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संवत १७६५ वर्षे माघ मासे कृष्णपक्ष पंचमी तिथौ सोमवासरे महारक श्री विजय रत्न केश्वर तपागच्छे काष्ठासंघे श्रा० पु० दे० वृ. शा० मुहता गोत्रे मुहताजी श्रीरामचंद्र जी तस्यमार्या वाई सूर्यदेवि तस्यात्मज मुहताजी श्री सोनाग चंद्रजी मुहताजी श्री सातु जी भाई मुहताजी श्री हरजीजी श्रीपार्श्वनाथ जिन विंवं स्थापितं ।
श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ प्रशस्ति ।
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॥ ॐ ॥ प्रणग्य परया अक्तया पद्मावत्याः पदाम्बुजं । प्रशस्तिल्लिख्यते पुण्या कविकेशर कीर्त्तिना ॥ १॥ श्री अश्वसेन कुल पुष्पक रथञ्च भानुः । वामांग मानस विकासन राजहसः ॥ श्रीपर्श्वनाथ पुरुषोत्तम एष भाति । घुलेव मंडनकरा करूणा समुद्रः ॥२॥ श्री मज्जगत्सिंह महीश राज्ये। प्राज्यो गुणे र्जात ईहालथोयं ॥ आपुष्पदत्त स्थिरतामुपैतु। संपश्यतां सर्व सुख प्रदाता ॥ ३ ॥
दोहा । सुर मन्दिर कारक सुखद सुमतिचंद महा साधः । तपे गच्छमें तप जप तणो उयत उदधी अगाधः॥ ४ ॥ पुन्ययाने श्रीपार्श्वनो पुहवी परगट कीधः । खेमतणो मन षा तिसु लाहो अवनो लीध ॥५॥राजमान मुहता रतन चातुर लषमी चंद । उच्छ व किया अति घणा आणिमन आनन्द ॥६॥ दिल सुध गोकल दासरे की प्रतिष्ठा पास। सारे ही प्रगटयो सही जगतिमें जसवास ॥ ७॥ सकल संघ हरषित हूओ निरमल रविजिन नाम राषो मुनि महंत सरस करता पुण्य सकाम ॥८॥ ___कवित्त । सांतिदास सचितसंत दावडा लषमी चंदहः । संघ मनुष्य सिरदार सहस किरण सुषके कंदहः ॥ वल्लभ दोसी वीर धीर जिन धर्म धुरंधरः । मुलचंद गुण मूलहीर धोया उर गुणहरः ॥ सकल संघ सानिध करः सुमतिचंद महासाधः। पास सदन कियो प्रगट