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________________ 1957 के जरिए प्रतिबंधित कर रखी है। अंक सं. 18 दिनांक 24.05.1994 में भी घृणित प्रसार किया तथा उल्लेख किया है कि जैन बनिए इन्द्रजाल द्वारा बुद्धि को भ्रष्ट कर लोगों को नेकी से हटाते हैं तथा 84 का चक्कर व नर्क इन जैन बनियों का बनाया गया है। इस प्रकार मुलजिम ने जैन धर्म के प्रति दुष्प्रचार कर साम्प्रदायिक सद्भावना को गहरी ठेस पहुंचाई है। आदि पर प्रकरण दर्ज किया जाकर बाद अनुसंधान अपीलार्थी/ अभियुक्त के विरुद्ध धारा 153ए व 295ए भा.दं.सं. में आरोप पत्र न्यायालय में पेश किया जिस पर अधीनस्थ न्यायालय द्वारा अभियुक्त को धारा 295ए भा.दं.सं. का आरोप विरचित कर सुनाया व समझाया तो अभियुक्त ने आरोप सुनकर अस्वीकार कर अन्वीक्षा चाही। अभियोजन पक्ष ने अपने मामले के समर्थन में 4 गवाहान पी. ड. - 1 लक्ष्मीचंद मेहता, पी. ड. - 2 गौतम भास्कर, पी. ड. -3 डॉ. मोहनलाल डोसी व पी. ड. -4 जसवंतसिंह के बयान करवाए तथा प्रलेखीय साक्ष्य में प्रदर्श पी-1 लगायत प्रदर्श पी-8 को प्रदर्शित करवाया। अभियोजन साक्ष्य की समाप्ति पर अभियुक्त का कथन दं.प्र.सं. की धारा 313 के अधीन लिया गया जिसमें उसने अभियोजन साक्ष्य को गलत बताते हुए, मुकदमा झूठा करना बताया एवं साक्ष्य सफाई पेश करनी चाही, लेकिन पर्याप्त अवसर दिए जाने के बावजूद भी कोई साक्ष्य सफाई पेश नहीं करने पर, साक्ष्य सफाई बंद की जाकर अधीनस्थ न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के उपरान्त निर्णय एवं दण्डादेश दिनांक 20.05.1998 को पारित किया गया जिसके अनुसार अपीलार्थी/ अभियुक्त को तीन साल का कठोर कारावास एवं 5000/- रु. का अर्थदण्ड तथा अदम अदायगी अर्थदण्ड छः माह का अतिरिक्त कारावास भुगताने का आदेश दिया था । उक्त निर्णय व दण्डादेश की अपील इस न्यायालय में (7/2005 ( 54 / 1998)) ईश्वरलाल बनाम राज्य में पारित निर्णय दिनांक 05.09.2005 द्वारा मामला रिमाण्ड किया गया था कि अपीलार्थी/ अभियुक्त को बचाव हेतु अर्थात् प्रतिरक्षा साक्ष्य पेश करने हेतु पर्याप्त अवसर देते हुए पुनः विधि अनुसार मामले का निस्तारण करने का निर्देश दिए गए थे। तत्पश्चात् अधीनस्थ न्यायालय ने बचाव पक्ष की ओर से गवाह डी. ड. -1 ईश्वरलाल अपीलार्थी/ अभियुक्त स्वयं, डी. ड. - 2 भैराराम व डी. ड. -3 अमृतलाल के बयान करवाए तथा प्रलेखीय साक्ष्य में प्रदर्श डी-1 लगायत प्रदर्श डी-35 दस्तावेजात को प्रदर्शित करवाया, तत्पश्चात् विद्वान् अधीनस्थ न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के उपरान्त साक्ष्य का विस्तृत विवेचन करते हुए आलोच्य दोषसिद्धि का निर्णय दिनांक 16.04.2010 को पारित किया तथा अपीलार्थी/ अभियुक्त को भा.दं.सं. की धारा 295ए के आरोप में तीन वर्ष का कठोर कारावास, 5000/- रु. अर्थदण्ड अदम अदायगी अर्थदण्ड छ: माह का अतिरिक्त कारावास भुगताए जाने का आदेश से दण्डित किया, जिससे व्यथित होकर यह निम्न आधारों पर पेश की अपील पेश की है। 1. प्रथम सूचना रिपोर्ट के समय तथा साक्ष्य में अन्वीक्षा के समय मूल दस्तावेज अखबार अंक 42, 43, 18 प्रकट नहीं किए गए, जिसके आधार पर परिवादी ने आरोप लगाया था, फिर भी अधीनस्थ न्यायालय ने आलौच्य निर्णय पारित कर कानूनी एवं तथ्यात्मक भूल की है। धारा 295ए की परिभाषा में कथित अपराध बनना नहीं पाया जाता है तथा साक्ष्य में कोई 2. 75
SR No.006170
Book TitleAnup Mandal Ki Apradhik Karyavahi Ke Viruddh Rajy Sarkar Dwara Jari Adhisuchnaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
PublisherBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
Publication Year2015
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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