SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १ २४८ ) सुत महं मदन सुन महं धीणा । श्री कुमरसिंह सुत महं ऊदल प्रति पंच कुलेन मी पार्श्वनाथः देव प्रतिवद्ध श्री चैत्र गच्छीय श्रीदेवचंद्र सूरि संताने श्रा अमरचंद्र सूरि शिष्य श्री अजित देव सूरीणा मुपदेशेन हह द्वय भूमिः प्रदत्ता आ चंद्रार्क नंदतु ॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः। यस्य यस्य यदा भूमि स्तस्य तस्य सदा फलं। ( 936 ) संवत् १३४८ वर्षे चैत्र सुदि १५ गुरावधेह रत्न पुरे महाराज कुल श्री सांवत सिंह। कल्याण विजइ राज्ये नियुक्त महं० कटुआ प्रभूति पंच कुल प्रतिपत्तौ श्री पार्श्वनाथ प्रतिवद्ध महा महणा ने सांता मह. विजय पाल गो. लषण प्रभूति समस्त गोष्ठिकानां विदितं अक्ष्यसणि प्रयच्छंसि यथा रत्नपुर वास्तव्य गूर्जर न्यातीय ० राजा सुत बादा गांगा सुत मंडलिक मदन प्रति कानां देव श्री पार्श्वनाथ प्रति वटु तोडक प्रवेश द्वार दक्षिण हस्त प्रथम हहात् द्वितीय हह अंगांगा अयोथं वादा सत्क देव कलिका विंय पूजापनार्थं श्री पार्श्वनाथ देवेन गोष्ठिकै। विदितं हह समर्पितं। अस्य हह निक्रइ प्रतिदेय भी पार्श्वनाथस्य श्री वाघकेन वीसल प्रीययाय एक विशसस्याधिक शत मेकं प्रदत्तं । हह मिदं चतुर्मि गोष्टिकैः संमिलते भूत्वा नाहक संस्था करणीया स्वात्मीय परिणा अष्ठि यादा भुतक सांय विनैः भाहक हह कस्यापि नार्पणीयं । तथा सरक उतपत्ति व्यय कर्ण वाण्गोष्ठिकानु विना एकाकिनैः न कर्त्तव्या। उतपत्ति मध्यातु देव कुलिकाया विधानां नेचकप देवी० २। ३ वर्ष प्रसिदातव्या उतपत्ति मध्यात् हह पसित दुसित पदे कमठाय कारापनीया। यच्च माहक स्वक द्रव्यं वर्द्धति तत् पोष कल्याणक दिने देव कुलिकाया बिंव भोग करणोय । उरितं द्रव्यं श्री पार्श्वनाथ सत्क नालि कायां यवं । न्यां खेपनीयं निक्षेप उधार गोष्ठिकै करणीय। अत्र मतान महा महष्णा मतं अष्टि सोता मतं घराणे गती वा हस्तेन महं विजय पाल मतं । गोष्टिक उषणा मतंस
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy