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________________ 3. निष्पक्ष साक्षी नहीं है। इसके अलावा अपीलार्थी/अभियुक्त करीब 16 वर्षों से अन्वीक्षा भुगत रहा है। जिस पुस्तक जगत हितकारिणी एवं आत्मपुराण को प्रतिबंधित किया गया है, उक्त पुस्तकें भारत सरकार के कॉपीराईट कार्यालय में रजिस्टर्ड है तथा अनोप मण्डल राष्ट्रीय संस्था है तथा प्रतिबंधित नहीं है जिसका समर्थन गवाह डी. ड. -3 अमृतलाल राष्ट्रीय अध्यक्ष अनोप मण्डल करता है, फिर अधीनस्थ न्यायालय ने ऐसे तथ्यों की ओर ध्यान नहीं देकर आलोच्य निर्णय पारित करने में कानूनी भूल की है। 4. परिवादी ने कथित अनोप मण्डल की पुस्तकों पर प्रतिबंध लगवाया तब वह विधायक था तथा अपीलार्थी/अभियुक्त के विरुद्ध रिपोर्ट पेश की तब भी वह विधायक था ऐसे वैमनस्य रखने वाली की साक्ष्य पर भरोसा करके अधीनस्थ न्यायालय ने कानूनी भूल की है। 5. अपीलार्थी/ अभियुक्त के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति त्रुटिपूर्ण है क्योंकि प्रथम सूचना रिपोर्ट देते समय या राज्य सरकार के समक्ष अभियोजन स्वीकृति लेते समय कथित अंक 42 व 43 प्रस्तुत ही नहीं हुए हैं। इसके अलावा जांच अधिकारी ने उक्त अंक सत्यपुर टाईम्स के नहीं होकर, अन्य अखबार नीलकंठ जोधपुर के होने बताए हैं, फिर भी अधीनस्थ न्यायालय ने आलौच्य निर्णय पारित करने में कानूनी भूल की है। अतः अपील स्वीकार की जावे 1 बहस अपील दोनों पक्षों की सुनी गई एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया । दोराने बहस अधिवक्ता अपीलार्थी ने अपनी अपील में अंकित तथ्यों को दोहराते हुए निवेदन किया कि अपीलार्थी/अभियुक्त ने किसी धर्म विशेष के विरुद्ध कोई दुर्भावना नहीं फैलाई है तथा अधीनस्थ न्यायालय ने मात्र परिवादी व उसके एक अन्य हितबद्ध साक्षी की साक्ष्य के आधार पर ही आलोच्य निर्णय पारित किया है, जबकि उक्त दोनों गवाह पी. ड. - 1 लक्ष्मीचंद परिवादी एवं पी.ड. - 3 डॉ. मोहनलाल डोसी, अपीलार्थी/अभियुक्त से रंजिश रखते हैं । अतः आलौच्य निर्णय व दण्डादेश को अपास्त किया जाकर अपील स्वीकार की जावे । इसके विपरीत अपर लोक अभियोजक ने विरोध करते हुए तर्क दिया कि अधीनस्थ न्यायालय ने साक्ष्य का सही मूल्यांकन करते हुए आलोच्य निर्णय व दण्डादेश पारित किया है, जिसे संपुष्ट किया जावे तथा अपील खारिज की जावे । मैंने दोनों पक्षों के तर्कों पर विचार किया, पत्रावली का तथा पारित आलौच्य निर्णय व दण्डादेश एवं लिखित बहस अभियुक्त / अपीलार्थी का अवलोकन किया । हस्तगत प्रकरण में जहां तक अपीलार्थी/अभियुक्त द्वारा जैन धर्म के विरुद्ध अपने समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स के माध्यम से दुष्प्रचार करने का आरोप है, इस संबंध में साक्ष्य पर विचार किया जाए तो परिवादी लक्ष्मीचंद जैन पी. ड. -1 ने प्राथमिकी प्रदर्श पी-1 में यह आक्षेप लगाया है कि अपीलार्थी/ अभियुक्त दिनांक 12.02.1994 को सांचौर नगर में अनोपमण्डल के नाम पर सत्संग का आयोजन किया, जिसमें काफी लोगों को एकत्रित कर अनोपस्वामी के प्रवचनों एवं उनके द्वारा रचित व प्रकाशित पुस्तक जगतहितकारिणी ग्रंथ पर चर्चा की तथा अभियुक्त ने दिनांक 15.02.1994 को प्रकाशित अपने समाचार पत्र सत्यपुर टाईम्स के अंक सं. 42 में जैन 76+
SR No.006170
Book TitleAnup Mandal Ki Apradhik Karyavahi Ke Viruddh Rajy Sarkar Dwara Jari Adhisuchnaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
PublisherBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
Publication Year2015
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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