधु पद्म दिवाकरः उजुजकस्तस्य पुत्र स्यात् नम्मराम्मै ततो परी। जज्जु सुत गुणाद्य थामनेन प्रसाद्धयम् । दृष्ट्वा चक्रे गृडं जैन मुक्त विश्व मनोहरम् । सम्बत् १०९१ - - - - सपने - ।
उथमा (सिरोही)
( 59 ) संवत् १२५१ आषाढ़ यदि ५ गुरी श्री नाणकीय गच्छे उथण सदधिष्ठाने । श्रीपार्वनाथ चैत्ये ॥ धनेश्वर पुत्रेण देव घरेण धीमता । सयुक्त न यशोभद्र आल्हा पाहा
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( २६७) सहोदरैः । यसो अटस्य पत्रण। साई यरा घरेण भा पुत्र पौत्रादि युक्तेन धर्म हेतु मह मना ॥ अगनी धारमत्याख्या। असश्चैत्र यशो भटः । कारितं श्रेयसे ताम्यां । रम्येदस्तुंग मंडप छ।
बघीणा (सिरोही)
( 560 ) संवत् १३५८ वर्ष वैशाख शुदि १० शनि दिने न - - - ल देशे वाघ सीण ग्रामे महाराजा श्री सामंतसिंह देव कल्याण विजय राज्ये एवं काजे वर्शमाने सोल० पासट पु० रजरसोलं. गागदेव पु० आंगद मंडलिक सोल० सी माल पु० कुताधारा सो० माला '. मोहण त्रिभुवण पहा सोहरपाल सो० धूमण पर्ट पायत् वणिग् सीहा सर्व सोलंकी समुदायेन वाघसीण ग्रामीय अर - - हट अरहट प्रति गोधूम से० ४ ढीबड़ा प्रसि गोधूम सेई २ तथा धूलिया ग्रामे सो० नयण सीह पु० जयत माल सो. मंडलिक अरहट प्रति गोधूम सेई ४ ढीवड़ा प्रति गोधूम सेई २ सेतिका २ श्री शांसिनाथ देवस्य यात्रा महोस्सव निमित्त दत्ता ॥ एतत् आदान सोलंकी समुदायः दासव्यं पालनीयं च । आचंद्रार्क। यस्य यस्य यदा भूमी तस्य तस्य तदा फलं ॥ मंगलं भवतु ॥
लाज-नीतोड़ा (सिरोही)
( 560 ) संवत् १२ वर्षे १४ माह सु० ६ ० जेतू आसल प्रति पतेमधिक कुअर सीह पतिना। पाऊ स्नु।
(961) मन्दिर घर लषम सिंचन करावी।
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( २६९) नोदिया (सिरोही)
___(962 ) संवत् ११३० वैसाष सुदि १३ नंदियक चैत्य साले वापी निर्मापिसा सिव गणैः ।
( 983 ) ॐ ॥ ससिणि सील बंता ध। सद्धाव भक्ति संयुता॥ जिन गृहे सैल स्तं मा द्वौ। मंडप मूले थापिताः ॥ १॥
श्री महावीर स्वामि जी के मन्दिर के स्तंभ पर ।
( 964 ) ओं ॥ संवत् १२०१ भादवा सुदि १० सोम दिने निवा भार्या वरा पुत्र मोतिणि या स्तंभ का०२
(965 ) श्री विजयते ॥ संवत् १२९८ वर्षे पोस सुदि ३ राठउड पून सीह सुत रा० कमण श्रेयो) पुत्र भीमेण स्तमो कारितः ॥ श्री --- - सूरि श्री - -।
कोटरा (सिरोही)
J( 96g ) ॥ पूर्व डीडिला ग्राम मल नायकः श्री महावीरः संवत् १२०८ वर्षे पिप्पल गच्छीय श्री विजय सिंह सूरिमिः प्रतिष्ठितः पश्चात वीर पल्या प्रा. साह सहदेव कारिते प्रसादे पिप्पालचार्य श्री वीर प्रश्न सूरिभिः स्थापितः। संवत् १४६५ वर्षे ।
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( २६६ )
वरमांण (सिरोही)
( 967 )
सं० १३५१ वर्षे माघ वदि १ सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० साजण मा० राल्हू पु० पून सीह मा० २ पद्मल जालू पुत्र पदमेन मा० मोहिणि पुत्र विजय सीह सहितेन जिन युगल युग्मं कारितं ॥छ ।
( 968 )
ओं. संवत १४४६ वर्षे वैशाख वदि ११ बुधे ब्रह्माणीय गच्छे महारक श्री मदन प्रात सूरि पह श्री नदिश्वर सूरि पर श्री विजय सेन सूरि पह श्री रत्नाकर सूरि पर श्री हेम तिलक सूरिभिः पूर्वं गुरु श्रेयोघे रंग मंडपः कारापितः ॥
लोटाना (सिरोही)
'( 969 ) संवत १३०८ वर्षे उदे सीह सुत पदम सीह ।
माकरोरा [ सिरोही ]
( 970 )
श्री सुविधि जिन प्रासादात् माकोड़ा मध्येः । संवत् १७६० वरपे कमल कलसा गच्छे भहारिक श्री मत् रत्नसूरि प० कमल विजय गणि वेठाणा ७ संधाति चौमासु रहा। मंहुता
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(१७०) मोटा सा० घनामु० दसरथ जीवा सा० अमरा सा० कोठारी करमसी सा. केसर सा० जगनाथसा. लषमा सा० राजालाधा संषा तेजाःजीवाः पीथाःजगा अमरारण छोड़ देवा देवा भगवान रामजी राज जोगी कल्याणः सुजाण: जोगाः रामजी आसा वाई चांपी बाई जगी समस्त श्राविक प्रावि-काइ सेवा भगति भली रीति कीधी संघस्य कल्याणाय भवतु ॥
धवली [ सिरोही ]
( 971 ) ॥ सं० । १८६१ वैशाख शुक्ल ५ वुध वासरे श्री महावीर प्रसाद जीर्णोद्धार श्री संघेन प्राग्वाट ज्ञातीय सा०। खुबचंद मोती सा। लुबा उमा सा। सलका वाला प्रमुख कारापितम् तस्यो परी ध्वज दंड गच्छ नायक श्री कमल कलसा गच्छेश महा। श्री विजय महेंद्र सूरिस्वरभिः प्रतिष्ठितम् गं०। पं० डुगर विजय वां। मथु प्रमुख, इति ज्ञेयम् । शुभ
सीवेरा [ सिरोही]
( 972 ) संवत् १६६५ वर्षे पंडित श्री माहा शिष्य जय कुशल जस कुसल कातिक चौमासु कीघु ठाणा: २ सीवेरा ग्रामे।
जरािवल पार्श्वनाथ [ सिरोही ]
J (973 ) संवत् १४८३ वर्षे प्रथम वैशाख सुदि १३ गुरौ श्री अंघल गच्छे श्री मेरु तुङ्ग सूरीणां पदोवरण श्री जय कीर्ति सूरीश्वर सुगुरुपदेशेन पचन वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय मीठ
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( २७१) डोथा सा० संग्राम सुत सा. सलषण सुत सा. तेजा मार्या तेजल दे तयोः पुत्रा सा. डीडा सा० षीमा सा० भूरा सा० काला सा. गांगा सा• डीडा सुत सा. नाग राज सा० काला सुत सा० पासा सा० जीव राज सा. जिणदास सा० सेजा द्वितीय भ्रासा सा० नर सिंह मार्या कउनिग दे तयोः पधी सा• पास दत्त सा. देव दत्त श्री जीराउला पार्श्वनाथ स्य चेस्ये देहरी ३ बारापिता श्री देव गुरु प्रसादात् प्रवर्द्धमान भद्रं मांगलिकं भूयात् ॥
(974) ओं ॥ सं० १४८३ वर्षे भादवा यदि ७ गुरु कृष्ण पक्ष श्री सपा गच्छ नायक श्री श्री देव सुंदर सूरि पदे श्री सोम सुंदर सूरि श्री मुनि सुंदर सुरि श्री जय चंद्र सूरि श्री भुवन सुंदर सूरि उपदेशेन श्री कल वर्या नगरे कोठारी बाहउ सामत सं नाने को नरपति भा. देमाई पुत्र सं० उकदे पासदे पूनसी मना श्री उसवाल ज्ञातीय कटारीया गोत्र श्री जीराउला भुवने देव कुलिका कारापिता । शुभं भवतु ॥ श्री पार्श्वनाथ प्रसादात् ॥ ओं कटारिया गोत्र वरं महीयं नातु पिता मे जननी देमाई। श्री सोम सुंदर गुरुगुरव अदेयाः भी छालज मंडन मात्र शालं ॥१॥
( 975) ओं ॥ सं० १४८३ वर्ष भाद्र वदि ० गुरु दिने कृष्ण पक्षे श्री तपा गच्छ नायक श्री देव सुंदर सूरि पर श्री सोम सुंदर सूरि श्री मुनि सुदर सूरि श्री जयचंद्र मूरि श्री मुवन सुंदर सरि भी उपदेशेन श्री फलवर्गा नगरे श्री उसवाल ज्ञातीय सा० घणसी संताने सा. जयता मा० वा. तिलक सुत सं० समरसी सं० मोषसी श्री जीराउला भुषने देवकुलिका कारापिता । शुभं भवतु । श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात् ।
( 978 ) ओं ॥ सं० १९८३ वर्षे माद्रवा वदि ७ गुरु दिने कृष्ण पक्षे श्री तपा गच्छ नायक श्री देव सुंदर सुरि प४ श्री सोम सुंदर सृरि श्री मुनि सुदर सूरि श्री जयचंद्र सूरि श्री भुवन
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(२७२) संदर सूरि उपदेशेन श्री कलवा नगरे ओसवाल ज्ञातीय म. मलुसी संताने सं. रतन भार्या वा. वीस सुत सं० आमसी श्री जीराउल भुषने देवकुलिका कारापिता । शुस भवतु श्री पार्श्वनाथ प्रसादात ॥ छ ॥ सा० आमसी पुत्र गुणराज सहस राज।
( 17 )
स्वस्ति श्री संवत् १४८१ वर्षे वैशाख सुदि ३ वहत्तपा पने भटा० श्री रत्नाकर सूरीजामनुक्रमेण श्री अभयसिंह सूरीणा पह श्री जय तिलक सूरीश्वर पहावतंस महा० श्री रत्न सिंह सूरीणामुपदेशेन श्री वीसल नगर वास्तव्य माग्बाटान्वय मंढन श्रेषेत सीह नंदन श्री देवल सीह पुत्र • पोषा तस्य भार्या सं० प्रण उ देव्ये तयोः सुता सं० सादा सं. दादा सं० मूदा सं० दूधानिधै रेतेः कारि।
( 978 )
स्वस्ति संवत् १५०८ वर्षे आषाढ़ सुदि १२ शने सू० काला सहढा नरसी मीमा मांडण सांढा गोपा मेरा मोकल पांचा सूरा नित्य प्रणम्य अष्टांग सकुटुब।
( 979 )
ओ। सं० १८५१ वर्षे आसाढ़ सुदि १५दिने श्रीजीरावल पार्श्वनाथजीरो जीर्णोद्वार कारापितः सकल अहारक पुरंदर महारक जी श्री श्री श्री श्री भो १०८ - ५घर राज्येन जीर्णोद्धार करापित हजार ३०१११ रुपीया परचीवी माल लीधो श्री जीरावल वास्तव्य मु०। घजा। को। दला। सा० कला। सा. रसा। सा० सघा । सा. जोयन सा. अणला। सा० धारम। सा० रामल । - - - यकी काम कारापितः । जोसी दुरगा। भात राजा जात्रा सफलः॥
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( २७३ ) - श्री अंजारा पार्श्वनाथ ।
( 930 ) स्वति श्री संवत् १६५२ वर्षे कार्तिक यदि ५ बुधे येषां जगद्गगुरुणां संवेग घेराग्य सो माग्यादि गुणगण श्रवणांत् चमत्कृतमहाराजाधिराज पाति शाहि श्री अवरामिधानः गुर्जरदेशात दिल्ली मंडलेश बहुमानमाकार्य धर्मोपदेश कर्णन पूर्वकं पुस्तक कोश समर्पणं डावरानिधान महासरो मत्स्यवध निवारणं प्रति वर्ष षडमासिकामारि प्रवर्तनं सर्वदा श्री शत्रज तीर्य मुंडकाभिधान कर निवर्तनं जीजियाभिधान करकर्त्तनं निज सकल देश दानमृत्त स्वमोचनंसदेश वंदय रुण निवारणं घिस्यादि धर्म कृसानि प्रवत्तं तेषां श्री शत्रुजये सकल देश संचयुत कृत यात्राणां भाद्रपद शुक्ल कादशी दिनेजात निवाणां शरीर संस्कार स्छानासन फलित सहकारणां श्री हिर विजय सूरिश्वराणां प्रति दिनं दिव्य नाद्यनाद श्रवण दीप दर्शनादिकै जीय प्रसावाः स्तूप सहिताः पादका: कारिताः पं. मेधेन भार्या लाडकी प्रमुख कुटुव युतेन प्रतिष्ठिताश्च तपागच्छाधिराजेः भहारक श्री विजयसेन सूरिमिः ओं श्री विमल हर्ष गणि ओं श्री कल्याण विजयगणि ओं श्री सोम विजय गणिभिः प्रणता भव्य जनैः पुज्यमानाशिवर नन्दतु ॥ लिखता प्रशस्तिः पद्माणंदगणिना श्री उन्नत नगरे शुभं भवतु ॥
श्री कापड़ा पार्श्वनाथ ।
( 931 ) संवत् १६७८ वर्षे वैशाखसित १५ तिथौ सोमवारे स्वाती महाराजाधिराज महाराज श्री गजसिंह विजय राज्ये ऊकेशेरायलारवण संताने मांडागारिक गोत्रे अमरा पुत्र मामा केन भार्या भगतादेः पुत्र रत्न मारायण मरसिंह सोठढा पौत्र तारा चंद खंगार-नेमि दासादि
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( २०१ ) परिवार सहितेन श्री श्रीकर्पटहेटके स्वयं पार्श्वनाथ चैत्ये श्रा पार्श्वनाथ ... ... ... ... ... ... ... ... .. सिह सूरि पट्टालंकार श्री जिन चंद्र सूर्गिः सुप्रसन्नो मवत् ।
अलबर । मलवर राज्यकी राजधानी यह छोटा और सुन्दर शहर है।
(982 )
सं० १२५५ माघ सुदि ६ ....।
। 953 ) सं० १२९४ ये० ३०५ गुरौ श्री... वंशे पिता मही प्याऊपिउ पितृ सोला श्रेयो) पत्र नाग दिन - न मा. जागत्र मात एतेन सहितेन श्री पार्श्वनायो विवं कारितः । प्रतिष्ठित श्री पार्श्वनदेव सूरिमिः।
(584) सं० १३०३ वर्ष माघ सुदि. - सोमे देवानं हित गच्छे अं. १मालामार्या सिंगार देवो पुण्यार्य सुत हरिपालादिमिः श्री शांतिनाथ प्रिंयकारित प्रतिष्ठित श्री सिंहदत्त सूरिभिः ।
( 93 ) स० १३२१ वैशाख सुदि ३ यरुपति कुलेन साणे छोता .....
( 986 ) म. १३७८ जेष्ट बदि ५ गुरु श्री उपकेश गच्छे लिङ्ग - । गोत्रे ... सा. खिंत्र घर सिर पाल मार्या पुत्र कील्हा मुणि चंद्र लाहड वाहनादि सहिताभ्यां कुटुम्ब अयोयं भी शांतिनाय बिंब का. प्रति श्री कक सूरिमिः।
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सं० वर्षे १४८०
सोनादे -
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(२७५ )
( 987 )
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- उ० छत्रवाल गोत्रे सा० तिहुणा पु० सोना भा०
फागुण सुदि १० शांति नाथ बि
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( 988 )
सं० १४९९ वर्षे मागसिर सुदि ५ काकरिया गोत्र सा० सधारण तरपुत्र सा० सांगा श्री आदिनाथ बिवं करापितं श्री नयचन्द्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
(989)
सं० १५०१ पोष वदि ६ बुधे श्री हुंबड ज्ञातीय परज गोत्रे ठ० कडुआ भ० कामल दे सुख ठकुर पीमा भा० रूपिणी -- सुसीया बीमा सुत देवसी करमा देवसी भा० चमकू सुत लखमा घरमा धना वना देवी । करमा भा० गांगी लखमा भार्या भोली एवं समस्त परिवार सहितेन ठ० देव सिंघेन श्री संभव नाथ विंव कारापित स्व पुण्यार्थं प्र० श्री सर्व सूराः ।
( 990 )
सं० १५०१ वर्षं माघ वदि ६ उपक्रेश ज्ञासौ लोढ़ा मोत्रे सा० भार्या पूना पु० हांसाकम निज पूर्वजा षेमधर मोहा मीत्यर्थं श्री आदिनाथ बिंबं कारितं श्री रुद्रपल्ली य गच्छे भ० श्री देव सुंदर सूरि पदे प्र० श्री सोम सुंदर सूरिभिः ।
( 991 )
सं० १५१२
वर्षे फागुण सुदि १२ बुधे उ० ज्ञा० खढ़बढ़ गोत्रे सा० पाल्हा भार्या पाल्हीदे पुत्र सं० साद्य खायर सोठारय आत्मश्रेयसे श्री सुमतिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्री मलधार गच्छे गुण सुन्दर सूरिभिः ।
Page #319
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २७६ )
J (992 )
सं० १५१९ वर्षे अषाढ़ वदि शनौ भरतपुर ज्ञा० डीघोडीया सा जगसी सा० हर श्री पु० स० हापा स० घर्मा हापा घर्मा भा० खेहा पु० माहवा भा० गागी पु० नाथ चांदा युतेन श्री शांतिनाथ विंबं का० प्र० श्री चैत्र गच्छे भ० श्री गुणाकर सूरिभिः ।
( 993 )
--
सं० १५२६ वर्षे जेठ बदि १३ मंगल वारे उपकेश जातीय नाहर गोत्रे पेसा पु० रुल्हा श्री शांतिनाथ विंवं कारित प्र० श्री धर्मघोष गच्छे
भार्या जलदे खुकांवर अमरा श्री महेंद्र सूरिभिः ।
J (994)
सं• १५२६ वर्षे वैशाख वदि ५ दिने उप० ज्ञा० वालत्य गोत्रे सा० - दे पु० राउल पु० सुर जल सींहा - - मातृ पितृ पुन्यार्थं आत्म श्रेयसे श्री वास पूज्य विंवं करापि प्र० उप० गच्छे ककु० संताने प्र० श्री कक्क सूरिभिः ।
J(995)
सं० १५२७ वर्षे पोष वदि ४ गुरौ श्री माल ज्ञातीय श्रेष्ठि जोगा भार्या स्नू सुत हेमा हरजाभ्यां पितृमातृ निमित्त आत्म श्रेयोर्थं श्री अजितनाथ विंबं का० प्र० श्री महूकर गच्छे श्री धन प्रप्त सूरिभिः । मेलिपुर नगरे |
] (996 )
सं० १५२८ वर्षे अषाढ़ सुदि २ सोमे श्री उकेश वंशे संखवाल गोत्रे सा० मेढ़ा पुत्र सा० हेफकिन भ्रातृ उधरण चेला पु० पोमादि सहितेन श्री शांतिनाथ विंवं का० प्र० श्री खरतर श्री जिन चंद्र सूरिभिः ।
Page #320
--------------------------------------------------------------------------
________________
(२७७)
J( 997 ) संवत् १५५८ वर्षे --सु० ११ गुरौ उपकेश ज्ञातीय श्री रांका गोत्र साण तथ सुत सान्मूहडेन महराज महिय - - युतेन आत्म श्रेयसे श्री मुनि सुव्रत स्वामि विवं कारित प्रतिष्ठितं श्रीमदूकेश गच्छे श्री ककुदाचार्य संताने श्री कक्कसूरि पह श्री देव गुप्त सूरिभिः ।
( 998 ) सं० १५६१ वर्षे पोस वदि ५ सोमे ओश वंशे लोढ़ा गोत्रे सउधरी लाधा भार्या मेह्मणि सु० प्रेम पाल - - सुश्रावकेण - तेजपाल श्रेयो) श्री अजुल गच्छे श्री माय सागर सूरिणामुपदेशेन श्री आदि नाथ विंवं का०प्र० श्री र - -
( 999 )
सं० १६६१ वै० सु० ज० भ० सचटी-..।
( 1000 ) सं० १९३१ मोघ शुक्ल पक्षे द्वा. तिथौ १२ बुधे श्री ऋषत जिन विंबं कारित अलवर नगर वास्तव्य श्री संघेग मलधार पुनमियां विजय गच्छे सार्वभौम भहारक श्री जिन चंद सागर सूरि पहालंकार सोमित श्री जिन शांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितं मधुबन मध्ये।
पटना म्युझ्यम ।
( 525 ) संवत् १८७४ शाके १७३६ प्रवर्तमाने शुभ ज्येष्ठमासे कृष्ण पक्षे पंचम्यां तिथी सोमदिने श्री व्यवहार गिरि शिखरे श्री शांतिजिन चरण प्रतिष्टितं महारक श्री जिनहर्ष सूरिभिः ॥
Page #321
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २७८ )
( 6 ) संवत् १९११ वर्षे शाके १७७६ शुचि ॥ दिने श्रो शांतिजिन पाद न्यासः । प्रतिष्टितः खरतर गम्छ भहारक श्री महेन्द्र सूरिभिः सेठ श्री उदयचंद मार्या पास कुमारजी ॥
उपसंहार ।
__ सर्व शक्तिमान परमात्माके कृपासे यह "जैन लेख संग्रह" एक सहस्र लेख सहित वर्षप्रयमें समाप्त हुआ। इस संग्रह के लेखोंके गुण दोष विचारको आवश्यकता नहीं है। जैनियों की प्राचीन कीर्ति संरक्षण ही मुख्य उद्देश्य है। मुद्राकरके दोष से, संशोधनक के प्रमाद इत्यादि कारणों से छपाई में बहुत अशुद्धियां रह गई हैं। प्रर्थना है कि विद्वज्जम अपराध क्षमा करें और सुधार कर पढ़ें। और पाठक जनों से निवेदन है कि बहुत सी अशुद्धियां मूल में ही विद्यमान है, जिसको सुधारा नहीं गया है। पाठकों के सुगमताके लिये ज्ञाति, गोत्र, गच्छ, आचार्यों की अकारादिक्रमसे सालिका भी दी गई है। जिन सज्जनों ने “संग्रहमें” मदद दी है उन सभीका मै कृतज्ञ हूँ। यदि यह संग्रह जैन माई आदरसे ग्रहण कर मुझे अनुगृहीत करें तो इसका दूसरा भाग शीघ्र प्रकाशित करने का उत्साह बढ़ेगा। अलमिति विस्तरेण।
संग्रह कर्ता ई० सं० १९१८ ।
कलकत्ता
Page #322
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रावकों की जाति-गोत्रादि की सूची।
ज्ञाति-गोत्र
लेखांक
ज्ञाति-गोत्र
लेखांक
५३४, ६२३
१०७
१४. ६३७,६७४
४३२
४२६
८०,८२४ ७, १६, २९५, ९८८
-११, १८, २४, ३५, ४६, ५१, ६४, भायचणाग 9६, १५, १०५, १०६० ११५, १२३,
भाईचणा १३३,२१२, २२६, २३८, २४२, २२३, भाईचणी २६६, २७७, २७६, २८७, ३८६, ४०१,
आभूस० ४०३, ४०६, ४११, ४१६, ४२०, ४३१०
उचितवाल ४४५, ४५०, ४६०, ४६४, ४७५,५६०,
कटारिया ५७२, ५७८, ५८८, ५९२, ५६७, ५८,
कठउह ६०४,६३५, ६६२, ६६५.६६८, ६८२,
कंठउतिया ७०५, ७०७, ७२६, ७११, ७३१, ७३६,
कठारा ७६५, ७६६, ८०४, ८१८, ६२१, १२०,
काकरेचा ६७५, ६७६, ९८६
काकरिया
कातेल ओसवाल [ लघुशाखा ]
कावेडीया गोत्र
कुहाढ गांधी मोती ... ... ६५२ कुर्कट नागड़ा
... ६५४, ६५५ (फोठारी ओसवाल [वृद्धशाखा ]
कोषागार
वढबढ ५६, ७२, ११३, ११४, १३..
गणधर ५२६, ६१२, ६५६, ६६६, ६७०
गहलडा ओसवाल [गोत्र]
गहिलडा भादित्यनाग .! ५०, ४७१, ६२५, ७२६ गेहलडा " [चोरडीया शाखा] ...
गादहिया
७१६ २७३, ८२९
१३३, ६७४
६६१
५८०
७८२, १२८
Page #323
--------------------------------------------------------------------------
________________
{
ज्ञाति - गोत्र
गांधि
गुगलिया
गोखरू
गोलेच्छा
सत्तरिया
खंडलीया
चरवड़िया
चोरडिया
चोरडीया
मालिया,
चोपड़ा
चोपडा ( गणधर )
छजलानि
छत्रवाल
छाजहड
छाव
जडिया
कारडिया
जम्मड
जांगड़ा
जारउडा
जाणेचा
...
टप
डागा
डागलिक
ढींक
तातड
[
लेखांक
५६ ६२, १५, २०८, २४०, २४६
२५५, २५६, ४२५, ६४८, ०५२
५४६, ७५७, ८२०
६,६३,४८५
::::::
...
...
...
...
१४२, ३४०
६८
५९६
४४९
५५८
१०२, ३०१,५८१
८२२
५०६
०७१,७८५.१८७ ३१, ४२२, ४३६
६८७
५३३, ७१२ २८२
१२०, ४००
४८०
६२२
४६८ ६७८, ७५८
१२१
४१७
४७
]
१२८, ४००,५३१
ज्ञाति-गोत्र
तिलरा
तोट
पमार
३३ || पामेचा
1 पावेचा
२२५
दणवट
दूगड़
दुधेडिया
दोसी
धनेरिया
भाडेवा
भीर
धुल
नवलबा
नाहटा
नाहर
पालबा
पीपाडा
पीहरेचा
पोसालेवा
बच्छस
बरडा
बर्डन
बरडिया
१४८, १५०१६४ १६५ १६० १६० १४, १७७, १७६, १८४, २७४, ३०४, ३०६,३३६०
३४१, ३५२, ४३४, ४००, ७३४
...
लेखांक
...
२५
५५०
१६
३१४४५३६८.८५, १४६,
२२.६६२
२२०
५३९
१८३
३०३
७५०
२१४, ३४३ ४७३, ४६६
५,४६६, ४२,६१५,
845, GEE, EER
५००
පිළු
६१६
{૭
२६४, २६५
१२,०
43
५७३
१२६
६०१
६२
Page #324
--------------------------------------------------------------------------
________________
ज्ञाति-गोत्र
लेखांक १०१,४४८
"
३८६, ७३८, ७७४, १२०
४२६
युहरा बाप(फ)णा चावेला चांठीया बांभ बैंछाच भणशाली भ० भांडागारिक भंडारी
१७, १००,५८७, ५६६,६११,
३५१, ८५३
भूरि
ज्ञाति-गोत्र
लेखांक लोढ़ा . १२२, ११३, २१४, ३०७-३११
३२६, ४३३, ४४३, ४७६,६०७
७७३, ७८०, १२६, ६६०, ६६८ घरद्ध वलहि (रांकाशाखा) ... वाहडा बहरा
... ७३२, ७३३, ७३५, ७६७ वारदेचा बालत्य
६६४ विदाणा
६२६ वीराणी ३००, ३१३-३१५, ३३४, ३४८, ३५२,
३५३, ३५६, ३६१, ३६३, २६५, ३६७,
३७१, ३७३, ३१५, ३०७, ३७९, ३८९ वेलहस
८६० वेदमहता वोहराकाग सचीती
२४३, २६१ सुचेत
७६१ सुचिंतित समदरिया संखवाल सूर सूराणा
२६, ४.८, ४१०,५६५, ७८३ सेठोया
४२, १६४ सेठ ( श्रेष्टि) २०,२६, २३३, २६८, ४८८ सिंघाडीया सोभिल सोनि
.
भोर
१०८
वैय,
८१६
५४२
भोढ़ा भोगर मंहोरा मंडोवरा मिठडीया मु(म)हणोत्र
0 V 000 PM
.
១១
८२८, ९०४, ६०५,
६०७, ६११
मूधाला
माहू
१६६, ३०५
८५२
रायजडारी रांका
६६७
लिगा
१५४
४१६
लणीया लूसड़
८, ५६६
५५२
Page #325
--------------------------------------------------------------------------
________________
साहू
ज्ञाति-गोत्र लेखांक ज्ञाति-गोत्र
लेखांक श्रामाल-३, ६, १, २४, ५५, ६६, १००, १०४, । फोफलीया
७३७ ८२३ बदलीया १९१, ११६, ११७, १२५, १२७, १३२,
२००, २३१, ३२१ बहरा १८०.६५१, ३८३, ४०७, ४२२, ४२३, ४२७, ४३०, ४३१, ४५२, ४५४, ४७६,
मांचित
भांडिया ४८१, ४६४, ४६८, ५०६, ५१०,५१६,
४२, २८९, ७६३ ५३२, ५३६, ५५४, ५६१, ५७२, ५७४, मउवीया
४१४ महता ६०६, ६०८, ६१४४६३०, ६५३, ६७३,
२१८, २६० महरोल ६७१, ६८२, ६६०, ६६१, ६६३, ६६७,
माथलपूरा ७४०,७४१, १४५, ७५३, ७६८, ७६६,
मौठिप्पा ८२५, ५२७, ८६६, ६००, ६६५
१८७ वह कटा
४६३ श्रीमाल (लघुशास्त्रा) २५.६२०
७८ श्रीमाल (बृद्धशास्त्रा) २६५, ६८५ सिंघृड
... ४४७, ५२३, ५२४ श्रीमाल ( गोत्र)
श्री श्री ... ११९, २६२, ६६४, ६६६ गोवलिया
४१२ ,, ,, पल्हयड (गोत्र) ... ... ५५६ भेवरिया
२८५, ४१३ चंडालेचा
प्राग्वाट ( पोरवाड )२, १५, ४०, ५२, ५४, ५८, जम्बहरा
३६४
.२, ७२, ९०, ६१, १४, १०६, १५२, जरगड
१५७, २८०, २८३, ३६२, ३६३, ३०५, टांक
३९८,३८६, ४०५, ४२४,४४४,४४६, डउडा
४५६, ४६३, ४६६, ४८३, ४८४, ४९६,
५०४, ५११,५३५, ५३७, ५३८, ५४५) दोसी
५४६, ५५३, ५५७, ५६३, ५८५, ५६५, धामी
६४७, ६४६, ६५०, ६६०, ६६१, ६६७, धीधीद
६८५, ६८६, ६६८,७००, १०४, ११३, नलुरिया
७१४,७४२, ७५५, ७६२, १७५, ७७७, पाताणी
99६, ८३६, ८३,६४६, ६४६, ११, पापड़
६५३, ६५४, ६१, ६६७, ८७१, ६७७,
८३०
AC ०.
टोर
७६१
Page #326
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखांक
६०१
लेखांक | ज्ञाति-गोत्र
नना ... ...
नागर ... ... ६४७, ६४८, ६५० नारसिंह ४२८
[गोत्र] ६५१, ६७७
वोरठेच नीमा ... ... पल्लीवाल ... ... पापडीवाल ...
७१८
ज्ञाति-गोत्र प्राग्वाट (वृद्धशाखा)
[गोत्र] कोठारी झूलर दोसी भंडारी मुंठलिया लींवा अग्रवाल [ अग्रोतक]
[गोत्र] गांगलु गोयल पिपल वासिल अत्ताल
[गोत्र] गोपल
६२१
७६, ३२३, ३२४ ग) ४८, २३६, ४८२
३२६
[गोत्र] उसियड काणा
१८६ १०३, १६१, १२, २१५, २१७, २७०, २८१,४१८, ४१६
३२७
१९२
काद्रडा घेवरिया
२८४ १७६, १६०, १९८, २४५, २११
चोपडा
१९२
१९२
२३६, २५६
१६
खंडेलवाल ... ...
[गोत्र ] गोधा संडिल्लवाल जेसवाल
[गोत्र] कष्टहार धर्कट
चोपडा (मंडन) ... चोपडा (शृङ्गार )... जीजीआण
जाटड ४६५
दान्हडा
दुल्लह ३२८, ४७२
नान्हडा बालिडिवा
भांडिया ८६२, ८६७, २६६ | महता
३८८
१६
१९२
१७
२२१ ।
२८६
२६०
Page #327
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखांक | ज्ञाति-गोत्र
लेखांक
१७१, १७२ / परज
गोत्र ( ज्ञाति, वंशादि उल्लेख नहीं है।
ज्ञाति-गोत्र मुंडतोड रोहदिया वायडा वार्तिदीपा सयला माल्हण मोट
२१६
उजावल
८८०
उसभ
ओष्ठ
५४३, ७६, ८६३
५५५
५४०,८८६
काठुड गोठी
राजपत
८०५
घोरवडांशु जलहर
४४
५७८ ६२०
६८९
SX
चाहमान चौलुक्य प्रतिहार राठउड सोलंकी लघुशाखा वघेरवाल [गोत्र] राय भंडारी शंखवाल शानापति पंडरेक सीढ हुबड [गोत्र] गंगा मंत्रीश्वर रजीआण
डोसी दूताड़ धांध फसला मिधूज मुहता राउखा वरही रहुराली (!) वणागीआ वपुगणा तुडिला वालिडिवा श्रवाणा पटवड षांटरा संखवालेचा
१६२ ६४३ ५८६ ५४७ ५७६ १.२ १९७ ५८६ ७६४ ६१६ ७६६
८४२
७६८
३४, ५०, ५५१, ५७१, ६६६, ९८६
Page #328
--------------------------------------------------------------------------
________________
। आचार्यों के गच्छ और संवत की सूची ।
लेखांक संवत् नाम
संवत्
लेखांक
नाम अंचल गच्छ। मेरुतुंग सू०
.४४६ १५४६
१४४७
६२८
२८५
१४४६
७६२
श्री सूरि कुंथकेसरि सू० भाववर्धन गणि आगम गच्छ।
जयतिलक सू० हेमरत्न सू०
जयकीर्ति सू०
१४३८
१६५
जयकेसरि सू०
१५०६ १५१२
७४१
१४८१ १४८३ १५०३ १५०७ १५१ १५२२ १५२३ १५३०
१५०७
४७६
१००
१५१० १५१५ १५११
५५७ ४२३
१५३१
६६५।६७४
१११
शीलरत्न सू० जिनरत्न सू० पादप्रभ सू० देवरत्न सू० सोमरत्न सू०
आनंदरत्न सू० उपकेश गच्छ।
कक्क सू० देवगुप्त सू० कक्क सू० सिद्ध सू० देवगुप्त सू० सिद्ध सू०
१५३६ १५५१
सिद्धान्तसागर सू० भावसागर सू०
७६१ १२१
१५६१
११८
४६.
२१२
१२५६ १३५३ १४०५ १४४५
१४७१ ३०७-३१२।४३३ १४८०
७४३ | १४८५ ६५२१६५४४६५५ ९४८८
६२८ १४६५
७७४
१५७४ १५७६ १६७१ १८५६ १६२१
७७
कल्याणसागर सू० धर्ममूर्ति सू० रत्नसागर सू० श्री सूरि
५५०
५३१
१४४५
Page #329
--------------------------------------------------------------------------
________________
संधत्
नाम
लेखांक
संवत्
१४१७
देवगुप्त सू० कक्क सू०
२३८ २१६४४७१
।१५८३
१६०३
१३
४०१।६२३
नाम
लेखांक देवगुप्त सू० कक्क सू० राध गच्छ।
ऋ० ताराचन्द [क] छोलीवाल गच्छ।
विजयराज सू० कडुआमति गच्छ।
१४६६ १५११ १५१२ १५१५ १५१९ १५२४ १५२५ १५२६ १५२८ १५४६ १५४६ १५५६
५०१२२६
सिद्ध सू० कक सू० देवगुप्त सू०
W
W
क
६२५
१७१०
१
१५५६
६७२
कक सू० देवगुप्त सू.
१५६२
१२८४१३७६
४२६
कमलकलसा गच्छ।
रत्न सू० कमलविजय गणि) विजयमहेंद्र सू० ।
डुमरविजय गणि । कृषाषि गच्छ।
प्रसन्नचंद्र सू. जयशेखर सू०
नयचंद्र सू० कोरंट गच्छ।
नन्नसू० सं० ) ककसू० पट्टे सर्वदेव सू० सार्वदेव सू०
१५०३
२०
१५७६
सिद्ध सू
१४
१५०६
६८19EC
१६३४
१३४०
१५०१
देवगुप्त सू० सिद्ध सू.
कुंकुम सू० Jविवंदणीक गच्छ।
( उपकेश) मर्त्त सू० कक सू०
१४९२ १५०६ १५५३
७६६ ४१७
१५२७
कक सू०
६०३
Page #330
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
लेखांक संवत्
नाम
लेखांक २४८८
१५३६
जिनसमुद्र सू०
१४१२
नाम Vखरतर गच्छ।
जिनचंद्र सू० हरिप्रभगणि मोदमूर्तिगणि हर्षमूर्ति गणि जिनराज सू०
१५३७ १५४८
७३५ २२०
१५५१
४६३
जिनहंस सू०
१५५३ १५५८ १५६० १५६३
४४७
१४३८ १४४१ १४५६ १४६६ १४७६ १४८४ १४६५ १४६७ १५०३
जिनवद्धन सू० जिनभद्र सू०
२८६
१८७ ४६६६३
१५६८
१५७६ १५७६
जिनचन्द्र सू०
७८०
१६५७
१५०४
939
१६६१
१५०७ १५०६ १५११ १५१२
१६६८
२१४१४७३।७६७ ५०६।७३।७३३
१२१
४७० १२६७५६
४७
५२३ ७२३ १३५ ७७३ 389
१६७६
जिनरत्न सू० जिनराज सू०
जिनचन्द्र सू०
१६७७
१७११७८५/७८७
१५२७
उ. अभयधर्म
૨૭
૧૯૮૮
१५१६ १५२८ १५२९ १५३२ १५३४ १५३५
" १०३३१८६२१५२२९७१४१६
२१८१६९०
२८ १०७ ४४५
जिनराज सू० उ. कमल लाम पं० लब्धकीर्ति पं० राजहंस
५६२
Page #331
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत
लेखांक संवत्
नाम
लेखांक
१८२१ १८४४
१५२७
१९०५२
नाम जिनलाभ सू० जिनचन्द्र सू० वा० अमृतधर्म पा० क्षमाकल्याण) जिनचन्द्र सू
१५२८ १५३१
२८४ १५४
१५५१
उ० कमलसंयम
६२७६३३
३५८ १३८।१४४
३३८
३१५२७
१८४८ २८४६ १८५६ १८५५ १८६१ १८७१ १८७४
१५६२
जिनहर्ष सू०
४१४
जिनतिलक सू० पट्टे जिनराज सू० श्रीभिः जिनचंद्र सू०
८७१५२७ २६१।२६२१५२५
१५६६
२६०५२४
પ૭
१६६
१५७१
१६२
१८७१
२२४॥३३९३४०
१२।३०६
७२३
जिनसौभाग्य सू.
१६०० १६०३
१६८६
जिनरत्न सू० आचार्य सिंह सू०
रत्नतिलक सू० ) धा० लब्धिसेन गणि
कल्याणकीर्ति जिनरंग सू.
१६६।२७२
पं० हीराचंद जिनसौभाग्य सू०
१७०७
१९०४
१७८०
२४५ २०५ २०२
२०३
१९१० १६५७ १५०४
वा भुवनचंद्र जिनकीर्ति सू० करमचन्द हरखचन्द प्रतापसी महेंद्रसागर सू० रूपविजय उ० रत्नसुन्दरगणि कोर्युदयगणि
जिनकीति सू० ३८५ वा० शुभशीलगणि १७१२३॥ १८०३
२५६०२७० धर्मसुन्दरगणि
990 उ० हीरधर्मगणि ४२५ जिनसुन्दर सू०
१८४६
४८२ जिनहर्ष सू०
४८॥१६॥ १८७६ २१६।२८१४९८ | १८७७
१८५७ १५१५
४८०/१८२१
२०६
१५१६
३८०
Page #332
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखांक
संवत् १८८८
१८६७
नाम जरपल्लीयगच्छ उदयचन्द्र सू० सागरनंद सू० तपागच्छ।
सोमसुंदर सू०
५९२
१९००
वा० विनयविजय शिष्य २६३-२६७
१३१
१९११ १६१२
नाम लेखांक | संवत् जिनअक्षय सू० पट्टे)
| १५०३ जिनचन्द्र सू.
३४३ जिनमहेंद्र सू०
१५३२ कुशलचन्द्रगणि । २०३४५ जिननंदिवर्द्धन सू०
| २४२२४३॥
१४७५ पं० कोयंदय
१४८५ जिनमहेन्द्र सू. २४४,२६८१६३४
१४८६
१४६६ मु०मोहनचन्द्र
१४६६ जिनकल्याण सू०
१४८९ जिनरत्न सू० चन्द्र गच्छ।
| १४८३
| १४८५ पूर्णभद्र सू०
१४६० चंद्रप्रभाचार्य गच्छ।
१५०१ ./चित्रवाल गच्छ।
१५०३ मुनितिलक सू०
७०० ५५३११२३
रत्नसिंह सू०
99
१९२६
.१४६
२९७२
भुवनसुंदर सू० हेमहंस सू०
३७४-७६
५४८
१२३६
३३
१५०७
११६०
मुनिसुन्दर सू० जयचन्द्र सूर
६४७६८
६२१ ४७५ ४५७
उदयनंदि सू० रत्नशेखर सू०
१५०६ १५०८ १५१३ १५२८ १५४८
वा२६०७५
दोणाकर सू० सोमकीर्ति सू० सोमदेव सू० रत्नचंद सू० पा० तिलकचंद्रमु०॥
१५१० २५१२ १५१३
१५१४
८१८ २७६७४२ ४०१५७३२९२६
चैत्र गच्छ।
રરર
१३३३
अजितदेव सूर गुणाकर सू०
रत्नसिंह सू०
Page #333
--------------------------------------------------------------------------
________________
[
॥ ]
संवत्
नाम
लेखांक
१५१२
०००
०००
सोमरत्न स.
४२१
१५२२ १५२३ १५२४
७.
नाम
लेखांक | संवत विजयतिलक म. पट्टे
१५३६ विजयधर्म मू । लक्ष्मीसागर सू० २८०४८३ १५५१
६.६३५
१५४५ ४४४५३५१५७०
१५५२
१४ १०५।०६।२८३५६०
४८४६२४ ३८८७३६
१६०३ ७०1४८५६२४
१५६४ ५८१३६६ ३६५३
१६७१ ५७० ७३।४४६
सोमसुन्दर सू० इन्द्रनन्दि सू० कमलकलश सू० हेमविमल सू० कमलकलश सू. ) कमलकलश सू० हेमविमल सूक
१४६
१५५६
२९१
१५७६
१५३५ १५३६ १५३७
४
१५७०
१५१७
हेमसमुद्र सू०
१५९६ १५७६
२५४
१५२१
पं० अनंतहसगणि। वनरत्न स०
५४० सौभाग्यसागर सू० २६३ राजरत्न सू० वनरत्न सू० विशालसोम मू० विजयदान सू० १४६-६४८
६५० होरविजय स० ७१३
६२७
सोमदेव सू० सदयवल्लभ सू० जिनरत्न सू०
१५२७ १५३२ १५२८ १५३० १५३२
१६११ १६२३
क्षेमसुन्दर सू० विजयरत्न सू० उदयसागर सू०
२१शशE२५
Page #334
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
१६३४
१६३८
૪૪
१६४७
१६११
१÷४३
१६५२
१६५३
१६६७
१६८६
१६५३
१६५८
१६६६
१६६८
१६७४ १६७७
१६८३
१६८४
१६८५
१६८६
१६८७
१६६४
१७००
१७०३
नाम हीर विजय सू०
33
23
19
विजयसेन सू० शि० धर्मविजयगणि
विजयसेन सू०
ود
"
د.
विनयसुन्दर गणि कल्याणविजय गणि
सहजसा० जयसा०
विजयसेन सू०
विजयदेव सू
विजयदेव सू०
دو
"
वा० लब्धिसा० उदयसा० )
'
39
دو
3:
39
34
25
"
}
लेखांक
}
[ - ]
१२४१६८१ १६८४
६०५
२०६३० | १६८६
१९३
२२३०५०४
७१४ १६८७
१६८८
संवत्
१६६३
१६६७
६८० १७०१
१८२ १७६२
१२० | १७६५
८२६।८२७ | १७११
७५२
११३ | १८०१
१८२८
१८४५
१८७३
८१४
७२५
५८११८५३
१६०३
४५२७५० (૧૪૬
७५४१७८४
५४२२९०५६०६
६०८
६६४ १५६६
७८३/८२५१८२६८३७ १५७१ ५४३७५६
१५९१
१३०१६६६६६७०
७७२।८२८
५९४ ९५०५
नाम जयसागर गणि विजयसिंह सू०
"
ور
59
"
+3
99
चन्द्रकुशल गणि विजयरत्न सूर
"
जयविजय गणि
सुमतिचन्द्र गणि
वीरविजय सू०
विजयजिनेंद्र सू०
}
पं० मोहनविजय
पं० रूपविजय गणि
ज
छ
[ सपा ]
इन्द्रनन्दिनू० प्रमोदसुन्दर सू०
सौभाग्यनन्दि सू०
सावकीय गच्छ ।
शांति सू०
लेखांक
६०४११
ἐθε
८३८/८५६
४५५
५८२
६५६
१९४
२०५४५०६
३३४
૬૪૩
३००
૪
१३६
३१
६४५
७४४
३५५
८४६
८५०१८५१
५४
८८७
Page #335
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
५२९
१४२०
नाम त्रिविया गच्छ।
धर्मदेव सू० सं०
धर्मरत्न सू० J देवानंदित गच्छ।
सिंहदत्त सू० धर्मघोष गच्छ।
सागरचन्द्र सू० मलयचन्द्र सूर
१५७२
१३०३
२६४
[m] लेखांक | संवत् नाम
लेखांक १४८३
सिंहदत्त सू० ) १५१५ विनयप्रभ सू०
४८१ गुणदेव सू० १५२९ सोमरत्न सू०
८१६ गुणवर्द्धन सू०
99 नाणकीय गच्छ। शांति सू०
८६२ ४६
धनेश्वर सू०
१०२ वीरचन्द्र सू ४१०
नाणवाल गच्छ। ४२८४६६ ५५२ १५३६ धनेश्वर सू०
१०० निगमा विभावक गच्छ । इन्द्रनंदि सू०
४०४ पल्लिवाल गच्छ।
१२३५
१४०६ १४५८ १४५६ १४८२ १४६२
पद्मशेखर सू०
१५०३ १५०५
injif it if it
महेंद्र सू० विजयनरेंद्र सू० साधुरत्न सू.
1499
४७४
पद्मसिंह सू० महेंद्र सू० पद्मानन्द सूर
(६३
१५०० १५१३ १५२८
१५०० १५२६ १५२६ १५३३ १५५१
G98
यश सू० नभ सू उजोयण सू.
६७१
७३७
७२४
पुण्यवर्द्धन सू०
४६२ ११०
१५५४
६०२
Jपवीर्य गच्छ।
यशोदेव सू० पार्श्वनाथ गच्छ।
५१
१८
१५१०
नंदिवर्द्धन सू० उदयप्रभ सू०
नयचंद्र सू० नागेंद्र गच्छ।
१७८३
१६२
१०८८
१८३
जिनहर्ष सू० भानुचन्द्र सू.
१५४६
रत्नप्रभ सू०
Page #336
--------------------------------------------------------------------------
________________
[
]
संवत्
लेखांक
लेखांक संवत्
११८५
१०१
१२०८
६६/ १४३६
१४६१ १५१३
नाम पिप्पल गच्छ।
विजयसिंह सू० वीरप्रभ सू० उदयदेव मूक गुणरत्न सू० अमरचन्द्र सू०
धर्मप्रभ सू० पूर्णिमा गच्छ।
जिनवल्लभ सू० जयचंद्र स०
१४५६ १५११
१११
६०८
१५१७
१५१६
नाम यशोभद्र सू० बुद्धिसागर सू० हेमतिलक सू. उदयानंद सू० विमल सू० उदयपभ सू० चीर सू० शीलगुण सू०
गुणसुन्दर मू० मावडार गच्छ।
वीर सू०
भावदेव सू० V भित्रमाल गच्छ।
१७१८
१०४१६६३
४२२
१५२०
१४७६ १५११
६१६
४.३
११८
महितिलक सू० साधुरत्न सू०
जयभद्र सू० विजयचन्द्र मू०
9
साधुसुन्दर सू०
५६८
१२५
८६
१५१६ १५२२ १५२८ १५२७ १५३२ १५३१ १५६३ १५७७
६८४
पुण्यरत्न सू०
१४८५
/ मलधारि गच्छ।
देवनंद सू० तिलक सू० विद्यासागर मू० गुणसुन्दर सू० गुणकी िसू० श्री सू० लक्ष्मीसागर सू०
208
१९१
१५९८
४१३ ४९४ ६४८ ५९६
१६००
मुनिचन्द्र मू० विनयचन्द्र सू०
मुनिरत्न सू० प्रभाकर गच्छ। / लक्ष्मीसागर सू० ब्रह्माणीय गच्छ।
१५५०
१५७०
9EX
१५७२
१५०७
महाहडीय गच्छ।
नयकीर्ति सू० मतिसुन्दर सू०
१२२
११४४
Page #337
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
लेखांक | संवत्
लेखांक
नाम
नाम महुकर गच्छ।
धनप्रभ मू० यशसूरि गच्छ।
१५०५
६
५६
१२४२
८३३३८३४
७०२
१५०१
नाम विधिपक्ष गच्छ।
जयकेशर सू० वृद्धपोसल गच्छ।
आनंदसोम सू० वृहद् गच्छ। पं० पद्मचन्द्र गणि शातिप्रभ सू० जयमङ्गल सू० विनयचंद्र सू० अमरप्रभ सू० प्रभ सू० हेमचन्द्र सू० महेंद्रसू० रनाकर सू०
महेन्द्र सू० सरवाल गच्छ।
१४३९४४
८५८
रुद्रपल्लीय गच्छ। देवसुन्दर सू०
४६१ १२१५ सोमसुन्दर सू०
| १२६० १२२ १३४
| १४३३ गुणसुन्दर सू०
| १४४८२ उ० गुणप्रभ
५०१ १४८६ भावतिलक सू० ४६० | १४६३ लंपक गच्छ।
१५०८ उ० सागरचंद्र गणि १४८९५०
१५११
१५१८ अजयराज सू०
१८४/२०७
१५२५ १५३२ १५६६
२७४
HAN
१६२५ १६३१
२३५
संडेरक गच्छ।
१७१८ १६२१
सुमति सूरि
८३९ ५१६ ४१५
अमृतचंद्र सू० १६८।१६० १११० विजय गच्छ। सुमतिसागर सू० १३८
१२१८ शांतिसागर सू. १६७१३४६
१३५० ३५१६३५४३५३६०३६२
१३१६ ३६४३६६।३६८१३१०॥३७२
१४५० ३७६३७८१३८०।३८२३१००० विद्याधर गच्छ।
१४७२ उदयदेव मू० हेमप्रभ मृ०
9६८ | १४८६
១១
१४६६
शांति सू० सुमति सू० शांति सू०
७५८
४६४
| १४८३
१४२६ १५३४
Page #338
--------------------------------------------------------------------------
________________
नाम
लेखांक [जिनके गच्छोंके नाम नहीं लिखे हैं]
१५९।२७८
संवत्
संवत् १५०६ १५१३ १५३२ १५३४
ईश्वर सू० सालि ( शांति ? ) सू० शांति सू.
७६४ २८०
८०८
१०११
१३४
८२४ ५६४
१६
१५५७
१०५३ ११४४ ११४६ ११५० १२०३
८८५
१२
३८७
१२३०
१५७२ १५९६ १५९७
नाम बलभद्र सू० देवदत्त सू० शांतिभद्र सू० ऐन्द्रदेव सू० जिनचन्द्र सू. महेश्वराचार्य महंत सू. आनन्द सू० नेमिचन्द्र सू० देव सू० बुद्धिसागर सुमति सू० महेष्ठीराचार्य रामचन्द्राचार्य पूर्णचन्द्रोपाध्याय चन्द्र सू० भावदेव सू०
८१२१८७३
६१२
૭૨૮
१२३१ १२३४ १२३६ १२५१
१६४१ १७२८
साल सू० ईश्वर सू० शांति सू० उ० नयसुन्दर प. देवसुन्दर सूरि
जिनसुंदर सू. सागर गच्छ।
अमृतचन्द्र सू० शांतिसागर सू०
८७६
१२५७
८६९ ८६३
३०४
१८२० १९०३
१२६८ १२९६ १३१४ १३१८ १३६८
५६७
धर्मदेव सू०
१३७३
१५६५
५६७१३७५
सिद्धान्ति गच्छ ।
देवसुन्दर सू० हुंबड गच्छ।
सिंघदत्त सू० १० शीलकुंजर ग.
१३७६
१५३.
१४२२
मणिभद्र हेमप्रभ सू० महेन्द्र सूरि महातिलक सू० सूरप्रभ सू० उदयानन्द सू० गुणभद्र सू० जिनराज सू० जयप्रभ सू०
१४२३
१४३३ १४३८ १४६३
Page #339
--------------------------------------------------------------------------
________________
नं०
[ ५] नं० संवत्
१५३४ ५८४
| १५४०
। १५४७ ५४७
१५५६
संवत् १४७१ १४८० १४८१ १४८१ १४८२
८२२ १४५
१५४८
४६१ १२७ ४९८
। १५६२
२५
१५६३ १५८०
७४०
१६८९
१५८६
४७
५१२
४२
१४८६ १४० २४९ १५०१
१६०५ १६१५
m
नाम विजयप्रभ सू० विद्यासागर सू० सोमसुन्दर सू० पनशेखर सू० सुविप्रभ सू० वीरभद्र सू० हेमहंस सू० नरसिंह सू० रत्नप्रभ सू. हेमहंस सू नयचन्द्र सूर श्री सू० श्री सू नयचन्द्र सू० श्री सू० सर्वानन्द सू० रत्नशेखर सू. वा मोदराज गणि दयारत्न पद्मानन्द सू० उदयवल्लभ सू० भ० विजयकीर्ति सू. सुविहित सू० साधुसुन्दर सू० श्री सू० भावदेव सू.
१५०७
नाम श्री सू० साधुरन सू० श्री सू० म. हेमचन्द्र सू श्री सू० साधुसुन्दर सू० श्री सू० सुमतिरत्न सू. सुविहित सू. जिनभद्र सू० तेजरत्न सू० कनकविजय ग. शुभकीर्ति जिनचन्द्र स० विजयानन्द सू० भ० हीरविजय सूक कुशविजय विजयऋद्धि सू. कर्पूर विजय ग. श्रोसुन्दर स० अमृतधर्म अमृतधर्म वाचनाचार्य विजयजिनेन्द्र सू० वा० चारित्रनंदिगणि जिनचन्द्र सू० वा० चारित्रनन्दन ग०
१७०० १७०२ १७१०
१६८
१७२१
१५१३ १५१४ १५१४
८५५
३६३
| १७११
१७८०
६१३
w
१५१७ १५१८ १५१६
१७५
१८४८ | १८४८
७४६
१८८३ १८८७
१५२१
५७४
१८८८
१२५
३४१ ३४२ ४३५ ४३६
१५२
१८६७
१५२७ १५२७
५६१
Page #340
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
नाम जिनमहेंद्र सू०
१९२०
१५२४
४४
१९२४
UP ins
१७७
०
WWW
४५१
अमृतचन्द्र सू० घा० सदालाभ सागरचन्द्र ग. उ०सदालाभ ग० सागरचन्द्र ग. मुनिपयजय जिनमुक्ति सूर ) दालचंद गणि जिनचन्द्र सू० मलसंघ। गुणभद्र सू० जिनचंद्र देव भ. देवकीर्ति जिनचन्द्र सू० विद्यानन्द भ० ज्ञानभूषण
लेखांक संब
नाम
लेखांक ४४. मूलसंघ [ सरस्वती गच्छ ] १६३१६६ | १५२३
भ० विद्यानन्दि ६८०
भ० विमलकीर्ति ५९० १५२५
विमलेन्द्रकीर्ति ६६ १७६ १६०४
भ. देवेन्द्र कीर्ति १६००
भ० शुभचन्द्र १७४ १६३८ मं० मेरुकीर्ति
२२१ १८२।१८३ १६६०
विईकीर्ति १६६६ १७२०
५०५ १७११
६४० १७४६
कनककीर्ति
मूलसंघ-नन्दिसंघ। ३२३ २७६ १४६०
भ० सकलकोर्ति ४७२
मूलसंघ-काष्ठासंघ। त्रिभुवनकीर्ति
६४१ काष्ठासंघ।
५७१ काष्ठासंघ [माथर गच्छ] २८८
म. रूपचन्द्र ३२४
जगत्कीर्ति भ०
१४५ राजेन्द्रकीर्त्ति देव ३२७
६४२ २३४
८८/१९५०
१२३६ १२४६ १५०३ १५०४
२८६
११३४
१५३५
१५३८
भ० जिनचन्द्र देव भ० जिनचन्द्रदेव
७
१५४८ १५४६ १५५६ १६२७
४५
to
१६३
सुमतिकीर्ति सू० भ० रनचन्द्र जयकीर्ति उ०
Page #341
--------------------------------------------------------------------------
________________ શ્રી જિનશાસના જય હો !!! || શ્રી ગૌતમસ્વામીન નમ: || || શ્રી સુધમસ્વિામીને નમ: II ! Tii > રે જિનશાસનના અણગાર, કલિકાલના શણગારા પૂજ્ય ભગવંતો અને જ્ઞાની પંડિતોએ શ્રુતભક્તિથી પ્રેરાઈને વિવિધ હસ્તલિખિત ગ્રંથો પરથી સંશોધન-સંપાદન કરીને અપૂર્વજહેમતથી ઘણાગ્રંથોનું વર્ષો પૂર્વે સર્જનકરેલછે અને પોતાની શક્તિ, સમય અને દ્રવ્યનો સવ્યય કરીને પુણ્યાનુબંધી પુણ્ય ઉપાર્જન કરેલ છે. કાળના પ્રભાવે જીણી અને લુપ્ત થઈ રહેલા અને અલભ્ય બની જતા મુદ્રિત ગ્રંથો પૈકી પૂજ્ય ગુરુદેવોની પ્રેરણા અને આશીર્વાદથી 5//ww2. સ.૨૦૦૫માં 54 ગ્રંથોનો સેટ ની-૧ તથા સ.૨૦૦૬માં 36 ગ્રંથોનો સેટ ની 2 સ્કેન કરાવીને મર્યાદિત નકલ પ્રીન્ટ કરાવી હતી. જેથી આપણો શ્રુતવારસો બીજા અનેક વર્ષો સુધી ટકી રહે અને અભ્યાસુ મહાત્માઓને ઉપયોગી ગ્રંથો સરળતાથી ઉપલબ્ધ થાય. પૂજ્ય સાધુ-સાધ્વીજી ભગવંતોની પ્રેરણાથી જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી તૈયાર કરવામાં આવેલ પુસ્તકોનો સેટ ભિન્ન-ભિન્ના શહેરોમાં આવેલા વિશિષ્ટ ઉત્તમ જ્ઞાનભંડારોની ભેટ મોકલવામાં આવ્યા હતા. આ બધાજપુસ્તકો પૂજ્યગુરુભગવંતોને વિશિષ્ટ અભ્યાસ-સંશોધન માટે ખGUજરુરી છે અને પ્રાયઃ અપ્રાપ્ય છે. અભ્યાસ-સંશોધનાર્થે જરૂરી પુસ્તકો સહેલાઈથી ઉપલબનતીમજ પ્રાચીન મુદ્રિત પુસ્તકોનો ક્યુત વારસો જળવાઇ રહે તે શુભ આશયથી આ ગ્રંથોનો જીર્ણોદ્ધાર કરેલ છે. જુદા જુદા વિષયોના વિશિષ્ટ કક્ષાના પુસ્તકોની જીર્ણોદ્ધાર પૂજ્ય ગુરૂભગવતીની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી અમો કરી રહ્યા છીએ. તો આશાએ તથા સંશોધના માટેવઘુમાં વઘુઉપયોગ કરીને શ્રુતભક્તિના કાર્યને પ્રોત્સાહન આપશો. લી.શાહ બાબુલાલ સરેમલ વોડાવાળાની વેદના મંદિરો જીર્ણ થતાં આજકાલના સોમપુરા દ્વારા પણ ઊભા કરી શકાશે....! પણ એકાદ ગ્રંથ નષ્ટ થતા બીજા કલિકાલસર્વજ્ઞ કે. મહોપાધ્યાય શ્રી યશોવિજયજી ક્યાંથી લાવીશું...???