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________________ ___ प्रकाशकीय यह संकलन आवश्यक क्यों? आर.एम. कोठारी आई.ए.एस. (सेवानिवृत्त) कार्यकारी अध्यक्ष, भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान जोधपुर की स्थापना 18 अगस्त 1996 को जोधपुर में अध्यक्ष माननीय न्यायाधिपति श्री जसराज चौपड़ा एवं महासचिव श्री सुरेशचन्द्र डी. सुराणा-एडवोकेट, सिरोही के नेतृत्व में सुमेरपुर-शिवगंज के युवा साथियों की प्रेरणा एवं आग्रह पर की गई। ___इस संस्थान का मुख्य कार्य जैन देव, गुरु व धर्म के विरुद्ध अनूप मण्डल के भाविकों द्वारा किये जा रहे भ्रामक प्रचार, आक्रमण, दुर्व्यवहार एवं पूज्य साधु-साध्वियों पर प्राणघातक हमलों का प्रतिरोध एवं अनूप मण्डल की असंवैधानिक गतिविधियों पर रोक हेतु समाज को जानकारी देकर सजग करना एवं जिला व पुलिस प्रशासन के ध्यान में लाना है। उपलब्ध रेकार्ड के अनुसार अनूप मण्डल (अनोप मण्डल) नाम की संस्था के अनुयायी । (भाविक) सन् 1920 के पूर्व से ही जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं का अपमान करने, आहत करने, जैन समुदाय के प्रति शत्रुता, घृणा, भय, वैमनस्य एवं असुरक्षा की भावना फैलाने, शांति में बाधा डालने का कार्य कर रहे हैं। सन् 1919 से अब तक राजस्थान, गुजरात एवं महाराष्ट्र में जैन साधु-साध्वियों एवं धार्मिक स्थलों पर हमले एवं जैन धार्मिक भावनाओं को आहत करने के 1200 मामले हो चुके हैं। राजस्थान में सिरोही, जालोर, पाली अधिक प्रभावित हैं। अनूप मण्डल द्वारा प्रकाशित समस्त साहित्य को तत्कालीन सिरोही राज्य में एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् राजस्थान सरकार ने जब्त करने की अधिसूचना 5 अगस्त 1957 को जारी की एवं अन्य अधिसूचना दिनांक 20.11.1957 को जारी कर इस साहित्य का पुनः मुद्रण, उद्धरण, अनुवाद एवं लिप्यान्तरण को भी जब्त करने के आदेश दिये। यह अधिसूचनाएं आज भी प्रभावी हैं। इन अधिसूचनाओं को निरस्त करने के लिए राजस्थान उच्च न्यायालय में अनूप मण्डल के भाविक द्वारा आवेदन किया गया था। उनका आवेदन राजस्थान उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की वृहद्पीठ द्वारा खारिज कर दिया गया है। दण्ड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 95 में स्पष्ट प्रावधान है कि अधिसूचना जारी करने के पश्चात ऐसा साहित्य भारत में जहां भी मिले. कोई भी पलिस अधिकारी जब्त कर सकत इसका कानूनी प्रभाव केवल राजस्थान में ही नहीं पूरे भारत में है। राज्य सरकार द्वारा इस अधिसूचना के पश्चात् कुछ वर्ष पूर्व पुलिस विभाग द्वारा जहां भी यह साहित्य उपलब्ध था जब्त कर जलाया गया था।
SR No.006170
Book TitleAnup Mandal Ki Apradhik Karyavahi Ke Viruddh Rajy Sarkar Dwara Jari Adhisuchnaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
PublisherBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
Publication Year2015
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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