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सं० । १०३० फाल्गुन कृष्ण 9 गुरौ श्री जिन कुशल सुरी पादन्यास | जं० । यु । प्र । श्री जिन मुक्ति सूरिश्वराणामादेशात् श्री दालचंद गणिनिः प्रतिष्ठितं ॥ सेठ गोत्रीय ताराचंदात्मज रामचंद्रेण कारितः स्वश्रेयोर्थं मिरजापुर बरो
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॥ ँ नमः सिद्धम् । संवत् १०५० सि० फागुण सुदि ३ श्री मूलसंघे सरखति गच्छे बलात्कार गण कुंद कुंदाचार्य याम्नाय सकल कीर्त्ति जट्टारक तत्पट्टे । जट्टारक कनक कीर्त्ति उपदेशात् शा० कुबेरचंद दरीचंद तनार्या केशरबाई खुरदेवाले प्रति
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संवत् १९०५५ पोस सुद १५ गुरु ॥ श्री लुंपक गछे श्री पूज्य अजयराज सूरिः प्रतिष्ठितम् ॥ बाबू लब्मीपत गोविंदचंद की माजी करा पितं श्री दादाजी चतुः चरण पाडुके न्योः ॥ श्री स्थूल न सूरिः ॥ श्री जिनदत्त सूरिः ॥ श्री जिनकुशल सूरिः ॥ श्री जिन चंद्र सूरिः ॥
राज गृह ।
मगध देशकी राजधानी यह राजगृह ( राजगिरि) बहुत प्राचीन नगर है । २० मां तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामीका ३ कल्याणक ज्येष्ठ बदि- जन्म फाल्गुन सुदि - ११ दीक्षा फाल्गुन बदि - १२ केवल ज्ञान यहां होनेके कारण यह स्थान पवित्र है । २२ मां तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के समय में जरासंघकी जी यही राजधानी थी । २५ मां तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी के समय में प्रसिद्ध नगर था । गौतम बुद्ध की जी यही लीला भूमि थी । प्रसेनजित उनके पुत्र श्रेणिक, उनके पुत्र को पिक यहां के राजा थे। श्री महाबीर स्वामी जी १४ चौमासे यहां किये। जंबुस्वामी, धन्ना, शालिनडजी घ्यादि बड़े २ लोग यहांके रहने वाले थे। यहां