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________________ मुख्य रूप से प्रलेखीय साक्ष्य प्रदर्श पी - 3, 4 व 8 पर आधारित है फिर यह भी विधि का सुस्थापित सिद्धान्त है कि घटना के वर्षों बाद लेखबद्ध होने वाले गवाहान के कथनों में मामूली प्रकृति का विरोधाभास होना स्वाभाविक है, किन्तु उक्त मामूली / तुच्छ विरोधाभासों से अभियोजन मामले को अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता बल्कि उक्म मामूली विरोधाभास मानवीय स्वभाव के कारण आना स्वाभाविक है, जो घटना के वास्तविक होने की ओर ही संकेत करते हैं । इसके अलावा अधीनस्थ न्यायालय ने साक्ष्य का भलीभांति विवेचन करते हुए आलोच्य दोषसिद्धि का निर्णय पारित किया है, जिसमें किसी प्रकार की कोई विधिक या तात्विक त्रुटि नहीं पाई जाती है। इसके अलावा यह तथ्य भी निर्विवाद है कि परिवादी राजस्थान विधान सभा का भूतपूर्व विधायक होकर जनप्रतिनिधि है । उक्त गवाह की साक्ष्य का समर्थन अन्य अभियोजन साक्षीगण भी करते हैं तथा यह भी निर्विवाद तथ्य है कि अपीलार्थी/ अभियुक्त सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक पत्रिका का प्रधान संपादक है, जिसकी पुष्टि गवाह डी. ड. - 1 ईश्वरलाल स्वयं अपीलार्थी/ अभियुक्त के बयानों से होती है तथा दिनांक 07.03.1994 प्रदर्श पी-3 दिनांक 25.09.1994 प्रदर्श पी-4 के उक्त पत्रिका के अंकों के अवलोकन से भी होती है, जिसमें अपीलार्थी/ अभियुक्त ईश्वरलल खत्री को प्रधान संपादक बताया गया है, इसके अलावा अभिलेख पर ऐसी कोई साक्ष्य या दस्तावेज उपलब्ध नहीं है कि उक्त साप्ताहिक पत्रिका अपीलार्थी/ अभियुक्त के संपादकीय निर्देशन में प्रकाशित नहीं होती हो तथा प्रदर्श पी - 3, 4 व 8 उसके द्वारा प्रकाशित नहीं किए गए हो । इस प्रकार अभियोजन की उपर्युक्त विवेचनानुसार यह तथ्य युक्तियुक्त संदेह से परे साबित है कि प्रकरण के अपीलार्थी/ अभियुक्त ईश्वरलाल ने सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक अखबार का संपादक होते हुए दिनांक 27.12.1993, 07.03.1994 एवं 24.05.1994 के अखबार में जैनियों के विरुद्ध अनोप मण्डल के प्रतिबंधित ग्रंथ जगतहितकारिणी एवं आत्मपुराण के लेखों को प्रकाशित करके, उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाकर उन्हें मानसिक आघात भी पहुंचाया है। इसके अलावा अधीनस्थ न्यायालय ने आलौच्य निर्णय में साक्ष्य का विस्तृत विवेचन करते हुए पारित किया है, जिसमें कोई तात्विक या विधिक त्रुटि नहीं पाई जाती है तथा पारित आलौच्य निर्णय में हस्तक्षेप की कत्तई गुंजाईश नहीं होने से पारित आलोच्य निर्णय को संपुष्ट किए जाने योग्य है। अपीलार्थी/ अभियुक्त की हाजरी बाबत जामनत मुचलके निरस्त किए जाते हैं, अपीलार्थी/ अभियुक्त को अभिरक्षा में लिया जाता है। (संदीप कुमार शर्मा) अपर सेशन न्यायाधीश, भीनमाल (जालोर) - दण्डादेश दंड के बिन्दु पर सुना गया। अधिवक्ता अपीलार्थी/ अभियुक्त का तर्क है कि घटना वर्ष 1994 से संबंधित है तथा अपीलार्थी लम्बे समय से अन्वीक्षा की पीड़ा भुगत रहा है, वह पूर्व दोषसिद्ध नहीं है, तथा 80
SR No.006170
Book TitleAnup Mandal Ki Apradhik Karyavahi Ke Viruddh Rajy Sarkar Dwara Jari Adhisuchnaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
PublisherBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
Publication Year2015
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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