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इसी प्रकार गवाह पी.ड.-4 जसवंतसिंह भी अन्वेषणकर्ता साक्षी है, जिसने रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 के आधार पर पर्चा प्राथमिकी प्रदर्श पी-2 चाक की थी, इस गवाह से भी जिरह में ऐसा कोई प्रश्न नहीं पूछा है कि अखबार में जैनियों के विरुद्ध छपे लेख प्रदर्श पी-3 व 4 के आधार पर धार्मिक विश्वासों का अपमान नहीं हुआ हो तथा धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई गई हो।
इसके अलावा जहां तक प्रतिरक्षा साक्ष्य का संबंध है, इस संबंध में गवाह डी.ड.-1 ईश्वरलाल अपीलार्थी/अभियुक्त स्वयं ने अपने कथनों में बताया है कि सांचौर में महावीर जीवदया गौशाला है, जिसके अध्यक्ष परिवादी लक्ष्मीचंद मेहता काफी लम्बे समय तक रहे हैं, जिसका सदस्य अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल था तथा उक्त गौशाला का मुनिम महेश था, उक्त मुनिम ने घोटाले की जानकारी अपीलार्थी/अभियुक्त को दी, उक्त घोटाले को अखबार में प्रकाशित करवाकर, प्रशासन से शिकायत की जिससे मुनिम व उसके बीच अच्छे संबंधों से परिवादी लक्ष्मीचंद मेहता नाराज हो गया, जिसने मुनिम के विरुद्ध भीनमाल कोर्ट में दावा किया था, जिसमें उसने गवाही दी थी, जिस कारण यह झूठा मुकदमा उसके खिलाफ दर्ज करवाया है, इसी प्रकार डॉ. मोहनलाल डोसी गवाह पी.ड.-3 के खिलाफ अपीलार्थी/अभियुक्त ने अखबार में छापा था, डॉ. डोसी का भाई द्वारका डोसी ठेकेदार था, जिसन घटिया सड़क निर्माण की थी, जिसकी उसने खबर अखबार में छापी थी, इसी प्रकार उसने परिवादी, मेहता की अन्य घोटालों की शिकायत भी प्रशासन से की थी, जिससे उक्त परिवादीपक्ष सभी अपीलार्थी/अभियुक्त से रंजिश रखते हुए यह झूठा प्रकरण दर्ज करवाया है। इस गवाह (अपीलार्थी/अभियुक्त डी.ड.-1) की बचाव साक्ष्य, उसे कोई सहायता प्रदान नहीं करती चूंकि प्रकरण प्रलेखीय साक्ष्य प्रदर्श पी-3, 4 व 8 पर आधारित है, जिसकी पुष्टि प्रलेखीय साक्ष्य से भलीभांति होना पाई जाती है, अपीलार्थी प्रश्नगत साप्ताहिक पत्रिका सत्यपुर टाईम्स का संपादक होना स्वीकृत तथ्य है तथा प्रदर्श पी-3,4 व 8 का प्रकाशन उसके द्वारा न किया हो तथा इन्हें किन्हीं अन्य व्यक्ति अथवा परिवादी ने फर्जीवाड़ा करके प्रकाशित किया हो, यह अपीलार्थी का कथन नहीं रहा है, अतः इस मामले में किसी पूर्व की रंजिश व द्वेष के आधार पर अपीलार्थी के विरुद्ध कोई कार्यवाही की जाना किसी भी आधार पर नहीं माना जा सकता, चूंकि प्रकरण का आधार अपीलार्थी द्वारा संपादकीय हैसियत में प्रकाशित किये जाने प्रदर्श पी-3,4 व 8 अखबार है, जिसके लिये वह स्वयं उत्तरदायी है, क्योंकि जिस समाचार पत्र का संपादक अपीलार्थी स्वयं है वह परिवादी सहित किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रकाशित किया जा सकता हो, यह कत्तई विश्वसनीय नहीं है। अतः ऐसी स्थिति में रंजिश किसी व्यक्ति विशेष से हो सकती है, सम्पूर्ण जातिधर्म से रंजिश होना नहीं कहा जा सकता, अतः रंजिश का लिया गया, बचाव अपीलार्थी/अभियुक्त को इस स्तर पर कोई सहायता नहीं करता है। हस्तगत प्रकरण में अपीलार्थी/अभियुक्त ने अपने ही अखबार में जैनजाति धर्म को अपमानित करने के आशय से एक समुदाय विशेष के विरुद्ध धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए इस प्रकार के लेखों का प्रकाशन किया, जिससे पूरा समाज आहत तथा अपमानित हुआ है।
इसके अलावा गवाह डी.ड.-2 भेराराम व डी.ड.-3 अमृतलाल दोनों ही अनोप मण्डल के संबंध में साक्ष्य देते हैं तथा अपीलार्थी/अभियुक्त द्वारा जैन धर्म के विरुद्ध प्रकाशन के संबंध में इन्कार करते हैं, लेकिन इन गवाहान ने ऐसा कोई दस्तावेज प्रदर्शित नहीं करवाया है, जिससे यह साबित होता हो
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