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________________ -कि अपीलार्थी/अभियुक्त ने प्रतिबंधित अनोप मण्डल के ग्रंथों जगतहितकारिणी एवं आत्मपुराण के अंश अपने साप्ताहिक समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स प्रदर्श पी-3, 4, व 8 में नहीं छापे हो। इसके अलावा गवाह डी.ड. -3 अपनी साक्ष्य में यह बात स्वीकार भी करता है कि अनोप मण्डल को राजस्थान सरकार ने प्रतिबंधित किया हो तो मेरी जानकारी में नहीं है। इसके अलावा इस संबंध में विद्वान अधीनस्थ न्यायालय ने अपने आलौच्य निर्णय में विस्तृत विवेचन किया है। इसके अलावा जहां तक अपीलार्थी/ अभियुक्त की ओर से प्रस्तुत लिखित बहस के तर्कों का संबंध है, इस संबंध में मेरा यह मत है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है, जिसमें विभिन्न जाति एवं धर्म के लोग निवास करते हैं तथा अपने-अपने ग्रंथों एवं प्रथानुसार धार्मिक अनुष्ठान पूजा, अर्चना, नमाज, तकरीर, प्रवचन आदि कार्य करते हैं, सभी को समान हक व अधिकार है, लेकिन हस्तगत मामले में अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल खत्री ने बतौर सम्पादक के सत्यपुर टाईम्स में अनोप मण्डल के साहित्य अनुसार जैन साधुओं व जैनियों पर किचड़ उछालकर, जैनियों की तुलना रावण, हिरणाकस से की है तथा जैन धर्म में घृणा का वातावरण उत्पन्न करने से उन्हें मानसिक आघात व धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। हालांकि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में सभी व्यक्तियों को अभिव्यक्ति का अधिकार निहित है, परन्तु अभिव्यक्ति के अधिकार निहित होने से किसी जातिवर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, काननून अपराध है। इसके अलावा अधिवक्ता अपीलार्थी का यह तर्क भी रहा है कि धारा 295ए भा.दं.सं. को परिभाषा में अपीलार्थी के विरुद्ध आरोप नहीं बनता इस संबंध में धारा 295ए भा.दं.सं. में यह परिभाषित किया गया है कि " भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के विमर्शित और विद्वेषपूर्ण आशय से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान, उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपेण द्वारा या अन्यथा करेगा या करने का प्रयत्न करेगा" हस्तगत प्रकरण में अपीलार्थी/ अभियुक्त द्वारा जैन धर्म को तथा जैनियों को राक्षस कहना तथा जैनी राक्षस की तुलना रावण एवं हिरणाकस व कंस से करके तथा इस आशय की स्वयं के अखबार सत्यपुर टाईम्स में प्रकाशन कर धार्मिक विश्वासों का अपमान करते हुए जाति विशेष जैनधर्मावलम्बियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कृत्य किया गया है, जो प्रदर्श पी - 3, 4 व 8 से स्पष्ट है। अतः यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। इसके अलावा अधिवक्ता अपीलार्थी का यह भी तर्क रहा है कि अभियोजन स्वीकृति से विसंगतिपूर्ण रही है, इस संबंध में अपीलार्थी की ओर से कोई ऐसी साक्ष्य पेश नहीं की है, जिससे यह साबित होता हो कि अभियोजन स्वीकृति विसंगतिपूर्ण रही हो, इसके विपरीत अभियोजन पक्ष की ओर प्रदर्शित दस्तावेज प्रदर्श पी-5 के अनुसार, अभियोजन स्वीकृति राजस्थान सरकार के गृह विभाग द्वारा उप शासन सचिव विधि के पत्रांक प-10 (17) गृह 10/94 दिनांक 21.12.1995 के, जो प्रदर्श पी-5 है, द.प्र. सं. की धारा 196 के अधीन नियमानुसार जारी की गई है। जहां गवाहान के कथनों में आए विरोधाभास का संबंध है, पत्रावली के अवलोकन से अभियोजन साक्षीगण की साक्ष्य में महत्वपूर्ण प्रकृति का कोई विरोधाभास होना नहीं पाया जाता है, फिर यह मामला 79+
SR No.006170
Book TitleAnup Mandal Ki Apradhik Karyavahi Ke Viruddh Rajy Sarkar Dwara Jari Adhisuchnaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
PublisherBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
Publication Year2015
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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