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( 273 ) सम्वत १६८६ वर्षे शाके १५५१ प्रवर्त्तमाने---- मासि शुक्ल पक्ष सप्तमी गुरु वासरे वृहत श्रीषरतरगच्छे युग प्रधान श्रीजिन चन्द्र सूरिपादुका ठाकुर देवा तस्यात्मज मांडन तस्य भार्यान्हालो प्राविका पुण्य प्रपाधिका तस्य पुत्र दुलि चन्द्रेण प्रतिमा कारापिता श्री माहतीयाल (महसियाण) श्रावकेन गुरु भक्ति दुलिचन्द्र प्रतिष्टा क. श्री उपाध्याय श्री रत्नातिलक गणि पादुके प्रतिष्ठितं वा. लब्धिसेन गणि प्रतिष्ठा० ।
पटना (पाटलिपुत्र) मगधके राजाओंकी राजधानी राजगृहीसे राजा श्रेणिक के पुत्र कोणिक चंपा नगरी को राजधानी वनाया। उनके पुत्र उदाई राजा वहांसे यह पाटलिपुत्र नवीन नगर वसा कर राजधानी कायम किया। पश्चात् यहां पर नव नन्द मौर्य वंशी चन्द्रगुप्त अशोक आदि बड़े २ राजा राज्य कर गये। पं० चाणक्य, आचार्य उमास्वाति, भद्रवाहू-आर्य महागिरि, सुहस्थि, बज स्वामि महान् लोग यहां रह गये हैं। आचार्य श्री स्थूल भद्रजी और सेठ सुदर्शन जी का भी यहीं स्थान है । दादा जी की छत्री भी यहां प्राचीन है सहरका मंदिर जीर्ण होगया है-आज कल विहार उड़ीसाके शासन कर्ता यहां रहने के कारण और प्रधान विचारालय स्थापित होनेसे यह स्थान उनति पर है।
। सहर मन्दिर-पाषाण पर ।
( 273 ) संघत १८५२ वर्षे पोष शुक्ल ५ भृगुवासरे श्री पडलीपुर वास्तव्य । श्री सकल संघ सम्दायेन भी विशाल स्वामी। श्री पार्श्वनाथ स्वामी प्रासादस्य जीर्णोद्धारं कारापिर्त । कार्यस्याग्रेश्वरी तपागच्छोय श्रार्दुः । कुहाड श्री ज्ञानचन्दजी प्रतिष्ठितं च श्री सकल सूरिभिः शुभं भूयात् ।