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( 6 ) संवत् १९११ वर्षे शाके १७७६ शुचि ॥ दिने श्रो शांतिजिन पाद न्यासः । प्रतिष्टितः खरतर गम्छ भहारक श्री महेन्द्र सूरिभिः सेठ श्री उदयचंद मार्या पास कुमारजी ॥
उपसंहार ।
__ सर्व शक्तिमान परमात्माके कृपासे यह "जैन लेख संग्रह" एक सहस्र लेख सहित वर्षप्रयमें समाप्त हुआ। इस संग्रह के लेखोंके गुण दोष विचारको आवश्यकता नहीं है। जैनियों की प्राचीन कीर्ति संरक्षण ही मुख्य उद्देश्य है। मुद्राकरके दोष से, संशोधनक के प्रमाद इत्यादि कारणों से छपाई में बहुत अशुद्धियां रह गई हैं। प्रर्थना है कि विद्वज्जम अपराध क्षमा करें और सुधार कर पढ़ें। और पाठक जनों से निवेदन है कि बहुत सी अशुद्धियां मूल में ही विद्यमान है, जिसको सुधारा नहीं गया है। पाठकों के सुगमताके लिये ज्ञाति, गोत्र, गच्छ, आचार्यों की अकारादिक्रमसे सालिका भी दी गई है। जिन सज्जनों ने “संग्रहमें” मदद दी है उन सभीका मै कृतज्ञ हूँ। यदि यह संग्रह जैन माई आदरसे ग्रहण कर मुझे अनुगृहीत करें तो इसका दूसरा भाग शीघ्र प्रकाशित करने का उत्साह बढ़ेगा। अलमिति विस्तरेण।
संग्रह कर्ता ई० सं० १९१८ ।
कलकत्ता