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यह एसका प्रथम अपराध है, अतः उसे परिवीक्षा अधिनियम का लाभ प्रदान किया जाए। अपर लोक अभियोजक ने विरोध किया।
हमने पत्रावली का अवलोकन किया। अपीलार्थी/अभियुक्त ने एक जाति विशेष की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की नियत से प्रतिबंधित पुस्तकों के अंश को अपने अखबार में प्रकाशन कर जैन समाज की धार्मिक भावनाओं व आस्था को आहत किया है तथा जैन धर्मावलम्बियों के प्रति भयंकर दुष्प्रचार किया है। अतः ऐसे समाज विरोधी कृत्य को देखते हुए परिवीक्षा अधिनियम का लाभ प्रदान किया न्यायोचित प्रतीत नहीं होता है। अतः मेरे मत में अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित किया गया दण्डादेश प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए पूर्णतया युक्ति-युक्त व उचित है, जिसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता। अतः अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित दण्डादेश भी संपुष्ट किए जाने योग्य है।
आदेश परिणाम स्वरूप अपीलार्थी/अभियुक्त ईश्वरलाल द्वारा प्रस्तुत यह अपील अस्वीकार की जाकर खारिज की जाती है। विद्वान अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि का निर्णय व दण्डादेश दिनांक 16.04.2010 को संपुष्ट किया जाता है। अधीनस्थ न्यायालय का सजायाबी वारंट की पुष्टि की जाती है, जिसके अनुसार सजा पुष्टि वारंट बनाया जाये।
अधीनस्थ न्यायालय की पत्रावली मय निर्णय की प्रति अविलम्ब लौटाई जावे। निर्णय की प्रति अपीलार्थी/अभियुक्त को निःशुल्क दी जावे।
(संदीप कुमार शर्मा) अपर सेशन न्यायाधीश,
भीनमाल (जालोर) निर्णय आज दिनांक 28.09.2013 को खुले न्यायालय में लिखाया जाकर सुनाया गया।
(संदीप कुमार शर्मा) अपर सेशन न्यायाधीश, भीनमाल (जालोर)
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