SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बनियों की राक्षसों से तुलना की गई, तथा जैन धर्म के विरुद्ध घिनौना दुष्प्रचार किया गया। अंक 43 दिनांक 22.02.1994 में मुलजिम ने जैन महाजनान की तुलना रावण, हिरणकुस, कंस व कांसन से की तथा जैन धर्म के विरोधी अनोप स्वामी द्वारा जगत हितकारिणी, हरचंद सोनी द्वारा प्रकाशित चिंतामणी आत्मपुराण के अंशों को प्रकाशित कर जैन धर्मावलम्बियों के प्रति भयंकर दुष्प्रचार किया। अंक सं. 18 दिनांक 24.05.1994 में भी घृणित प्रसार किया तथा उल्लेख किया है कि जैन बनिए इन्द्रजाल द्वारा बुद्धि को भ्रष्ट कर लोगों को नेकी से हटाते हैं तथा 84 का चक्कर व नर्क इन जैन बनियों का बनाया गया है। उक्त तथ्यों की पुष्टि गवाह पी.ड.-1 लक्ष्मीचंद मेहता की साक्ष्य से होती है, जिसके अनुसार उसने बताया है कि सत्यपुर टाईम्स के संपादक अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल ने अनोप मण्डल के साहित्य जगतहिकारिणी वगैरह का प्रसार व प्रकाशन, प्रतिबंधित होते हुए भी अपने अखबार में करते हुए, जैन समाज के लोगों व साधुओं पर कीचड़ उछालने का प्रयास किया गया है तथा जैन समाज को बदनाम किया है, जिसका उसने अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करवाया था, जो प्रदर्श पी-1 है, पर्चा प्राथमिकी प्रदर्श पी-2 है, जिस पर उसके हस्ताक्षर है। इसके अलावा सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक पत्रिका के अंक दिनांक 07.03.1994 प्रदर्श पी-3 दिनांक 25.09.1994 प्रदर्श पी-4 एवं दिनांक 27.12. 1993 प्रदर्श पी-8 के अवलोकन से भी स्पष्ट है कि उक्त अंकों में जैन समाज के बारे में आपत्तिजनक एवं अपमानजनक प्रकाशन किया गया है जो अनुपमण्डल के ग्रंथ जगतहितकारिणी व आत्मपुराण के अंश है लेकिन प्रदर्श पी-6 राजस्थान सरकार के गृह विभाग के परिपत्र सं. ए!. 25(9) बी.एच./56 दिनांक 05. 08.1957 एवं दिनांक 29.08.1957 के राजस्थान राजपत्र/गजट के पृष्ठ सं. 270 के अनुसार अनोपदास रचित जगतहितकारिणी व सोनी हरिचंद रचित आत्मपुराण की पुस्तकों को प्रतिबंधित किया जा चुका है। इसके अलावा इस गवाह की जिरह में ऐसी कोई बात नहीं आई है कि प्रदर्श पी-3,4 अखबार में प्रकाशित लेख से जैन धर्म की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंची हो तथा उन्हें मानसिक आघात नहीं पहुंचा हो। इसके अलावा गवाह पी.ड.-2 गौतम भास्कर आरोप पत्र पेश करने का कथन करता है, जिसने अपीलार्थी/अभियुक्त को प्रदर्श पी-2 के जरिए गिरफ्तार किया था तथा अभियोजन स्वीकृति राज्य सरकार से प्राप्त की थी, जो प्रदर्श पी-5 है। इस गवाह से भी अपीलार्थी द्वारा जिरह की गई है किन्तु इसकी जिरह में ऐसा कोई तथ्य प्रकट नहीं हुआ है, जिससे इसकी साक्ष्य पर अविश्वास किया जाकर अभियुक्त को कोई लाभ प्रदान किया जा सके। इसी प्रकार गवाह पी.ड.-3 डॉ. मोहनलाल डोसी ने अपने कथन में स्पष्ट रूप से बताया है कि अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल ने सत्यपुर टाईम्स साप्ताहिक अखबार में जैन बनियों के बारे में बहुत ही घृणित एवं साम्प्रदायिक भावना फैलाने वाले समाचार छापे थे, जिनको पढ़ने से उसे भी ठेस पहुंची, उक्त अखबार को जैन बाहुल्य इलाके में प्रचार-प्रसार करके, जैन समुदाय के खिलाफ वैमनस्यता पैदा होन जैसा प्रसार किया था। जिरह में इस गवाह ने कहा है कि अपीलार्थी/अभियुक्त का ऐसा प्रचार घृणित है, इसके अलावा इस गवाह से जिरह में ऐसा कोई प्रश्न नहीं पूछा है कि प्रदर्श पी-3, 4 अखबार पढ़ने से उसे व सामान्य जनता तथा विशेष रूप से जैन समुदाय को कोई मानसिक आघात नहीं पहुंचा हो और उसे कोई ठेस नहीं पहुंची हो।
SR No.006170
Book TitleAnup Mandal Ki Apradhik Karyavahi Ke Viruddh Rajy Sarkar Dwara Jari Adhisuchnaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
PublisherBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
Publication Year2015
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy