________________
लिखा गया है कि जैन धर्म टीपणे राक्षस विद्या के हैं जिस तरह से रावण ने राक्षस विद्या के टीपणे बनाये थेर ब्राह्मणों का मराने के वास्ते पकड़ा दिये। इसी प्रकार सोनी हरिचंद रचित आत्मपुराण में लिखा गया है कि सभी बणिये जैन चोर हैं। इस प्रकार प्रदर्श पी-4 दिनांक 24.4.94 के अंक में भी जगतहितकारिणी के ग्रन्थ के अंकों का विवेचन करते हुए जैन समाज द्वारा अपने धनबल के माध्यम से इन्द्रजाली क्रियाओं से भाविकों को परेशान करते, लोगों की बुद्धि भ्रष्ट कर नेकी से हटाना व आगे लिखा कि समस्त जैन गुप्त ग्रन्थों को सार्वजनिक किया जावें । यदि ग्रन्थ सार्वर्जनिक नहीं किये जाते हैं तो यह माना जाये कि जैन
ये पूरे संसार के गुनाहगार है। इन सभी अंकों को पढ़ने मात्र से जैन समाज के प्रति किसी भी व्यक्ति धर्म के प्रति भावनाएं आहत हो जाना स्वाभाविक है । जिससे यह साबित होता है कि समस्त बातें जैन धर्म समुदाय के भावनाओं को आहत करने वाली है । जिरह में अ. सा. 1 लक्ष्मीचंद को यह तथ्य पूछे गये है कि महेश महेश्वरी के खिलाफ उसके द्वारा जो दावा किया गया वो खारिज हो गया। उस मुकदमे में अभियुक्त भी गवाह था एवं इसी कारण उस मुकदमे में बयान देने से यह मुकदमा झूठा बनाया है वगैरह सामान्य प्रश्न पूछे गये हैं जिससे साक्षी ने उस मुकदमे के कारण यह मुकदमा झूठा करवाने जाने से इंकार किया है। परिवादी लक्ष्मीचंद अ. सा. 1 के यह भी बयान है कि अभियुक्त ईश्वरलाल द्वारा अपने समाचार पत्र में जगतहिकारिणी वगैरह ग्रन्थ को छापा है जो राज्य सरकार के आदेश प्रदर्श पी -6 से प्रतिबंधित है। अभियुक्त ने प्रतिबंधित सामग्री को अपने समाचार पत्र में छापा है। पूर्व विवेचन में यह सिद्ध हो चुका है कि अभियुक्त ने अपने समाचार पत्र में अनोपदास रचित जगतहितकारिणी व सोनी हरिचंद रचित आत्मपुराण के अंश अपने अखबार में प्रकाशित किये। प्रदर्श पी - 6 गृह विभाग राजस्थान सरकार के नोटिफिकेशन जो कि दिनांक 29.8.57 के राजस्थान राज पत्र के पृष्ठ संख्या 270 पर शाया किया है जो नोटिफिकेशन संख्या एफ/25 (9) बी.एच./56 दिनांक 5.8.57 द्वारा उक्त दोनों पुस्तकों को प्रतिबंधित किया जा चुका है। एवं इस नोटिफिकेशन में स्पष्ट लिखा है कि उपरोक्त दोनों पुस्तकों को प्रकाशित करना धारा 153ए व 295ए भा.दं.सं. के तहत दंडनीय अपराध होगा। इस नोटिफिकेशन के संबंध में बचाव पक्ष का यह तर्क रहा है कि उक्त दोनों पुस्तें जिन्हें उद्धृत किया गया है ये दोनों पुस्तकें केन्द्र सरकार कोपी राईट विभाग द्वारा रजिस्ट्रेशन की अनुमति प्रदर्श डी-2 व प्रदर्श डी-3 के बाद ही प्रकाशित किये हैं। परन्तु प्रदर्श डी-2 व प्रदर्श डी-3 के अवलोकन से जाहिर होता है कि यह दोनों ही दस्तावेज उक्त पुस्तकों के कोपीराईट के संबंध में है परन्तु कोपीराईट के अधिकार से किसी छपी हुई सामग्री जो कि प्रतिबंधित है या नहीं के संबंध में कोई निर्णय नहीं हो सकता है अर्थात् कोपीराईट विभाग के उक्त दोनों आदेश गृह विभाग राजस्थान सरकार के आदेश दिनांक 5.8.57 से प्रभावी नहीं माने जा सकते। विशेष कर उन परिस्थितियों में जबकि अभियोजन पक्ष द्वारा राजस्थान सरकार के गृह विभाग के उप शासन सचिव (विधि) के दिनांक 21.12.95 के पत्र क्रमांक प - 10 ( 17 ) गृह 10 / 94 प्रदर्श पी-5 से धारा 196 द.प्र. संहिता के तहत आवश्यक अभियोजन स्वीकृति भी प्राप्त कर ली गई हो। इस प्रकार बचाव पक्ष का यह तर्क भी मानने योग्य नहीं है। प्रतिबंधित पुस्तकों को छापना भी धारा 295ए भा.दं.सं. के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।
6.
अ. सा. 2 गौतम भास्कर ने न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत किया जाना, दिनांक 8.1.96 को जरिये फर्द प्रदर्श पी-7 के अभियुक्त को गिरफ्तार किया जाना व उस पर ए से बी हस्ताक्षर होना व
70+