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________________ प्रतिबंधित कर दिया एवं उन्हें जहां कहीं पर उपलब्ध या प्राप्त हों. जब्त करने के आदेश न. एफ.2568 एवं बी 56 राज्य सरकार की गृह (डी) विभाग की विज्ञप्ति दिनांक 5 अगस्त 1957 एवं 20 नवंबर 1957 द्वारा जारी कर दिये गये क्योंकि वे द्वेष एवं घृणा फैलाने का कार्य कर रहे थे। आदेश न. एफ. 25(8)एच. बी./56 द्वारा जो 20 नवम्बर 1957 को राजस्थान सरकार ने प्रकाशित कर यह निर्णय दिया कि ऐसे प्रकाशन भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए व 295ए में दंडनीय अपराध है अतः राज्य सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसिजर कोड) की धारा 99ए से प्रदत्त अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उपरोक्त सभी पुस्तकों, पेम्फलेट्स व दस्तावेजों को पुनर्मुद्रण, उद्धरण (Extract), प्रत्युत्पादन (Reproduction), अनुवाद (Translation) व लिप्यंतरण (Transliteration) को भी प्रतिबंधित कर दिया व ऐसा होने पर उनकी जब्ती का आदेश भी जारी कर दिया है। यह दोनों ही विज्ञप्तियां राजस्थान राज्य गजट 29 अगस्त, 1957 एवं 12 दिसम्बर 1997 के भाग 1(ख) में प्रकाशित हो चुकी हैं। यही नहीं राज्य सरकार ने भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान की पहल पर आदेशों की कड़ाई से पालना हेतु प्रभावित क्षेत्रों के जिला कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों व संबंधित थानों को इन आदेशों की कड़ाई से पालना करने के निर्देश भी जारी कर दिये हैं एवं साधु-संतों पर होने वाले आक्रमणों को रोकने व विहार के दौरान उन्हें कष्ट न उठाना पड़े इस हेतु पुलिस प्रबंध के आदेश भी प्रसारित कर दिये हैं। एक व्यक्ति श्री ईश्वरलाल खत्री ने एक रिटपेटिशन राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित इस दिनांक 5.8.1957 एवं 20.11.1957 की विज्ञप्तियों को खारिज करने हेतु सन् 2009 में पेश की थी। वह रिट पेटिशन नं. 1905 सन् 2009 माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा अपने आदेश दिनांक 9.2.2010 द्वारा खारिज की जा चुकी है अतएव अब यह दोनों विज्ञप्तियें पूर्ण रूप से प्रभावी हैं एवं यह हम सबका कर्त्तव्य है कि जहां भी इन पुस्तकों व प्रकाशनों का जिन्हें जब्त किया जा चुका है एवं जिनका पुनः मुद्रण, प्रकाशन, ट्रांसलेशन एक्सट्रक्ट सभी का प्रतिबंधित किया जा चुका है का रखना व उनका पठन, पाठन, प्रसारण होता हो वह दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है एवं अपने आप में अपमानजनक (Perse defamatory) होने से उन्हें संबंधित थाना अधिकारियों व अन्य उच्च पदस्थ पुलिस व रेवेन्यू अफसरों को निवेदन कर उन्हें रुकवाया जावें एवं इस संबंध में प्रथम सूचना दर्ज कर उन्हें दंडित कराया जावे। संभव हो तो इसकी ऑडियो-वीडियोग्राफी करवाकर सबूत के रूप में पेश किया जावे। ____इन उपरोक्त सभी प्रावधानों, निर्णयों, प्रेस काउंसिल संबंधी दस्तावेजों एवं न्यायिक निर्णयों का माननीय श्री रंगरूपमल जी साहब कोठारी रिटायर्ड भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी महोदय ने सम्पूर्ण रूप से संकलन कर उसे एक पुस्तकाकार रूप में प्रदान कर समाज पर जो उपकार किया है उसके लिए पूरा जैन समाज सदैव उनका ऋणी एवं कृतज्ञ रहेगा। यह पुस्तक पीढ़ियों तक काम आने वाली सामग्री का संकलन है अतएव इसे संभालकर रखें। इसमें सभी आवश्यक सामग्री समाविष्ट है अतः यह एक रेफरेंस बुक का रूप धारण कर चुकी है जिसे सभी धार्मिक संस्थाएं व सामाजिक कार्यकर्ता अपने पास रखें एवं वक्त जरूरत इस अवांछनीय संगठन की घृणा, दुराव व वैमनस्य फैलाने वाली गतिविधियों पर अंकुश लगाने हेतु पूरी निष्ठा के साथ प्रयोग में लावें। यह अत्यन्त उपयोगी सामग्री है व समाज को माननीय कोठारी साहब का अभूतपूर्व अवदान है। वे स्वयं भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान के प्रबल प्रहरी एवं
SR No.006170
Book TitleAnup Mandal Ki Apradhik Karyavahi Ke Viruddh Rajy Sarkar Dwara Jari Adhisuchnaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
PublisherBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
Publication Year2015
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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