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भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान, जोधपुर
दिनांक 13 अक्टूबर 1996
. परिपत्र राजस्थान राज्य सरकार ने जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं का अपमान करने, आहत करने, जैन समुदाय के अनुयायियों के प्रति शत्रुता, घृणा, भय, वैमनस्य एवं असुरक्षा की भावना फैलाने, शान्ति में बाधा डालने के कारण अनूप मण्डल व उनके अनुयायियों द्वारा प्रकाशित पुस्तकों, इश्तहार (पेम्पलेट) व दस्तावेज का प्रकाशन फौजदारी कानून (इण्डियन पेनल कोड) की धारा 153ए एवं 295ए के तहत दण्डनीय मान कर उन्हें जब्त (फोरफिट) करने की विज्ञप्ति पुराने जाब्ता फौजदारी कोड की धारा 99ए (नये कोड की धारा 95) में जारी की है। इस विज्ञप्ति का क्रमांक एफ. 25(9) एच.बी./56 दिनांक 5-8-57 है, जो राजस्थान राजपत्र (गजट) दिनांक 29-8-57 के भाग 1(ख) के पृष्ठ 270 पर छपी है तथा 20 नवम्बर 1957 को जारी अधिसूचना द्वारा इसके पुनः मुद्रण, उद्धरण, प्रत्युपादन अनुवाद या लिप्यंतरण जोड़ा गया है। अधिसूचनाएं आज भी प्रभावी हैं। (विशेष नोट-इन्हें निरस्त करने के लिए अनूप मण्डल द्वारा राजस्थान उच्च न्यायालय में आवेदन किया था जो 9 फरवरी 2010 को खारिज कर दी गई।) राज्य सरकार द्वारा जब्त की जाने वाली ऐसी पुस्तकें, दस्तावेज, पेम्पलेट का विवरण निम्न प्रकार है :
1. जगतहित-कारनी 2. न्याय चिन्तामणी 3. किताब मुफीद आम मौसूमव 4. आत्म पुराण 5. अनुपस्वामी की आरती 6. दुखियों की पुकार
धारा 95 दण्ड प्रक्रिया संहिता में स्पष्ट प्रावधान है कि अधिसूचना जारी करने के पश्चात् ऐसा साहित्य भारत में जहां भी मिले कोई भी पुलिस अधिकारी उसे जब्त कर सकता है।
राज्य सरकार द्वारा किये गये इस जब्ती के आदेश की पालना में कुछ वर्ष पूर्व पुलिस विभाग द्वारा जहां भी यह पुस्तकें उपलब्ध थी, वहां से जब्त कर जलाई गई थी। इस समस्त कानूनी कार्यवाही के बावजूद कुछ असामाजिक तत्व इन पुस्तकों व दस्तावेज को अपने पास रखे हुए है। उसका प्रचार-प्रसार करते हैं-वितरण करते हैं-छापते हैं, समाचार पत्र 'निकलंक एक्सप्रेस' एवं 'सत्यपुर टाईम्स' दुर्भावनापूर्ण एवं विद्वेषपूर्ण आशय से इनका उद्धरण प्रकाशित करते हैं। मेले व सत्संग, जुलूस, शोभायात्रा, आयोजन कर जैनियों के धार्मिक विश्वासों का अपमान करते हैं, समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा व वैमनस्य की भावनाएं फैलाते हैं तथा शान्ति भंग करते हैं। यह अधिसूचना 39 वर्ष पुरानी होने से जिला प्रशासन में
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