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________________ ( ३८ ) अचल दासेन पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेनादि युतेन श्री शान्तिनाथ बिवं का० प्रति० श्री जिनसुन्दर सुरि पट्टे श्री जिनदर्ष सूरिभिः । [162] सम्बत १५७१ बर्षे बैशाख सुदि ३ सोमे श्रीमत्परा ॥ ते || मिधूज गोत्रे । स० इम ज० - - - सुश्रावकेण जा० जीवादे पु० ध्यानन्द सा० सोहिल प्रमुख सहितेन श्री श्रादिना ष विं कारित प्रतिष्ठितं श्री खरतर गठे ॥ श्री जिनरत्न सूरिनिः ॥ झकारके यंत्रपर | ✓[163] सम्बत १०५६ बर्षे बैशाख मासे शुक्लपदे तिथौ ३ बुधे श्री सिद्धचक्र यंत्र प्रतिष्ठितं श्री जिन अक्षय सूरि पहालङ्कार श्री जिनचंद्र सुरिजिः जयनगर वास्तव्य श्री मालान्वये जरगड़ गोत्रीय सुश्रावक खुबचन्द तत्पुत्र रोसनराय बृद्धिचन्द खुस्यालचन्द सरूपचन्द मोतीचन्द रूपचन्द सपरिकरण कारित स्वश्रेयोयं ॥ स्थान भागलपुर । श्री वासुपूज्यजी का मन्दिर ( धर्मशाला मे ) पाषाणपर । [164] शुभ सं० बीर गतान्दा २४०५ बिक्रम नृपात् १९०३६ रा जेष्ठमासे वरे शुक्लपदे त्रयोदश्यां तिथौ – चम्पा नगयां श्री बासुपूज्यजी पञ्चकल्याणक भूम्युपरि खोश बंशे दूगड़ गोत्रे बृ । शा । बा । श्री बुधसिंघजी तत्पुत्र श्री प्रतापसिंघस्य चतुर्थ बधूः मद्द्ताबकुमरी खजव सफल करणार्थ इष्ठा कृतासिच कालबशात् सं० १९३२ श्रावण कृ० ६ दिने कालधर्म प्राप्तस्य मनोरथाय तत्पुत्र राय श्री लक्ष्मीपत सिंघजी बहादुर राय श्री धनपत सिंघजी बहादुर -
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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