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प्रकाशित होना यह साक्षी स्वीकार करता है। आगे कथन करता है कि प्रदर्श पी-8 अखबार की फोटो प्रति है। प्रदर्श पी-3 भी स्वयं द्वारा प्रकाशित होना जिरह में साक्षी स्वीकार करता है। आगे कथन करता है कि अंक संख्या 6 व 18 उसके द्वारा प्रकाशित हे जो प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4 है। इस प्रकार जो अभियोजन पक्ष द्वारा प्रदर्श पी-3,4 व प्रदर्श पी-8 प्रदर्शित करवाये गये हैं, उन्हें स्वयं द्वारा प्रकाशित करना अभियुक्त प्रतिरक्षा साक्ष्य में स्वीकार करता है एवं अपनी साक्ष्य में यह भी स्वीकार करता है कि संपादकीय लेख में उसने प्रदर्श पी-4 में जैनों के बारे में छापा था। प्रतिरक्षा साक्षी 2 भेराराम कथन करता है कि वह अनोप स्वामी रहस्य केन्द्र का सदस्य है। यह केन्द्र अहमदाबाद में है। अनोप मण्डल के मेले में जाता है। राजस्थान में काफी जगह है जिसमें सिरोही, स्वरूपगंज, पिण्डवाड़ा वगैरह है। उनकी खोज यह है कि जाड़ा, तुफान, फसल नष्ट होना, बीमारी होना वगैरह अधर्म के कारण होता है। ऐसा होता इसलिए है कि इसकी कोई प्रयोगशाला है, जिसे मेरूपर्वत जम्बूद्वीप कहते हैं। इसका अनोप मण्डल में हवाला है। अनोप मण्डल किसी जाति समुदाय के विरुद्ध नहीं होकर अधर्म के विरुद्ध है। ईश्वरलाल को पहचानता हूं। ईश्वरलाल द्वारा ऐसे कोई तथ्य नहीं छापे जिससे जैन धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचे। परन्तु यह साक्षी जिस संबंध में साक्ष्य देता है कि ईश्वरलाल द्वारा आपत्तिजनक तथ्य नहीं छापे गये, उन तथ्यों को अभियोजन पक्ष पूर्व में ही अपनी साक्ष्य से युक्ति-युक्त रूप से साबित करवा चुका है। प्रतिरक्षा साक्षी 3 अमृतलाल साक्ष्य देता है कि अनोप मण्डल किसी जाति समुदाय के खिलाफ नहीं है। ईश्वरलाल खत्री जैन धर्म के खिलाफ नहीं है, न ही किसी जाति को बदनाम करने के लिए ग्रन्थों का प्रचार करते हैं। इस प्रकार अभियुक्त द्वारा प्रतिरक्षा में जो विशेष बचाव लिया गया है, वह यह है कि इस प्रकरण के परिवादी लक्ष्मीचंद मेहता अ.सा. 1 व अ.सा. 2 मोहनलाल दोसी के विरुद्ध उसने जो भी घोटाले उन्होंने किये, उसके बारे में प्रकाशन किया गया एवं प्रकरण के परिवादी लक्ष्मीचंद मेहता के विरुद्ध वाद में गवाही दी थी, इस कारण यह झूठा मुकदमा रंजिशवश उसके विरुद्ध दर्ज करवाया गया है। परन्तु उक्त तथ्य स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। चंकि धारा 295ए भा.दं.सं. के तहत अपराध किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं होकर सम्पूर्ण वर्ग विशेष के प्रति होता है एवं अभियुक्त द्वारा कारित अपराध केवल मात्र प्रकरण के परिवादी एवं साक्षी के विरुद्ध नहीं होकर सम्पूर्ण जैन समुदाय के विरुद्ध है, जिससे धर्म विशेष की भावनाएं आहत हुई हैं। अतः प्रतिरक्षा का यह बचाव मानने योग्य नहीं है। साथ ही अभियुक्त द्वारा स्वयं प्रतिरक्षा साक्ष्य के दौरान स्वीकार किया गया है कि प्रदर्श पी-4 सत्यपुर टाईम्स के अंक 18 में उसने संपादकीय लेख में जैनों के बारे में छापा था। अभियोजन साक्ष्य से उपरोक्त तथ्य पूर्ण रूप से युक्ति-युक्त संदेह से परे प्रमाणित हो चुका है जिसका कोई खंडन अभियुक्त द्वारा पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया गया
8. इस प्रकार उपरोक्त विवेचनानुसार यह पूर्ण रूप से साबित है कि अभियुक्त द्वारा अपने समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स के अंक प्रदर्श पी-3, प्रदर्श पी-4 व प्रदर्श पी-8 में प्रतिबंधित ग्रन्थ आत्म पुराण व जगतहितकारिणी के अंशों को छापा एवं इसके अतिरिक्त उक्त पुस्तकों के विवेचन से जो बातें छापी वो जैन धर्म व जैन समुदाय के धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली है व जैन धर्म के प्रति घृणा उत्पन्न करने वाली है। इस प्रकार उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर अभियोजन पक्ष अपनी साक्ष्य से अभियुक्त ईश्वरलाल के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए का आरोप युक्ति-युक्त संदेह से परे ।
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