Book Title: Anup Mandal Ki Apradhik Karyavahi Ke Viruddh Rajy Sarkar Dwara Jari Adhisuchnaye
Author(s): Bharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
Publisher: Bharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनूप मण्डल की आपराधिक कार्यवाही के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचनाएँ, व्यायालय के निर्णय आदि का संकलन -: प्रकाशक: भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान, जोधपुर Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनूप मण्डल की आपराधिक कार्यवाही के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचनाएँ, न्यायालय के निर्णय आदि का संकलन प्रकाशक भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान, जोधपुर Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक : भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान, टी-2, इण्डस्ट्रियल एस्टेट, न्यू पॉवर हाउस रोड, . जोधपुर - 342 003 (राज.) पुस्तक प्राप्ति स्थान : श्री राजस्थान जैन संघ, 73, शान्ति नगर, सिरोही (राज.) 0 प्रथम संस्करण : 2015 ई. 0 अनुदानित मूल्य : 200.00 (अक्षरे दो सौ) रुपये मात्र - नोट : किसी भी जैन संस्थान या जैन समाचार पत्र-पत्रिका द्वारा इसका पुनः मुद्रण कराया जाता है तो श्री सुरेशचन्द्रजी सुराणा, एडवोकेट (महासचिव), श्री राजस्थान जैन संघ, 73, शान्ति नगर, सिरोही (राजस्थान) से अनुमति ली जावे। है तो श्री मोर - मुद्रक : जांगिड़ कम्प्यूटर्स, जोधपुर ANOOP MANDAL KI APRADHIK KARYAVAHI KE VIRUDH RAJYA SARKAR DWARA JARI ADHISUCHNAYEN, NYAYALAYA KE NIRNAY AADI KA SANKLAN Published by: Bhartiya Sanskriti Samnvaya Sansthan, Jodhpur First Edition : 2015 Price : Rs. 200/- (Subsidized) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 1. भूमिका एवं निवेदन _ - न्यायाधिपति श्री जसराज चौपड़ा, पूर्व न्यायाधिपति-अध्यक्ष - 2. प्रस्तावना - श्री सुरेशचन्द्र सुराणा, एडवोकेट-महासचिव 3. प्रकाशकीय : यह संकलन आवश्यक क्यों? - श्री आर.एम. कोठारी, I.A.S. (सेवानिवृत्त)-कार्यकारी अध्यक्ष 4. आलेख . - श्री राजकुमारसिंह भण्डारी-जोधपुर मुख्यालय सचिव 5. संदेश - डॉ. चंचलमल चोरड़िया-संयोजक प्रचार प्रकोष्ठ 6. शुभकामना संदेश _ - श्री कैलाश भंसाली-संयोजक वित्त एवं माननीय विधायक प्रथम खण्ड 1. राजस्थान सरकार द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 05.08.1957 2. राजस्थान सरकार द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 20.11.1957 (05.08.1957 की अधिसूचना में अतिरिक्त शब्द जोड़े) ___ उपरोक्त दोनों अधिसूचनाओं की एकीकृत प्रति (संशोधन यथा स्थान दर्ज करते हुए) , 4. राज्य सरकार से प्राप्त उपरोक्त अधिसूचनाओं का अधिकृत हिन्दी अनुवाद Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. उपरोक्त दोनों अधिसूचनाओं का एकीकृत (संशोधन सहित) हिन्दी अनुवाद 27 6. राज्य सरकार से प्राप्त रास्थान राजपत्र जिसमें उक्त अधिसूचनाएं प्रकाशित हुई हैं, उनकी छाया प्रति 7. अनूप मण्डल के विरुद्ध की गई एवं की जाने वाली कार्यवाही का राज्य सरकार द्वारा जारी परिपत्र दिनांक 18.07.1997 (संस्थान द्वारा दिये ज्ञापन के फलस्वरूप जारी हुआ) 33 द्वितीय खण्ड 1. धारा 99,ACr.P.C. 1898 ____ धारा 99 B Cr.P.C. 1898 3. धारा 95 Cr.P.C. 1973 4. धारा 96 Cr.P.C. 1973 ___ धारा 196 Cr.P.C. 6. धारा 120 BI.P.C. 7. धारा 153 AI.P.C. 8. बात धारा 295 AI.P.C. 9. धारा 298 I.P.C. 10. धारा 500 I.P.C. 11. Extract from the Information Technology Act 2000 (a) Blocking of website-Govt. of India Notification dated 7th July 2003 (b) धारा 66 A (मार्च 2015 में श्रेया सिंगल की याचिका पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त किया) (c) धारा 69 (d) धारा 69 A (e) धारा 76 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12. राजस्थान आफिसियल लेंग्वेज एक्ट 1956 13. राजस्थान रीलिजियस बिल्डिंग एण्ड प्लेसेज एक्ट 1. 2. 3. 4. 5. 6. (f) धारा 78 (g) धारा 80 (h) धारा 84 B (i) धारा 84 C 7. तृतीय खण्ड (अ) तत्कालीन सिरोही राज्य द्वारा जारी निर्णय दिनांक 09.02.1926 (ब) तत्कालीन सिरोही राज्य द्वारा जारी निर्णय दिनांक 11.03.1926 एवं 08.09.1940 माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ द्वारा पारित निर्णय दिनांक 10.11.1997 माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की वृहदपीठ द्वारा पारित निर्णय दिनांक 09.02.2010 (2010 (2) RLW Page 1364) माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग सांचोर का अपराधिक प्रकरण संख्या 38/96 में पारित निर्णय दिनांक 20.05.1998 जिसके द्वारा अपराधी श्री ईश्वरलाल खत्री को 3 वर्ष की कठोर कारावास एवं 5000 रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया गया माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग सांचोर का निर्णय दिनांक 16.04.2010, जिसमें रिमाण्डेड प्रकरण में पूर्व निर्णय दिनांक 20.05.1998 द्वारा दिये गये तीन वर्ष के कारावास व अर्थदण्ड को कायम रखा गया माननीय न्यायालय अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश, भीनमाल द्वारा अपने अपीलीय निर्णय दिनांक 28.09.2013 द्वारा दी गई तीन वर्ष की सजा एवं अर्थदण्ड कायम रखा गया राज्य सरकार द्वारा धारा 196 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत आरोपी ईश्वरलाल खत्री के विरुद्ध धारा 295 A भारतीय दण्ड संहिता एवं अन्य 45 46 46 46 47 49 53 54 55 56 62 67 74 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8. 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. अपराध जो अभियुक्त के विरुद्ध पाए जाए - सक्षम न्यायालय में अभियोग पेश करने की अभियोजन स्वीकृति प्रदान की (उदाहरण स्वरूप संकलित ) उपखण्ड मजिस्ट्रेट, सिरोही द्वारा जारी आदेश क्रमांक 99/1199, दिनांक 30.12.1999 जिसमें सशर्त अनूप मण्डल के अनुयायी को सत्संग करने की स्वीकृति दी गई (उदाहरण स्वरूप संकलित ) चतुर्थखण्ड भारतीय प्रेस परिषद् का निर्णय दिनांक 28.03.1994 विरुद्ध 'श्री निकलंक एक्सप्रेस' भारतीय प्रेस परिषद् का निर्णय दिनांक 23.06.1997 विरुद्ध 'श्री निकलंक एक्सप्रेस' (उद्धरण) असिस्टेन्ट चेरिटी कमिश्नर थाने का निर्णय दिनांक 17.04.2001 संबंधित आवश्यक उद्धरण भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान द्वारा जारी दिनांक 13 अक्टूबर 1996 भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान द्वारा जारी दिनांक 1 अक्टूबर 2000 परिपत्र के आवश्यक उद्धरण महानिरीक्षक पुलिस कानून व्यवस्था, जयपुर के 17.07.97 को पाली सिरोही आगमन पर उन्हें राज्य सरकार द्वारा प्रतिनिधि मण्डल से हुई वार्ता के फलस्वरूप दी गई सूची - 1. अनूप मण्डल द्वारा निर्मित धार्मिक स्थल जो राजस्थान रिलीजियस बिल्डिंग एण्ड प्लेसेज एक्ट की खिलाफवर्जी में बनाई गई। 2. उन व्यक्तियों की सूची जिनके पास अनूप मण्डल का प्रतिबंधित (जब्त करने योग्य) साहित्य उपलब्ध हो सकता है। ये सूचियें 'निकलंक एक्सप्रेस' में विभिन्न तिथियों में प्रकाशित सूचना के आधार पर तैयार की गई। गुजरात एवं राजस्थान में साधु संतों की सुरक्षा हेतु पुलिस का विहार में साथ रहने के समाचार का दैनिक भास्कर का उद्धरण a 82 888 83 85 86 92 96 101 107 108 111 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका एवं निवेदन जसराज चौपड़ा पूर्व न्यायाधिपति एवं अध्यक्ष भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान, जोधपुर अमानुषिकता, द्वेष, ईर्ष्या, घृणा, संवेदनहीनता, असहिष्णुता, धूर्तता एवं क्रूरता को यदि एक सामूहिक नाम प्रदान करना हो तो वह नाम है अनूप मण्डल । इसका उद्भव ही एक क्रूर एवं अमानुषिक प्रतिक्रिया का परिणाम है। इस मण्डल का प्राण वायु ही वैमनस्य एवं घृणा आधारित है। इसके अपने आत्मसुधार के कोई नियम या प्रावधान नहीं है। सिर्फ जैन समाज का विरोध कर उसे नीचा दिखाने के अलावा इस मण्डल या विचारधारा का अन्य कोई दार्शनिक आधार नहीं है। इनकी समस्त पुस्तकें, प्रकाशन एवं विज्ञप्तियां जैन धर्म के विरोध में जहर उगलने से अटी-पटी पड़ी हैं। इस विचारधारा में न कोई सकारात्मकता है न ही एक स्वच्छ समाज के निर्माण हेतु कोई सृजनात्मक सुझाव समाविष्ट हैं। इस अनूप मण्डलीय विचारधारा का एक मात्र उद्देश्य विध्वंसात्मक जहर उगलकर एक धर्म विशेष के प्रति जातीयगत घृणा एवं द्वेष फैलाना है। भोले-भाले आदिवासियों को भड़का कर समाज विशेष व उसके अहिंसक साधु-संतों पर हमले कर उनको नुकसान पहुंचाने के अलावा अन्य कोई इसकी गतिविधि ही नहीं है। ऐसी विकृत एवं घृणित विचारधारा पोषित करने वाले व्यक्ति को साधु जैसे पवित्र नाम से व्याख्यापित करना न सिर्फ साधुत्व का वरन् मानवीय सज्जनता एवं सहिष्णुता का भी घोर अपमान है। यह समझ से परे है कि व्यक्ति विशेष या कतिपय सिरफिरे व्यक्तियों का यह संगठन जिसे अनूप मण्डल के नाम से जाना जाता है कैसे तो जन्म ले पाया व कैसे अभी तक चल पा रहा है। एक आश्चर्यजनक बात है कि जिस विचारधारा से वैमनस्य, द्वेष, क्रूरता एवं नीच मनोवृत्ति का पोषण होता है व जिसका मानवीय संवेदना व सहिष्णुता से कोई दूर का भी लेना देना नहीं हो ऐसे घृणित उद्देश्यों को लेकर जन्मा संगठन पनप व पोषित कैसे हो पाता है क्योंकि इसे मानवीयता, धार्मिक सहिष्णुता, सदाचार, सद्भाव जैसे आदर्शों का पूरी तरह हनन होता है। एक व्यक्ति जिनका नाम अनूपदास था उन्होंने अपना नाम चिरस्थायी करने हेतु स्वयं को तथाकथित साधु बता इस अनूप मण्डल की स्थापना वैश्य समाज के प्रति अपनी घृणा व वैमनस्य को घनीभूत, फलीभूत एवं प्रचारित करने के उद्देश्य से की थी। इनका विष वमन सामाजिक सौहार्द के लिए इतना घातक था कि तत्कालीन सिरोही राज्य ने इस विचारधारा के पोषक 18 नेतृत्व प्रदान करने वाले लोगों को उनकी आपराधिक कार्यवाही के लिए सजा से दंडित किया था। यही नहीं स्वयं राजस्थान सरकार ने इस दूषित एवं अनैतिक विचारधारा के परिपोषित एवं प्रसारित करने वाले साहित्य : जैसे पुस्तकें 'जगतहितकारिणी', आत्मपुराण', 'किताब मुफीद आम मौसुम वाह', 'न्यायाचिंतामणी' एवं अन्य प्रकाशन जैसे 'अनूपदासजी की आरती', 'दुखियों की पुकार' आदि पुस्तकों व दस्तावेजों व प्रकाशनों को 7+ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिबंधित कर दिया एवं उन्हें जहां कहीं पर उपलब्ध या प्राप्त हों. जब्त करने के आदेश न. एफ.2568 एवं बी 56 राज्य सरकार की गृह (डी) विभाग की विज्ञप्ति दिनांक 5 अगस्त 1957 एवं 20 नवंबर 1957 द्वारा जारी कर दिये गये क्योंकि वे द्वेष एवं घृणा फैलाने का कार्य कर रहे थे। आदेश न. एफ. 25(8)एच. बी./56 द्वारा जो 20 नवम्बर 1957 को राजस्थान सरकार ने प्रकाशित कर यह निर्णय दिया कि ऐसे प्रकाशन भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए व 295ए में दंडनीय अपराध है अतः राज्य सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसिजर कोड) की धारा 99ए से प्रदत्त अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उपरोक्त सभी पुस्तकों, पेम्फलेट्स व दस्तावेजों को पुनर्मुद्रण, उद्धरण (Extract), प्रत्युत्पादन (Reproduction), अनुवाद (Translation) व लिप्यंतरण (Transliteration) को भी प्रतिबंधित कर दिया व ऐसा होने पर उनकी जब्ती का आदेश भी जारी कर दिया है। यह दोनों ही विज्ञप्तियां राजस्थान राज्य गजट 29 अगस्त, 1957 एवं 12 दिसम्बर 1997 के भाग 1(ख) में प्रकाशित हो चुकी हैं। यही नहीं राज्य सरकार ने भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान की पहल पर आदेशों की कड़ाई से पालना हेतु प्रभावित क्षेत्रों के जिला कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों व संबंधित थानों को इन आदेशों की कड़ाई से पालना करने के निर्देश भी जारी कर दिये हैं एवं साधु-संतों पर होने वाले आक्रमणों को रोकने व विहार के दौरान उन्हें कष्ट न उठाना पड़े इस हेतु पुलिस प्रबंध के आदेश भी प्रसारित कर दिये हैं। एक व्यक्ति श्री ईश्वरलाल खत्री ने एक रिटपेटिशन राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित इस दिनांक 5.8.1957 एवं 20.11.1957 की विज्ञप्तियों को खारिज करने हेतु सन् 2009 में पेश की थी। वह रिट पेटिशन नं. 1905 सन् 2009 माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा अपने आदेश दिनांक 9.2.2010 द्वारा खारिज की जा चुकी है अतएव अब यह दोनों विज्ञप्तियें पूर्ण रूप से प्रभावी हैं एवं यह हम सबका कर्त्तव्य है कि जहां भी इन पुस्तकों व प्रकाशनों का जिन्हें जब्त किया जा चुका है एवं जिनका पुनः मुद्रण, प्रकाशन, ट्रांसलेशन एक्सट्रक्ट सभी का प्रतिबंधित किया जा चुका है का रखना व उनका पठन, पाठन, प्रसारण होता हो वह दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है एवं अपने आप में अपमानजनक (Perse defamatory) होने से उन्हें संबंधित थाना अधिकारियों व अन्य उच्च पदस्थ पुलिस व रेवेन्यू अफसरों को निवेदन कर उन्हें रुकवाया जावें एवं इस संबंध में प्रथम सूचना दर्ज कर उन्हें दंडित कराया जावे। संभव हो तो इसकी ऑडियो-वीडियोग्राफी करवाकर सबूत के रूप में पेश किया जावे। ____इन उपरोक्त सभी प्रावधानों, निर्णयों, प्रेस काउंसिल संबंधी दस्तावेजों एवं न्यायिक निर्णयों का माननीय श्री रंगरूपमल जी साहब कोठारी रिटायर्ड भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी महोदय ने सम्पूर्ण रूप से संकलन कर उसे एक पुस्तकाकार रूप में प्रदान कर समाज पर जो उपकार किया है उसके लिए पूरा जैन समाज सदैव उनका ऋणी एवं कृतज्ञ रहेगा। यह पुस्तक पीढ़ियों तक काम आने वाली सामग्री का संकलन है अतएव इसे संभालकर रखें। इसमें सभी आवश्यक सामग्री समाविष्ट है अतः यह एक रेफरेंस बुक का रूप धारण कर चुकी है जिसे सभी धार्मिक संस्थाएं व सामाजिक कार्यकर्ता अपने पास रखें एवं वक्त जरूरत इस अवांछनीय संगठन की घृणा, दुराव व वैमनस्य फैलाने वाली गतिविधियों पर अंकुश लगाने हेतु पूरी निष्ठा के साथ प्रयोग में लावें। यह अत्यन्त उपयोगी सामग्री है व समाज को माननीय कोठारी साहब का अभूतपूर्व अवदान है। वे स्वयं भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान के प्रबल प्रहरी एवं Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • प्राण हैं एवं इस कार्य में उन्हें श्री सुरेशजी सुराणा एडवोकेट, सिरोही का विशेष रूप से एवं श्री राजकुमार सिंह भण्डारी संपादक 'दैनिक प्रतिनिधि', डॉ. चंचलमलजी चोरडिया एवं श्री कैलाशजी भंसाली विधायक का भी प्रबल समर्थन एवं सहयोग प्राप्त है। समाज इन पांचों महानुभावों के प्रति अपनी कृतज्ञता एवं अहोभाव प्रदर्शित करता है। सभी सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक संस्थान व ट्रस्ट मण्डल अब निर्भय होकर इस पुस्तक में संकलित सामग्री के आधार पर इस अनूप मण्डल की अवांछनीय एवं आपराधिक गतिविधियों का डट कर मुकाबला करें। चरेवेति, चरेवेति शुभास्ते पंथान्। हम उठे, जागें शक्ति का प्रदर्शन करें एवं समाज के प्रति रोष व्यक्त करने वाली इन घृणित एवं अवांछनीय प्रवृत्तियों का पूरी ताकत के साथ मुकाबला करें। मैं व्यक्तिगत रूप से माननीय श्रीमान् रंगरूपमल साहब कोठारी, IAS (Retd.) का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने इतना श्रम नियोजित कर समाज हितार्थ इस समस्त सामग्री का संकलन कर उसे पुस्तकाकार रूप प्रदान कर इसे प्रकाशित करने का दुरूह बीड़ा उठाया है। उनके इन अथक प्रयासों से समाज पूरी तरह लाभान्वित होगा। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना - श्री सुरेशचन्द्र डी सुराणा . एडवोकेट महासचिव एवं अध्यक्ष श्री राजस्थान जैन संघ राजस्थान की सिरोही रियासत में रियासतकाल में अनूप मण्डल नाम की संस्था का गठन कुछ समाज कंटक लोगों ने जैन समाज के प्रभाव को कम करने एवं उनके विरुद्ध द्वेष व दुर्भावना फैलाने के उद्देश्य से किया था। रियासत काल में जैन समाज के साथ अनूप मण्डल नाम से कुछ समाज कंटक किसी न किसी प्रकार से जैन समाज के लोगों को सताते रहे। रियासत भी उन समाज कंटकों से परेशान हुई एवं अनूप मण्डल संस्था के कार्य कलाप पर रोक लगा दी। अनूप मण्डल के नाम से कुछ साहित्य जो विशेष कर जैन विरोधी था का प्रकाशन कर उसका प्रचार व प्रसार रियासत काल में हुआ। राजस्थान राज्य के गठन के पश्चात् जैन समाज के प्रयास से अनूप मण्डल के साहित्य के प्रचार, प्रसार उल्लेख, कोपी करने आदि पर सन् 1957 में रोक लगा दी थी व उसके पश्चात् भी सिरोही-जालोर-पाली जिलों के कुछ हिस्सों में अनूप मण्डल के समाज कंटकों ने अपनी गतिविधि जारी रख कर जैन समाज के मंदिरों, सम्पत्ति, धर्म गुरुओं, उपासरों व सम्पत्ति को क्षति कारित की जिसके लिए भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान ने सम्माननीय न्यायाधिपति श्री जसराजजी चौपड़ा, सम्माननीय रंगरूपमलजी कोठारी, सम्माननीय राजकुमारसिंहजी भण्डारी आदि समाज के प्रबुद्ध नागरिकों के नेतृत्व में समाज कंटकों के विरुद्ध प्रभावी लड़ाई लड़ते हुए इन तीन जिलों में अनूप मण्डल की गतिविधियों पर अंकुश लगाया है एवं विभिन्न स्तर पर कानूनी लड़ाई में हर मुकदमे में विजयश्री प्राप्त की है। मुझे भी अनूप मण्डल के विरुद्ध कार्य करने का अवसर मिला है। अनूप मण्डल की गतिविधियों पर तैयार पुस्तक जैन समाज के युवा वर्ग एवं विभिन्न संघों एवं पेढियों के लिए मार्ग दर्शन देगी एवं समाज कंटकों से लड़ने की प्रेरणा देगी। मैं उक्त पुस्तक के प्रकाशन में सहयोग करने वाले सभी महानुभावों का आभारी हूं। .10. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ प्रकाशकीय यह संकलन आवश्यक क्यों? आर.एम. कोठारी आई.ए.एस. (सेवानिवृत्त) कार्यकारी अध्यक्ष, भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान जोधपुर की स्थापना 18 अगस्त 1996 को जोधपुर में अध्यक्ष माननीय न्यायाधिपति श्री जसराज चौपड़ा एवं महासचिव श्री सुरेशचन्द्र डी. सुराणा-एडवोकेट, सिरोही के नेतृत्व में सुमेरपुर-शिवगंज के युवा साथियों की प्रेरणा एवं आग्रह पर की गई। ___इस संस्थान का मुख्य कार्य जैन देव, गुरु व धर्म के विरुद्ध अनूप मण्डल के भाविकों द्वारा किये जा रहे भ्रामक प्रचार, आक्रमण, दुर्व्यवहार एवं पूज्य साधु-साध्वियों पर प्राणघातक हमलों का प्रतिरोध एवं अनूप मण्डल की असंवैधानिक गतिविधियों पर रोक हेतु समाज को जानकारी देकर सजग करना एवं जिला व पुलिस प्रशासन के ध्यान में लाना है। उपलब्ध रेकार्ड के अनुसार अनूप मण्डल (अनोप मण्डल) नाम की संस्था के अनुयायी । (भाविक) सन् 1920 के पूर्व से ही जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं का अपमान करने, आहत करने, जैन समुदाय के प्रति शत्रुता, घृणा, भय, वैमनस्य एवं असुरक्षा की भावना फैलाने, शांति में बाधा डालने का कार्य कर रहे हैं। सन् 1919 से अब तक राजस्थान, गुजरात एवं महाराष्ट्र में जैन साधु-साध्वियों एवं धार्मिक स्थलों पर हमले एवं जैन धार्मिक भावनाओं को आहत करने के 1200 मामले हो चुके हैं। राजस्थान में सिरोही, जालोर, पाली अधिक प्रभावित हैं। अनूप मण्डल द्वारा प्रकाशित समस्त साहित्य को तत्कालीन सिरोही राज्य में एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् राजस्थान सरकार ने जब्त करने की अधिसूचना 5 अगस्त 1957 को जारी की एवं अन्य अधिसूचना दिनांक 20.11.1957 को जारी कर इस साहित्य का पुनः मुद्रण, उद्धरण, अनुवाद एवं लिप्यान्तरण को भी जब्त करने के आदेश दिये। यह अधिसूचनाएं आज भी प्रभावी हैं। इन अधिसूचनाओं को निरस्त करने के लिए राजस्थान उच्च न्यायालय में अनूप मण्डल के भाविक द्वारा आवेदन किया गया था। उनका आवेदन राजस्थान उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की वृहद्पीठ द्वारा खारिज कर दिया गया है। दण्ड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 95 में स्पष्ट प्रावधान है कि अधिसूचना जारी करने के पश्चात ऐसा साहित्य भारत में जहां भी मिले. कोई भी पलिस अधिकारी जब्त कर सकत इसका कानूनी प्रभाव केवल राजस्थान में ही नहीं पूरे भारत में है। राज्य सरकार द्वारा इस अधिसूचना के पश्चात् कुछ वर्ष पूर्व पुलिस विभाग द्वारा जहां भी यह साहित्य उपलब्ध था जब्त कर जलाया गया था। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन सब के बावजूद यह साहित्य विशेष कर 'जगतहितकारिणी' ग्रंथ का निरन्तर प्रकाशन, वितरण एवं मेले आयोजित कर प्रचार-प्रसार करने का कार्य जारी है। यही नहीं इन्होंने इस पुस्तक के वेबसाईट पर प्रचारार्थ डाल रखा है, जो साइबर क्राइम के साथ ही धारा 153ए एवं 295ए भारतीय दण्ड संहिता (इंडियन पेनल कोड) में दण्डनीय है। अनूप मण्डल द्वारा पचपदरा से प्रकाशित 'श्री निकलंक एक्सप्रेस' तथा अहमदाबाद से प्रकाशित 'मारवाड़ मित्र' में नियमित तौर से प्रतिबंधित साहित्य का प्रकाशन किया जाता रहा, जो प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया को निवेदन कर दण्डित (कड़ी भर्त्सना) करा बन्द कराये गये । सांचोर से प्रकाशित 'सत्यपुर टाइम्स' में भी संपादक प्रतिबंधित साहित्य को प्रकाशित कर रहा था। संपादक ईश्वरलाल खत्री के विरुद्ध मुकदमा कर सम्माननीय पूर्व विधायक श्री लक्ष्मीचंद मेहता ने उसे तीन वर्ष का कारावास एवं 5000/- रुपये का अर्थदण्ड की सजा दिलाकर समाचार पत्र बंद करवाया। 'श्री निकलंक एक्सप्रेस' में समय-समय पर प्रकाशित सूचना के आधार पर राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए ऐसा साहित्य रखने वाले व्यक्तियों की सूची बनाई गई तथा अनूप मण्डल द्वारा 'राजस्थान रिलीजियस बिल्डिंग एवं प्लेसेज एक्ट' के प्रावधानों के उल्लंघन में बनाये गये धार्मिक स्थल की सूची बनाई गई। यह सूचियां मुख्यमंत्रीजी को दी गई। अनूप मण्डल के भाविकों द्वारा समय-समय पर पूज्य साधु-साध्वी जी पर प्राणघातक हमलों एवं धार्मिक स्थलों पर आक्रमण लूटपाट के मामलों में से कुछेक का संक्षिप्त विवरण की अलग सूची इस संकलन में दी गई है। अनूप मण्डल की उपरोक्त वर्णित गतिविधियों के विरोध में दिनांक 2 नवम्बर 1996 को मुख्यमंत्रीजी से संस्थान के पदाधिकारियों का प्रतिनिधि मण्डल मिला व प्रतिबंधित साहित्य को जब्त करने एवं इनके मेलों पर रोक लगाने का निवेदन किया। मुख्यमंत्रीजी ने अनूप मण्डल के मेलों पर रोक लगाने के आदेश सभी जिलों को भेजने का आश्वासन दिया। अनूप मण्डल की जैन विरोधी गतिविधियों पर राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित करने व उन पर रोक लगाने के लिए एक प्रतिनिधि मण्डल संस्थान के अध्यक्ष के नेतृत्व में जयपुर जाकर 5 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री व उनके सहयोगी मंत्रियों व सचिवों से मिला। इस प्रतिनिधि मण्डल में संस्थान के आह्वान ,जैन विधायकगण, प्रशासनिक अधिकारी, सभी जैन संघों के पदाधिकारी शामिल हुए। पर, राज्य सरकार ने प्रतिनिधि मण्डल को समुचित कार्यवाही करने का आश्वासन दिया व बाद में की गई कार्यवाही का एक परिपत्र जारी किया, जो इस पुस्तक में सम्मिलित किया गया है। दिनांक 5 जुलाई, 1997 को जयपुर में एक प्रेस कान्फ्रेंस भी की गई, जिसमें प्रेस प्रतिनिधियों को मुख्यमंत्री को प्रेषित ज्ञापन व अनूप मण्डल की गतिविधियों के बारे में दस्तावेजात सहित तथ्यों को बताया गया। समस्त तथ्यों का विवरण 6 से 7 जुलाई 1997 के निम्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ 12+ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. पंजाब केसरी-दिल्ली 2. जनसत्ता-दिल्ली 3. दैनिक जागरण-दिल्ली 4. राष्ट्रीय सहारा 5. दैनिक राजस्थान पत्रिका 6. दैनिक भास्कर 7. दैनिक प्रात:काल 8. दैनिक नवज्योति 9. दैनिक प्रतिनिधि 10. दैनिक जागरण 11. दैनिक जलतेदीप प्रेस कान्फ्रेंस एवं मुख्यमंत्री से हुए विचार-विमर्श का टी.वी. न्यूज में भी व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। दिनांक 18 जुलाई 1997 को इस संस्थान की मुम्बई शाखा के नेतृत्व में व संस्थान के महासचिव एडवोकेट श्री सुरेशचन्द्र सुराणा सहित एक प्रतिनिधि मण्डल, जयपुर में मुख्यमंत्रीजी से मिला एवं 5 जुलाई 1997 को अध्यक्षजी द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन के तथ्यों की ओर ध्यान दिलाया। बैठक में ऊपर वर्णित प्रतिवेदन पर की गई कार्यवाही का विवरण वितरित किया गया। माननीय मुख्यमंत्रीजी के निर्देश पर श्री नमोनारायण मीणा, महानिरीक्षक पुलिस कानून व्यवस्था 17 जुलाई 1997 को पाली-सिरोही आये एवं 18 जुलाई 1997 को सुमेरपुर स्थित प्रिंटिंग प्रेस पर व बाद में 11 अगस्त को विश्वज्योति प्रिंटिंग प्रेस पर छापा डलवाया। छापे में प्राप्त साहित्य को जब्त कर प्रेस के मालिकों पर मुकदमे दायर किये गये। ___जुलाई 1997 में प्रतिनिधि मण्डल के मिलने के पश्चात् अनूप मण्डल के मेलों की अनुमति नहीं दी जाती है एवं सत्संग करने के आदेश भी सशर्त दिया जाता है जिसमें ध्वनि प्रसारण यंत्र का प्रयोग नहीं करने एवं प्रतिबंधित साहित्य का प्रचार नहींकरने की शर्त लगाई जाती है एवं पूरे आयोजन की विडियोग्राफी सरकार द्वारा कराये जाने के आदेश हैं। जैन साधु-साध्वियों को विहार एवं प्रवास के समय पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के आदेश राज्य सरकार द्वारा 18 जुलाई 1997 को जारी परिपत्र के बिन्दु संख्या 2 में दिया गया है। अनूप मण्डल द्वारा कानून की खिलाफवर्जी में निर्मित धार्मिक स्थलों की सूची राज्य सरकार द्वारा जिला मजिस्ट्रेट एवं पुलिस अधीक्षकों को भेजी गई है एवं उनसे वस्तु स्थिति का विवरण मांगा गया . कानून स्पष्ट होने के बावजूद अनूप मण्डल की गतिविधियों में अन्तर नहीं आया है। सिरोही जिले के लीलोरा गांव में शंकर भाई सुथार व प्रकाश प्रजापत ने 'जगतहितकारिणी' ग्रन्थ को छपवाकर आमजन को वितरण करने की घोषणा 7 जून 2007 को एक बैठक में की। ग्राम 'सनपुर' में नया धार्मिक स्थल का निर्माण कर 30 जून 2007 को प्रतिष्ठा की गई। 27 फरवरी 2006 को आमली रोड़ पर मेला आयोजित किया गया। हालांकि जिला व पुलिस प्रशासन ने सख्त कदम उठाकर ध्वनि प्रसारण बंद करवाया। --13 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज्य सरकार द्वारा जारी सन् 1957 की अधिसूचनाएं करीब 57 वर्ष पूर्व जारी होने से एवं 18 जुलाई 1997 को जारी परिपत्र जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, न्यायालय व समाज को उपलब्ध नहीं हो पा रहा जिसकी समय-समय पर आवश्यकता रहती है, उसके बगैर प्रशासन एवं न्यायालय कठिनाई महसूस करते हैं। अधिकारियों के स्थानान्तरण जल्दी-जल्दी होते हैं, नये अधिकारियों को अधिसूचनाएं एवं परिपत्रों की जानकारी देना आवश्यक होता है। सन् 1957 में जारी अधिसूचनाओं का हिन्दी भाषा में अधिकारिक अनुवाद राजपत्र में अब तक प्रकाशित नहीं हुआ है। यदि राज्य सरकार प्रकाशित करती है तब नये सिरे से यह पुरानी प्रभावी सूचनाएं सभी को उपलब्ध हो सकेगी। राजस्थान आफिसियल लेंग्वेज एक्ट 1956 की धारा 4(iv) के परन्तुक (Proviso) के प्रावधानों के अनुसार अंग्रेजी भाषा में जारी अधिसूना का हिन्दी भाषा में अधिकारिक अनुवाद प्रकाशित करना काननून आवश्यक (मेनडेटरी) है। राज्य सरकार को जुलाई 1997 से निरन्तर निवेदन किया जा रहा है। मगर राज्य सरकार का सकारात्मक रूख नहीं रहा है। संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष (संकलनकर्ता) ने दो आवेदन सूचना के अधिकार के अन्तर्गत प्रस्तुत किये हैं। हाल ही में राज्य सरकार ने अधिकारिक हिन्दी अनुवाद कराकर उपलब्ध कराया, मगर राजपत्र में प्रकाशित नहीं किया है। राज्य सरकार को पुनः निवेदन किया जा रहा है। राज्य सरकार के विरुद्ध राजस्थान उच्च न्यायालय में रिट याचिका प्रस्तुत करने पर भी विचार किया जा रहा है। उपरोक्त वर्णित कारणों से अधिसूचनाएं, राज्य सरकार के आदेश, प्रेस परिषद् के निर्णय, न्यायालयों के निर्णय आदि का संकलन कर प्रकाशित करना समाज एवं धर्म हित में किया जाना आवश्यक समझा गया है। अतएव यह संकलन संस्थान द्वारा प्रकाशित कराया जा रहा है। __जिला प्रशासन द्वारा अनूप मण्डल को जुलूस व मेला आयोजित करने की अनुमति नहीं दिये ' जाने के विरुद्ध एक जन हित याचिका राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ द्वारा 10 नवम्बर 1997 को खारिज कर जिला प्रशासन की कार्यवाही को उचित माना। भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान द्वारा समय-समय पर समाज की जानकारी हेतु परिपत्र जारी किये गये, जिनके उद्धरण इस संकलन में सम्मिलित है। इन परिपत्रों को दैनिक भास्कर दिनांक 27 नवम्बर 1999 के पृष्ठ संख्या 7 पर प्रकाशित कराया गया। गुजरात के 'जिनेन्दु' एवं जयपुर के 'श्री पल्लीवाल जैन पत्रिका (मासिक)' के अप्रेल 2013 के अंक में प्रकाशन हुआ। संस्थान के अति सक्रिय पदाधिकारी एवं विशेष सहयोगी माननीय पूर्व विधायक श्री लक्ष्मीचंदजी मेहता-सांचोर, श्री चम्पालाल जैन-शिवगंज एवं श्री फूलचंदजी पी. गांधी (मुम्बई शाखा के कार्याध्यक्ष), स्व. श्री छगनलालजी जैन (सेवानिवृत्त आई.ए.एस.)-सचिव का इस अवधि में असामयिक स्वर्गवास हो गया। उनको एवं उनके द्वारा किये गये सहयोग के लिए आभार प्रकट करते हए परम श्रद्धा से स्मरण करते 414 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनूप मण्डल के विरुद्ध कार्यवाही में 1. श्री जैन खरतरगच्छा संघ-बाड़मेर, 2. साऊ टीपूबाई रतनचंद जैन-रिलीजियस ट्रस्ट, मुम्बई, 3. श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक देरासर एण्ड उपाश्रय ट्रस्ट, मुम्बई का एवं शिवगंज-सुमेरपुर के युवा साथियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। जैन समाज से मैं अपेक्षा करता हूं कि जैन देव गुरु एवं धर्म के विरुद्ध किये जा रहे आक्रमण को : रोकने में सभी सक्रिय होकर कार्यवाही करेंगे तब ही इस संकलन के लिए किया गया परिश्रम सार्थक होगा। अनूप मण्डल के अनुयायियों द्वारा की गई मुख्य आपराधिक कार्यवाही में कुछ की सूची 1. सन् 1920 में 1500 अनुयायियों ने सिरोही जिले के 28 ग्रामों में मुख्यतया पाडीव, जावाल, वरलूठ, ऊंड, मंडवारिया, कालन्द्री में जैन धार्मिक स्थल पर आक्रमण कर लूट-पाट की, साधुओं, जैन धर्मावलम्बियों के साथ मारपीट की। 65 नेतृत्व करने वालों को सजा हुई व साहित्य जब्त करने के आदेश हुए। सन् 1954 में बाली तहसील के नाना बेड़ा क्षेत्र में जैन साधु पर प्राणघातक हमला कर उनके सिर पर नारियल फोड़ा एवं घायल अवस्था में रास्ते पर डाल दिया। सन् 1951-52 में सिरोही में धार्मिक स्थलों पर आक्रमण कर लूटपाट की गई एवं धर्मावलम्बियों को घायल किया गया। 4. सन् 1956 एवं सन् 1971 में पर्युषण पर्व के दौरान पिण्डवाड़ा में उपाश्रयों में तोड़-फोड़, लूट-पाट एवं साधुओं पर हमला किया गया। 5. सन् 1975 में सुजानपुरा में मंदिर एवं उपाश्रय में तोड़-फोड़, गाली-गलौज व मारपीट की गई। 6. 25 अगस्त 1980 को सिरोही के कोलरगढ़ मंदिर में पूज्य रोहितविजयजी महाराज के ऊपर प्राणघातक हमला किया जिससे उनका स्वर्गवास हो गया। इस तीर्थ की समग्र सामग्री को आग लगा दी गई। सन् 1983 में सिरोही के अनेक गांवों में मेले आयोजित कर जैन धर्म के विरुद्ध प्रतिबंधित पुस्तकों का प्रचार किया गया एवं जिसने भी विरोध किया उन पर प्राणघातक हमले किये व उपाश्रयों पर तोड़-फोड़ की। 8. 12 जून 1997 की रात्रि में भीमाणा में पूज्य गच्छाधिपति श्री जयघोषसूरीश्वरजी के शिष्यों पर । प्राणघातक हमला किया गया। 9. 20 अगस्त 1999 को रोहिड़ा में पूज्य आचार्य पदमसूरीश्वरजी महाराज एवं उपाश्रय पर हमला हुआ। 26 जुलाई 2012 को आहोर (जिला जालोर) में धर्मस्थल पर विराजमान धर्माचार्यों के साथ गाली-गलौज एवं अभद्र व्यवहार किया। आचार्य भगवतंत अभयदेवसूरीश्वरजी वर्ष 2012 में श्री पारसवाड़ी जैन उपाश्रय में आहोर में चातुर्मास में विराजमान थे। दिनांक 26.07.2012 को 15 . Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सायंकाल अनूप मण्डल के काफी सदस्य जीपों में भरकर आहोर में आए तथा गुरु भगवंत तथा अन्य साधु-संतों को गाली-गलौज कर अभद्र व्यवहार किया। इस पर विमलनाथ जैन पेढी के अध्यक्ष श्री हस्तीमलजी द्वारा पुलिस थाना आहोर में एक प्राथमिकी अनूप मण्डल के सदस्यों के विरुद्ध दर्ज करवाई। थानाधिकारी, पुलिस थाना आहोर ने कार्यवाही करते हुए 12 व्यक्तियों को गिरफ्तार तदोपरान्त अनूप मण्डल के करीब 300 लोगों ने प्रदर्शन कर जुलूस निकाला तथा जैन समाज के विरुद्ध अभद्र नारेबाजी की तथा अनर्गल भाषा का प्रयोग किया। जैन समाज के लोगों ने जगह-जगह शहर व कस्बों में प्रदर्शन कर राज्य सरकार तथा प्रशासनिक अधिकारियों से अनूप मण्डल के लोगों के विरुद्ध आहोर प्रकरण के दोषी लोगों के खिलाफ कार्यवाही हेतु निवेदन किया। राजस्थान जैन संघ सिरोही के अध्यक्ष श्री सुरेशचन्द्रजी सुराणा तथा अन्य पदाधिकारियों ने पूर्ण सहयोग किया जो सराहनीय है। दिनांक 26.07.2012 को जिन लोगों ने अभद्र व्यवहार किया तथा धार्मिक विद्वेष फैलाने की कोशिश की उनके विरुद्ध मुकदमा विचाराधीन है। 11. 12 दिसम्बर 2012 को नारलाई (जिला पाली) में भगवान श्री नेमीनाथ की प्राचीन मूर्ति को धड़ से अलग कर दिया गया। 12. 12 जनवरी 2013 में गुजरात में गिरनार में विराजित पूज्य मुनि श्री 108 प्रबलसागरजी महाराज पर प्राणघातक हमला हुआ। -16. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • अनूप मण्डल के जैन समाज विरोधी कृत्य जग जाहिर करने का संकल्प राजकुमार सिंह भण्डारी ____B.E., A.M.I.E. सम्पादक दैनिक प्रतिनिधि टी-2 इण्डस्ट्रीयल एस्टेट न्यू पावर हाउस रोड, जोधपुर राजस्थान में आमतौर पर जैन समुदाय एवं जैन साधु-साध्वियां नितान्त शान्त प्रवृत्ति के लोग माने जाते हैं। वर्ष 1994 के दौरान जैन साधु-साध्वियों के पैदल विहार के दौरान कतिपय ग्रामीणों द्वारा पथराव करने, ओगाह छीनने व मारपीट की घटनाओं ने सभी धर्म प्रेमी लोगों को चौंका दिया। जैन ब्रिगेड जोधपुर ने इस मुद्दे की तह तक जाने हेतु एक समिति गठित की। चूंकि जैन साधु-साध्वियों से दुर्व्यवहार व मारपीट की घटनाएं पाली जिले के सुमेरपुर, देसूरी, बाली, सांचोर, बालोतरा व सिरोही की दूरदराज की तहसीलों में आदिवासियों को कतिपय सफेदपोश लोगों द्वारा यह कहकर भड़काया गया कि जैन साधुसाध्वी जिस किसी क्षेत्र में चातुर्मास करते हैं, वहां वर्षा को बांध देते हैं, इन्हीं की वजह से क्षेत्र में अकाल की छाया मंडराती है। वहीं अनूप मण्डल अपने कथित ग्रंथों के माध्यम से जैन समुदाय को कंस की औलाद व जैन अपने बच्चों के लिए अमृत कुंडों का निर्माण कर उन्हें चिरंजीवी बनाने हेतु जादू टोना करते हैं। जैन ब्रिगेड ने समाज के प्रबुद्ध लोगों को जोड़कर जब हम मामले की तह तक गये तो जानकारी मिली कि अनूप मण्डल संस्थान व उनके भाविक जैन साधु-साध्वियों के प्रति गांवों में निरन्तर जहर उगल रहे हैं। इस संस्थान के सिरमोर लोगों ने अशिक्षित आदिवासी वर्ग को भड़काने के साथ 'जगतहिकारिणी' का पाठ व उनके द्वारा मेलों का आयोजन बड़े स्तर पर गांव-गांव में होने लग गये। इसी दौरान सुमेरपुर के जाखोड़ा से 30 किमी. दूर खीवान्दी में जैन साध्वियों का चातुर्मास आयोजित था। उस दौरान वर्षा नहीं होने से उत्तेजित आदिवासी-ग्रामीण ढोल ढमाकों के साथ जैन उपासरा स्थल को घेर कर साध्वियों को बंधक बना लिया। उस समय पाली के सांसद जस्टिस श्री गमानमल लोढा थे उन्हें इस गम्भीर विषय पर हमारे द्वारा सूचित करने पर उन्होंने प्रशासन से सम्पर्क कर वस्तु स्थिति से अवगत कराया। तीन दिन के अथक प्रयासों के बाद जोधपुर से सात लोगों का दल घटना स्थल पर पहुंच प्रशासन की सहायता से साध्वियों को सुरक्षित सुमेरपुर तक लाया। यह घटना जैन समाज के लिये चुनौती थी, जैन ब्रिगेड ने समाज के प्रबुद्धजन श्री जसराज चौपड़ा (पूर्व न्यायाधीश), श्री रंगरूपमल कोठारी (सेवानिवृत्त आई.ए.एस.), राजकुमारसिंह भण्डारी, माणक संचेती, चंचलमल चौरड़िया, कैलाश भंसाली ने एक साथ चिन्तन मनन के बाद भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान का गठन किया तथा सुमेरपुर-शिवगंज के प्रबुद्ध युवा चम्पालाल जैन व सिरोही के सुरेश सुराणा (एडवोकेट) के सहयोग से इस मुद्दे पर जैन समुदाय का प्रथम सम्मेलन जोधपुर के भैरो बाग परिसर में आयोजित किया गया, दूसरा सम्मेलन बामणवाडजी (सिरोही) तथा तीसरा सम्मेलन सिरोही के ही रोहिड़ा व चौथा सम्मेलन नाकोड़ा तीर्थ जो अनूप मण्डल के आतंक से सर्वाधिक प्रभावित स्थलों पर आयोजित कर जैन समाज के प्रबुद्ध व प्रभावी राजनेताओं, अधिकारियों/जजों व धर्म स्थलों के प्रमुखों को एक मंच --17 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर लाकर संगठित किया तथा अनूप मण्डल के विरुद्ध प्रभावी कार्यवाही करने के साथ सरकार व प्रशासन पर दबाव बनाने के साथ आवश्यकता अनुसार न्यायालयों तक आपराधिक कृत्यों को उठाने का निर्णय लिया। इन सम्मेलनों में बामणवाडजी (सिरोही) का सम्मेलन ऐतिहासिक रहा जिसमें उस समय के गृहमंत्री श्री गुलाबचन्द कटारिया, विधानसभा अध्यक्ष श्री शांतिलाल चपलोत, राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री श्रीकृष्णमल लोढ़ा सहित राज्य के शीर्ष पदों पर रहे, अधिकारियों ने उपस्थित रहकर पूरे आन्दोलन को गतिमान किया और देव, धर्म एवं गुरु की रक्षा का संकल्प लिया। इसी संकल्प के बदौलत भीनमाल में घटित वीभत्स घटना एवं वरिष्ठ जैन साधु द्वारा प्रकरण में आत्महत्या से पूरे राजस्थान का जैन समुदाय बेहद उद्वेलित हो गया। यही कारण था कि इस प्रकरण में राज्य सरकार द्वारा जस्टिस कुदाल के नेतृत्व में गठित कुदाल आयोग (राजस्थान हाईकोर्ट के सिटिंग जज) गठित किया। आयोग के सम्मुख, भारतीय संस्कति समन्वय संस्थान, भीनमाल जैन समाज ने प्रभावी पैरवी तीन वर्ष तक निरन्तर की। वहीं वर्ष 1957 में राज्य सरकार की अधिसूचना के आधार पर प्रभावी ढंग से अनूप मण्डल पर रोक लगाने, जगतहितकारिणी का सार्वजनिक पाठ, जुलूसों पर रोक लगाने सहित सभी सम्भव प्रयास किये गये। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भैरोसिंह शेखावत से जयपुर के सचिवालय भवन में जैन समाज के प्रबुद्ध 51 सदस्यों ने तत्कालीन गृहमंत्री श्री कैलाश मेघवाल, तत्कालीन मुख्य सचिव मीठालाल मेहता की उपस्थिति में भेंट कर अनूप मण्डल व उनके ग्रंथ व जुलूसों पर प्रभावी रोक, उनके द्वारा प्रकाशित जहर उगलने वाले आलेखों पर प्रतिबंध तथा जैन साधु-साध्वियों को एक स्थान से दूसरे क्षेत्र में विचरण (विहार) के दौरान सम्बन्धित थानों द्वारा सुरक्षा प्रदान करने की मांग की। जिस पर मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने तुरन्त प्रभावी निर्देश जारी कर तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक (आई.जी.) श्री नमोनारायण मीणा को पूरे प्रकरण की जांच का प्रभारी बना, अनूप मण्डल के प्रतिबंधित साहित्य पर प्रभावी रोक लगाने व दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही के निर्देश दिये। आई.जी. श्री मीणा ने एक सप्ताह में कार्यवाही करते हुए अनूप मण्डल के साहित्य का सृजन करने वाले लोगों व उनके कई प्रतिष्ठानों पर छापे मारकर बड़ी मात्रा में प्रतिबंधित साहित्य जब्त कर कार्यवाही कर मामले दर्ज किये। भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान का मुख्यालय जोधपुर में स्थापित कर अनूप मण्डल के गैर कानूनी कृत्यों, जुलूसों, जगतहितकारिणी आदि के विरुद्ध जन जागृति करने व जानकारी मिलते ही प्रशासन की सहायता से निरन्तर सम्बन्धित जिले में कार्यवाही की जाती रही है उसी का परिणाम है कि अनूप मण्डल राजस्थान में सार्वजनिक रूप से जैन समुदाय के विरुद्ध जहर उगलने या जैन साधु-साध्वियों पर हमले व ओगाह छीनने की घटनाओं पर काफी अंकुश लगा लकिन अब चिन्ता व खेद इस बात का है कि अनूप मण्डल अपनी गतिविधियों का विस्तार गुजरात व महाराष्ट्र राज्यों में निरन्तर बढ़ा रहा है। दोनों राज्यों में स्थापित जैन संगठनों को हमने सतर्क कर प्रभावी काननी व प्रशासनिक कार्यवाही का अनुरोध किया है अन्यथा कहीं यह समस्या गजरात व महाराष्ट्र में अधिक भयावह व विस्फोटक न हो जाये। इस पुस्तक का प्रकाशन अब इसलिये भी जरूरी हो गया है कि जैन समाज की नई पीढ़ी को समुचित मार्गदर्शन मिले व सतर्कता बरत सकें और उन्हें अनूप मण्डल के संदर्भित सभी तथ्य, राज्यादेश, अधिसूचनाएं एवं न्यायालयों के फैसले एक साथ दस्तावेज के रूप में उपलब्ध कराये जा सके। साथ ही ये सब रेफरेन्स व इतिहास का हिस्सा बन सके। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , डॉ. चंचलमल चोरड़िया संयोजक, प्रचार प्रकोष्ठ. भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान संदेश साधु अनूपदास एवं हरचंद सोनी द्वारा रचित पुस्तकें एवं साहित्य जिन्हें राजस्थान सरकार ने अपनी अधिसूचना दिनांक 05.08.1957 एवं 20.11.1957 तथा सिरोही राज्य में सन् 1920 में जब्त करने एवं प्रतिबंधित करने के आदेश जारी किये थे, उसी साहित्य का साधु अनूपदास के अनुयायी (भाविक) प्रचार-प्रसार कर जैन देव, गुरु व धर्म के विरुद्ध शत्रुता, घृणा और वैमनस्य फैलाने का कुकृत्य एवं दण्डनीय अपराध कारित करते हैं। ___ यही नहीं यह भाविक संगठित होकर जैन साधु-साध्वियों पर प्राणघातक हमले करना, मंदिर, उपाश्रय में लूट-पाट करना आदि अपराध पिछले 95 वर्ष से कर रहे हैं। अनूप मण्डल के भाविकों द्वारा जैन देव, गुरु व धर्म के विरुद्ध किये जाने वाले अपराधों को रोकने, विरोध करने तथा राज्य सरकार एवं जिला प्रशासन का ध्यान आकर्षित कर इन्हें दण्डित करने के उद्देश्य से 18 अगस्त 1996 को भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान की स्थापना की गई एवं मेरी राय में यह संस्थान अपने उद्देश्य में सफल हुआ है। इस पुस्तक में राजस्थान सरकार द्वारा इनका साहित्य जब्त करने की अधिसूचनाओं को प्रकाशित किये गये राजस्थान राजपत्र, सिरोही राज्य (ब्रिटिश समय में) द्वारा पारित विभिन्न आदेश, राजस्थान उच्च न्यायालय एवं अन्य न्यायालयों के निर्णय, इस संस्थान द्वारा जारी परिपत्रों का समावेश किया गया है। कानूनी प्रक्रिया किस प्रकार अमल में लाई जावे, 13 अक्टूबर 1996 परिपत्र में विस्तृत रूप से लिखा गया मैं आशा करता हूँ कि भविष्य की पीढ़ी इससे लाभान्वित होगी एवं देव, गुरु एवं धर्म के विरुद्ध की जाने वाली किसी भी कार्यवाही का संगठित होकर कड़ा विरोध करेगी एवं ऐसे समाज कंटकों को दण्डित कराने में सफल होगी। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Se कैलाश चन्द भंसाली vileel विधायक, जोधपुर EP भारतीय जनता पार्टी, राजस्थान निवास एवं कार्यालय ए-225, शास्त्री नगर, जोधपुर-342 003 (राज.) दूरभाष :0291-2642404 फैक्स : 0291-2432404 मो. 98290-24404 दिनांक : 23.02.2015 शुभकामना संदेश मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हो रही है कि अनूप मण्डल की आपराधिक कार्यवाही के विरुद्ध राज्य सरकार की तमाम अधिसूचनाएं एवं न्यायालय के निर्णय का प्रकाशन भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान जोधपुर द्वारा एक पुस्तिका के रूप में किया जा रहा है। इस पुस्तिका में एक स्वच्छ समाज के निर्माण हेतु सृजनात्मक सुझाव समाविष्ट होंगे। उद्देश्य विध्वंसात्मक जहर उगल कर एक धर्म विशेष के प्रति जाति, घृणा एवं द्वेष तथा अहिंसक साधु-संतों पर हमले कर उनको नुकसान पहुंचाने जैसी विकृत एवं घृणित विचारधारा पोषित करने वाले व्यक्ति को साधु जैसे पवित्र नाम से व्याख्यापित करना इत्यादि प्रावधानों, निर्णयों, प्रेस काउंसिल सम्बन्धी दस्तावेजों का सम्पूर्ण रूप से संकलन कर उसे एक पुस्तकाकार रूप प्रदान कर समाज पर जो उपकार किया है उससे पूरा जैन समाज सदा संस्थान का ऋणी एवं कृतज्ञ रहेगा। यह पुस्तक पीढ़ियों तक काम आने वाली सामग्री का संकलन है। यह पुस्तक अवांछनीय संगठन की घृणा दुराव व वैमनस्य फैलाने वाली गतिविधियों पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाने का काम करेगी। ___संस्थान द्वारा इतना परिश्रम करना समाज हितार्थ समस्त सामग्री का संकलन कर उसे पुस्तकाकार करने का जो बीड़ा उठाया है आपके अथक प्रयासों से समाज पूरी तरह लाभान्वित होगा। इस प्रकार के कदम को बढ़ाने की मैं भरपूर सराहना करता है। मैं ईश्वर से यह कामना करता हूं कि संस्थान द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पुस्तिका का उद्देश्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो। इस महत्त्वपूर्ण कदम के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। आपका horingsdisine (कैलाश चन्द्र भंसाली) विधायक जोधपुर शहर जयपुर कार्यालय : सी-51, भाजपा प्रदेश कार्यालय, सरदार पटेल मार्ग, सी-स्कीम, जयपुर फोन : 0141-2225040, 2221364 जयपुर निवास : गोल्ड मोहर, सी-101, प्रथम माल, गणपति एनक्लेव, अजमेर रोड़, एंकर मॉल के पास, जयपुर (राज.) E-mail:kcbjodhpur@gmail.com •www.kailashbhansali.com -20 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम खण्ड 1. राजस्थान सरकार द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 05.08.1957 ...... 21 2. राजस्थान सरकार द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 20.11.1957 (05.08.1957 की अधिसूचना में अतिरिक्त शब्द जोड़े) 3. उपरोक्त दोनों अधिसूचनाओं की एकीकृत प्रति (संशोधन यथा स्थान दर्ज करते हुए) 4. राज्य सरकार से प्राप्त उपरोक्त अधिसूचनाओं का अधिकृत हिन्दी अनुवाद 5. उपरोक्त दोनों अधिसूचनाओं का एकीकृत (संशोधन सहित) हिन्दी अनुवाद 6. राज्य सरकार से प्राप्त रास्थान राजपत्र जिसमें उक्त अधिसूचनाएं प्रकाशित हुई हैं, उनकी छाया प्रति 7. अनूप मण्डल के विरुद्ध की गई एवं की जाने वाली कार्यवाही का राज्य सरकार द्वारा जारी परिपत्र दिनांक 18.07.1997 (संस्थान द्वारा दिये ज्ञापन के फलस्वरूप जारी हुआ) 33 Page #23 --------------------------------------------------------------------------  Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान राजपत्र, अगस्त 29, 1957 भाग 1 (ख) पू. 270 HOME (D) DEPARTMENT NOTIFICATION Jaipur, August 5, 1957 No. F. 25 (9) HB/56-Whereas it appears to the State Government that the books, pamphlets and documents mentioned below contain matter which is intended to promote and does promote feeling of enmity and hatred between different classes of citizens of India and is deliberately and maliciously intended to outrage the religious feelings of the Jain (Bania) community by insulting the religion and the religious beliefs of that class and the pubication of which is punishable under section 153 A and 295 A of the Indian Penal Code. Now, therefore, in exercise of the powers conferred by section 99 A of the Code of Criminal Procedure, 1898 (V of 1898) the State Government does hereby declare every copy of the aforesaid books, pamphlets and documents to be forfeited to Government. (1) Books, Pamphlets and documents Volume entitled 'Jagat Hitkarni' in Hindi written by Sadhu Anoop Das and printed by the Shri Venkteshwar Steam Printing Press, Bombay in Samvat year 1968. This is full of venomous propaganda against the 'Bania' community. (2) Book entitled "Nyay Chintamani' in Hindi written by Soni Harchand of Sirohi, published in samvat year 1982. This again is full of vicious propaganda against the 'Bania' (Jain) community and attacks on the Jains religion. (3) Book entitled 'Kitab Mufid Am Mausamwah' published in Samvat year 2013 and 1956 A.D. and printed at Shri Kamla Printing Press, Katla Bazar, Jodhpur, by Banshi Lal Solanki. This is an extract from the bigger volume 'Jagat Hitkarni' of Anoop Das. (4) 'Atm Puran' in Hindi written by Soni Harchand and published at the Kamla Printing Press, Katla Bazar, Jodhpur. This is also written to outrage the religious feelings of the Bania community and incide* other classes against them. Printed leaflets in Hindi entitled: (5) (i) Shri Anoop Swamiji-Ki-Arti, printed at Shri Ramayan Printing Press, Darhyapur, Badigaon, Badi Pasi, Ahmedabad, and published by President Anoop Mandal, Sirohi. (ii) 'Dukhiyon-ki-Pukar' published by Manager, Bharat Policy Form Company, Government Sarkar Hall, for President Anoop Mandal, Kishinagar, and printed at the Saryodaya Press, Jodhpur. Both are written with the view to promote class hatred and malign the Bania community. By Order of the Governor, DURGA PRASAD, Deputy Secretary to the Government. *Note : मूल राजस्थान राजपत्र में 'incite' के स्थान पर छपाई की गलती से 'incide' छपा है जिसे ज्यों का त्यों 'incide' ही प्रिंट किया गया है। 21 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान राजपत्र, दिनांक 12 दिसम्बर, 1957 (भाग 1ख) पृ. 886 No. F. 25(9) HB/56 HOME (D) DEPARTMENT NOTIFICATION. Jaipur, November 20, 1957. In exercise of the powers conferred by Section 99A of the Code of Criminal Procedure, 1898 (V of 1898) the State Government does hereby direct that the words "as also every copy of reprint, extract, reproduction, translation or transliteration thereof" shall be inserted after the words "aforesaid books, pamphlets and documents' occuring in para two of Home Department Notification of even number, dated the 5th August, 1957 (published in the Rajasthan Gazette Part I-B dated the 9th August, 1957)... 22 By Order of the Governor, Durga Prasad Sharma Depury Secretary to the Government Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Original Notification dated 5th August, 1957 was published in the Rajasthan Gazette Part I-B dated 29 August 1957 on page 270 and amendment dated 20th November, 1957 by which underlined words were inserted, was published in the Rajasthan Gazette Part I-B dated 12th Dec. 1957 on page 886. HOME (D) DEPARTMENT NOTIFICATION Jaipur, August 5, 1957 No. F. 25 (9) HB/56—Whereas it appears to the State Government that the books, pamphlets and documents mentioned below contain matter which is intended to promote and does promote feeling of enmity and hatred between different classes of citizens of India and is deliberately and maliciously intended to outrage the religious feelings of the Jain (Bania) community by insulting the religion and the religious beliefs of that class and the pubication of which is punishable under section 153 A and 295 A of the Indian Penal Code. Now, therefore, in exercise of the powers conferred by section 99 A of the Code of Criminal Procedure, 1898 (V of 1898) the State Government does hereby declare every copy of the aforesaid books, pamphlets and documents as also every copy of reprint, extract, reproduction, translation or transliteration thereof to be forfeited to Government. Books, Pamphlets and documents (1) Volume entitled 'Jagat Hitkarni' in Hindi written by Sadhu Anoop Das and printed by the Shri Venkteshwar Steam Printing Press, Bombay in Samvat year 1968. This is full of venomous propaganda against the 'Bania' community. (2) Book entiltled 'Nyay Chintamani' in Hindi written by Soni Harchand of Sirohi, published in samvat year 1982. This again is full of vicious propaganda against the 'Bania' (Jain) community and attacks on the Jains religion. Book entitled 'Kitab Mufid Am Mausamwah' published in Samvat year 2013 and 1956 A.D. and printed at Shri Kamla Printing Press, Katla Bazar, Jodhpur, by Banshi Lal Solanki. This is an extract from the bigger volume 'Jagat Hitkarni' of Anoop Das. 'Atm Puran' in Hindi written by Soni Harchand and published at the Kamla Printing Press, Katla Bazar, Jodhpur. This is also written to outrage the religious feelings of the Bania community and incide other classes against them. (5) Printed leaflets in Hindi entitled : (i) Shri Anoop Swamiji-Ki-Arti, printed at Shri Ramayan Printing Press, Darhyapur, Badigaon, Badi Pasi, Ahmedabad, and published by President Anoop Mandal, Sirohi. (ü) 'Dukhiyon-ki-Pukar' published by Manager, Bharat Policy Form Company, Government Sarkar Hall, for President Anoop Mandal, Kishinagar, and printed at the Saryodaya Press, Jodhpur. Both are written with the view to promote class hatred and malign the Bania community. By Order of the Governor, DURGA PRASAD, Deputy Secretary to the Government. 23 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान सरकार गृह (ग्रुप-6) विभाग क्रमांक प. 3(42) गृह-6/2013 जयपुर, दिनांक 30.5.2013 श्री आर.एम. कोठारी, 853, चौपासनी रोड़, बॉम्बे मोटर्स चौराहा. बेन्दा एक्यूपंकचर एण्ड स्लिमिंग सेंटर के पास, जोधपुर 342 003 विषय : सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आप द्वारा प्रस्तुत आवेदन पत्र दिनांक 15.03.2013 एवं प्रथम अपील दिनांक 03.05.2013 के क्रम में। --000-- उपर्युक्त विषयान्तर्गत आप द्वारा प्रस्तुत आवेदन पत्र दिनांक 15.03.2013 एवं प्रथम अपील दिनांक 03.05.2013 के क्रम में इस विभाग के पत्र संख्या पं. 3(29) गृह-6/2013 दिनांक 18.04.2013 की निरंतरता में आप द्वारा वांछित इस विभाग की अधिसूचना संख्या एफ. 25(9)एचबी/56 दिनांक 05. 08.1957 एवं दिनांक 20.11.1957 के हिन्दी अनुवाद की सत्यापित प्रतियां संलग्न कर प्रेषित की जा रही है। कृपया प्राप्ति से अवगत करवाने का श्रम करें। संलग्न :- उपरोक्तानुसार। संयुक्त शासन सचिव, गृह 424 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गृह (घ) विभाग अधिसूचना जयपुर, 5 अगस्त, 1957 सं. एफ. 25(9) एव.बी./56 • यतः राज्य सरकार को यह प्रतीत होता है कि नीचे उल्लिखित पुस्तकों, पुस्तिकाओं और दस्तावेजों, जिनमें ऐसा मामला अन्तर्विष्ट है, जिसका भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के मध्य विद्वेष और घृणा की भावना को संप्रवर्तित करना आशयित है तथा संप्रवर्तित करती है और जिनका जानबूझ कर और विद्वेषपूर्ण रूप से जैन (बनिया) समुदाय की धार्मिक भावनाओं को उनके धर्म और उस वर्ग के धार्मिक विश्वास का अपमान करके आहत करना आशयित है और जिसका प्रकाशन भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 क और 295 क के अधीन दण्डनीय है। इसलिए, राज्य सरकार दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का V) की धारा 99 क द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए एतद्द्वारा पूर्वोक्त पुस्तकों, पुस्तिकाओं और दस्तावेजों की प्रत्येक प्रति को सरकार द्वारा समपहृत किये जाने की घोषणा करती है। पुस्तकें, पुस्तिकाएं और दस्तावेज (1) साधु अनूप दास द्वारा हिन्दी में लिखित और संवत्, वर्ष 1968 में श्री वेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय, बम्बई द्वारा ‘जगत हितकारणी' शीर्षक से मुद्रित ग्रंथ। यह 'बनिया' समुदाय के विरुद्ध विद्वेषपूर्ण प्रचार से पूर्ण है। (2) संवत्, वर्ष 1982 में 'न्याय चिन्तामणि' शीर्षक से प्रकाशित सिरोही के सोनी हरचन्द द्वारा हिन्दी में लिखित पुस्तक। यह पुनः बनिया (जैन) समुदाय के विरुद्ध दुष्प्रचार है और जैन धर्म पर प्रहार करता है। (3) संवत्, वर्ष 2013 और 1956 ईस्वी में 'किताब मुफीद अम मौसुमवाह' शीर्षक से प्रकाशित और बंशी लाल सोलंकी द्वारा श्री कमला मुद्रणालय, कटला बाजार, जोधपुर में मुद्रित पुस्तक। यह अनूप दास के वृहत्तर ग्रंथ 'जगत हितकारणी' का एक उद्धरण है। (4) सोनी हरचन्द द्वारा हिन्दी में लिखित और कमला मुद्रणालय, कटला बाजार, जोधपुर द्वारा प्रकाशित 'आत्म पुराण'। यह भी बनिया समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने तथा अन्य वर्गों को उनके विरुद्ध उकसाने के लिए लिखी गयी है। (5) निम्नलिखित शीर्षक से हिन्दी में मुद्रित पत्रक :(i) श्री रामायण मुद्रणालय, दरलियापुर, बड़ीगांव, बड़ी पासी, अहमदाबाद द्वारा मुद्रित और अध्यक्ष अनूप मण्डल, सिरोही द्वारा प्रकाशित श्री अनूप स्वामीजी की आरती। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ii) अध्यक्ष, अनूप मण्डल, किशिनगर के लिए प्रबन्धक, भारत पॉलिसी फोर्म कम्पनी, गवर्नमेंट सरकार हाल द्वारा प्रकाशित और सर्योदय मुद्रणालय, जोधपुर द्वारा मुद्रित 'दुखियों की पुकार' । दोनों बनिया समुदाय में वर्ग घृणा और द्वेष संप्रवर्तित करने की दृष्टि से लिखी गयी है। राज्यपाल के आदेश से, दुर्गाप्रसाद शासन उप सचिव । गृह (घ) विभाग अधिसूचना जयपुर, 20 नवम्बर, 1957 सं. एफ. 25 (9) एच.बी. / 56 - दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का V) की धारा 99 क द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार एतद्द्वारा यह निदेश देती है कि गृह विभाग की समसंख्यक अधिसूचना दिनांक 05 अगस्त, 1957 (राजस्थान राजपत्र भाग I-ख दिनांक 29 अगस्त, 1957 में प्रकाशित) के पैरा 2 में आयी अभिव्यक्ति 'पूर्वोक्त पुस्तकों, पुस्तिकाओं और दस्तावेजों की प्रत्येक प्रति को' के पश्चात् अभिव्यक्ति 'साथ ही उनके पुनः मुद्रण, उद्धरण, प्रत्युत्पादन, अनुवाद या लिप्यंतरण की प्रत्येक प्रति को' अन्तःस्थापित की जायेगी । 26+ राज्यपाल के आदेश से, दुर्गाप्रसाद शर्मा, शासन उप सचिव । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज्य सरकार की अधिसूचना दिनांक 5 अगस्त 1957, जो राजस्थान राजपत्र भाग 1(ख) दिनांक 29 अगस्त 1957 पृ. सं. 270 के साथ ही संशोधन की अधिसूचना दिनांक 20 नवम्बर 1957 जो राजस्थान राजपत्र 12 दिसम्बर 1957 भाग 1(ख) पृ. 886 पर छपी जिसके द्वारा कुछ शब्द पूर्व अधिसूचना में जोड़े गये उन्हें यथा स्थान पर दर्ज करते हुए संशोधन सहित (अन्डरलाईनड) एकीकृत अधिसूचना गृह (घ) विभाग अधिसूचना जयपुर, 5 अगस्त, 1957 सं. एफ. 25(9) एव.बी./56 यतः राज्य सरकार को यह प्रतीत होता है कि नीचे उल्लिखित पुस्तकों, पुस्तिकाओं और दस्तावेजों, जिनमें ऐसा मामला अन्तर्विष्ट है, जिसका भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के मध्य विद्वेष और घृणा की भावना को संप्रवर्तित करना आशयित है तथा संप्रवर्तित करती है और जिनका जानबूझ कर और विद्वेषपूर्ण रूप से जैन (बनिया) समुदाय की धार्मिक भावनाओं को उनके धर्म और उस वर्ग के धार्मिक विश्वास का अपमान करके आहत करना आशयित है और जिसका प्रकाशन भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 क और 295 क के अधीन दण्डनीय है। इसलिए, राज्य सरकार दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का V) की धारा 99 क द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए एतद्वारा पूर्वोक्त पुस्तकों, पुस्तिकाओं और दस्तावेजों की प्रत्येक प्रति को साथ ही उनके पुनःमुद्रण, उद्धरण, प्रत्युपादन, अनुवाद या लिप्यान्तरण की प्रत्येक प्रति को सरकार द्वारा समपहृत किये जाने की घोषणा करती है। पुस्तकें, पुस्तिकाएं और दस्तावेज (1) साधु अनूप दास द्वारा हिन्दी में लिखित और संवत्, वर्ष 1968 में श्री वेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय, बम्बई द्वारा 'जगत हितकारणी' शीर्षक से मुद्रित ग्रंथ। यह 'बनिया' समुदाय के विरुद्ध विद्वेषपूर्ण प्रचार से पूर्ण है। (2) संवत्, वर्ष 1982 में 'न्याय चिन्तामणि' शीर्षक से प्रकाशित सिरोही के सोनी हरचन्द द्वारा हिन्दी में लिखित पुस्तक। यह पुनः बनिया (जैन) समुदाय के विरुद्ध दुष्प्रचार है और जैन धर्म पर प्रहार करता है। +27 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) संवत्, वर्ष 2013 और 1956 ईस्वी में 'किताब मुफीद अम मौसुमवाह' शीर्षक से प्रकाशित और लाल सोलंकी द्वारा श्री कमला मुद्रणालय, कटला बाजार, जोधपुर में मुद्रित पुस्तक । यह अनूप दास के वृहत्तर ग्रंथ 'जगत हितकारणी' का एक उद्धरण है। (4) सोनी हरचन्द द्वारा हिन्दी में लिखित और कमला मुद्रणालय, कटला बाजार, जोधपुर द्वारा प्रकाशित 'आत्म पुराण'। यह भी बनिया समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने तथा अन्य वर्गों को उनके विरुद्ध उकसाने के लिए लिखी गयी है । (5) निम्नलिखित शीर्षक से हिन्दी में मुद्रित पत्रक : (i) श्री रामायण मुद्रणालय, दरलियापुर, बड़ीगांव, बड़ी पासी, अहमदाबाद द्वारा मुद्रित और अध्यक्ष अनूप मण्डल, सिरोही द्वारा प्रकाशित श्री अनूप स्वामीजी की आरती । (ii) अध्यक्ष, अनूप मण्डल, किशिनगर के लिए प्रबन्धक, भारत पॉलिसी फोर्म कम्पनी, गवर्नमेंट सरकार हाल द्वारा प्रकाशित और सर्योदय मुद्रणालय, जोधपुर द्वारा मुद्रित 'दुखियों की पुकार'। दोनों बनिया समुदाय में वर्ग घृणा और द्वेष संप्रवर्तित करने की दृष्टि से लिखी गयी है। 28 राज्यपाल के आदेश से, दुर्गा प्रसाद, शासन उप सचिव | Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 05: ac Bar TE. राजस्थान सावकार प्रकाशित) - २२ Voh Jo No. 22 731 की निष् १) (१) दान करना (द) (C) -() · १. (७) परे निर्भय । एक ४ 1501 सत्यमेव जयते Rajasthan-faxette (२) विधि र (४) व्योपदेवत त्रुट्टियों बाद के सम्बन्म में समस्त *x() Published bluthority FXT भाद्रपद गुस्तकसम्म टिज भगत २०५७ Bhadrapad 7, Thursday, Shak Samvat 1879 August 20,1957. विषय (१) विभागों की (ि२) ल fasia 73 (२) के अलावा ि जीरा htt भाग ४ - -राजस्थान विधान मध्य के अधिनियम -राज्यपाल, राजस्थान के अध्यादेश । te YABAL राजस्थान की विद्युत के प्राधिकारी द्वारा अपनी जाने को प्रस्तावित प्रारूप नियम रायें। *water (२) वाक्यात चन्या मादक (क) सांस्पिक सूचनायें तथा चौतार ज्ञान सभा में प्रस्तुत रिस्प करने से पूर्व प्रकासित किये गये विवेक (२) । हियों के विवरण" प्रवर. 132 Picture (ए) ५४:-दिम बोक्र EXTRAORDINARY ISSUE The following oldiday Các buring the) weckgan res, g वयः 'राज-पत्र my पर सरकार द्वारा या किसी जन्य प्राधिकारी द्वारा अपनी के प्रयोग में बनाये गये कानूनी नियम नियम और बाशायें । बा ५ (क) केन्द्रीय विमान के कानूनो विचारमा सम नियुक्तियां ट्टियाचिकेोद में समस् विधि विभाग (९) FOR ME Rani No. 3. 80.. राजस्थान जयपुर (च) भारत के निर्वाचन आयोग की विडियो (क)- नरपालिका सम्बाद । कलय ) (विनोकिये टेन्डर न विज्ञापन 29 (२) नावाची सेवा काय र (४) को मेवा आयोग बाद की सूचनाएं। OF THE WEEK सावि ३.१९९७ ते नितिन भी है: ईि wy yupi पर ४ कार्यवाहक स्ट Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROME (D) DEPARTMENT NT Yleit . NOTIFICATION Xitot Jaipur, August 5, 1987. 7 p tots at No. 2.98 ) BB66.2 Whare it appears to the State Goverom, at that the books, pamph. Neoita leta and documente mentioned below contain Viento ? mater wbloh is intonded to promote and does promote foellogs of enmity and hatred between Yleit* RPC different clauses et citizens of India nad in dall YOR berately and maliciously intended to ouing the Al'glone feo Ingle of the Jan (Becja) community Yilol by lamulting the religion nad the religiour belief Mton of that and sad the publication of which is Panthabla ndio motion 183 A sod 206 A of York ? domain on Code Now, therefore, in oxercise of the power VEURIP Y bomlarned by bootion 99 A of the Code of Osl. al Procedur /1898 (V of 18€8) the State vitit 2 Government down hereby declare very copy of netry the Morossia books, pamphlets and documents to meant it be forfeited to-Government. Books, Pamphiles and documente vietis (1) Vohumo y anéitled Jagat Hitkarni in vient Hindi pitten by Sadhu Anoop Das and printed by the Sari Veakthww Steam Printing Pro, Bombay In Somas your Yeri 1908. This full of rouomowe prop pada agnout the 'Bania' commanity. .. Book satuled Nywy Chintamani in Hindt written by Sool Harchand of Strobi, pablished in wmot your 1988. व्यास Yo This is full of Viciou propaganda Y galost sbe Benis (Jala) community and blacks on tho Jala religion. (3) Book titled "Kitab Mald An NaumMIE wah' pablished in Baavat your 2013 sad 1856 4. D. and printed ** Shri Kamle Printing Pro, Katla Bacar, Jodhpus; by Bed La Solanki. This is so eastenot 12 from the bigger volume Jagal Hikarni of Snoop Das Atri Paran' In Hindi written by Bon! Harobilind and pablished the Kamla Printing Prom, Kathe Bezer, Jodhpur. This Guino write to outage the roligt. can fooltage of the Beate community and ang Inolde other classes against them. () Printed leaflete in Hlodi entitled © Shri Anoop Swamiji-KI-Artl, painted . * * * Bari Bemaren Printing Press, . Duallyspor Badigaon, Badi Paai, t htodas, mad pabliebed by Proel To dent Anoop Mandal, Birobi. Dükhiyon-to-Pakar published by LY Mapagar, Bharat Policy Forta Com pany, Gororament Sorkar Hall, for Prekident Anoop Mandal, Klubi .. nager, and priured at the Saryodan Pour Jodhpur. Both a written d the whow to promote olsa bat sed and malige tibo Banda omme. अलबामा महायपुर मौला बहार By Order of the Governor, e DURGA PRASAD, Depwly Beantary to the Government. | stiff wit foder 1 . TURUT qc gì 30 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PORS Tr प्रकाशित), क्या ३० 711 No. 37 JC7 Pr Rajastha RATE 20 १) नियक्तियो (२) विशिष्ट पद नियुक्तिय ऑस्टिग्स); (३) स्थानान्तरणों (४) व्यक्तिगत शक्तियों (५)ट्टिमा कवि सम्बंध में समस्त एक गुरुवार, शक सम्वत् १८७३ Margshirshal, Thursday, Shak Samvad H878 विषय-सूची कनाडा (1) रासस्थान हरेको रात राजस्वोर्ड (6) भोि 1 (क) (१)--विभागाध्यक्ष कता होने पर एक-शिक्षा। 5)-(१) लेखापाल राजस्थान की विज्ञप्तिय और परिपत्र । जयपुर, नवम्बर 1(n) (१) राजस्थान विधान सभा में प्रस्तुत किय सुत करने से पूर्व प्रकाशित किय गये विधेयक (२) प्रवर के रण । राजभर विधानस -सरकार द्वारा या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा अपनी सहज वयों के प्रयोग में बनाये जाने को प्रस्तावित प्रारूप नियम, नियम, उप-नियम भरायें। (क) — राजस्थान विधान के अधिनियम । राज्यपाल राजस्थान के अध्यादेश । जस्थान विधानसभा रोहा -१६५७ Jiips जतियो । (१) सहस्वानं सरवाड़ी सामा-2) कानून के अलावा क्रम 정보 नियम (प्रेस विज्ञप्ति (४) समितियों के विवरण हिते के अन्य प्रक कोरिया 1 4 प्र राजपत्र ए. ४ Jeet merol Pana [Pushed by t भाग १ (क) नियुक्तियां, छुट्टियां बादि के सम्बन्ध में समस्त विज्ञप्तियां जयपुर Promitly Des 31 (१). (तालिका सम्बधी विद (ग) पंचासम्ब ताि विवरण, जन स्वास्थ्य जन्म और मृत्यु की दशा पर टिप्पणी, प्रचलित मूल्यों का विवादि शुल राज्य सरकार देशि या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा' ना का मादि जो प्रकाशित की जाती है। Ser दिसम्बर १२१२२० Daivihber 12, 1967 YOUNG? HO EXTRAORDINARY ISSUES OF THE WEEK start The folowing Extraordinary Gazettes Were Tinted during the vackra 2. 6.12.87 1. bif2-87 1. 5-12-17 (ग) - दनमत प्राप्त करने के प्रकाशित मंडल के विषय अवकाश (तो ne, दिनांक १ दिसम्बर १९५० को पढ़ने वाले रविवारी हा KR15 ३८ श्री Joyando (ब) - (१), डिभि विम) में प्रायों के लिये टाटर माग "की सूचना को सम्मिलित करते हुए सार्वजनिक निजी विl यः विषा (२) न्यायालय की सूचनाएं (३.) सं बायोमी) राजकीय लोकसेरा मोग mainst अधी पाकेटी केन्द्रीय Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ E 7-, font t3, PENU SPECIFICATION Diatriot Tobail 1 Village Khan Area in B No. q. ft. 3 4 1 2 LAIR AND JUDICIAL DEPARTMENT (B) NOTIFICATION Jeigur, November 25, 1907.", No. 3658 7. 4 (%) W1B/87.-In pursuance of clause fb) offrute 26 of Order of the Code of Civil Provoditre, 190 (Act No. V of 1908), the State Government does hereby declare tbat to mrvice by the High Court of any other Cime or Prope. Court in Sickles of any 2 00 pued under the said Code by Court In Rajualbo ball be deemed to be Tulid wrvice. By Order of the Governor, PRABHU DAYAL LOIWAL Secrety to the Gorerapent. Koth Ladpurs Rampura Aren in Kola City (1) Temple 5346 uf q. ft. Mabadeoji T () Temple 1054 Jaipur. Ncember 20, 1055 No. T. &(27) Ing.157.-WEARAS land in to be taken by the State Gorenment as they exponko for the public purpow, it is herabyn that land in the locality described below to for the above purpose and plan of the la Doded may be inspected in the office of the Aequintion Officer, Canal Arta, Chambel PR Kola ONE (D) DEPARTMENT NOTIFICATION Jaipur, November 20, 1967. No. .25(0)|56.-In exercise of the powers conferred by section 90A of the Code of Criminal Proordano 189$ (V of 1898) Who-Stalo Tiorernment dove hay direct that the worden also etery copy of priat, extract, nproduction, translation ar tunelitration thereof shall be inserted after the words "apronald books, pamphleta and document Qocurriogle pare two al Home Departament Notifloation of a Dember, dated the oth August, 1987 pablished in the Rajasthaa Ganette Part I.B dated the 2012 August, 1967). By Order of the Governor, DURGA PRASAD SHARMA. Deputy Serdary to the Government, This notification made, uzder the provin gub-wetion (2) of action 5 of the Rajasthan Acquisition Act, 19 to all whom it mayron: Any person interested who has any object the acquisition of the said land may, with days of the publication of this notificatient objection in writing before tho I apd Acqe Officer of Canal Area, Chambal Project, of Plc Attestel SPECIFICATION " RIGATION DEPARTMENT District Tehsil Village . Kberra No, NOTIFICATIONS Bundi Talent Sitapura 119 . Jaipur, Yowmber 20, 1967. No. .607) Irg-/57-WARRAS land is needed to be taken by the State Government at the public expony for the publie pupom, it is hereby notified that ined in the locality docribed below it needed for the above purpose and a plan of the land so Hooded may be inspected in the office of the Land Aoquiation Officer, Canal Aros, Ohanbal Project, 131 148 183 199 194 195 197/1 1972 198 41318 Talare KOLA. SM 414/3 $16/1 sotilotion is made, under the provisions of O A () of seotious of the Rajushan Land apparatdon Act, 1962 to all whom it may concern. intind who has any objection to 1 of 8 maid land may, within thirty u cation of this notification, Cile an i ng balore the Land Acquisition thes, Chanoul Project, Kutu. 459 d W TOTAL: 17 32 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज्य सरकार द्वारा जारी परिपत्र दिनांक 18/7/1997 बाबत अनूप मंडल के विरुद्ध की गई एवं की जाने वाली कार्यवाही का विवरण अनूप मण्डल की जैन विरोधी गतिविधियों पर राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित करने व उन पर रोक लगाने के लिए एक प्रतिनिधिमण्डल संस्थान के अध्यक्ष न्यायाधीश श्री जसराज चौपड़ा के नेतृत्व में जयपुर जाकर 5 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री व उनके सहयोगी मंत्रियों व सचिवों से मिला। इस प्रतिनिधि मण्डल में संस्थान के आह्वान पर, जैन विधायकगण, प्रशासनिक अधिकारी, सभी जैन संघों के पदाधिकारी शामिल हुए। राज्य सरकार ने प्रतिनिधि मण्डल को समुचित कार्यवाही करने का आश्वासन दिया व बाद में की गई कार्यवाही का एक परिपत्र जारी किया, जो निम्न प्रकार है :अनूप मण्डल के बारे में राज्य सरकार द्वारा की गई कार्यवाही भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान, जोधपुर द्वारा अनूप मण्डल के अनुयायियों द्वारा जैन धर्मावलम्बियों के विरुद्ध दुष्प्रचार के सम्बन्ध में समय-समय पर दिये गये ज्ञापनों में निम्नांकित बिन्दु उठाये जाते रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा बिन्दुवार की गई कार्यवाही की स्थिति इस प्रकार है। इस सम्बन्ध में अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) द्वारा उपमहानिरीक्षक पुलिस, जोधपुर से भी दूरभाष पर वार्ता कर आवश्यक निर्देश दिये गये तथा विशिष्ठ शासन सचिव, गृह विभाग द्वारा सिरोही, जालौर एवं पाली जिलों के पुलिस अधीक्षकों से अनूप मण्डल की गतिविधियों के बारे में विस्तृत बातचीत दूरभाष पर की जाकर आवश्यक कार्यवाही करने हेतु निर्देश दिये गये। 1. अनूप मण्डल द्वारा प्रकाशित साहित्य को जब्त करने के सम्बन्ध में : , - राज्य सरकार द्वारा 5.8.57 को अधिसूचना जारी कर अनूप मण्डल द्वारा प्रकाशित निम्नलिखित पुस्तकें प्रतिबंधित करने के आदेश दिये गये। तत्पश्चात् 20.11.57 को इन पुस्तकों के किसी भाग को प्रकाशित करने, पुनः मुद्रित करने पर भी रोक लगाई गई : 1. जगत हितकारणी 2. न्याय चिन्तामणि 3. किताब मुफीद आम मोसुमव आत्म पुराण अनूप स्वामीजी की आरती दुखियों की पुकार जालोर, सिरोही एवं पाली के पुलिस अधीक्षकों का राज्य सरकार की उक्त दोनों अधिसूचनाओं कीर प्रतियां दिनांक 28.5.97 को प्रेषित कर प्रतिबंधित साहित्य को जप्त करने के निर्देश दिये गये एवं +33. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिनांक 16.7.97 को निर्देशित किया गया। इस सम्बन्ध में दूरभाष पर अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं विशिष्ठ शासन सचिव, गृह विभाग द्वारा भी तीनों पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिये गये। पूर्व में प्रकाशित इन दोनों अधिसूचनाओं के पुनः प्रकाशन की आवश्यकता नहीं है। 2. जैन साधुओं के विहार एवं प्रवास के समय पुलिस द्वारा सुरक्षा व्यवस्था : इस हेतु सम्बन्धित पुलिस अधीक्षकों को 11.7.97 एवं 16.7.97 को निर्देशित किया जा चुका है कि आवश्यकता होने पर पुलिस सुरक्षा जैन साधुओं के विहार के समय या अन्यथा प्रवास के समय उपलब्ध कराई जाये। दूरभाष पर भी इस सम्बन्ध में निर्देश दे दिये गये हैं। 3. अनूप मण्डल द्वारा मेलों/शोभा यात्राओं के दौरान धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं करने के सम्बन्ध में: इस सम्बन्ध में जिला पुलिस अधीक्षक, पाली ने अवगत कराया कि हाल ही में सम्पन्न अनूप मण्डल के समारोह की वीडियोग्राफी करवाई गई एवं उसमें किसी विधि विरुद्ध उद्बोधन अथवा कार्यवाही अनूप मण्डल द्वारा नहीं की गई। सिरोही एवं जालोर के पुलिस अधीक्षकों ने ऐसा कोई समारोह उनके क्षेत्र में गत कुछ समय में नहीं होना बताया है। फिर भी सभी संबंधित पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दे दिये गये हैं कि धार्मिक भावनाओं को आहत करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही करें। 4. ग्राम भीमाना में जैन साधुओं पर हमला : पुलिस अधीक्षक, सिरोही से प्राप्त जानकारी के अनुसार 12/13 जून 97 की मध्य रात्रि को ग्राम भीमाना के स्कूल में सो रहे जैन साधुओं के कमरे में चोरी की नीयत से 5 अभियुक्तों ने लाठियों से लैस होकर प्रवेश किया। साधुओं के जागने पर उनके साथ मारपीट कर एक थैला लेकर भाग गये। इस सम्बन्ध में अभियोग संख्या 57 दिनांक 13.6.97 अन्तर्गत धारा 147, 148, 149,458 एवं 307 आई.पी. सी. थाना रोहिड़ा में पंजीबद्ध किया गया एवं अनुसंधान के आधार पर अभियुक्तगण सिंगा, मीनिया, सोमा, सायबा जाति गमेती भील निवासी डोली फली वाटेरा को गिरफ्तार कर लिया गया एवं अभियुक्त मुनीया की गिरफ्तारी के प्रयास जारी हैं। गत 3 वर्षों में अनूप मण्डल को शिवगंज थाना के अन्तर्गत मेला आयोजन करने की स्वीकृति भी नहीं दी गई है। इसकी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। 5. अनूप मण्डल द्वारा राजकीय भूमि पर अतिक्रमण कर धार्मिक स्थलों का निर्माण : इस सम्बन्ध में जिला मजिस्ट्रेट एवं पुलिस अधीक्षकों से वस्तु स्थिति का विवरण मांगा गया है। श्री नमोनारायण मीणा, महा-निरीक्षक, पुलिस, कानून एवं व्यवस्था, राजस्थान, जयपुर दिनांक 17.7.97 को प्रातः अधिसूचनाओं एवं अनूप मण्डल की गतिविधियों के बारे में अब तक की गई कार्यवाही से अवगत होकर सिरोही के लिए रवाना हुए तथा सायंकाल पाली पहुंच गये। उप महा-निरीक्षक जोधपुर भी वहीं पहुंचने को हैं। जैन समुदाय के व्यक्तियों से सम्पर्क साधा जा रहा है। श्री मीणा अनूप मण्डल द्वारा की जाने वाली कार्यवाही के सम्बन्ध में निर्देशानुसार आवश्यक अग्रिम कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे। --34 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 1. RT 99 A Cr.P.C. 1898 T STT 99 B Cr.P.C. 1898 RT 95 Cr.P.C. 1973 96 Cr.P.C. 1973 2. 3. 4. 5. TRT 196 Cr.P.C. RT 120 B I.P.C. SRI 153 AI.P.C. SRT 295 AI.P.C. ERT 298 I.P.C. 10. 500 I.P.C. STT Extract from the Information Technology Act 2000 (a) Blocking of website-Govt. of India Notification dated 7th July 2003 (b) धारा 66 A (मार्च 2015 में श्रेया सिंगल की याचिका पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त किया) 6. 7. 8. 9. 11. द्वितीय खण्ड (c) धारा 69 (d) R 69 A (e) धारा 76 (f) धारा 78 (g) धारा 80 (h) RT 84 B (i) धारा 84 C 12. राजस्थान आफिसियल लेंग्वेज एक्ट 1956 13. राजस्थान रीलिजियस बिल्डिंग एण्ड प्लेसेज एक्ट T 35 35 8 8 8 8 w j w 35 36 37 38 38 39 39 40 40 44 # 4 4 4 4 4 4 44 45 45 45 46 46 46 47 49 Page #39 --------------------------------------------------------------------------  Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S. 99A. [The Code of] Criminal Procedure, 1898 Power to declare certain publications forfeited and to issue searchwarrants for the same-(1) Where S.95. (a) any newspaper, or book as defined in the Press and Registration of Books Act, 1867, or (b) any document, wherever printed, appears to the [State Govenment] to contain any [seditious or obscene matter] [for any matter which promotes or is intended to promote feelings of enmity or hatred between different classes of [the citizens of India] [or which is deliberately and maliciously intended to outrage the religious feelings of any such class by insulting the religion or the religious beliefs of that class], that is to say, any matter the publication of which is [punishable under Section 124A or Section 153A or Section 292 or Sec. 293 or Section 295A], of the Indian Penal Code, the [State Govenment] may, by notification in the [Official Gazette), stating the grounds of its opinion, declare every copy of the issue of the newspaper containing such matter and every copy of such book or other document to be forfeited to [Government], and thereupon any police-officer may seize the same wherever found in [India] and any Magistrate may by warrant authorise any police-officer not below the rank of sub-inspector to enter upon and search for the same in any premises where any copy of such issue or any such book or other document may be or may be reasoably suspected to be. (2) In sub-section (1) "document" includes also any painting, drawing or photograph, or other visible representation. S.99B. Application to High Court to set aside order of forfeiture-Anyperson having any interest in any newspaper, book or other document, in respect of which an order of forfeiture has been made under Section 99A, may, within two months from the date of such order, apply to the High Court to set aside such order on the ground that the issue of the newpaper, or the book or other document, in respect of which the order was made, did not contain any [seditious or other matter of such a nature as is referred to in seb-secton (1) of Section 99A.] Sec. 95 & 96 Code of Criminal Procedure 1973 Power to declare certain publications forfeited and to issue searchwarrants for the same.- (1) Where (a) any newspaper, or book, or 35. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (b) any document, • wherever printed, appears to the State Government to contain any matter the publication of which is punishable under section 124A or section 153A or section 153B or section 292 or section 293 or section 295A of the Indian Penal Code (45 of 1860), the State Government may, by notification, stating the grounds of its opinion, declare every copy of the issue of the newspaper containing such matter, and every copy of such book or other document to be forfeited to Government, and thereupon any police officer may seize the same wherever found in India and any Magistrate may by warrant authorise any police officer not below the rank of sub-inspector to enter upon and search for the same in any premises where any copy of such issue, or any such book or other document may be or may be reasonably suspected to be. (2) In this section and in section 96,(a) 'newspaper' and 'book' have the same meaning as in the Press and Registration of Books Act, 1867 (25 of 1867); (b) 'document' includes any painting, drawing or photograph, or other visible representation. (3) No order passed or action taken under this section shall be called in question in any Court otherwise than in accordance with the provisions of section 96. Application to High Court to set aside declaration of forfeiture.—(1) Any person having any interest in any newspaper, book or other document, in respect of which a declaration of forfeiture has been made under section 95, may, within two months from the date of publication in the Official Gazette of such declaration, apply to the High Court to set aside such declaration on the ground that the issue of the newspaper, or the book or other document, in respect of which the declaration was made, did not contain any such matter as is referred to in sub-section (1) of section 95. (2) Every such application shall, where the High Court consists of three or more Judges, be heard and determined by a Special Bench of the High Court composed of three Judges and where the High Court consists of less than three Judges, such Special Bench shall be composed of all the Judges of that High Court. (3) On the hearing of any such application with reference to any newspaper, any copy of such newspaper may be given in evidence in aid of the proof of the nature or tendency of the words, signs or visible representation contained in such newspaper, in respect of which the declaration of forfeiture was made. S. 96. 36 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S. 196. (4) The High Court shall, if it is not satisfied that the issue of the newspaper, or the book or other document, in respect of which the application has been made, contained any such matter as is referred to in sub-section (1) of section 95, set aside the declaration of forfeiture. (5) Where there is a difference of opinion among the Judges forming the Special Bench, the decision shall be in accordance with the opinion of the majority of those Judges. Prosecution for offences against the State and for criminal conspiracy to commit such offence.-(1) No Court shall take cognizance of (a) any offence punishing under Chapter VI or under section 153A, section 295A or sub-section (1) of section 505 of the Indian Penal Code (45 of 1860), or (b) a criminal conspiracy to commit such offence, or (c) any such abetment, as is described in section 108A of the Indian Penal Code (45 of 1860), ⚫ except with the previous sanction of the Central Government or of the State Government. (1A) No Court shall take cognizance of (a) any offence punishable under section 153B or sub-section (2) or subsection (3) of section 505 of the Indian Penal Code (45 of 1860), or (b) a criminal conspiracy to commit such offence, ⚫ except with the previous sanction of the Central Government or of the State Government or of the District Magistrate. (2) No court shall take cognizance of the offence of any criminal conspiracy punishable under section 120B of the Indian Penal Code (45 of 1860), other than a criminal conspiracy to commit an offence punishable with death, imprisonment for a term of two years or upwards, unless the State Government or the District Magistrate has consented in writing to the initiation of the proceedings: •Provided that where the criminal conspiracy is one to which the provisions of section 195 apply, no such consent shall be necessary. (3) The Central Government or the State Government may, before according sanction under sub-section (1) of sub-section (1A) and the District Magistrate may, before according sanction under sub-section (1A) and the State Government or the District Magistrate may, before giving consent under subsection (2), order a preliminary investigation by a police officer not being below +37 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ the rank of Inspector, in which case such police officer shall have the powers referred to in sub-section (3) of section 155. INDIAN PENAL CODE S. 120B. Punishment of Criminal conspiracy-1) Whoever is a party to a criminal conspiracy to commit an offence punishable with death, imprisonment for life or rigorous imprisonment for a term of two years or upwards, shall, where no express provision is made in this Code for the punishment of such a conspiracy, be punished in the same manner as if he had abetted such offence. (2) Whoever is a party to a criminal conspiracy other than a criminal conspiracy to commit an offence punishable as aforesaid shall be punished with imprisonment of either description for a term not exceeding six months, or with fine or with both. S. 153A. Promoting enmity between different groups on grounds of religion, race, place of birth, residence, language, etc., and doing acts prejudicial to maintenance of harmony-(1) Whoever(a) by words, either spoken or written, or by signs or by visible representations or otherwise, promotes or attempts to promote, on grounds of religion, race, place of birth, residence, language, caste or community or any other ground whatsoever, disharmony or feelings of enmity, hatred or ill-will between different religious, racials, language or regional groups or castes or communities, or (b) commits any act which is prejudicial to the maintenance of harmony between different religious, racial, language or regional groups or castes or communities, and which distrubs or is likely to disturb the public tranquility, or (C) organizes any exercise, movement, drill or other similar activity intending that the participants in such activity shall use or be trained to use criminal force or violence or knowing it to be likely that the participants in such activity will use or be trained to use criminal force or violence against any religious, racial, language or regional group or caste or community and such activity for any reason whatsover, causes or is likely to cause fear or alarm or a feeling of insecurity amongst members of such religious, racial, language or regional group or caste or community, shall be punished with imprisonment which may extend to three years, or with fine, or with both. (2) Offence committed in place of worship, etc.-Whoever, commits an offence specified in sub-section (1) in any place of worship or in any assembly engaged in the performance of religious worship or religious ceremonies, shall be punished with imprisonment which may extend to five years and shall also be liable to fine. 38 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S. 295A. Deliberate and malicious acts, intended to outrage religious feelings of any class by insulting its religion or religious beliefs-Whoever, with deliberate and malicious intention of outraging the religious feelings of any class of citizens of India, by words, either spoken or written, or by signs or by visible representations or otherwise insults or attempts to insult the religion or the religious beliefs of that class, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to three years, or with fine, or with both. S. 298. Uttering words, etc. with deliberate intent to wound religious feelingsWhoever, with the deliberate intention of wounding the religious feelings of any person, utters any word or makes any sound in the hearing of that person or makes any gesture in the sight of that person or places, any object in the sight of that person, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to one year, or with fine, or with both. Punishment for defamation-Whoever defames another shall be punished with simple imprisonment for a term which may extend to two years, or with fine, or with both. S. 500. 39 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The Information Technology Act 2000 'BLOCKING OF WEBSITES' MINISTRY OF COMMUNICATION AND INFORMATION TECHNOLOGY (Department of Information Technology) ORDER New Delhi, 7th July, 2003 Subject: Procedure for Blocking of Websites As per the Gazette Notification (Extraordinary) No. G.S.R. 18(E), dated 27th February, 2003, published in Part II, Section 3, Sub-section (i), Indian Computer Emergency Response Team (CERT-In) has been designated as the single authority for issuing of instructions in the context of blocking of websites. CERT-In has to instruct the Department of Telecommunications to block the website after, (1) verifying the authenticity of the complaint satisfying that action of blocking of website is absolutely essential. II. The blocking of website may be the need of several agencies engaged in different walks of public and administrative lives due to a variety of reasons. Explicit provision for blocking of the website in the IT Act, 2000 is available only in Section 67, relating to pornographic content on the website. In addition, Section 69 empowers the Controller of Certifying Authorities to intercept and information transmitted through any computer resource in relation only to the following five purposes: (1) Interest of the sovereignty or integrity of India, (ii The security of the State, (ii) Friendly relations with foreign States, or (iv) Public order, or (v) For preventing incitement to the commission of any cognizable offence. III. As already noted there is no explicit provision in the IT Act, 2000 for blocking of websites. In fact, blocking is taken to amount to censorship. Such blocking can be challenged ifit amounts to restriction of freedom of speech and expression. But websites promoting hate content, slander or defamation of others, promoting gambling, promoting racism, violence and terrorism and other such material, in addition promoting pornography, including child pornography, and violent sex can reasonably be blocked since all such websites may not claim constitutional right of free speech. Blocking of such websites may be equated to 'balanced flow of information' and not censorship. IV. The websites promoting the above mentioned types of content, not covered under the Freedom of Speech may need to be blocked under the inherent powers of the Government, "to the extent of executive authority read with legal powers of the Central Government and Controller under various provisions of various laws". V. The detailed procedure for submitting a complaint to the Director, CERT-In for 40 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ blocking of a website shall be as follows: 1. The following officers listed in Para 2 of the Gazette Notification can submit the complaint to the Director, CERT-In:(i) Secretary, National Security Council Secretariat (NSCS); (1) Secretary, Ministry of Home Affairs, Government of India; (ii) Foreign Secretary in the Department of External Affairs or a representative not below the rank of Joint Secretary; (iv) Secretaries, Department of Home Affairs of each of the States and of the Union Territories; } (v) Central Bureau of Investigation (CBI), Intelligence Bureau (IB), Director General of Police of all the States and such other enforcement agencies; Secretaries or Heads of all the Information Technology Department of all the States and Union Territories not below the rank of Joint Secretary of Central Government; (vii) Chairman of the National Human Rights Commission or Minorities Commission or Scheduled Castes or Scheduled Tribe Commission or National Women Commission; (vii) The directive of the Courts; (ix) Any others as may be specified by the Government. The complaint shall contain the following:(i) Name of the complainant with address, telephone number, fax number, and e-mail. (ii) The address of the offending website. (i) The name of the organization with address, ifknown, which is promoting hosting the website. (iv) Specific reasons for requesting blocking of website. This may be from any of the following:Promoting hate content, slander or defamation of others, promoting gambling, promoting racism, violence and terrorism and other such material, promoting pornography, including child pornography and violent sex. (v) Any other reasons may be specified by the complainant. (vi) Segment of population or the audience that is adversely affected by the offending website. 3. The complaint may be submitted in writing by an authorized officer of the and 41 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. 5. CERT-In staff shall verify that the complainant belongs to one of the organisations that have been listed above. If needed, this will be verified telephonically from the concerned office. 6. abovenamed organization on the letter head. This can be sent either by mail of by fax of by e-mail digitally signed. Each complaint shall be acknowledged to the complainant within 24 hours of its receipt. 7. In the case of complaints received by fax and e-mail which is not digitally signed, the complainant shall be required to provide an ink-signed copy of the complaint so as to reach CERT-In within 3 days of the receipt of the complaint by fax or e-mail. The processing of the complaint shall begin without waiting for the receipt of the ink-signed copy. 8. Each complaint shall be assigned a complaint number and recorded in a register alongwith the time and date of the receipt. 9. Director, CERT-In will assign the complaint to a technical expert to view the said website and print the offending content as a sample within a day of the receipt of the complaint. The complaint alongwith the printed sample content of the website shall be examined by a duly constituted committee under the chairmanship of Director, CERT-In with representatives of DIT and Law Ministry/Home Ministry. The committee wil meet within a day of the complaint and the content being notified by Director, CERT-In to the members ofthe Committee. It will meet and take on the spot dicision on whether the website is to be blocked or not. 10. The decision on blocking of the website by the Committee alongwith the complaint and details thereof shall be submitted by Director, CERT-In to the Additional Secretary, DIT for the approval of the Secretary, DIT. 11. On receipt of the approval from DIT, Director, CERT-In will issue instructions to DOT for blocking of website. 12. The entire exercise shall be completed within seven working days of the receipt of a complaint. 13. In case of an emergency situation, to be decided by Director, CERT-In in consultation with the Additional Secretary, DIT, Instructions for blocking of website will be immediately issued by Director, CERT-In to DOT. 14. Strict confidentiality shall be maintained by CERT-In regarding all the complaints as also their processing. 15. The Director, CERT-In shall maintain complete record, in electronic database as also in paper files/registers, of the cases of blocking of website processed. 42. Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ This database shall be the property of the DIT and shall not be used for any commercial purpose. 16. The Director, CERT-In shall submit a monthly report of the cases of blocking of the website processed in each month, by 7th of the next month, (or the next working day if 7th happens to be a holiday) to the additional Secretary, DIT. 17. The Director CERT-In shall arrange to make available, the record of the cases of blocking of the website processed by CERT-In, as and when required for audit by an officer designated by Secreatary, DIT for this purpose. This inspection/audit may be undertaken on a quarterly basis. 18. The service for blocking of the website containing offending material is to be provided by CERT-In in public interest and hence no fees shall be charged for providing this service. 43 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE INFORMATION TECHNOLOGY ACT, 2000 S. 66A. Punishment for sending offensive message through communication service, etc.-Any person who sends, by means of a computer resource or a communication device,(a) any information that is grossly offensive or has menacing character, or (b) any information which he knows to be false, but for the purpose of causing annoyance, inconvenience, danger, obstruction, insult, injury, criminal intimidation, enmity, hatred or ill will, persistently by making use of such computer resource or a communication device, or (c) any electronic mail or electronic mail message for the purpose of causing annoyance or incovenience or to deceive or to mislead the addresses or recipient about the origin of such messages, shall be punishable with imprisonment for a term which may extend to three years and with fine. Explanation. For the purpose of this section terms "elecronic mail" and "electronic mail message" means a message or information created or transmitted or received on a computer, computer system, computer resource or communication device including attachments in text, images, audio, video and any other electronic record, which may be transmitted with the message. Note: This section has been declared ultra virus by Hon'ble Supreme Court in March 2015 in a writ filled by Miss Shreya Singhal and others. S. 69. Power to issue directions for interception or monitoring or decryption of any information through any computer resource.-(1) Where the Central Government or a State Government or any of its officer specially authorised by the Central Government or the State Government, as the case may be, in this behalf may, if satisfied that it is necessary or expedient so to do in the interest of sovereignty or integrity of India, defence of India, security of the State, friendly relations with foreign States or public order or for preventing incitement to the commission of any cognizable offence relating to above of for investigation of any offence, it may subject to the provisions of Sub-section (2), for reasons to be recorded in writing, by order, direct any agency of the appropriate Government to intercept, monitor or decrypt or cause to be intercepted or monitored or decrypted any information generated, transmitted, received or stored is any computer resource. (2) The procedure and safegaurds subject to which such interception or monitoring or decryption may be carried out, ahall be such as may be prescribed. (3) The subscriber or intermediary or any person in-charge of the computer resource shall, when called upon by any agency referred to in Sub-section (1), extend all facilities and technical assistance to (a) provide access to or secure access to the computer resource generating transmitting, 44 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ receiving or storing such information; or (b) intercept, monitor, or decrypt the information, as the case r..ay be; or (c) provide information stored in computer resource. (4) The subscriber or intermediary or any person who fails to assist the agency referred to in sub-section (3) shall be punished with imprisonment for a term which may extend to seven years and shall also be liable to fine. S. 69A. Power to issue directions for blocking for public access of any information through any computer resource.-(1) Where the Central Government or any of its officer specially authorised by it in this behalfis satisfied that it is necessary or expedient so to do in the interest of sovereignty and integrity of India, defence of India, security of the State, friendly relations with foreign States or public order or for preventing incitement to the commission of any congnizable offence relating to above, it may subject to the provisions of Sub section (2), for reasons to be recorded in writing, by order, direct any agency of the Government or intermediary to block for access by the public or cause to be blocked for access by the public any information generated, transmitted, received, stored or hosted in any computer resource. (2) The procedure and safegaurds subject to which such blocking for access by the public may be carried out, shall be such as may be prescribed. (3) The intermediary who fails to comply with the direction issued under sub-section (1) shall be punished with an imprisonment for a term which may extend to seven years and also be liable to fine. S. 76. Confiscation.-Any computer, compter system, floppies, compact disks, tape drives or any other accessories related thereto, in respect of which any provision of this Act, rules, orders or regulations made thereunder has been or is being contravened, shall be liable to confiscation: • Provided that where it is established to the satisfaction of the Court adjudicating the confiscation that the person in whose possession, power or control of any such computer, computer system, floppies, compact disks, tape drives or any other accessories relating thereto is found is not responsible for the contravention of the provisions of this Act, rules, orders or regulations made thereunder, the Court may, instead of making an order for confiscation of such computer, computer system, floppies, compact disks, tape drives or any other accessories related thereto, make such other order authorised by this Actr against the person contra-vening of the provisions of this Act, rules, orders or regulations made thereunder as it may think fit. S. 78. Power to investigate offences.-Notwithstanding anything contained in the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), a police officer not below the rank of Inspector shall invesigate any offence under this Act. - 45 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CHAPTER-XII Miscellaneous S. 80. Power of police officer and other officers to enter, search, etc.-(1) Notwithstanding anything contained in the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), any police officer, not below the rank of a Inspector or any other officer of the Central Government or a State Government authorised by the Central Government in this behalf may enter any public place and search and arrest without warrant any person found therein who is reasonably suspected of having committed or of committing or of being about to commit any offence under this Act. • Explanation.-For the purpose of this Sub-section, the expression "Public place" includes any public conveyance, any hotel, any shop or any other place intended for use by, or accessible to the public. (2) Where any person is arrested under Sub-section (1) by an officer other than a police officer, such officer shall, without unnecessary delay, take or send the person arrested before a Magistrate having jurisdiction in the case or before the officer-in-charge of a police station. (3) The provisions of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974) shall, subject to the provisions of this Section, apply, so far as may be, in relation to any entry, search or arrest, made under this Section. S. 84 B. Punishment for abetment of offences.-Whoever abets any offence shall, if the act abetted is committed in consequence of the abetment, and no express provision is made by this Act for the punishment of such abetment, be punished with the punishment provided for the offence under this Act. • Explanation.-An act or offence is said to be committed in consequence of abetment, when it is committed in consequence of the instigation, or in pursuance of the conspiracy, or with the aid which constitutes the abetment. S. 84C. Punishment for attempt to commit offences.-Whoever attempts to commit an offence punishable by this Act or causes such an offence to be committed, and in such an attempt does any act towards the commission of the offence, shall, where no express provision is made for the punishment of such attempt, be punished with imprisonment of any description provided for the offence, for a term which may extend to one-half of the longest term of imprisonment provided for that offence, or with such fine as is provided for the offence, or with both. AdWicii. 46 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE RAJASTHAN OFFICIAL LANGUAGE ACT, 1956 (Act No. 47 of 1956) [Published in the Rajasthan Gazette, Part IV-A, Extraordinary, dated 31-12-56.] CONTENTS 1. Short title, extent and commencement 2. Interpretation Hindi to be official language for certain purposes of the State 3A. Form of Numerals 4. Official Language for Bills, Acts etc. 5. Repeal THE RAJASTHAN OFFICIAL LANGUAGE ACT, 1956. [Act No. 47 of 1956] [Received the assent of the Governor on the 28th day of December, 1956.] An Act to make provision for the language to be used for various official purpose of the State of Rajasthan. Be it enacted by the Rajasthan Legislature in the Seventh Year of the Repulbic of India as follows: 1. Short title, extent and commencement.-(1) This Act may be called the Rajasthan Official Language Act, 1956. (2) It extends to the whole of the State of Rajasthan. (3) It shall come into force at once. 2. Interpretation.-(1) In this Act, unless the subject to context otherwise requires, the word "State" means the new State of Rajasthan as formed by section 10 of the State Reorganisation Act, 1956 (Central Act of 1956). (2) The provision of the Rajasthan General Clauses Act, 1955 (Rajasthan Act 8 of 1955), in force in the pre-reorganisation State of Rajasthan shall, as far as may be, apply mutatis mutandis to this Act. 3. Hindi to be official language for certain purpose of the State.-Hindi written in Devnagari script shall, with effect from such date as the State Government may, by notification in the Official Gazette appoint in this behalf, be the language used in respect of all or any of the official purpose of the State, other than those mentioned in section 4, and different dates may be appointed for such different purposes. 3A. Form of numerals.- The form of numerals to be used for the official purposes of the State shall be the international form of Indian numerals. 47 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. Official language for Bills, Acts etc.-Subject to the provisions of articles 348 of the Constitution of India and notwithstanding anything contained in section 3, the language of (i) all Bills introduced in the State Legislative Assembly, (ii) all Acts passed by the State Legislative, (iii) all Ordinances promulgated under Article 213 of the Constitution of India, and (iv) all orders, rules, regulations and bye-laws issued by the State Government under the Constitution of India or under any Central or State law, shall be either Hindi written in Devnagari Script or English: Provided that in every such case where the English language is used there shall be published under the authority of the State Government, as soon as may be a translation thereof in the Hindi language written in Devnagari script. 48. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RELEVANT EXTRACT FROM THE RAJASTHAN RELIGIOUS BUILDINGS AND PLACES ACT, 1954 (Act No. XVIII of 1954) [Received the assent of the President on the 15th day of August, 1954.] An Act to regulate the construction of public religious buildings and to restrict the use of public places for religious purposes. Whereas with a view to avoiding a breach of the public and tranquillity likely to arise from disputes between different sections of the people of [the State of Rajasthan), it is expedient to regulate the construction of public religious buildings and restrict the use of public places for religious purposes. It is hereby enacted as follows: 1. Short title, extent and commencement.--1) This Act may be called the Rajathan Religious Buildings and Places Act, 1954. [(2) It extends to the whole of the State of Rajasthan.] (3) It shall come into force on the date of its first publication in the [Official Gazette). [2 xxx] [3 xxx] 4. Definitions. In this Act, unless the context otherwise requires:() [xxx] (i) "building" means a house, shop, hut, shed or other structure or enclosure, whether roofed of not, of whatsoever material constructed and includes every part thereof, all walls, verandahs, platforms, plinths, doors steps and the like and a tent or other portable and merely temporary shelter: [(ii) "Commissioner" means the Divisional Commissioner appointed under section 17 of the Rajathan Land Revenue Act, 1956 (Rajasthan Act 15 of 1956):] (iv) "place" means any open space which is not a building; (v) "public" used with reference to a building or place, signifies that such building or place, whether or not acquired, constructed and maintained by or at the expense of some specified person or body or persons is not the private and personal property of such person or body and is open to the use and enjoyment of the public in general or of a particular class or section thereof for the purpose, if any, for which it may have been set apart; - 49 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ace (vi) "religious" when used with reference to a building or place, signifies (a) that such building is used or intended to be used for the purpose of religious worship or instruction, or offering prayers (which include Bhajan, Kirtan, Stuti or Namaj) or performance of any religious rites by persons of a belonging to any religion, creed, sector class, such as a temple, mosque, church, chhatri, dargha, khangah, mutt, takiya or the like, or (b) that such place is likewise used or intended to be used. 5. Restrictions on use of public places for religious purposes.-(1) No person shall use any public place (a) as a permanent religious place, or (b) save with the previous written permission of the Collector obtained in the prescribed manner, as a temporary religious place. (2) Nothing in this section shall apply to cremation grounds and burial places or to the holding of functions or the taking out of processions, in connection with deaths or marriages or to other purely social and secular functions or to religious processions. 6. Constructions etc. or public religious buildings.-(1) No person shall without first obtaining the written permission of the Collector (a) construct any public religious building, [xx] (b) convert any private or public building or place into a public religious building, [or] [(C) destroy, damage or transfer any public religious building or place.] Explanation. The temporary use of a building or place for religious purposes on occassions such as Holi, Moharram and the like shall not be deemed to be the conversion thereof into a public religious building. (2) A person desirous of obtaining permission for any of the purposes mentioned in sub-section (1) shall first obtain permission from any local authority or officer having jurisdiction over the area where the building or place in question lies and thereafter such person shall apply to the Collector for the requisite permission in the prescribed manner. 9. Jursisdiction of Courts barred. An order made under this Act by a Collector or an appeal by a (revenue appellate authority] or [a commissioner] shall be final and shall Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - not be liable to be called in question in any civil court. 11. Offences and punishments.-Whoever contravenes, or attempts to contravene, or abets the contravention of, any of the provisions of this Act or the rules made thereunder may have been granted shall on conviction be punishable with imprisonment of either description for a term which may extend to three months or with fine which may extend to five hundred rupees or with both. [11A. Power of Collector to direct removal of unauthorized work.-(1) Notwithstanding anything contained in but with prejudice to the provisions of section 12, the Sub-Divisional Officer, on his own motion or on a complaint or otherwise on receiving information that any work has been constructed in contravention of the provisions of this Act or of any permission granted thereunder within his jurisdiction, shall proceed to inquire into the truth of the matter and if after inquiry into the truth of the matter and if after inquiry comes to the conclusion that the work has been so constructed, he shall make a report to the effect to the Collector. (2) Whether, the Collector, on the receipt of the report under sub-section (1) or suo moto has reasons to believe that a work has been constructed in contravention of this Act or of any permission granted thereunder, he shall cause to be notified in the locality by beat of drum and by affixing a show cause notice on the conspicuous part of the work so constructed and on the notice board of his office and also cause notice to be served on the person or persons (if ascertainable) responsible for the construction of the work calling for objections, if any, within a period of fifteen days as to why such work should not be removed and may, if necessary, stay further construction till he gives his findings on the matter. (3) The Collector shall then hear and decide the objections, if any and record the finding on the matter. (4) If the Collector arrive at the finding that the work was constructed in contravention of the provisions of this Act or of any permission granted thereunder, he shall direct the removal of the work so as to restore the building or place in question, as nearly as may be, to its original condition. (5) Subject to the result of any appeal that may be filed, where any work is not removed in compliance with the direction within a period of one month from the date of such direction of the Collector, or of the decision of appeal, if any, the Collector shall cause such compliance to be made through a police officer not below the rank of SubInspector at the cost of the defaulter in the prescribed manner. 51+ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) The provisions of section 8 shall mutatis mutandis apply an order made by the Collector under sub-section (4) in the same manner as they apply to an order made under section 7.] 12. Removal of unathorized work.-(1) The court making an order of conviction for any offence under section 11 shall direct that any work which shall have been constructed in contravention of the provisions of this Act or of any Permission granted thereunder, but has not been already removed under the provisions of section 11-A, shall be removed so as to restore the building or the place in question as nearly as may be to its original conditions.] (2) In case of non-compliance with a direction made under sub-section (1) the Court shall cause such compliance to be made through a Police Officer not below the rank of Sub-Inspector at the cost of the defaulter in the prescribed manner. - 52 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. 2. 4. 3. माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की वृहदपीठ द्वारा पारित निर्णय दिनांक 09.02.2010 (2010 (2) RLW Page 1364) 5. 6. तृतीय खण्ड (अ) तत्कालीन सिरोही राज्य द्वारा जारी निर्णय दिनांक 09.02.1926 (ब) तत्कालीन सिरोही राज्य द्वारा जारी निर्णय दिनांक 11.03.1926 एवं 08.09.1940 7. माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ द्वारा पारित निर्णय दिनांक 10.11.1997 माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग सांचोर का अपराधिक प्रकरण संख्या 38/96 में पारित निर्णय दिनांक 20.05.1998 जिसके द्वारा अपराधी श्री ईश्वरलाल खत्री को 3 वर्ष की कठोर कारावास एवं 5000 रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया गया माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग सांचोर का निर्णय दिनांक 16.04.2010, जिसमें रिमाण्डेड प्रकरण में पूर्व निर्णय दिनांक 20.05.1998 द्वारा दिये गये तीन वर्ष के कारावास व अर्थदण्ड को कायम रखा गया माननीय न्यायालय अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश, भीनमाल द्वारा अपने अपीलीय निर्णय दिनांक 28.09.2013 द्वारा दी गई तीन वर्ष की सजा एवं अर्थदण्ड कायम रखा गया राज्य सरकार द्वारा धारा 196 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत आरोपी ईश्वरलाल खत्री के विरुद्ध धारा 295 A भारतीय दण्ड संहिता एवं अन्य अपराध जो अभियुक्त के विरुद्ध पाए जाए-सक्षम न्यायालय में अभियोग पेश करने की अभियोजन स्वीकृति प्रदान की (उदाहरण स्वरूप संकलित ) 8. उपखण्ड मजिस्ट्रेट, सिरोही द्वारा जारी आदेश क्रमांक 99/1199, दिनांक 30.12.1999 जिसमें सशर्त अनूप मण्डल के अनुयायी को सत्संग करने की स्वीकृति दी गई ( उदाहरण स्वरूप संकलित ) 53 54 55 56 62 67 74 82 83 Page #59 --------------------------------------------------------------------------  Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्कालीन सिरोही राज्य में 1. मई 1920 में अनूप स्वामी के भाविक महाराजा सिरोही के दर्शन करने के लिए सिरोही पैलेस में आए मगर महाराजा ने जैन धर्मावम्बियों के विरुद्ध की जा रही अपराधिक गतिविधियों के कारण इनसे मिलने से इनकार कर दिया एवं इनकी मांग को मूर्खतापूर्ण (Silly) समझ कर पैलेस से निकाल दिया। (निर्णय फौजदारी केस सं. 339/1919-20 दिनांक 30 जून 1920 पेरा सं. 3 से उद्धृत) 2. अनूप मण्डल के भाविकों के विरुद्ध मुकदमा सं. 339/1919-20 में मुल्जिम सुथार जैसा पुत्र सांकला व अन्य सात भाविकों को 30.6.26 को सजा सुनाई गई। 3. 9.2.26 को निम्न विज्ञप्ति जारी कर अनूप मण्डल का समस्त साहित्य जब्त करने के आदेश दिए। इसी आशय की विज्ञप्ति पुनः 11.3.26 को जारी की गई। इश्तहार मेहकमा चीफ कोर्ट राज सिरोही सील चीफ कोर्ट सिरोही स्टेट ता. 9 फरवरी सन् 1926 ई., जो कि सन् 1920 ई. के साधु अनोपदास के करीब 1500 चेलों ने सिरोही इलाके में बनियों के साथ ही बहुत सी सख्तियें की और मारपीट की थी, जिस पर 65 आगेवान पंथ वालों को सजायें हुई थी और जगत हिकारनी किताब जिस पर बनियों की बुराइयां छपी हुई थी वो जब्त की गई। सजायाफ्ता पंथ वालों ने सजा भुगत कर छूटने पर खास सिरोही में और इलाकों में जगह वो जगह मकानात बनाए और उन्होंने फिर पहले के माफिक ही 'जगत हितकारणी' के अलावा 'न्याय चिन्तामणी', जिसमें 'आतम पुराण' भी शामिल है छपवाई और 'अनोपदास के मेले का इतिहास' भी छपवाया इनमें 'जगत हितकारणी' से भी ज्यादा बुरे लफ्ज बनियों के खिलाफ दर्ज है। यह किताबें अनोपदासजी के पंथ वाले पढ़कर व गाकर आम लोगों को सुनाते हैं इससे रंजिश बढ़कर पहले माफिक बावेला होने का पूरा अंदेशा है। हमने आठ सख्शों को जो इन किताबों को छपवाने में शामिल थे, हस्ब दफा 153 अलीफ ताजीराते हिन्द की सख्त कैद की सजा दी है और यह भी मुनासिब मालूम होता है कि किसी के पास कोई किताबों में से कोई हो, सब जब्त की जावे और हर खास व आम को सख्त तवजोह दी जावें की ऐसे भजन, गीत या लब्ज न गावें और न बोलें जिसमें किसी कौम की बुराई हो, वरना सजा पावेंगे। हुकम हुआ के बजरिए इस तहरीर हाजा हर खास व आम को इत्तला दी जाती है कि जिस किसी के कब्जे में जगत हित कारणी, न्याय चिन्तामणी, आतम पुराण, अनोपदास के मेले का इतिहास, हो वो तारीख एक अप्रेल 1926 ई. के पहले नजदीक की पुलिस या तहसील में पेश कर दें और आयन्दा कोई लब्ज, गीत, भजन न बोलें और न गावें जिसमें किसी मकाम की बुराई हो, वरना सजा पावेंगे। अफसरान पुलिस को, ठिकानेजात को चाहिए कि किताबें जब्त कर अदालत हाजा में भेज दें और अनोप पंथ की झुपड़ियों पर भी इश्तहार शाया कर देवें और इसकी तामील में गफलत न रखें। एक-एक नकल तमाम तेहसील व मेहकमेजात में इतलान भेजी जावें। फकत तारीख 9 फरवरी सन ह.सी.पी. देसाई, बी.ए., एल.एल.बी., चीफ जज, सिरोही स्टेट +534 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इश्तहार मेहकमा चीफ कोर्ट राज सिरोही सील चीफ कोर्ट सिरोही स्टेट नम्बर : 53 ता. 11 मार्च सन् 1926 ई. बहवाले इश्तहार साबीका मवरखा 9.2.26 खास व आम को इत्तला दी जाती है कि साधु अनौपदास के पंथ वाले (1) सुथार जैसा साकिन सिरोही (2) राजपूत केसरीसिंह वीरवाड़ा (3) राजपूत अजेतसिंह सनावड़ा (4) माली हेमला अरठवाड़ा (5) कुम्हार सांकला (6) लुहार नोपा वीरवाड़ा (7) माली पूनमा सिरोही (8) कुम्हार जवा रोहिड़ा को मेहकमे हाजा से बजुर्म दफा 153 अलीफ ताजीराते हिन्द जो सजा कैद दी गई थी वो कुछ अरसा तक उन लोगों ने कैद भुगत कर एक अरजी मेहकमे खास में पेश की और ऐसा मुचलका भी तहरीर कर दिया कि जो किताबें महाजनों के खिलाफ उनके पास होगी वा तमाम एक अप्रेल तक लाकर राज में पेश कर देवेंगे, आयन्दा फिर कभी ऐसी किताब नहीं छपवाएंगे, न महाजनों को बेजा गाली देवेंगे या गीत, भजन गाएंगे और न ही कोई ऐसी हरकत करेंगे कि जिससे महाजनान के दिल को रंज पहुंचे। आयन्दा कभी किसी को इस पंथ का उपदेश नहीं देंगे न कभी कोई मेला जमा करेंगे। अगर इसके खिलाफ अमल करें या करावें तो राज सख्त सजा करावें । मुचलका लिख देने से उनको नजरें परवरिश व रहम, कैद से रिहाई दी गई जिसके बाबत तमाम थानेजात पुलिस को अदालती इत्तला देना जरूरी है। हुकम हुआ के लिहाजा जरिये इश्तहार हाजा हर खास व आम को इत्तला दी जाती है कि जो कोइ सख्श ऊपर बयान किए हुए मुचलके के खिलाफ अमल करेगा व मुस्ताजीव सख्त सजा के होगा । पुलिस के मुलाजमान को चाहिए कि ऐसे लोगों पर खासकर ऊपर लिखे सजायाफ्ता लोगों पर पूरी निगरानी रखी जावें और अगर कोई मुचलके की शरायत के खिलाफ जावें बल्कि अगर ता. एक अप्रेल के बाद किसी के पास कोई किताब जिसमें महाजन की बुराई छपी हो बरामद हो तो उस सख्स का भी चालान किया जावें। एक-एक नकल तमाम अदालतान में गरज वकफीयत भेजी जावें । ह.सी.पी. देसाई, बी. ए., एल.एल.बी., चीफ जज, सिरोही स्टेट 14. सिरोही राज्य के गजट सं. 3 वोल्यूम 2 दिनांक 1 अक्टूबर 1940 के पृ. सं. 71 पर प्रकाशित निम्न आदेश द्वारा अनोप मण्डल का रजिस्ट्रेशन भी केन्सल कर दिया गया था। No. 1563-Read petition dated 11.8.40 from Suthar Jesa, President of Anoop Mandal, Sirohi Seeking permission for use of the proscribe and forfeited book "Jagat-Hitkarini" or in the alternative to order the cancellation of the Registration of the Mandal. Also read I.G.P.'s report No. 1487 dated 28-8-40 and Jesaji's further application dated 29.8.40 to the address of the I.G.P. ORDER As the use of the book 'Jagat-Hitakarani' cannot be allowed in contravention of the Judicial orders dated 5.2.26 and 11.3.26 of the Chief Judge's Courts, the Sadar Office memorandum No. 961 F.O. dated 19.4.40 registering the Mandal is hereby cnacelled as rquested by Petitioner. Sirohi, 8.9.40 54 Sd/- D.D. Kotwala For Chief Minister, Sirohi State. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Copy of Judgement dated 10.11.97 by Division Bench of Rajsthan High Court, Jodhpur in Writ No. 158/96 Sonaram Garasia V/s Chief Secretary Rajasthan and others including Collector & Distt. Magistrates. Hon. Mr. N.L. Tibrewal J Hon. Dr. B.S. Chauhan J By post Miss Famina Zai, Amicus Curaie. A letter written to the Hon. the Chief Justice, was treated as a writ petition as Public interest litigation. The applicants claim themselves to be the followers of "Anum Swami Maharaj". The main prayer made in the application is that direction be issued to the PublicAdministration not to issue un-reasonable restrictions as and when Fairs are organised by them. In our view, this petition is wholly misconceived. It is the duty of the District Administration to maintain law and order and see that compliance of orders passed under statutory rules or Act are obeyed by the public. No such direction can be given as claimed by the petitioners. Consequently, the petition is dismissed. 55 55+ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [Citation :2010(2)RLW1364(Raj.)] (Rajasthan High Court) Hon'ble Prakash Tatia, J. Hon'ble H.R. Panwar, J. Hon'ble Dinesh Maheshwari, J. Ishwar Lal Khatri Versus State of Rajasthan F.B. Criminal Misc. Application No. 1905 of 2009, decided on 09.02.2010 Cr.P.C., 1898, Sec. 99-A; Limitation Act, 1963, Sec. 3; Penal Code, Secs. 153A and 295 - Bar of limitation-Whether only a technical matter or it is a policy in the interest of public-Court power to condone the delay-Publication work-intention to outrage religious feelings-In exercise of powers u/S. 99-A Cr.P.C. State Govt. forfeited the same Challanged after 45 years-Submitted no application u/S. 5 for condonation of delayHeld-The oblect of law of limitation is to prevent disturbance or deprivation of what may have been acquired in equity and Justice by long enjoyment or what may have been lost by a party own in-action, negligence or laches-Now after 6 years from filing of this petition cannot be granted time to file application u/S. 5 for condonation of delay for want to bonafides. (Paras 12 to 16) Petition dismissed. दं.प्र.सं.ए 1898ए धारा 99-ए; परिसीमा अधिनियमए 1963; दण्ड संहिता, धारा 153-ए व 295-परिसीमा का वर्जन-क्या यह केवल तक तकनिकी मामला है ......... एक नीति है-विलम्ब माफी की न्यायालय की शक्ति-प्रकाशन कार्य-धार्मिक भावनाएं आहत करने का आशय-राज्य सरकार ने दं.प्र.सं. की धारा 99-क का प्रयोग करते हुए उसे उसे जब्त किया-45 वर्ष पश्चात् चुनोति दी-विलम्ब माफी हेतु धारा 5 के तहत कोई आवेदन पत्र प्रस्तुत नहीं किया-अभिनिर्धारित-परिसीमा विधि का उद्देश्य है उस व्यवधान या हानि को रोकना है जो दीर्घ उपभोग से न्याय और साभ्या में हासिल की जा सकती है या जो स्वयं पक्ष्कार की निष्क्रियता, उपेक्षा या गफलत से खोई जा सकती है-अब इस याचिका के दायर करने के करीब छ: वन पश्चात् सद्भावना के अभाव में विलम्ब माफी हेतु धारा 5 के तहत आवेदन दायर करने हेतु समय प्रदान नहीं किया जा सकता। (पद संख्या 12 से 16) याचिका खारिज की। Case Law Referred (Para No.) Maqbul Ahmed & Ors. vs. Onkar Pratap Narain Singh & ors. (AIR 1935 +564 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 16 Privy Council 85) Rajendra Singh & ors. vs. Snata Singh & Ors. (AIR 1973 SC 2537) Azizul Haq Kausar Naquvi & Anr. vs. The State (1980 Cr.L.J. 448) Singhraj Damodar Rupawate & Ors. vs. Nitin Gadre & ors. (2007 Cr.L.J. 3860) 16 Advocates Appeared Vijay Purohit, for Petitioner, B.K. Mehar, Public Prosecutor Hon'ble TATIA, J. - Heard learned for the petitioner. 2. The State Government by exercising power under Section 99A of the Criminal Procedure Code, 1908 (sic 1898) (which was in force at relevant time) forfeited two publications namely, 'Jagat Hitkarini' and 'Atm Puran' after opinion that the said publications (books) are intended to promote the feelings and hatred in different classes of citizen of India and are berately and maliciously intended to outrage religious feelings of the Jain (Bania) community by insulting the religion and the religious of that class and the publication of work punishable under Section 153A and 295 of Indian Penal Code. To give effect to the intention of the State Government to forfeit the said publication (books) a notification was published in gazette of the Rajasthan dated 5.8.1957, copy of which has been placed on record by the petitioner. 3. The peritioner has challenged the said notification dated 5.8.1957 after about 45 years for the date of the said notification, whereas as per Section 99A which was in force at time of publication of notification dated 5.8.1957 as well as under sub-section (1) of Section 96 of the Code of Criminal Procedure (which is in force now), the period of limitation for challenge to such notification is two months from the date of publication of notification in official gazette. The petitioner was well aware that period of limitation is two months olny and the petitioner took a plea that prescribing period of limitation of two months for challenge to said notification in Section 96(1) Cr.P.C., 1973 is arbitrary and unreasonable and violative of Article 14 of the Constitution of India and submitted this petition without any application for condonation of delay under Section 5 of the Limitation Act for condoning the delay of about 45 years. 4. To meet with the objection of the bar of limitation, learned counsel for the petitioner submitted that the Court may look into the broader aspect and may ignore the period of limitation prescribed in sub-section (1) of Section 96 the Code of Criminal Procedure, 1973. Learned counsel for the petitioner though took this plea but could not substaniate it by his own arguments nor with the help of any precedent on this point. 5. We may observed here that it is not necessary that every new plea based on the point of law must find support from judicial precedent, but if entirely new plea is taken in arguments then there must be some reasons and justification for the new plea which may 57 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ find support from law express or may have been implied support of law or at least must stand to logic. However, learned counsel for the petitioner frankly stated that he has nothing more than to state that court may look into broader aspect of freedom of speech, expression and right to trade protected by law and because of issue involved in this petition the period of limitation prescribed by law may be ignored. 6. It will be beneficial to quote sub-section (1) of Section 3 of the Indian Limitation Act, 1963: "3. Bar of limitation: (1) Subject to the provisions contained in Sections 4 to 24 (inclusive), every suit instituted, appeal preferred, and application made after the prescribed period shall be dismissed, although limitation has not been set up as a defense." 7. Sub-section (1) of Section 3 of the Indian Limitation Act, 1963 mandates that if the suit, appeal or application is submitted after prescribed period of limitation then such suit, appeal of application, as the case may be, is required to be dismissed even when objection of period of limitation has not been set up as defence. The Hon'ble Privy Council in the case of Maqbul Ahmed & ors. vs. Onkar Pratap Narain Singh & Ors. reported in AIR 1935 Privy Council 85 considered the issue whether any judicial decision would enable the court to relieve the parties from the operation of the Limitation Act. The Hon'ble Privy Council held as under: "....In their Lordships' opinion it is impossible to hold that in a matter which is governed by Act, and Act which is some limited respects given the Court a statutory discretion, there can be implied in the Court, outside the limits of the Act, a general discretion to dispense with its provisions. It is to be noted that this view is supported by the fact that 5.3 of the Act is peremptory and that the duty of the Court is to notice the Act and give effect to it, even though it is not referred to in the pleadings." 8. Therefore, the law based on public policy as well as the judgment on the point referred above is just opposite to the argument advanced by learned counsel for the petitioner and it is clear that no court has power to ignore the law. We are also of the same view and hold that no court has power to ignore the law and, therefore, the petitioner cannot succeed with the help of the said plea, may it has been taken by projecting that the larger interest is involved and, therefore, the period of limitation may be ignored. 9. Learned counsel for the petitioner submitted that objection of bar of limitation is an objection of techincal nature and, therefore, also, this Court may ignore the bar of limitation. 10. The question whether bar created by Limitation Act is a only technical matter or it is a policy in the interest of public, came up for consideration before Hon'ble the Supreme Court in the case of Rajendra Singh and others vs. Santa Singh & Ors. (AIR 1973 SC 2537). The Hon'ble Supreme Court in Rajendra Singh's case (supra) considered 58 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ the Halsbury's Laws of England Vol. 24 p. 181 (Para 330), in para No. 17 of the judgment which is very relevant and hence quoted here:- - "330. Policy of Limitation Acts. The Courts have expressed at least three differing reasons supporting the existence of statutes ot limitation namely, (1) that long dormant claims have more of cruelty than justice in them, (2) that a defendant might have lost the evidence to disprove a stale claim, and (3) that persons with good causes of actions should pursue them with reasonable diligence." Then Hon'ble Supreme Court held that:"The objcet of the law of limitation is to prevent disturbance or deprivation of what may have been acquired in equity and justice by long enjoyment or what may have been lost by a party's own inaction, negligence or laches." 11. Therefore, the petition of the petitioner cannot be entertained by treating bar of limitation to be an objection of technical nature. 12. Some times, question of bar of limitation and court's power to condone the delay are so mixed up that inference is drawn that plea (objection) of bar of limitation is in the nature of a technical objection. In fact, order of condoning of delay even by taking liberal view also recognizes the proposition of law that the court cannot ignore the period of limitation for an action and Court in appropriate case condones the delay so as to extend the period of limitation and will not ignore the law of limitation. No law provides nor there can be any justification for any court of law to reach to the conclusion that petition, suit or appeal has been presented beyond the period of limitation yet it can be entertained without condonation of delay. Prescribing of period of limitation for seeking relief from courts, is a policy in the interest of public so that the public at large may presume with certainty that there is no more any dispute in relation to the subject matter. Ifbar of limitation is treated as mere technical objection then the consequence will be grave, as there will be no certainty. As observed in Halsbury's Laws of Englad, that long dormant claims have more of cruelty than justice in them. Hon'ble the Supreme Court in the judgment of Rajendra Singh's case (supra) clearly held that the object of the law of limitation is to prevent disturbance or deprivation of what may have been aquired in equity and justice by long enjoyment or what may have been lost by a party's own inaction, negligence or laches. 13. As stated above, condonation of delay in appropriate cases is also a well recongnised policy in the interest of public. There may be persons who are not negligent and who may have been for valid reason, prevented by sufficient cause fo not taking action in time, then those bona fide persons may not suffer therefore, the Limitation Act provided reliefs to those bona fide perons governing almost all possible situation by enacting Section 4 to 24 of the Indian Limitation Act. It is true while interpreting issue of condonation of delay, it has been observed in number of cases that technicalities of law if are pitted against 59 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ the justice then justice shoould prevail. This proposition is confused to the extent as has been done in this case when plea has been raised that where larger interest is involved, the court may ignore the statutory period of limitation even in a case where the petitioner challenged the action of the respondents after 45 years in a case where preiod of limitation is only 2 months and consciously and knowing, did not disclose any material facts in the petition like any cause for condonation of delay. At this juncture, it will be worthwhile to mention here that the period of 2 month's allowed by the statute for challenge to the said notification are in force since last more than 100 years as it was provided under the Code of Criminal Procedure, 1898 and kept and continued by the Code of Criminal Procedure, 1973, which is in force now. If the pleas raised by the learned counsel for the petitioner is accepted than the Court is required to look into the merit first and then to the period of limitation, which would be in violation to statutory prohibition created by Section 3 of Limitation Act, 1963. In our humble opinion, this type of proposition may cause more harm to justice and to the public and can result into chaotic situation as no one will be safe even when he has enjoyed the right and property since decades and centurie as in this case, almost delay of half century is sought to be ignored. In view of specific mandatory statutory provisions of law in Section 3 of Limitation Act, 1963 and in view of the reason given in the judgments referred above, we are unable to do so. 14. With above plea to ignore the law or ignore the period of limitation as being objection of technical nature learned counsel for the petitioner in alternative submitted that petitioner may be permitted to now submit an application under Section 5 of the Limitation Act for condoning the delay. 15. The petitioner knew it well from the time he submitted present petition before this Court that the period of limitation for filing this petition is two months from the date of publication of the notification in gazette which is under challenge. The petitioner also knew it well that limitation expired decades ago before filing this petition. The petitioner did not chose to submit any application for condonation of delay under Section 5 of the Limitation Act, when he submitted the petition. The petitioner then did not submit any application for condonation of delay in last six years by now. The petitioner though took the plea in the petition itself that period of limitation prescribed in Section 96(1) Cr.P.C. of two months is arbitrary and ultra vires did not seek any relief in the present petition for declaring part of Section 96(1) as ultra vires obviously for the reasons that the petitioner was knowing it well that he cannot claim such relief in petition under Section 96 Cr.P.C. Therefore, it is not a case where the petitioner mislead by some mistake, but he did not choose to file any application for condonation of delay intentionally and voluntarily. 16. The petitioner's prayer that he may be permitted to file application under Section 5 of the Limitation Act cannot be entertained in view of the conduct of the petitioner. Firstly, the petitioner failed to explain when he was knowing it well that there is delay of 60+ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ more than 45 years in filing the petition, why did not file the application of condonation of delay with the petition itself. Secondly petitioner has sought time of file application under Section 5 of the Limitation Act after 6 years from the filling of this petition and learned counsel could not give any explanation for not filling application for condination of delay in lat 6 years. Lame excuse submitted for it is that since this petition was not listed before the Bench, therefore, the petitioner did not submit the application under Section 5 of the Limitation Act. The plea deserves to be rejected as plea has no bonafides in it. This matter was listed in court on 18th July, 2003 also and at that time neither the petitioner submitted application under Section 5 of the Limitation Act nor the petitioner sought time for filing application under Section 5 of the Limitation Act and after 6 years when matter was taken up for consideration by the Special Bench constituted for hearing the petition of the petitioner, then only, the learned counsel for the petitioner prayed for time which is not a bonafide request in view of the facts referred above in detail. The Hon'ble Spureme Court in the case delivered in Azizul Haq Kausar Naquvi & Anr. vs. The State reported in 1980 Cri. Law Journal 448 as relied upon by learned counsel for the petitioner held that Section 29(2) of the Limitation Act of 1963 lays down that Section 4 and 24 of the Limitation Act would apply even in the case of a special or local laws, unless their application in expressly excluded by such special or local law. The result, therefore, is that while under the Limitation Act of 1908 the High Court would have been incapable of extending the period of limitation by having recourse to the provisions of Section 5 of the Limitation Act, 1963 position now is totally different and period of limitation prescribed under Section 96(1) of the Code of Criminmal Procedure can now be extended by the High Court in an appropriate case. The position of law was settled by the Hon'ble Supreme Court as back as in the year 1980 that the court has power to extend the period of limitation under Section 5 of the Limitation Act, yet the petitioner did not choose to file any application under Section 5 of the Limitation Act for condoning of delay of about 45 years and further did not choose to file application under Section 5 of the Limitation Act since last 6 years i.e., after filing of this petition before this Court. In the facts of this case, this case cannot be said to be appropriate case wherein the delay can be condoned by exercising powers under Section 5 of the Limitation Act. Learned counsel for the petitioner also relied upon the judgment of the Full Bench delivered in the case of Sanghraj Damodar Rupawate & Ors. vs. Nitin Gadre & Ors. reported in 2007 Cri. Law Journal 3860 in support of his plea that petitioner has locus be informed, which entitles the petitioner to read, use and publish the forfeited publications, but this issue is irrelevant because of the reason that question of locus standi comes later on and the petitioner required to satisfy the court that the petition filed by the petitioner is well in time. Therefore, these judgment's are of no help to the petitioner in any manner. 17. In view of the reasons mentioned above, the present petition is dismissed as has been filed after inordinate delay of about 45 years. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायालय सिविल न्यायाधीश (कनिष्ठ खंड) एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग-सांचोर पीठासीन अधिकारी . ज्ञान प्रकाश गुप्ता, आर.जे.एस. ज्ञान प्रकाश गुप्ता, जार (रा.न्या.से.) आपराधिक प्रकरण संख्या-38/96 अभियोगीराजस्थान राज्य, जरिये सहायक लोक अभियोजक द्वितीय, सांचोर विरुद्ध अभियुक्त1. ईश्वरलाल वल्द श्री कालूराम, जाति-खत्री, निवासी-सांचोर सम्पादक, सत्यपुर टाईम्स, साप्ताहिक, सांचोर अपराध अन्तर्गत धारा 295 ए भारतीय दंड संहिता उपस्थितिश्री उम्मेदसिंह चारण, सहायक लोक अभियोजक श्री बन्नेसिंह गोहिल, अधिवक्ता, अभियुक्त दिनांक, 20 मई, 1998 - निर्णय - .' प्रस्तुत प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है, कि फरियादी लक्ष्मीचंद ने पुलिस थाना, सांचोर पर उपस्थित होकर दिनांक 25.5.94 को एक प्राथमिकी इस आशय की दर्ज करवाई कि मुस्तगीस जैन धर्म का अनुयायी है तथा मुलजिम ईश्वरलाल पत्र 'सत्यपुर टाईम्स' का सम्पादक है जो अपने आप को अनोप मण्डल का सदस्य बतलाता है। दिनांक 15.2.94 को प्रकाशित अपने समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स के अंक संख्या 42 में जैन बनियों की राक्षसों से तुलना की गई। अंक 43 दिनांक 22.2.94 में मुलजिम ने जैन महाजनान की तुलना रावण, हिरणकुश, कंस व कांसन से की तथा जैन धर्म के कट्टर विरोधी अनोप स्वामी द्वारा जगत हितकारीणी, हरचंद सोनी द्वारा प्रकाशित चिंतामणी, आत्मपुराण के अंशों को प्रकाशित कर जैन धर्मावलम्बियों के प्रति भयंकर दुष्प्रचार किया, जबकि उक्त पुस्तकें राज्य सरकार ने प्रतिबंधित कर रखी है। अंक संख्या 18 दिनांक 24.5.94 में भी घृणित प्रसार किया। इस प्रकार मुलजिम ने जैन " धर्म के प्रति दुष्प्रचार कर साम्प्रदायिक सद्भावना को गहरी ठेस पहुंचाई इत्यादि। उक्त रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर मामले में तफतीश की और बाद तफतीश अभियक्त के विरुद्ध यह अभियोग पत्र अन्तर्गत धारा 153ए व 295ए भा.दं.सं. में न्यायालय में पेश किया। अभियुक्त को आरोप अन्तर्गत धारा 153ए भा.दं.सं. से न्यायालय द्वारा उन्मोचित किया गया तथा उसे धारा 295ए भा.दं.सं. का आरोप अलग से विरचित कर सुनाया और समझाया तो उसने अपराध करना Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्वीकार कर मामले में अन्वीक्षा चाही। अन्वीक्षा के दौरान अभियोजन ने अपने मामले के समर्थन में गवाह पी.ड. 1 लक्ष्मीचंदए पी.ड. 2 गौतम भास्कर, पी.ड. 3 डा. मोहनलाल डोसी, पी.ड. 4 जसवंतसिंह के बयान लेखबद्ध करवाये। तत्पश्चात् अभियोजन ने शहादत पैरवी बंद की। अभियुक्त के बयान मुलजिम अन्तर्गत धारा 313 दंड प्रक्रिया संहिता में लिये गये। बरीयत पेश करने हेतु समय चाहा, परन्तु अभियुक्त ने किसी गवाह के बयान लेखबद्ध नहीं करवाये। बरीयत बंद की। बहस अंतिम सुनी गई। मेरे समक्ष इस प्रकरण में विचारणीय प्रश्न है, कि : (1) क्या मुलजिम ने जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए तथा उनके धार्मिक विश्वासों का अपमान करने की नियत से अपने समाचार पत्र 'सत्यपुर टाईम्स' साप्ताहिक के दिनांक 7.3.94,27.12.93 व 25.5.94 के समाचार पत्रों में प्रतिबंधित ग्रन्थ जगतहितकारीणी व आत्मपुराण ग्रंथों की बातें तथा अन्य बातें छापकर जैन धर्म के धार्मिक विश्वासों का अपमान किया और इस प्रकार धारा 295ए भा.दं.सं. में दंडनीय अपराध कारित किया? इस प्रकरण में गवाहों का विस्तृत विवरण आवश्यक नहीं है, क्योंकि यह प्रकरण मूलतः दस्तावेजों पर आधारित है। सबसे पहले यह देखा जाना उचित है कि क्या मुलजिम ने अपने समाचार पत्र में ऐसी बातें प्रकाशित की, जो जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं पर आहत करती है। इस संबंध में फरियादी पी.ड. 1 लक्ष्मीचंद का कहना है, कि उन्होंने प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 थाना, सांचोर में पेश की थी, क्योंकि मुलजिम ईश्वरलाल ने अपने पत्र 'सत्यपुर टाईम्स' साप्ताहिक के विभिन्न अंकों में जैन आदमियों और जैन साधुओं पर अखबार के माध्यम से कीचड़ उछाला तथा जैनों की तुलना रावण, हरणाकुस, कंस व कांसन आदि से की गई तथा शिवलिंग की पूजा को भी व्यभिचार बताया। इससे जैन धर्म में घृणा का वातावरण पैदा हुआ है। इसके अतिरिक्त मुलजिम ने अपने अखबार के अंक दिनांक 15.2.94, 22.2.94 तथा 25.5.94 के अंकों में हरचंद सोनी रचित आत्मपुराण तथा अनोप दास स्वामी रचित जगतहितकारीणी ग्रन्थों के कथनों को उद्धृत किया है, जबकि उक्त दोनों ग्रन्थ गृह विभाग के आदेश दिनांक 5.1.97 द्वारा प्रतिबंधित है। इस बयानों की पुष्टि पी.ड. 3 डा. मोहनलाल डोसी भी करते हैं, जिनका कहना है, कि मुलजिम ईश्वरलाल, सत्यपुर टाईम्स अखबार निकालता है। इसने अनोपदास महाराज के माध्यम से जैनों के प्रति बहुत ही घृणित व साम्प्रदायिक भावना फैलाने वाले समाचार छापे हैं। इन दोनों गवाहों के बयानों की पुनः पुष्टि प्रथम सचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 तथा सत्यपर टाईम्स के अंक संख्या 6 दिनांक 7.3.94 प्रदर्श पी-3, प्रदर्श पी-4 दिनांक 25.5.94 अंक संख्या 18 से भी होती है। इन दोनों समाचार पत्रों प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4 में स्पष्ट रूप से सम्पादक ने लिखा है, कि जगतहितकारीणी में अनोपदास जी ने यह कहा है और आत्मपुराण में हरचंद सोनी ने यह कहा है अर्थात् प्रदर्श पी-3 में उक्त दोनों ग्रन्थों आत्मपुराण व जगतहितकारीणी को उद्धत किया है। इसी प्रकार प्रदर्श पी-4 में भी जगतहितकारीणी को उद्धत किया है तथा उसमें अपना विवेचन भी मुलजिम द्वारा दिया गया है। उक्त दोनों प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4 को --631 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढ़ने से यह स्पष्ट होता है, कि इन समाचार पत्रों में जो बातें लिखी गई हैं वो स्पष्ट रूप से जैन धर्म की भावनाओं को आहत करने वाली है। जैसे कि प्रदर्श पी-3 दिनांक 7.3.94 के अंक में लिखा है, कि जैन धर्म के टीपणे राक्षस विद्या के है.. .ये सौदागर महाजनान ने जालसाजी करके राक्षसी पाप के टीपणे बना ....... दिये हैं तथा ब्राह्मणों को पकड़ा दिये हैं। इसी प्रकार सोनी हरचंद रचित आत्मपुराण के अंश में भी यह लिखा गया है, कि सभी बनिये (जैन) चोर है इत्यादि । इसी प्रकार प्रदर्श पी-4 दिनांक 24.4.94 के अंक जगतहितकारीणी ग्रन्थ का विवेचन करते हुए लिखा गया है, कि जैन समाज अपने धन बल के माध्यम से अपने जादू टोने-टोटके इत्यादि इन्द्रजाली क्रियाओं से भाविकों को परेशान करते रहते हैं...... इन्द्रजाल द्वारा बुद्धि भ्रष्ट करके लोगों को नेकी से हटाना तथा उन्हें तकलीफें देना जैन बनियों का मुख्य कार्य है। 84 का चक्कर बना रखा है जो इन जैन बनियों का बनाया हुआ है...... जैन धर्म के समस्त गुप्त ग्रन्थों को सार्वजनिक किया जाये, यदि ग्रन्थ सार्वजनिक नहीं किये जाते हें तो यह माना जाये कि जैन बनिये पूरे संसार के गुनहगार है इत्यादि । इन सभी अंकों के पढ़ने मात्र से जैन समाज जैसे अहिंसा को मानने वाले समाज के प्रति निश्चय ही किसी भी पढ़ने वाले व्यक्ति की जैन धर्म के प्रति गलत भावनाएं बनती हैं तथा इनको पढ़ने मात्र से ही किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म के प्रति आहत 'जाना स्वाभाविक है। अतः स्पष्टतः यही प्रतीत होता है, कि ये समस्त बातें जैन धर्म की समूह की भावनाओं को निसंदेह आहत करती है। विभिन्न गवाहों से प्रतिपरीक्षा में बचाव पक्ष द्वारा इस प्रकार के प्रश्न पूछे गये हैं, जैसे बचाव पक्ष यह कहना चाहता हो कि जो उन्होंने छापा है, वो सत्य है। यदि मुलजिम ने जो कुछ छापा है, तो यदि सत्य है तो भी सत्य को भी इस तरह से नहीं छापा जा सकता है, कि किसी धर्म के धार्मिक भावनाएं आहत हो। इस प्रकार उक्त विवेचन से यह सिद्ध होता है, कि मुलजिम ईश्वरलाल ने अपने अंक दिनांक 7.3.94 व 25. 5.94 में जो सामग्री छापी है, वो जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली है। 2. पी. ड. 1 फरियादी लक्ष्मीचंद का यह भी कहना है, कि मुलजिम ईश्वरलाल ने अपने समाचार पत्र में जगतहितकारीणी इत्यादि ग्रन्थों को छापा है जो कि राज्य सरकार के आदेश से प्रतिबंधित है। उक्त पुस्तकों को प्रतिबंधित करने पर नोटिफिकेशन प्रदर्श पी-7 है ( बयानों के वक्त नोटिफिकेशन की फोटो प्रति ही फरियादी ने पेश की, परन्तु बाद में दिनांक 27.2.97 को असल नोटिफिकेशन व नकल पेश कर दिया था) तथा फरियादी का कहना है, कि उक्त दोनों पुस्तकें प्रतिबंधित है तथा मुलजिम ने प्रतिबंधित सामग्री को अपने समाचार पत्र में छापा है। इस संबंध में यह तो पहले ही सिद्ध हो चुका है, कि मुलजिम ने अपने समाचार पत्र में अनोपदास रचित जगतहितकारीणी व सोनी हरचंद रचित आत्मपुराण के अंश अपने अखबार में प्रकाशित किये हैं। प्रदर्श पी-6 गृह विभाग राजस्थान सरकार के नोटिफिकेशन जो कि दिनांक 29.8.57 के राजस्थान राज पत्र के पृष्ठ संख्या 270 पर उक्त नोटिफिकेशन छापा है, जो नोटिफिकेशन संख्या एफ/25 (9) बी एच / 56 दिनांक 5.8.57 द्वारा उक्त दोनों पुस्तकों को प्रतिबंधित किया जा चुका है तथा उक्त आदेश में स्पष्टतः बताया गया है, कि इस पुस्तकों को छापना धारा 153ए व 295ए भा.दं.सं. में..... अपराध होगा। इस नोटिफिकेशन के जवाब में बचाव पक्ष का कहना है, कि उन्होंने जिन पुस्तकों को उद्धृत किया है वे दोनों पुस्तकें केन्द्र सरकार के कोपी राइट विभाग द्वारा रजिस्ट्रेशन की अनुमति प्रदर्श डी-2 व पदर्श डी-3 के पश्चात् ही छापा गया है। मैं बचाव के इन तर्कों से सहमत हूं कि 64 + Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्त दोनों पुस्तकों को कोपी राईट विभाग ने प्रदर्श डी-2 व प्रदर्श डी-3 के जरिये कोपी राईट की अनुमति दे रखी है। परन्तु किसी भी स्थिति में किसी पुस्तक पर कोपी राईट मिलने मात्र से यह नहीं माना जा सकता है कि उसमें छपी हुई सामग्री प्रतिबंधित होने योग्य है या नहीं। अर्थात् कोपी राईट विभाग के उक्त दोनों आदेश गृह विभाग राजस्थान सरकार के आदेश दिनांक 5.8.57 पर प्रभावी नहीं माने जा सकते हैं। और वो भी ऐसी स्थिति में जबकि अभियोजन द्वारा राजस्थान सरकार के गृह विभाग के उप शासन सचिव (विधि) के दिनांक 21.12.95 के आदेश प्रदर्श पी-5 के जरिये धारा 196 सी.आर.पी.सी. के तहत आवश्यक अभियोजन स्वीकृति हासिल कर ली है। अतः इस प्रकार बचाव पक्ष का बचाव पूरी तरह से अमान्य हो जाता है। अत: यही सिद्ध होता है, कि मुलजिम ने अपने समाचार पत्र में जगतहितकारीणी व आत्मपुराण पुस्तकों को उद्धृत किया, जबकि दोनों पुस्तकें गृह विभाग राजस्थान सरकार द्वारा प्रतिबंधित थी। स्पष्टतः उक्त प्रतिबंधित पुस्तकों को छापना भी धारा 295ए भा.दं.सं. के अपराध में आता है। 3. बचाव पक्ष ने मुख्य बचाव यह लिया है, कि फरियादी लक्ष्मीचंद और मुलजिम के पुरानी कोई अदावत थी और उसके कारण फरियादी ने यह झूठा मुकदमा दर्ज करवाया है। हालांकि इस प्रकार की कोई अदावती पत्रावली में किसी दस्तावेज से स्पष्ट नहीं होती है और यदि ऐसी कोई अदावती हो तो भी जबकि अन्य तरीके से मुलजिम पर अपराध सिद्ध हो चुके हैं तो यह मानने का कोई आधार नहीं है, कि रंजिश के कारण फरियादी ने झूठा मुकदमा दर्ज करवाया है। 4. बचाव पक्ष का यह भी कहना है, कि अभियोजन दिनांक 27.12.93 के अंक को साक्ष्य में पेश नहीं कर पाया है। यह ठीक है, कि इस अंक को अभियोजन ने साक्ष्य में पेश नहीं किया है, परन्तु इस संबंध में पी.ड. 1 फरियादी लक्ष्मीचंद का कहना है, कि दिनांक 27.12.93 की प्रति अनुसंधान के दौरान गायब हो गई थी। परन्तु केवल एक अंक के गायब होने से अभियोजन की कहानी पर कोई घातक प्रभाव नहीं पड़ता है। ____5. अतः इस प्रकार उक्त विवेचन से अभियोजन ने पूरी तरह से सिद्ध कर दिया हे, कि मुलजिम ने अपने समाचार पत्र में प्रतिबंधित जगतहितकारीणी व आत्मपुराण के अंशों को छापा तथा इसके अतिरिक्त भी उक्त पुस्तकों के विवेचन से जो बातें छापी वो भी जैन समुदाय के धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली है। अतः इस प्रकार मुलजिम धारा 295ए भा.दं.सं. में दोष सिद्ध होने योग्य है। - आदेश - अतः मुलजिम ईश्वरलाल वल्द कालूराम, कोम-खत्री, निवासी-सांचोर, सम्पादक 'सत्यपुर टाईम्स' साप्ताहिक, सांचोर को आरोपित अपराध अन्तर्गत धारा 295ए भारतीय दंड संहिता में दंडनीय अपराध करने का दोष सिद्ध करार दिया जाता है। (ज्ञान प्रकाश गुप्ता) सिविल जज (कनिष्ठ खंड) एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग-सांचोर 4651 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सजा के प्रश्न पर मुलजिम को सजा के प्रश्न पर सुना गया। मुलजिम का कहना है, कि यह उसका प्रथम अपराध है। अत: उसे परिवीक्षा अधिनियम का लाभ दे कर छोड़ा जावे। प्रकरण की परिस्थितियों को देखते हुए मैं मुलजिम को परिवीक्षा का लाभ देना उचित नहीं समझता हूं। मुलजिम का अपराध जनाक्रोश भड़काने वाला है तथा अपने केवल तुच्छ परिणामों के लिए मुलजिम ने सम्पूर्ण जैन समुदाय के धार्मिक भावनाओं को भड़काने का कार्य किया है जो अक्षम्य है। प्रकाशित समाचार पत्रों की प्रकृति देखने मात्र से ऐसा प्रतीत होता है, कि मुलजिम का उद्देश्य अखबार का प्रकाशन करना नहीं है, बल्कि समाज के व्यक्ति या वर्ग विशेष के विरुद्ध भावनाएं भड़काना है। अत: मुलजिम के कृत्य को देखते हुए मैं मुलजिम के प्रति कोई नरमी का रुख अपनाना उचित नहीं समझता हूं। तथा उसे सख्त से सख्त सजा दिया जाना उचित समझता हूं। - आदेश - अतः मुलजिम ईश्वरलाल वल्द कालूराम, कौम-खत्री, निवासी-सांचोर, सम्पादक सत्यपुर टाईम्सय, साप्ताहिक, सांचोर को धारा 295ए भा.दं.सं. में दंडनीय अपराध करने के लिए 3 साल के कठोर कारावास तथा रुपये 5000/- जुर्माना से दंडित किया जाता है, अदम अदायगी जुर्माना अभियुक्त 6 माह का साधारण कारावास और भुगतेगा। (ज्ञान प्रकाश गुप्ता) सिविल जज (कनिष्ठ खंड) एवं न्यायिक ___ मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग-सांचोर निर्णय आज दिनांक 20 मई 98 को मेरे द्वारा खुले न्यायालय में लिखाया जाकर सुनाया गया। (ज्ञान प्रकाश गुप्ता) सिविल जज (कनिष्ठ खंड) एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग-सांचोर नोट : 1. पृ.सं. 63 पर नीचे से दसवीं पंक्ति में मूल निर्णय में जहाँ गृह विभाग के आदेश का संदर्भ दिनांक 5.1.97 टाइप हुआ है वह दिनांक 5.8.57 का है यह टाइप की गलती से हुआ है। 2. पृ. 64 पर असल नोटिफिकेशन पेश करने का तथ्य है, वह श्री आर.एम. कोठारी द्वारा राज. उच्च न्यायालय के पुस्तकालय से प्राप्त कर न्यायालय के अवलोकनार्थ सांचोर भिजवाया गया था। इन नोटिफिकेशनस के राजपत्र की स्केन कॉपी इस पुस्तक में प्रथम खण्ड में दी गई है। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायालय :- न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग, सांचोर (राज.) पीठासीन अधिकारी श्री नरेन्द्र कुमार, रा.न्या.से. मूल आप. प्रकरण संख्या 38/96 राजस्थान राज्य विरुद्ध ईश्वलाल पुत्र श्री कालूराम जाति खत्री, निवासी सांचौर सम्पादक, सत्यपुर टाईम्स, साप्ताहिक, सांचौर --- अभियुक्त --- अपराध अन्तर्गत धारा 295ए भा.दं.सं. उपस्थित :1. श्री भोपालसिंह, सहायक अभियोजक, सरकार की ओर से। 2. श्री तुलसीराम जोशी, अधिवक्ता, अभियुक्त की ओर से। -: निर्णय :- दिनांक 16 अप्रैल, 2010 1. संक्षेप में प्रकरण के तथ्य इस प्रकार हैं कि फरियादी लक्ष्मीचंद ने दिनांक 25.5.94 को . पुलिस थाना, सांचौर पर उपस्थित होकर एक रिपोर्ट इस आशय की पेश की कि मुस्तगीस जैन धर्म का अनुयायी है तथा मुलजिम ईश्वरलाल पत्र 'सत्यपुर टाईम्स' का सम्पादक है तथा अपने आप को अनोप मण्डल का सदस्य बतलाता है। दिनांक 15.2.94 को प्रकाशित अपने समाचार सत्यपुर टाईम्स के अंक संख्या 42 में जैन बनियों की राक्षसों से तुलना की गई, अंक 43 दिनांक 22.2.94 में मुलजिम ने जैन महाजनान की तुलना रावण, हिरणाकुस, कंस व कांसन से की तथा जैन धर्म के कट्टर विरोधी अनोप स्वामी द्वारा जगत हितकारिणी, हरचंद सोनी द्वारा प्रकाशित चिंतामणी आत्मपुराण के अंशों को प्रकाशित कर जैन धर्मावलम्बियों के प्रति भयंकर दुष्प्रचार किया, जबकि उक्त पुस्तकें राज्य सरकार ने प्रतिबंधित कर रखी हैं। अंक संख्या 18 दिनांक 24.5.94 में भी घृणित प्रसार किया। इस प्रकार मुलजिम ने जैन धर्म के प्रति दुष्प्रचार कर साम्प्रदायिक सद्भावना को गहरी ठेस पहुंचाई आदि व पुलिस ने अभियोग सं. 135/94 धारा 153ए, 295ए भा.दं.सं. में मुकदमा कर अनुसंधान प्रारंभ किया व सामान्य अनुसंधान के पश्चात् अभियुक्त के विरुद्ध उक्त अपराध धारा 153ए, 295ए भा.दं.सं. में आरोप पत्र इस न्यायालय में पेश किया। अभियुक्त को धारा 153ए भा.दं.सं. के आरोप में न्यायालय द्वारा उन्मोचित किया गया व धारा 295ए भा.दं.सं. का आरोप अलग से विरचित कर सुनाया व समझाया गया तो अभियुक्त ने आरोप अस्वीकार कर अन्वीक्षा चाही। 2. अभियोजन पक्ष की ओर से अपने मामले के समर्थन में गवाह अ.सा. 1 लक्ष्मीचंद, अ. सा. गौतम भास्कर, अ.सा. डॉ. मोहनलाल डोसी, अ.सा. जसवंतसिंह के बयान लेखबद्ध करवाये। तत्पश्चात् अभियोजन ने शहादत पैरवी बंद कर व प्रलेखीय साक्ष्य में दस्तावेज प्रदर्श पी. 1 लगायत प्रदर्श पी 8 प्रदर्शित करवाये गये। अभियुक्त के बयान मुलजिम अन्तर्गत धारा 313 दं.प्र.सं. के तहत लिये गये व प्रतिरक्षा साक्ष्य पेश नहीं करने पर वरीयत बंद की जाकर बहस अंतिम सुनी जाकर दिनांक 20.5.1998 को इस न्यायालय द्वारा इस प्रकरण का निर्णय करते हुए अभियुक्त को धारा 295ए भा.दं.सं. में दोषी करार Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिया जाकर इस अपराध में 3 साल के कठोर कारावास व 5000 रुपये के अर्थदंड से दंडित किया व अदम अदायगी जुर्माना 6 माह का साधारण कारावास और भुगतने का आदेश दिया। इस निर्णय व दंडादेश के विरुद्ध अभियुक्त ने माननीय अपर सेशन न्यायाधीश, भीनमाल के न्यायालय में अपील की जो अपीलीय न्यायालय में दांडिक अपील प्र.सं. 7/05(54/1998) दर्ज होकर अपीलीय न्यायालय द्वारा दिनांक 5.9.2006 को इसका निर्णय करते हुए इस न्यायालय का अलग निर्णय व दंडादेश दिनांक 20.5. 1998 को अपास्त करते हुए पत्रावली इस न्यायालय को इस निर्देश के साथ प्रतिप्रेषित की कि वे अपीलांट/अभियुक्त द्वारा प्रस्तुत साक्षीगण व अपीलांट/अभियुक्त स्वयं को बचाव साक्ष्य के रूप में पर्याप्त अवसर देकर और यदि ऐसे साक्षी या अभियुक्त स्वयं को बचाव साक्षी के रूप में प्रस्तुत करता है तो उनकी साक्ष्य लेखबद्ध करके अभियोजन पक्ष को प्रतिपरीक्षण का समुचित अवसर दिया जाकर उभय पक्षकारान को पुनः सुनकर विधि अनुसार निर्णय पारित करें। अपीलीय न्यायालय से उक्त निर्णय के साथ पत्रावली प्राप्त होने पर प्रकरण पुनः उसी नंबर पर दर्ज किया गया। 3. बचाव पक्ष की ओर से डी.ड. 1 ईश्वरलाल अभियुक्त, डी.ड. 2 भैराराम, डी.ड. 3 अमृतलाल के बयान लेखबद्ध करवाये गये व दस्तावेजी साक्ष्य में दस्तावेजात प्रदर्श डी. 1 से लगायत प्रदर्श डी. 35 प्रदर्शित करवाये गये। अभियोजन पक्ष को पर्याप्त अवसर दिया जाकर उभय पक्षकारान की बहस अंतिम सुनी गयी व पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया। 4. प्रकरण के निस्तारण के लिए न्यायालय के समक्ष विचारणीय बिन्दू यह है कि : "आया मुलजिम ने जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए तथा उनके धार्मिक विश्वासों का अपमान करने की नियत से अपने समाचार पत्र 'सत्यपुर टाईम्स' साप्ताहिक के दिनांक 7.3.94, 27.12.93 व 25.5.94 के समाचार पत्रों में प्रतिबंधित ग्रन्थ जगतहितकारिणी व आत्मपुराण ग्रन्थों की बातें तथा अन्य बातें छापकर जैन धर्म के धार्मिक विश्वासों का अपमान किया और क्या अभियुक्त ने इस प्रकार धारा 295ए भा.दं.सं. के तहत दंडनीय अपराध कारित किया? यदि हां तो उपयुक्त दंड क्या होगा? 5. प्रकरण में अभियुक्त पर आरोपित अपराध को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा जो साक्ष्य पेश की गई है, उसमें न्यायालय को इस प्रकरण का निस्तारण करना है कि क्या अभियुक्त द्वारा अपने समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक के विभिन्न अंकों में जिसमें कि सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक का अंक दिनांक 7.3.1994, दिनांक 27.12.1993 व दिनांक 29.5.1994 के समाचार पत्र में प्रतिबंधित ग्रन्थ जगतहितकारिणी व आत्मपुराण की बातें एवं जैन धर्म के धार्मिक विश्वास के लिए अपमानजनक एवं ठेस पहुंचाने वाली बातें छापकर जैन समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत किया? इस संबंध में अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्षी अ.सा. 1 लक्ष्मीचंद मेहता ने सशपथ कथन किया है कि ईश्वरलाल सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक का संपादक है। प्रार्थी जैन बणिया है तथा भगवान महावीर के सिद्धान्तों को मानता है। अनूप मण्डल का ईश्वरलाल सदस्य है जो प्रतिबंधित संस्था है। अनूप मण्डल की गतिविधियां जैन धर्म के खिलाफ होने के कारण प्रतिबंधित किया। अनूप मण्डल के ग्रन्थ जगतहितकारिणी व आत्मपुराण का प्रकाशन प्रतिबंधित किया। ईश्वरलाल द्वारा जैन धर्म व जैन अनुयायियों पर अपने अखबार के माध्यम से कीचड़ उछाला गया। चौरासी के चक्कर में जैन हिंसा करते हैं। जैनों की तुलना --684 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रावण, हिरणाकुस से की। इसके अतिरिक्त शिवलिंग की पूजा को व्यभिचार के रूप में अखबार में छापा। इस प्रकार के प्रकाशन ने जैन समाज में घृणा का वातावरण पैदा हुआ। थाने में उसने रिपोर्ट की जो प्रदर्श पी-1 है. जिस पर ए से बी उसके हस्ताक्षर है। पर्चा एफ.आई.आर. प्रदर्श बी-2 होकर ऐ से बी उसके हस्ताक्षर है। अभियुक्त ने अपेन अखबार सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक के अंक दिनांक 7.3.1994 जो प्रदर्श पी-3 है, दिनांक 24.5.94 का जो प्रदर्श पी-4 है एवं दिनांक 27.12.93 का अंक प्रदर्श बी-8 है, की प्रतियां पत्रावली पर है। राज्य सरकार की मुकदमे हेतु स्वीकृति प्रदर्श पी-5 है। राज्य सरकार का नोटिफिकेशन प्रदर्श पी-6 है, जिसकी प्रति प्रदर्श पी-6ए है। अभियुक्त ने दिनांक 15.2.1994, 22.2. 1994 व 25.5.1994 के अंक में हरिचंद सोनी द्वारा रचित ग्रन्थ आत्मपुराण व अनोपदास द्वारा रचित जगतहितकारिणी के कथनों को उद्धत किया है जबकि उक्त दोनों ग्रन्थ राज्य सरकार के गृह विभाग के आदेश दिनांक 5.1.1997 द्वारा प्रतिबंधित है। इन बयानों की पुष्टि अ.सा. 3 डॉ. मोहनलाल डोसी ने की है। अ.सा. 3 डॉ. मोहनलाल डोसी अपनी साक्ष्य में कथन करता है कि ईश्वरलाल को पहचानता हूं जो सत्यपुर टाईम्स अखबार निकालते हैं। इन्होंने अनुप मण्डल के माध्यम से जैन बनियों के बारे में घृणित व साम्प्रदायिक भावना फैलाने वाले समाचार छापे, जिसको पढ़ने से मुझे भी ठेस पहुंची। अपने पत्र का सांचोर क्षेत्र में विशेष तौर से जहां ज्यादा जैन बनिये रहते हैं, वहां वितरण कर समाचारों का प्रचार किया एवं अनूप मण्डल द्वारा जैन बणियों के खिलाफ साम्प्रदायिक वैमनस्यता पैदा होवे ऐसा प्रसार किया। यह स्वयं जैन धर्म का अनुयायी होना बताया है। इन दोनों साक्षियों की साक्ष्य की पुष्टि प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 व अखबार सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक के अंक संख्या 6 दिनांक 7.3.1994 प्रदर्श पी-3, अंक 18 दिनांक 25.5.94 प्रदर्श पी-4 से भी होती है। प्रदर्श पी-3 अंक में अभियुक्त द्वारा यह प्रकाशित किया गया है कि जगतहितकारिणी में अनोप स्वामी जी ने टीपणे के बारे में लिखा है कि यह टीपणे राक्षस विद्या के हैं। यह बणियों के चलाये हुए हैं सो इन बणियों ने टीपणों में एक ऐसी चालाकी की है कि ब्राह्मणों के बुजर्गों के नाम टीपणों में प्रकट किये हैं जिससे ब्राह्मण यह जानते हैं कि यह टीपणे हमारे हैं। सो यह ब्राह्मणों की भूल है। चूंकि यह टीपणे राक्षसी वेद के बणियों के बनाये हुए है। इन सौदागर महाजनान ने जालसाजी कर राक्षसी पाप के टीपणे बनाकर ब्राह्मणों को पकड़ा दिये। और भी कहीं जैन धर्म की भावनाओं को आहत करने वाली बातें इस अंक में प्रकाशित की गई हैं। इसी प्रकार प्रदर्श पी-4 अंक 18 दिनांक 24.5.94 में अभियुक्त ने जैन बणिये पाप बंद करवाकर निष्कलंक परमात्मा की प्रार्थना करे शीर्षक से यह प्रकाशित किया है कि यदि जैन बणिये चौरासी कुण्डियों पर अपना पाप बंद करवाकर निष्कलंक परमात्मा से प्रार्थना करे तो कोई रास्ता निकले। चौरासी लाख कुण्डियां गुप्त टापू पर बनाई है जहां जीवों की आहतियां लगाकर हवन किये जाते हैं। आगे प्रकाशित किया कि इन्द्रजाल द्वारा बुद्धि भ्रष्ट कर लोगों को नेकी से हटाना तथा चौरासी पर से जाकर उनको तकलीफें देना यह जैन बणियों का मुख्य कार्य बताया गया है। इसी तरह यदि जैन बणिये मानवता रखते हो तो आज वे जिस तरह से रह रहे हैं उसी प्रकार कार्य करे तो किसी भी भाविक को ईर्ष्या नहीं है। इस प्रकार उपरोक्त दोनों प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4 में अभियुक्त द्वारा ग्रन्थ आत्मपुराण व जगत हितकारिणी को उद्धृत किया गया है। प्रदर्श पी-4 में जगतहितकारिणी को उद्धृत किया एवं उसमें अपना विवेचन भी मुलजिम द्वारा दिया गया है। उक्त दोनों प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4 को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि इन समाचार पत्रों में अभियुक्त द्वारा जो बातें प्रकाशित की गई वो स्पष्ट रूप से जैन धर्म के अनुयायियों को आहत करने वाली है। प्रदर्श पी-3 में Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिखा गया है कि जैन धर्म टीपणे राक्षस विद्या के हैं जिस तरह से रावण ने राक्षस विद्या के टीपणे बनाये थेर ब्राह्मणों का मराने के वास्ते पकड़ा दिये। इसी प्रकार सोनी हरिचंद रचित आत्मपुराण में लिखा गया है कि सभी बणिये जैन चोर हैं। इस प्रकार प्रदर्श पी-4 दिनांक 24.4.94 के अंक में भी जगतहितकारिणी के ग्रन्थ के अंकों का विवेचन करते हुए जैन समाज द्वारा अपने धनबल के माध्यम से इन्द्रजाली क्रियाओं से भाविकों को परेशान करते, लोगों की बुद्धि भ्रष्ट कर नेकी से हटाना व आगे लिखा कि समस्त जैन गुप्त ग्रन्थों को सार्वजनिक किया जावें । यदि ग्रन्थ सार्वर्जनिक नहीं किये जाते हैं तो यह माना जाये कि जैन ये पूरे संसार के गुनाहगार है। इन सभी अंकों को पढ़ने मात्र से जैन समाज के प्रति किसी भी व्यक्ति धर्म के प्रति भावनाएं आहत हो जाना स्वाभाविक है । जिससे यह साबित होता है कि समस्त बातें जैन धर्म समुदाय के भावनाओं को आहत करने वाली है । जिरह में अ. सा. 1 लक्ष्मीचंद को यह तथ्य पूछे गये है कि महेश महेश्वरी के खिलाफ उसके द्वारा जो दावा किया गया वो खारिज हो गया। उस मुकदमे में अभियुक्त भी गवाह था एवं इसी कारण उस मुकदमे में बयान देने से यह मुकदमा झूठा बनाया है वगैरह सामान्य प्रश्न पूछे गये हैं जिससे साक्षी ने उस मुकदमे के कारण यह मुकदमा झूठा करवाने जाने से इंकार किया है। परिवादी लक्ष्मीचंद अ. सा. 1 के यह भी बयान है कि अभियुक्त ईश्वरलाल द्वारा अपने समाचार पत्र में जगतहिकारिणी वगैरह ग्रन्थ को छापा है जो राज्य सरकार के आदेश प्रदर्श पी -6 से प्रतिबंधित है। अभियुक्त ने प्रतिबंधित सामग्री को अपने समाचार पत्र में छापा है। पूर्व विवेचन में यह सिद्ध हो चुका है कि अभियुक्त ने अपने समाचार पत्र में अनोपदास रचित जगतहितकारिणी व सोनी हरिचंद रचित आत्मपुराण के अंश अपने अखबार में प्रकाशित किये। प्रदर्श पी - 6 गृह विभाग राजस्थान सरकार के नोटिफिकेशन जो कि दिनांक 29.8.57 के राजस्थान राज पत्र के पृष्ठ संख्या 270 पर शाया किया है जो नोटिफिकेशन संख्या एफ/25 (9) बी.एच./56 दिनांक 5.8.57 द्वारा उक्त दोनों पुस्तकों को प्रतिबंधित किया जा चुका है। एवं इस नोटिफिकेशन में स्पष्ट लिखा है कि उपरोक्त दोनों पुस्तकों को प्रकाशित करना धारा 153ए व 295ए भा.दं.सं. के तहत दंडनीय अपराध होगा। इस नोटिफिकेशन के संबंध में बचाव पक्ष का यह तर्क रहा है कि उक्त दोनों पुस्तें जिन्हें उद्धृत किया गया है ये दोनों पुस्तकें केन्द्र सरकार कोपी राईट विभाग द्वारा रजिस्ट्रेशन की अनुमति प्रदर्श डी-2 व प्रदर्श डी-3 के बाद ही प्रकाशित किये हैं। परन्तु प्रदर्श डी-2 व प्रदर्श डी-3 के अवलोकन से जाहिर होता है कि यह दोनों ही दस्तावेज उक्त पुस्तकों के कोपीराईट के संबंध में है परन्तु कोपीराईट के अधिकार से किसी छपी हुई सामग्री जो कि प्रतिबंधित है या नहीं के संबंध में कोई निर्णय नहीं हो सकता है अर्थात् कोपीराईट विभाग के उक्त दोनों आदेश गृह विभाग राजस्थान सरकार के आदेश दिनांक 5.8.57 से प्रभावी नहीं माने जा सकते। विशेष कर उन परिस्थितियों में जबकि अभियोजन पक्ष द्वारा राजस्थान सरकार के गृह विभाग के उप शासन सचिव (विधि) के दिनांक 21.12.95 के पत्र क्रमांक प - 10 ( 17 ) गृह 10 / 94 प्रदर्श पी-5 से धारा 196 द.प्र. संहिता के तहत आवश्यक अभियोजन स्वीकृति भी प्राप्त कर ली गई हो। इस प्रकार बचाव पक्ष का यह तर्क भी मानने योग्य नहीं है। प्रतिबंधित पुस्तकों को छापना भी धारा 295ए भा.दं.सं. के तहत अपराध की श्रेणी में आता है। 6. अ. सा. 2 गौतम भास्कर ने न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत किया जाना, दिनांक 8.1.96 को जरिये फर्द प्रदर्श पी-7 के अभियुक्त को गिरफ्तार किया जाना व उस पर ए से बी हस्ताक्षर होना व 70+ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज्य सरकार की अभियोजन स्वीकृति प्रदर्श पी-5 प्राप्त किया जाना बताता है। अ.सा. 4 जसवंतसिंह दिनांक 25.5.94 को थानाधिकारी सांचोर के पद पर कार्यरत रहते हुए लक्ष्मीचंद द्वारा दी गई रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 पर सी से डी कायमी मुकदमा का पृष्ठांकन कर ई से एफ हस्ताक्षर होना, पर्चा एफ. आई. आर. प्रदर्श पी-2 होकर ए से बी स्वयं के हस्ताक्षर होना, गवाह लक्ष्मीचंद व मोहनलाल के बयान उनके कथनानुसार लेना सत्यपुर टाईम्स के अंक 6 व 18 प्राप्त करना, राज्य सरकार का नोटिफिकेशन प्राप्त करना व पत्रावली अभियोजन स्वीकृति हेतु राज्य सरकार को भेजना बताता है। 7. उपरोक्त तथ्यों के प्रतिरक्षा में अभियुक्त ईश्वरलाल द्वारा लिखित बहस व बहस के दौरान यह तर्क दिया गया है कि परिवादी लक्ष्मीचंद व अभियुक्त के बीच पुरानी रंजिश है। परिवादी व उनके मुनिम महेश के बीच वाद में अभियुक्त द्वारा गवाही दी गई थी, इस कारण तथा मोहनलाल डोसी जो कि इस प्रकरण में अभियोजन साक्षी है, उसके विरुद्ध भी शिकायतें की थीं, इस कारण यह झूठा मुकदमा उसके खिलाफ किया है। इस संबंध में ईश्वरलाल डी. ड. 1 अपनी साक्ष्य में कथन करता है कि सांचोर में महावीर जीवदया गौशाला है, जिसके अध्यक्ष लक्ष्मीचंद मेहता लंबे समय तक रहे। इस गौशाला संस्था में उसे सदस्य नियुक्त किया था। उस वक्त संस्था का मुनिम महेश था। महेश ने संस्था में हुए घोटाले की जानकारी दी तथा कुछ दस्तावेज दिये थे, जिसे लेकर लक्ष्मीचंद मेहता से पूछताछ की तो उन्होंने हिदायत दी कि तुम तुम्हारा काम करो। कभी कभार घोटालों के संबंध में अखबार में लिखता था, प्रशासन को शिकायत की थी । मुनिम व उसके बीच अच्छे संबंध से लक्ष्मीचंद नाराज हुए और मुनिम के खिलाफ दावा भीनमाल कोर्ट में किया, जिसमें उसने गवाही दी थी। इससे यह झूठा मुकदमा किया है। इसी प्रकार डॉ. मोहनलाल भाई द्वारकादास दोसी ठेकेदार था, तब घटिया सड़क निर्माण की शिकायत उसने प्रशासन से की थी। लक्ष्मीचंद मेहता व मोहनलाल डोसी दोनों चाहते थे कि सत्य उजागर नहीं हो। सन् 1990 में लक्ष्मीचंद मेहता विधायक बने तथा 1993 तक रहे। इस दरम्यान लक्ष्मीचंद ने जो घोटाले किये उसकी शिकायतें प्रशासन को की थी एवं अखबार में भी छापा था। वह जैन साधुओं के पास भी जाता है। उसका किसी जाति विशेष से द्वेष नहीं है, वह अधर्म के खिलाफ समाचार प्रकाशित करता | अनोप मण्डल के पदाधिकारियों के जो कुछ विचार होते हैं, वह अखबार में प्रकाशित करते हैं। आगे कथन करता है कि वह एफ.आई.आर. में वर्णित तीन अंकों में से 41 व 42 सत्यपुर टाईम्स के नहीं थे। केवल मात्र एफ. आई. आर. में वर्णित अंक 18 सत्यपुर टाईम्स का था जो पत्रावली में नहीं है। उस अंक में संपादकीय लेख में जैनों के बारे छापा था। संपादकीय लेख संपादक के निजी विचार होते हैं। फिर कहा कि सत्यपुर टाईम्स अंक 18 पत्रावली में है जो प्रदर्श पी-4 है । जिरह में अभियुक्त स्वयं इस तथ्य को ही अस्वीकार करता है कि पत्रावली पर उपलब्ध प्रदर्श पी -4 मं संपादकीय लेख को उसने जैनों के बारे में छापा था। इस प्रकार अभियुक्त को प्रकाशन का पूर्ण ज्ञान प्रकाशन से पूर्व रहा था, यह तथ्य उसकी स्वयं की साक्ष्य से भी साबित होता है। आगे यह साक्षी कथन करता है कि पूर्व में अनूप मण्डल की पुस्तक जगतहितकारिणी प्रतिबंधित होने की जानकारी नहीं थी। लक्ष्मीचंद मेहता ने जब देख लेने की धमकी दी तो उसेन शिकायत प्रशासन को की जो प्रदर्श डी-9 से प्रदर्श डी-14 है। उसने मोहनलाल दोसी के विरुद्ध शिकायत की जो प्रदर्श डी - 15 है। मुनिम महेश के वाद में गवाही दी थी जो प्रति प्रदर्श डी - 16 है, उस केस में अदालत में बयान दिये जिसकी प्रमाणित प्रतिलिपि प्रदर्श डी-17 है। जिरह करने पर प्रदर्श पी-8 अखबार स्वयं द्वारा 71+ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशित होना यह साक्षी स्वीकार करता है। आगे कथन करता है कि प्रदर्श पी-8 अखबार की फोटो प्रति है। प्रदर्श पी-3 भी स्वयं द्वारा प्रकाशित होना जिरह में साक्षी स्वीकार करता है। आगे कथन करता है कि अंक संख्या 6 व 18 उसके द्वारा प्रकाशित हे जो प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4 है। इस प्रकार जो अभियोजन पक्ष द्वारा प्रदर्श पी-3,4 व प्रदर्श पी-8 प्रदर्शित करवाये गये हैं, उन्हें स्वयं द्वारा प्रकाशित करना अभियुक्त प्रतिरक्षा साक्ष्य में स्वीकार करता है एवं अपनी साक्ष्य में यह भी स्वीकार करता है कि संपादकीय लेख में उसने प्रदर्श पी-4 में जैनों के बारे में छापा था। प्रतिरक्षा साक्षी 2 भेराराम कथन करता है कि वह अनोप स्वामी रहस्य केन्द्र का सदस्य है। यह केन्द्र अहमदाबाद में है। अनोप मण्डल के मेले में जाता है। राजस्थान में काफी जगह है जिसमें सिरोही, स्वरूपगंज, पिण्डवाड़ा वगैरह है। उनकी खोज यह है कि जाड़ा, तुफान, फसल नष्ट होना, बीमारी होना वगैरह अधर्म के कारण होता है। ऐसा होता इसलिए है कि इसकी कोई प्रयोगशाला है, जिसे मेरूपर्वत जम्बूद्वीप कहते हैं। इसका अनोप मण्डल में हवाला है। अनोप मण्डल किसी जाति समुदाय के विरुद्ध नहीं होकर अधर्म के विरुद्ध है। ईश्वरलाल को पहचानता हूं। ईश्वरलाल द्वारा ऐसे कोई तथ्य नहीं छापे जिससे जैन धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचे। परन्तु यह साक्षी जिस संबंध में साक्ष्य देता है कि ईश्वरलाल द्वारा आपत्तिजनक तथ्य नहीं छापे गये, उन तथ्यों को अभियोजन पक्ष पूर्व में ही अपनी साक्ष्य से युक्ति-युक्त रूप से साबित करवा चुका है। प्रतिरक्षा साक्षी 3 अमृतलाल साक्ष्य देता है कि अनोप मण्डल किसी जाति समुदाय के खिलाफ नहीं है। ईश्वरलाल खत्री जैन धर्म के खिलाफ नहीं है, न ही किसी जाति को बदनाम करने के लिए ग्रन्थों का प्रचार करते हैं। इस प्रकार अभियुक्त द्वारा प्रतिरक्षा में जो विशेष बचाव लिया गया है, वह यह है कि इस प्रकरण के परिवादी लक्ष्मीचंद मेहता अ.सा. 1 व अ.सा. 2 मोहनलाल दोसी के विरुद्ध उसने जो भी घोटाले उन्होंने किये, उसके बारे में प्रकाशन किया गया एवं प्रकरण के परिवादी लक्ष्मीचंद मेहता के विरुद्ध वाद में गवाही दी थी, इस कारण यह झूठा मुकदमा रंजिशवश उसके विरुद्ध दर्ज करवाया गया है। परन्तु उक्त तथ्य स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। चंकि धारा 295ए भा.दं.सं. के तहत अपराध किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं होकर सम्पूर्ण वर्ग विशेष के प्रति होता है एवं अभियुक्त द्वारा कारित अपराध केवल मात्र प्रकरण के परिवादी एवं साक्षी के विरुद्ध नहीं होकर सम्पूर्ण जैन समुदाय के विरुद्ध है, जिससे धर्म विशेष की भावनाएं आहत हुई हैं। अतः प्रतिरक्षा का यह बचाव मानने योग्य नहीं है। साथ ही अभियुक्त द्वारा स्वयं प्रतिरक्षा साक्ष्य के दौरान स्वीकार किया गया है कि प्रदर्श पी-4 सत्यपुर टाईम्स के अंक 18 में उसने संपादकीय लेख में जैनों के बारे में छापा था। अभियोजन साक्ष्य से उपरोक्त तथ्य पूर्ण रूप से युक्ति-युक्त संदेह से परे प्रमाणित हो चुका है जिसका कोई खंडन अभियुक्त द्वारा पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया गया 8. इस प्रकार उपरोक्त विवेचनानुसार यह पूर्ण रूप से साबित है कि अभियुक्त द्वारा अपने समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स के अंक प्रदर्श पी-3, प्रदर्श पी-4 व प्रदर्श पी-8 में प्रतिबंधित ग्रन्थ आत्म पुराण व जगतहितकारिणी के अंशों को छापा एवं इसके अतिरिक्त उक्त पुस्तकों के विवेचन से जो बातें छापी वो जैन धर्म व जैन समुदाय के धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली है व जैन धर्म के प्रति घृणा उत्पन्न करने वाली है। इस प्रकार उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर अभियोजन पक्ष अपनी साक्ष्य से अभियुक्त ईश्वरलाल के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए का आरोप युक्ति-युक्त संदेह से परे । 12. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साबित करवाने में पूर्णतया सफल रहा है। अतः अभियुक्त उक्त आरोप में दोष सिद्ध घोषित किये जाने योग्य है। 9. परिमाणस्वरूप अभियुक्त ईश्वरलाल पुत्र श्री कालुराम, कौम-खत्री, निवासी-सांचोर, संपादक, सत्यपुर टाईम्स, साप्ताहिक, सांचोर को उस पर आरोपित अपराध धारा 295ए भारतीय दंड संहिता में दण्डनीय अपराध करने का दोष सिद्ध करार दिया जाता है। सजा के प्रश्न पर उभय पक्षों को सना जाकर दण्डादेश पारित किया जायेगा। (नरेन्द्र कुमार) न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग, सांचोर सजा के प्रश्न पर 10. सजा के प्रश्न पर उभय पक्षों को सुना गया। विद्वान अधिवक्ता अभियुक्त का तर्क है कि यह उसका प्रथम अपराध है तथा काफी लम्बे समय से अभियुक्त इस प्रकरण की अन्वीक्षा का सामना कर रहा है। अतः अभियुक्त को परिवीक्षा पर छोड़े जाने की प्रार्थना की गई। विद्वान ए.पी.पी. ने उपरोक्त तर्कों का विरोध किया। 11. हमने उभय पक्षों के तर्कों को सुना एवं पत्रावली का अध्ययन एवं अवलोकन किया। अभियुक्त का अपराध वर्ग विशेष की भावनाओं को आहत कर जनाक्रोश भड़काने का है। अतः मामले के समूल तथ्यों और परिस्थितियों, अपराध की प्रकृति के मध्य नजर अभियुक्त को परिवीक्षा का लाभ दिया जाना न्यायोचित नहीं है। अभियुक्त द्वारा कारित अपराध की प्रकृति के मध्य नजर अभियुक्त के विरुद्ध नरमी का रुख अपनाया जाना न्यायोचित नहीं है। दण्डादेश 12. परिणामस्वरूप अभियुक्त ईश्वरलाल पुत्र श्री कालूराम, कौम-खत्री, निवासी-सांचोर, संपादक सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक, सांचोर को धारा 295ए भारतीय दंड संहिता में दण्डनीय अपराध करने को दोष सिद्ध करार दिया जाकर उसे उक्त अपराध में तीन साल के कठोर कारावास तथा रुपये 5000/जुर्माना, अदम अदायगी जुर्माना 6 माह के साधारण कारावास के दंड से दण्डाविष्ट किया जाता है। अभियुक्त की नियमित उपस्थिति बाबत् पेश जमानत मुचलके तुरन्त प्रभाव से निरस्त किये जाते हैं। अभियुक्त का सजा वारंट बनाया जावे। निर्णय की एक प्रति अविलम्ब अभियुक्त को निःशुल्क दी जावे। (नरेन्द्र कुमार) न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग, सांचोर 13. निर्णय व दण्डादेश आज दिनांक 16 अप्रैल 2010 को मेरे द्वारा खुले न्यायालय में लिखाया जाकर सुनाया गया। (नरेन्द्र कुमार) न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग, सांचोर 73 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायालय :- अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश, भीनमाल (जालोर) ईजलास : श्री संदीप कुमार शर्मा, आर.एच.जे.एस. आपराधिक अपील प्रकरण सं. 02/2010 ईश्वरलाल पुत्र कालुराम, जाति खत्री, उम्र 51 वर्ष, निवासी सांचोर, जिला जालोर। अपीलार्थी/ अभियुक्त विरुद्ध राजस्थान राज्य जरिए अपर लोक अभियोजक । प्रत्यर्थी/ राज्य अपील विरुद्ध निर्णय व दण्डादेश दिनांक 16.04.2010 जो कि नरेन्द्र कुमार न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग, सांचोर द्वारा आप नियमित प्रकरण सं. 38/1996 राज्य विरुद्ध ईश्वरलाल अन्तर्गत रा 295ए भा.दं.सं. में पारित किया गया। उपस्थित श्री हरिशंकर राजपुरोहित, अधिवक्ता वास्ते अपीलार्थी/अभियुक्त । श्री वी.एस. माथुर, अपर लोक अभियोजक वास्ते प्रत्यर्थी/ राज्य । श्री किस्तूरचंद चौपड़ा, श्री श्रवणसिंह राव, अधिवक्ता वास्ते परिवादी । दिनांक 28 सितम्बर 2013 निर्णय अपीलार्थी / अभियुक्त ईश्वरलाल ने यह अपील न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग, सांचौर द्वारा आप नियमित प्रकरण सं. 38 / 1996 राज्य विरुद्ध ईश्वरलाल, अन्तर्गत धारा 295ए भा.दं.सं. में पारित निर्णय व दण्डादेश दिनांक 16.04.2010 के विरुद्ध प्रस्तुत की है, जिसके अधीन उन्होंने अभियुक्त/अपीलार्थी को धाराण 295 भा.दं.सं. के आरोप में तीन वर्ष के साधारण कारावास तथा 5000/- रु. के अर्थदण्ड, अदम अदायगी अर्थदण्ड 6 माह का साधारण कारावास के दण्ड से दण्डित किया, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की है। नकल अपर लोक अभियोजक को दिलाई जाकर, अधीनस्थ न्यायालय का अभिलेख तलब किया गया। प्रस्तुत प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी लक्ष्मीचंद पी. ड. -1 ने दिनांक 25. 05.1994 को पुलिस थाना सांचौर पर उपस्थित होकर एक रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 इस आशय की पेश की कि मुस्तगीस जैन धर्म का अनुयायी है तथा मुलजिम ईश्वरलाल पत्रिका 'सत्यपुर टाईम्स' का संपादक है तथा अपने आप को अनोप मण्डल का सदस्य बतलाता है । मुस्तगीस को जैन धर्मावलम्बी होकर उसकी जैन धर्म के दर्शन, साहित्य, सिद्धान्त में अटूट आस्था है, जैन धर्म एक मानव धर्म है जो जगत जीवों को सत्य अहिंसा का बोध देता है। अभियुक्त ने दिनांक 15.02.1994 को प्रकाशित अपने समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स के अंक सं. 42 में जैन बनियों की राक्षसों से तुलना की गई तथा जैन धर्म के विरुद्ध घिनौना दुष्प्रचार किया गया। अंक 43 दिनांक 22.02.1994 में मुलजिम ने जैन महाजनान की तुलना रावण, हिरणकुस, कंस व कांसन से की तथा जैन धर्म के विरोधी अनोप स्वामी द्वारा जगत हितकारिणी, हरचंद सोनी द्वारा प्रकाशित चिंतामणी आत्मपुराण के अंशों को प्रकाशित कर जैन धर्मावलम्बियों के प्रति भयंकर दुष्प्रचार किया, जबकि उक्त पुस्तकें राज्य सरकार ने आदेश सं. एफ. 25 (9) बी एच 56 दिनांक 05.01. 74♦ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1957 के जरिए प्रतिबंधित कर रखी है। अंक सं. 18 दिनांक 24.05.1994 में भी घृणित प्रसार किया तथा उल्लेख किया है कि जैन बनिए इन्द्रजाल द्वारा बुद्धि को भ्रष्ट कर लोगों को नेकी से हटाते हैं तथा 84 का चक्कर व नर्क इन जैन बनियों का बनाया गया है। इस प्रकार मुलजिम ने जैन धर्म के प्रति दुष्प्रचार कर साम्प्रदायिक सद्भावना को गहरी ठेस पहुंचाई है। आदि पर प्रकरण दर्ज किया जाकर बाद अनुसंधान अपीलार्थी/ अभियुक्त के विरुद्ध धारा 153ए व 295ए भा.दं.सं. में आरोप पत्र न्यायालय में पेश किया जिस पर अधीनस्थ न्यायालय द्वारा अभियुक्त को धारा 295ए भा.दं.सं. का आरोप विरचित कर सुनाया व समझाया तो अभियुक्त ने आरोप सुनकर अस्वीकार कर अन्वीक्षा चाही। अभियोजन पक्ष ने अपने मामले के समर्थन में 4 गवाहान पी. ड. - 1 लक्ष्मीचंद मेहता, पी. ड. - 2 गौतम भास्कर, पी. ड. -3 डॉ. मोहनलाल डोसी व पी. ड. -4 जसवंतसिंह के बयान करवाए तथा प्रलेखीय साक्ष्य में प्रदर्श पी-1 लगायत प्रदर्श पी-8 को प्रदर्शित करवाया। अभियोजन साक्ष्य की समाप्ति पर अभियुक्त का कथन दं.प्र.सं. की धारा 313 के अधीन लिया गया जिसमें उसने अभियोजन साक्ष्य को गलत बताते हुए, मुकदमा झूठा करना बताया एवं साक्ष्य सफाई पेश करनी चाही, लेकिन पर्याप्त अवसर दिए जाने के बावजूद भी कोई साक्ष्य सफाई पेश नहीं करने पर, साक्ष्य सफाई बंद की जाकर अधीनस्थ न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के उपरान्त निर्णय एवं दण्डादेश दिनांक 20.05.1998 को पारित किया गया जिसके अनुसार अपीलार्थी/ अभियुक्त को तीन साल का कठोर कारावास एवं 5000/- रु. का अर्थदण्ड तथा अदम अदायगी अर्थदण्ड छः माह का अतिरिक्त कारावास भुगताने का आदेश दिया था । उक्त निर्णय व दण्डादेश की अपील इस न्यायालय में (7/2005 ( 54 / 1998)) ईश्वरलाल बनाम राज्य में पारित निर्णय दिनांक 05.09.2005 द्वारा मामला रिमाण्ड किया गया था कि अपीलार्थी/ अभियुक्त को बचाव हेतु अर्थात् प्रतिरक्षा साक्ष्य पेश करने हेतु पर्याप्त अवसर देते हुए पुनः विधि अनुसार मामले का निस्तारण करने का निर्देश दिए गए थे। तत्पश्चात् अधीनस्थ न्यायालय ने बचाव पक्ष की ओर से गवाह डी. ड. -1 ईश्वरलाल अपीलार्थी/ अभियुक्त स्वयं, डी. ड. - 2 भैराराम व डी. ड. -3 अमृतलाल के बयान करवाए तथा प्रलेखीय साक्ष्य में प्रदर्श डी-1 लगायत प्रदर्श डी-35 दस्तावेजात को प्रदर्शित करवाया, तत्पश्चात् विद्वान् अधीनस्थ न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के उपरान्त साक्ष्य का विस्तृत विवेचन करते हुए आलोच्य दोषसिद्धि का निर्णय दिनांक 16.04.2010 को पारित किया तथा अपीलार्थी/ अभियुक्त को भा.दं.सं. की धारा 295ए के आरोप में तीन वर्ष का कठोर कारावास, 5000/- रु. अर्थदण्ड अदम अदायगी अर्थदण्ड छ: माह का अतिरिक्त कारावास भुगताए जाने का आदेश से दण्डित किया, जिससे व्यथित होकर यह निम्न आधारों पर पेश की अपील पेश की है। 1. प्रथम सूचना रिपोर्ट के समय तथा साक्ष्य में अन्वीक्षा के समय मूल दस्तावेज अखबार अंक 42, 43, 18 प्रकट नहीं किए गए, जिसके आधार पर परिवादी ने आरोप लगाया था, फिर भी अधीनस्थ न्यायालय ने आलौच्य निर्णय पारित कर कानूनी एवं तथ्यात्मक भूल की है। धारा 295ए की परिभाषा में कथित अपराध बनना नहीं पाया जाता है तथा साक्ष्य में कोई 2. 75 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. निष्पक्ष साक्षी नहीं है। इसके अलावा अपीलार्थी/अभियुक्त करीब 16 वर्षों से अन्वीक्षा भुगत रहा है। जिस पुस्तक जगत हितकारिणी एवं आत्मपुराण को प्रतिबंधित किया गया है, उक्त पुस्तकें भारत सरकार के कॉपीराईट कार्यालय में रजिस्टर्ड है तथा अनोप मण्डल राष्ट्रीय संस्था है तथा प्रतिबंधित नहीं है जिसका समर्थन गवाह डी. ड. -3 अमृतलाल राष्ट्रीय अध्यक्ष अनोप मण्डल करता है, फिर अधीनस्थ न्यायालय ने ऐसे तथ्यों की ओर ध्यान नहीं देकर आलोच्य निर्णय पारित करने में कानूनी भूल की है। 4. परिवादी ने कथित अनोप मण्डल की पुस्तकों पर प्रतिबंध लगवाया तब वह विधायक था तथा अपीलार्थी/अभियुक्त के विरुद्ध रिपोर्ट पेश की तब भी वह विधायक था ऐसे वैमनस्य रखने वाली की साक्ष्य पर भरोसा करके अधीनस्थ न्यायालय ने कानूनी भूल की है। 5. अपीलार्थी/ अभियुक्त के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति त्रुटिपूर्ण है क्योंकि प्रथम सूचना रिपोर्ट देते समय या राज्य सरकार के समक्ष अभियोजन स्वीकृति लेते समय कथित अंक 42 व 43 प्रस्तुत ही नहीं हुए हैं। इसके अलावा जांच अधिकारी ने उक्त अंक सत्यपुर टाईम्स के नहीं होकर, अन्य अखबार नीलकंठ जोधपुर के होने बताए हैं, फिर भी अधीनस्थ न्यायालय ने आलौच्य निर्णय पारित करने में कानूनी भूल की है। अतः अपील स्वीकार की जावे 1 बहस अपील दोनों पक्षों की सुनी गई एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया । दोराने बहस अधिवक्ता अपीलार्थी ने अपनी अपील में अंकित तथ्यों को दोहराते हुए निवेदन किया कि अपीलार्थी/अभियुक्त ने किसी धर्म विशेष के विरुद्ध कोई दुर्भावना नहीं फैलाई है तथा अधीनस्थ न्यायालय ने मात्र परिवादी व उसके एक अन्य हितबद्ध साक्षी की साक्ष्य के आधार पर ही आलोच्य निर्णय पारित किया है, जबकि उक्त दोनों गवाह पी. ड. - 1 लक्ष्मीचंद परिवादी एवं पी.ड. - 3 डॉ. मोहनलाल डोसी, अपीलार्थी/अभियुक्त से रंजिश रखते हैं । अतः आलौच्य निर्णय व दण्डादेश को अपास्त किया जाकर अपील स्वीकार की जावे । इसके विपरीत अपर लोक अभियोजक ने विरोध करते हुए तर्क दिया कि अधीनस्थ न्यायालय ने साक्ष्य का सही मूल्यांकन करते हुए आलोच्य निर्णय व दण्डादेश पारित किया है, जिसे संपुष्ट किया जावे तथा अपील खारिज की जावे । मैंने दोनों पक्षों के तर्कों पर विचार किया, पत्रावली का तथा पारित आलौच्य निर्णय व दण्डादेश एवं लिखित बहस अभियुक्त / अपीलार्थी का अवलोकन किया । हस्तगत प्रकरण में जहां तक अपीलार्थी/अभियुक्त द्वारा जैन धर्म के विरुद्ध अपने समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स के माध्यम से दुष्प्रचार करने का आरोप है, इस संबंध में साक्ष्य पर विचार किया जाए तो परिवादी लक्ष्मीचंद जैन पी. ड. -1 ने प्राथमिकी प्रदर्श पी-1 में यह आक्षेप लगाया है कि अपीलार्थी/ अभियुक्त दिनांक 12.02.1994 को सांचौर नगर में अनोपमण्डल के नाम पर सत्संग का आयोजन किया, जिसमें काफी लोगों को एकत्रित कर अनोपस्वामी के प्रवचनों एवं उनके द्वारा रचित व प्रकाशित पुस्तक जगतहितकारिणी ग्रंथ पर चर्चा की तथा अभियुक्त ने दिनांक 15.02.1994 को प्रकाशित अपने समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स के अंक सं. 42 में जैन 76+ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनियों की राक्षसों से तुलना की गई, तथा जैन धर्म के विरुद्ध घिनौना दुष्प्रचार किया गया। अंक 43 दिनांक 22.02.1994 में मुलजिम ने जैन महाजनान की तुलना रावण, हिरणकुस, कंस व कांसन से की तथा जैन धर्म के विरोधी अनोप स्वामी द्वारा जगत हितकारिणी, हरचंद सोनी द्वारा प्रकाशित चिंतामणी आत्मपुराण के अंशों को प्रकाशित कर जैन धर्मावलम्बियों के प्रति भयंकर दुष्प्रचार किया। अंक सं. 18 दिनांक 24.05.1994 में भी घृणित प्रसार किया तथा उल्लेख किया है कि जैन बनिए इन्द्रजाल द्वारा बुद्धि को भ्रष्ट कर लोगों को नेकी से हटाते हैं तथा 84 का चक्कर व नर्क इन जैन बनियों का बनाया गया है। उक्त तथ्यों की पुष्टि गवाह पी.ड.-1 लक्ष्मीचंद मेहता की साक्ष्य से होती है, जिसके अनुसार उसने बताया है कि सत्यपुर टाईम्स के संपादक अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल ने अनोप मण्डल के साहित्य जगतहिकारिणी वगैरह का प्रसार व प्रकाशन, प्रतिबंधित होते हुए भी अपने अखबार में करते हुए, जैन समाज के लोगों व साधुओं पर कीचड़ उछालने का प्रयास किया गया है तथा जैन समाज को बदनाम किया है, जिसका उसने अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करवाया था, जो प्रदर्श पी-1 है, पर्चा प्राथमिकी प्रदर्श पी-2 है, जिस पर उसके हस्ताक्षर है। इसके अलावा सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक पत्रिका के अंक दिनांक 07.03.1994 प्रदर्श पी-3 दिनांक 25.09.1994 प्रदर्श पी-4 एवं दिनांक 27.12. 1993 प्रदर्श पी-8 के अवलोकन से भी स्पष्ट है कि उक्त अंकों में जैन समाज के बारे में आपत्तिजनक एवं अपमानजनक प्रकाशन किया गया है जो अनुपमण्डल के ग्रंथ जगतहितकारिणी व आत्मपुराण के अंश है लेकिन प्रदर्श पी-6 राजस्थान सरकार के गृह विभाग के परिपत्र सं. ए!. 25(9) बी.एच./56 दिनांक 05. 08.1957 एवं दिनांक 29.08.1957 के राजस्थान राजपत्र/गजट के पृष्ठ सं. 270 के अनुसार अनोपदास रचित जगतहितकारिणी व सोनी हरिचंद रचित आत्मपुराण की पुस्तकों को प्रतिबंधित किया जा चुका है। इसके अलावा इस गवाह की जिरह में ऐसी कोई बात नहीं आई है कि प्रदर्श पी-3,4 अखबार में प्रकाशित लेख से जैन धर्म की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंची हो तथा उन्हें मानसिक आघात नहीं पहुंचा हो। इसके अलावा गवाह पी.ड.-2 गौतम भास्कर आरोप पत्र पेश करने का कथन करता है, जिसने अपीलार्थी/अभियुक्त को प्रदर्श पी-2 के जरिए गिरफ्तार किया था तथा अभियोजन स्वीकृति राज्य सरकार से प्राप्त की थी, जो प्रदर्श पी-5 है। इस गवाह से भी अपीलार्थी द्वारा जिरह की गई है किन्तु इसकी जिरह में ऐसा कोई तथ्य प्रकट नहीं हुआ है, जिससे इसकी साक्ष्य पर अविश्वास किया जाकर अभियुक्त को कोई लाभ प्रदान किया जा सके। इसी प्रकार गवाह पी.ड.-3 डॉ. मोहनलाल डोसी ने अपने कथन में स्पष्ट रूप से बताया है कि अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल ने सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक अखबार में जैन बनियों के बारे में बहुत ही घृणित एवं साम्प्रदायिक भावना फैलाने वाले समाचार छापे थे, जिनको पढ़ने से उसे भी ठेस पहुंची, उक्त अखबार को जैन बाहुल्य इलाके में प्रचार-प्रसार करके, जैन समुदाय के खिलाफ वैमनस्यता पैदा होन जैसा प्रसार किया था। जिरह में इस गवाह ने कहा है कि अपीलार्थी/अभियुक्त का ऐसा प्रचार घृणित है, इसके अलावा इस गवाह से जिरह में ऐसा कोई प्रश्न नहीं पूछा है कि प्रदर्श पी-3, 4 अखबार पढ़ने से उसे व सामान्य जनता तथा विशेष रूप से जैन समुदाय को कोई मानसिक आघात नहीं पहुंचा हो और उसे कोई ठेस नहीं पहुंची हो। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसी प्रकार गवाह पी.ड.-4 जसवंतसिंह भी अन्वेषणकर्ता साक्षी है, जिसने रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 के आधार पर पर्चा प्राथमिकी प्रदर्श पी-2 चाक की थी, इस गवाह से भी जिरह में ऐसा कोई प्रश्न नहीं पूछा है कि अखबार में जैनियों के विरुद्ध छपे लेख प्रदर्श पी-3 व 4 के आधार पर धार्मिक विश्वासों का अपमान नहीं हुआ हो तथा धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई गई हो। इसके अलावा जहां तक प्रतिरक्षा साक्ष्य का संबंध है, इस संबंध में गवाह डी.ड.-1 ईश्वरलाल अपीलार्थी/अभियुक्त स्वयं ने अपने कथनों में बताया है कि सांचौर में महावीर जीवदया गौशाला है, जिसके अध्यक्ष परिवादी लक्ष्मीचंद मेहता काफी लम्बे समय तक रहे हैं, जिसका सदस्य अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल था तथा उक्त गौशाला का मुनिम महेश था, उक्त मुनिम ने घोटाले की जानकारी अपीलार्थी/अभियुक्त को दी, उक्त घोटाले को अखबार में प्रकाशित करवाकर, प्रशासन से शिकायत की जिससे मुनिम व उसके बीच अच्छे संबंधों से परिवादी लक्ष्मीचंद मेहता नाराज हो गया, जिसने मुनिम के विरुद्ध भीनमाल कोर्ट में दावा किया था, जिसमें उसने गवाही दी थी, जिस कारण यह झूठा मुकदमा उसके खिलाफ दर्ज करवाया है, इसी प्रकार डॉ. मोहनलाल डोसी गवाह पी.ड.-3 के खिलाफ अपीलार्थी/अभियुक्त ने अखबार में छापा था, डॉ. डोसी का भाई द्वारका डोसी ठेकेदार था, जिसन घटिया सड़क निर्माण की थी, जिसकी उसने खबर अखबार में छापी थी, इसी प्रकार उसने परिवादी, मेहता की अन्य घोटालों की शिकायत भी प्रशासन से की थी, जिससे उक्त परिवादीपक्ष सभी अपीलार्थी/अभियुक्त से रंजिश रखते हुए यह झूठा प्रकरण दर्ज करवाया है। इस गवाह (अपीलार्थी/अभियुक्त डी.ड.-1) की बचाव साक्ष्य, उसे कोई सहायता प्रदान नहीं करती चूंकि प्रकरण प्रलेखीय साक्ष्य प्रदर्श पी-3, 4 व 8 पर आधारित है, जिसकी पुष्टि प्रलेखीय साक्ष्य से भलीभांति होना पाई जाती है, अपीलार्थी प्रश्नगत साप्ताहिक पत्रिका सत्यपुर टाईम्स का संपादक होना स्वीकृत तथ्य है तथा प्रदर्श पी-3,4 व 8 का प्रकाशन उसके द्वारा न किया हो तथा इन्हें किन्हीं अन्य व्यक्ति अथवा परिवादी ने फर्जीवाड़ा करके प्रकाशित किया हो, यह अपीलार्थी का कथन नहीं रहा है, अतः इस मामले में किसी पूर्व की रंजिश व द्वेष के आधार पर अपीलार्थी के विरुद्ध कोई कार्यवाही की जाना किसी भी आधार पर नहीं माना जा सकता, चूंकि प्रकरण का आधार अपीलार्थी द्वारा संपादकीय हैसियत में प्रकाशित किये जाने प्रदर्श पी-3,4 व 8 अखबार है, जिसके लिये वह स्वयं उत्तरदायी है, क्योंकि जिस समाचार पत्र का संपादक अपीलार्थी स्वयं है वह परिवादी सहित किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रकाशित किया जा सकता हो, यह कत्तई विश्वसनीय नहीं है। अतः ऐसी स्थिति में रंजिश किसी व्यक्ति विशेष से हो सकती है, सम्पूर्ण जातिधर्म से रंजिश होना नहीं कहा जा सकता, अतः रंजिश का लिया गया, बचाव अपीलार्थी/अभियुक्त को इस स्तर पर कोई सहायता नहीं करता है। हस्तगत प्रकरण में अपीलार्थी/अभियुक्त ने अपने ही अखबार में जैनजाति धर्म को अपमानित करने के आशय से एक समुदाय विशेष के विरुद्ध धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए इस प्रकार के लेखों का प्रकाशन किया, जिससे पूरा समाज आहत तथा अपमानित हुआ है। इसके अलावा गवाह डी.ड.-2 भेराराम व डी.ड.-3 अमृतलाल दोनों ही अनोप मण्डल के संबंध में साक्ष्य देते हैं तथा अपीलार्थी/अभियुक्त द्वारा जैन धर्म के विरुद्ध प्रकाशन के संबंध में इन्कार करते हैं, लेकिन इन गवाहान ने ऐसा कोई दस्तावेज प्रदर्शित नहीं करवाया है, जिससे यह साबित होता हो 478 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -कि अपीलार्थी/अभियुक्त ने प्रतिबंधित अनोप मण्डल के ग्रंथों जगतहितकारिणी एवं आत्मपुराण के अंश अपने साप्ताहिक समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स प्रदर्श पी-3, 4, व 8 में नहीं छापे हो। इसके अलावा गवाह डी.ड. -3 अपनी साक्ष्य में यह बात स्वीकार भी करता है कि अनोप मण्डल को राजस्थान सरकार ने प्रतिबंधित किया हो तो मेरी जानकारी में नहीं है। इसके अलावा इस संबंध में विद्वान अधीनस्थ न्यायालय ने अपने आलौच्य निर्णय में विस्तृत विवेचन किया है। इसके अलावा जहां तक अपीलार्थी/ अभियुक्त की ओर से प्रस्तुत लिखित बहस के तर्कों का संबंध है, इस संबंध में मेरा यह मत है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है, जिसमें विभिन्न जाति एवं धर्म के लोग निवास करते हैं तथा अपने-अपने ग्रंथों एवं प्रथानुसार धार्मिक अनुष्ठान पूजा, अर्चना, नमाज, तकरीर, प्रवचन आदि कार्य करते हैं, सभी को समान हक व अधिकार है, लेकिन हस्तगत मामले में अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल खत्री ने बतौर सम्पादक के सत्यपुर टाईम्स में अनोप मण्डल के साहित्य अनुसार जैन साधुओं व जैनियों पर किचड़ उछालकर, जैनियों की तुलना रावण, हिरणाकस से की है तथा जैन धर्म में घृणा का वातावरण उत्पन्न करने से उन्हें मानसिक आघात व धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। हालांकि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में सभी व्यक्तियों को अभिव्यक्ति का अधिकार निहित है, परन्तु अभिव्यक्ति के अधिकार निहित होने से किसी जातिवर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, काननून अपराध है। इसके अलावा अधिवक्ता अपीलार्थी का यह तर्क भी रहा है कि धारा 295ए भा.दं.सं. को परिभाषा में अपीलार्थी के विरुद्ध आरोप नहीं बनता इस संबंध में धारा 295ए भा.दं.सं. में यह परिभाषित किया गया है कि " भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के विमर्शित और विद्वेषपूर्ण आशय से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान, उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपेण द्वारा या अन्यथा करेगा या करने का प्रयत्न करेगा" हस्तगत प्रकरण में अपीलार्थी/ अभियुक्त द्वारा जैन धर्म को तथा जैनियों को राक्षस कहना तथा जैनी राक्षस की तुलना रावण एवं हिरणाकस व कंस से करके तथा इस आशय की स्वयं के अखबार सत्यपुर टाईम्स में प्रकाशन कर धार्मिक विश्वासों का अपमान करते हुए जाति विशेष जैनधर्मावलम्बियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कृत्य किया गया है, जो प्रदर्श पी - 3, 4 व 8 से स्पष्ट है। अतः यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। इसके अलावा अधिवक्ता अपीलार्थी का यह भी तर्क रहा है कि अभियोजन स्वीकृति से विसंगतिपूर्ण रही है, इस संबंध में अपीलार्थी की ओर से कोई ऐसी साक्ष्य पेश नहीं की है, जिससे यह साबित होता हो कि अभियोजन स्वीकृति विसंगतिपूर्ण रही हो, इसके विपरीत अभियोजन पक्ष की ओर प्रदर्शित दस्तावेज प्रदर्श पी-5 के अनुसार, अभियोजन स्वीकृति राजस्थान सरकार के गृह विभाग द्वारा उप शासन सचिव विधि के पत्रांक प-10 (17) गृह 10/94 दिनांक 21.12.1995 के, जो प्रदर्श पी-5 है, द.प्र. सं. की धारा 196 के अधीन नियमानुसार जारी की गई है। जहां गवाहान के कथनों में आए विरोधाभास का संबंध है, पत्रावली के अवलोकन से अभियोजन साक्षीगण की साक्ष्य में महत्वपूर्ण प्रकृति का कोई विरोधाभास होना नहीं पाया जाता है, फिर यह मामला 79+ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुख्य रूप से प्रलेखीय साक्ष्य प्रदर्श पी - 3, 4 व 8 पर आधारित है फिर यह भी विधि का सुस्थापित सिद्धान्त है कि घटना के वर्षों बाद लेखबद्ध होने वाले गवाहान के कथनों में मामूली प्रकृति का विरोधाभास होना स्वाभाविक है, किन्तु उक्त मामूली / तुच्छ विरोधाभासों से अभियोजन मामले को अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता बल्कि उक्म मामूली विरोधाभास मानवीय स्वभाव के कारण आना स्वाभाविक है, जो घटना के वास्तविक होने की ओर ही संकेत करते हैं । इसके अलावा अधीनस्थ न्यायालय ने साक्ष्य का भलीभांति विवेचन करते हुए आलोच्य दोषसिद्धि का निर्णय पारित किया है, जिसमें किसी प्रकार की कोई विधिक या तात्विक त्रुटि नहीं पाई जाती है। इसके अलावा यह तथ्य भी निर्विवाद है कि परिवादी राजस्थान विधान सभा का भूतपूर्व विधायक होकर जनप्रतिनिधि है । उक्त गवाह की साक्ष्य का समर्थन अन्य अभियोजन साक्षीगण भी करते हैं तथा यह भी निर्विवाद तथ्य है कि अपीलार्थी/ अभियुक्त सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक पत्रिका का प्रधान संपादक है, जिसकी पुष्टि गवाह डी. ड. - 1 ईश्वरलाल स्वयं अपीलार्थी/ अभियुक्त के बयानों से होती है तथा दिनांक 07.03.1994 प्रदर्श पी-3 दिनांक 25.09.1994 प्रदर्श पी-4 के उक्त पत्रिका के अंकों के अवलोकन से भी होती है, जिसमें अपीलार्थी/ अभियुक्त ईश्वरलल खत्री को प्रधान संपादक बताया गया है, इसके अलावा अभिलेख पर ऐसी कोई साक्ष्य या दस्तावेज उपलब्ध नहीं है कि उक्त साप्ताहिक पत्रिका अपीलार्थी/ अभियुक्त के संपादकीय निर्देशन में प्रकाशित नहीं होती हो तथा प्रदर्श पी - 3, 4 व 8 उसके द्वारा प्रकाशित नहीं किए गए हो । इस प्रकार अभियोजन की उपर्युक्त विवेचनानुसार यह तथ्य युक्तियुक्त संदेह से परे साबित है कि प्रकरण के अपीलार्थी/ अभियुक्त ईश्वरलाल ने सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक अखबार का संपादक होते हुए दिनांक 27.12.1993, 07.03.1994 एवं 24.05.1994 के अखबार में जैनियों के विरुद्ध अनोप मण्डल के प्रतिबंधित ग्रंथ जगतहितकारिणी एवं आत्मपुराण के लेखों को प्रकाशित करके, उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाकर उन्हें मानसिक आघात भी पहुंचाया है। इसके अलावा अधीनस्थ न्यायालय ने आलौच्य निर्णय में साक्ष्य का विस्तृत विवेचन करते हुए पारित किया है, जिसमें कोई तात्विक या विधिक त्रुटि नहीं पाई जाती है तथा पारित आलौच्य निर्णय में हस्तक्षेप की कत्तई गुंजाईश नहीं होने से पारित आलोच्य निर्णय को संपुष्ट किए जाने योग्य है। अपीलार्थी/ अभियुक्त की हाजरी बाबत जामनत मुचलके निरस्त किए जाते हैं, अपीलार्थी/ अभियुक्त को अभिरक्षा में लिया जाता है। (संदीप कुमार शर्मा) अपर सेशन न्यायाधीश, भीनमाल (जालोर) - दण्डादेश दंड के बिन्दु पर सुना गया। अधिवक्ता अपीलार्थी/ अभियुक्त का तर्क है कि घटना वर्ष 1994 से संबंधित है तथा अपीलार्थी लम्बे समय से अन्वीक्षा की पीड़ा भुगत रहा है, वह पूर्व दोषसिद्ध नहीं है, तथा 80 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह एसका प्रथम अपराध है, अतः उसे परिवीक्षा अधिनियम का लाभ प्रदान किया जाए। अपर लोक अभियोजक ने विरोध किया। हमने पत्रावली का अवलोकन किया। अपीलार्थी/अभियुक्त ने एक जाति विशेष की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की नियत से प्रतिबंधित पुस्तकों के अंश को अपने अखबार में प्रकाशन कर जैन समाज की धार्मिक भावनाओं व आस्था को आहत किया है तथा जैन धर्मावलम्बियों के प्रति भयंकर दुष्प्रचार किया है। अतः ऐसे समाज विरोधी कृत्य को देखते हुए परिवीक्षा अधिनियम का लाभ प्रदान किया न्यायोचित प्रतीत नहीं होता है। अतः मेरे मत में अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित किया गया दण्डादेश प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए पूर्णतया युक्ति-युक्त व उचित है, जिसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता। अतः अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित दण्डादेश भी संपुष्ट किए जाने योग्य है। आदेश परिणाम स्वरूप अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल द्वारा प्रस्तुत यह अपील अस्वीकार की जाकर खारिज की जाती है। विद्वान अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि का निर्णय व दण्डादेश दिनांक 16.04.2010 को संपुष्ट किया जाता है। अधीनस्थ न्यायालय का सजायाबी वारंट की पुष्टि की जाती है, जिसके अनुसार सजा पुष्टि वारंट बनाया जाये। अधीनस्थ न्यायालय की पत्रावली मय निर्णय की प्रति अविलम्ब लौटाई जावे। निर्णय की प्रति अपीलार्थी/अभियुक्त को निःशुल्क दी जावे। (संदीप कुमार शर्मा) अपर सेशन न्यायाधीश, भीनमाल (जालोर) निर्णय आज दिनांक 28.09.2013 को खुले न्यायालय में लिखाया जाकर सुनाया गया। (संदीप कुमार शर्मा) अपर सेशन न्यायाधीश, भीनमाल (जालोर) 481 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान सरकार गृह (ग्रुप-10 ) विभाग क्रमांक :-10 (17) गृह - 10/94 जयपुर, दिनांक :-21.12.95 यतः राज्य सरकार के ध्यान में लाया गया है कि दिनांक 25.5.94 को परिवादी श्री लक्ष्मीचंद मेहता पुत्र श्री उम्मेदमल जाति जेन निवासी सांचोर ने पुलिस थाना सांचोर में रिपोर्ट इस आशय से प्रस्तुत की कि श्री ईश्वरलाल खत्री जो स्वयं को अनोप मण्डल का सदस्य बताता है, तथा जो 'सत्यपुर टाईम्स' नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशक, मुद्रक व स्वत्वाधिकारी है, तथा इस समाचार पत्र को अपने एजेन्टों के माध्यम से वितरित करता है, ने अपने समाचार पत्र दिनांक 15.2.94 के 'सत्यपुर टाईम्स' के अंक संख्या 42 में जैन धर्मावलम्बियों की तुलना राक्षसों से कर जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। जैन महाजनों की तुलना रावण व हिरणाकुश से अपने संस्करण दिनांक 22.2.94 अंक 43 मे कर हिंसा व घृणा का प्रचार प्रसार किया है। इनके संस्करण दिनांक 24.5.94 को इसने साम्प्रदायिक लेख के अन्तर्गत इन्द्रजाल के द्वारा बुद्धि भ्रष्ट कर लोगों को नेकी से हटाने का आपत्तिजनक प्रकाशन किया है। इन तथ्यों पर पुलिस ने प्रथम सूचना संख्या 135 / 94 अन्तर्गत धारा 153ए 295ए भा.दं.सं. में पंजीबद्ध कर अन्वेषणा प्रारम्भ किया। अन्वेषण के दौरान मुस्तगीस लक्ष्मीचंद गवाहान मोहनलाल दोसी के बयान लेखबद्ध किये गये, ‘सत्यपुर टाईम्स' से आपत्तिजनक अंक-6 दिनांक 7.3.94, अंक 18 दिनांक 24.5.94 प्रति तथा अंक 27.12.94 की छायाप्रति व अन्य आवश्यक दस्तावेज जब्त किये गये । • आदेश -- ईश्वरलाल खत्री पुत्र श्री कालू जो खत्री निवासी सांचोर के द्वारा अपने समाचार पत्र के उपरोक्त अंकों के प्रकाशन करने से जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाकर अपमानित करने का कृत्य प्रथम दृष्टया किया है, जिसके लिए उनके विरुद्ध धारा 295ए भा.दं.सं. का अपराध कारित करना पाया जाता है। अतः राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत किये गये अभिलेख एवं साक्षीगणों के बयानों का अवलोकन से यह प्रतीत होता है कि उक्त ईश्वरलाल खत्री ने जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाकर अपमानित किया है, तथा राज्य सरकार सन्तुष्ट है कि उक्त ईश्वरलाल के विरुद्ध धारा 295ए भा.दं.सं. के अन्तर्गत अपराध बनता है, तथा इनके विरुद्ध सक्षम न्यायालय में अभियोग चलाया जावे। 1 अतः राज्य सरकार द्वारा धारा 196 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए अभियुक्त ईश्वरलाल खत्री पुत्र श्री कालूराम जाति खत्री निवासी सांचोर के विरुद्ध धारा 295ए भारतीय दंड संहिता एवं अन्य जो भी अपराध उक्त अभियुक्त के विरुद्ध पाया जावे, के लिये सक्षम न्यायालय में अभियोग प्रस्तुत करने की अभियोजन स्वीकृति एतद् द्वारा जनहित में प्रदान की जाती है। राज्यपाल के आज्ञा से 82+ (सुन्दर लाल बत्रा ) उप शासन सचिव गृह राजस्थान सरकार शासन सचिवालय, जयपुर Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपखण्ड मजिस्ट्रेट का आदेश - एक उदाहरण सशर्त सत्संग की अनुमति संस्थान की स्थापना के बाद जिला प्रशासन अनूप मण्डल के भाविकों को मेले व शोभायात्रा निकालने की अनुमति नहीं देता है। कहीं सत्संग करने की अनुमति दी जाती है उस पर प्रतिबंध लगाकर सशर्त अनुमति दी जाती है। इसके विरुद्ध सन् 1996 में अनूप मण्डल के भाविक सोमाराम गरासिया पुत्र प्रेमाजी निवासी अलमराज की कचेड़ी, भीमाणा ने राजस्थान हाईकोर्ट में रिट सं. 158/96 पेश की थी, जिसे संस्थान के प्रयत्न से 10/11/97 को खारिज कराया गया। अनूप मण्डल के सत्संग पर प्रतिबंध लगाने का एक उदाहरण उपखण्ड मजिस्ट्रेट, सिरोही का आदेश क्रमांक न्याय /99/1199-1204 दिनांक 30/12/99 की प्रतिलिपि निम्न प्रकार है : कार्यालय उपखण्ड मजिस्ट्रेट, सिरोही क्रमांक :न्याय /99/119 दिनांक : 30-12-99 श्री प्रकाशराज पुत्र श्री गलाराम गहलोत (माली) निवासी गोकुलवाड़ी (शिवगंज) अध्यक्ष, अनोपमण्डल, शिवगंज विषय : श्री अनोपदासजी महाराज के शिवगंज में दिनांक 1.1.2000 को सत्संग समारोह बाबत्। उपरोक्त विषय में लेख है कि आपके प्रार्थना-पत्र दिनांक 27.12.99 के सम्बन्ध में आप निम्नांकित कार्यवाही करें :1. श्रीमान् पुलिस अधीक्षक, सिरोही से नियमानुसार आयोजन हेतु अनुज्ञा पत्र प्राप्त करें। 2. आयोजन में लाउड स्पीकर का उपयोग नहीं करें। 3. आयोजन में शोभायात्रा एवं जुलूस नहीं निकालें। 4. आयोजन में किसी भी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र का प्रदर्शन नहीं करें। 5. आयोजन स्थल के मालिक से लिखित में सहमति प्राप्त कर प्रस्तुत करें। 6. आयोजन से पूर्व शांति व्यवस्था की दृष्टि से आयोजन स्थल का थानाधिकारी शिवगंज को मौका मुआयना करवावें। 7. आयोजन से पूर्व अधोहस्ताक्षरकर्ता एवं उप पुलिस अधीक्षक, सिरोही को आयोजन स्थल की व्यवस्थाओं की जनसुरक्षा एवं सुविधाओं की दृष्टि से यथा पेयजल एवं विद्युत की व्यवस्था किस -831 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यक्ति द्वारा एवं किस प्रकार तथा किन व्यक्तियों द्वारा की जावेगी व जनसुविधा एवं सुरक्षा से संबंधित अन्य बातों की जानकारी लिखित में उपलब्ध करावें। जानकारी उपलब्ध करवाने से पूर्व एवं अधोहस्ताक्षरकर्ता एवं उपपुलिस अधीक्षक के इन व्यवस्थाओं से संतुष्ट होने से पूर्व जनसमूह को एकत्रित नहीं होने देवें। 8. शिवगंज नगरपालिका क्षेत्र में धारा 144 लगाई जा चुकी है। इसकी पालना करें। 9. आयोजन में धार्मिक भावना भड़काने वाले पोस्टर, पेम्पलेट आदि का प्रदर्शन नहीं करें एवं नहीं क्षेत्र में वितरण करें। 10. अनूप मण्डल का प्रतिबंधित साहित्य, यथा जगत हितकारिणी, न्यायचिंतामणि, आत्म पुराण, किताब मुफीद आम मोसुमव आदि एवं इसके संबंधित पोस्टर, पेम्पलेट आदि को महिमा मण्डित नहीं करें। प्रतिबंधित आदेशों की प्रतियां आपके सभी पदाधिकारियों को प्रशासन द्वार गई है। .. ह. उपखण्ड मजिस्ट्रेट, सिरोही 84 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ खण्ड 1. भारतीय प्रेस परिषद् का निर्णय दिनांक 28.03.1994 विरुद्ध श्री निकलंक एक्सप्रेस' 2. भारतीय प्रेस परिषद् का निर्णय दिनांक 23.06.1997 विरुद्ध 'श्री निकलंक एक्सप्रेस' (उद्धरण) 3. ' असिस्टेन्ट चेरिटी कमिश्नर थाने का निर्णय दिनांक 17.04.2001 - संबंधित आवश्यक उद्धरण 4. भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान द्वारा जारी दिनांक 13 अक्टूबर 1996 96 5. भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान द्वारा जारी दिनांक 1 अक्टूबर 2000 परिपत्र के आवश्यक उद्धरण 107 6. महानिरीक्षक पुलिस कानून व्यवस्था, जयपुर के 17.07.97 को पाली सिरोही आगमन पर उन्हें राज्य सरकार द्वारा प्रतिनिधि मण्डल से हुई वार्ता के फलस्वरूप दी गई सूची1. अनूप मण्डल द्वारा निर्मित धार्मिक स्थल जो राजस्थान रिलीजियस बिल्डिंग एण्ड प्लेसेज एक्ट की खिलाफवर्जी में बनाई गई। 2. उन व्यक्तियों की सूची जिनके पास अनूप मण्डल का प्रतिबंधित (जब्त करने योग्य) साहित्य उपलब्ध हो सकता है। ये सूचियें 'निकलंक एक्सप्रेस' में । में प्रकाशित सूचना के आधार पर तैयार की गई।। 7. गुजरात एवं राजस्थान में साधु संतों की सुरक्षा हेतु पुलिस का विहार में साथ रहने के समाचार का दैनिक भास्कर का उद्धरण Page #93 --------------------------------------------------------------------------  Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाड़मेर ने जून 19 भारतीय प्रेस परिषद्, नई दिल्ली वार्षिक रिपोर्ट (1993-94). (1 अप्रैल 1993 - 31 मार्च 1994) 56) श्री जैन श्वेताम्बर, अध्यक्ष, खट्टरगच्चा श्री संघ, बाड़मेर . बनामश्री निकलंक एक्सप्रेस बाड़मेर (दिनांक 28-3-94 को निर्णीत) सम्पादक ने खेद व्यक्ति किया-मामला समाप्त शिकायत शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि प्रतिवादी, श्री निकलंक एक्सप्रेस, हिन्दी साप्ताहिक, डमेर ने जन 1992 से अक्टबर 1992 के बीच अपने अकों में 'जगत हितकारी'.'न्याय चिन्तामणि' और 'आत्म पुराण' जैसे ग्रंथों से अंश प्रकाशित कर जैन धर्म के अनुयायियों के विरुद्ध सुव्यवस्थित अभियान चलाया है। उनका तर्क है कि ये पुस्तिका/पुस्तकें राजस्थान सरकार द्वारा प्रतिबंधित हैं और भारतीय दंड विधि प्रक्रिया की धारा 153 अ और 295 अ के अन्तर्गत इन दस्तावेजों का प्रकाशन दण्डनीय है। उनके अनुसार, इन आक्षेपित समाचारों के प्रकाशन का उद्देश्य भारतीय नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रता और घृणा की भावना को फैलाना है। प्रतिवादी सम्पादक ने अपने लिखित क्क्तव्य में कहा है कि जैन साहित्य में अन्य समुदायों के बारे में विषयोद्गार उद्धरित हैं। बाजार में इनका साहित्य उपलब्ध नहीं है और इसीलिए उन्होंने इसे अपने समाचारपत्र में प्रकाशित किया है। आक्षेपित रिपोर्ट सदाशय से प्रकाशित की गई है और यह किसी भी प्रकार से किसी को असंतुष्ट नहीं करता। हालांकि, वह इस बात से अनभिज्ञ थे कि राजस्थान सरकार ने इन पुस्तकों को प्रतिबंधित किया है अन्यथा वे इसके अंश प्रकाशित नहीं करते। निर्णय दस्तावेजों के अवलोकन और जांच समिति की सिफारिशों के बाद परिषद् इस बात से सहमत है कि रिपोर्ट सरकार द्वारा पुस्तक को प्रतिबंधित करने के फैसले से अनभिज्ञ होने के कारण प्रकाशित की गई। आक्षेपित प्रकाशन वस्तुतः कुनिष्ठा अथवा दुर्भाव से नहीं किया गया। इसके अलावा, सम्पादक ने अनभिप्रेत त्रुटि के लिए खेद व्यक्त कर दिया है। उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए परिषद् ने मामला समाप्त करने का निर्णय किया। -85 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRESS COUNCIL OF INDIA Faridkot House (Gr. Floor), Copernicus Marg, New Delhi-110001 Chairman : Justice P.B. Sawant Secretary: G.D. Batra Tel. No.: 3381569 Fax No.: 011-3386003 File No. 14/180/96-97-PCI Dated : July/ , 1997 Shri Sau Tipubaai Ratanchand Jain, (Mutha) Religious & Charitable 165, Dongari Jail Road (East) Mumbai 400009 The Editor, Niklank Express, Pachpadra Nagar-344032, District Barmer, Rajasthan. Subjcet: Complaint of Sh. Sau Tipubai Ratanchand Jain (Mutha) Religious & Charitable Trust, Mumbai against Niklank Express, Barmer (Rajasthan) Sir/Madam, I am directed to forward herewith a copy of the decision rendered by the Press Council of India on June 23, 1997 at Nainital in the aforesaid matter for inctrmation/ complied necessary action. Your faithfully, (Special Assistant) 86 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RELEVANT EXTRACTS FROM DECISION OF PRESS COUNCIL OF INDIA S.No. 30 Shri Sau Tipubai Rathanchand Jain (Mutha) Religious & Charitable Trust, Mumbai Versus F.No. 14/180/96-97 The Editor. SHRI NIKLANK EXPRESS, Hindi Weekly Distt. Barmer, Rajasthan. Complaint: This complaint dated May 27, 1996 was filled by Shri Sau Tipubai Ratanchand Jain (Mutha) Religious & Charitable Trust, Mubai highlighting the allegedly subversive activities of the Sadhu Shree Anoodasji Jagat Hit Karni Mandal, Vasai East, District Thane and inter-alia stated that the impugned news items published in 'SHRI NIKLANK Express', Pachpadra nagar based Hindi weekly were anti-Jain. The captions and the dates of the impugned news items levelling allegations againt the Jain Community published in the aforesaid weekly from 1993-1995. The complainant submitted that Sadhu Shri Anoopdasji Jagat Hit Karni Mandal was promoting on the grounds of religion, caste and disharmony, enmity, hatred and ill-will between its followers and those who belonged to Jain religion. He further submitted that the Mandal was periodically publishing a bulletine named "Shri Niklank Express' through activists. The complainant further submitted that the Mandal had been distributing pamphlets also containing scurillous writings agains the Jain community. He further submitted that they had reasons to believe that the Mandal was being financed by foreign agencies who were interested in disrupting orderly life in the country. 87. The complainant further submitted that the respondent while publishing the impugned publication did not maintain the standard of public taste as the publications had created discontentment, hatred, disharmony amongst the followers of the Jain religion and the Jain community in general. The complainant also drew the attention of the Council to its own decision dated 28/3/94 in the complaint of President, Shree Jain Shwetabar, Khatargachcha Shre Sangh, Badmer against Shri Niklank Express and the matter was closed as the respondent editor had expressed regrets and also stated that he was not aware that the books from which he had taken the extracts were banned by the Government of Rajasthan. He further submitted that despite the earlier action taken against the respondent, the respondent had no affect and he continued to publish the news items against the Jain community. The complainant further requested that if there was only delay in filing the complaint, the same might be condoned. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ In his counter comments dated 22/10/96 the complainant submitted that the reply of the respondent was based on religious ill feelings, caste, community, disharmony, enmity, hatred and ill will to the Jain community and the followers of the Jain religions. He further submitted that the respondent dealt with the subject matter. The complainant further denied the allegations levelled by the respondent. He further submitted that they had also sent a separate letter dated 27/7/96 to the respondent but till date no reply had so far been received from him. The complainant prayed that the complaint be allowed and necessary action be taken agaisnt the respondent for publishing defamatory news items against the Jain community. A copy of the counter comments of the complainant was forwarded to the respondent on 20/11/96 for information. In a further communication received in the Secratariat of the Council on 17/12/96 the complainant submitted that they were surprised to receive the edition of the respondent "Shri Niklank Express" dated 19.11.96 on 10/12/96 at Mumbai in which severe criticism was levelled on the rejoinder. The complainant laso submitted that in the said edition certain remarks were also made against the Chairman, Press Council of India, Hon'ble Justice P.B. Sanwat and the Press Council. On perusal of the publication it has been found that the weekly has requested the Press Council of India to bind the complainant to clarify the truthfulness of Jain Granths or close the complaint made before it forever. He requested the Council to take stern action against the respondent for commenting and giving his views on the subject matter. Inquiry Committee: The matter was called out for hearing before the Inquiry Committee at Mumbai on 21.4.97. Shri T.M. D'Silva, Advocate with Shri Ranjeet R. Jain, Trustee appeared for the complainant Shri Sau Tipubai Rathanchand Jain Religious and Charitable Trust, Mumbai. The respondent newspaper, Shri Niklank Express, Barmer was not represented. A telegram was received from the respondent editor requesting for adjournment and hearing of the case to Delhi as he apprehended danger to his life in Mumbai. The Committee did not grant the adjournment and proceeded to consider the case. The complainant was aggrieved over the publication of a number of news items in different issues of the respondent newspaper. According to the complainant, the news items were anti-Jain Community. He further submitted that the impugned publications did not serve any public interest but had created descontent, hatred and disharmony amongst the followers of the Jain religion and the Jain Community. He further submitted that the President of the Trust had earlier also filed a complaint with the Press Council against the respondent newspaper for articles carrying reproduction from a book banned by Rajasthan Government because of its comments against Jainism. This was closed by the Council on 28/3/94 as the respondent editor had expressed regrets and had stated that he was not 88 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aware that the book from which he had taken the extracts was banned by the Rajasthan Government. The complainant added that despite expressing regrets, the respondent published a number of news items against the Jain Community. The gists of some of the impugned news items read as follows: 1. Title "Desh Ke Bigadte Halat per Kabu Paya Ja sakta Hei" - 30.3.93 "Tantra Mantra Vidya Ki Sachhai Ki Pramanikata" The summary of the articles is that: 2. 3. 4. 5. 6. Jain yati (Sadhus) with the help of Tantra & Mantra, have become so powerful that they can make temples fly from one place to another, say 150 kilometres, simply to create misunderstanding, amongst people other than Jains. Title "Who are responsible for Dangerous earthquakes and damages at Latur. Is it possible for science to stop it"? dated 26.10.93 Title "Danav Baniya Hain" a) Premature deaths of creatures (Jeev) is due to Baniyas (Jains) Magic and Yagya (Hom). b) Many kinds of diseases and Mass deaths (Mandgi), Famines, Earthquakes, Toofan, are not developed naturally but created by Danav Baniya (Rakshash Jains Magic) and Hom (Yagya). Niklank Express dated 11.10.94. Title "Plague is not natural but it is the result of Baniyas" Sins (Jains' Sins) Government should enquire?". Niklank Express Dated 30.5.96. Title Pakhandmat Brahamakumari Vyabhichari Sanstha "In adivasis Areas Sahukar (Richmen) Baniya control rains and when Adivasis loot them, then the rain comes. Sahukar Baniya means Jains. This way they make propoganda in village and Adivasis get angry and create trouble and destroy peace." Niklank Express Dated 6.6.1995 Title To snatch freedom of Press is trick of Saudagars Mahajans (Jains). Where is hell? Who tortures (Dukh dene wala)? Jagat Hit Karni and Atampuran are the basis of Jain Shastra (Jain Religious books). "In the past people knew only Hindus and Muslims, and were not aware of the Jain religion. On enquiry, it was found that it is responsible for all sins. Due to Demon Vidya they have created famine in the world." Like-wise the entire page casts aspersions and degrades the Jain religion. It is stated that Jains are responsible for all ills and evils. The books of Jain also give details about Hell in this world. Niklank Express dated 18.7.95. "Worshipping of Idols is a wrong thing. Jains have started worshipping 24 Thirthankars 89 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ by making naked idols of stone and likewise Hindus have followed them. Government should stop Jains from making new temples because it is all waste of millions and millions of money. This should be decided by calling a conference of all the religious leaders. 7. Title Jain Baniya Rakshashi Karam "Heaven and Hell are made by Baniya Jains. Actually Heaven and Hell exist on mother earth. Baniya are making Heaven and Hell by their Demon Sins. Even Kings and public do not understand due to greed for money, i.e. sons die before father, Famine, Diseases, Earthquakes all are creation of Baniya Jains." In his written statement, the respondent editor stated that the complainant did not send any contradiction to the news items. He further stated that his paper was interested in spiritualism preached by various religious and some of the thoughts, which the newspaper considered mysterious or illusory, were placed before the public through the news items. He added that they had no intention to hurt the feelings of a particular community. The complainant in his counter stated that they had sent a letter dated 27/2/96 to the respondent, which was carried by the respondent in its issue dated 19.11.96 and a copy of the issue sent to them in Mumbai. The rejoinder so published carried a lot of criticism of Jains and also remarks against the Press Council. Learned counsel for the complainant stated before the Inquiry Committee that the complainant was a charitable and religious Trust representing the Jain Community. The respondent newspaper, taking extracts from the book "Jagat Hit Karni", which was banned by the government of Rajasthan published a number of impugned news reports agaisnt Jains which were highly objectionable and critical of the Jain community as a whole. The activists of Sadhu Shre Annoopdasji Jagat Hit Karni Mandal and some other containing impugned news reports in Mumbai and some other parts of Maharashtra creating unrest among the Jain community and promoting and provoking enmity and hatred between Jains on the one hand and all other communities on the other. The Committee carefully considered the material on record and oral submissions made before it by the learned counsel of the complainant. It noted that the respondent editor appeared to have launched a vilification campaign against the Jain Community by publishing a series of reports which contained unwarranted allegation against the Jain Community. In the news reports objected to in the present plaint, the Jain Community as a whole, had been blamed for all types of ills, disease and natural calamities. Jains were described as meat eaters. In the opinion of the Committee, the impugned news reports were indicative of a perverse mind and intellect and were intended to promote feelings of enmity and hatred between Jain Community and other communities and create disaffection against the Jain community. The impugned reports had been published recklessly and without regard to decency and morality. The respondent editor published the rejoinder of I. 90 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ the complainant wherein further allegations were made and aspersions were cast on the Jain Community. Even earlier a banned book of Jains had been made the basis of objectionable reports. The Committee noted that the earlier complaint filed by Shree Shwetambar Khatargachcha Shre Sangh, Barmer against the respondent newspaper for publishing news items against Jain Community on the basis of the banned book was closed as the editor had pleaded ignorance about the banned nature of the book and had expressed regrets for the same. The repetition of the same type of news items clearly showed that the news reports were a deliberate and a malicious attempt on the part of the respondent editor to malign the Jain Community. In the view of the Committee the respondent was guilty of a gross abuse of the freedom of the press and deserved condemnation in the strongest possible language. It, therefore, decided to uphold the complaint and to recommend to the Council to censure the respondent newspaper Shri Niklanka Express, Barmer and to direct its editor to publish the gist of Council's adjudication on the front page in its forthcoming issue and send a copy of the issue carrying council's adjudication to the Press Council as well as to the complainant for record. It also recommended to the Council to report the name of the newspaper to the government for taking such action as it may deem fit for a wilful, persistant malicious attack against the Jain Community, which was also disclosed the diseased mind and perverted thinking faculty of the editor. The Press Council on consideration of the records of the case and the report of the Inquiry Committee, accepts the reasons, findings and the recommendations of the Inquiry Committee and decides accordingly. Authenticated Dated 23.6.97 (P.B. Sawant) Chairman Press Council of India Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RELEVANT EXTRACTS BEFORE THE ASSISTANT CHARITY COMMISSIONER, THANE REGION, THANE Inq. No. 131/1995 In the matter of SHRI ANOOP SWAMINI JAGATHIT MANDAL, Vasai. Mr. Dhool Singh Kesarsingh Panwar Applicant. V/s . Mr. Tipubhai Jain & Others. Opponents. Claim :-Application under Section 19 of the B.P.T. Act, 1950 for registration of trust as a public trust under the B.P.T. Act, 1950 Appearance- Shri Vidhvans Advocate for applicant. Shri Lalit K. Jain Advocate for opponents. ORDER 1. Facts, in, brief, are as under : That SHRI ANOOP SWAMIJI JAGARHIT MANDAL' Vasai is already registered as a Society under Societies Registration Act, 1860 on 8th March, 1995. The objects of the trust are 1) To impart the religious teachings to the people as directed by Sri Anoopdasji Maharaj in their Holy and prestigious scripture 'Shree Jagathit Karni''Ahri Atma Puran''Shri Athnyav Chintamani' and 'Shree Adu Puran' (Bhajanavali). 2) To propogate all the Holy and prestigious scripture. 3) Propogate of the education, to help poor, destitute at the time of un-foreseen calamities. 4) Medical Assistance. 5) To fulfil the aims of 4 holy scriptures of Sadhu Shri Anoopdasji Maharaj. 2. The mode of succession to the trusteeship and managership in by way of election of the managing committee after every Three years by way of election. The sources of income of the trust are donations, interest, dividend on investment and rent from properties. 3. It is prayed that the trust be registered under the Bombay Public Trusts Act, 1950. 4. The application is opposed by the opponents by filing their objection at Ex. No. 8. They contend that they are the charitable and religious trust representing the Jain community and followers of the Jain religion in the State of Maharashtra. The applicant 92 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ society has supressed relevant and material facts to this authority and has obtained registration. The registration of the said society is therefore illegal and bad in law. The memorandum of association and the four books published and circulated by the Mandal casting aspersions on the Jain religion are: 1) Shree Jagat Hith Karni. 2) Shri Atma Puran. 3) Shree Atha Nayay Chintamani, 4) Shri Adu Puran Bhajanavali. The contents of the said 4 books has created dioscontentment, hatred, dis-harmony, amongst the followers of the Jain Religion and Jain community in general in the State of Maharashtra. The books mentioned in the Memorandum of Association by way of objectives of the mandal is anti religious and against the Jain religion. 4. It is further contended that the then British Government in the year 1940 had cancelled the registration of the book Jagat Hith Karni, one of the books mentioned in the books of the Mandal. In the year 1957, the Government of Rajasthan had also banned the aforesaid four books of the said mandal and the pamphlets distributed by them. Several criminal cases are pedning against the said Mandal activists for distribution anti religion pamphlet through out the country. The Government of Maharashtra while its notification No. (BAP-1095/1954/Cr-313/95/XXIV, dt. 17th Jan., 1997 has sanctioned prosecution ofone of the activist of the Mandal who was distributing Pamphlets based on the aforesaid books. The Police had also seized and confiscated the anti religious and derogatory material from the registered office of the aforesaid mandal at Vasai. 5. It is prayed that the registration of the said mandal under Societies Registration Act may kindly be cancelled or de-registered and the present application be rejected. REASONS In order to prove his case, the applicant has filed on record consent letter, copy of Memorandum of Association Rules and Regulations. The applicant has also filed an affidavit of Mr. Ravidas s/o Ratandas at Ex. No. 35. As against that the opponent has filed an affidavit of Mr. Ranjit Ratanchand jain at Ex. No. 39 and also filed certain documents which will be referred at the proper place. 9. It is admitted fact that the trust in question has been registered under the Societies Registeration Act 1860 bearing registration No. Mah/199/95 dt. 8th March. In the Memorandum of Association Ex. No. 3, the four book, i.e. shri Jagathit karni, Shree Atma Puran, Shri Atha Nyay Chintamani and Shri Adu Puran Bhajanavali, have been mentioned as the objects of the trust. It is the case of the opponents that the contents in the aforesaid books has created discontentment, Hatred, disharmony amongst the followers 93 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ of the Jain religion and Jain community in general in the State of Maharashtra. The witness Mr. Ravidas Ratandas had admitted in his cross examination at Ex. No. 42 that the objects of the trust is to propogate thoughts of Anoop Maharaj by way of the books mentioned in para of 5 of his affidavit Ex. no. 35. In this affidavit Ex. No. 35 he has affirmed that objects of the trust are to impart the religious teachings to the people and to inculcate the feelings of Javdaya and to instruct people to chant, paisnes of God as mentioned in the prestigious Adu Scriptures of Parampujya Shri Sadhu Anoopdasji Maharaj Viz. Shri Jagat Hitkarni, Shri Atma Puran, Shri Adha Niyay Chintamani, Shri Adu Puran Bhajanavali. He has further admitted in his cross examination that Thirthankar pur views in book Atmapuran in Kundaliya No.46. Thirankar are the gods in Jain religion in the Kundaliya. Thirthankar are called as a ghost. The word Vaniya mentioned in Kundaliya used for Jain people. He further admits that in Kundaliya it is mentioned that all Baniyas are like the Ghosts. Thirthankars are not incarnation but they are ghosts. In Kundaliya No. 45 of the book Arma Puran it is mentioned that the jain religion is only for name sake. But they killed living creature. The Baniyas are from the ghosts community. In Kundaliya No 48, it is mentioned that in Baniya community a brother and sister reside together as a husband and wife. Those who join Jain religion, they spoils their life. In Kundaliya No. 310 it is mentioned that to go into Jain temple it is to creat seen (sin). However, he has shown his un-awareness whether the registration of the book Jagat Hit Karni was cancelled by the British Government and whether the Rajasthan Government has banned the said book on 19th Aug., 1957. He has also shown his un-awareness whether other three books are also banned in the 1957 by the Rajasthan Government. He admits that a criminal case was pending against him in Sandera Police Satation, District, Pali in Rajasthan. He further admits that the books were taken by the Police under the Panchnama. Mr. Ramesh Kumar Keshavlal Prajapati, the active member of Society was arested by Police on the ground that he had destroyed Jain temple in Rohida Village. The witness Mr. Ravidas Ratandas has admitted that in the registration of the society, he had shown the books against Jain community. The witness has further admitted that after registration of the trust, he would propogate thoughts of the Anoopchandji Maharaj and Harichandraji Toli. 10. From the aforesaid discussion, it is clear that the contents of shri Jagat Hit Karni, Shri Atma Puran, Shree Athnyay Chintamani and Shri Adu Puran Bhajanavali are against the Jain community. Therefore in my opinion the propogation of the thouhgts from the aforesaid books can not be the objects of the trust being against the Jain community. However, there are other objects like helping of poors. destitute at the time unforseen calamity, medical assistance etc. So the mandal can be registered provided objects 3-A, B, C are deleted. - 94 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11. In view of aforesaid discussion, I hold that the trust in question is in existence and it is entitled to be registered as a public charitable trust subject to deletion of the objects as mentioned in caluse-3A, B and C as mention in the Memorandum of Association Ex. No. 3. 12. In the result, the application is allowed subject deletion the objects in clause No. 3-A, B, C mentioned in Memorandum of Association. Hence, I pass the following order : ORDER 1. The trust in question be registered as per findings recorded under the B.P.T. Act, 1950, subject to deletion of objects as mentioned in clause-3-A, B, C as mention in the Memorandum of Association Ex. No. 3. 2. Certificate of 'E' Section be issued to the applicant. 3. Particulars of the trust be entered in the P.T. Register (Sch. I) accordingly. 4. The trust property shall vest in the trustees. Dt. 17-4-2001. Thane (B.N. Wagh) Asstt. Charity Commissioner, Thane Region, Thane Ssw/ 95 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान, जोधपुर दिनांक 13 अक्टूबर 1996 . परिपत्र राजस्थान राज्य सरकार ने जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं का अपमान करने, आहत करने, जैन समुदाय के अनुयायियों के प्रति शत्रुता, घृणा, भय, वैमनस्य एवं असुरक्षा की भावना फैलाने, शान्ति में बाधा डालने के कारण अनूप मण्डल व उनके अनुयायियों द्वारा प्रकाशित पुस्तकों, इश्तहार (पेम्पलेट) व दस्तावेज का प्रकाशन फौजदारी कानून (इण्डियन पेनल कोड) की धारा 153ए एवं 295ए के तहत दण्डनीय मान कर उन्हें जब्त (फोरफिट) करने की विज्ञप्ति पुराने जाब्ता फौजदारी कोड की धारा 99ए (नये कोड की धारा 95) में जारी की है। इस विज्ञप्ति का क्रमांक एफ. 25(9) एच.बी./56 दिनांक 5-8-57 है, जो राजस्थान राजपत्र (गजट) दिनांक 29-8-57 के भाग 1(ख) के पृष्ठ 270 पर छपी है तथा 20 नवम्बर 1957 को जारी अधिसूचना द्वारा इसके पुनः मुद्रण, उद्धरण, प्रत्युपादन अनुवाद या लिप्यंतरण जोड़ा गया है। अधिसूचनाएं आज भी प्रभावी हैं। (विशेष नोट-इन्हें निरस्त करने के लिए अनूप मण्डल द्वारा राजस्थान उच्च न्यायालय में आवेदन किया था जो 9 फरवरी 2010 को खारिज कर दी गई।) राज्य सरकार द्वारा जब्त की जाने वाली ऐसी पुस्तकें, दस्तावेज, पेम्पलेट का विवरण निम्न प्रकार है : 1. जगतहित-कारनी 2. न्याय चिन्तामणी 3. किताब मुफीद आम मौसूमव 4. आत्म पुराण 5. अनुपस्वामी की आरती 6. दुखियों की पुकार धारा 95 दण्ड प्रक्रिया संहिता में स्पष्ट प्रावधान है कि अधिसूचना जारी करने के पश्चात् ऐसा साहित्य भारत में जहां भी मिले कोई भी पुलिस अधिकारी उसे जब्त कर सकता है। राज्य सरकार द्वारा किये गये इस जब्ती के आदेश की पालना में कुछ वर्ष पूर्व पुलिस विभाग द्वारा जहां भी यह पुस्तकें उपलब्ध थी, वहां से जब्त कर जलाई गई थी। इस समस्त कानूनी कार्यवाही के बावजूद कुछ असामाजिक तत्व इन पुस्तकों व दस्तावेज को अपने पास रखे हुए है। उसका प्रचार-प्रसार करते हैं-वितरण करते हैं-छापते हैं, समाचार पत्र 'निकलंक एक्सप्रेस' एवं 'सत्यपुर टाईम्स' दुर्भावनापूर्ण एवं विद्वेषपूर्ण आशय से इनका उद्धरण प्रकाशित करते हैं। मेले व सत्संग, जुलूस, शोभायात्रा, आयोजन कर जैनियों के धार्मिक विश्वासों का अपमान करते हैं, समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा व वैमनस्य की भावनाएं फैलाते हैं तथा शान्ति भंग करते हैं। यह अधिसूचना 39 वर्ष पुरानी होने से जिला प्रशासन में +966 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्तमान में कार्यरत अधिकारियों की जानकारी में नहीं होने से वे इन असामाजिक तत्वों को जुलूस निकालने व मेले आयोजन की अनुमति दे देते हैं। . उदाहरण के लिये निम्न दो उदाहरण दिये जा रहे हैं : विश्व ज्योति प्रिण्टर्स, सांचोर द्वारा एक पेम्पलेट प्रकाशित किया जिसका शीर्षक है, "विष्णुधर्म प्रेमियों एवं मुसलमानों जरा सोचो और मनन करो"। इसमें उन्होंने जब्त की गई पुस्तक 'जगतहित कारनी' के उद्धरण ही नहीं दिये हैं, बल्कि दुष्प्रचार के उद्देश्य से नोट के रूप में लिखा है 'जगतहित-कारनी' ग्रंथ प्रतिबंधित नहीं है। इसमें विज्ञापन दिया गया है कि अनूपस्वामी व सोनी हरचन्द के रचित ग्रन्थ छपवाने के लिये इस प्रेस से सम्पर्क करें। इससे स्पष्ट प्रकट होता है कि जो पुस्तकें व दस्तावेज राज्य सरकार द्वारा जब्त किये गये हैं, उसकी प्रतियां राज्य की व प्रशासन की नजर से छिपाई जाकर इनके पास में रखी गई 'निकलंक एक्सप्रेस' साप्ताहिक समाचार पत्र जो पचपदरा से सन् 1992 में प्रकाशित होना शुरू हुआ है, प्रति सप्ताह 'जगतहित-कारनी', 'आत्म पुराण', 'न्याय चिंतामणी' एवं अन्य जब्तशुदा ग्रन्थों के उद्धरण नियमित तौर पर प्रकाशित कर रहा है। यही नहीं अनूप मण्डल की जाखोड़ा में दिनांक 20.8.95 की बैठक में इन जब्तशुदा पुस्तकों को छापने के लिये आर्थिक सहयोग इकट्ठा किया गया, इस प्रकार का समाचार दिनांक 5.9.95 के निकलंक एक्सप्रेस में छपा है। प्रेस कौन्सिल ऑफ इंडिया में श्री जैन श्वेताम्बर खरतर गच्छ श्री संघ, बाड़मेर द्वारा इस समाचार पत्र के विरुद्ध की गयी शिकायत जिसका निर्णय क्रम सं. 56 दिनांक 28.3.94 को हुआ उसमें सम्पादक ने अपने उत्तर में कहा, "वह इस बात से अनभिज्ञ थे कि राजस्थान सरकार ने इन पुस्तकों को प्रतिबंधित किया है, अन्यथा वे इसके अंश प्रकाशित नहीं करते।" सम्पादक ने अनभिप्रेत त्रुटि (inadventent error) के लिये खेद व्यक्त किया है। इसके बावजूद भी सम्पादक ने आगामी अंकों में वही गलती दोहराई है। ये व्यक्ति जानबूझ कर विद्वेषपूर्ण आशय से, बोले गये या लिखे गये शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या रूपकों द्वारा या जैन धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिये जैन धर्म व धार्मिक विश्वासों का अपमान करते हैं एवं विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा की भावनाओं को प्रचारित करते हैं। उनके आपसी सौहार्द पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं एवं शान्ति बनाये रखने में विघ्न डालते हैं। ... उपरोक्त वर्णित समस्त कार्यवाही अपराध करने की परिभाषा में आती है एवं अपराध करने वाले एवं उसमें उन्हें सहयोग देने वाले षडयंत्र में शामिल होने वाले सभी फौजदारी कानून (इंडियन पेनल, कोड) की धारा 505(2)ए 153ए, 295ए व 298 का सपठित धारा 120बी का अपराध करते हैं, कदाचार करते हैं तथा शान्ति भंग करते हैं। धारा 505(2), 153ए व 295ए में तीन वर्ष तक की व धारा 298 में एक वर्ष तक की सजा हो सकती है। संभाव्य अपराध होने की सूचना जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन को देना प्रत्येक सुनागरिक का फर्ज है। सूचना देने के बाद उस अपराध को घटित नहीं होने देने, शान्ति बनाये रखने के लिए पाबन्द करने का कार्य जिला प्रशासन एवं पुलिस का है। प्रभावी (प्रिवेन्टिव) निरोधक कार्यवाही करने से 974 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपराध घटित ही नहीं होगा। इस सबके बावजूद यदि अपराध घटित हो जाता है तो पुलिस एवं प्रशासन की जिम्मेवारी है कि वे अपराधियों के विरुद्ध मुकदमे दायर कर उन्हें कानूनी प्रक्रिया अपना कर दण्ड दिलावें। प्रशासन एवं पुलिस को सभी शान्ति प्रिय व कानून पालक नागरिकों द्वारा सहयोग दिया जाना चाहिए। किसी सुयोग्य एडवोकेट से सलाह लेकर, अपराध घटित होने की सम्भावना की सूचना जिला कलेक्टर एवं दण्डनायक, सुपरिन्टेन्डेन्ट आफ पुलिस, संबंधित सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट, कार्यपालक मजिस्ट्रेट, थाने में दी जानी चाहिए इसके साथ जानकारी कर सम्भावित अपराधियों के नाम पते वल्दियत की जानकारी कर गोपनीय सूची लगानी चाहिए। ऐसी सूची साथ होने पर पुलिस अधिकारी को यह सुविधा रहेगी कि वे जांच कर उन लोगों से अपने स्तर पर ही कार्यवाही कर सदाचार के लिये प्रतिभूति धारा (108)(1)(i)(ए), धारा 110(ड) व (छ) में, परिशान्ति कायम रखने के लिय प्रतिभूति धारा 107 दण्ड प्रक्रिया संहिता में मांगेंगे। अनूप मण्डल एवं इनके सहयोगी असामाजिक तत्व जब्त शुदा साहित्य का जानबूझ कर इरादतन (इन्टेन्शनली) मौखिक या लिखित या अन्य रूप से जैसे कैसेट द्वारा प्रचार प्रसार करता है, या करने का प्रयत्न करता है उनको कार्यपालक मजिस्ट्रेट (तहसीलदार, सहायक कलेक्टर एवं मजिस्ट्रेट, सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट, सिटी मजिस्ट्रेट, एडीशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (कोई भी) एक वर्ष की अवधि के लिए नेक चलनी (सदाचार या गुड बिहेवियर) के लिए पाबन्द कर सकता है ऐसा विशेष प्रावधान ऐसे व्यक्तियों के लिए ही धारा 108(10()(ए) में किया गया है इस धारा में पाबन्द करने के लिए दिये जाने वाले प्रार्थना पत्र में इरादतन (इन्टेन्शनली)' शब्द अवश्य लिखा जाना चाहिए। इस प्रकार से यह व्यक्ति पाबन्द होने के बावजूद अपराध करते हैं तो मजिस्ट्रेट या संबंधित थाने में रिपोर्ट की जाकर जमानत मुचलके जब्त कराने व जेल की हिरासत में भिजाने की कार्यवाही की जावे। उचित समझा जावे तो स्थानीय स्तर पर किसी भी कार्यकर्ता द्वारा उपरोक्त धाराओं में से किसी भी धारा में परिस्थितियों के अनुसार सम्भावित अपराधियों के विरुद्ध रिपोर्ट कार्यपालक दण्डनायक या पुलिस में प्रस्तुत कर कार्यवाही की जा सकती है। ___ऐसे मामलों में जब दण्डनायक धारा 111 दण्ड प्रक्रिया संहिता में आदेश पारित कर उन व्यक्तियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर देता है। उसके पश्चात् भी ऐसा महसूस हो या घटनाक्रम से लगे कि जब्त शुदा दस्तावेज का इरादतन प्रचार प्रसार कर रहे हैं या शान्ति भंग होने के डर के लिए कारण है और ऐसे व्यक्ति की तुरन्त गिरफ्तारी के बिना ऐसी शान्ति भंग का निवारण नहीं हो सकता है तब पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या आपकी इतला जो लिखित में दी जावेगी व उस का सार दण्डनायक लिखेगा व संतुष्ट होगा तब उसकी गिरफ्तारी के वारन्ट निकालेगा। यह कार्यवाही धारा 111 के आदेश पारित होने के बाद ही अतिरिक्त इतला पर की जावेगी, इसके पूर्व नहीं। धारा 111 दण्ड प्रक्रिया संहिता में आदेश पारित करने व धारा 113 में सम्मन या वारन्ट जारी. +984 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • करने के बाद दण्डनायक द्वारा जाँच कार्यवाही की जावेगी, जांच कार्यवाही प्रारम्भ होने के पश्चात् (इसके पूर्व किसी भी स्टेज पर नहीं) व जांच की समाप्ति के पूर्व, आपको चाहिए कि आप दण्डनायक को कारणों सहित जो लेखबद्ध किये जायेंगे, कि शान्ति भंग होने, या किसी अपराध के किये जाने को रोकने के लिए या लोक सुरक्षा के लिए (जैसा भी इस्तगासे के तथ्यों की परिस्थिति हो उस व्यक्ति को प्रतिभूति सहित शान्ति रखने, सदाचारी बने रहने के लिए पाबन्द किया जाने की रिपोर्ट करें। मजिस्ट्रेट की संतुष्टि होने पर वह उसे पाबन्द ( इन्टरीम बाण्ड लेगा ) करेगा और यदि वह बन्ध पत्र - जमानत मुचलके नहीं देगा तो उसे गिरफ्तार कर जेल भेज देगा। V इस प्रकार पाबन्द होने इन्टरीम बाण्ड के बावजूद यह लोग सदाचार नहीं रखते हैं या शान्ति भंग करते हैं अपराध करते हैं तब ऐसे तथ्यों की रिपोर्ट कर साक्ष्य देकर जमानत मुचलके के बन्ध पत्र (बाण्ड) जब्त कराये जा सकते हैं। जांच की कार्यवाही यदि छः माह की अवधि में पूर्ण नहीं हो पाती है तो धारा 116 (6) दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानुसार सामान्यतया जांच समाप्त कर दी जाती है। ऐसी परिस्थिति में पुनः नया इस्तगासा पेश कर नये सिरे से उन्हें पाबन्द कराने व इन्टरीम बाण्ड पर पाबन्द करने की कार्यवाही की जानी चाहिए । उपरोक्त कार्यवाही कर दिये जाने के बावजूद भी वे व्यक्ति यदि अपराध करने पर उतारू हो तो पुलिस या कार्यपालक दण्डनायक को प्रार्थना पत्र देकर धारा 144 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत दो माह की अवधि के लिए लोक शान्ति भंग होने को रोकने के लिए निषेधाज्ञा जारी करानी चाहिए। इस बारे में निम्न निर्णय महत्वपूर्ण है : 1. इश्तयाक हुसैन फारूकी ए आई आर 1988 सुप्रीम कोर्ट 93 - "Right to profess religious is not absolute right, but must yeild to maintenance of public order....... The District Magistrate with a view to avoiding any possible breach of peace would take necessary steps well in advance for the purpoe of maintaining public order which would be in the larger interests of the society" (WS 144 Cr.PC) 2. बाबुलाल - 1961, 3 सुप्रीम कोर्ट रिपोर्टर 423 "Order prohibiting the showing of provocative slogans is not vague as the expression is to be understood in the context in which it has been used." 3. जगन्नाथ ए 1940 एन 134 "Freedom of speech is guaranteed subject to certain reasonable restrictions (Art 19 of constitution) freedom of speech is meant to be enjoyed in a manner consistent with the maintenance of peace and order." यदि उपरोक्त समस्त कार्यवाही करने के बावजूद वे मेले या सत्संग में जमा होते हैं जिससे लोक शान्ति भंग होने की संभावना हो तो कार्यपालक दण्डनायक या थाने के इन्चार्ज ( थाने के इन्चार्ज की 99 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुपस्थिति में सब इन्सपेक्टर) इन्हें तितर बितर करने का आदेश दे सकता है धारा (129 दण्ड प्रक्रिया संहिता या सी आर.पी.सी.) धारा 151(1) के अन्तर्गत कोई भी पुलिस अधिकारी जिसके ध्यान में आता है या लाया जाता है कि संज्ञेय (कोग्नीजेबल) अपराध करने की परिकल्पना का पता है, ऐसी परिकल्पना करने वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेशो के बगैर और वारन्ट के बगैर, उस दशा में गिरफ्तार कर सकता है जिसमें ऐसे अधिकारी को प्रतीत होता है कि उस अपराध का किया जाना अन्यथा नहीं रोका जा सकता। ___अपराध यदि घटित हो जाता है तब तुरन्त कार्यवाही धारा 505(2) भारतीय दण्ड संहिता में की जानी चाहिए। यह अपराध संज्ञेय व गैर जमानती है (कोग्नीजेबल एण्ड नोन बेलेबल) केवल एक प्रावधान का ध्यान आवश्यक है कि इसमें धारा 196(1ए) दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआर.पी.सी.) के अनुसार जिला दण्डनायक की स्वीकृति प्राप्त होने के बाद ही कोर्ट में चालान पेश किया जाना चाहिए। चालान पेश करने के बाद जारी कराई गई स्वीकृति काननून गलत होने से मुकदमा आगे नहीं चल सकेगा। इसीलिये स्वीकृति लेकर ही चालान पेश करना चाहिए। इसके अलावा धारा 153ए और 295ए भारतीय दण्ड संहिता में अपराध दर्ज (एफ.आई.आर.) किया जाकर बाद जांच राज्य सरकार से स्वीकृति प्राप्त कर ही चालान पेश किया जाना चाहिए ऐसा प्रावधान धारा (196)(1) सीआर.पी.सी. में है। यह दोनों अपराध संज्ञेय व गैर जमानती है (कोग्नीजेबल एण्ड नोन बेलेबल) . धारा 298 के अपराध (जो केवल मौखिक अपराध पर ही लागू होता है, लिखित या प्रकाशन पर नहीं) जो असंज्ञेय है - पुलिस अधिकारी अपने स्तर पर धारा 24 पुलिस एक्ट के अन्तर्गत न्यायिक दण्डनायक मुंसिफ मजिस्ट्रेट के समक्ष सूचना रखेगा या वह इस्तगासा पेश करेगा, इसकी ट्रायल के लिए राज्य सरकार या जिला दण्डनायक की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है। घटित अपराध के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए धारा 468 सीआर.पी.सी. में मयाद का प्रावधान है व समय सीमा कब से लाग होगी. धारा 269 में प्रावधान किया गया है जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए। धारा 298 आई.पी.सी. के अपराध के लिए मयाद एक वर्ष एवं धारा 153ए, 295ए व 505(2) के लिए तीन वर्ष है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक सुनागरिक का यह कर्त्तव्य है कि इस प्रकार के अपराध करने वाला यदि राजकीय या स्वायतशासी संस्था में नौकरी करता है तो उसके उच्च अधिकारी को उसकी गतिविधियों की सूचना देवे। यही नहीं, राज्य सरकार ने यह प्रावधान बनाया है कि प्रत्येक नई नियुक्ति देते समय उस व्यक्ति के चरित्र व चाल चलन की जांच स्थानीय पुलिस विभाग से कराई जावे एवं वह व्यक्ति यदि अपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहा है तब चयन होने के बावजूद भी उसे नौकरी पर नहीं रखा जावेगा। -100 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान, जोधपुर 1 अक्टूबर, 2000 परिपत्र इस संस्थान की स्थापना 18 अगस्त, 1996 को जोधपुर में की गई। समाज के सजग, सतर्क एवं निष्ठावान व्यक्तियों के सहयोग से संस्थान निम्न कार्य कर पाया : 1. (अ) जैन देव, गुरु व धर्म के विरुद्ध अनूप मण्डल के भाविकों द्वारा किये जा रहे भ्रामक प्रचार, आक्रमण एवं दुर्व्यव्यवहार का प्रतिरोध एवं अनूप मण्डल की अवैधानिक गतिविधियों पर रोक लगा पाया। (आ) श्री पार्श्वनाथ नाकोड़ा तीर्थ ट्रस्ट के आर्थिक सहयोग से जोधपुर में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.), भारतीय इंजिनियरिंग सेवा (आई.ई.एस.) एवं राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आर.ए. एस.) की प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने वाले जैन परीक्षार्थियों के लिए कोचिंग इन्सटीट्यूट की स्थापना की गई। . 2. संस्थान की स्थापना के बाद जिला प्रशासन अनूप मण्डल के भाविकों को मेले व शोभायात्रा निकालने की अनुमति नहीं देता है। कहीं सतसंग करने की अनुमति दी जाती है उस पर प्रतिबंध लगाकर सशर्त अनुमति दी जाती है। इसके विरुद्ध सन् 1996 में अनूप मण्डल के भाविक सोमाराम गरासिया पुत्र प्रेमाजी निवासी आलमराज की कचेड़ी, भीमाणा ने राजस्थान हाईकोर्ट में रिट सं. 158/96 पेश की थी, जिसे संस्थान के प्रयत्न से 10/11/97 को खारिज कराया गया। 3. अनूप मण्डल के सतसंग पर प्रतिबंध लगाने का एक उदाहरण उपखंड मजिस्ट्रेट, सिरोही का आदेश क्रमांक न्याय/99/1199-1204 दिनांक 32.12.99 की प्रतिलिपि इस पुस्तक में अलग से दी गई 4. संस्थान के अध्यक्ष एवं सभी पदाधिकारियों ने सितम्बर 1996 में पाली एवं सिरोही जिलों का व्यापक दौरा कर जैन बन्धुओं का मनोबल बढ़ाया एवं अनूप मण्डल की कार्यवाहियों का प्रतिरोध करने के लिए संगठित किया। 5. 13 अक्टूबर 1996 को श्री बामनवाड़जी तीर्थ में विशाल सम्मेलन किया गया, जिसमें अनूप मण्डल की पुस्तकों एवं साहित्य को जब्त करने की सन् 1957 में प्रकाशित राजकीय विज्ञप्ति जनसाधारण की जानकारी हेतु वितरित की गई। इसके साथ ही अनूप मण्डल की जैन विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही अमल में लाने की प्रक्रिया व कानून की धाराओं का विस्तृत उल्लेख कर परिपत्र वितरित किया गया। 6.2 नवम्बर 1996 को मुख्यमंत्रीजी से संस्थान के पदाधिकारियों का प्रतिनिधिमण्डल मिला वे अनूप मण्डल की जैन विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने व प्रतिबंधित साहित्य को जब्त कराने का -1014 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन किया। मुख्यमंत्री ने अनूप मण्डल के मेलों पर रोक लगाने के लिए सभी जिलों में आदेश भेजने का आश्वासन दिया। 7. दिनांक 12 जून 1997 एवं 13 जून 1997 की दरमियानी रात में अनूप मण्डल के अनुयायियों ने गांव भीमाणा तहसील पिण्डवाड़ा में गच्छाधिपति श्री जयघोष सूरिश्वरजी के शिष्यों पर प्राणघातक हमला किया। संस्थान के महासचिव ने व अन्य पदाधिकारियों ने तुरन्त जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन से सम्पर्क कर कानूनी कार्यवाही कराई एवं राज्य स्तर व जिला स्तर पर ऐसे कांड की पुनरावृत्ति नहीं हो इसका प्रबंध किया। ___8. अनूप मण्डल की जैन विरोधी गतिविधियों पर राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित करने व उन पर रोक लगाने के लिए एक प्रतिनिधिमण्डल संस्थान के अध्यक्ष के नेतृत्व में जयपुर जाकर 5 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री व उनके सहयोगी मंत्रियों व सचिवों से मिला। इन प्रतिनिधि मण्डल में संस्थान के आहवान पर, जैन विधायकगण, प्रशासनिक अधिकारी, सभी जैन संघों के पदाधिकारी शामिल हुए। 9. राज्य सरकार ने प्रतिनिधि मण्डल को समुचित कार्यवाही करने का आश्वासन दिया व बाद में की गई कार्यवाही का एक परिपत्र 18.7.97 जारी किया जो अलग से पुस्तक में दिया है। 10. दिनांक 5 जुलाई 1997 को जयपुर में एक प्रेस कांफ्रेंस भी की गई, जिसमें प्रेस प्रतिनिधियों को मुख्यमंत्री को प्रेषित ज्ञापन व अनूप मण्डल की गतिविधियों के बारे में दस्तावेजात सहित तथ्यों को बताया गया। समस्त तथ्यों का विवरण 6 व 7 जुलाई, 1997 को निम्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ : 1. पंजाब केसरी, दिल्ली 2. जनसत्ता, दिल्ली 3. दैनिक जागरण, दिल्ली 4. राष्ट्रीय सहारा 5. दैनिक राजस्थान पत्रिका 6. दैनिक भास्कर 7. दैनिक प्रातः काल 8. दैनिक नवज्योति 9. दैनिक प्रतिनिधि 10. दैनिक जागरण 11. दैनिक जलते दीप प्रेस कांफ्रेंस एवं मुख्यमंत्री से हुए विचार विमर्श का टी.वी. न्यूज में भी व्यापक प्रसार हुआ। 11. दिनांक 18 जुलाई 1997 को इस संस्थान की मुम्बई शाखा के नेतृत्व में व संस्थान के महासचिव सहित एक प्रतिनिधि मण्डल जयपर में मख्यमंत्रीजी से मिला एवं 5 जलाई 97 को अध्यक्षजी द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन के तथ्यों की ओर ध्यान दिलाया। बैठक में ऊपर पैरा सं. 9 में वर्णित परिपत्र प्रतिवेदन पर की गई कार्यवाही का विवरण वितरित किया गया। 12. संस्थान की सिरोही शाखा के आहवान पर दिनांक 27 जुलाई 1997 को कोलरागढ़ में सभी क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की बैठक की गई, जिसमें अब तक हुई कार्यवाही व भविष्य की योजना एवं वृहद सम्मेलन करने पर विचार किया गया। 13. अनूप मण्डल द्वारा आयोजित समारोहों में पूर्व महाराणा उदयपुर, शंकराचार्य महामण्डलेश्वर, सनातन धर्म के अनेक मठाधीश, मुस्लिम धर्म के काजी, विभिन्न साधु-महात्मा व राजनीतिज्ञों को आमंत्रित किया जाता है। ऐसे सभी महानुभावों को इनकी अपराधिक गतिविधियों, राज्य सरकार द्वारा *102 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनूप मण्डल के साहित्य को जब्त करने की विज्ञप्ति, न्यायालयों के निर्णय, तत्कालीन सिरोही स्टेट द्वारा सजा देने व साहित्य प्रतिबंधित करने की विज्ञप्ति दिनांक 9 फरवरी, 1926, 11 मार्च 1926 व 8 सितम्बर, 1940 तथा राजस्थान उच्च न्यायालय का निर्णय दिनांक 10.11.97 व सांचोर के मजिस्ट्रेट द्वारा इनके भाविक को 20 मई 1998 को तीन वर्ष की कठोर कैद की सजा देने के निर्णय की जानकारी लिखित में संस्थान द्वारा भेजी गई। इन महानुभावों ने इस जानकारी के बाद ऐसे सम्मेलनों में भाग नहीं लेने का निर्णय लिया व जानकारी उपलब्ध कराने के लिए संस्थान का आभार माना। 14. संस्थान के सक्रिय कार्यकर्ताओं की पहल पर उदयपुर जिले में अनूप मण्डल का साहित्य नवम्बर 1996 में जब्त कराया गया। 15. राज्य सरकार, जिला कलक्टर, सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ पुलिस, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट, अन्य पुलिस अधिकारी, थानों को बार-बार समस्त तथ्यों, दस्तावेजात, फैसलों की प्रतियों सहित ज्ञापन भेजे गये। ___16. विस्तृत ज्ञापन पुनः 15.12.97, 18.12.97, 26.12.97 व 5.1.98 को नव पदस्थापित जिला कलक्टर व पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट को भेजे गये। 17. मुख्यमंत्रीजी एवं जिला प्रशासन को दिये गये ज्ञापनों में ऐसे 60 व्यक्तियों की सूची दी गई, जिनके पास जब्तशुदा साहित्य रखा होने की संभावना है। . 18. इन ज्ञापनों में अनधिकृत रूप से निर्मित 'झुपड़ियों' व मेलों की तिथियों की भी जानकारी दी गई। 19. सितम्बर 1997 में भीनमाल में मुनि श्री लोकेन्द्र विजय द्वारा किये गये आत्मोसर्ग एवं उसके बाद जालोर में मूर्तियों को खण्डित करने के मामले में जिला प्रशासन से शीघ्र एवं कठोर कार्यवाही कराने हेतु संस्थान के महासचिव ने निरन्तर व लगातार सम्पर्क कर व अनेक बार भीनमाल व जालोर जाकर कार्यवाही कराई। संस्थान के अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारियों ने दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही करने व विधान सभा के सामने प्रदर्शन करने तथा राज्य सरकार व जिला प्रशासन पर दबाव बनाने का निरन्तर प्रयास किया। ____ 20. 12 अप्रेल 1998 को श्री नाकोड़ा तीर्थ पर महासम्मेलन किया गया एवं विस्तृत विचार विमर्श कर भावी कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई गई। 21. भीनमाल-जालोर के मामले में जिन जनप्रतिनिधियों ने अनूप मण्डल की अपराधिक गतिविधियों की वकालात की, उनका बहिष्कार करने का आह्वान किया गया जिसके फलस्वरूप ऐसे जनप्रतिनिधियों ने खेद प्रकट किया व भविष्य में जैन समाज को सहयोग देने का आश्वासन दिया। 22. 18 जुलाई 1997 को सुमेरपुर स्थित अनूप प्रिंटिंग प्रेस पर व 11 अगस्त 1997 को विश्वज्योति प्रिंटिंग प्रेस पर पुलिस विभाग द्वारा छापा डलवाया जाकर जब्तशुदा साहित्य जब्त कराया गया व प्रेस के मालिकों पर मुकदमे दायर कराये गये। ___23. प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया को निवेदन कर, अनूप मण्डल का प्रचार करने वाले निम्न समाचार पत्रों के विरुद्ध कार्यवाही कराई गई। प्रेस कौंसिल ने इसकी कड़ी भर्त्सना कर इन्हें प्रताड़ित +103. Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किया, जिसके फलस्वरूप इनका प्रकाशन बन्द हो गया : (1) श्री निकलंक एक्सप्रेस, पचपदरा :- निर्णय दिनांक 28.3.94 एवं पुनः निर्णय दिनांक 23. 6.97 (2) मारवाड़-मित्र, अहमदाबाद :- निर्णय दिनांक 28.8.2000 ___इस कार्य में साऊ टीपूबाई रतनचंद जैन रीलीजियस एण्ड चेरीटेबल ट्रस्ट, मुम्बई, श्री श्वेताम्बर तपागच्छीय मूर्तिपूजक राजस्थान जैन संघ रीलीजियस एण्ड चेरिटेबल ट्रस्ट, मुम्बई, श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक देरासर एण्ड उपाश्रय ट्रस्ट, मुम्बई व संस्थान की मुम्बई शाखा के कार्याध्यक्ष श्री फूलचंद गांधी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। ___24. हमारी संस्थान के बुजुर्ग श्री लक्ष्मीचंद मेहता पूर्व विधायक सांचोर ने अनूप मण्डल का प्रचार करने व जब्तशुदा साहित्य के उद्धरण प्रकाशित करने वाले समाचार पत्र 'सत्यपुर टाईम्स' सांचोर के सम्पादक पर धारा 295 क आई.पी.सी. में मुकदमा दायर किया व राज्य सरकार से अभियोजन की स्वीकृति प्राप्त कर स्वयं पैरवी कर सम्पादक ईश्वरलाल खत्री को तीन वर्ष की कठोर कैद एवं 5000 रु. के जुर्माने की सजा दिलाई। इसके फलस्वरूप इस समाचार पत्र का प्रकाशन बन्द हो गया। ___ 25. दिनांक 28 अगस्त 1999 को रोहिड़ा में जैन मंदिरों एवं साधुओं पर अनूप मण्डल के भाविकों ने आक्रमण किया। संस्थान के महासचिव तुरन्त मौके पर पहुंचे व जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन से सम्पर्क कर तीन मुकदमे दर्ज करवाये। मुलजिमान की गिरफ्तारियां कराई व उनकी जमानत नहीं होने दी तथा बाद जांच 15 फरवरी 2000 को 49 व्यक्तियों के विरुद्ध न्यायालय में चालान पेश कराया। __26. 2 अक्टूबर 1999 को रोहिड़ा जैन संघ के आह्वान पर वृहद सम्मेलन किया गया व अब तक संस्थान द्वारा की कार्यवाही व भविष्य की योजना पर विचार विमर्श किया गया। इस सम्मेलन को सफल बनाने में रोहिड़ा जैन संघ के अध्यक्ष श्री मोहनलालजी मेहता व पूर्व अध्यक्ष श्री कुन्दनमलजी जैन एवं जैन संघ के पदाधिकारियों व युवा साथियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। ____27. सितम्बर 1996 से अब तक मारवाड़ के विभिन्न क्षेत्रों में विचरण करने वाले आचार्य श्री नित्योदय सागर सूरिश्वरजी, आचार्य श्री चन्द्रानन सागर सूरिश्वरजी, गच्छाधिपति आचार्य श्री जयघोष सूरिश्वरजी, आचार्य श्री सुशील सूरिश्वरजी, आचार्य श्री जिनोत्तम सूरिश्वरजी, आचार्य श्री धर्मधुरंधर सूरिश्वरजी, आचार्य श्री नित्यानन्द सूरिश्वरजी, आचार्य श्री अशोक सागर सूरिश्वरजी, आचार्य श्री रतनशेखर सूरिश्वरजी, आचार्य श्री पदमसागर सूरिश्वरजी, मुनि रेवतविजयजी, खरतरगच्छीय गणिवर्य श्री मणिप्रभासागरजी.खरतरगच्छीय साध्वी डॉ. विद्यतप्रभाश्रीजी से विचार विमर्श किया गया व इन स से मार्गदर्शन व आशीर्वाद प्राप्त किया गया तथा कार्यकर्ताओं की बैठकें इनके सान्निध्य में की गई। . 28. अनूप मण्डल के विरुद्ध जारी राजकीय आदेश एवं राजस्थान उच्च न्यायालय व अन्य न्यायालय तथा तत्कालीन सिरोही स्टेट में अनूप मण्डल के 65 भाविकों को दी गई सजा के निर्णय, इनका रजिस्ट्रेशन केन्सल करने के आदेश आदि दैनिक भास्कर के दिनांक 27.11.1999 के अंक में पृष्ठ 7 पर प्रकाशित करा कर उनकी अवैधानिक गतिविधियों की जनसाधारण को जानकारी दी गई। +1044 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 29. पेरा 28 में वर्णित प्रकाशन को परिपत्र के रूप में छपवाकर सभी कार्यकर्ताओं व धार्मिक स्थलों में वितरित किये गये तथा इसे फ्रेम में मण्डवाकर सभी मंदिरों, धर्म स्थलों में लगाये गये ताकि सभी जैनों को इसकी पूर्ण जानकारी मिल सके। 30. पेरा 20 में वर्णित परिपत्र में आदिनांक 28.8.2000 तक के तथ्य जोड़कर पुनः प्रकाशित किया गया है। ___31. संस्थान द्वारा जैनियों को अल्प संख्यक घोषित करने के लिए राज्य सरकार एवं अल्पसंख्यक आयोग को 18.11.99,24.1.99, 6.2.2000 0 20.5.2000 को लिखा गया व मुख्यमंत्रीजी को मिलकर भी निवेदन किया गया। अब राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 15.9.2000 को निर्णय देकर राजस्थान में जैनियों को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया गया है। 32. संस्थान के द्वारा पूर्व के अनुच्छेदों में वर्णित प्रयत्नों के बावजूद कुछ दुखद पहलू भी हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण आगे दिया जा रहा है। 33. समाज के सभी सदस्यों को 18.8.1996, 13.1096, नवम्बर (दीपावली पर) 1996, 13.2. 1997, 20.2.97, 12.4.98 व 2 अक्टूबर 1999 को बार बार निवेदन किया गया कि उनके क्षेत्र में समाज द्वारा कराये गये जन कल्याणकारी कार्यों का विवरण भिजावें ताकि उनका संकलन कर प्रकाशित किया जा सके। मगर इस बारे में कहीं से भी सूचना प्राप्त नहीं हुई है। यह विडम्बना ही है कि परोपकार के कार्यों में सबसे आगे रहने पर भी जैन समाज को उपकृत लोगों की गालियां सुनने को मिल रही है। - 34. पुलिस प्रशासन के साथ उच्च स्तरीय बैठक में संस्थान के पदाधिकारियों को पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जैन समाज के प्रतिनिधि मुकदमे तो दायर करा देते हैं. मगर गवाही देने ब मामले की पैरवी करने में कोताही बरतते हैं, उन्होंने 1949 (बेड़ा), 25.8.80 (कोलरगढ़), 19.5.83 (सिरोही), • 1975 (सुजानपुरा) 1951-52 (सिरोही), 1956 व 1971 (पिण्डवाड़ा), जून 1997 (भीमाणा) के मामलों का संदर्भ दिया व बताया इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के कारण मुकदमों में मुलजिमान बरी हो जाते हैं तथा उनके हौसले बढ़ जाते हैं। उन्होंने व्यक्त किया कि समाज के व्यक्तियों को भी लक्ष्मीचंद मेहता, पूर्व विधायक, सांचोर का अनुकरण करना चाहिए जिनका उल्लेख पेरा 24 में किया गया है। ____35. कुछेक जैन साधु व राजनीतिज्ञ अनूप मण्डल के भाविकों को व उनके पदाधिकारियों को प्रश्रय देते हैं, आर्थिक मदद देते हैं, दिलाते हैं तथा समारोहों में आसन प्रदान करते हैं व बाद में उन्हीं से गालियें सुनते हैं, यही नहीं अनूप मण्डल के सक्रिय कार्यकर्ताओं का पदस्थापन भी प्रभावित क्षेत्र में कराते हैं। ___ 36. राज्य सरकार द्वारा सभी जिलों में पुलिस प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिये हैं कि जैन साधुओंसाध्वियों के चातुर्मास एवं विहार के समय समुचित पुलिस सुरक्षा प्रदान की जावे ताकि कोई अप्रिय घटना घटित नहीं होवे। मगर साधु-साध्वी व श्रावक इस बारे में थाने में सूचना नहीं देते हैं व स्वयं भी साधुसाध्वियों को विहार के समय साथ में रहकर सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं। 37. संस्थान का सभी जैन बन्धुओं से निवेदन है कि :(अ) आज जैन समाज की दशा जटिल है। संपत्ति है, सत्ता है, बुद्धि है मगर एकत्व के अभाव +105-- Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में अस्तित्व की समस्या से घिर गया है। पारस्परिक साधर्मिक बन्धुत्व के अभाव में सामाजिक विखण्डन सीमा पार कर गया है। (आ) साथ ही सांप्रदायिक कदरता ने सबसे ज्यादा सामाजिक एकता की जडों में जहर घोला है। संप्रदायों की उपस्थिति से इन्कार नहीं हो सकता। साथ ही विभिन्न विचारधाराओं की समपस्थिति में दार्शनिक गहराइयों को जो दशा मिली है, इस आधार पर सांप्रदायिक विभिन्नताओं के लाभदायक परिणामों से भी इन्कार नहीं है परन्तु विभिन्नता का वातावरण वर्तमान में द्वेष में बदल गया है। निश्चित रूप से यदि समाज को ऊपर उठना है तो उसे अपनी सोच बदलनी होगी। अपने अपने संप्रदाय के प्रति श्रद्धा स्थापित करते हुए हमें जैनत्व के प्रति एक रहना होगा। अपनी अपनी सांप्रदायिक क्रिया मात्र धर्मस्थानकों तक सीमित रहनी चाहिये। बाहर आने के बाद में तो न हम मूर्तिपूजक हैं, न स्थानकवासी, न तेरापंथी, न दिगम्बरी। बाहर आने के बाद तो हम मात्र जैन हैं। यह भावना हर जैनी के हृदय में प्रतिष्ठित होनी चाहिए। (इ) पिछले दिनों जिस प्रकार द्वेष का खुला ताण्डव नृत्य जालोर, सिरोही व पाली जिलों में देखने को मिला हमारा दिल दहल गया। हम अपने ही देश में बेगाने हो गये। देश की संरचना में इसके संवर्धन में विकास में बहुत ज्यादा योगदान होने पर भी परायेपन का प्रहार प्राप्त हो रहा है। (ई) संस्थान निवेदन करता है कि इस विषय पर खुला विचार कर एक मत हो ताकि हमारी आवाज को बल मिल सके। समाज को ऐसा वातावरण देने का प्रयास हो कि हर व्यक्ति ऐसा चिन्तन करने लग जाय कि मैं अकेला नहीं हूं, मेरे साथ मेरा समाज भी है। ऐसे भयमुक्त वातावरण के निर्माण में जैन सम्मेलन पुरुषार्थशील बने। (उ) एकता अनिवार्य है अन्यथा समाज के दीर्घकालिक अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लग सकता है। भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान, जोधपुर द्वारा प्रसारित सुरेशचन्द्र डी. सुराणा आर.एम. कोठारी जसराज चौपड़ा महासचिव कार्यकारी अध्यक्ष न्यायाधिपति (से.नि.) एडवोकेट आईएएस (से.नि.) राजस्थान हाईकोर्ट शान्ति नगर, सिरोही 853, चौपासनी रोड जयपुर फोन नं. 232307,232414 फोन नं. 243323 मो. 9413349454 मो. 941449131. 2640323 (स्व.) चम्पालाल जैन (स्व.) फुलचन्द पी. गांधी राजकुमारसिंह भण्डारी अध्यक्ष कार्याध्यक्ष, मुंबई शाखा जोधपुर मुख्यालय सचिव शिवगंज शाखा 87/123, मस्जिद बंदर रोड अध्यक्ष, जैन ब्रिगेड रायचन्द कॉलोनी जैना बाई बिल्डिंग टी-2, इण्डस्ट्रीयल एस्टेट शिवगंज तीसरा माला रू.नं.7 जोधपुर फोन नं.60027 मुंबई फोन नं. 3414580 फोन नं. 243199,2649847 फैक्स : 022-3401914 फैक्स : 0291-2649236 --1064 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री निकलंक एक्सप्रेस में विभिन्न तिथियों में प्रकाशित सूचना के आधार पर सूची - उन स्थानों की जहां पर अनूप मण्डल के धार्मिक स्थानों का निर्माण जिला दंडनायक की स्वीकृति के बगैर किया गया है। जिला पाली 1. जाखोड़ा 4. रामनगर 7. सलोदरिया 10. चामुण्डेरी 13. साडी 15. चामुण्डे जिला सिरोही 1. पालड़ी 4. आमली 2. भीमाना, उम्बरी पानी 5. खारला (नाना) 8. सिन्दरू 11. धनापुरा 12. लुणवा 14. भीमाना रोड पर सरजोडी बारी रोड पर सरकारी भूमि पर झोपड़ी (मंदिर) 16. भारून्दा 17. भीमाना आलमराज कचेरी 2. पोसालिया 5. बरलुठ 8. बिटु 11. पोमेरा 14. रोहिड़ा 3. लुसेल (मण्डार रोड पर ) 6. अरडवाड़ा 9. कोजरा 12. खोण (पो. विरमाम ) 7. आबू पर्वत 10. सरूपगंज 13. वासा जिला बाड़मेर 1. पादरू 2. बालोतरा जिला जालोर 1. डुडसी जिला उदयपुर 1. कागदर (बेतड़ी धामपाल) 2. केशरियाजी 3. बेकरिया 3. सुमेरपुर 6. कोयल बाव 9. निरोलिया 3. सिवाना 2. आहोर 3. सांचोर जिला जोधपुर 1. जोधपुर रोडला हाउस सब्जी मंडी के सामने 107 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान, जोधपुर के पत्र संख्या 2138-43 दिनांक 7 जुलाई 1997 एवं पत्र संख्या 2163-66 दिनांक 7 जुलाई 1997 का संलग्नकउन व्यक्तियों की सूची जिनके पास अनूप मण्डल का प्रतिबंधित (जब्त शुदा) साहित्य उपलब्ध है। तथा जिन्होंने 19.04.1997 से 21.04.1997 तक ग्राम जाखोड़ा (सुमेरपुर के नजदीक), जिला पाली में 'जगत हितकारणी' का खुले आम ध्वनि प्रसार यंत्रों के माध्यम से अखण्ड पाठ कर भारतीय दण्ड संहिता की । पारा 153ए, 295ए, 298, 500 व 505 सपठित धारा 120बी का अपराध किया है :श्री निकलंक एक्सप्रेस में विभिन्न तिथियों में प्रकाशित सूचना के आधार पर 1. श्री रघुवीरसिंह (पूर्व महाराज कुमार सिरोही) 2. ठाकुर श्री छगनसिंह राठौड़, जाखोड़ा 3. ठाकुर श्री अमरसिंह राठौड़, जाखोड़ा 4. कुंवर श्री मानसिंह राठौड़ सरपंच जाखोड़ा ___ श्री देवीलाल खारवाल पुत्र श्री नरसिंहजी खारवाल चामुण्डा चौक, निवासी पचपदरा 6. श्री सोमाराम गरासिया पुत्र श्री प्रेमाजी आलमराज कचहरी भीमाना तहसील बाली 7. श्री शंकरलाल छगनलाल गहलोत, कोटड़ा 8. . श्री देवरामदास, सरूपगंज 9. श्री पर्बतसिंह, रोहिड़ा रोड़, सरूपगंज 10. श्री गणपतसिंह राठौड़, जाखोड़ा 11. श्री अमरसिंह राठौड़, सिन्दरू 12. श्री चिमनलाल सैनी, जयपुर 13. श्री वाणाराम चौधरी, लुणावा 14. श्री पन्नालाल मारू, सुमेरपुर 15. श्री अनोपसिंह रेवन्यू इंस्पेक्टर नगर परिषद, सुमेरपुर (जाखोड़ा मेले हेतु 23.04.96 के समाचार पत्र में विज्ञप्ति देकर लाटरी के टिकट बेचे एवं जब्त शुदा साहित्य के उद्धरण छापने हेतु प्रति वर्ष 2000/- रुपये देते हैं। निकलंक । एक्सप्रेस दिनांक 12.11.1996 में छपे समाचार के अनुसार) 16. श्री कन्हैयालाल सोनी, विजयनगर, फालना 17. श्री पर्बतसिंह राठौड़, सांडेराव +108 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18. श्री शंकरलाल पुत्र लच्छीराम जी घांची, छावणी शिवगंज 19. श्री जालमसिंह पटवारी रोहिड़ा 20. श्री नवाराम करमा जी, मरासिया बेकरिया श्री जसाराम घांची, सुमेरपुर श्री भंवलाल पी. माली, झाड़ोली श्री गंगासिंह पुत्र श्री पाबूसिंह, सिन्दरू राठौड़, गांव गुडिया, जिला पाली श्री प्रताप ढोली, बरलूठ श्री अशोक कुमार के. तख्तगढ़ 26. श्री बी.आर. कुमावत, सुमेरपुर 27. श्री पूराराम धुलाजी चौधरी, लुणावा (पाली) 28. श्री लक्षमणसिंह अगवरी 29. श्री जयसिंह सांडेराव 30. श्री ईश्वरलाल खत्री पत्रकार सांचोर 31. श्री लक्षमणराम गरासिया गांव पला (उदयपुर) 32. श्री भंवरलाल आर. प्रजापति, गांव वासा (सिरोही) 33. श्री छतरसिंह देवड़ा गांव अरठवाड़ा (सिरोही) 34. श्री मन्नालाल खारवाल पत्रकार शिवगंज 35. श्री मांगीलाल पुत्र सोमाजी गरासिया गांव चित्रावास (उदयपुर) 36. श्री समरथराम पुत्र साकलाजी लोहार वीरवाड़ा (सिरोही) 37. श्री सवाईसिंह परमार, गांव रोडला (जालोर) 38. श्री मगनलाल कस्तूरजी ब्राह्मण गांव दुजाना (पाली) 39. श्री अमृत भाई सुखजी मिस्त्री, सुमेरपुर 40. श्री प्रभुसिंह जुगतसिंह भाटी गांव रोडला (जालोर) 41. श्री वेलाराम प्रजापत, सुमेरपुर 42. श्री पीरसिंह चौहान, गांव पराखिया (पाली) 43. श्री रमेश जमनाजी वासा (सिरोही) --109 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44. श्री भगासिंह राजपुरोहित गांव पराखिया (पाली) 45. श्री गणपतसिंह गांव सुली (सिरोही) 46. श्री मोहनलाल मूलाजी, गांव वासा (सिरोही) 47. श्री देशाराम नेमाजी सुथार चामुण्डेरी (पाली) श्री नरपत ओटाजी लोहार चामुण्डेरी (पाली) 49. श्री भोमजी किस्तूरजी लोहार सुमेरपुर 50. श्री प्रतापसिंह मालपुरा (जालोर) 51. श्री रूपपुरी, प्रधानाध्यापक, राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, सुमेरपुर 52. श्री हनवन्तसिंह दहिया, अध्यापक, राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, सुमेरपुर श्री सखाराम मीणा, दुजाणा (पाली) 54. श्री प्रतापराम ओटाजी प्रजापत आम्बलिया (पाली) 55. श्री नरेश कुमार बी. माली, भाटकड़ा (सिरोही) श्री उदयलाल ब्रज मादड़ी (उदयपुर) 57. श्री भैराराम सेन, बालोतरा 58. श्री रघुवीरसिंह पुरोहित गांव राडावास (पाली) 59. श्री रूपाराम करताजी गांव चांदराई (जालोर) 60. श्री नरपतलाल ओटाजी लोहार चामुण्डेरी (पाली) --1104 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुर्घटनाओं और हमले से संतों को बचाने के लिए गजरात । सरकर देती है सुरक्षा, ऐसे में यह मॉडल यहां ययों नही?. गुजरात में संतों को छोड़ने की जिम्मेदायकांस्टेबल की भास्करपला राजस्थान में विहार के दौरान सडक नाटनाओं में संतों व साध्वियों का रिहा है देवलोकगमन । भास्कर न्यायपुर गुजरात से सबक ले सकता है राजस्थान दो राज्या समस्या एका संतों व साध्वियों की बिहार राजस्थान में संत साध्वियों की बिहार के दौरान आए | के दौरान सड़क दुर्घटनाओं दिन मृत्यु हो रही है, लेकिन यहां गुजरात की तरह ऐसी कोई व्यवस्था नही है। समस्त महाजन संस्था में मौत। गुजरात सरकार ने तो समाधान निकाल लिया। के मेजिन ट्रस्टी विरीत माई बाह ने बताया कि वहां संतों के विहार के दौरान डेढ़ साल पहले पेवल विहार करते समय मुजरात में पुलिस के सिपाही साथ रहते दुर्घटना में एक संत की नेत ले गई या इससे जैन है, लेकिन राजस्थान सरकार समाज के लोग उतिहर और आंदोलन किया। बाद ने अभी तक कोई कदम नहीं में समाज के लोग गृह राज्य मंत्री से मिले और पुलिस उठाया है, जबकि सबसे . इमदाद की मांग की समाज के संगठनों व सरकार अधिक मौतें यहीं हो रही है। की बाय गुजरात में पैदल विहार करने वाले गुजरात में डेढ़ साल दोवतीय को व्यापलित को संगठनों गार) पहले एक संत की सड़क दी जाती है। संबधित याने के दोकास्टवल संतो को दुर्घटना में मौत हो गई थी। अगले पुलिस थाना क्षेत्र तक पहुंचाते है और आगे उसके बाद वाहन-सा सूचनाभादतहायहक्रम अनेसे अमेघालता के लोगों ने रोष जताया। हता है। इसके अलावा हाइवे पर पेट्रोलियम करने आंदोलन किया और सरकार वली पुलिस की टीमें भी व्यत्र देती है। से बात भी। परिणाम यह समाज के.यवा भी सक्रिय निकला कि गुजरात सरकार जैन संतो की प्रेरणा के बाद मुजरात में कार्यरत युवा ने विहार के दौरान संतों संगठनों से जुड़े लोग सक्रिय हुए । यूयमी विहार । को पुलिस सुरक्षा उपलब्ध करने वाले कल के साथ रहने होकायचा अलग। करवाई। तब से अब तक अलग ग्रुप बनाए गए है जो बारी-बारी से अपना हादसों में कमी आई है। सेवाएं देते है। विशेष नोट राजस्थान सरकार द्वारा जारी परिपत्र दिनांक 18.7.97 के बिन्दु सं. 2 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि पुलिस अधीक्षकों को 11.7.97 एवं 16.7.97 को निर्देशित किया कि जैन साधु-साध्वी को विहार एवं प्रवास के समय पुलिस सुरक्षा उपलब्ध करोई जावे। श्रावकों का कर्तव्य है कि वे संबंधित पुलिस थाने को सूचना देकर आवश्यक प्रबंध करावें। -1114 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पैदल विहार करने वाले साधु-संतों के साथ रहेगी पुलिस : कलारिया ER IIT3लाय! RAE BABy: Rat n adardan -- भास्कर ने पैदल विहार करने वाले सयु-संतों के सम आए दिनहोने वाली दुर्घटनाओं के मामले को प्रमुखता से उठाया था। मुद्दे की गंभीर तस्वीर पेश की थी। भास्कर न्यूज सादशी (पाली मंत्री मुख्यमंद कटारिया ने कहा कि देश में पहली बहने वालसंतों की सड़क दुर्बटनाओं में होने वाली बातों को कमे के लिए अब संबंधित थाना क्षेत्र की पुलिस उनका संख्या इंतजाम करेगी। जिस क्षेत्र से साधु-संत पैदलं विहार करते हुए निकलेंगे, उनके निर्धारित पड़ाव तक छोड़ने के लिए पूरे समय तक दो कांस्टेबल इनके साथ रहेंगे। शनिवार को यहां एक मंच पर जुटे सांदनी मूल के प्रवासियों के कार्यक्रम में पहुंचे कटारिया ने ये बातें कहीं। उनके सानिध्य में श्रीजैन संघ के बैनर तले मानक मात्र की सवों में कई कार्य आमजन को समर्पित किए गए। कटारिया ने कहा कि प्रदेश की समृद्धता, में साधु-संतों की तपस्या का बड़ा योगदान है। वर्तमान में सड़क दुर्घटनाओं में सात सतो का विहार करते समय आकस्मिक निधन हो रहा है, जो चिंता का विषय है। -112 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किसी धर्म पर चोट बर्दाश्त नहीं प्रधानमंत्री बोले-देश में धार्मिक स्वतंत्रता और हिंसा पर होगी सख्त कार्यवाही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भरोसा दिलाया कि सरकार किसी भी धर्म पर हमले को बर्दाश्त नहीं करेगी / प्रत्येक नागरिक की धार्मिक आस्था उसकी निजी पसंद है। सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि धार्मिक आस्था की पूर्ण स्वतंत्रता हो / बिना किसी दबाव अथवा अनुचित प्रभाव के हर किसी को अपनी पसंद के धर्म पर कायम रहने या अपनाने का निर्विवाद अधिकार कायम रहे / सरकार सभी धर्मों को समान रुप से सम्मान देती है। मोदी ने चेताया कि समुदायों के बीच नफरत फैलाने वाले अथवा धार्मिक हिंसा फैलाने वाले समूहों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी। (सन्दर्भ-राजस्थान पत्रिका दिनांक 18 फरवरी, 2015)