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( २५१ ) - कोटार (गोड़वाड़)
( 940 ) संवत् १३३५ वर्षे श्रावण वदि १ सोमेऽयह समाण · · · स · · · या ना हनउ • • • • पचरा महं सज्जन ठ० मह भा - 'ठ धणसीह ठ देवसीह प्रभूति पज कलेन श्रीधात भिधान श्रीमहाबीर देवस्य ने च के - - - वर्ष स्थितके कृत द्र २४ चतुविशति द्रम्माः वर्षं वर्ष प्रति - मी मंडपिका पंच कुलेन दातव्याः ॥ पालनीया श्च ॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः यस्य यस्य यदा अमी सस्य तस्य तदा फलं ॥ शुभं भवतु।
( 941 ) सं० १३३६ वर्षे श्रोष्ठि को सीहन चयपने दत्तद्र १२३ - यद् ३६ स - प - १ मडाया स्वस्ति यमाण पञ्च कुलेन वर्ष वर्ष प्रति - - - - या दातव्याः॥
किराडू। मारवाड़ के मालानी परगने में यह स्थान प्राचीन है। हिन्दुओं के समय में इस स्थान का नाम किराट कूप था और जैनियों के प्रसिद्ध नपति कुमार पाल ने इस स्थान में जैन धर्म में दीक्षित होने के पूर्व कईएक बहुत सुन्दर शिव मन्दिर बनवाया था। काल के चक्र से इस समय उन देवालयों की बहुत बुरी हालत है और सब लेख भी नष्ट हो गये हैं।
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ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ नमोऽनंताय सूक्ष्माय ज्ञान गम्याय वेधसे । विश्वरूपाय शुद्धाय देव देवाय शंभवे ॥१॥ देवस्य तस्य चरितानि जयंति शंभोः स (I) स्वत् कपाल