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राज्य सरकार की अभियोजन स्वीकृति प्रदर्श पी-5 प्राप्त किया जाना बताता है। अ.सा. 4 जसवंतसिंह दिनांक 25.5.94 को थानाधिकारी सांचोर के पद पर कार्यरत रहते हुए लक्ष्मीचंद द्वारा दी गई रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 पर सी से डी कायमी मुकदमा का पृष्ठांकन कर ई से एफ हस्ताक्षर होना, पर्चा एफ. आई. आर. प्रदर्श पी-2 होकर ए से बी स्वयं के हस्ताक्षर होना, गवाह लक्ष्मीचंद व मोहनलाल के बयान उनके कथनानुसार लेना सत्यपुर टाईम्स के अंक 6 व 18 प्राप्त करना, राज्य सरकार का नोटिफिकेशन प्राप्त करना व पत्रावली अभियोजन स्वीकृति हेतु राज्य सरकार को भेजना बताता है।
7. उपरोक्त तथ्यों के प्रतिरक्षा में अभियुक्त ईश्वरलाल द्वारा लिखित बहस व बहस के दौरान यह तर्क दिया गया है कि परिवादी लक्ष्मीचंद व अभियुक्त के बीच पुरानी रंजिश है। परिवादी व उनके मुनिम महेश के बीच वाद में अभियुक्त द्वारा गवाही दी गई थी, इस कारण तथा मोहनलाल डोसी जो कि इस प्रकरण में अभियोजन साक्षी है, उसके विरुद्ध भी शिकायतें की थीं, इस कारण यह झूठा मुकदमा उसके खिलाफ किया है। इस संबंध में ईश्वरलाल डी. ड. 1 अपनी साक्ष्य में कथन करता है कि सांचोर में महावीर जीवदया गौशाला है, जिसके अध्यक्ष लक्ष्मीचंद मेहता लंबे समय तक रहे। इस गौशाला संस्था में उसे सदस्य नियुक्त किया था। उस वक्त संस्था का मुनिम महेश था। महेश ने संस्था में हुए घोटाले की जानकारी दी तथा कुछ दस्तावेज दिये थे, जिसे लेकर लक्ष्मीचंद मेहता से पूछताछ की तो उन्होंने हिदायत दी कि तुम तुम्हारा काम करो। कभी कभार घोटालों के संबंध में अखबार में लिखता था, प्रशासन को शिकायत की थी । मुनिम व उसके बीच अच्छे संबंध से लक्ष्मीचंद नाराज हुए और मुनिम के खिलाफ दावा भीनमाल कोर्ट में किया, जिसमें उसने गवाही दी थी। इससे यह झूठा मुकदमा किया है। इसी प्रकार डॉ. मोहनलाल भाई द्वारकादास दोसी ठेकेदार था, तब घटिया सड़क निर्माण की शिकायत उसने प्रशासन से की थी। लक्ष्मीचंद मेहता व मोहनलाल डोसी दोनों चाहते थे कि सत्य उजागर नहीं हो। सन् 1990 में लक्ष्मीचंद मेहता विधायक बने तथा 1993 तक रहे। इस दरम्यान लक्ष्मीचंद ने जो घोटाले किये उसकी शिकायतें प्रशासन को की थी एवं अखबार में भी छापा था। वह जैन साधुओं के पास भी जाता है। उसका किसी जाति विशेष से द्वेष नहीं है, वह अधर्म के खिलाफ समाचार प्रकाशित करता | अनोप मण्डल के पदाधिकारियों के जो कुछ विचार होते हैं, वह अखबार में प्रकाशित करते हैं। आगे कथन करता है कि वह एफ.आई.आर. में वर्णित तीन अंकों में से 41 व 42 सत्यपुर टाईम्स के नहीं थे। केवल मात्र एफ. आई. आर. में वर्णित अंक 18 सत्यपुर टाईम्स का था जो पत्रावली में नहीं है। उस अंक में संपादकीय लेख में जैनों के बारे छापा था। संपादकीय लेख संपादक के निजी विचार होते हैं। फिर कहा कि सत्यपुर टाईम्स अंक 18 पत्रावली में है जो प्रदर्श पी-4 है । जिरह में अभियुक्त स्वयं इस तथ्य को ही अस्वीकार करता है कि पत्रावली पर उपलब्ध प्रदर्श पी -4 मं संपादकीय लेख को उसने जैनों के बारे में छापा था। इस प्रकार अभियुक्त को प्रकाशन का पूर्ण ज्ञान प्रकाशन से पूर्व रहा था, यह तथ्य उसकी स्वयं की साक्ष्य से भी साबित होता है। आगे यह साक्षी कथन करता है कि पूर्व में अनूप मण्डल की पुस्तक जगतहितकारिणी प्रतिबंधित होने की जानकारी नहीं थी। लक्ष्मीचंद मेहता ने जब देख लेने की धमकी दी तो उसेन शिकायत प्रशासन को की जो प्रदर्श डी-9 से प्रदर्श डी-14 है। उसने मोहनलाल दोसी के विरुद्ध शिकायत की जो प्रदर्श डी - 15 है। मुनिम महेश के वाद में गवाही दी थी जो प्रति प्रदर्श डी - 16 है, उस केस में अदालत में बयान दिये जिसकी प्रमाणित प्रतिलिपि प्रदर्श डी-17 है। जिरह करने पर प्रदर्श पी-8 अखबार स्वयं द्वारा
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