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रावण, हिरणाकुस से की। इसके अतिरिक्त शिवलिंग की पूजा को व्यभिचार के रूप में अखबार में छापा। इस प्रकार के प्रकाशन ने जैन समाज में घृणा का वातावरण पैदा हुआ। थाने में उसने रिपोर्ट की जो प्रदर्श पी-1 है. जिस पर ए से बी उसके हस्ताक्षर है। पर्चा एफ.आई.आर. प्रदर्श बी-2 होकर ऐ से बी उसके हस्ताक्षर है। अभियुक्त ने अपेन अखबार सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक के अंक दिनांक 7.3.1994 जो प्रदर्श पी-3 है, दिनांक 24.5.94 का जो प्रदर्श पी-4 है एवं दिनांक 27.12.93 का अंक प्रदर्श बी-8 है, की प्रतियां पत्रावली पर है। राज्य सरकार की मुकदमे हेतु स्वीकृति प्रदर्श पी-5 है। राज्य सरकार का नोटिफिकेशन प्रदर्श पी-6 है, जिसकी प्रति प्रदर्श पी-6ए है। अभियुक्त ने दिनांक 15.2.1994, 22.2. 1994 व 25.5.1994 के अंक में हरिचंद सोनी द्वारा रचित ग्रन्थ आत्मपुराण व अनोपदास द्वारा रचित जगतहितकारिणी के कथनों को उद्धत किया है जबकि उक्त दोनों ग्रन्थ राज्य सरकार के गृह विभाग के आदेश दिनांक 5.1.1997 द्वारा प्रतिबंधित है। इन बयानों की पुष्टि अ.सा. 3 डॉ. मोहनलाल डोसी ने की है। अ.सा. 3 डॉ. मोहनलाल डोसी अपनी साक्ष्य में कथन करता है कि ईश्वरलाल को पहचानता हूं जो सत्यपुर टाईम्स अखबार निकालते हैं। इन्होंने अनुप मण्डल के माध्यम से जैन बनियों के बारे में घृणित व साम्प्रदायिक भावना फैलाने वाले समाचार छापे, जिसको पढ़ने से मुझे भी ठेस पहुंची। अपने पत्र का सांचोर क्षेत्र में विशेष तौर से जहां ज्यादा जैन बनिये रहते हैं, वहां वितरण कर समाचारों का प्रचार किया एवं अनूप मण्डल द्वारा जैन बणियों के खिलाफ साम्प्रदायिक वैमनस्यता पैदा होवे ऐसा प्रसार किया। यह स्वयं जैन धर्म का अनुयायी होना बताया है। इन दोनों साक्षियों की साक्ष्य की पुष्टि प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 व अखबार सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक के अंक संख्या 6 दिनांक 7.3.1994 प्रदर्श पी-3, अंक 18 दिनांक 25.5.94 प्रदर्श पी-4 से भी होती है। प्रदर्श पी-3 अंक में अभियुक्त द्वारा यह प्रकाशित किया गया है कि जगतहितकारिणी में अनोप स्वामी जी ने टीपणे के बारे में लिखा है कि यह टीपणे राक्षस विद्या के हैं। यह बणियों के चलाये हुए हैं सो इन बणियों ने टीपणों में एक ऐसी चालाकी की है कि ब्राह्मणों के बुजर्गों के नाम टीपणों में प्रकट किये हैं जिससे ब्राह्मण यह जानते हैं कि यह टीपणे हमारे हैं। सो यह ब्राह्मणों की भूल है। चूंकि यह टीपणे राक्षसी वेद के बणियों के बनाये हुए है। इन सौदागर महाजनान ने जालसाजी कर राक्षसी पाप के टीपणे बनाकर ब्राह्मणों को पकड़ा दिये। और भी कहीं जैन धर्म की भावनाओं को आहत करने वाली बातें इस अंक में प्रकाशित की गई हैं। इसी प्रकार प्रदर्श पी-4 अंक 18 दिनांक 24.5.94 में अभियुक्त ने जैन बणिये पाप बंद करवाकर निष्कलंक परमात्मा की प्रार्थना करे शीर्षक से यह प्रकाशित किया है कि यदि जैन बणिये चौरासी कुण्डियों पर अपना पाप बंद करवाकर निष्कलंक परमात्मा से प्रार्थना करे तो कोई रास्ता निकले। चौरासी लाख कुण्डियां गुप्त टापू पर बनाई है जहां जीवों की आहतियां लगाकर हवन किये जाते हैं। आगे प्रकाशित किया कि इन्द्रजाल द्वारा बुद्धि भ्रष्ट कर लोगों को नेकी से हटाना तथा चौरासी पर से जाकर उनको तकलीफें देना यह जैन बणियों का मुख्य कार्य बताया गया है। इसी तरह यदि जैन बणिये मानवता रखते हो तो आज वे जिस तरह से रह रहे हैं उसी प्रकार कार्य करे तो किसी भी भाविक को ईर्ष्या नहीं है। इस प्रकार उपरोक्त दोनों प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4 में अभियुक्त द्वारा ग्रन्थ आत्मपुराण व जगत हितकारिणी को उद्धृत किया गया है। प्रदर्श पी-4 में जगतहितकारिणी को उद्धृत किया एवं उसमें अपना विवेचन भी मुलजिम द्वारा दिया गया है। उक्त दोनों प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4 को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि इन समाचार पत्रों में अभियुक्त द्वारा जो बातें प्रकाशित की गई वो स्पष्ट रूप से जैन धर्म के अनुयायियों को आहत करने वाली है। प्रदर्श पी-3 में