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राज्य सरकार की अधिसूचना दिनांक 5 अगस्त 1957, जो राजस्थान राजपत्र भाग 1(ख) दिनांक 29 अगस्त 1957 पृ. सं. 270 के साथ ही संशोधन की अधिसूचना दिनांक 20 नवम्बर 1957 जो राजस्थान राजपत्र 12 दिसम्बर 1957 भाग 1(ख) पृ. 886 पर छपी जिसके द्वारा कुछ शब्द पूर्व अधिसूचना में जोड़े गये उन्हें यथा स्थान पर दर्ज करते
हुए संशोधन सहित (अन्डरलाईनड) एकीकृत अधिसूचना
गृह (घ) विभाग
अधिसूचना जयपुर, 5 अगस्त, 1957 सं. एफ. 25(9) एव.बी./56
यतः राज्य सरकार को यह प्रतीत होता है कि नीचे उल्लिखित पुस्तकों, पुस्तिकाओं और दस्तावेजों, जिनमें ऐसा मामला अन्तर्विष्ट है, जिसका भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के मध्य विद्वेष
और घृणा की भावना को संप्रवर्तित करना आशयित है तथा संप्रवर्तित करती है और जिनका जानबूझ कर और विद्वेषपूर्ण रूप से जैन (बनिया) समुदाय की धार्मिक भावनाओं को उनके धर्म और उस वर्ग के धार्मिक विश्वास का अपमान करके आहत करना आशयित है और जिसका प्रकाशन भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 क और 295 क के अधीन दण्डनीय है।
इसलिए, राज्य सरकार दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का V) की धारा 99 क द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए एतद्वारा पूर्वोक्त पुस्तकों, पुस्तिकाओं और दस्तावेजों की प्रत्येक प्रति को साथ ही उनके पुनःमुद्रण, उद्धरण, प्रत्युपादन, अनुवाद या लिप्यान्तरण की प्रत्येक प्रति को सरकार द्वारा समपहृत किये जाने की घोषणा करती है।
पुस्तकें, पुस्तिकाएं और दस्तावेज (1) साधु अनूप दास द्वारा हिन्दी में लिखित और संवत्, वर्ष 1968 में श्री वेंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय,
बम्बई द्वारा 'जगत हितकारणी' शीर्षक से मुद्रित ग्रंथ। यह 'बनिया' समुदाय के विरुद्ध विद्वेषपूर्ण
प्रचार से पूर्ण है। (2) संवत्, वर्ष 1982 में 'न्याय चिन्तामणि' शीर्षक से प्रकाशित सिरोही के सोनी हरचन्द द्वारा हिन्दी में
लिखित पुस्तक। यह पुनः बनिया (जैन) समुदाय के विरुद्ध दुष्प्रचार है और जैन धर्म पर प्रहार करता है।
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