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राजस्तदस्य सुत संजात ऽनेक गुण गणालंकृत महा मंडलीक० श्री मता प्रताप सिंह शासन प्रयच्छति यथा। अत्र नदूल डागिकायां देव श्री महायोर चैत्ये। तथाशरष्टनेमि चैत्ये शील बंदडो ग्रामे श्री अजित स्वामि देव चैत्ये एवं देव त्रयाणां स्वीय धर्माथे वदर्य मंडपिका मध्यात् समस्त महाजन भहारक ब्राह्मणादय प्रमुख प्रदत्त त्रिहाइको रूपक १ एक दिन प्रति प्रदातव्यामद । यः कोपि लोपियति सो ब्रह्महत्या गो हत्या सहस्रेण लिप्पते। यस्य यस्य यदा भूमि तस्य तस्य तदा फलं। बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः। यः कोपि बालयति तस्याहं पाद लग्न स्तिष्टामीति। गोडान्वये कायस्थ पण्डित. महीपालन शासनमिदं लिखितं ।
नाडलाई।
वर्तमानमें मारवाड़ के देसूरी जिले के नाडोलके पास एक छोटासा गांव है परन्तु प्राचीन कालमें यह एक बड़ा आबादी नगर था और वही स्थान है कि
संवत दश दाहोतरे बदिया चोरासी बाद।
खेड नगर थो लाबिया, नारलाई प्रासाद ॥१॥ यहां पर बहुतसे प्राचीन जैन मंदिर वर्तमान है।
श्री आदिनाथजी का मंदिर ।
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संयत् ११८७ फाल्गुन सुदि १४ गुरुवार श्री पंडेरकान्वय देशी चैत्य देव श्री महावीर दत्तः। मोरकरा ग्रामे घाणक तैल बल मध्यात् चतुर्थ भाग चाहुमाण पत्तरा सुत विंसराकेन कलसो दत्तः ॥ रा. वाच्छल्य समेत। साखिय भण्डो नाग सिउ। अतिवरा